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Guest Column – Hill Mail https://hillmail.in Mon, 29 Apr 2024 05:43:49 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://i0.wp.com/hillmail.in/wp-content/uploads/2020/03/250-X-125.gif?fit=32%2C16&ssl=1 Guest Column – Hill Mail https://hillmail.in 32 32 138203753 जानेमाने राजनेता, साहित्यकार व शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय के जन्म शताब्दी पर पुस्तक लोकार्पण https://hillmail.in/well-known-politician-litterateur-and-educationist-late-book-launch-on-the-birth-centenary-of-kulanand-bhartiya/ https://hillmail.in/well-known-politician-litterateur-and-educationist-late-book-launch-on-the-birth-centenary-of-kulanand-bhartiya/#respond Mon, 29 Apr 2024 05:41:16 +0000 https://hillmail.in/?p=49065 सी एम पपनैं

मूर्धन्य साहित्यकार एवं प्रबुद्ध शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय की जन्म शताब्दी (1924-2024) के सु-अवसर पर डिप्टी स्पीकर हाल कांस्टीट्यूशन क्लब में 28 अप्रैल को मंचासीन मुख्य अतिथि पद्मभूषण डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी तथा विशिष्ट अतिथियों में पूर्व राज्यसभा सांसद जनार्दन द्विवेदी, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष दिल्ली विधानसभा डॉ. योगानन्द शास्त्री, उप कुलपति दिल्ली शिक्षक विश्वविध्यालय दिल्ली सरकार डॉ. धनंजय जोशी तथा सचिव दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग दिल्ली सरकार कुलानन्द जोशी (आईएएस) के कर कमलों “मानवीय मूल्यों को समर्पित एवं प्रेरक व्यक्तित्व स्व. श्री कुलानन्द भारतीय” पुस्तक का लोकार्पण किया गया।

स्व. कुलानन्द भारतीय जन्म शताब्दी समिति भारती शिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह का श्रीगणेश मंचासीन अतिथियों के कर कमलों दीप प्रज्वलित कर तथा आयोजन समिति द्वारा मुख्य व विशिष्ट अतिथियों का स्वागत अभिनंदन शाल ओढ़ा कर तथा पौंध के गमले व स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर समिति प्रमुख संजय भारतीय द्वारा सभी मंचासीन अतिथियों व सभागार में उपस्थित शिक्षा, साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और सामाजिक जीवन से जुड़े सभी प्रबुद्ध जनों का स्वागत अभिनंदन कर कहा गया, आज का दिन गौरवशाली दिन है। “मानवीय मूल्यों को समर्पित एवं प्रेरक व्यक्तित्व स्व. श्री कुलानन्द भारतीय” पुस्तक का लोकार्पण डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के कर कमलों संपन्न होना उनकी समिति के लिए गौरव की बात है। अवगत कराया गया, पुस्तक के संपादक रमेश कांडपाल हैं।

मूर्धन्य साहित्यकार एवं प्रबुद्ध शिक्षाविद स्व. कुलानन्द भारतीय के कृतित्व व व्यक्तित्व पर मंचासीन विशिष्ट अतिथियों द्वारा विचार व्यक्त कर कहा गया, एक छोटे से गांव से निकल कर देश की राजधानी दिल्ली में इतना बड़ा मुकाम कुलानंद भारतीय जी ने हासिल किया था। सद्गुण व सद विचारों से असंभव को संभव बनाने में वे सिद्धहस्त थे, तभी इतिहास पुरुष बने। उन्होने अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया। वे राजनेता से पूर्व अपने को शिक्षक मानते थे। ओजस्वी व्याख्यान देते थे। वे राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय प्रेम के उपासक थे। उनका यही राष्ट्रप्रेम उनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता था। एक साहित्यकार के रूप में भारतीय जी ने कविता, लेख, उपन्यास, संस्मरण इत्यादि इत्यादि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। फर्श से अर्श तक की विकास यात्रा उन्होने पूर्ण की थी।

प्रबुद्घ वक्ताओं ने कहा, कुलानन्द भारतीय जी अधिकांशतया राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय रहे, किंतु राजनीति के दुष्चक्र से वे सदेव दूर रहे। यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी। वक्ताओं द्वारा अवगत कराया गया, 1952 शक्ति नगर दिल्ली में कुलानंद भारतीय द्वारा विद्यालय की स्थापना की गई थी। 1969 में वे दिल्ली युवा कांग्रेस राष्ट्रीय एवं 1971 से 1980 तक जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्र के अध्यक्ष रहे थे। 1962 से 1975 तक नगर निगम सदस्य रहे, साथ ही कई समितियों के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पदों को उन्होंने सुशोभित किया था। 1972 से 1975 तक वे विद्वत परिषद के सदस्य रहे थे। 1983 से 1990 तक दिल्ली प्रशासन शिक्षा विभाग में कार्यकारी पार्षद (शिक्षा मंत्री) रहे थे। वक्ताओं द्वारा कहा गया, एक शिक्षामंत्री के रूप में कुलानंद भारतीय द्वारा भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन करने हेतु तथा शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने में मत्वपूर्ण योगदान दिया गया था। उनके अथक परिश्रम के फलस्वरुप देश में शिक्षा की उन्नति हुई थी।

प्रबुद्घ वक्ताओं ने कहा, गांधी जी के आदर्श व उद्देश्य पर संचालित स्कूल प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत (रानीखेत) की स्वरोजगार से जुड़ी शिक्षा पद्धति से वे सदा प्रभावित रहे थे। देश की आजादी के आंदोलन में भागीदारी की थी। आजीवन खादी के कपड़े पहन कर खादी को अहमियत दी थी। कुलानन्द भारतीय जी ने कठिन परिस्थितियों में जीवन जी कर जन के अभावों व चुनौतियों को समझा था। वे सामाजिक आंदोलनों में अहिंसक भाव से संघर्ष किया करते थे। साहित्यिक, सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति सहज रहती थी। वे कोई मुद्दा नहीं रखते थे, जो उनकी सहजता का पक्ष रखता था।

प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा कहा गया, आज अगर मुद्दों पर संघर्ष किया जा रहा है, तो समझना होगा आंतरिक विकास कितना हुआ है? आज राजनैतिक स्वार्थ बढ़ने से बदलाव हुआ है। कुलानन्द भारतीय जी सचमुच भारतीय थे। उन्होने उस जमाने में प्रतिमान हासिल किया था, जब वे कुछ नहीं थे। वे संघर्ष के बल आगे बढ़े थे। उनका जीवन मूल्यों को समर्पित था। उनके जीवन दर्शन को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता, इतने गुण थे उनमें। व्यक्ति चला जाता है, उसके विचार नहीं जाते हैं। भारतीय जी के विचार दर्शन को आगे बढ़ाना होगा। आज की पीढ़ी का दायित्व बनता है। उनके आदर्शो, विचारों, संस्कारों को अपने जीवन में उतारें।

आयोजन मुख्य अतिथि भाजपा वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा, मेरे दृष्टि से आयोजित कार्यक्रम का महत्व है। कुलानन्द भारती अल्मोड़ा जिले के जिस गांव में पैदा हुए थे वह क्रांतिकारियों का गांव था। सल्ट और स्याल्दे में जाकर स्वाधीनता की लड़ाई में अंग्रेजों को उन गांवो में गोलियां चलानी पड़ी थी, इस घटना से उन गांवों के आंदोलन को समझा जा सकता था। उन्होंने कहा, एक समय था उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के इन गांवों में कुछ नही था। जाना कठिन था। स्वाधीनता सेनानियों ने त्याग किया था, बलिदान दिया था। कुलानंद भारतीय जी के माध्यम से उन स्वाधीनता सेनानियों को याद करता हूं, श्रद्धांजलि देता हूं।

डॉ. जोशी ने कहा, सच है, आज के वातावरण में कुलानन्द भारतीय राजनीति में रह सकता है, असंभव है। भारतीय जी समाज के लिए समर्पित थे, ऐसे व्यक्ति आज ढुढ़े नहीं मिल सकते हैं। उस समय समर्पित लोग राजनीति में होते थे। उन्होंने कहा गया, कुलानन्द भारतीय का मुख्य कार्य था राजधानी दिल्ली में संस्कृत अकादमी की स्थापना करवाना। संस्कृत को उसका उचित स्थान मिले जानना जरूरी है, उनकी यह सोच रही। डॉ. जोशी ने कहा, विश्वगुरु हम बन सकते हैं, संस्कृत का अध्ययन, उन्नयन सबसे महत्वपूर्ण है। अंग्रेजों ने संस्कृत को भारत के जीवन से हटाया। दुनिया के विद्वानों ने कहा, भारत विश्वगुरु है। किसी देश के विद्वान ने अपने रचित ग्रंथ में कहा था, सबसे विद्वान देश भारत है, समस्त विद्याओं का ज्ञाता है। भारत के लोग जो जानते हैं उसका अपने ग्रंथ में बखान किया।

उन्होंने कहा, हम जिस कालखंड में विश्वगुरु कहे जाते थे उसे जानना होगा। आज हम स्वयं कहे हम विश्वगुरु हैं, बात अलग है। अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति व संस्कृत को सबसे पहले नष्ट किया था। अंग्रेजों ने अंग्रेजी के पठन-पाठन को हर विषय में बल दिया। हमारा संविधान कहता है, हम जो भी शब्द लेते हैं, उनका श्रोत संस्कृत है। वहीं से हर विषय के शब्द लिए जा सकते हैं। संस्कृत को स्मरण करना चाहिए जो आवश्यक भी है।

डॉ. जोशी ने कहा, भारत तब विश्वगुरु था जब वेद उपनिषद पढ़े जाते थे। उन्हीं ग्रंथो से भारत विश्वगुरु कहलाया जाता था। वेद का ज्ञान बताने वाले ब्राह्मण हैं। विज्ञान का मूल श्रोत भी संस्कृत है। हर राष्ट्र का मूल खोजने पर संस्कृत ही मिलेगी। भारतीय संस्कृति को कुलानन्द भारतीय के दृष्टिकोण से देखना होगा, जानना होगा, आप क्या थे? कहा गया, साहित्य से संस्कृत को निकाल देंगे, तो क्या मिलेगा? आवश्यकता है, इस बात को जानने की भारत क्या है ? क्या था ? आज कहां तक जा सकता है?

उन्होंने कहा, देश की राजधानी दिल्ली में कुलानंद भारतीय द्वारा संस्कृत अकादमी की स्थापना करना दूरदर्शी सोच थी। जो उद्देश्य के लिए खोली गई थी, जिससे भारत की आत्मा को जाना जा सके। कहा गया, भारतीय ज्ञान परंपरा व्यापक है, भारतीय शिक्षा प्रणाली में। जिन्होंने शिक्षा नीति लिखी है, उन्हें ही मालूम नहीं है। हमारे देश की जो न्याय पद्धति चलती थी उसका अता पता नहीं है। ब्रिटिश कानून चलायमान हैं। डॉ. जोशी ने कहा, कुलानान्द भारतीय जी ने बताया संस्कृत के बिना भारत का ज्ञान अधूरा व असंभव है। संविधान निर्माण के वक्त भी संविधान की भाषा संस्कृत हो जोर दिया गया था। तब मौका था अगर कुछ बड़े कद के लोग संस्कृत भाषा का समर्थन करते तो बात कुछ और होती। देवनागिरी को माना गया जिससे काम चल रहा है। कहा गया, हमें की गई गलतियों के बावत सोचना चाहिए। जो बीज बोया था आगे बढ़ेगा। समय आयेगा आगे आना ही होगा। तभी व्यवस्थाए ठीक होंगी।

डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा, उपभोग पर आधारित व्यवस्थाए विनाशकारी हैं। विकास को और उपभोग को समानार्थी मान लिया जाए यह और भी ज्यादा विनाशकारी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में एक दूसरे को पटकनी देकर ही मात दी जा सकती है। व्यवस्थाए संयुक्त राष्ट्र की देन हैं वही रोक रहा है पटकनी को। आज का दर्शनशास्त्र विनाशकारी है। जो प्रेरित नहीं कर सकता यह अधिक से अधिक संघर्ष करने को प्रेरित करता है। उन्होंने कहा गया, राह उपनिषद से मिलेगी। वक्तव्य स्माप्त करने से पूर्व डॉ. जोशी ने कहा, स्मरण करता हूं, कुलानंद भारतीय के आदर्शो को साकार करने की शक्ति मिले, प्रार्थना करता हूं। उन्हें श्रद्धांजलि।

सभी मंचासीन अतिथियों व खचाखच भरे डिप्टी स्पीकर हाल में उपस्थित प्रबुद्घ जनों का आयोजन में सम्मिलित होने हेतु आभार व्यक्त करने तथा आयोजित कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा करने से पूर्व लोकार्पित पुस्तक संपादक रमेश कांडपाल द्वारा अवगत कराया गया, उत्तराखंड में भी संस्कृत अकादमी की स्थापना कुलानंद भारतीय की सलाह पर ही राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा की गई थी। आयोजित जन्म शताब्दी कार्यक्रम का प्रभावशाली मंच संचालन प्रमोद घोड़ावत द्वारा बखूबी किया गया। राष्ट्रीय गान के के साथ आयोजित जन्म शताब्दी आयोजन का समापन हुआ।

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ग्राउंड रिर्पोटिंग – लोकसभा चुनावों में कितना सफल रहा ‘अपना वोट अपने गांव’ अभियान https://hillmail.in/how-successful-was-the-apna-vote-apne-gaon-campaign-in-the-lok-sabha-elections/ https://hillmail.in/how-successful-was-the-apna-vote-apne-gaon-campaign-in-the-lok-sabha-elections/#respond Thu, 25 Apr 2024 05:58:57 +0000 https://hillmail.in/?p=49031 इस बार 17 अप्रैल को निवास स्थान ग्रेटर नोएडा से अपने गांव जल्ठा, डबरालस्यू पट्टी, ब्लॉक द्वारीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड जाना हुआ। एक-डेढ़ साल पूर्व जो वोटर कार्ड बनाने के लिए प्रक्रिया शुरू हुई थी, वह पूर्ण हो गई थी और वोटर कार्ड बन कर तैयार था और हमें 19 अप्रैल को अपना वोट डालने अपने गांव जाना था। इससे पूर्व कभी दिल्ली, बाद में ग्रेटर नोएडा हमारा मतदान संपन्न होता रहा है।

इस बार हम दिल्ली से 17 अप्रैल को कोटद्वार के लिए ‘उत्तराखंड परिवहन’ की बस लेते हैं और 17 की शाम अपनी दीदी (पतिदेव की बड़ी बहन, काला परिवार) के यहां रुकते हैं। अगले दिन 18 अप्रैल को पहाड़ों के लिए बसों की बड़ी समस्या थी। अधिकांश बसें, जीपें चुनाव के लिए और उस बीच शादियों के लिए लग चुकी थीं। हमें बताया जाता है कि आप सुबह जल्दी निकल जायेंगे तो जाने का कुछ साधन मिल जायेगा अन्यथा मुश्किल होगी। हम सुबह 4 बजे उठकर 4ः45 में बालासौड, कोटद्वार से पैदल ही स्टेशन की ओर निकल पड़ते हैं और हमें 5ः30 बजे एक बस जिसे कोटद्वार से द्वारीखाल पहुंचना था, मिल जाती है। इस बीच कोटद्वार सरकारी बस अड्डे का अभी भी वही अविकसित रूप और साफ-सुथरे टॉयलेट का न होना अखरता है। कितना मुश्किल है यह लिखना कि जो गढ़वाल क्षेत्र का मुख्य द्वार कोटद्वार है वहां सही से एक बस अड्डा तक नहीं, कोई ठीक प्रसाधन सुविधाएं उपलब्ध नहीं। इसलिए जब बसों से यात्रा करते हैं तो कई सच्चाइयों से भी व्यक्ति रूबरू हो जाता है।

द्वारीखाल पहुंचकर बस में बैठे अन्य लोग भी हमारी तरह अटक जाते हैं जिन्हें चैलूसैण, देवीखेत या आगे तक जाना था। आधा, एक घंटा बसों का इंतजार करने के बाद द्वारीखाल में एक टैक्सी उपलब्ध हो पाती है जो हमें 800 रुपए में देवीखेत से 3, 4 किलोमीटर आगे जौलीधार तक छोड़ती है। वहां से जंगल की लगभग दो किलोमीटर की, मनभावन पैदल यात्रा करके हम अपने गांव सुबह 10, 11 बजे के बीच पहुंच जाते हैं। इस बार जंगलों में आग के कारण घास, झाड़ियां जली हुई थी और रास्ता साफ दिखाई दे रहा था, इसलिए जंगली जानवरों का भय कम था। गांव में अपने पैतृक घर में हम पहुंचते हैं और मदन भाई उनकी पत्नी, बहू रेनू का आतिथ्य हमें मिलता है। सभी गांव वालों से मुलाकात होती है, स्नेह, आदर से हमारे मन अभिभूत हो जाते हैं। गांव की स्थिति पर दो दिनों तक कुछ चर्चा भी हो जाती है।

यह तो हमारे गांव तक पहुंचने की यात्रा का विवरण था। मुख्य बात यह भी है कि हम शहरों की सुविधाओं को छोड़कर पुनः गांवों की ओर क्यों बढ़ रहे हैं…? इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है और आगे भी रहेगा, वह है गांव और शहर के बीच आबादी का संतुलन न होना। गांव खाली होते जा रहे हैं और शहरों में अतिरिक्त भार बढ़ रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है। बीमारियां बढ़ रही हैं। आज भी गांवों में कोई सुविधा न होते हुए भी शुद्ध हवा, पानी, थोड़ा बहुत घर के आगे खेती तो है ही, जो यहां के लोगों के लिए पर्याप्त है। पानी की, बिजली की समस्या भी अब बहुत हद तक दूर होने लगी है। घर-घर नल लग चुके हैं। पानी को घर-घर पहुंचाने के लिए सरकारी और ‘हंस फाउंडेशन’ की योजना चल रही है। गैस सिलिंडर घरों तक पहुंचने लगे हैं या पहुंचा दिए जाते हैं। गांवों में जब कुछ हलचल होने लगी तब तक गांव खाली हो गए..!

शायद सुविधाएं देने वाले हाथ, गांव तक देर से पहुंचे… लोगों को जरूरत थी, जीवन जीने का एक जज़्बा था, इस संघर्ष के बीच वो इंतजार न कर सके और चले गए। शहरों में भी उन्होंने जीवन जीने के लिए खूब संघर्ष किया किंतु अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। मकानों ने अपनी भव्यता बहुत समय तक बारिश, तूफानों के संघर्ष के बीच बचा कर रखी फिर एक दिन ऐसा आया वह गिर गए, हार मान ली…। आगे कुछ लोगों ने कहा कि हम 4 /5 भाई हैं, आपस की साझेदारी है चलो मिलकर इसे पुनः खडा कर देते हैं… किंतु फिर भी उनमें सहमति नहीं बन पाई… न मेरा है न तुम ही बना पाओगे…। दो परिवारों से पहले छह हुए, फिर दस फिर अनेक हो गए, नए गांव बस गए, पुराने छूटते चले गए। कुछ लोग कोटद्वार भाबर जाकर निवास करने लगे और गावों को छोड़ दिया। कुछ शहरों में भी रहे तो गांव आते-जाते रहे। एक लंबी अंतहीन कथा यूं ही चलती रही। आज जो है कल फिर कुछ नवीन होगा… यह सिलसिला चलता रहेगा…!

फिर भी गांवों में जो रहना चाहते हैं उनके लिए कुछ बातें जरूरी लगती हैः-

(1) जो कम संसाधनों में भी अपनी गुजर-बसर करने में संतुष्ट हों।
(2) जिनके हाथ, पैरों की स्थिति सही हो। क्योंकि यहां चढ़ना, उतरना आम बात होती है। साथ ही यहां अधिकतर टॉयलेट हिंदुस्तानी ही बने होते हैं और घर के अलग, पीछे की तरफ बने होते हैं।
(3) गांव में रहना है तो स्वयं की आत्मनिर्भरता भी जरूरी है क्योंकि कब तक रिश्तेदारों के या दूसरों के घर में रहा और खाया जा सकता है।
(4) यहां शहरों की तरह न शोर-शराबा है न प्रदूषण। शुद्ध हवा, पानी और शांति है और सुकून है… और जिनमें थोड़े में जीने की कला है, उनके लिए उत्तम स्थान। साथ ही थोड़ा ऊंचाई पर चले जाइए तो ठंडी हवा का क्या कहने….!
(5) साथ ही यहां रहने के लिए यह भय भी त्यागना होगा कि कहीं कुछ हो गया तो आसपास कोई डॉक्टर भी नही। यहां के व्यक्ति संतुलित खाते हैं, और शुद्ध वातावरण में रहते हैं। और कई लोग ऐसे हैं जो लंबे समय से बिना मेडिकल सुविधा के यहां रह रहे हैं और अभी तक स्वस्थ हैं। यहां अस्पताल बनना, स्कूल बनना, सड़कें बनना यह सब सरकारी परियोजनाएं हैं जिनसे गांव के प्रत्येक व्यक्ति का सरोकार तो है पर उस पर उनका कोई बस नहीं चलता। योजनाओं के इंतजार में रहते-रहते लोग यहां से पलायन कर गए। इंसान वही कर सकता है, जो उसके नियंत्रण में है। यदि गांवों के सही विकास के विषय में पहले से ही सोचा गया होता, नीतियां बनाई गई होती तो आज गांव इस तरह खाली नहीं होते और शहरों पर अतिरिक्त भार न होता। जंगली जानवरों का आतंक एक अलग विकट समस्या है।

इस बार गांव में वोटिंग प्रतिशत भी कम देखा गया जिसके कई कारण रहे होंगे। जिनमें प्रमुख कारण इस बीच बड़े लगन व शादी समारोहों का होना रहा। लोग इधर-उधर फंसे रहे और वाहनों की भी कमी रही। वोटिंग की तिथि निर्धारित करते समय शासन-प्रशासन की ओर से, एक बड़ी भूल इसे कहा जा सकता है कि उन्होंने शादी के इस बड़े लगन को नजरअंदाज किया या उनकी जानकारी दुरुस्त नहीं थी।

अन्य कारणों में जो समझ में आए उनमें स्थानीय नेताओं का गांव से जनसंपर्क ठीक से न होना, गांव से 2 किलोमीटर वोटिंग सेंटर तक बड़े-बूढ़ों के आने-जाने के लिए वाहन की सुविधा सही से न हो पाना तथा आपसी समन्वय की कमी रहना आदि। लोगों में बच्चों के रोजगार को लेकर चिंतित रहना और उदासीन रहना भी एक कारण रहा किंतु उनके द्वारा वोट फिर भी डाले गए। जिन लोगों द्वारा वोट नहीं डाले गए उन्हें आगे कुछ कहने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए। क्योंकि व्यक्ति राष्ट्रीय कर्तव्य भूल जाए और सिर्फ आलोचना करें, यह स्वीकार्य नहीं होगा। कुछ वर्षों में गांव का जो विकास हुआ है उसे सभी मानते हैं। कोरोना काल को यहां के सभी लोग अभी तक नहीं भूले हैं। उनका कहना है कि उस समय सरकार हर तरह की अन्न-धन की मदद न करती तो आधे गांव भूख से मर गए होते। मेरी जानकारी में इस गांव की ग्राम प्रधान रेनू उनियाल और ग्राम सभा खेड़ा की प्रधान सुषमा रावत (सुमा देवी) बहुत कर्मठ और जागरूक महिलाएं हैं, जिन्होंने खूब सहयोग किया और कर रही हैं।

हमारा गांव आना-जाना लगा रहेगा। हो सकता है आगे लंबे समय तक वहां ठहरा जाये और कुछ सार्थक कार्य वहां से किए जा सकें। गांव की बसासत को लेकर और समृद्धि को लेकर बहुत कुछ भीतरी चिन्तन क्रियाशील है जिसे ईश्वर ने चाहा तो कुछ साकार रूप मिल सके।

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उत्तराखंडी प्रवासी जन समाज द्वारा सु-प्रसिद्ध दिवंगत लोकगायक प्रहलाद मेहरा को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि https://hillmail.in/uttarakhandi-pravasi-jan-samaj-paid-emotional-tribute-to-the-famous-late-folk-singer-prahlad-mehra/ https://hillmail.in/uttarakhandi-pravasi-jan-samaj-paid-emotional-tribute-to-the-famous-late-folk-singer-prahlad-mehra/#respond Mon, 15 Apr 2024 10:02:13 +0000 https://hillmail.in/?p=48964 सी एम पपनैं

इस अवसर पर सभागार में उपस्थित प्रवासी जनों द्वारा दिवंगत लोकगायक प्रहलाद मेहरा के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गीत-संगीत, रंगमंच तथा उत्तराखंडी फिल्म जगत से जुड़े कलाकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों व समाज सेवियों में प्रमुख चंदन भैसोडा, बिशन हरियाला, मनोज चंदोला, हेम पंत, डॉ.सतीश कालेश्वरी, चारू तिवारी, राकेश गौड, डॉ. विनोद बछेती, के एन पांडे, सत्येंद्र फरन्डिया, चन्द्र मोहन पपनैं तथा सुरेंद्र हलसी द्वारा दिवंगत लोकगायक द्वारा जीवन पर्यंत अंचल के लोकगायन, लोकसंगीत व लोकगीतों की रचना कर उत्तराखंड की सांस्कृतिक विधा के संवर्धन व संरक्षण में दिए गए योगदान पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

लोकगायक प्रहलाद मेहरा का आकस्मिक निधन विगत 10 अप्रैल को 53 वर्ष की उम्र में हृदय गति रुक जाने से हल्द्वानी के कृष्णा हस्पताल में हो गया था। 11 अप्रैल रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। उनके पुत्र मनीष मेहरा, नीरज मेहरा और कमल मेहरा द्वारा चिता को मुखाग्नि दी गई थी।

दिवंगत प्रहलाद मेहरा उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले की तहसील मुनस्यारी स्थित चामी भेंसकोट में जन्मे थे। बचपन से उन्हें वाद्ययंत्र बजाने व गाने का शौक रहा था। वे ताउम्र उत्तराखंड के लोकगीत संगीत को समर्पित रहे। उन्हें गीत, झोड़ा, चांचरी, न्योली इत्यादि इत्यादि विधाओं में महारत हासिल थी। उनकी गायन प्रतिभा का ही प्रतिफल था वर्ष 1989 में उन्हें आकाशवाणी अल्मोड़ा में ए ग्रेड कलाकार का दर्जा प्राप्त हो गया था।

दिल्ली में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में विद्वान वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा के आकस्मिक निधन से उत्तराखंड के रंगमंच व सांस्कृतिक जगत की एक अपूरणीय क्षति हुई है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। अंचल ने एक ऐसी सोच के समर्पित लोकगायक को खोया है जिसकी रचनाओं व गायन में पहाड़ की नारी की वेदना का बखान होता था। अंचल से जुड़े गीत-संगीत की रचना व गीत गायन पर उनकी अच्छी पकड़ व गहरी संवेदनशील सोच थी। वे अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति के प्रहरी व मर्मज्ञ थे।

वक्ताओं ने कहा, अंचल की लोक संस्कृति के संवर्धन की चाहत उनकी सदा बनी रही। चैती गायन के साथ-साथ अन्य अनगिनत सुपरहिट गीत उन्होंने गाए। उनके गीतों में कुमाऊनी संस्कृति का रंग बिखरता था। बाल उम्र से ही अंचल के लोकगीत गायन, संगीत तथा बोली-भाषा में उनका बड़ा आलोक था। वे अपनी व समाज की बातों को गीतों के माध्यम से आगे रखते थे। अपने ग्रामीण अंचल दानपुर की प्रकृति का बखान अपने कर्णप्रिय व भावयुक्त गीतों में किया करते थे।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा उस परंपरा से आते हैं जहां से केशब अनुरागी आते हैं, शेरदा अनपढ़, हीरा सिंह राणा तथा नैन नाथ रावल, नरेंद्र सिंह नेगी इत्यादि इत्यादि आते हैं। वक्ताओं द्वारा कहा गया, हमारे यहां लोकगीतों में नाचने गाने की परंपरा है, उस लोकगीत के भाव क्या हैं, उसे जानने की किसी ने कोशिश नहीं की। दिवंगत प्रहलाद मेहरा के रचे व गाए गीत चेतना जगाने वाले गीत थे। उन्होंने महिलाओं के दर्द के गीतों को गाया। बहुत बड़ा आलोक उनके गीतों में रहा है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, जब विश्व बाजार सब कुछ बना रहा है, परोस रहा है, ऐसे समय में प्रहलाद मेहरा ने अंचल की पुरानी परंपराओं को आगे बढ़ाया है। वे लोगों के मर्म को जानते थे, समझते थे। वे जो अपने गीतों के माध्यम से दे गए हैं एक बड़ी धरोहर है। वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी को इस धरोहर के मायने समझने होंगे, उसे संजो कर रखना होगा।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, 2022 में उन्हें अंचल के गायन में यूका सुपरहिट गायक के सम्मान से नवाजा गया था। और भी अनेकों सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा उन्हें समय-समय पर विभिन्न नामों के सम्मानों से नवाजा गया। सौम्य और सरल स्वभाव के इस महान व्यक्तित्व के लोकगायक व रचनाकार में अंचल के लोगों के मर्म, अभावग्रस्त जीवन तथा लोक संस्कृति से उनका कितना गहरा नाता था, यह उनके द्वारा रचित गीतों व मर्म स्पर्शी गायन में झलकता था। उनकी सहजता, मिलनसार स्वभाव से सहमत हुए बिना नही रहा जा सकता था। उत्तराखंड के जन समाज को जो संदेश उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से दिया, झकझोरने व जागरुक करने वाला रहा, अनुकरणीय रहा। उनकी स्मृति मन मस्तिष्क में बनी रहेगी।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा को उनके योगदान पर वह स्थान और सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे असली हकदार थे। अंचल के जन के मध्य उनके रचित गीत व गायन पीढ़ियों तक उनकी याद दिलाते रहेंगे विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है।

सभी वक्ताओं द्वारा कहा गया, प्रहलाद मेहरा का जाना दुःख मय रहा। शोक स्थाई भाव की तरह जमा रहेगा। उनके रचे व गाए लोकगीत सदा स्मरणीय रहेंगे। उनकी रचनाओं व लोकगीतों को हम सबको मिलजुल कर आगे बढ़ाना होगा। हम किसी भी विचार धारा से जुड़े हो, परंतु अपने अंचल से जुड़ाव व नाता अवश्य रखना होगा। हम सब दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। पुण्य आत्मा की नजर बनी रहे, कामना करते हैं।

वक्ताओं द्वारा राय व्यक्त की गई, दिवंगत प्रहलाद मेहरा के नाम पर अंचल के किसी इंस्टिट्यूट का नाम रखा जाना चाहिए, यह कार्य उस दिवंगत आत्मा को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। दिवंगत आत्मा की शांति हेतु खचाखच भरे सभागार में उपस्थित लोगों द्वारा दो मिनट का मौन रखा गया। आयोजित श्रद्धांजलि सभा के विसर्जन की घोषणा मंच संचालक उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेंद्र चौहान द्वारा की गई।

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उत्तराखंड के सिविल सर्विस अधिकारियों, प्रवासी सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा आयोजित होली मिलन समारोहों में झूमा जनमानस https://hillmail.in/people-gathered-in-holi-celebrations-organized-by-civil-service-officers-of-uttarakhand-and-migrant-social-and-cultural-organizations/ https://hillmail.in/people-gathered-in-holi-celebrations-organized-by-civil-service-officers-of-uttarakhand-and-migrant-social-and-cultural-organizations/#comments Sun, 24 Mar 2024 10:18:36 +0000 https://hillmail.in/?p=48670 सी एम पपनैं

आधुनिक दौर में परंपरागत सांस्कृतिक धरोहर का क्षय धीरे-धीरे होता दिख रहा है। फिर भी दिल्ली एनसीआर में रच बस गए उत्तराखंडी प्रवासी बन्धुओं द्वारा अंचल की समृद्ध सांस्कृतिक होली गायन परंपरा के संरक्षण व संवर्धन का भरसक प्रयास किया जा रहा है। उत्तराखंडी प्रवासी बहुल इलाकों के घरां, भवनों व सभागारों में प्रवासी जनों को बड़ी संख्या में इकठ्ठा होकर बैठ व खड़ी होली गायन की महफिल सजा, परिपाठी को संजोए हुए देखना, सुनना सुकून देता नजर आता है। इस क्रम में गढ़वाल भवन, अल्मोड़ा भवन व नेहरू स्टेडियम के साथ-साथ समस्त उत्तराखंडी बहुल इलाकों में होली गायन की धूम मची रही। इस क्रम में हिंडन घाट किनारा भी होल्यारों से अछूता नहीं रहा। उक्त सब आयोजनों का अवलोकन कर समझा जा सकता है, उत्तराखंड के प्रवासी जनों में अपनी पारंपरिक लोक धरोहर को संजोए रखने के प्रति कितनी अगाध श्रद्धा व प्रेम भावना निहित है, इस आसमान को छूती महंगाई व बहुमूल्य समयाभाव के युग में भी।

होली के गीत-संगीत से सराबोर भव्य होली मिलन कार्यक्रम का एक ऐसा ही भव्य आयोजन 23 मार्च को नेहरु स्टेडियम के वीआईपी लांच में उत्तराखंड के सिविल सर्विस से जुडे़ अधिकारियों द्वारा ’छबीलो गढ़वाल मेरो रंगीलो कुमाऊं’ होली मिलन समारोह अयोजित किया गया था। होली गीत, संगीत के साथ-साथ उत्तराखंड की लोकगायन की विभिन्न विधाओं के इस आयोजन का संगीत निर्देशन किया था विरेंद्र नेगी ’राही’ द्वारा। गायक, गायिकाओं में प्रमुख थे नैन नाथ रावल, कमला देवी, भुवन रावत, भुवन गोस्वामी, मधु बेरिया साह, दीपा पंत पालीवाल, सौरव मैठानी तथा जौनसार के सुल्तान सिंह तोमर, चमन रावत, तिलक राम शर्मा तथा राम सिंह तोमर।

आयोजित होली मिलन समारोह गणेश वंदना से आरंभ किया गया। होली गायन के गीतों में उपस्थित गायक कलाकारों द्वारा-

अखियन पड़त गुलाल….।
मोरी आंखो में डारी गुलाल….।
चल उड़ी जा भंवर तुझे मारंगे…।
मेरो री मन मोहन ललना…।
भर मुठ्ठी मारो गुलाल मेरो पिया..।

इत्यादि इत्यादि होली गीतों ने होली मिलन समारोह में उपस्थित उत्तराखंड के सिविल सर्विस से जुडे़ आईएएस, आईआरएस, आईपीएस, आईएफएस इत्यादि इत्यादि शीर्ष अधिकारियों को झूमने, नाचने व गाने को बाध्य किया। दीपा पंत पालीवाल के मिश्रित गायन, कमला देवी के लोकगायन व मधु बेरिया साह के शास्त्रीय होली गायन के साथ-साथ अल्मोड़ा के बुजुर्ग कैलाश चंद्र पांडे द्वारा लोकगायन की विभिन्न विधाओं में प्रस्तुत लोकगीतों ने करीब पांच घंटे तक चलायमान होली मिलन समारोह को यादगार बनाया।

सिविल सर्विस अधिकारियों द्वारा आयोजित समारोह को मुख्य आयोजन कर्ता व संयोजक हीरा बल्लभ जोशी (आईआरएस) द्वारा संबोधित कर अयोजन के मकसद के बावत अवगत करा, कहा गया, बाल्यकाल में उत्तराखंड के सुदूर ग्रामीण गांव में पाटी-दवात पकड़ शिक्षा की शुरुवात की थी। अंचल की लोक संस्कृति से रूबरू जरुर हुआ था, लेकिन उसकी जड़ व महत्ता तथा उससे जुड़े सामाजिक ताने बाने को बाद के दिनों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद ही जान पाया, उससे जुड़ पाया। अवगत कराया गया, अंचल विभिन्न स्मृद्ध विधाओं से ओतप्रोत है। बहुत से वाद्ययंत्र हैं, जो हमारी समृद्ध लोक संगीत के द्योतक हैं, इन वाद्ययंत्रों का जनक भी हमारा अंचल ही है। गायन विधा ऐसी है जो सवाल भी करती है, जवाब भी देती है और हंसी ठिठोली भी करती नजर आती है। लेकिन आज उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल से हो रहे भारी पलायन की वजह से गायन व वादन की अनेकों विधाएं समाप्ति की ओर अग्रसर हैं। ग्रामीण अंचल में आयुर्वेद से जुड़ी वैद्य इलाज की परंपरा का उन्मूलन कष्ट दायक है। अंचल में उपचार हेतु जड़ी-बूटियां मौजूद हैं, परंतु ज्ञान हास की कगार पर है, जो कष्ट दायक है। अवगत कराया गया, आज के आयोजन में अंचल के कुछ ऐसी लोकगायन की विभूतियों को आमंत्रित कर उनका गायन उस विधा के संरक्षण व संवर्धन हेतु करवाया जा रहा है, जिससे आज की प्रवासी युवा पीढ़ी को एक संदेश पहुंचाया जा सके। अंचल के लोग लोकगायन व वादन से जुडे़ कलाकारों को अहमियत दे, उनकी आर्थिक मदद कर अंचल की विभिन्न विधाओं का संरक्षण व संरक्षण कर अपनी आंचलिक सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में अपनी भूमिका का निर्वाह करें।

आयोजित होली मिलन समारोह का प्रभावशाली मंच संचालन नीति आयोग से जुडे़ अधिकारी युगल जोशी द्वारा संजय पंत (आईएएस), आर सी जोशी (आईआरएस), अरुण विजलवान (आईआरएस), भूपेंद्र कैंथोला (आईआरएस), दिनेश फुलारा, खुशाल सिंह रावत इत्यादि इत्यादि के सानिध्य में बखूबी किया गया।

होली मिलन समारोह का एक और प्रभावशाली आयोजन 23 मार्च की रात्रि को मीडोस क्लब, सैक्टर 108 नोएडा में उद्योग जगत की प्रमुख कंपनी टाटा व देश की कई अन्य कंपनियों में प्रमुख रूप से जुडे़ रहे उत्तराखंड की विभूतियों में प्रमुख रविंद्र जोशी और उनकी धर्म पत्नी ज्योति के सौजन्य से आयोजित किया गया। उक्त होली गायन के आयोजन में उत्तराखंड के जाने माने लोक गायकों व गायिकाओं में प्रमुख डॉक्टर कुसुम भट्ट, दिवान कनवाल व दीपा पंत पालीवाल द्वारा मोती साह के संगीत निर्देशन में होली गीतों ने ऐसा यादगार समां बांधा जो आमंत्रित श्रोताओं के दिलो दिमाग में लंबे समय तक संजोया रहेगा।

दिल्ली प्रवास में उत्तराखंडी प्रवासी जनों द्वारा अयोजित होली गीत-संगीत के आयोजनों में शास्त्रीय रागों से ओतप्रोत होली गायन में श्रोताओं को गाते-झूमते व सराहते देख सुकून मिलता है। इसी सुकून की प्राप्ति रविन्द्र जोशी व उनकी धर्मपत्नी ज्योति द्वारा आयोजित भव्य होली मिलन में बड़ी संख्या में उपस्थित प्रबुद्घ आमंत्रित अतिथियों के मध्य दृष्टिगत हुआ जो उक्त श्रोताओं की यादों में लम्बे अर्से तक रमा रहेगा।

उत्तराखंड के प्रवासी जनों के लिए होली महापर्व दिल में उमंग और खुशियों की सौगात लेकर आता है। अंचल के प्रवासी जनों के लिए होली रंगों के साथ-साथ रागों के संगम का अनूठा महापर्व है। दो माह तक प्रवासी बन्धु अपने घरों में बैठकी होली का उत्साह पूर्वक आयोजन कर न सिर्फ भरपूर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं, उत्तराखंड की इस समृद्ध लोकगायन व संगीत विधा का संवर्धन व संरक्षण भी करते नजर आते हैं।

उत्तराखंड की बैठकी व खड़ी होली को सांस्कृतिक विशेषता के तौर पर पूरे देश व वैश्विक फलक पर जाना जाता रहा है। विभिन्न रागों पर आधारित शास्त्रीय गायन बैठकी होली में ब्रज के साथ-साथ उर्दू का प्रभाव भी झलकता है। होली गायन की इस लोकविधा ने हिंदुस्तानी गीत-संगीत को समृद्ध करने के साथ-साथ समाज को एक नई समझ भी दी है। इस विशेषता के कारणवश इस होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है।

समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के नाते उत्तराखंडी गायन होली का प्रचलन व ख्याति सिर्फ उत्तराखंड तथा दिल्ली मे प्रवासरत अंचल वासियों तक ही सीमित न रह कर बढ़ते भू-मंडलीकरण के दौर में राष्ट्रीय व अन्तर्रराष्ट्रीय फलक पर भी उत्तराखंड के प्रवासी जनों के साथ-साथ अन्य समाज के लोगों के बीच भी प्रभावशाली पैठ जमाए हुए है।

उत्तराखंड की बैठकी होली कद्रदानों व कलाकारों दोनों का साझा मंच रहा है। दिल्ली प्रवास में उत्तराखंडी होली का शुभारंभ ऐतिहासिक रहा है। देश के गृहमंत्री रहे भारत रत्न स्व. पंडित गोबिंद बल्लभ पंत के सरकारी आवास पर आयोजित होने वाले होली समारोह से दिल्ली प्रवास में उत्तराखंड के होली गीत-संगीत का शुभारंभ माना जाता है। जिसका क्रम नब्बे के दशक तक लाल किले के प्रांगण तक पहुंच, निर्बाध चलायमान रहा। प्रति वर्ष बिना आयोजकों वाले इस होली उत्सव का समापन उत्तराखंड के प्रवासी जनों द्वारा छलड़ी के दिन लालकिले के प्रांगण मे सूर्य अस्त होने के साथ साज-बाज की गूंज के मध्य कर दिया जाता था।

सन् 1974 से मंडी हाउस स्थित श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ख्यातिप्राप्त राष्ट्रीय होली महोत्सव जो विगत 2015 तक निर्बाध आयोजित किया जाता रहा, उक्त होली उत्सव में उत्तराखंड की सु-विख्यात सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र द्वारा उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली धाक जमाए रखी थी।

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते उनके आवास पर आयोजित होली उत्सव में भी पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली को खड़ी होली की धूम मचाने का अवसर मिला था। उक्त खड़ी होली आयोजन में अटल सरकार के कैबिनट मंत्रियों, विपक्षी दलों के नेताओं अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा कैबिनेट सचिव तथा अन्य जानेमाने पत्रकारों को नाचते-झूमते देखा जा सकता था। विश्व के अनेक देशों में भी इस संस्था द्वारा उत्तराखंड की पारंपरिक होली गीत-संगीत का मंचन सु-विख्यात रंगमंच संगीत निर्देशक स्व.मोहन उप्रेती के निर्देशन में मंचित कर होली गायन की इस समृद्ध विधा को अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्याति दिलवाई थी। 2024 माह फरवरी देश में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव ’भारंगम’ के समापन दिवस पर पर्वतीय कला केंद्र द्वारा उत्तराखंड की खड़ी होली गायन शैली में कार्यक्रम मंचित कर राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ख्याति अर्जित करने का गौरव हासिल किया है।

पारंपरिक तौर पर उत्तराखंड के पहाड़ी अंचल में होली पर्व को बैठकी होली व खड़ी होली के साथ-साथ बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में तथा पहाड़ों में ठिठुरती कड़क ठंड के अंत और खेतों में नई बुआई के मौसम की शुरुआत के प्रतीक रूप में उमंग व हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।

पारंपरिक तौर पर उत्तराखंड में माह पौष से बैठकी गायन होली का शुभारंभ कर फाल्गुन तक गाई जाती है। जिसके तहत पौष से बसंत पंचमी तक आध्यात्मिक तथा बसंत पंचमी से शिव रात्रि तक अर्धश्रंगारिक और उसके बाद श्रंगार रस में डूबी होली गायन की परंपरा का प्रचलन रहा है। होली गायन के रसों में भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण गोपियों की हंसी ठिठोली, प्रेमी-प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़ छाड़ इत्यादि के रसों का तानाबाना होता है। इस होली गायन में वात्सल्य, श्रंगार व भक्ति रस की एक साथ मौजूदगी इसकी मुख्य विशेषताओं में स्थान रखती है।

गायन में शास्त्रीय राग दादरा और ठुमरी ज्यादा प्रचलित रही हैं। होल्यार हारमोनियम के मधुर सुरों तबले व हुड़के की थाप तथा मंजीरे की खनक पर बैठकी होली मुक्त कंठ से भाग लगा गाते नजर आते हैं, जिस पर श्रोतागण झूम उठते हैं। राग धमार से होली गायन का आह्वान किया जाता है। राग श्याम कल्याण से बैठकी होली की शुरुआत व राग भैरवी से होली बैठकी के समापन की परंपरा का पालन होल्यारों द्वारा किया जाता है।

राग आधारित शास्त्रीय गीत-संगीत बैठकी होली परंपरा की शुरुआत पंद्रहवी शताब्दी में चंपावत के चंद राजाओं के महल तथा इसके आसपास के क्षेत्रों से मानी जाती है। माना जाता है चंद वंश के राज्य विस्तार के साथ-साथ शास्त्रीय होली गायन विधा का भी क्षेत्र विस्तृत होता चला गया। जिसका मुख्य केंद्र बाद के वर्षो में अल्मोड़ा बन गया था। स्मृद्धि की ओर बढ़ यह गायन विधा एक परंपरा सी बन गई थी, जिसका पालन कद्रदान व कलाकार आयोजित होली महफिलों में वर्तमान तक करते चले आ रहे हैं। जिसका नजारा कुछ हद तक सु-विख्यात लोकगायिका डॉक्टर कुसुम भट्ट, दीपा पंत पालीवाल तथा पर्वतीय कला केंद्र व हुक्का क्लब अल्मोड़ा से जु़ड़े लोक गायक दिवान कनवाल द्वारा विगत रात्रि उनके गीत-संगीत में देखने-सुनने को मिला।

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‘भारत रंग महोत्सव-2024’ के समापन दिवस पर पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली द्वारा उत्तराखंड की खड़ी होली गायन शैली पर प्रभावशाली मंचन https://hillmail.in/on-the-closing-day-of-bharat-rang-mahotsav-2024-impressive-staging-on-khari-holi-singing-style-of-uttarakhand-by-parvatiya-kala-kendra-delhi/ https://hillmail.in/on-the-closing-day-of-bharat-rang-mahotsav-2024-impressive-staging-on-khari-holi-singing-style-of-uttarakhand-by-parvatiya-kala-kendra-delhi/#respond Wed, 21 Feb 2024 17:09:37 +0000 https://hillmail.in/?p=48284 सी एम पपनैं

अंतरराष्ट्रीय ‘भारत रंग महोत्सव-2024’ रजत जयंती समारोह के समापन दिवस पर उत्तराखंड व देश की सुविख्यात सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली द्वारा 21 फरवरी को दल्लूपुरा दुर्गा पार्क स्थिति चौहराए पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा दी गई थीम ’वसुधैव कुटुम्बकम’ पर उत्तराखंड की खड़ी होली गायन शैली पर आधारित कार्यक्रम का मंचन आम जनसमूह के मध्य प्रभावशाली अंदाज में मंचित किया गया।

उत्तराखंडी बोली-भाषा गायन शैली में मंचित कार्यक्रम का शुभारंभ उत्तराखंडी वाद्ययंत्र पाइप बीन, ढोल व ताशे की गूंज तथा गायक कलाकारों द्वारा-

हो हो होलक रे…हो हो होलक रे… बरस दिवाली बरसे फाग… आज का बसंत कैका घरो… आज का बसंत भारत रंग महोत्सव वालों का घरो… से शुभारंभ किया गया।

खड़ी होली गायन शैली के अन्य उत्तराखंडी बोली-भाषा के बोलों में-
ऐसो अनाड़ी हम भुलि गयो सब,
अरे भुलि गयो रीति रिवाजा मोहन गिरधारी…
भरत मुनि लै रीति बनाई
भरत मुनि लै रीति सजाई,
अरे भुलि गयो रीति रिवाजा… मोहन गिरधारी…
नश हमू चढ़, अहंकार है गोय…
बुराई, भेदभाव, छुआ-छूत है गई..
अरे भुलि गयो रीति रिवाजा… मोहन गिरधारी…
मैं मजबूत परवार मजबूत…
अरे सब मजबूत देश मजबूत… मोहन गिरधारी…
सीमा का इलाकों में पहरी बणो
अरे घुसपैंठियों कै भजाओ, मोहन गिरधारी…
च्येली ब्वारी पढ़ाओ, आघीन बढ़ाओ…
नशो को करो संहार, मोहन गिरधारी…
नारी को करो सत्कार, मोहन गिरधारी…

उक्त खड़ी होली गायन शैली की समाप्ति पर उपस्थित सभी कलाकारों द्वारा ‘भारत रंग महोत्सव-2024’ के उद्देश्यों के तहत राष्ट्रहित में शपथ ली गई-

पंचप्रण की शपथ खानू, हो हो होलक रे…
विकसित भारत लक्ष्य हमौर, हो हो होलक रे…
अपणी विरासत गर्व हम करनू, हो हो होलक रे…
एक जुट, एक मुठ हम रौंलो, हो हो होलक रे…
नारी कै इज्जत हम दयूलो, हो हो होलक रे…
वसुधैव कुटुम्बकम, हो हो होलक रे…
वंदे भारत, जय जय भारत, हो हो होलक रे…।

इत्यादि इत्यादि भाव पूर्ण व प्रेरणादाई गायन के समापन पर उपस्थित स्थानीय जनमानस द्वारा सभी वादकों, नृत्यकारो व गायकों की मुक्तकंठ से तालियों की गड़गड़ाहट कर प्रशंसा की गई।

भारत रंग महोत्सव-2024 रजत जयंती समारोह समापन दिवस के अवसर पर दल्लूपुरा में आयोजित कार्यक्रम में पर्वतीय कला केंद्र से जुड़े कुमाऊं, गढ़वाल व जौनसार अंचल के प्रतिभाग करने वाले गायको, वादकों तथा नृतक कलाकारों में महेन्द्र सिंह लटवाल, डॉ. सतीश कालेश्वरी, राम सिंह तोमर, सुल्तान सिंह तोमर, प्रमिला तोमर, पूनम तोमर, राकेश शर्मा, के सी कोटियाल, हरीश चंद्र शर्मा, मन्नी ढाका, मधु बेरिया साह, भुवन गोस्वामी, खिलानंद भट्ट, स्वेता चांद, के एस बिष्ट, चन्द्र मोहन पपनै, प्रदीप नेगी, सविता पंत, दिनेश फुलारा, जगमोहन रावत, धनलक्ष्मी महतो, भुवन रावत, भूपाल सिंह बिष्ट, खुशाल सिंह रावत, तुलिका बिष्ट, प्रेम बल्लभ पाठक, दिवान कनवाल, इत्यादि इत्यादि मुख्य रहे।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के तत्वाधान में 1 से 21 फरवरी 2024 तक देश के विभिन्न 15 नगरों, महानगरों में प्रमुख दिल्ली, मुंबई, पूणे, भुज, विजयवाड़ा, जोधपुर, डिब्रूगढ़, भुवनेश्वर, पटना, रामनगर (उत्तराखंड), श्रीनगर इत्यादि के प्रमुख सभागारों में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ’भारत रंग महोत्सव’ (भारंगम) का शुभारंभ वर्ष 1999 में किया गया था। विगत 25 वर्षों से निरंतर आयोजित किया जा रहा यह प्रतिष्ठित रंगमंच महोत्सव दुनिया के सबसे बड़े रंगमंच महोत्सव के रूप में जाना जाता है। स्वयं में आयोजित यह महोत्सव एक रचनात्मक समृद्ध इतिहास समेटा हुआ है। नाटकों के महाकुंभ के रूप में जाना जाता है।

इस महोत्सव को आयोजित करने का उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक संपदा और रंगमंच के माध्यम से वैश्विक फलक पर देश को स्मृद्घ बनाना रहा है। आयोजन में समस्त देश के नाटकों के दर्शन हो तथा श्रेष्ठता के बदले सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व मुख्य मानक हो, इस महोत्सव की विशेषता रही है। उक्त उद्देश्यो को दी जा रही, प्रमुखता के बल ही, विगत 25 वर्षो से निरंतर देश के सबसे बडे और अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस नाट्य उत्सव में दुनिया का चौथा सर्वश्रेष्ठ माना जाने वाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निर्देशक चित्तरंजन त्रिपाठी के दिशा निर्देशो के तहत, प्रविष्टियों में शामिल नाटकों की केवल गुणवत्ता ही नहीं, प्रतिनिधित्व का ध्यान भी रखा गया था। आयोजित रंगमंच महोत्सव में कलाकार ही नहीं देश के जानेमाने रंगमंच निर्देशकों व संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त प्रबुद्ध जनों द्वारा भी उपस्थिति दर्ज करा कर आयोजित महोत्सव को सफल बनाने व मान बढ़ाने का काम किया।

अनेकों विदेशी रंगमंडलों को इस महोत्सव में आमन्त्रित किया जाता रहा है। देश के बोली-भाषा के नाटकों में हिंदी के साथ ही प्रादेशिक भारतीय भाषाओं व विभिन्न लोक शैलियों के नाटकों का मंचन आयोजित महोत्सव में होता रहा है।

इस वर्ष भारत रंग महोत्सव की थीम ‘वसुधैव कुटुम्बकम, वंदे भारंगम’ पर आधारित थी। लगभग 150 विभिन्न रंग प्रस्तुतियों का मंचन देश के विभिन्न भागों में आयोजित किए गए थे। 1 फरवरी को मुंबई में महोत्सव का श्रीगणेश व 21 फरवरी दिल्ली में समापन किया गया।

भारत रंग महोत्सव में कई बार प्रतिभाग कर चुकी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था ’पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ द्वारा 2001 में ‘अमीर खुसरो’, 2005 मे ‘भाना गगंनाथ’ तथा 2023 में गीतनाट्य ‘इंद्रसभा’ का प्रभावशाली मंचन किया गया था। 2018 भारत में आयोजित ‘ओलंपिक थियेटर’ में इस संस्था द्वारा गीतनाट्य ‘राजुला-मालूशाही’ का प्रभावशाली व यादगार मंचन कर रंगमंच जगत में गहरी छाप छोड़ने का गौरव हासिल किया था।

वर्ष 1968 दिल्ली प्रवास में स्व. मोहन उप्रेती के सानिध्य में गठित ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली नामक यह सांस्कृतिक संस्था देश के अनेकों महानगरों, नगरों व कस्बो में भारत सरकार, राज्य सरकारों व स्थानीय संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवों व समारोहों में तथा भारत सरकार द्वारा आयोजित विश्व के कई देशो का भ्रमण कर, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में राज्य व देश का प्रतिनिधित्व करने का गौरव हासिल कर चुकी है। वर्तमान में ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली, देश की एक मात्र प्रमुख सांस्कृतिक संस्था है जो गीतनाट्य मंचन के क्षेत्र में अव्वल स्थान रखती है।

इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा मंचित उत्तराखंड की अनेकों लोकगाथाओं व अन्य कार्यक्रमों का राष्ट्रीय प्रसारण दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी प्रसारित होता रहा है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सन् 1989 से निरंतर 28 वर्षो तक पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली रंगमंडल का दर्जा प्राप्त देश की अव्वल दर्जे की सांस्कृतिक संस्थाओ में सुमार रही है। वर्ष 2022 में इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा प्रभावशाली अंदाज में 55वां स्थापना दिवस मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल की प्रभावी उपस्थिति में मनाया गया था।

अगामी माह मार्च 18 को मंडी हाउस स्थिति एलटीजी सभागार में ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र द्वारा उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित गीत-संगीत, नृत्य तथा संवाद आधारित नए सशक्त नाटक ’देवभूमि’ का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े रंगकर्मी सुमन वैद्य के निर्देशन में मंचित किया जा रहा है। आशा की जा सकती है इस नए नाट्य मंचन के बाद इस संस्था के द्वारा विगत वर्षो व दशकों में मंचित किए गए गीत नाट्यों की कड़ी में एक और नया प्रभावशाली अध्याय जुड़ जाएगा।

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नई टिहरी में केंद्रीय विद्यालय के नए भवन का शिलान्यास https://hillmail.in/foundation-stone-of-new-building-of-kendriya-vidyalaya-in-new-tehri/ https://hillmail.in/foundation-stone-of-new-building-of-kendriya-vidyalaya-in-new-tehri/#respond Tue, 20 Feb 2024 17:50:58 +0000 https://hillmail.in/?p=48267 लोकेंद्र सिंह बिष्ट, टिहरी

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू कश्मीर से एक कार्यक्रम में प्रतिभाग के दौरान देश के विभिन्न केन्द्रीय विद्यालयों सहित जनपद टिहरी के जिला मुख्यालय स्थिति 36 करोड़ 2 लाख रुपये की लागत के केन्द्रीय विद्यालय न्यू टिहरी टाउन के स्थायी भवन का आभासी माध्यम से शिलान्यास किया। केन्द्रीय विद्यालय प्रांगण नई टिहरी में कार्यक्रम का शुभारम्भ टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह द्वारा द्धीप प्रज्जवलित किया गया। इसके उपरान्त उन्होने केन्द्रीय विद्यालय न्यू टिहरी टाउन के स्थायी भवन का भौतिक रुप से शिलान्यास किया।

शिलान्यास कार्यक्रम में सांसद टिहरी ने उपस्थितों को सम्बोधित करते हुए कहा कि 36 करोड की लागत से 4.01 एकड ़(1.625 है0) लागत से बनने जा रहे केन्द्रीय विद्यालय न्यू टिहरी टाउन के स्थायी भवन का देश के प्रधानमंत्री के करकमलों द्वारा शिलान्यास किया जाना गर्व की बात है। उन्होने कार्यक्रम में उपस्थित छात्रों व अभिभावकों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के करकमलों द्वारा केवी के स्थायी भवन का शिलान्यास होना मोदी की गारण्टी एक छोटा सा हिस्सा है।

उन्होने कहा कि आगे भी इसी प्रकार से शिक्षण संस्थाओं के निर्माण के साथ-साथ पढाई की गुणवत्ता को बेहतर करने के कार्य निरंतर जारी रहेंगे। उन्होने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में जनपद एक नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। कहा कि केन्द्र सरकार शिक्षण संस्थाओं के बुनियादी ढांचों में लगातार सुधार कर रही है। उन्होने कहा कि विद्यालयों में छात्रों को इतिहास के साथ-साथ सामान्य ज्ञान को पढ़ाये जाने की आवश्यकता है। ताकि इस तकनिकी युग में छात्रों को स्थानीय स्तर पर महान विभूतियों के त्याग, बलिदान, भौतिकी व संस्कृति विरासत के बारें में परिचत जानकारी हो सके।

माला राज्य लक्ष्मी शाह ने कहा है कि मोदी गारंटी का यह एक संकल्प है, प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं की आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल हो, और उन्हें गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा प्रदान की जा सके ताकि एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण किया जा सके।
केंद्रीय विद्यालय नई टिहरी की छात्राओं द्वारा लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां दी गई। सांसद द्वारा बच्चों का उत्साह वर्धन किया गया एवं परीक्षाओं के लिए बच्चों को लगन और मेहनत के साथ तैयारी करने के लिए प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान किया गया।

स्थानीय विधायक किशोर उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि केवी के स्थायी भवन के बनने से पठन-पाठन सहित अन्य शिक्षण गतिविधियों को प्रभावी रुप से क्रियान्वित करने में मदद मिलेगी। कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार शिक्षण संस्थानों के सुदृडीकरण के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता पर भी निरंतर कार्य कर रही है, जिसके चलते जनपद के प्रतिभावान युवा विभिन्न क्षेत्रों में उंचो पदों को सुशोभित कर रहे हैं।

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साइकिल से ‘स्वस्थ एवं रोगमुक्त भारत’ हेतु अलख जगाता उत्तराखंड का प्रवासी https://hillmail.in/migrant-from-uttarakhand-raising-awareness-for-healthy-and-disease-free-india-on-bicycle/ https://hillmail.in/migrant-from-uttarakhand-raising-awareness-for-healthy-and-disease-free-india-on-bicycle/#respond Sun, 11 Feb 2024 05:48:40 +0000 https://hillmail.in/?p=48144 सी एम पपनैं

उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के दुर्गम क्षेत्र पिंलग जिला चमोली में 1977 में जन्मे डॉ उमेश चंद्र पंत परस्थितिवश बाल्यकाल से ही अपने बिगड़ते स्वास्थ व अंचल के ग्रामीण क्षेत्र में इलाज व रोजगार की समुचित व्यवस्था न होने के कारण अपने अंचल से पलायन कर दिल्ली एनसीआर में अपना डेरा जमाने को मजबूर हुए थे। इस पीड़ित व अभावग्रस्त शख्स द्वारा खुद के प्रयासों व प्रयोगों से अपने स्वास्थ को बेहतर बनाने का कारनामा कर व उक्त प्रयोगों से अर्जित ज्ञान व लाभ को जनमानस के उत्तम स्वास्थ हेतु जो राह दिखाने व जागरुक करने का कार्य निरंतर साइकल यात्रा के माध्यम से निःस्वार्थ भाव किया जा रहा है, निः संकोच एक सराहनीय व परोपकारी कदम कहा जा सकता है।

21वीं सदी के इस दौर में खासकर कोविड-19 भयावह महामारी प्रकोप के बाद से आम जनमानस स्वास्थ्य के प्रति अधिक सतर्क और जागरूक रह कर जीवन जीना चाहता है। अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप करता देखा जा सकता है। स्वास्थ्य को कैसे ठीक-ठाक रखा जा सकता है? रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाई जा सकती है? इस उधेड़ बुन में प्रत्येक जन को चिंताग्रस्त भी देखा जा सकता है।

मानव स्वास्थ से जुड़ी उक्त चिंता को विराम देने का प्रेरणादाई उदाहरण प्रस्तुत किया है उत्तराखंड मूल के निवासी डॉ उमेश चंद्र पंत द्वारा जो वर्तमान में वसुंधरा, गाजियाबाद स्थिति मोहन मिकिन्स सोसाइटी में निवासरत हैं। परोपकार के तहत लाखों लोगों को स्वास्थ के प्रति 2015 से निरंतर जागरुक कर राह दिखा रहे हैं। परोपकार से जुड़ी उनकी इस निस्वार्थ भावना व मुहीम को एक अनुकरणीय व प्रेरणादाई कार्य स्वरूप देखा व परखा जा सकता है।

डॉ उमेश चंद्र पंत द्वारा समय-समय पर स्वास्थ से जुड़े कैंप और लोगों को जागरूक करने वाले मेलों के तहत महिला सशक्तिकरण, हर्बल उत्पादों एव पहाड़ी औषधियों के बावत लोगों को जागरूक करने, निःशुल्क चैरिटेबल औषधालय, वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष ओपीडी इत्यादि इत्यादि जैसे कार्य किए जाते रहे हैं।

बाल्यकाल से ही स्वयं डॉ उमेश चंद्र पंत का स्वास्थ ठीक नहीं रहता था। कमजोर शरीर के कारण बार-बार बीमार रहने का क्रम स्थाई रूप धारण करने लगा था। सामाजिक व आर्थिक पारिवारिक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। 16 वर्ष की उम्र में पिता के देहावसान के बाद भोजन व कपड़े इत्यादि के लिए तक संघर्ष करना पड़ा था। स्कूली पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए लिफाफे बनाने के साथ-साथ किताबे, अखबार, टाफी, बिस्किट, चाय इत्यादि बेचने के लिए दुकानों में काम किया था।

निरन्तर स्वास्थ खराब रहने, अंचल के गांवों में किसी भी प्रकार की सुख-सुविधा व रोजगार न होने व अभावग्रस्त जीवन को बेहतर बनाने व जन समाज के लिए कुछ अच्छा कर गुजरने की चाहत में डॉ उमेश चंद्र पंत अंचल से पलायन करने को मजबूर हुए थे। मां और पत्नी के द्वारा दिए गए हौसले व भरपूर सहयोग से वर्ष 2015 में दिल्ली एनसीआर में ‘माउंटेन पीपुल फाउंडेशन’ नामक संस्था का गठन ‘पहला सुख निरोगी काया’ मंत्र व उद्देश्य को समाज में आगे बढ़ाने हेतु किया गया था। उक्त मंत्र व उद्देश्य इस उत्तराखंडी परोपकारी के जीवन का अद्भुत और अनोखा प्रयोग बन जन को स्वास्थ के क्षेत्र में निरंतर जागरुक करता नजर आ रहा है।

गठित संस्था का उद्देश्य उक्त मंत्र को देश के कोने-कोने तक पहुंचाना मुख्य मकसद है। परोपकार के तहत रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए स्वयं के निजी अनुभवों व प्रयासों से प्रिवेन्टिभ एवं जागरूकता अभियान घर-घर, गांव-गांव तक पहुंचाने का काम गठित परोपकारी संस्था द्वारा प्रतिबद्ध होकर किया जाता रहा है। बच्चों, बुजुर्गो, महिलाओं के लिए अतिविशेष व महत्त्वपूर्ण स्वास्थ कार्यक्रम गठित संस्था के बैनर पर बनाए व आयोजित किए जाते रहे हैं।

उत्तम स्वास्थ व रोग प्रतिरोधक क्षमता को सदैव बनाए रखने के लिए डॉ उमेश चंद्र पंत द्वारा स्वयं के ऊपर कई प्रयोग किए गए। किए गए प्रयोगों पर स्वास्थ लाभ में वृद्धि होने पर उक्त पद्धति को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य आरम्भ किया। उनके द्वारा गठित संस्था होम्योपैथिक पद्धति के अंतर्गत स्वास्थ के क्षेत्र में समाज में एक अहम भूमिका निभाती नजर आ रही है। देश की पहली होम्योपैथिक कोविड-19 मुहिम गठित संस्था ‘रुक्मणी देवी होमियोपैथिक सेंटर’ द्वारा निरंतर चलायमान है। साथ ही डेंगू, स्वाइन फ्ल्यू, चिकनगुनिया, सिजनल फ्ल्यू, इंफुलेंजा में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा रहा कार्य स्वास्थ के क्षेत्र में एक विशेष पहल के रूप में देखा जा सकता है।

अब तक गठित यह संस्था डॉ उमेश चंद्र पंत के सानिध्य में 256 स्वास्थ्य जागरूकता शिविर आयोजित कर चुकी है। लगभग तीन लाख से अधिक लोगों को अपने होम्योपैथिक सेंटर द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए निशुल्क प्रिवेंटिव होमियोपैथी दवा वितरित कर चुकी है।

डॉ उमेश चंद्र पंत द्वारा वर्ष 2015 में ‘साइकिल चलाए, स्वस्थ रहें’ नामक मुहिम अपने दो बच्चों शक्ति पंत तथा उमंग पंत के साथ शुरू की गई थी। अब तक एक लाख से अधिक किलोमीटर तक वे साइकिल चलाने का कारनामा कर चुके हैं। प्रतिदिन औसतन तीस किलोमीटर की दूरी डॉक्टर पंत तय करते हैं। अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में साइकिल का प्रयोग करना उनकी आदतों में शुमार रहा है। उक्त क्रिया कलाप डॉक्टर पंत के उत्तम स्वास्थ का नजरिया पेश करता नजर आता है।

डॉ उमेश चंद्र पंत के अनुभवों के आधार पर इस भागम भाग भरे जीवन में जहां नगरों व महानगरों में तेज गति से लोगों की दिनचर्या चलायमान है, उसमें ठहराव लाने व उत्तम स्वास्थ प्राप्ति हेतु साइकिल एक अहम भूमिका निभाती है। स्वास्थ्य जागरूकता मुहिम की इस यात्रा के लिए स्वयं डॉक्टर पंत दिल्ली-एनसीआर के अलावा महीने में एक बार साइकिल से देश के दूसरे अन्य राज्यों की करीब दो सौ किलोमीटर तक की यात्रा पर निकल कर लोगों को उत्तम स्वास्थ प्राप्ति के लिए साइकिल यात्रा का महत्व बता, लोगों को स्वास्थ के प्रति जागरूक करते रहे हैं।

डॉक्टर पंत के अनुसार यदि व्यक्ति तीस किलोमीटर के दायरे में दफ्तर या किसी भी कामकाज के लिए साइकिल से निरंतर आवत-जावत करता है तो वह व्यक्ति विशेष हार्ट, लीवर, किड्नी, जोड़ों के दर्द, दमा, स्ट्रैस आदि बीमारी को कोशों दूर छोड़ सकता है। थोड़ी सी दूरी के लिए बाइक, स्कूटी या कार से यात्रा करना उस व्यक्ति के स्वयं के लिए तनाव और अवसाद उत्पन्न करता है।

अवलोकन कर ज्ञात होता है, साइकिल सदा लोगों के आस-पास ही रही है, बदला है तो सिर्फ उसका ढांचा। वर्तमान में साइकिल जिम का एक अहम हिस्सा है। योगशाला में साइकिल क्रिया अवश्य करवाई जाती है। खेल जगत से जुड़े खिलाड़ी और प्रशिक्षक साइकिल क्रिया जरूर करते हैं। साइकिल हमारे जीवन में किसी न किसी रूप में सदा बनी रही है। डॉक्टर पंत के मतानुसार साइकिल को उत्तम स्वास्थ की ‘जीवन औषधि’ मानना अतिशयोक्ति नहीं होगा।

डॉक्टर पंत का मानना रहा है, सड़कों पर साइकिल चलेगी तो सिस्टम भी सतर्क होगा। सड़कों पर साइकिल दुर्घटना भी होती है, इस दोष का पिटारा सीधे सिस्टम या सरकारी तंत्र पर फोड़ना ठीक नहीं लगता है। सड़क पर साइकिल सवार का वाहन सवार सम्मान करते देखे जा सकते हैं।

‘माउंटेन पीपुल फाउंडेशन’ के बैनर तले स्वास्थ्य के क्षेत्र में 2015 से प्रति वर्ष डॉ उमेश चंद्र पंत एवं संस्था अध्यक्षा सरोज पंत गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर साइकिल अभियान का आयोजन जनजागरण हेतु आयोजित करते रहे हैं। इस वर्ष 75वे गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर उक्त गठित संस्था के बैनर तले ‘स्वस्थ एवं रोगमुक्त भारत’ के लिए गठित संस्था से जुड़े बच्चों, उनके अभिभावकों के साथ-साथ अन्य स्थानीय लोगों द्वारा बड़ी संख्या में बढ़चढ़ कर जोश एवं उत्साह के साथ साइकिल यात्रा का भव्य आयोजन कर उसमें भाग लिया था, अन्य क्षेत्र के लोगों को जागरुक किया था।

डॉ उमेश चंद्र पंत द्वारा अपने स्वयं के अस्वस्थ जीवन को स्वस्थ व बेहतर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयोग कर जो ज्ञान अर्जित किया गया, उक्त अर्जित ज्ञान का लाभ परोपकार के तहत जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा भी उनके द्वारा उठाया गया है। स्वास्थ के प्रति निरंतर लोगों को जागरुक करने का काम उनके द्वारा किया जा रहा है। इस परोपकारी कार्य से डॉक्टर पंत को अपार आनंद और उत्साह की अनुभूति होती होगी समझा जा सकता है। उक्त सब कर्म-धर्म व कथ्य-तथ्य को निष्कर्ष स्वरूप ’स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं।’ ’परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नहीं’ के तहत आंका जा सकता है।

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राष्ट्रपति पदक से सम्मानित उत्तराखंड के चार जांबाज शूरवीरों का भव्य नागरिक अभिनंदन समारोह संपन्न https://hillmail.in/grand-civil-felicitation-ceremony-of-four-brave-warriors-of-uttarakhand-awarded-presidents-medal-concluded/ https://hillmail.in/grand-civil-felicitation-ceremony-of-four-brave-warriors-of-uttarakhand-awarded-presidents-medal-concluded/#comments Thu, 08 Feb 2024 08:16:10 +0000 https://hillmail.in/?p=48091 सी एम पपनै

उत्कृष्ट सेवा के लिए गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति पदक से सम्मानित हुए उत्तराखंड के चार जांबाज शूरवीरों ललित मोहन नेगी एसीपी स्पेशल ब्रांच दिल्ली पुलिस, धर्मेंद्र सिंह रावत कमांडेंट होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस एनसीटी दिल्ली, जगदीश प्रसाद मैठाणी ग्रुप कमांडर एनएसजी तथा जयेंद्र असवाल सहायक केंद्रीय इंटेलीजेंस अधिकारी भारत सरकार का उत्तराखंड की दिल्ली एनसीआर में गठित प्रवासी सामाजिक, सांस्कृतिक व बौद्धिक संस्थाओ द्वारा 7 फरवरी को भव्य नागरिक अभिनन्दन समारोह का आयोजन गढ़वाल हितैषिणी सभा के तत्वाधान में गढवाल भवन झंडेवालान में आयोजित किया गया।

आयोजित भव्य नागरिक अभिनन्दन समारोह का श्रीगणेश गढ़वाल हितैषिणी सभा अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट के सानिध्य में सम्मानित उपस्थित जाबांजो तथा उत्तराखंड अंचल की अन्य अनेकों प्रवासी संस्था पदाधिकारियों व प्रबुद्घ जनों के कर कमलों दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।

गढ़वाल हितैषिणी सभा महासचिव मंगल सिंह नेगी द्वारा उत्कृष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित जांबाज शूरवीर ललित मोहन नेगी, धर्मेंद्र सिंह रावत के साथ-साथ अनुपस्थित जयेंद्र असवाल के पिता जगत सिंह असवाल को मंच पर आमंत्रित कर उक्त जनों के परिचय के साथ मंचासीन किया गया। जगदीश प्रसाद मैठाणी ग्रुप कमांडर एनएसजी की अनुपस्थिति के बावत अवगत करा कर उत्तराखंड के उक्त जाबांजों द्वारा देश की सुरक्षा हेतु दिए गए उत्कृष्ट योगदान के बावत तथा गढ़वाल हितैषिणी सभा द्वारा विगत सौ वर्षो में किए गए क्रिया कलापो, संस्था उद्देश्यों व मिली सफ़लता के बावत अवगत कराया गया।

मंचासीन जाबांजो का गढ़वाल हितैषिणी सभा पदाधिकारियों में प्रमुख अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट, उपाध्यक्ष जय सिंह राणा, महासचिव मंगल सिंह नेगी, सचिव दीपक द्विवेदी, कोषाध्यक्ष गुलाब सिंह जायडा, उप कोषाध्यक्ष अनिल पंत, संगठन सचिव मुरारी लाल खंडूरी, खेल सचिव भगवान सिंह नेगी इत्यादि इत्यादि सहित खचाखच भरे सभागार में उपस्थित दर्जनों प्रवासी संस्थाओ व संगठन पदाधिकारियों तथा प्रबुद्ध जनों द्वारा मंचासीन जाबांज शूरवीरों का शाल ओढ़ा कर, पुष्पगुच्छ भेंट कर तथा मालाएं पहना कर हर्षोल्लास व तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य सम्मानित किया गया।

आयोजित नागरिक अभिनन्दन सामारोह में गढ़वाल हितैषिणी सभा अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी, भाजपा प्रदेश सचिव विनोद बछेती, अधिवक्ता संजय दरमोडा तथा शिक्षाविद मनवर सिंह रावत द्वारा मंचासीन सम्मानित जांबाजों की वीरता व कार्य कुशलता पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर व्यक्त किया गया, सम्पूर्ण देश का जनमानस उत्तराखंड के जाबांज शूरवीरों के साहस पूर्ण हौसलो, निडरता व राष्ट्र की सुरक्षा हेतु दिखाए गए अद्भुत वीरता व कार्य कुशलता से रोमांचित हैं, गौरवान्वित हैं।

उक्त वक्ताओं द्वारा अवगत कराया गया, जांबाज शूरवीर ललित मोहन नेगी को उनके दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के सेवाकाल में यह पांचवा उत्कृष्ट राष्ट्रीय सेवा मैडल मिला है। अभी तक उन्होंने आतंकवादी संगठनों का सफाया करने के लिए 36 इनकाउंटर कर अपनी वीरता, निडरता व साहस का परिचय देकर अपने नाम के साथ-साथ उत्तराखंड का नाम सम्पूर्ण देश में रोशन किया है।

वक्ताओं द्वारा अवगत कराया गया, ललित मोहन नेगी द्वारा अंचल के कई स्कूल गोद लिए हैं। स्वास्थ के क्षेत्र में कार्य कर गरीबों व जरुरत मंदो की निरंतर मदद करते रहे हैं। उत्तराखंड की गठित प्रवासी संस्थाओं, संगठनों व प्रवासी समाज के लोगों के सुख दुःख में अपना भरपूर योगदान देते आ रहे हैं, मददगार बने रहते हैं। निष्ठापूर्ण क्रिया कलापों के बल जनमानस को प्रेरित कर उत्तराखंड का गौरव बढ़ाते नजर आते हैं।

वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, मंचासीन सम्मानित सभी जाबांज शूरवीरों की वीरता व कार्यशैली से आज के युवाओ को प्रेरणा प्राप्त हुई है, अंचल व देश के लिए कुछ कर गुजरने की राह मिली है।

आयोजित नागरिक अभिनंदन समारोह में उपस्थित प्रवासी संस्थाओ व संगठनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित शूरवीर धर्मेन्द्र सिंह रावत द्वारा आयोजक संस्था का आभार व्यक्त करते हुए कहा गया, पूर्व में उनका सेवा कार्यकाल बीएसएफ में रहा। उनके समस्त कार्य दल का कार्य सम्पूर्ण विश्व के लिए हितैषी होता है। उनके कार्यदल से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी आशा व चाहत के कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य करता है।

धर्मेन्द्र सिंह रावत द्वारा कहा गया, वे सदा बिना अपेक्षा के कार्य करते आ रहे हैं। उन्हें ‘नीव की ईट’ पुस्तक पढ कर प्रेरणा मिली कि किस प्रकार निर्माणाधीन इमारत के निर्माण कार्य में नीव की ईट का सबसे बड़ा योगदान होता है। उत्कृष्ट सेवा के लिए जो राष्ट्रपति पदक कर्तव्यनिष्ठ सेवा के लिए मिला है इसका श्रेय उस ‘नीव की ईट’ पुस्तक को पढ़ कर मिली प्रेरणा को जाता है।

राष्ट्रपति पदक से सम्मानित जयेंद्र असवाल के पिता जगत सिंह असवाल द्वारा कहा गया, उनके पुत्र ने उत्तराखंड सहित देश का गौरव बढ़ाया है। कम उम्र में पुत्र को सम्मान मिला, हर्ष हुआ।

उत्तराखंड के साथ-साथ देश के गौरव एसीपी स्पेशल सेल दिल्ली पुलिस ललित मोहन नेगी द्वारा कहा गया, वे अभिभूत हैं आज अपने समाज के लोगों द्वारा नागरिक अभिनंदन सम्मान पाकर व 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक प्राप्त कर। अवगत कराया गया, विशिष्ट कार्यों के निष्पादन के बल आगामी 16 फ़रवरी को एक और राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त होना है।

सम्मानित ललित मोहन नेगी द्वारा अवगत कराया गया, वर्ष 1989 में वे सब इंस्पेक्टर स्पेशल आपरेशन सेल दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए थे। जांबाज इंस्पेक्टर स्व.मोहन चन्द्र शर्मा के क्लास मैट रहे हैं। खूब मेहनत की, तरह-तरह के कार्यों व वारदातों के बावत जाना। बसंत कुंज, साउथ एक्स, आर के पुरम, पटियाला हाउस कोर्ट, कापस हेडा, धोलाकुआ इत्यादि इत्यादि जगहों पर कार्य किया। निष्ठा पूर्वक निभाए गए कार्यों के बल उक्त सेल जो बाद के वर्षो में स्पेशल सेल बना, उक्त सेल में कार्यरत रह बड़े-बड़े राष्ट्र विरोधी गिराेह, कुकर्मी व पाकिस्तानी आतंकी पकड़े।

ललित मोहन नेगी द्वारा अवगत कराया गया एयर पोर्ट पर पाकिस्तानी आतंकी पकड़े, संसद हमले पर हमारी टीम सबसे पहले आतंकवादियों का सफाया करने के लिए अंदर घुसी थी। सुबह से रात भर गेट नंबर पांच व बारह पर आपरेशन चलाया था। तब कुछ गलतिया भी हुईं थीं। दो संदिग्ध भी पकड़े थे। गैंगस्टर दाऊद गैंग पर कार्य किया। जामा मस्जिद में इंडियन मुजाहिदीन ने हमारे मुल्क के लोगों को ही हथियार बना विस्फोट करवाए। 2008 में बाटला कांड हुआ, जिसमें इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा आतंकियों की गोली की जद में आकर शहीद हुए थे।

अवगत कराया गया, उनका काम देश की विभिन्न एजेंसियों से मिलकर काम करना होता है, चेहरा उनका होता है। आतंकी गिरोह बहुत चालाक होते हैं, तरह-तरह से विभिन्न प्रकार की करतूतें करते हैं। 2011 से 2018 के बीच हमारे सेल व एजेंसीज ने मिलकर इंडियन मुजाहिदीन को समाप्त किया। तकनीकी रूप से इनकाउंटर किए। अंडरवर्ड को मारा। हमारी एजेंसियां रीड की हड्डी का काम करती हैं। अन्य फोर्स अलग तरह से काम करती हैं। हमने कभी भी लक्ष्मण रेखा को क्रास नहीं किया। अवगत कराया गया, जम्मू कश्मीर व बांग्लादेश में अलग किस्म के अपराध हैं। हमारे कार्य को सदा वरिष्ठ अधिकारियों व संबंधित मंत्रालयों द्वारा सराहा जाता रहा है।

ललित मोहन नेगी द्वारा अवगत कराया गया, वे उत्तराखंड अंचल के कोलागाड़ के रहने वाले हैं। 2007 में उन्हें पहला राष्ट्रीय विशिष्ट सम्मान सराहनीय सेवा व विशिष्ट सेवा के लिए प्रदान किया गया था। जिनकी संख्या अब उत्कृष्ट सम्मान सहित पांच हो गई है। जब भी अवार्ड मिला हमारे समाज ने प्रेरित किया अच्छे काम के लिए। जाबांज शूरवीर ललित मोहन नेगी ने अवगत कराया, उनके पुलिस स्पेशल सेल में अंचल के बहुत लोग हैं, इसलिए कि वे निष्ठापूर्वक काम करना जानते हैं, दिया गया काम बखुबी निभाते हैं।

नागरिक सम्मान आयोजक संस्था गढ़वाल हितैषिणी सभा व सभागार में उपस्थित सभी प्रवासी जनों के प्रति आभार प्रकट कर ललित मोहन नेगी द्वारा वीरता व निडरता से परिपूर्ण तथा प्रेरणा युक्त संस्मरणों पर विराम लगा वक्तव्य समाप्त किया गया।

जांबाज शूरवीरों के सम्मान में आयोजित नागरिक अभिनंदन समारोह का मंच संचालन गढ़वाल हितैषिणी सभा महासचिव मंगल सिंह नेगी व सचिव दीपक द्विवेदी द्वारा व समापन संस्था वरिष्ठ सदस्य लखीराम डबराल द्वारा सभी सम्मान प्राप्त जांबाजों को बधाई देकर व सभागार में उपस्थित सभी जनों का आभार व्यक्त कर किया गया।

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बर्फ ही हिमालय व मां गंगा का श्रृंगार है आभूषण है… https://hillmail.in/snow-is-the-adornment-of-the-himalayas-and-mother-ganga-it-is-the-jewellery/ https://hillmail.in/snow-is-the-adornment-of-the-himalayas-and-mother-ganga-it-is-the-jewellery/#respond Thu, 01 Feb 2024 18:23:23 +0000 https://hillmail.in/?p=48023 हिमालयी राज्यों में अभी हाल में हुई भारी बर्फबारी हिमालय के पर्यावरण के लिए, हिमालय के सौंदर्य के लिए वरदान है। बर्फ ही हिमालय का सौंदर्य है और आभूषण भी है।

बर्फ पर्यावरण के लिए, हिमालय के लिए, हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों, नदियों, झरनों, तालाबों, प्राकृतिक जलस्रोतों, जल, जंगलों, जड़ी, बूटियों, फल, फूलों, बुगयालों और यहां की फसलों के लिए वरदान है।

हिमालयी राज्यों खासकर बर्फवारी वाले इलाकों में लोग आदि अनादि काल से जीवन यापन कर रहे हैं, इन इलाकों में रहने वाले लोग जानते हैं कि बर्फवारी के दौरान जीवन यापन कैसे करना है… इन लोगों ने मौसम के हिसाब से इन स्थानों में जीवन गुजर बसर करने की तकनीक ईजाद कर रखी है।

6 महीनों तक भारी बर्फवारी के दौरान माइनस डिग्री को झेलने व बर्फीली हवाओं को मात देने के लिए घरों का निर्माण भी उसी के अनुरूप निर्माण की तकनीकी ईजाद कर रखी है… स्वयं के लिए राशन, खाने पीने, दवा दारू व मवेशियों के लिए चारे पत्ती की माकूल व्यवस्था की हुई रहती है। इतना जरूर है कि उनका आवागमन भले ही बंद हो जाता है लेकिन इसके लिए वे तैयार रहते हैं।

दरअसल पिछले डेढ़ दशक से समूचे विश्व का ऋतुचक्र डगमगा गया है। हिमालयी राज्यों में बर्फवारी जनवरी के बाद शुरू हो रही है जो मार्च तक होती है और यही बर्फबारी हिमालय और उसके पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रही है।

हिमालय में तेज़ी से बर्फ पिघलने का दौर जारी है, यहां विधमान ग्लेशियर तेज़ी के साथ पिघल रहे हैं। जिनमें मां गंगा का उद्गम श्रोत गौमुख यानी गंगोत्री ग्लेशियर सबसे तेजी के साथ पिघल रहा है।

समूचे हिमालय में जगह जगह धरती निकल आयी है, दरअसल वर्षभर हिमाच्छादित रहने वाले हिमालय में बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है, जिसके चलते समूचे हिमालय में जगह जगह जमीन दिखायी देने लग गई है, जनवरी में सूर्य मकर रेखा पर आने से मौसम में गर्माहट आ जाती है उसके बाद फरवरी से लेकर मार्च तक कि बर्फवारी हिमालय के लिए घातक साबित होती है, इस दौरान की बर्फवारी पहले से ही हिमालय में मौजूद बर्फ के लिए घातक होती है। इस दौरान की बर्फवारी पहले से मौजूद बर्फ को भी तेज़ी से पिघलने पिघलाने में सहायक बनती है। हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों के लिए भी जनवरी से लेकर मार्च की बर्फवारी अभिशाप बनकर आती है।

नवम्बर से लेकर दिसंबर की बर्फवारी हिमालय में विद्यमान बर्फ व ग्लेशियरों के लिए कवच का काम करती है। अक्टूबर से लेकर जनवरी तक की ही बर्फवारी से समूचे हिमालय व उसके ग्लेशियरों पर बर्फ की परतें चढ़ाती हैं।

अक्टूबर से लेकर जनवरी मध्य तक की बर्फवारी से ही ग्लेशियरों में एक के बाद एक परत बिछती जाती है, बर्फ की इन्हीं परत दर परतों से ही ग्लेशियरों का निर्माण होता है, और इन्हीं बर्फ की 2 से लेकर 12 फ़ीट मोटाई तक कि मोटी मोटी परतें हिमालय और उसके ग्लेशियरों को मई जून से लेकर सितम्बर तक सुरक्षित रखती हैं।

पिछले डेढ़ दशक से नंबर दिसंबर में बर्फवारी न होने के चलते हिमालय में विद्यमान बर्फ पिघलती रही और परिणाम ये हुआ कि हिमालय जगह जगह बर्फ से वीरान हो गया। वर्षभर बर्फ की चादर से ढके हिमालय में जगह जगह धरती निकल आई है जो आसमान झांकने लगी है।

समूचे हिमालय में बर्फ की ये मजबूत और मोटी मोटी चादरें फट ही नहीं रही हैं बल्कि उधड़ रहीं हैं। आपको बताते चलें कि फटने का इलाज तो प्रकृति के पास भी है और मानव के पास भी… लेकन उधड़ने का इलाज न प्रकृति के पास है न मानव के पास।

लोकेन्द्र सिंह बिष्ट

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उत्तरैणी-मकरैणी पर्व से दिल्ली एनसीआर में गठित उत्तराखंड की प्रवासी संस्थाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ https://hillmail.in/inauguration-of-cultural-programs-by-the-migrant-organizations-of-uttarakhand-formed-in-delhi-ncr-from-uttaraini-makaraini-festival/ https://hillmail.in/inauguration-of-cultural-programs-by-the-migrant-organizations-of-uttarakhand-formed-in-delhi-ncr-from-uttaraini-makaraini-festival/#comments Tue, 16 Jan 2024 06:08:43 +0000 https://hillmail.in/?p=47772 सी एम पपनैं

नववर्ष 2024 के शुभारम्भ में ही जौनसार बावर जनजातीय कल्याण समिति द्वारा 7 जनवरी को कमला नेहरू नगर, गाजियाबाद स्थित एनडीआरएफ के विशाल प्रांगण में पौष त्योहार के अवसर पर जौनसार बावर की पारम्परिक लोकसंस्कृति से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमां का भव्य आयोजन किया गया था। इसी कड़ी को प्रधानता देते हुए कुमाऊं व गढ़वाल अंचल की सैकड़ों सांस्कृतिक व समाजिक सरोकारों से जुड़ी रहीं संस्थाओं द्वारा दिल्ली एनसीआर के लगभग प्रवासी बहुल इलाकों में 12 जनवरी से 15 जनवरी तक उत्तरैणी-मकरैणी त्योहार के सु-अवसर पर प्रभावशाली सांस्कृतिक आयोजनों के साथ-साथ, झांकियों, नंदा यात्रा तथा कवि सम्मेलनां का आयोजन बड़े स्तर पर किया गया।

उत्तरैणी-मकरैणी त्योहार के सु-अवसर पर प्रभावशाली सांस्कृतिक आयोजन करने वाली संस्थाआें में शुमार रही उत्तराखंड भ्रातृ संगठन वसुंधरा, गाजियाबाद, उत्तराखंड एकता मंच तिमारपुर, उत्तरांचल भ्रातृ समिति शालीमार गार्डन, उत्तराखंड जन सेवा समिति करावल नगर, कुमाऊं सांस्कृतिक कला मंच संत नगर, बुराड़ी, उत्तराखण्ड जन समूह कर्मपुरा, कुमाऊं मंडल सांस्कृतिक मंच बलजीत नगर, श्रीगुरुमणिकनाथ सर्वजन कल्याण सेवा संस्था सूरघाट वजीराबाद, पर्वतीय प्रवासी जन कल्याण परिषद इंदिरापुरम, कल्याणी सामाजिक संस्था संगम विहार, उत्तराखंड उत्तरायणी महोत्सव समिति द्वारका इत्यादि इत्यादि का नाम विशेष तौर पर लिया जा सकता है।

दिल्ली सरकार द्वारा 2019 में गठित गढ़वाली, कुमाऊनी एवं जौनसारी अकादमी दिल्ली द्धारा अकादमी वर्तमान उपाध्यक्ष कुलदीप भंडारी व अकादमी सचिव संजय कुमार गर्ग के सौजन्य से उत्तरैणी-मकरैणी के पावन पर्व पर सांस्कृतिक व कवि सम्मेलन का यादगार आयोजन पटपड़ गंज स्थित डीडीए पार्क रास विहार में खचाखच भरे हजारों दर्शकों के मध्य आयोजित किया गया।

अकादमी द्वारा आयोजित व समृद्ध भारत ट्रस्ट द्वारा निवेदित उत्तराखंडी बोली-भाषा कवि सम्मेलन में प्रतिभाग करने वाले कुमांऊ, गढ़वाल एवं जौनसार के प्रमुख कवियों व कवित्रियों में रमेश हितैषी, जयपाल सिंह रावत ’छीपड़ दा’, पूनम तोमर, हेमंत बिष्ट, गिरीश सुंदरियाल, प्रोफेसर प्रभा पंत, रोशन लाल, पूरन चंद्र कांडपाल, उपासना सेमवाल, खजान दत्त शर्मा, डा.जीतराम भट्ट व गिरीश चंद्र बिष्ट ’हंसमुख’ मुख्य रहे।

श्रीगुरुमणिकनाथ सर्वजन कल्याण सेवा संस्था द्वारा सूरघाट वजीराबाद में आयोजित उत्तराखंडी बोली-भाषा के कवि सम्मेलन में जयपाल सिंह रावत, रघुवीर शर्मा, अंजली भंडारी, दिनेश ध्यानी, वीर सिंह राणा तथा अनूप नेगी ’खुदेड’ द्वारा कवि सम्मेलन में भाग लिया गया।

उक्त आयोजित दोनों कवि सम्मेलनो में अंचल के आमन्त्रित कवियों द्वारा स्वरचित प्रभावशाली अंदाज में काव्य पाठ किया गया। मुख्य रूप से कवियों द्वारा अंचल के तीज त्योहारों, प्रकृति से जुड़े पहलुओं, अंचल की महिलाओ के कष्ट व जनजीवन, अंचल में बने भू-कानून, देशप्रेम, शहीद स्मरण, उत्तराखंड की व्यथा, समसामयिक पृष्ठभूमि से जुडी रचनाओ को मुखर होकर प्रस्तुत किया गया। प्रस्तुत रचनाओं ने श्रोताआें को न सिर्फ भाव विभोर किया, खूब हसाया, गुदगुदाया तथा मंत्रमुग्ध व मनोरंजन कर श्रोताओं को तालियों की गड़गड़ाहट करने को मजबूर किया। श्रोताओं द्वारा मंचासीन कावियों द्वारा रचित रचनाआओं की प्रसंशा की गई व आयोजित कवि सम्मेलनों की सराहना की गई।

उत्तराखंड अंचल की उक्त सांस्कृतिक व समाजिक संस्थाओं तथा अकादमी द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलक देखने के लिए हज़ारों की संख्या में उत्तराखंड के प्रवासी परिवारों को बाल बच्चों सहित पूरे एनसीआर के अयोजित आयोजनों में उमड़ते हुए देखा गया।

आयोजित आयोजनों में प्रवासी सांस्कृतिक दलों द्वारा उत्तराखंड अंचल के प्रभावशाली लोकगायन को संगीत की कर्ण प्रिय धुनों व नृत्यों के साथ-साथ नंदा देवी यात्रा व कवि सम्मेलनो के माध्यम से अपार जनसमूह के मध्य मंचित किया गया। उक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमो में हजारों उत्साही श्रोताओं को मंत्रमुग्ध व मदहोश होकर नाचते-गाते हुए देखा गया।

उत्तराखंड के प्रवासी लोकगायकों व गायिकाओं में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण, भुवन रावत, नरेन्द्र सिंह नेगी, अनुराधा निराला, फौजी ललित मोहन जोशी, गिरीश पटवाल, उषा नेगी, मुकेश कठैत, मनोज आर्या, प्रकाश कहला, रमेश मोहन पांडे, हेमा ध्यानी, सुमित मनराल, नवीन रावत, प्रियंका तिवारी, विजय बिष्ट, शिबू रावत, दीवान महरा इत्यादि इत्यादि के विविधता से ओत-प्रोत लोकगायन ने श्रोताओं को प्रभावित किया।

नववर्ष के पहले पौष त्योहार व उत्तरैणी-मकरैणी के शुभ अवसर पर अंचल के प्रवासी बंधुआें द्वारा गठित सांस्कृतिक व जन सरोकारो से जुड़ी रही समाजिक संस्थाओं द्वारा पारंपरिक रूप से मनाए जाने वाले उक्त त्योहार व पर्व उत्तराखंड समाज की धार्मिक आस्था, विश्वास व समर्पण का प्रतीक माने जाते रहे हैं। एक तरह से उक्त त्यौहार हमारी ऋतुओं के साथ-साथ चेतना, प्रकृति और मनुष्य के बीच अंर्तसंबंधो, सामूहिकता में पिरोई सामाजिक संरचना की सामुहिक अभिव्यक्ति तथा नदियों के संरक्षण की चेतना के त्यौहार रहे हैं।

दिल्ली एनसीआर के उत्तराखंडी प्रवासी बहुल इलाकों में विगत अनेकों दशकों से छुटमुट रूप से आयोजित होने वाले पौष त्योहार तथा उत्तरैणी-मकरैणी सांस्कृतिक पर्व का रूप बदल कर आज विकराल रूप धारण कर चुका है। दर्जनों क्षेत्रों में अयोजित होने वाले इन महोत्सवों में हजारों प्रवासी परिवारों की भीड़ उमड़ती देखी जा सकती है। जिस भीड़ को देख अनुमान लगाया जा सकता है अपने अंचल की लोक कला व लोक संस्कृति के प्रति प्रवासी बंधुओं की अटूट आस्था व निष्ठा कितनी गहरी तह तक पैठ किए हुए है। प्रवास में भी प्रवासी बंधुओ का अपने अंचल के गीत-संगीत व नृत्य तथा लग रहे मेले में पहाड़ी जैविक उत्पादों के खानपान तथा वस्त्र व आभूषणों से कितना आत्मिक लगाव बना हुआ है।

दिल्ली एनसीआर मे उत्तराखंड के प्रवासियों द्वारा गठित दर्जनों संस्थाओं द्वारा बृहद तौर पर हर्षोल्लास व उमंग के साथ मनाए जाने वाले पौष त्योहार तथा उत्तरैणी-मकरैणी पर्व का सीधा संबंध उत्तराखंड की लोकसंस्कृति की समृद्धि से ताल्लुख रखती है। दिल्ली मे प्रवासरत उत्तराखंडियों का उक्त त्यौहार मनाने का उद्देश्य अपनी लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत रूप में देखा जाता रहा है।

उत्तराखंड अंचल की दिल्ली एनसीआर में प्रवासरत युवा पीढी को निष्ठा पूर्वक अपनी पारंपारिक लोक विधाओं, संस्कृति व बोली-भाषा को समृद्ध करने हेतु जागरूक रहना व ध्वज वाहक बन कर खड़ा रहना समय की मांग है। प्रवासी बंधुओं को जागरूक होकर समझना होगा, कोई भी समाज तब तक तरक्की नही कर सकता, जब तक वह अपने अंचल की मूल लोकसंस्कृति व बोली-भाषा को न जानता हो। दिल्ली में प्रवासरत उत्तराखंड के जनमानस खासकर युवाओं को कुमांऊनी, गढ़वाली एवं जौनसारी लोक संस्कृति व बोली-भाषा के संवर्धन के प्रति संवेदनशील होना अति आवश्यक है, तभी उत्तराखंड के प्रवासी बंधु अपनी पहचान को कायम रख पायेंगे, अपना हक हासिल कर पाएंगे।

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