कोई राष्ट्र, कोई राज्य या कोई घर भी तब तक प्रगति नहीं कर सकता, जब तक वह रोगमुक्त न हो। किसी भी शरीर को चलाने के लिए रक्त सबसे आवश्यक घटक है जो हमें ऑक्सीजन और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्रदान करता है।
हमारी प्रगति की कसौटी यह नहीं है कि हम उन लोगों की प्रचुरता में और वृद्धि कर पाते हैं जिनके पास बहुत कुछ है; बात यह है कि क्या हम उन लोगों को पर्याप्त मुहैया कराते हैं जिनके पास बहुत कम है।
इसे ध्यान में रखते हुए, मैं हममें से हर किसी को इस तथ्य से अवगत कराना चाहती हूं कि इलाज सबसे महत्वपूर्ण उपाय नहीं है, बल्कि बीमारी को रोकना महत्वपूर्ण है।
एनीमिया (खून की कमी)
एनीमिया संभवतः दुनिया भर में सबसे अधिक ज्ञात बीमारियों में से एक है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता शरीर की शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त होती है, जो उम्र, लिंग, ऊंचाई, धूम्रपान की आदतों और गर्भावस्था के दौरान भिन्न होती है।
उत्तराखंड के विभिन्न शहरों में इसकी व्यापकता अत्यधिक है, विशेष रूप से निम्न सामाजिक आर्थिक स्थिति वाले लोगो में और जहां गरीबों तक स्वास्थ्य सुविधाएं कम पहुंच रही हैं। उत्तराखंड की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी एनीमिया से पीड़ित है, खासकर जहां मलेरिया और अन्य वेक्टर जनित बीमारियों का प्रसार अधिक है। मलेरिया संक्रमण एरिथ्रोसाइट्स को नष्ट कर देता है, जिसके परिणामस्वरूप हीमोग्लोबिन (एचबी) का स्तर कम हो जाता है जिसे एनीमिया कहा जाता है।
क्या आप जानते हैं कि इस बीमारी के कई अलग-अलग प्रकार हैं, और सबसे आम प्रकार आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया है? हां, एनीमिया का सबसे आम पोषण संबंधी कारण आयरन की कमी है, हालांकि फोलेट, विटामिन बी12 और विटामिन ए की कमी भी महत्वपूर्ण कारण हैं।
हम एनीमिया को लेकर इतने चिंतित क्यों हैं?
आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया के मुख्य कारण
किसी भी बीमारी को रोकने के लिए हमें उसके मूल कारणों को समझने की ज़रूरत है। तो आइये जाने कि एनीमिया के मुख्य कारण क्या हैः
शिशुओं में जोखिम कारक
बच्चों में जोखिम कारक
बड़े लोगों में जोखिम कारक
एनीमिया के लिए रोगनिरोधी उपाय
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि यदि उपरोक्त उपायों को रोगनिरोधी तरीके से अपनाया जाए तो हम जल्द ही उत्तराखंड से एनीमिया को जड़ से खत्म करने में सफल होंगे।
डॉ. तानिया जी. सिंह
एम.डी (चिकित्सक); एम.एस (प्रसूति एवं स्त्री रोग);
एफ आई ए ओ जी; एसोसिएट सदस्य रॉयल कॉलेज, लंदन,
उच्च जोखिम गर्भावस्था विशेषज्ञ
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के शोध की अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसके साथ ही विवादित जमीन पर रामलला का अधिकार बताते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह एक न्यास बनाकर उसे वह जमीन सौंप दे। इसके बाद भारत सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और आज वही न्यास मंदिर का निर्माण कार्य कर रहा है।
5 अगस्त को हुआ मंदिर का शिलान्यास
उसके बाद 5 अगस्त 2020 को श्रीराम मंदिर का शिलान्यास किया गया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरसंघचालक मोहन भागवत, राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत 175 लोग इस पल के गवाह बने। इस अवसर पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि आज वह 500 साल के इंतजार के बाद आए इस मौके पर मौजूद रहे। प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा तैयार किए गए प्लान को हमें लागू करना है। यह मंदिर ना सिर्फ भगवान राम की महानता का प्रतीक होगा बल्कि यह भारत की महानता को भी दर्शाएगा। उसके बाद से श्रीराम मंदिर का काम जोर शोर से किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार मंदिर के कामकाज का जायजा ले रहे हैं।
अभी पिछले महीने ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निर्माण कार्यों का जायजा लेने के लिए अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण स्थल का दौरा किया था। मुख्यमंत्री ने अयोध्या राम मंदिर के विकास कार्यों की देखरेख करने वाली एजेंसी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अधिकारियों से भी मुलाकात की थी। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या राम मंदिर निर्माण कार्य की प्रगति का निरीक्षण किया और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से श्रीराम मंदिर के निर्माण की प्रगति के बारे में जानकारी हासिल की। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ चल रहे काम पर भी चर्चा की।
निर्माण कार्य को बारीकी से देखा
मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर के कामकाज को देखने के लिए यहां पहुंचे थे। योगी आदित्यनाथ सबसे पहले रामलला की पूजा अर्चना की और उसके बाद अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य देखने पहुंचे। राम मंदिर के निर्माण में लगे अधिकारियों ने उन्हें मंदिर निर्माण कार्य की एक-एक बारीकी से रुबरू कराया। इस दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी बड़े ध्यान से पूरे काम को देखा। बताया गया कि मुख्यमंत्री ने करीब 45 मिनट तक अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। समीक्षा बैठक में अयोध्या के अधिकारियों के साथ सांसद और नगर निगम के महापौर उपस्थित रहे। मुख्यमंत्री ने अयोध्या में दीपोत्सव से पहले राम नगरी की बेहतर साफ-सफाई का निर्देश दिया है। साथ ही तय समयसीमा के भीतर विकास कार्य पूरा करने के निर्देश दिए।
महंत की समाधि पर पुष्पांजलि की अर्पित
अपने अयोध्या दौरे के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महंत रामचंद्र दास परमहंस की समाधि पर पहुंचकर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। दरअसल मुख्यमंत्री का दिगंबर अखाड़ा से गहरा जुड़ाव है। आपको बता दें कि गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का यहां से जुड़ाव रहा है। मुख्यमंत्री के गुरु महंत अवैद्यनाथ और रामचंद्र दास परमहंस की काफी घनिष्ठता थी। योगी आदित्यनाथ भी अपनी पीढ़ी की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। दिगंबर अखाड़ा राम मंदिर आंदोलन का प्रधान केंद्र भी रहा है।
दिगंबर अखाड़ा से खास जुड़ाव
राम मंदिर आंदोलन की पहली बैठक इसी अखाड़े में हुई थी। उसमें राम मंदिर निर्माण के लिए एक समिति का भी गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ बनाए गए थे, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु थे। वर्ष 1989 में महंत रामचंद्र दास परमहंस को रामजन्म भूमि न्यास का पहला अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद मंदिर आंदोलन को नई दिशा मिली थी।
श्रद्धालुओं का इंतजार जल्द होगा खत्म
अब राम मंदिर के प्रथम तल का कार्य पूरा हो गया है। जनवरी महीने में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। ऐसे में अब रामलला के भव्य मंदिर में विराजमान होने के बाद उनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भ्रमण के दौरान उन्हें इन सभी विषयों से जुड़ी जानकारी दी गई।
अगले साल यानि 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं इन चुनावों में अब एक साल से भी कम का समय बचा है ऐसे में अब यह माना जा रहा है कि इस चुनाव में श्रीराम मंदिर एक बड़ा मुद्दा होगा। बीजेपी जहां इस मंदिर को अपनी उपलब्धि के तौर में गिनाएगी वहीं कांग्रेस और अन्य दल भी इसमें राजनीति करने से पीछे नहीं हटेंगे। इसलिए यह माना जा रहा है कि इन चुनावों में श्रीराम मंदिर का मुद्दा सभी पार्टियों के बीच छाया रहेगा।
]]>मानव समूहों के लिये कभी सुरक्षित समझी जाने वाली हिमालय की गोद दिन प्रतिदिन बढ़ती दैवीय आपदाओं के कारण असुरक्षित होती जा रही है। पहाड़ी क्षेत्रों में भयंकर भूकंप, भूस्खलन की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त प्रदेश पर बाढ़, जंगल की आग, ओलावृष्टि, आकाशीय बिजली, सड़क दुर्घटना आदि आपदाओं का खतरा मंडराता रहता है। इन आपदाओं से मानव जीवन, बुनियादी ढांचे, संपत्ति और अन्य संसाधनों को भारी नुकसान पहुंचता है। मानसून तो पहाड़ी राज्यों के लिये दैवीय आपदा का पर्याय बनता जा रहा है।
इस साल के मानसून सीजन में जहां झारखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में बारिश सामान्य से काफी कम हुयी और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गयी वहीं हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में मानसून ने कहर बरपा दिया। भारतीय मौसम विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के 28 प्रदेशों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों में 1 जून से लेकर 7 सितम्बर तक केवल 43 प्रतिशत सामान्य वर्षा हुई तो 40 प्रतिशत सामान्य से कम वर्षा हुई। देश के 23 जिलों में अत्यंत भारी, 88 में सामान्य से अधिक भारी, 304 जिलों में सामान्य, 284 जिलों में सामान्य से कम, 15 जिलों में सामान्य से बहुत कम तथा 3 जिलों में कोई बारिश नहीं हुई। जबकि उत्तराखंड के 1 जिले में अत्यन्त भारी, 5 में सामान्य से कहीं अधिक और 2 जिलों में सामान्य बारिश हुई।
पांच जिलों में सामान्य से कम वर्षा
हालांकि प्रदेश के 5 जिलों में सामान्य से कम वर्षा भी दर्ज हुई। अवर्षण भी एक आपदा ही है। एक तरफ असामान्य बारिश और दूसरी तरफ भूस्खलन जैसी आपदायें सहोदर राज्य हिमाचल और उत्तराखंड के लिए बहुत गंभीर खतरे के सबब बने हुये हैं। आपदाओं की बढ़ती आवृति को देखते हुए यह कहना असंगत न होगा कि अपनी मुसीबत के लिए इंसान स्वयं ही ज्यादा जिम्मेदार है। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ बेतहासा छेड़छाड़ से भी आपदाएं बढ़ रही है।
हिमाचल में हुए विनाश के पीछे चौड़ी सड़कों के लिए पहाड़ों को बेतहासा कटान माना जा रहा है। लेकिन ऑल वेदर रोड के नाम पर उत्तराखंड में जिस तरह पहाड़ों का कत्लेआम कर आपदाओं को दावत दी गयी उस पर मुख्यधारा का मीडिया भी पर्दा डालता रहा। सन् 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद फरवरी 2021 में हिमालय के अंदर धौली गंगा की बाढ़ से हमने सबक नहीं सीखा है। धंसते हुए जोशीमठ की ओर हम 1975 से आंखें मूंदे हुए थे।
उत्तराखंड विधानसभा के 5 से 8 सितम्बर तक चले सत्र के दौरान मुख्यमंत्री की ओर से एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि अब तक मानसूनी आपदा से प्रदेश के कुल 45,650 परिवार प्रभावित हुए हैं जिनको 3039.72 करोड़ की मुआवजा राशि वितरित की गई है। सरकार ने इस साल के मानसून सीजन में अब तक दैवीय आपदा से 1,335 करोड़ रुपए की क्षति का आंकलन किया है। इसमें से 1000 करोड़ की प्रतिपूर्ति के लिए केन्द्र सरकार से अनुरोध किया गया है।
कृषि मंत्री के अनुसार इस बार अब तक प्रदेश में 834.7371 हेक्टेअर कृषिभूमि पर फसलों को नुकसान पहुंचा तथा 7,136 काश्तकार प्रभावित हुए जिन्हें मुआवजा बांटा गया। वित्तमंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल के अनुसार इनके अलावा हरिद्वार जिले में अतिवृष्टि से 24,626 काश्तकार प्रभावित हुए जिन्हें 15.7 करोड़ का मुआवजा मिला।
एक रिपोर्ट के अनुसार दैवीय आपदा के कारण उत्तराखंड के प्रमुख विभाग में लोकनिर्माण विभाग को 364.24 करोड़, गन्ना विभाग को 464.49 करोड़, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना को 132.42 करोड़, सिंचाई विभाग को 76.42 करोड़, राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग को 52.85 करोड़, पंचायती राज विभाग को 44.49 करोड़, पारेषण निगम को 39.53 करोड़, शहरी विकास विभाग को 23.43 करोड़, वन विभाग को 20.41 करोड़, ग्राम्य विकास विभाग को 18.28 करोड़, कृषि विभाग को 13.91 करोड़, ऊर्जा निगम विभाग को 28.71 करोड़ और पेयजल विभाग को 10.96 करोड़ का नुकसान पहुंचा है।
अब तक 93 लोगों की मौत
राज्य आपातकालीन परिचालन केन्द्र द्वारा जारी नवीनतम् बुलेटिन के अनुसार इस साल 15 जून से लेकर 8 सितम्बर तक दैवीयय आपदाओं में कुल 93 लोग मृत घोषित किए गए जबकि 16 अन्य लापता है। नियमानुसार जब तक मृतक का शव नहीं मिलता तब तक उसे लापता ही माना जाता है और यह अवधि 7 साल की है। जाहिर है कि अब तक राज्य में भूस्खलन, मकान ढहने और त्वरित बाढ़ में लगभग 109 लोग जानें गंवा चुके हैं और 51 लोग घायल हुए हैं। अब तक सर्वाधिक 34 (21 घोषित मृत एवं 13 लापता) जनहानि रुद्रप्रयाग जिले में तथा उसके बाद पौड़ी जिले (9 मौतें घोषित तथा 3 मलबे में लापता) में हुई हैं। राज्य के 13 में से कोई ऐसा जिला नहीं जहां आपदाओं से मौतें न हुई हों। चारधाम यात्रा के दौरान इस साल अब तक 197 यात्री स्वर्गीय हो चुके हैं। दैवीय आपदाओं और चारधाम यात्रियों के अलावा इस साल अब तक 67 लोग सड़क दुर्घटनाओं में भी मारे गए और 192 घायल हुए हैं।
अगर केवल इस साल की मानसून अवधि की आपदाओं पर ही गौर करें तो राज्य में 118 बड़े पशु तथा 486 छोटे पशु मर चुके हैं। इनमें 7,200 मुर्गियों का नुकसान अलग से है। इसी तरह इस मानसून में 1,754 मकान आंशिक रूप से, 184 बुरी तरह और 58 मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। रुद्रप्रयाग के अलावा प्रदेश का कोई ऐसा जिला नहीं जहां बरसात में मकान पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त न हुए हों। पिछले साल इसी अवधि में मानसूनी आपदा में 44 लोग मारे गए थे, 8 लापता थे और 40 घायल हुए थे।
400 से अधिक गांव संवेदनशील
बाढ, भूकम्प, भूस्खलन, हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक घटनाएं युगों-युगों से होती रही हैं। लेकिन अब इनकी आवृति बढ़ती जा रही है। इनसे बचाव का एक ही रास्ता है कि हम प्रकृति के साथ जीना सीखें। हालांकि इस साल प्रकृति का कहर उत्तराखंड की तुलना में हिमाचल पर अधिक बरसा है लेकिन देखा जाय तो उत्तराखंड की स्थिति कहीं ज्यादा संवेदनशील है। मसूरी और नैनीताल सहित उत्तराखंड का कोई पहाड़ी नगर ऐसा नहीं जो कि भूस्खलन जैसी आपदाओं से सुरक्षित हो। राज्य के 400 से अधिक गांव पहले ही संवेदनशील घोषित किये जा चुके हैं।
इसरो और रिमोट सेंसिंग के नवीनतम भूस्खलन संवेदनशीलता एटलस पर गौर करें तो उत्तराखंड की स्थिति बेहद चिन्ताजनक है। भूस्खलन की दृष्टि से देश के सर्वाधिक संवेदनशील जिलों में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और टिहरी जिले हैं, जिन्हें नम्बर एक और दो पर रखा गया है। जोशीमठ हमारे सामने शिमला से भी ज्वलंत उदाहरण बन कर सामने आ गया था। इसरो और रिमोट सेंसिंग ऐजेंसी द्वारा इसी साल फरवरी में भूस्खलन की दृष्टि से भारत के जिन 147 जिलों का एटलस जारी किया है उनमें 108 जिले केवल हिमालयी राज्यों के हैं जिनमें सभी 13 जिले उत्तराखंड के तथा 12 में से 10 जिले हिमाचल प्रदेश के हैं।
प्रकृति की गंभीर चेतावनी
जोशीमठ भविष्य के लिए प्रकृति की गंभीर चेतावनी है। जोशीमठ जैसी ही बाकी पहाड़ी नगरों की कहानी है। आर्थिक गतिविधियों के कारण पर्यटन, तीर्थाटन के महत्व के छोटे से कस्बों में आस पास के गावों की जनसंख्या आकर्षित होने लगी और ये कस्बे धीरे-धीरे नगरों में बदलने लगे। प्रशासनिक दृष्टि से ब्लाक, तहसील और जिला मुख्यालयों में जन सुविधाओं और आर्थिक कारणों से जनसंख्या बढ़ने लगी तो ये छोटे कस्बे भी नगर और महानगर बनने लगे। लेकिन इस तेजी से हो रहे नगरीकरण पर शासन-प्रशासन आंखें मूंदता गया और नगरों के सुनियोजित विकास के लिए मास्टर प्लान या नगर नियोजन की जरूरत नहीं समझी गयी।
ये जितने भी पहाड़ी नगर हैं वे पहाड़ से आये भूस्खलनों पर बसे हुए हैं, जिनकी धारक क्षमता सीमित हैं। इनमें से कुछ भूस्खलन सक्रिय रहे तो कुछ सुप्त हो गये जो कि अब जनसंख्या के दबाव में जागृत हो रहे हैं। उत्तरकाशी का वरुणवत बड़ी मुश्किल से थमा है। नगरों की जमीन के ऊपर इमारतों के जंगलों का बोझ और बिना सीवरलाइन के इमारतों का मलजल सोकपिटों के माध्यम से धरती के अंदर जाने से पहाड़ी नगरों के नीचे दलदल होता गया, जैसा कि जोशीमठ में हुआ। सरकारों द्वारा जनसंख्या को एक ही कमजोर स्थान पर केन्द्रित होने से रोकने के लिए नये नगर या गांव नहीं बसाए गए।
शिमला से अधिक नाजुक स्थिति मसूरी की है। संवेदनशीलता में शिमला 61वें नम्बर पर है जबकि देहरादून का रैंक 29वां है जहां मसूरी है। इसलिए कभी भी मसूरी और नैनीताल में भी खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है। शिमला की तरह मसूरी और नैनीताल को भी अंग्रेजों ने ही पहाड़ियों पर बहुत सीमित जनसंख्या के लिये बसाया था।
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा कराये गये एक अन्य अध्ययन के अनुसार मसूरी के केम्प्टीफॉल, लाल टिब्बा और भट्टाफॉल सर्वाधिक खतरे वाले क्षेत्र हैं। इसका कारण भूवैज्ञानिक सुशील खंडूड़ी ने टेक्टॉनिक डिसकंटिन्युटी और तीव्र अस्थिर ढलान माना है। इस अध्ययन में भट्टाघाट और लाल टिब्बा के उत्तर पश्चिम क्षेत्र को भूस्खलन के लिए अत्यधिक संवेदनशील बताया गया है, जबकि कम्पनी गार्डन के उत्तर, लाल टिब्बा के उत्तर पूर्व, जबरखेत के पश्चिम और क्यारकुली के दक्षिण पश्चिम के क्षेत्र उच्च संवेदनशीलता में माने गये हैं।
इन क्षेत्रों में अक्सर भूस्खलन होते रहते हैं। इसी प्रकार परी टिब्बा, जबरखेत, क्यारकुली एवं भट्टा के पश्चिमी क्षेत्र, बार्लोगंज के उत्तर पश्चिम और खट्टापानी के उत्तर पूर्वी क्षेत्र को मध्यम दर्जे की संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। इस अध्ययन में मसूरी क्षेत्र के 31.6 प्रतिशत क्षेत्र को मध्यम जोखिम या संवेदनशील श्रेणी, 21.6 प्रतिशत उच्च संवेदनशील श्रेणी और 1.7 प्रतिशत क्षेत्र को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया।
]]>राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, के अध्यक्ष प्रोफेसर गोविंद प्रसाद शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 खिलौनों, गतिविधियों आदि के माध्यम से बच्चों को सीखने का एक रोचक वातावरण तैयार करने के लिए शिक्षा क्षेत्र को एक लचीला ढांचा प्रदान करती है। मुग्धा सिन्हा, मिशन निदेशक, राष्ट्रीय पुस्तकालय मिशन ने अपने संबोधन में कहा, ‘पुस्तकालयों को जमीनी स्तर, स्कूलों और पंचायतों, विशेष रूप से ग्रामीण स्तर पर ले जाकर उन्हें ज्ञान का केंद्र बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है।’
इस अवसर पर संजीव खिरवार, आईएएस, प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा लद्दाख; प्रीति तोंगरिया, अपर सचिव पंचायती राज विभाग, बिहार; डॉ. मोहन लाल यादव, राज्य परियोजना निदेशक – राजस्थान, डॉ. रूपेश कुमार, विशेष सचिव माध्यमिक शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश; एवं रेशम रघुनाथ नायर, उप सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय व अन्य लोग उपस्थित थे।
दर्शन, धर्म, विज्ञान, चिकित्सा, गणित, साहित्य और कला सहित विषयों की एक विस्तृत शृंखला को सम्मिलित करते हुए, ‘भारतीय ज्ञान-परंपरा’ ज्ञान की एक समृद्ध और प्राचीन प्रणाली है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की विकास यात्रा में महती भूमिका निभाने वाले वाले ज्ञान की इस विशाल और जटिल प्रणाली का गर्व करते हुए, इस परंपरा का समुचित निर्वहन कर रहा है।
बाल मंडप की आज की गतिविधियां भारत की विशाल सांस्कृतिक विविधता पर केंद्रित थीं। विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से भारत के प्राचीन योग अभ्यास और ‘मधुबनी’ जैसी चित्रकला की परंपरागत शैलियों को शामिल किया गया। स्टोरीटेलिंग और रचनात्मक लेखन कार्यशाला जैसी कई गतिविधियाँ आयोजित की गईं, जो बच्चों को राजस्थान और असम राज्यों के कैमल और जापी चित्रकलाओं के माध्यम से भारत की विविधता का परिचय देती हैं। ‘लेखक/ इलस्ट्रेटर से मिलें’ सत्र में बच्चों ने जया मेहता, नतालिया सुरुबा और स्वाति चक्रवर्ती के साथ भारत के विभिन्न क्षेत्रों से कई शास्त्रीय नृत्य शैलियों के जाना।
थीम पवेलियन में ‘प्राइम टाइम टॉक’ सत्र में लेखक प्रियम गांधी मोदी ने अपनी पुस्तक ’ए नेशन टू प्रोटेक्ट’ के बारे में बात की, जो संक्रामक वायरस कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान केंद्र सरकार की उत्कट प्रतिक्रिया का आकलन करती है, जिसने अपनी अनिश्चितता से दुनिया को एक गहरे संकट में डाल दिया था। इसके पहले सत्र में, ‘ऑल इंडिया कन्फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड्स’ के बच्चों ने स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद पर एक लघु नाटक का मंचन किया।
प्रसिद्ध अभिनेता और लेखक, कबीर बेदी ने अजय जैन के साथ बातचीत में अपनी नई किताब ‘स्टोरीज़ आई मस्ट टेल’ और इसका हिंदी अनुवाद ‘कही-अनकही’ के बारे में बात की। एक बेस्टसेलर पुस्तक लिखने के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, ‘कहानी की शुरुआत एक आशाजनक आरंभ, बीच में एक संघर्ष और एक संतोषजनक अंत होना चाहिए। पाठक को पन्ने पलटने के लिए मजबूर करना चाहिए, अन्यथा वे पुस्तक में रुचि खो देते हैं।’
]]>आज मैं भारत के प्राइवेट सेक्टर से आह्वान करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा भारत के डिफेंस सेक्टर में इंवेस्ट करें। भारत में डिफेंस सेक्टर में आपका हर इंवेस्टमेंट, भारत के अलावा, दुनिया के अनेक देशों में एक प्रकार से आपका व्यापार-कारोबार के नए रास्ते बनाएगा। नई संभावनाएं, नए अवसर सामने हैं। भारत का प्राइवेट सेक्टर को इस समय को जाने नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमृत काल का भारत एक फाइटर पायलट की तरह आगे बढ़ रहा है। एक ऐसा देश जिसे ऊंचाइयां छूने से डर नहीं लगता। जो सबसे ऊंची उड़ान भरने के लिए उत्साहित है। आज का भारत तेज सोचता है, दूर की सोचता है और तुरंत फैसले लेता है, ठीक वैसे ही जैसे आकाश में उड़ान भरने वाला एक फाइटर पायलट करता है। और सबसे महत्वपूर्ण बात, भारत की रफ्तार चाहे जितनी तेज हो, चाहे वो कितनी भी ऊंचाई पर क्यों ना हो, वो हमेशा अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है, उसे हमेशा ग्राउंड सिचुएशन की जानकारी रहती है। यही तो हमारे पायलट भी करते हैं।
एयरो इंडिया की गगनभेदी गर्जना में भी भारत के सुधार, प्रदर्शन और बदलाव की गूंज है। आज भारत में जैसी निर्णायक सरकार है, जैसी स्थाई नीतियां हैं, नीतियों में जैसी साफ नीयत है, वो अभूतपूर्व है। हर इंवेस्टर को भारत में बने इस सपोर्टिव माहौल का खूब लाभ उठाना चाहिए। आप भी देख रहे हैं कि व्यापार करने की दिशा में आसानी हो रही है भारत में किए गए सुधार की चर्चा आज पूरी दुनिया में हो रही है। हमने वैश्विक निवेश और भारतीय नवाचार के अनुकूल माहौल बनाने के लिए हमने कई कदम उठाए हैं। भारत में डिफेंस सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने के नियमों को आसान बनाया गया है। अब कई सेक्टर में एफडीआई को ऑटोमैटिक रूट से मंजूरी मिली है। हमने उद्योगों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया को सरल बनाया है, उसकी वैलिडिटी बढ़ाई है, ताकि उन्हें एक ही प्रोसेस को बार-बार ना दोहराना पड़े। अभी 10-12 दिन पहले भारत का जो बजट आया है उसमें मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को मिलने वाले टैक्स बेनिफिट को भी बढ़ाया गया है। इसका फायदा डिफेंस सेक्टर से जुड़ी कंपनियों को भी होने वाला है।
पीएम ने कहा कि जहां डिमांड भी हो, क्षमता भी हो, और एक्सपिरियन्स भी हो, प्रकृति का सिद्वांत कहता है कि वहां इंडस्ट्री दिनों-दिन और आगे बढ़ेगी। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि भारत में डिफेंस सेक्टर को मजबूती देने का सिलसिला आगे और भी तेज गति से बढ़ेगा। हमें साथ मिलकर इस दिशा में आगे बढ़ना है। मुझे विश्वास है, आने वाले समय में हम एयरो इंडिया के और भी भव्य और शानदार आयोजन के गवाह बनेंगे।
]]>उत्तराखंड में जोशीमठ जैसा धार्मिक आस्था का पुराना शहर धंस रहा है और उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा है। इसके कारणों पर लंबी बहस हो सकती है परंतु यदि हमें पहाड़ बचाना है, हिमालय बचाना है, तो समाधान है :-
जोशीमठ जैसी कई त्रासदियां अभी भी उत्तराखंड में मुंह बाएं खड़ी है। उत्तरकाशी में भटवाड़ी, नैनीताल के कई क्षेत्र, जिला चमोली के कई इलाकों में यह स्थिति भविष्य में हो सकती है।
ऐसी त्रासदी को रोकने के लिए उत्तराखंड में वन प्रबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वन प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण विषय है : जंगल की आग और उससे निपटने के उपाय। आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे। जंगल में उग्र आग का लगना पूरे विश्व में पर्यावरण के लिए एक मुख्य खतरा बन चुका है। जंगल की आग से कार्बन का उत्सर्जन होता है और जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण बनता जा रहा है। यह हमारे जंगलों में पाई जाने वाली जैव विविधता को भी नष्ट कर रहा है तथा कई विलुप्त होती जा रही प्रजाति के जानवरों की प्राकृतिक वास को भी ध्वस्त कर देता है। आग के कारण बड़ी संख्या में पेड़ों की मृत्यु हो जाती है। इन भयावह जंगल की आग में 97 प्रतिशत आपके घटनाएं मानव जनित कारणों से होती हैं तथा मात्र 3 प्रतिशत घटनाएं प्राकृतिक कारणों से होती है।
उत्तराखंड के परिपेक्ष में स्थिति दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि जंगल की आग मार्च माह से लगनी शुरू होती है और जून के मध्य तक चलती रहती है। मानसून की बारिश के शुरू होने पर ही समाप्त होती है। जंगलों की आग की घटना सूखी और घने जंगलों जैसे चीड़ के जंगलों में अधिकतर होती है। जहां पिरुल सूख कर जमीन पर गिर जाती है और यह आग को और ज्यादा बढ़ाने में सहायता करती है। उत्तराखंड में मानव जनित जंगल की आग निम्न प्रकार से लगती है :-
उत्तराखंड में वन प्रबंधन एवं कार्य योजना :-
1970 की धारा 28 (2) के तहत उत्तराखंड में वन पंचायतों का गठन हुआ जो कि सामाजिक वन प्रबंधन का कार्य करती थी। इन वन पंचायतों के कामकाज को 1997 में झटका लगा जब ग्राम वन संयुक्त प्रबंधन 1997 को लागू किया गया। इसके कारण सरकारी वन विभाग के अधिकारियों का हस्तक्षेप वन पंचायतों के कार्य में अधिक बढ़ गया। इसके बाद जो भी हुआ वह सर्वविदित है।
उत्तराखंड वन विभाग ने जंगल की आग की समस्या से निपटने के लिए एक 5 वर्षीय एक्शन प्लान बनाया है। जिसके मुख्य प्रावधान निम्न हैं :-
स्थानीय लोगों को ट्रेनिंग एवं प्रोत्साहन जिसने युवाओं महिलाओं को वरीयता दी जाएगी।
यह एक्शन प्लान सही दिशा में एक अच्छा कदम है परंतु उसे धरातल पर जल्द से जल्द उतारने की जरूरत है। जमीनी स्तर पर यह देखा गया है कि वन विभाग के फील्ड कर्मचारी अभी भी जंगल की आग बुझाने के लिए उपयुक्त उपकरणों एवं आधुनिक प्रशिक्षण से लैस नहीं है। फील्ड स्टाफ को आधुनिक तकनीक एवं उपकरणों की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए तथा फील्ड में उपकरणों को उपलब्ध कराना चाहिए। फील्ड स्टाफ सर्दियों में प्रत्येक गांव में 10-15 लोगों को जंगल की आग की रोकथाम एवम बुझाने की ट्रेनिंग देने का काम कर सकते हैं। ट्रेनिंग देने के बाद इन स्वयंसेवकों को फॉरेस्ट फायर फाइटिंग के बेसिक उपकरण मुहैया कराए जाएं एवं इन्हें कुछ प्रोत्साहन राशि का भी प्रावधान हो।
वर्तमान में कुछ स्थानीय जागरूक नागरिक वन विभाग को जमीनी आग की सूचना तुरंत फोन से देते हैं, परंतु उन्हें जवाब मिलता है कि यह स्थान हमारे वन प्रभाग की सीमा में नहीं है। इसी जद्दोजहद में काफी समय नष्ट हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए जल्द से जल्द मास्टर कंट्रोल रूम बनाया जाए, जिसमें जंगल की आग के लिए पूरे राज्य में 4 नंबर का टोल फ्री नंबर जारी किया जाए जैसा कि हाल में जंगली जानवर हेल्पलाइन नंबर 1926 जारी किया है। इसके अलावा रिस्क मैपिंग के आधार पर जो अति संवेदनशील और मोस्ट बल्नरेबल जोन हैं, वहां पर उपयुक्त उपकरण एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों को तैनात किया जाए।
वर्तमान में इंटरनेट एवं सूचना तकनीकी पर आधारित उपकरणों का उपयोग होना चाहिए। कैमरा और ड्रोन का उपयोग भी काफी उपयोगी साबित होता है। जंगल की आग को रोकने के लिए यदि सामुदायिक सहभागिता पर आधारित रोकथाम के उपाय लागू हो, आग लगने पर जल्दी से पता लग सके (Early warning system) तथा जंगल की आग लगने पर उसे काबू करने के लिए प्रभावशाली कंट्रोल सिस्टम होगा तो हम अपने जंगलों को बचा सकते है। यदि ऐसा होता है तो हम अपनी भावी पीढ़ी को एक सुंदर भविष्य प्रदान करने में सक्षम होगें।
(लेखक भारत सरकार के उद्यम में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत है एवम् पहाड़ों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े रहते हैं।)
]]>गुवाहाटी के सरुसजाई स्टेडियम में आयोजित होने वाले सीमांत क्रीड़ा महोत्सव-2023 रंगारंग शुभारंभ के मौके पर असम के सीमांत क्षेत्रों से आए खिलाड़ियों ने अलग-अलग पोशाकों में भारत के सांस्कृतिक परिवेश की झांकी दिखाते हुए मार्च पास्ट किया। इसी के साथ इस 3 दिवसीय सीमांत क्रीड़ा महोत्सव-2023 का आगाज हो गया। इस खेल महोत्सव लेकर खिलाडियों के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी महोत्सव में भाग लेने के लिए असम के सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले खिलाड़ी बड़ी संख्या में गुवाहाटी पहुंचे है।
हंस फाउंडेशन के सौजन्य एवं सीमांत चेतना मंच पूर्वोत्तर के तत्वावधान में आयोजित होने वाले इस खेल महाकुंभ सीमांत क्रीड़ा महोत्सव के शुभारंभ पर मंचासीन अतिथियों का सीमांत चेतना मंच पूर्वोत्तर ने असमिया गमछा पहनाकर स्वागत किया गया।
इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह क्षेत्र प्रचारक बशिष्ठ बुजरबरुआ उपस्थित अतिथियों का अभिनंदन करते हुए कहा की आज गुवाहाटी के सरुसजाई स्टेडियम में इस भव्य खेल महाकुंभ के आयोजन ने देश के इस सीमांत क्षेत्र में खेलों की नई परिभाषा गढ़ दी है। जिसमें हंस फाउंडेशन की भूमिका सराहनीय है। इसके लिए मैं पूज्य माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी का आभार व्यक्त करता हूं। जिनके आशीष से इस खेल महाकुंभ को नई दिशा मिल रही है।
इस मौके पर हंस फाउंडेशन के सेक्शन हेड विकास वर्मा ने क्रीड़ा महोत्सव में उपस्थित अतिथियों एवं खिलाड़ियों का हंस फाउंडेशन के प्रेरणास्रोत माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी की ओर से अभिनंदन करते हुए कहा कि हम हंस फाउंडेशन परिवार की ओर से इस खेल महोत्सव में प्रतिभाग कर रहे असम के कोने-कोने से शामिल हुए आप सभी खिलाड़ियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते है।
उन्होंने कहा कि हंस फाउंडेशन परिवार के लिए यह बहुत ही सम्मान की बात हैं कि उत्तर पूर्वी भारत की इस धरती पर हमें सेवा के कार्य करने का शुभअवसर प्राप्त हुआ है, फिर चाहे वह पिछले वर्षों में यहां पर आयोजित सामूहिक विवाह संस्कार का कार्य हो या फिर शिक्षा-स्वास्थ्य और खेल की दिशा में निरंतर किए जा रहे कार्य। विकास वर्मा ने कहा कि पूज्य माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी का प्रयास रहता हैं कि उनकी सेवाओं का आशीष उन लोगों तक पहुंचे जो सही मायने में जरूरतमंद है। इसी सोच के साथ असम में भी सेवा के कार्य किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा आज अवसर सीमांत क्रीड़ा महोत्सव का है मैं देख रहा हूं इस खेल कुंभ में असम के दूर दराज के क्षेत्रों से विभिन्न खेलों में प्रतिभाग करने के लिए बड़ी संख्या में खिलाड़ी आए है। आप सब अपने लक्ष्य को हासिल करें। उन्होंने कहा खेल व जीवन एक-दूसरे के पर्याय है। जीवन में खेल का बहुत महत्व है। खेल में हार-जीत होती है पर हार हमें एक नई सीख देती है। जीतने के लक्ष्य को प्राप्त करने का संदेश देती है।
सीमांत चेतना मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक प्रदीपन जी ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी प्रबुद्धजनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारे लिए सौभाग्य की बात हैं कि हम इतने बड़े स्तर पर इस खेल महाकुंभ का आयोजन कर पा रहे है। इसमें आप सभी प्रतिभागियों की दिन-रात की मेहनत और हंस फाउंडेशन का बड़ा सहयोग है। इसके लिए हम पूज्य माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी का कोटि-कोटि आभार व्यक्त करते है।
प्रदीपन जी ने कहा कि माताश्री मंगला जी और श्री भोले जी महाराज का धेय रहता हैं कि स्वास्थ्य-शिक्षा और खेल के मामले में देश की प्रगति हो, भारत स्वस्थ भारत हो, शिक्षित भारत हो, साथ ही खेलों के मैदान में भी प्रथम पंक्ति में खड़ा हो, जिसके लिए आप हंस फाउंडेशन के माध्यम से निरंतर प्रयासरत है। इस क्रम में हमें भी निरंतर हंस फाउंडेशन का सहयोग मिल रहा है। इसके लिए हम आभारी है।
गौरतलब रहे कि हंस फाउंडेशन उत्तराखंड सहित देश के 27 राज्यों में शिक्षा-स्वास्थ्य से लेकर तमाम दूसरे क्षेत्रों में सेवाएं दे रहा है। इस क्रम में हंस फाउंडेशन की सेवाओं का विस्तार निरंतर देश के सीमांत क्षेत्रों में बसे राज्यों में भी हो रहा है। जिसमें असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड में प्रमुख तौर पर सेवाओं के केंद्र में है।
]]>चीनी घुसपैठ का खुलासा:चीन के सैनिकों की भारत में घुसपैठ की कोशिशें करना कोई नई बात नहीं है. माना जाता है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति और भारत को उकसाने के इरादे से ऐसी हिमाकत करता है. लेकिन इस बार एक रिपोर्ट ने सभी को चौंका कर रख दिया है. इंडो-पेसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन की रिपोर्ट ने अरुणाचल में चीनी घुसपैठ के पीछे का कारण कीड़ा जड़ी को बताया है. एक ऐसी जड़ी जो बेशकीमती है, और चीन में इसकी भारी डिमांड है. हैरानी की बात यह है कि हिमालयन गोल्ड के नाम से जानी जाने वाली ये जड़ी दक्षिण और पश्चिमी चीन के साथ उत्तराखंड में भी पाई जाती है. सभी जानते हैं कि उत्तराखंड का एक बड़ा भूभाग नेपाल और चीन से लगा हुआ है और ऐसे ही कुछ हिमालयी क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी का भंडार भी है.
कीड़ा जड़ी उत्तराखंड में उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत और चमोली जनपदों में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है. चिंता की बात यह है कि पिथौरागढ़ और चमोली दोनों ही जिले चीन से अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. लिहाजा इन दोनों जिलों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की संभावनाएं बनी रहती हैं. चमोली के बाड़ाहोती में तो चीन के सैनिक कई बार घुसपैठ करने की कोशिश कर चुके हैं. उत्तराखंड का करीब 625 किलोमीटर का हिस्सा अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा है. जिसमें करीब 350 किलोमीटर का हिस्सा अकेले चीन की सीमा से लगा हुआ है. 275 किलोमीटर क्षेत्र नेपाल की सीमा से जुड़ा है.
खास बात यह है कि न केवल चीन से लगे हुए हिस्से पर चीनी सेना की घुसपैठ कीड़ा जड़ी को लेकर हो सकती है, बल्कि नेपाल से भी भारी मात्रा में इसकी तस्करी की खबरें सामने आती रहती हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो उत्तराखंड के उच्च हिमालय में मौजूद यह बेशकीमती संपदा चीन के निशाने पर हो सकती है और उत्तराखंड के इन पहाड़ी क्षेत्रों से चीन कीड़ा जड़ी को चुराने की कोशिश कर सकता है. कीड़ा जड़ी को कई नामों से जाना जाता है, अंग्रेजी में इसे कैटरपिलर फंगस (Caterpillar fungus) कहते हैं तो नेपाल और चीन में इसे यार्सागुंबा के नाम से जाना जाता है. यही नहीं इसे भारत में कीड़ा जड़ी के साथ-साथ हिमालयन गोल्ड और हिमालयन वियाग्रा के नाम से भी पुकारा जाता है.
कीड़ा जड़ी उच्च हिमालय क्षेत्र में करीब 3500 मीटर से लेकर 5000 मीटर की ऊंचाई तक पर मिलती है. इसकी लंबाई करीब 2 इंच तक होती है और यह स्वाद में मीठी होती है. पश्चिमी और दक्षिणी चीन के साथ उत्तराखंड के उत्तरकाशी, चमोली बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्र में इसकी मौजूदगी मिलती है. यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी के रूप में होता है. इसलिए इसे कीड़ा जड़ी कहते हैं. इस कीड़े की उम्र करीब 6 महीने की होती है जिस पर फंगस लगने के बाद जमीन के नीचे दम तोड़ देता है. उधर फंगस कीड़े के मुंह से निकलकर जमीन के बाहर बढ़ती है. इसी हिस्से को देखकर लोग इसे बाहर निकालते हैं. कीड़ा जड़ी में मौजूद प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कॉपर जैसे खनिज इसे कई बीमारियों के लिए मेडिसिनल रूप में उपयोगी बनाते हैं. इसके अलावा यौन शक्ति बढ़ाने और रोग वर्धक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका महत्व माना जाता है. इन्हीं सभी खूबियों के कारण चीन को इसकी तलाश होती है और चीन में इसकी भारी डिमांड भी है.
]]>उद्घाटन सत्र के अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ मनमोहन सिंह चौहान ने विद्यार्थियों को स्थापना सप्ताह के दौरान आयोजित किये जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी करने के लिए सुझाव दिया तथा आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर शोध करने पर उनके द्वारा बल दिया गया साथ ही सुदुर पहाड़ी क्षेत्रों में भी आधुनिक तकनीकों को पहुचाने हेतु सुझाव दिया गया जिससे कि उनका उपयोग कर पहाड़ी क्षेत्रों के कृषक अपने फसल की अधिक उपज पैदा कर लाभान्वित हो सकें।
कुलसविच डा. ए.के. शुक्ला ने गॉधी हॉल में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत करते कहा कि विश्वविद्यालय को 62 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में स्थापना सप्ताह कार्यक्रम के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि हमारे विद्यार्थी देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी इस विश्वविद्यालय का नाम रोशन कर रहे हैं। अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय डा. एस.के. कश्यप ने विश्वविद्यालय स्थापना दिवस मनाये जाने की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा कही गयी बातों को याद दिलाते हुए उनके सम्बोधन ’’देश के किसानों के लिए इस विश्वविद्यालय का द्वार हमेशा खुला होना चाहिए’’ के महत्व को उजागर किया। डा. जे.पी. जायसवाल, प्राध्यापक एवं स्थापना सप्ताह कार्यक्रम के नोडल अधिकारी द्वारा पूरे सप्ताह के दौरान आयोजित किये जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तिथिवार विस्तृत रूप-रेखा प्रस्तुत की गयी।
12 नवम्बर, 2022 को ’भारत जनसंख्या लाभांस को भुनाने में असफल हो रहा है’ विषय पर हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में इंटर कॉलेजिएट यूनिवर्सिटी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों से हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में पक्ष एवं विपक्ष में 16-16 विद्यार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। निर्णायक मंडल द्वारा हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में वाद-विवाद की गुणवत्ता के आधार पर तीन विद्यार्थियों का चयन कर उनको पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कुलपति, डा. मनमोहन सिंह चौहान उपस्थित थे और उनके द्वारा प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया गया।
13 नवम्बर, 2022 को विश्वविद्यालय के गॉधी हॉल में बैंड शो का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पद्मश्री डा. माधुरी बर्थवाल मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ायी। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा बहुत ही रूचिकर कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये और गॉधी हॉल दर्शकों के तालियों से गूजंता रहा। इस अवसर पर मुख्य अतिथि द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचलित लोकगीतों तथा उनमें निहित संदेशों की भावभीनी प्रस्तुति की गयी जिससे गांधी हॉल में उपस्थित सभी लोग भावविभोर हो गये। डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा विश्वविद्यालय के विद्याथि्र्ायों तथा मुख्य अतिथि द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों की भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी और लोकगीतों के सजीवता को बनाये रखने के लिए विद्यार्थियों का आवाह्न किया गया।
14 नवम्बर, 2022 को अठारहवां भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत स्मृति व्याख्यान माला का आयोजन ऑनलाइन माध्यम से सम्पन्न किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्भ वातावरणविद पद्मश्री एवं पदमभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी द्वारा शिक्षकों एवं छात्रों को संबोधित करते हुए पर्यावरण से होने वाले नुकसान एवं उनके निदान के बारे में बताया गया। डा. जोशी द्वारा वृक्षों के अंधा-धुंध कटाव के ऊपर गहरी चिंता व्यक्त की गयी तथा उससे होने वाले नुकसान जैसे ग्लेशियर के पिघलने, बाढ़ आने तथा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन आदि महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डा. मनमोहन सिंह चौहान ने द्वारा विश्वविद्यालय स्तर से पर्यावरण संरक्षण पर किये जाने वाले राज्य एवं देशहित में कार्यक्रमों में पूर्ण सहयोग देने की बात कहीं, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके एवं पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले नुकसान के प्रभाव को रोका जा सके।
15 नवम्बर, 2022 को कृषि महाविद्यालय के 1972 बैच के छात्र (एल्यूमिनाई) अपनी स्वर्ण जयंती को मनाने हेतु विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थित यूनिवर्सिटी सेन्टर से अति हर्षोल्लास तथा गाजे-बाजे के साथ चलते हुए कृषि महाविद्यालय के प्रांगण में उपस्थित हुए। ये लोग पचास वर्ष पूर्व विश्वविद्यालय में विद्यार्थी के रूप में आए थे और अब सभी लोग सेवानिवृत्त हो गए हैं फिर भी उनका उत्साह देखने योग्य था। इस अवसर पर लगभग 70 एल्यूमिनाई अपने परिवार सहित एल्यूमिनाई मीट में प्रतिभाग किये।
डा. बी.बी. सिंह मीनी आडिटोरियम में उनकी उपस्थिति के दौरान विश्वविद्यालय के विद्यार्थी एवं संकाय सदस्य भारी संख्या में उपस्थित होकर उनका स्वागत किये। आयोजित कार्यक्रम में पूर्व विद्यार्थियों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते समय हुए भावुक हो गये। कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्वविद्यालय के डा. मनमोहन सिंह चौहान पूर्व विद्यार्थियों द्वारा उनके गोल्डन जुबली वर्ष में विश्वविद्यालय में आने के लिए धन्यवाद दिया तथा प्रसन्नता व्यक्त की और अपेक्षा की कि इसी तरह अन्य एल्यूमिनाई भी विश्वविद्यालय से निरन्तर संपर्क बनाएं रखेंगे।
16 नवम्बर, 2022 को पूर्व छात्रों का संगठन (अल्मामेटर एल्यूमिनाई एडवांसमेंट एसोसिएसन-4ए) द्वारा यूनिवर्सिटी सेंटर (नाहेप भवन) में ‘एल्यूमिनी मीट 2022 तथा ’’एल्यूमनी -द अल्टिमेट स्ट्रेन्थ आफ अल्मामेटर’’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अन्य एल्यूमिनाई के साथ 1972 बैच के एल्यूमिनाई अपने परिवार सहित प्रतिभाग किये। एल्यूमिनाई मीट कार्यक्रम में पूर्व विद्यार्थियों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए अपनी अल्मामेटर से सदैव जुड़े रहने की बात कही।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के डा. मनमोहन सिंह चौहान; विशिष्ट अतिथि प्रथम बैच (1960) के छात्र एवं पूर्व अधिष्ठाता, विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय डा. जी.के. गर्ग; 1966 बैच के छात्र ई. एम.के. अग्रवाल, जोकि 4ए के उपाध्यक्ष भी है तथा 1972 बैच के प्रतिनिधि, डा. मुकेश गौतम एवं डा. बी.के. सिंह तथा प्राध्यापक एवं सचिव 4ए डा. जे.पी. जायसवाल मंचासीन थे।
कुलपति डा. मनमोहन सिंह पूर्व विद्यार्थियों को गोल्डन जुबली वर्ष में विश्वविद्यालय में आने के लिए धन्यवाद दिया तथा उनके अपनी अल्मामेटर के प्रति लगाव पर सन्तोष व्यक्त किया। कार्यशाला के दौरान विभिन्न एल्यूमिनाई ने अल्मामेटर के सुदृद्धिकरण के सन्दर्भ में एल्यूमिनाई की प्रासंगिकतता पर प्रकाश डाला और 4ए संगठन को और सुदृढ़ करने पर बल दिया।
16 नवम्बर, 2022 को गॉधी हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों के विद्यार्थी एवं 1972 बैच के एल्यूमिनाई द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया गया। गॉधी हॉल में उपस्थित सभी लोग इन प्रस्तुतियों से आनंदविभोर हुए। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के डा. मनमोहन सिंह चौहान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे तथा उनके द्वारा विद्यार्थियों एवं पूर्व छात्रों द्वारा प्रस्तुत किये गये सांस्कृति कार्यक्रमों पर प्रसन्नता व्यक्त की गई।
17 नवम्बर, 2022 को विश्वविद्यालय के स्टेडियम पर भारी संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों एवं संकाय सदस्यों की उपस्थिति में विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा ’रन फार यूनिवर्सिटी’ का शुभारम्भ किया गया। तदोपरान्त स्थापना सप्ताह समारोह का समापन कार्यक्रम गॉधी हॉल में आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में मिसाइल वैज्ञानिक, डा. अरूण तिवारी ऑनलाइन उपस्थित थे। कुलसचिव डा. ए.के. शुक्ला, अधिष्ठाता छात्र कल्याण, डा. बृजेश सिंह एवं प्राध्यापक एवं सचिव एल्यूमिनाई एसोसिएसन (4ए) तथा स्थापना दिवस सप्ताह के नोडल अधिकारी डा. जे.पी. जायसवाल मंचासीन थे। इस अवसर पर कृषि मंत्री उत्तराखंड, गणेश जोशी का संदेश डा. जे.पी. जायसवाल द्वारा सभागार में प्रस्तुत किया गया।
कुलपति डा. मनमनोहन सिंह चौहान अपने सम्बोधन में विद्यार्थियों एवं संकाय सदस्यों का आह्वान करते हुए संदेश दिया कि विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय बनाने के लिए हम सभी को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थी देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी विश्वविद्यालय का नाम अलंकृत कर रहे हैं।
]]>अनुराग ठाकुर ने विस्तार से बताया, ‘इफ्फी के लिए मेरा विजन केवल एक आयोजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इस बात से भी संबंधित है कि इफ्फी का स्वरूप उस समय क्या होना चाहिए जब अमृत महोत्सव से अमृत काल में प्रवेश करने के बाद भारत अपनी आजादी के 100वें वर्ष का उत्सव मनाएगा! हमारा लक्ष्य क्षेत्रीय फिल्म महोत्सवों का स्तर बढ़ाकर भारत को कंटेंट सृजन, विशेषकर क्षेत्रीय सिनेमा का एक पावरहाउस बनाना है।’
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण ने कहा, “आईएफएफआई युवा और स्थापित फिल्म निर्माताओं को अपना नेटवर्क बनाने, अपने विचार पेश करने, आपस में सहयोग करने और सिनेमा की दुनिया से सर्वश्रेष्ठ अनुभव प्राप्त करने के लिए अद्वितीय अवसर और अभूतपूर्व संभावनाएं प्रस्तुत कर रहा है। सिनेमा किसी भी देश की समृद्ध संस्कृति, विरासत, धरोहर, आशाओं एवं सपनों, आकांक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं और सबसे महत्वपूर्ण रूप से इतिहास के किसी विशेष समय में वहां के लोगों की सामूहिक अंतरात्मा के संगम को पेश करता है और तराशता है।”
एशिया के इस सबसे पुराने फिल्म महोत्सव की स्मृति को रेखांकित करते हुए अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की अवधारणा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की थीम में निहित है, जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सार का प्रतीक है जिसके अनुसार पूरी दुनिया को एक परिवार माना जाता है। उन्होंने कहा ‘‘भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और जी20 की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में ‘एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’ की इसी थीम पर केंद्रित है।’’
सूचना और प्रसारण मंत्री ने इस वर्ष सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड जीतने के लिए प्रसिद्ध स्पेनिश फिल्म निर्माता कार्लाेस सौरा को बधाई दी। उन्होंने यह भी घोषणा की कि इंडियन फिल्म पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर पुरस्कार दक्षिण भारतीय अभिनेता चिरंजीवी को प्रदान किया जाएगा। अनुराग ठाकुर ने यह भी कहा कि आईएफएफआई का यह संस्करण प्रमुख मणिपुरी फीचर फिल्मों और गैर-फीचर फिल्मों के विशेष रूप से तैयार किए गए पैकेज को प्रदर्शित करके मणिपुरी सिनेमा के 50 साल पूरे होने का उत्सव मनाएगा।
इस अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में लगभग 79 देशों के साथ ही भारत के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिभाग किया जा रहा है। इस महोत्सव में उत्तराखंड द्वारा भी प्रतिभाग किया जा रहा है, जिसमे राज्य का प्रतिनिधित्व अभिनव कुमार, विशेष प्रमुख सचिव सूचना द्वारा किया जा रहा है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस महत्वपूर्ण आयोजन से उत्तराखंड के नैसर्गिक प्राकृतिक सौन्दर्य एवं पर्यटन स्थलों की पहुंच देश व दुनिया तक पहुंचेगी तथा राज्य में फिल्म एवं पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। साथ ही देश के फिल्मकार फिल्मों की शूटिंग के लिये उत्तराखंड के प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति और अधिक आकर्षित होंगे।
इस महोत्सव में 22 नवंबर 2022 को उत्तराखंड राज्य की फ़िल्म नीति पर चर्चा की जाएगी। इस परिचर्चा में केंद्रीय फ़िल्म बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी भी प्रतिभाग करेंगे।
फ़िल्म महोत्सव में सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के उप निदेशक/नोडल अधिकारी उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद डॉ. नितिन उपाध्याय द्वारा भी प्रतिभाग किया जा रहा है।
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