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बकीबात – Hill Mail https://hillmail.in Sun, 02 Aug 2020 16:27:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://i0.wp.com/hillmail.in/wp-content/uploads/2020/03/250-X-125.gif?fit=32%2C16&ssl=1 बकीबात – Hill Mail https://hillmail.in 32 32 138203753 बकी बातः त्रिवेंद्र हुए मजबूत, कैबिनेट विस्तार में उनकी ही पसंद को मिलेगी तरजीह https://hillmail.in/trivendra-singh-cabinet-expention-there-new-minister-to-be-inducted/ https://hillmail.in/trivendra-singh-cabinet-expention-there-new-minister-to-be-inducted/#respond Sun, 02 Aug 2020 16:25:59 +0000 https://hillmail.in/?p=18863 उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह कैबिनेट का विस्तार होना है। अब राज्य में सरकार के पास चुनाव में जाने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। लिहाजा सरकार भी नाराज चल रहे पार्टी विधायकों को मंत्री के पद से नवाजकर नाराजगी दूर करना चाहती है। राज्य के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसके लिए संदेश छोड़ दिया है। लिहाजा सभी अब उनके आसपास चक्कर काट रहे हैं। राज्य में तीन मंत्रियों के पद भरे जाने हैं। फिलहाल सीएम रावत राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मुलाकात कर चुके हैं और कैबिनेट विस्तार की चर्चाएं देहरादून से दिल्ली के सियासी गलियारों में शुरू हो गई हैं। वहीं विधायक भी देहरादून से दिल्ली और संघ कार्यालय तक जुगाड़ लगाने में जुट गए हैं। लेकिन इन सब के बीच सीएम त्रिवेंद्र बाहुबली बने हुए हैं, कैबिनेट में किसे लेना है, यह फैसला उन्हीं को लेना है। कैबिनेट विस्तार को लेकर सीएम दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष और बड़े नेताओं से बातचीत कर चुके हैं। फिलहाल कैबिनेट विस्तार को लेकर माना जा रहा है कि त्रिवेंद्र सिंह की पसंद को तरजीह दी जाएगी, लिहाजा अब नेता उन्हें साधने में जुट गए हैं।

रिपोर्ट कॉर्ड ने बैकफुट पर धकेल दिए विरोधी सुर!

उत्तराखंड में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले भाजपा राज्य के कई मौजूदा विधायकों का रिपोर्ट कॉर्ड तैयार कर रही है। इसके बारे में कहा जा रहा है कि रिपोर्ट कॉर्ड के आधार पर ही पार्टी विधायकों को टिकट देगी। भाजपा का कहना है चुनावों से 6 महीने पहले भाजपा सभी विधायकों के कामकाज का रिपोर्ट कॉर्ड तैयार कर लिया जाएगा। उसी के आधार पर फैसला किया जाएगा। इस रिपोर्ट कॉर्ड ने मौजूदा विधायकों के दिलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं, क्योंकि राज्य में अभी सीएम त्रिवेंद्र सबसे मजबूत बने हुए हैं और ये एक तरह से विधायकों के लिए चेतावनी भी है कि 2020 नजदीक है, कोताही नहीं बरती जाएगी। अभी तक कई विधायक प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर सरकार और सरकार के मुखिया के खिलाफ बयानबाजी कर लिया करते थे, लेकिन रिपोर्ट कॉर्ड की चर्चा के बाद सभी बैकफुट पर आ गए हैं।

चुनाव हैं भई, जो उद्घाटन करेगा क्रेडिट उसको

उत्तराखंड में चुनाव होने में महज डेढ़ साल का समय बचा है और अब सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है। हर कोई राज्य में बड़े प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेना चाहता है। राज्य की त्रिवेंद्र सरकार बड़े प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करना चाहती है। वहीं कांग्रेस का आरोप है कि 2022 के चुनाव के मद्देनजर प्रोजेक्टों का धड़ाधड़ उद्घाटन किया जा रहा है जबकि ये योजनाएं कांग्रेस सरकार में बनाई गई थीं। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार बिना प्लानिंग के ही योजनाओं का शिलान्यास कर रही है। असल में राज्य सरकार चाहती है कि ऋषिकेश रेलवे स्टेशन, टिहरी के डोबरा चांठी पुल, ऑल वेदर रोड समेत कई बड़े प्रोजेक्टों का लोकार्पण इसी कार्यकाल में हो जाए, इसके लिए तेजी से काम किया जा रहा है। सरकार को लग रहा है कि इसके जरिये उसे 2022 विधानसभा चुनाव में निश्चित फायदा होगा। अब कांग्रेस का कहना है कि रेल लाइन से लेकर ऑल वेदर रोड की योजनाओं का शिलान्यास उनकी सरकार में हुआ था।

आते ही चीफ सेक्रेटरी ने बनानी शुरू कर दी टीम

राज्य के 16वें चीफ सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त होते ही ओम प्रकाश ने बैटिंग शुरू कर दी। विपक्षी दलों के निशाने पर आ रही सरकार की छवि मजबूत करने के लिए उन्होंने आते ही कुछ जिलाधिकारियों को बदल दिया। आमतौर पर चीफ सेक्रेटरी जिलों और शासन में अपने करीब लोगों को तरजीह देते हैं। ताकि उनकी और राज्य सरकार की प्राथमिकताओं को लागू किया जा सके। लिहाजा ओम प्रकाश ने अपने करीब अफसरों को शासन और जिलों में नियुक्त करना शुरू कर दिया है। जाहिर है जो अभी तक गुड बुक में नहीं थे, वह अच्छी पोस्टिंग नहीं पा सकेंगे जबकि जो करीबी हैं, उन्हें अहम पदों पर नियुक्ति मिलेगी। प्रशासन को दुरुस्त रखना नए चीफ सेक्रेटरी की प्राथमिकताओं में है। हालांकि बकीबात ने पहले ही साफ कर दिया था कि राज्य में नए चीफ सेक्रेटरी के साथ ही नौकरशाही की तस्वीर बदलेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

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अनिल बलूनी, प्रियंका गांधी… चाय-पानी, झंगोरे की खीर और कचमोली की एंट्री! https://hillmail.in/anil-baluni-bjp-priyanka-gandhi-uttarakhand-foods/ https://hillmail.in/anil-baluni-bjp-priyanka-gandhi-uttarakhand-foods/#respond Tue, 28 Jul 2020 05:03:40 +0000 https://hillmail.in/?p=18472 सियासी लोगों के चाय-पानी में भी अलग बात होती है। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी का बंगला 35, लोदी स्टेट राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को आवंटित हुआ है। केंद्र सरकार के निर्देश के बाद प्रियंका इस बंगले को 31 जुलाई को खाली करने वाली हैं। ऐसे में उन्होंने शायद घर से रूबरू कराने के लिए विरोधी पार्टी भाजपा के नेता अनिल बलूनी को चाय पर आमंत्रित किया। चाय के न्योते का धन्यवाद देते हुए बलूनी ने उन्हें उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन खिलाने का न्योता दे डाला।

सोशल मीडिया पर कुछ पत्रकारों और आम लोगों ने भी खूब चटकारे लिए। दरअसल, राज्यसभा सांसद ने प्रियंका को भेजी चिट्ठी में उत्तराखंडी व्यंजन जैसे मंडुवे की रोटी, झंगोरे का रायता, भट्ट की चुठकनी का जिक्र किया है। वरिष्ठ पत्रकार विकास भदौरिया ने यह बात सोशल मीडिया पर शेयर की तो वरिष्ठ पत्रकार संजय बरागटा ने लिखा, ‘कचमोली नहीं है क्या?’

एक यूजर ने तो यह भी पूछ लिया कि झंगोरे की खीर किस चीज से बनती है तो दूसरे यूजर ने बताया कि झंगोरे से, यह पहाड़ी अनाज है। हालांकि कुछ लोगों ने चाय-खाने के न्योतों का यह कहकर स्वागत भी किया कि विरोध विचारों से हो सकता है, व्यक्तित्व से नहीं। बहुत अच्छा है।

अब जानिए प्रियंका ने ट्विटर पर क्या लिखा…

बलूनी की चिट्ठी में क्या था…

अनिल बलूनी ने अपनी चिट्ठी में लिखा, ‘प्रियंका गांधी वाड्रा जी, आपका पत्र मिला, आभारी हूं। शायद आपको संज्ञान में नहीं होगा कि मैं कैंसर के उपचार के बाद दिल्ली लौटा हूं और चिकित्सकों का मानना है कि अभी मुझे कुछ और समय घर पर ही आइसोलेशन में रहना चाहिए।’ वह आगे लिखते हैं, ‘आपने मुझे चाय पर आमंत्रित किया, इसके लिए आपका धन्यवाद। मैं 35 लोदी एस्टेट जाने के उपरांत आपको सपरिवार भोजन पर आमंत्रित करता हूं, जिससे आपको मेरे उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन मंडुवे की रोटी, झंगोरे की खीर, पहाड़ी रायता, भट्ट की चुठकनी का रसास्वादन मिलेगा, आपका पुनः आभार आपने मुझे आमंत्रित किया।’

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बकीबातः हरीश रावत बने ‘राजनैतिक नर्तक’, सियासी मायने खोज रहे कांग्रेसी https://hillmail.in/bakibaat-why-former-chief-minister-harish-rawat-calls-himself-a-political-dancer-congress-leaders-stun/ https://hillmail.in/bakibaat-why-former-chief-minister-harish-rawat-calls-himself-a-political-dancer-congress-leaders-stun/#respond Sun, 19 Jul 2020 06:29:59 +0000 https://hillmail.in/?p=18029
  • टी हरीश
  • हरदा क्यों बने ‘राजनैतिक नर्तक’, सियासी मायने खोज रहे कांग्रेसी

    अपने बयानों से राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हरदा ने खुद को राजनैतिक नर्तक बता कर राज्य में नया विवाद छेड़ा दिया। हर कोई हरदा के बयान के मतलब निकालने लगे, क्योंकि राज्य की सियासत से हरदा दूर हैं। लेकिन उनका मन हमेशा राज्य में लगा रहता है। लेकिन राज्य में उनके सहयोगी उनके लिए विपक्षी दलों की तरह व्यवहार करते हैं और हर किसी को यही लगता है कि हरदा की कभी भी राज्य में वापस आ सकते हैं। हरदा ने इशारों में ये भी कह दिया कि घुंगरू के कुछ दाने टूटने से नर्तक के पैर थिरकना नहीं छोड़ देते। मतलब साफ है कि अगर राज्य से बाहर भी हैं तो राज्य की राजनीति में दखल देना नहीं छोड़ सकते हैं। हरदा ने ये भी कहा कि सामाजिक और राजनीतिक धुन कहीं भी बजेगी तो वह जरूर थिरकेंगे। फिलहाल राज्य में पंजे वाली पार्टी के नेता हरदा के बयानों के अपनी तरह से सियासी मतलब निकाल रहे हैं और इन आवाजों का मजा ले रहे हैं।

    मूल निवासी के जरिये हाशिए से बाहर आएंगे नेताजी

    उत्तराखंड में नवंबर में राज्यसभा की एक सीट खाली हो रही है। इसके लिए लॉबिंग का दौर शुरू हो गया है। राज्य की सत्ताधारी पार्टी में इस एक पद के लिए करीब दो दर्जन से ज्यादा नेता अपने नाम को विभिन्न चैनलों के जरिये बढ़ा रहे हैं। हालांकि अंतिम फैसला दीनदयाल उपाध्याय मार्ग का होगा। क्योंकि इसके लिए नेताओं ने अपने मीडिया के संपर्कों के जरिये अपने नामों को चलाना शुरू कर दिया है। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि सांसद बाहर का भी हो सकता है। लिहाजा इसके लिए स्थानीय नेताओं ने इसकी काट निकाल दी है। उन्होंने इसके लिए मूल निवासी का नियम बनाने की बात कही है। लिहाजा बाहरी नेताओं का पत्ता कट गया है। अब तो उम्मीद केवल दिल्ली की है। क्योंकि अगर वह चाहेगा तो किसी को भी सांसद बना सकता है। फिलहाल राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री अपने नाम को मीडिया के जरिये प्रसारित करा रहे हैं और अब उन्हें उम्मीद है कि पार्टी उन्हें हाशिए से उठाकर राज्यसभा में पहुंचाएगी।

    सांसद ने चला दांव और विपक्षी नेता जपने लगे नाम

    उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड के मुद्दे पर भाजपा की सरकार अपने ही सांसद के निशाने पर आ गई है। आखिर ऐसा क्यों? असल में कहा जा रहा है कि कभी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहे नेता अब सांसद हैं। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष से हटने के बाद कोई हैसियत नहीं रह गई है। लिहाजा कहीं पूछ भी नहीं है। लिहाजा कैसे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जाए। लिहाजा उन्होंने देवस्थानम बोर्ड के जरिए ही निशाना साध दिया और बैठे बिठाए विपक्ष को मुद्दा दे दिया। सांसद भी चाहते थे कि उनके एक बयान से राज्य की सियासत में हलचल तेज और लोग उनका नाम लें और वह मीडिया की सुर्खियों में छा जाए। हुआ भी वही और कांग्रेस उनके जाल में फंस गई और अब कांग्रेस सरकार से ज्यादा उनका नाम ले रही है और वह मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं।

    प्रमोटी आईएएस सौतेला भाई बराबर

    पिछले दिनों राज्य में आईएएस अफसरों के तबादले हुए और इसके जरिये राज्य में सीधी भर्ती वाले आईएएस और प्रमोटी आईएएस के बीच होने वाला विवाद एक बार फिर उभर कर सामने आ गया। जबकि दोनों ही आईएएस हैं। लेकिन आरआर वाले आईएएस अफसर प्रमोटी आईएएस अफसरों को सौतेले भाई से कम नहीं समझते हैं और सौतेला व्यवहार करते हैं। राज्य में पिछले दिनों आईएएस अफसरों के प्रभारी सचिव के पद के समकक्ष प्रमोशन होने के बाद भी इन अफसरों को शासन में अपर सचिव के पद पर नियुक्त किया गया। इसमें एक अफसर तो मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र और खास अफसरों में शुमार हैं। जिन अफसरों को प्रभारी सचिव बनना था, उन्हें आईएएस लॉबी ने अपर सचिव बनने के लिए मजबूर कर दिया। इन अफसरों को प्रभारी सचिव के पद पर नियुक्ति नहीं दी, क्योंकि इन पदों पर आरआर वाले आईएएस अफसर अपना हक समझते हैं। फिलहाल राज्य में एक बार फिर डायरेक्ट और प्रोमोटी आईएएस के विवाद उभर कर सामने आ गया है। फिलहाल कहा जा रहा है कि ये खेल राज्य में जानबूझकर किया गया है, क्योंकि सौतेला भाई सौतेला ही होता है।

    सीएस को लेकर सरकार ने नहीं खोले पत्ते

    इस महीने के आखिर में उत्तराखंड के मौजूदा चीफ सेक्रेटरी उत्पल कुमार सिंह रिटायर हो रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार ने इसको लेकर अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं और जाहिर है कि इससे फ्रंट रनर तनाव में होंगे, क्योंकि राज्य में भाजपा की सरकार है कब किसका नंबर लग जाए। ये सब भाजपा सरकारों में कई बार हो चुका है। वहीं राज्य सरकार इस मामले में कुछ भी कहने से बच रही है। ये भी हो सकता है कि उत्पल कुमार सिंह को राज्य सरकार तीन महीने का सेवा विस्तार दे। हालांकि इसकी फाइल अभी तक राज्य सरकार ने केंद्र को नहीं भेजी है। ये भी हो सकता है कि दिल्ली में नाम तय हो गया है और इसकी जानकारी राज्य सरकार के पास भी न हो। लेकिन कयासों का दौर जारी है।

     

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं)

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    बकी बात: फिर राज्य में पार्टी की कमान तो नहीं मिल रही पूर्व सीएम को! https://hillmail.in/former-chief-minister-may-take-charge-of-state-unit-of-party-buzz-going-round/ https://hillmail.in/former-chief-minister-may-take-charge-of-state-unit-of-party-buzz-going-round/#respond Mon, 29 Jun 2020 00:44:18 +0000 https://hillmail.in/?p=17268
  • टी. हरीश
  • फिर राज्य की कमान तो नहीं मिल रही पूर्व सीएम को

    राज्य के पूर्व सीएम और पंजे वाली पार्टी के नेता जब भी राज्य सरकार के खिलाफ बयान देते हैं, राज्य में उन्हीं की पार्टी के नेताओं की घंटी बजने लगती है, क्योंकि बड़ी मुश्किल से तो पूर्व सीएम को मिलकर राज्य से बाहर कर दिल्ली की राजनीति में भेजा था, लेकिन जैसे ही वह बयान देते हैं, उनके राज्य में मौजूद विरोधियों को लगने लगता है कि नेता पता नहीं कब राज्य में वापस आ जाएं। वह राज्य में मौजूद नेताओं की तुलना में ज्यादा सरकार को घेरते रहते हैं। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के वर्चुअल रैली को संबोधित किया तो पूर्व सीएम मैदान में उतर आए। एक-एक कर उन्होंने कई तरह के सवाल कर दिए। अगले दिन अखबारों से लेकर टीवी तक छाए रहे। राज्य में मौजूद नेताओं समझ ही में नहीं आया कि ये आइडिया उन्हें क्यों नहीं आया। फिर बजने लगी घंटी कहीं..फिर राज्य में पार्टी की कमान तो नहीं मिल रही है पूर्व सीएम को।

    विपक्षी पार्टी के भीतर विपक्ष

    राज्य में विपक्ष की स्थिति ऐसी है कि कभी लगता ही नहीं कि राज्य में विपक्ष मौजूद है। स्थिति ऐसी है कि विपक्षी नेता आपस में ही इतना लड़ते रहते हैं कि लगता है जैसे सत्ता पक्ष और विपक्ष हो। अगर विपक्षी नेता इतना आक्रामक रूप सरकार के खिलाफ दिखाते तो पार्टी का पंजा लोगों के दिलों में राज तो कर ही लेता। पिछले दिनों राज्य में पंजे वाली पार्टी आपस में ही उलझ कर रह गई। पार्टी के युवराज के करीबी माने जाने वाले एक नेता जो राज्य से ताल्लुक रखते हैं, उन्होंने पार्टी की बड़ी नेता को सलाह दे डाली और उसके बाद दोनों में ज़ुबानी जंग शुरू हो गई। दिल्ली वाले नेता जी ने आरोप लगाया कि प्रदेश कांग्रेस के नेता सरकार को सही तरीके से नहीं घेर रहे हैं। फिर क्या था पार्टी की महिला नेता ने दिल्ली वाले नेता को नसीहत दे डाली और कह डाला कि वह पहले नेता बनकर दिखाएं। मामला इतना बढ़ गया कि प्रदेश अध्यक्ष को डैमेज कंट्रोल के लिए आगे आना पड़ा।

    पुराने कांग्रेसी हैं मंत्रीजी, क्यों न हावी हो परिवारवाद

    राज्य के एक कैबिनेट मंत्री और उनकी बहू आजकल राज्य में चर्चा है। असल में मामला ये है कि जिस विभाग के ससुर जी मंत्री उसी विभाग के एक बोर्ड की अध्यक्ष बहू को बना दिया गया। लेकिन ये मंत्री जी की मुसीबत बना जा रहा है। क्योंकि मामला अब कोर्ट में चला गया है। बोर्ड की स्थिति वैसे ही है, जैसे सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। क्योंकि बहू रानी का सिक्का न सिर्फ बोर्ड में चलता है बल्कि मंत्री जी के विभाग में भी उनका काफी दखल माना जाता है। किसी ने एक जनहित याचिका दाखिल कर कहा कि बोर्ड की योजनाओं का फायदा जनता को नहीं मिल रहा है। जबकि बहूरानी बोर्ड के पैसे का ‘दुरूपयोग’ कर रही हैं। लिहाजा शिकायत के बावजूद कभी कुछ नहीं हुआ, क्योंकि मंत्री जी पुराने कांग्रेसी हैं और परिवारवाद हावी होगा ही।

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    बकीबातः खौफ में पंजे वाली पार्टी के नेता, सुपर बॉस बनकर न आ जाए कोई… https://hillmail.in/congress-leaders-scare-of-superboss-in-uttarakhand/ https://hillmail.in/congress-leaders-scare-of-superboss-in-uttarakhand/#respond Mon, 15 Jun 2020 05:29:31 +0000 https://hillmail.in/?p=16774
  • टी. हरीश
  • खौफ में पंजे वाली पार्टी के नेता, सुपर बॉस बनकर न आ जाए कोई…

    ऐसे लगता है कि उत्तराखंड में सत्ताधारी भाजपा के लिए पूरा मैदान खाली है, क्योंकि राज्य में विपक्ष नाम की कोई चीज नहीं है। राज्य सरकार के सामने विपक्ष पूरी तरह नतमस्तक हो गया है। राज्य में जनता से जुड़े कई मुद्दे हैं लेकिन किसी दमदार नेता की कमी से विपक्ष सरकार के सामने इन मुद्दों को नहीं उठा पा रहा है। लिहाजा माना रहा है कि पंजे वाली पार्टीं आने वाले दिनों में सरकार के खिलाफ किसी मजबूत नेता को सामने ला सकती है। हालांकि पार्टी के मजबूत नेता दिल्ली चले गए हैं, लेकिन आलाकमान का क्या, कभी भी कोई फैसला ले सकता है। लिहाजा पार्टी के नेताओं में इस बात का खौफ है कि बड़ी मुश्किल से तो नेताजी को दिल्ली भेजा था। लेकिन कहीं ऐसा न हो जाए कि आने वाले दिनों में वह सुपर बॉस बनकर लौट आएं।

    कांग्रेस के छपास प्रतापी

    उत्तराखंड में कांग्रेस के एक नेता है, जिनसे राज्य के ज्यादातर पत्रकार परेशान हैं, क्योंकि इनके छपास रोग के कारण अकसर ये पार्टी को मुश्किल में डाल देते हैं। इनके आइडिया के तो क्या कहने। कभी कांग्रेस सरकार में राज्यमंत्री रहे इन प्रतापी को बस एक छोटा से मुद्दा मिलना चाहिए। बस फिर क्या पूरी कहानी बनाकर ये पत्रकारों को फोन कर ब्रेकिंग देते हैं और कहते हैं ये खबर सिर्फ आपको बता रहा हूं। लेकिन राज्य का शायद कोई ही पत्रकार हो जिसे ये प्रतापी छपास के रोगी फोन न करते हों। इनका छपास का रोग ऐसा है कि राज्य सरकार के हर बयान पर ये प्रेस रिलीज तैयार कर लेते हैं और कोरोना संकट में व्हाट्सअप और मेल के जरिये दिल्ली, देहरादून से जारी कर देते हैं। फिलहाल इनसे राज्य के पत्रकार भी परेशान हैं।

    कोरोना संकट में कैसे चलेगी चाय पानी

    पिछले दिनों राज्य सरकार ने कोरोना संकट को देखते हए फैसला किया कि सचिवालय में बाहरी लोगों का प्रवेश बंद किया जाए। सरकार ने तो फरमान जारी कर दिया है। लेकिन सरकार के इस फरमान से सबसे ज्यादा दिक्कत सचिवालय के कर्मचारियों को हो गई है। खासतौर से निचले तबके के कर्मचारियों को। जिनके एक सलाम से बाहर से आने वाले साहब लोग चाय पानी की व्यवस्था कर देते हैं। लेकिन सचिवालय में बाहरी लोगों का प्रवेश बंद होने से सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं का हो रहा है। पिछले दिनों ही एक बड़े साहब के मुंह लगे कर्मचारी से किसी ने पूछ ही लिया कैसा चल रहा तो उन्होंने बड़े दुख के साथ कहा, कोरोना संकट में चाय पानी नहीं चल रही है।

    कोरोना ने चलाई विभागों पर कैंची

    पिछले दिनों सरकार ने राज्य में तैनात अफसर के विभागों पर कैंची चला दी। अफसरों को राज्य के मुखिया का करीबी माना जाता है और उनके पास जिम्मेदारियां भी काफी थीं। नौकरशाही में कहा जाता है कि जितने ज्यादा विभाग होते हैं, उतना ही अफसर को ताकतवर माना जाता है। अगर विभागों में कटौती हो जाए तो कई तरह के रास्ते बंद हो जाते हैं और चर्चाएं भी होती हैं कि साहब का रूतबा कम हो गया है। लेकिन अफसर अब क्या कहें, मुखिया ने तो रूतबा कम कर ही दिया। लिहाजा अब साहब कह रहे हैं कि कोरोना संकट ने कैंची चलाई है इसलिए विभागों की जिम्मेदारी कम हुई है।

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    बकीबात: बदलेगा नौकरशाही का मुखिया, साधने को शुरू हुई परिक्रमा https://hillmail.in/new-chief-secretary-will-take-charge-soon-in-uttarakhand/ https://hillmail.in/new-chief-secretary-will-take-charge-soon-in-uttarakhand/#comments Fri, 05 Jun 2020 10:19:39 +0000 https://hillmail.in/?p=16331
  • टी. हरीश
  • बदलेगा नौकरशाही की मुखिया, साधने को शुरू हुई परिक्रमा

    राज्य में जल्द ही नौकरशाही का मुखिया बदल जाएगा। मौजूदा चीफ सेक्रेटरी रिटायर हो जाएंगे और नए इस पद पर नियुक्त होंगे। चर्चा है कि वरीयता वाले ही इस पद पर नियुक्त होंगे। लिहाजा अब उन्हें साधने के लिए परिक्रमा शुरू हो गई है। कोई राज्य से तो कोई जिले के जरिये उन्हें साधने की कोशिश कर रहा है तो कोई भाषा से। आखिर हो भी क्यों ना, उन्हें इस पद पर लंबी यात्रा करनी है। कहा भी जाता है कि जंगल में रहना है तो शेर को सलाम करना जरूरी होता है। फिलहाल कुछ लोगों ने तो घर के नौकरों से भी जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया है, तो कुछ ने करीबी और पुराने लोगों से, क्योंकि इस महीने के अंत में बदलाव होगा और अभी से परिक्रमा करनी शुरू कर ली तो मलाईदार पद भी मिल जाएगा।

    कोरोना संकट हुआ लॉक तो विपक्ष हुआ डाउन

    राज्य में विपक्षी दल कोरोना लॉकडाउन में डाउन हो गए हैं। हालांकि उनके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। लेकिन राज्य में इसकी आवाज नहीं सुनाई दे रही है। राज्य में फिलहाल चुनाव भी दो साल बाद होने वाले हैं। लिहाजा पंजे वाले विपक्षी दल के नेताओं में जोश नहीं दिख रहा है। जो सत्ता में रहते हुए वह दिखाते हैं। हर कोई दिशाहीन और दशाहीन है । बस विपक्षी दल एक प्रेस रिलीज छापकर अपनी खानापूर्ति कर लेते हैं। गर किसी से कहें कि भैजी सरकार के खिलाफ कुछ तो बोलो तो कहते हैं, भाई हम क्या बोले, सत्ता में रहते हुए जिन्होंने मलाई खाई वही चुप हैं, तो हम क्या बोले। हमें कुछ नहीं मिला। हमारी दशा और दिशा आपसे ज्यादा कौन जान सकता है। तभी किसी आवाज दी कोरोना संकट में विपक्षी भी डाउन हो गया है।

    क्वारंटीन में कैबिनेट सुनेगा प्रवचन मंत्री का प्रवचन

    पिछले तीन महीने से पूरी दुनिया चिल्ला-चिल्लाकर कह रही है कि कोरोना किसी अमीर-गरीब, छोटे बड़े, साधु संत, बाबा और प्रवचन देने वालों में फर्क नहीं करती है। लेकिन उत्तराखंड के प्रवचन मंत्री कहां किसी की सुनने वाले थे। उनके कारण पूरी कैबिनेट ही मुसीबत में आ गई। प्रवचन देने की पुरानी आदत है और जब कोई नहीं मिलता है, तो आसपास के लोगों को प्रवचन सुनाने के लिए बुला लेते हैं। उनके इस शौक के कारण पूरी सरकार कोरोना संक्रमण से बाल-बाल बची है। हालांकि प्रवचन मंत्री को क्वारंटीन में कुछ दिन के लिए कैबिनेट के भक्त तो मिल गए, जिन्हें वो अपने प्रवचनों से कोरोना से मुक्ति का मार्ग बताएंगे।

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