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अतुल्य उत्तराखंड – Hill Mail https://hillmail.in Fri, 03 May 2024 17:40:37 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://i0.wp.com/hillmail.in/wp-content/uploads/2020/03/250-X-125.gif?fit=32%2C16&ssl=1 अतुल्य उत्तराखंड – Hill Mail https://hillmail.in 32 32 138203753 जानिए उत्तराखंड के खमसिल बुबु मंदिर का रहस्य https://hillmail.in/mystery-of-khamsil-bubu-temple-of-uttarakhand/ https://hillmail.in/mystery-of-khamsil-bubu-temple-of-uttarakhand/#respond Fri, 03 May 2024 12:12:18 +0000 https://hillmail.in/?p=49201 क्या है इतिहास?

कहते हैं आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले तराई के कोई सिद्ध पुरुष या कोई घुमक्क्ड़ अल्मोड़ा आये। और अल्मोड़ा आकर यहाँ की आबो -हवा बहुत पसंद आई। और वे यही बस गए। बुबु को तम्बाकू गुड़गुड़ाना अच्छा लगता था। वे बीड़ी के भी शौकीन थे।

मरने के बाद किया परेशान

कहते हैं उनकी मृत्यु के बाद उनकी आत्मा ने स्थानीय लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। लोगो ने दर के मारे उनकी पूजा अर्चना शुरू की और जहाँ वे रहते थे वहां एक छोटा सा मंदिर बना दिया। और उस मंदिर में उनके हुक्के को रख दिया था। तबसे उनकी पूजा वहां खमसिल बुबु के रूप में होने लगी। लोग उन्हें श्रद्धावश बीड़ी ,तम्बाकू चढ़ाने लगे।

लोगों की करते है रक्षा

कहते हैं बुबु अल्मोड़ा में स्थानीय लोगो की भूत प्रेत या ऊपरी छाया से रक्षा करते हैं। बच्चो को नजर दोष लगने पर यहाँ लाकर उनकी नजर उतारी जाती है। बार -त्योहारों को यहाँ पूजा होती है ,बुबु को खिचड़ी और उनका प्रिय तबाकू चढ़ाया जाता है। अनिष्ट से रक्षा हेतु बुबु के नाम की भेंट रखी जाती है।

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रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर पूरे देश में मनाई जा रही है दीपावली, सीएम धामी ने हरकीपैड़ी में दीपोत्सव व विशेष आरती में लिया हिस्सा https://hillmail.in/cm-dhami-took-part-in-deepotsav-and-special-aarti-in-harkipaidi/ https://hillmail.in/cm-dhami-took-part-in-deepotsav-and-special-aarti-in-harkipaidi/#respond Mon, 22 Jan 2024 16:06:57 +0000 https://hillmail.in/?p=47878 इस शुभ मौके पर आज पूरे देश में दीपावली मनाई जा रही है लोगों ने खुशी मनाते हुए अपने घरों को दिये जलाये और पटाके फोड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अयोध्या में श्रीराम लला विग्रह के दिव्य, भव्य, नव्य मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन एवं गौरवशाली शुभ अवसर पर विशेष रामनाम ध्वजा से सजे हुये हरकीपैड़ी में आयोजित दीपोत्सव व विशेष आरती कार्यक्रम में प्रतिभाग किया।

उन्होंने हरकीपैड़ी पहुंचकर बजाओ ढोल स्वागत में मेरे भगवान आये हैं….., मंगल भवन अमंगल हारी, अयोध्या आये मेरे प्यारे राम बोलो जै-जै श्रीराम आदि श्रीराम भजनों के बीच देश तथा प्रदेश की समृद्धि की कामना करते हुये पूजा-अर्चना तथा विशेष आरती की।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जैसे ही दीपोत्सव में दीप प्रज्ज्वलित करना प्रारम्भ किया, देखते ही देखते पूरी हरकीपैड़ी हजारों दीपकों की रोशनी से जगमगा उठी तथा सभी दिशायें पटाखों की ध्वनि तथा जय श्रीराम के उद्घोष से गुंजायमान हो गयी।
हरकीपैड़ी की दीपोत्सव तथा विशेष आरती की यह छटा देखकर श्रद्धालु तथा उपस्थित जन-समूह अपने आपको इस अप्रतिम क्षण का साक्षी मानकर धन्य तथा सौभाग्यशाली समझ रहे थे।

दीपोत्सव तथा विशेष आरती कार्यक्रम का आयोजन श्रीगंगा सभा द्वारा किया गया। महामंत्री श्रीगंगा सभा श्री तन्मय वशिष्ठ तथा पदाधिकारियों ने हरकीपैड़ी पहुंचने पर मुख्यमंत्री का भव्य स्वागत व अभिवादन किया तथा आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड, पूर्व केन्द्रीय शिक्षा मंत्री व सांसद हरिद्वार डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व कैबिनेट मंत्री व हरिद्वार नगर विधायक मदन कौशिक, रानीपुर विधायक आदेश चौहान, पूर्व विधायक संजय गुप्ता, जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेन्द्र डोभाल, मुख्य विकास अधिकारी प्रतीक जैन, अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) दीपेन्द्र सिंह नेगी, महामंत्री श्रीगंगा सभा तन्मय वशिष्ठ, उज्ज्वल पण्डित, सांसद प्रतिनिधि ओम प्रकाश जमदग्नि, भाजपा जिला अध्यक्ष संदीप गोयल, पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष डॉ जयपाल सिंह चौहान, उपाध्यक्ष विकास तिवारी, लव शर्मा, आशू चौधरी, संजय चोपड़ा, पूर्व मेयर मनोज गर्ग, साधू-सन्त, श्रद्धालुजन सहित सम्बन्धित पदाधिकारी एवं अधिकारीगण उपस्थित थे।

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आगंतुकों के आकर्षण का केंद्र बन रहा उत्तराखंड पवेलियन https://hillmail.in/uttarakhand-pavilion-is-becoming-the-center-of-attraction-for-visitors/ https://hillmail.in/uttarakhand-pavilion-is-becoming-the-center-of-attraction-for-visitors/#respond Tue, 21 Nov 2023 19:33:44 +0000 https://hillmail.in/?p=47185 उत्तराखण्ड दिवस समारोह को सम्बोधित करते हुए सौरभ बहुगुणा ने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि देवभूमि वासियों ने अपने अनुभव से देश-विदेश में राज्य को गौरवांवित किया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने राज्य को आगे बढ़ाने को लेकर जो सपना देखा है उसे साकार करने में हमें अपना योगदान देना चाहिए और मिलकर काम करना चाहिए।

उत्तराखण्ड राज्य की जो प्रतिभा-सामर्थ्य है उसे हम सबको एकत्रित होकर देश-विदेश के सामने प्रस्तुत करने का काम करें। सौरभ बहुगुणा ने प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘वन प्रोडक्ट वन डिस्ट्रिक्ट’ आह्वान की चर्चा करते हुए कहा कि दूरस्थ दुर्गम क्षेत्रों से आई हमारी मातृशक्ति व युवा साथियों ने स्टॉल लगाकर अपना सामर्थ्य दिखाया है।

कैबिनेट मंत्री ने कहा कि पिछले पौने दो साल में सरकार ने उत्तराखण्ड के उत्पादों, दुर्गम क्षेत्रों की मातृशक्ति को रोजगार से जोड़ने, किसानों की आय दोगुनी को लेकर नीतियां बनाई हैं। इसका लाभ मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में धरातल पर दिखाई दे रहा है। सौरभ बहुगुणा ने कहा कि उत्तराखण्ड के हमारे प्रवासी भाई-बहन राज्य के ब्राण्ड एम्बेसडर हैं और आप लोग उत्तराखण्ड के बाहर रहकर भी राज्य का नाम रोशन करते हैं और योगदान देते हैं।

उन्होंने चारधाम यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि इस बार रिकॉर्ड 55 लाख लोगों ने बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा की है। हाल ही में प्रधानमंत्री पिथौरागढ़ आए थे और जिस तरह से पूरी दुनिया ने नरेन्द्र मोदी को आदि कैलाश यात्रा करते हुए देखा इसके बाद अब अगली भव्य यात्रा कुमाऊं में होगी। आज प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में ऑल वेदर रोड़ से चारों धाम को जोड़ पाए हैं और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल नेटवर्क लगभग 60 प्रतिशत पूरा हो चुका है जब लोगों तक विकास पहुंचेगा तो लोग अपने गांवों में रहकर काम करेंगे, इससे पलायन की समस्या से निजात मिल पाएगी।

इस वर्ष उत्तराखण्ड पवेलियन में 36 स्टॉल लगाए गए हैं जिनमें हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, पौड़ी गढ़वाल, चम्पावत, चमोली और टिहरी जिलों के हस्तशिल्प व हथकरघा के अलावा राज्य पर्यटन, खादी बोर्ड और औद्योगिक बोर्ड के भी स्टॉल मौजूद हैं। उत्तराखण्ड हथकरघा व हस्तशिल्प विकास परिषद के अधीन हिमाद्रि ने भी स्टॉल लगाया है। इसके अतिरिक्त दिसम्बर माह में आयोजित होने वाले उत्तराखण्ड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की भी झलक देखने को मिल रही है।

पवेलियन में लगे स्टॉल में ऋषिकेश के स्टोन और पहाड़ों पर होने वाली जैविक दाल गहथ, उड़द, लोबिया, काली, सफेद भट, नौरंगी व तोर की अधिक मांग है। इसके अलावा अल्मोड़ा की सुप्रसिद्ध बाल मिठाई दिल्ली में रहने वाले उत्तराखण्ड के निवासियों के अलावा दूसरे राज्यों के लोगों को खूब लुभा रही है और इसे लोग बढ़-चढ़कर खरीद रहे हैं। कपड़ों के स्टॉल में प्रमुख रूप से हरिद्वार की लोई शॉल, ऊनी कपड़े आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं और लोहाघाट की लोहे की कढ़ाई और अन्य वस्तुएं भी उपलब्ध हैं।

इस वर्ष भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला-2023 की थीम “वसुधैव कुटुंबम् रखी गई है। इस अवसर पर कार्यक्रम में स्थानिक आयुक्त उत्तराखण्ड अजय मिश्रा, संस्कृति निदेशक बीना भट्ट, मीडिया कोऑर्डिनेटर मदन मोहन सती, विशेष कार्याधिकारी (राज्य सम्पति) रंजन मिश्रा, पैवेलियन निदेशक प्रदीप नेगी आदि उपस्थित थे।

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सीएम धामी ने की सीएम योगी से मुलाकात, कई विषयों पर की गई चर्चा https://hillmail.in/cm-dhami-met-cm-yogi-discussed-many-topics/ https://hillmail.in/cm-dhami-met-cm-yogi-discussed-many-topics/#respond Tue, 31 Oct 2023 15:55:08 +0000 https://hillmail.in/?p=46871 इस मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जनपद हरिद्वार के असिंचित क्षेत्रों हेतु गंग नहर से 665 क्यूसेक जल सिंचाई हेतु उत्तराखण्ड राज्य को उपलब्ध कराये जाने का पुनः अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जनपद हरिद्वार के तीन विकासखण्डों के 74 गांवों की 18280 हैक्टेयर असिंचित भूमि में सिंचाई सुविधा प्रदान करने हेतु 35 किमी लम्बी इकबालपुर नहर प्रणाली तथा कनखल एवं जगजीतपुर नहर की क्षमता विस्तार किया जाना प्रस्तावित है। प्रश्नगत क्षेत्र में सिंचाई हेतु कोई नदी व अन्य जल श्रोत उपलब्ध नहीं हैं। जिस कारण गंग नहर से 665 क्यूसेक पानी उत्तराखण्ड को दिया जाना आवश्यक है।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि अधीक्षण अभियन्ता गंग नहर संचालन मंडल, उ.प्र. सिं.वि., मेरठ द्वारा गंग नहर से 665 क्यूसेक जल मात्र खरीफ फसल हेतु उत्तराखण्ड राज्य को उपलब्ध कराये जाने हेतु प्रारम्भिक फिजीबिलिटी रिपोर्ट प्रेषित की गयी थी एवं फिजीबिलिटी रिपोर्ट में अवगत कराया गया था कि 665 क्यूसेक जल खरीफ फसल हेतु उपलब्ध कराया जा सकता है, और रबी की फसल की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध नहीं है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य द्वारा टिहरी बांध से मिलने वाले 4879 क्यूसेक अतिरिक्त जल में से 665 क्यूसेक जल की मांग की गयी है, वह न्यूनतम एवं औचित्यपूर्ण है, जो टिहरी बांध से उपलब्ध होने वाले अतिरिक्त जल का 13.5 प्रतिशत मात्र है तथा उत्तर प्रदेश की प्रस्तावित उपयोगिता 4000 क्यूसेक जल के पश्चात् अवशेष उपलब्ध जल से भी कम है, जिस पर सहमति उ.प्र. शासन स्तर पर लंबित है। इस संबंध में मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से उत्तराखण्ड राज्य की प्रस्तावित सिंचाई योजनाओं हेतु 665 क्यूसेक पानी की आपूर्ति उत्तरी गंग नहर से किये जाने के सम्बन्ध में स्वीकृति प्रदान किये जाने का अनुरोध किया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के दौरान उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश राज्य के मध्य आस्तियों एवं दायित्वों के विभाजन के सम्बन्ध में भी चर्चा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि जनपद हरिद्वार में सिंचाई विभाग की 615.836 हैक्टेयर भूमि एवं 348 सं. आवासीय भवन तथा 167 सं. अनावासीय भवन उत्तराखण्ड राज्य को हस्तान्तरण किये जाने हेतु दोनो मुख्य सचिवों द्वारा संयुक्त सहमति व्यक्त की गयी है। इसी प्रकार ‘‘जनपद ऊधमसिंहनगर की कुल 332.74 है भूमि में से 322.00 है. नानक सागर बांध डूब क्षेत्र की भूमि से उत्तराखण्ड राज्य के सहयोग से अतिक्रमण हटाये जाने तथा अवशेष 10.748 है. भूमि उत्तराखण्ड राज्य को उपलब्ध कराये जाने के संबंध में शीघ्र निर्णय लिये जाने की अपेक्षा की।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि दोनों राज्यों के अधिकारियों द्वारा बनबसा स्थित भूमि का पुनः सर्वेक्षण कर कन्दूर मैप एवं प्लान तैयार कर लिया गया है तथा उस पर विभिन्न प्रकार की भूमि का अंकन भी कर लिया गया है। सिंचाई विभाग उत्तराखण्ड के अधिकारियों द्वार कुल 1410.55 है भूमि में से 162.06 हैक्टेयर भूमि को हस्तान्तरण हेतु उपयुक्त पाया गया है। इन सभी बिंदुओं पर दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ हुई बैठक में सैद्धान्तिक सहमति प्राप्त हो चुकी है। मुख्यमंत्री ने अनुरोध किया कि जिन परिसम्पत्तियों के उत्तराखण्ड राज्य को हस्तान्तरण पर सहमति हो गयी है, उनके हस्तान्तरण के लिये शीघ्र शासनादेश निर्गत किया जाये।

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नैनीताल के मशहूर फोटोग्राफर, पर्वतारोही और ट्रैवलर अमित साह का आकस्मिक निधन https://hillmail.in/nainitals-famous-photographer-mountaineer-and-traveler-amit-shah-passes-away-suddenly/ https://hillmail.in/nainitals-famous-photographer-mountaineer-and-traveler-amit-shah-passes-away-suddenly/#respond Mon, 18 Sep 2023 08:59:38 +0000 https://hillmail.in/?p=46005 नैनीताल के मशहूर फोटोग्राफर अमित साह का 43 वर्ष की उम्र में आकस्मिक निधन हो गया। बताया जा रहा है कि रविवार देर रात उनकी अचानक तबीयत ख़राब हो गई। उन्हें शहर के ही एक अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

बताया जा रहा है कि उनका निधन हार्ट अटैक के कारण हुआ है। उनके निधन की खबर सुनकर चित्रकारों, पत्रकारों और उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ पड़ी है।

साह प्रख्यात फोटोग्राफर के साथ ही पर्वतारोही और ट्रैवलर भी थे। उन्होंने एस्ट्रो ट्रेल को नई पहचान दी थी। वह जाने माने यू ट्यूबर भी थे और उनकी एक ही पोस्ट पर चार मिलियन तक व्यूज आते थे। फेसबुक, इंस्टाग्राम उनके हजारों फॉलोवर्स थे।

देश-विदेश तक अमित साह की फोटोग्राफी के चर्चे रहते थे। उनकी खींची गई फोटोग्राफी राज्य के तमाम विभागों के कैलेंडर में देखने को मिलती थी।

उनकी खींची हुई कई फोटोग्राफी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जगह मिल चुकी है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2019 में उनके द्वारा 2017 में खींची गई फोटो को इंटरनेशनल माउंटेन डे के अवसर पर बनाए गए स्पेशल पोस्टर में भी जगह दी गई थी।

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वाइस एडमिरल संदीप नैथानी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी से की मुलाकात https://hillmail.in/vice-admiral-sandeep-naithani-met-cm-pushkar-singh-dhami/ https://hillmail.in/vice-admiral-sandeep-naithani-met-cm-pushkar-singh-dhami/#respond Fri, 28 Jul 2023 15:31:52 +0000 https://hillmail.in/?p=44894 वाइस एडमिरल संदीप नैथानी ने सचिवालय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से शिष्टाचार भेंट की। इस बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री धामी ने एडमिरल संदीप नैथानी से कहा कि भारतीय नौसेना में उत्तराखंड के युवाओं को अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व मिले इसके लिए कोशिश की जानी चाहिए। इसके अलावा भी कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई।

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले वाइस एडमिरल संदीप नैथानी ने 01 जून 2021 को भारतीय नौसेना के चीफ ऑफ मैटेरियल का पदभार ग्रहण किया था।

इससे पहले वह युद्धपोत उत्पादन और अधिग्रहण नियंत्रक के पद पर सेवा दे रहे थे। एक फ्लैग ऑफिसर के रूप में एडमिरल नैथानी ने नौसेना मुख्यालय में मैटेरियल (आधुनिकीकरण) के सहायक प्रमुख के रूप में भी कार्य किया है।

वह नौसेना के प्रमुख विद्युत प्रशिक्षण प्रतिष्ठान आईएनएस वलसुरा की भी कमान संभाल चुके हैं। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला पुणे से स्नातक वाइस एडमिरल संदीप नैथानी 01 जनवरी 1985 को भारतीय नौसेना में कमीशन हुए थे।

वह नौसेना के सबसे वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी के रूप में जहाजों, पनडुब्बियों के लिए सभी प्रकार के उपकरणों और हथियार प्रणालियों के चयन, प्रेरण और रखरखाव से संबंधित सभी पहलुओं के प्रभारी रहे हैं।

वाइस एडमिरल नैथानी साढ़े तीन दशकों के अपने शानदार नौसैनिक करियर के दौरान वह विभिन्न चुनौतीपूर्ण पदों पर रहे हैं।

उन्होंने विमान वाहक पोत ’विराट’ पर विभिन्न क्षमताओं के साथ सेवा दी है। वह मुंबई और विशाखापत्तनम के नौसेना डॉकयार्ड में, नौसेना मुख्यालय के स्टाफ, कार्मिक और मैटेरियल शाखाओं में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।

वाइस एडमिरल संदीप नैथानी पौड़ी गढ़वाल के कल्जीखाल ब्लॉक के नैथाणा गांव के मूल निवासी हैं।

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केदारनाथ मंदिर के अंदर मोबाइल ले जाने पर लगेगा प्रतिबंध, मंदिर समिति के अधिकारियों ने पुलिस को लिखा पत्र https://hillmail.in/there-will-be-a-ban-on-carrying-mobile-inside-kedarnath-temple-temple-committee-officials-wrote-a-letter-to-the-police/ https://hillmail.in/there-will-be-a-ban-on-carrying-mobile-inside-kedarnath-temple-temple-committee-officials-wrote-a-letter-to-the-police/#respond Wed, 05 Jul 2023 05:57:59 +0000 https://hillmail.in/?p=44269 केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम में देश विदेश से श्रद्वालु बड़ी संख्या में दर्शनों के लिए पहुंचते हैं इसमें कई भक्त मोबाइल से फोटो खीचने के लिए प्रतिबंधित गर्भगृह का भी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। जिससे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही है। केदारनाथ धाम में भी देश विदेश से आ रहे यू-ट्यूबर-ब्लॉगर द्वारा हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया जा रहा है। ऐसे वीडियो पर अंकुश लगाने के लिए मंदिर समिति मंदिर के अंदर मोबाइल पर पूर्ण प्रतिबंध लगायेगी। इसके लिए जो भी जरूरी कार्रवाई होगी वह की जा रही है।

वहीं मंदिर परिसर में भी यूट्यूबर द्वारा बनाए जा रहे आपत्तिजनकर वीडियों पर रोक लगाने के लिए मंदिर समिति के कार्याधिकारी ने पुलिस को पत्र देकर इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है।

इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के लिए हालांकि वर्तमान में मंदिर समिति दर्शन के लिए मंदिर के अंदर जाने वाले भक्तों के मोबाइल स्वीच आँफ करने के बाद ही प्रवेश दे रही है। लेकिन इसके बावजूद वीडियो वायरल हो रहे हैं। अब तक केदारनाथ मंदिर के अंदर कई वीडियों सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं, जिससे कई बार विवाद की स्थिति भी पैदा हो गई है।

मंदिर समिति के कार्याधिकारी आरसी तिवारी ने मंदिर परिसर में लगातार धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले वीडियों सोशल मीडिया पर वायरल होने को लेकर पुलिस को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं के विपरीत यूट्यूब शॉर्ट, वीडियो, इंस्टाग्राम रीलस बनाई जा रही हैं, जिस कारण यात्रा पर आए तीर्थयात्रियों के साथ देश-विदेश में रहने वाले हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही है तथा इस सम्बन्ध में उनकी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं।

इन सब बातों को देखते हुए अब मंदिर के अंदर सोशल मीडिया पर वीडियो बनाने वालों पर नजर रखी जायेगी जो लोग भी मंदिर के गर्भगृह का वीडियो बनायेंगे उन पर उचित कार्रवाई की जायेगी। ताकि लोग इस प्रकार के वीडियो नहीं बना पायें और जिससे कि धार्मिक भावना को ठेस भी नहीं पहुंचेगी।

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घर की रसोई में कभी बादशाहत हुआ करती थी कांसे के बर्तनों की https://hillmail.in/once-upon-a-time-there-used-to-be-a-kingdom-of-bronze-utensils-in-the-kitchen-of-the-house/ https://hillmail.in/once-upon-a-time-there-used-to-be-a-kingdom-of-bronze-utensils-in-the-kitchen-of-the-house/#respond Thu, 29 Jun 2023 10:01:10 +0000 https://hillmail.in/?p=44171 भुवन चंद्र पंत

पांच-छः दशक पहले तक पीतल, तांबे और कांसे के बर्तनों की जो धाक घरों में हुआ करती, उससे उस घर की सम्पन्नता का परिचय मिलता। रईस परिवारों में चांदी के बर्तनों की जो अहमियत थी, सामान्य परिवारों में कांसे के बर्तन को वही सम्मान दिया जाता। पानी के लिए तांबे की गगरी तो हर घर की शान हुआ करता। तब ’आर ओ’ व ’वाटर फिल्टर’ जैसे उपकरण नहीं थे और पानी की शुद्धता के लिए तांबे के बर्तनों का प्रयोग ही एकमात्र विकल्प था। सामान्य परिवारों में कलई की हुई पीतल की थालियां आम थी, जब कि कांसे की थालियां व अन्य बर्तन प्रत्येक घर में सीमित संख्या में होते और इन्हें सहेज कर जतन से रखा जाता।

घर में कांसे के एक दो ही बर्तन होते तो घर के मुखिया को ही कांसे की थाली में भोजन परोसा जाता। पीतल की कलई युक्त थालियों का कुछ समय प्रयोग करने के बाद उनकी कलई उतर जाती और पीतल का असली रंग उभर आता। पीतल के कलई वाले बर्तनों में अम्लीय खाना (दही, झोली आदि) खाने पर इनकी कलई उतरने के साथ इनमें खाना खाने पर पीतल की महक (पितवैन) आती जो सारे खाने को बेस्वाद कर देती, जब कि कांसा अम्लीय पदार्थों के साथ मिलकर रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं करता। शादी आदि मौंकों पर दहेज व उपहार में पीतल, तांबे व कांसे के बर्तन देने का ही चलन था।

दहेज के बर्तन इन्हें रखने के लिए बने एक विशेष जाल में भेजे जाते। दुल्हन मायके से आने वाले बर्तनों की संख्या बताने से नहीं थकती कि मेरे दहेज में इतनी संख्या मे थाली, परात और गगरी आई थी। दहेज में रूपये-पैसों का चलन नहीं के बराबर था और गांवों में अखबार में लपेटी एक थाली को बगल में दबाकर ले जाते हुए लोग देखे जा सकते थे, यह जानने के लिए पर्याप्त था कि अमुक व्यक्ति किसी शादी समारोह में जा रहा है। नजदीकी रिश्तेदार भी भेंट स्वरूप बर्तन ही देते थे, वह अपनी सामर्थ्यानुसार परात अथवा तांबे की गगरी दहेज में भेंट करते। गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले नव बर-बधू को गृहस्थी का सामान जुटाने की यह अनूठी पहल थी।

कांसे के बर्तनों की घरों में इस कदर बादशाहत थी, कि बर्तनों का नामकरण ही इस धातु के जोड़कर कर दिया गया। हमारे कुमाऊं में लोटे को ’कसिन’ बोला जाता था, जिसका नाम कांसे की होने से ही पड़ा लगता है। शुरू मे कांसे के लोटे को ही कसिन नाम दिया गया, बाद में अन्य धातुओं के लोटे ने भी यह नाम सहज स्वीकार कर लिया। इसी तरह सामाजिक उत्सवों में दाल-भात का चलन आम था और दाल प्रायः कसेरे में बनाई जाती, जो कांसे के बने होते थे। जाहिर है कसेरा नाम भी कांसे से लिया गया है। कांसे का तब कितना चलन रहा होगा कि बर्तन बनाने वाले जो तब कांसे के बर्तन बनाते होंगे उनको ही कसेरा नाम से संबोधित किया जाने लगा, लेकिन बाद में हर बर्तन व्यवसायी के लिए कसेरा शब्द आम चलन में हो गया।

कुमाऊं में शादी समारोहों के लिए एक आम शब्द चलन में है – भात- बरात। तब शादी समारोहों का मुख्य भोजन दाल-भात ही हुआ करता था। भात तांबे अथवा पीतल की बड़ी-बड़ी पतेलियों में बनता जब कि दाल के लिए कांसे का पतीला ही उपयुक्त माना जाता। कसेरा (कांसे का बड़े आकार का मोटे तले वाला पतीला) बनाने के पीछे यहीं कारण रहा होगा कि कांसे में ताप को अधिक समय तक संरक्षित करने का गुण है, इसे खड़ी दालों को गलाने में मुफीद माना जाता है। तब आज की तरह प्रेशर कूकर तो थे नहीं, कांसे के बर्तन ही मोटी दाल गलाने के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते थे। इनमें बनी दालें सुस्वादु होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी अनुकूल मानी जाती थी। ये कसेरे आकार में बड़े होने के साथ-साथ इतने वजनदार होते हैं कि दो-दो आदमी मिलकर इनको चूल्हे से उतार पाते थे। आज भी पहाड़ के सुदूर गांवों में सार्वजनिक उत्सवों में कहीं कहीं ये कसेरे यदा-कदा देखने को मिल जाते हैं।

कांसा एक मिश्रित धातु है। जो तांबा व रांगा को मिलाकर तैयार किया जाता है, जिसमें तांबे व रांगे का अनुपात लगभग 80 और 20 के लगभग होता है। पीतल अथवा तांबे के समान इसमें लोच न होकर ज्यादा कठोर होता है। कांसे को संक्रमण अवरोधी तथा रक्त व त्वचा रोगों से बचाव करने के लिए जाना जाता है, बुद्धि व मेधावर्धक के साथ यकृत व प्लीहा संबंधित विकारां में भी इसे फायदेमन्द बताया गया है। गाय के घी के साथ कांसे के बर्तन को पैर के तलवों में रगड़ने से त्वचा व रंक्त जनित विकारों के उपचार में भी प्रयोग में लाया जाता है।

कांस्य अथवा कांसा एक पवित्र धातु मानी जाती है और पूजा के पात्रां तथा मंदिर की घंटियों व मूर्तियों के निर्माण में भी इसका उपयोग किया जाता है। कांसे की खनकदार आवास कर्णप्रिय, स्निग्ध व अन्य धातुओं की अपेक्षा ज्यादा तेज गूंजती है।

कांसे की थाली का भोजन पात्र के अलावा और भी कई उपयोग थे। जब गांवों में मवेशी कहीं खो जाते तो कांसे की थाली में पानी भरकर उसके बीचों बीच एक बूंद सरसों का तेल डाला जाता। सरसों के तेल की बॅूद जिस दिशा को जाती, पशु की तलाश उसी दिशा की ओर की जाती थी। यदि पानी में तेल की बूंद फट जाय तो खोये हुए पशु की मृत्यु का सूचक माना जाता। यह वैज्ञानिक आधार पर भले खरा न उतरे, लेकिन यही लोकविश्वास पर विश्वास करना उस समाज मजबूरी थी।

हमारे बुजुर्ग भले ही पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन ये जानते थे कि सूर्यग्रहण को नंगी आंखों से देखने पर आंखों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए बच्चे जब सूर्य ग्रहण देखने की जिद करते तो कांसे की थाली में पानी भरकर सूर्य को सीधे न देखकर कांसे की थाली में पानी पर पड़ने वाले सूर्य ग्रहण के प्रतिबिम्ब पर सूर्यग्रहण की छवि को देखा जाता।

पीलिया जैसे रोग का उपचार भी गांव-देहातों में झाड़कर ही किया जाता था। पीलिया झाड़ने के लिए भी कांसे के बर्तन में सरसों का तेल भरकर इसी में पीलिया झाड़ा जाता और तेल का पीलापन बढ़ना पीलिया के बाहर निकलने संकेत बताया जाता। धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी कांसे का बर्तन पवित्र माना जाता है।

आज स्टेनलैस स्टील, प्रेशर कूकर आदि के चलन से कांसे के बर्तनों का उपयोग अतीत की बात हो गयी है। चमक-धमक और दौड़-भाग भरी जिन्दगी में कांसा भले चलन से बाहर होता जा रहा है, लेकिन इसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।

(लेखक भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल से सेवानिवृत्त हैं)

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उत्तराखंड की लोक संस्कृति से जुडे पौराणिक वाद्ययंत्र लुप्त होने की कगार पर https://hillmail.in/mythological-musical-instruments-associated-with-the-folk-culture-of-uttarakhand-are-on-the-verge-of-extinction/ https://hillmail.in/mythological-musical-instruments-associated-with-the-folk-culture-of-uttarakhand-are-on-the-verge-of-extinction/#respond Sat, 27 May 2023 08:33:45 +0000 https://hillmail.in/?p=43644 वाद्ययंत्रों का किसी भी संस्कृति से बहुत गहरा नाता रहा है। वाद्ययंत्रों के बिना संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। वाद्ययंत्र ही हैं जो अपने आधार से संगीत की आत्मा को दर्शाते हैं। उत्तराखंड का पर्वतीय अंचल पारंपरिक वाद्ययंत्रों का खजाना रहा है, जिस बदौलत इस अंचल का लोकगीत-संगीत पारंपरिक तौर पर सम्रद्ध व विविधता से ओत-प्रोत रहा है। विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों से निकलने वाले निराले संगीत में अंचल के कौतुहल से भरे प्रकृति के विभिन्न रूपों का वास रहा है। लोकगीत-संगीत प्रकृति से जुडा रहा है। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में संगीत की ताल को ’चाल’ कहा जाता है। प्रचलित तालौ में कुछ तालै ऐसी हैं जो सम्पूर्ण विश्व में कही नहीं है।

उत्तराखंड की सम्रद्ध लोक परंपरा में विभिन्न प्रकार के पौराणिक वाद्ययंत्रों की फेहरिस्त रही है। प्राचीनकाल से ही उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के मांगलिक, मनोरंजन, रीति-रिवाजों, युद्ध व संचार कार्यो में अनेकों प्रकार के वाद्ययंत्र बजाये जाते रहे हैं।  धातुओं से निर्मित वाद्ययंत्रों में मंजीरा, बिणाई, करताल, चिमटा, थाली, झाल, घुंघरू, खजडी, घण्टा, झांज, मोठंग, घन या घाना, तुरही, नागफणी, भन्कोरा, रणसिंहा, झंकोर। लकड़ी व चर्म से निर्मित वाद्ययंत्रों में ढोलकी, हुड़का, डौर, साइयां, तबला, मशकबीन। धातु व चर्म से निर्मित नगाडा, ढोल, दमाउ, डफली। बांस व रिंगाल से निर्मित बांसुरी व अल्गोजा तथा तार या तांत वाद्ययंत्रों में एकतारा, सारंगी, दो तारा, वीणा मुख्य रहे हैं। अन्य वाद्ययंत्रों में गिटार, आरगन, हार्मोनियम व शंख की भी महत्ता निरंतर बनी रही है। उक्त वाद्ययंत्रों को मुख्य रूप से चार वर्गो मे वर्गीकृत किया गया है।

उत्तराखंड की लोकसंस्कृति में विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों मे विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के अनुरूप भावनाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता पायी जाती है। लोकगीत-संगीत में ताल, लय और स्वरों को वाद्ययंत्र ही नियंत्रित करते हैं। विगत कुछ दशकों से उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल से निरंतर हो रहे पलायन। आधुनिकता की ओर बढते लोगों के कदम तथा परंपरागत चीजां के प्रति युवा पीढी का मोह कम होने से पौराणिक वाद्ययंत्रों के अस्तित्व पर विलुप्ति का खतरा मंडराना आरंभ हो चुका था। समय बीतते धीरे-धीरे उत्तराखंड के वाद्ययंत्रों की श्रृंखला पूरी तरह से विलुप्त होने के कगार पर खडी हो चुकी है। कुछ वाद्ययंत्र या तो लुप्त होने की कगार पर हैं या लुप्त हो चुके हैं।

आधुनिकता, भू-मंडलीकरण व डिजिटलकरण के इस दौर में अधिकतर पौराणिक व पारंपरिक वाद्ययंत्रों की जगह हल्के और आधुनिक यंत्रों व वाद्ययंत्रों जैसे कम्प्यूटर, की-बोर्ड और सिंथेसाईजर ने ले ली है। एक ही यंत्र से सितार, संतूर, तबला तथा दर्जनों अन्य वाद्ययंत्रों की धुन बजाई जा सकती है। गीत-संगीत में रुचि रखने वालों को पाश्चात्य संगीत के वाद्ययंत्र गिटार, की-बोर्ड और ड्रम्स ज्यादा आकर्षित करने लगे हैं। तेजी से डिजीटल होते समय में संगीत भी डिजीटल होता चला गया है। ऐसी परिस्थिति में पौराणिक वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल कम होने तथा बदलती चाहत के कारण उक्त वाद्ययंत्रों की मांग और उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पडा है। पौराणिक वाद्ययंत्रों का संरक्षण न होने से उक्त वाद्ययंत्र चलन से बाहर होते चले गए हैं, उनका अस्तित्व ही दाव पर लग गया है।

विश्व प्रसिद्ध प्राचीन ढोल वाद्य उत्तराखंड की लोकसंस्कृति से जुडा होने के साथ-साथ राज्य वाद्ययन्त्र के तहत सु-विख्यात रहा है। ढोल व दमाउ उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के सबसे लोकप्रिय और मांगल वाद्ययंत्रों की श्रेणी मे आते हैं जो शादी-विवाह, नाच-गाने, जागर, रीति रिवाजों इत्यादि में सर्वाधिक प्रचलित वाद्ययंत्र हैं। जगह-जगह उमंग व उत्साह का जलवा बिखेरते नजर आते हैं।
ढोल पर सर्वप्रथम बजाई जाने वाली ’मंगल बढई ताल’ जो बधाई और मंगल का प्रतीक मानी जाती है के साथ-साथ ढोल वादन की अन्य तालौ में जागर की प्रमुख ताल को ’धुयाल ताल’ से जाना जाता है। ’घुडया रासो’ व ’मंडाड ताल’ भी ढोल की मुख्य तालौ में स्थानरत हैं। प्राचीन काल से निरंतर प्रचलित ढोल व दमाउ को ही उत्तराखंड के सुरक्षित वाद्ययंत्रों की श्रेणी में रखा जा सकता है।

अवलोकन कर ज्ञात होता है, वर्तमान मे उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के अन्य पौराणिक वाद्ययंत्र अंतिम चरण की सांस लेते नजर आ रहे हैं। उक्त वाद्ययंत्रों को बनाने वाले कुशल कारीगरों व बजाने वाले सिद्धहस्त वादकों की संख्या सिमट सी गई है। वर्तमान दौर में उत्तराखंड के लगभग प्रत्येक गीत-संगीत व मनोरंजन के आयोजनों मे हर वो आधुनिक वाद्ययंत्र उपयोग में लाये जा रहे हैं जो देश या विदेश में संगीत के क्षेत्र में उपयोग किए जा रहे हैं।

उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के लुप्तप्राय पौराणिक वाद्ययंत्रों में बांस या मोटा रिंगाल से निर्मित ’अल्गोजा’ (जोया मुरली) जो लोकगीतों खुदेड अथवा झुमैला गीतों तथा पशुचारकों द्वारा बजाया जाता था लगभग लुप्त हो चुका है। धातु निर्मित छोटा सा वाद्ययंत्र ’बिणाई’ जो अधिकतर पर्वतीय अंचल की महिलाओं द्वारा बखूबी बजाया जाता था, विभिन्न तालां में विभिन्न स्वरों के लिए अलग-अलग प्रकार की ’बिणाई’ ताल स्वरां वाली बनाई जाती थी। यह वाद्ययंत्र अब लुप्तप्राय है। आज की पीढी इस वाद्ययंत्र के बावत अंजान रही है।

’हुड़का’ उत्तराखंड के लोकगीत व जागर गायन दोनों में प्रयुक्त होने के साथ-साथ कृषि कार्यो तथा युद्ध प्रेरक प्रसंगों में बजाया जाने वाला लोक वाद्ययंत्र रहा है। इस वाद्य को बनाने वाले कुशल कारीगरों तथा बजाने वाले निपुण वादकों के अभाव में, वाद्ययंत्र से प्रकट होने वाली कर्णप्रिय गूंज के लुप्त होने से इस सु-विख्यात लोक वाद्ययंत्र ने अपना अस्तित्व खो दिया है, जिस कारण यह लोक वाद्ययंत्र विलुप्ति की कगार पर खड़ा है।

शिव को समर्पित, चार मोड वाला व आगे का हिस्सा सांप के मुह की तरह दिखने वाला, डेढ़ मीटर लंबा पौराणिक लोक वाद्ययन्त्र ’नागफणी’ जिसे अंचल के तांत्रिकों, साधुआें द्वारा तथा युद्ध के समय सेना में जोश भरने, धार्मिक, सामाजिक, शादी-व्याह व मेहमानों के स्वागत समारोहों में फूक मारकर बजाया जाता था, लगभग लुप्त हो चुका है।

पर्वतीय अंचल में लोक आस्था के प्रतीक जागर में स्थानीय देवताओं को नचाने में ’डौरू’ या ’डौर’ वाद्ययंत्र जिसकी संरचना दोनों तरफ से समांतर, बीच में मोटाई थोडी कम होती है, वादक द्वारा जांघ के नीचे रख कर बजाता है, विलुप्ति की कगार पर खड़ा है।

जागर व लोकगाथा गायन में ’कांसे की थाली’ का वादन ढोल-दमाउ के साथ किया जाता है। ढोल-दमाउ की गूंज ने ’कांसे की थाली’ के रिदम को जैसे सूना कर दिया है। वाद्ययंत्रों की श्रृंखला से इस जमे-जमाए पौराणिक वाद्य का उपयोग बंद होने से इसके अस्तित्व पर पूर्णरूप से विराम लगता नजर आ रहा है।

अवलोकन कर ज्ञात होता है, राष्ट्रीय फलक पर संगीत की धुनों में आमतौर पर प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण वाद्ययंत्र सितार की जगह छोटे से कंप्यूटर साफ्टवेयर वीएसटी ने, भारी भरकम तानपुरे की जगह रेडियोनुमा दिखने वाले इलैक्ट्रानिक तानपुरा ने, की-बोर्ड ने हार्मोनियम सहित कई अन्य दूसरे वाद्ययंत्रों की जगह ले ली है। यहां तक कि अमीरों व बडे-बडे संगीतकारों के सिंबल का प्रतीक रहे ’पियानो’ नामक सबसे बडे वाद्य की जगह एक छोटे से रेडियोनुमा इलैक्ट्रानिक वाद्य ने ले ली है। अस्तित्व खो चुके अनेकों वाद्ययंत्रों की धुनों को एक वादक की-बोर्ड की ’की-कंबिनेशन’ की सहायता से प्रभावशाली रूप से हू-बहू प्रस्तुत कर सकता है।

बाजार भाव, सरलता व वादन की दृष्टि से अगर आधुनिक व पौराणिक वाद्ययंत्रों का तुलनात्मक रूप से अवलोकन करते हैं तो एक इलैक्ट्रोनिक वाद्ययंत्र जो पौराणिक वाद्ययंत्रों से भार की तुलना में हल्का, लाने ले जाने व वादन में सरल तथा कीमत की तुलना में बीस-इक्कीस का ही आंकड़ा रखता नजर आता है। इलैक्ट्रोनिक वाद्ययंत्र का सबसे बड़ा फायदा नजर आता है, एक वादक एक ही यंत्र से कई वाद्यों की धुन निकाल सकता है। आधुनिक वाद्ययंत्रों की सुगमता व बहुलता ही वह कारण माना जा सकता है जिस बल प्राचीन व पौराणिक वाद्ययंत्रों का अस्तित्व समाप्त हुआ है या समाप्ति की कगार पर है।

लेकिन देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के जनमानस का प्राचीन काल से पीढी दर पीढी विश्वास रहा है, अंचल में प्रचलित पौराणिक वाद्ययंत्र दिव्य शक्तियों से ओत-प्रोत रहे हैं। वाद्य व वादक साधारण नहीं असाधारण रहे हैं। जहां भी इन वाद्ययंत्रों का वादन सिद्धहस्त वादकों द्वारा किया गया, वाद्यों की ध्वनि से उक्त स्थान व वहां के जन में सकारात्मक्ता का वास हुआ है।

नकारात्मक जन नाचते देखे गए हैं। सिद्धहस्त वादकां द्वारा वाद्ययंत्रों का वादन कर समय-समय पर जन को जगा सकारात्मक्ता की राह दिखाई गई है। देवभूमि उत्तराखंड में देवताआें का आहवान पारंपरिक तौर पर पौराणिक वाद्ययंत्रों के द्वारा ही किया जाता रहा है, जो आज विलुप्ति की कगार पर खडे हैं।

वर्तमान में उत्तराखंड की जो दशा व दिशा चलायमान है। अनेकों प्रकार की भयावह विपदाओं से जो हा हा कार मचा हुआ है। दिव्य पौराणिक वाद्ययंत्रों के संरक्षण की पहल को नजरअंदाज करने से उन वाद्यों पर जो विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है, इसे देवभूमि उत्तराखंड के परिपेक्ष मे सकुन कहे या अपसकुन? समझा जा सकता है।

देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति के वाहक रहे पौराणिक वाद्ययंत्रों को लुप्त होने से बचाने के लिए अंचल वासियां को चाहिए वे दिव्य वाद्ययंत्रों के संरक्षण व संवर्धन हेतु आगे आए। निपुण वादक देवभूमि के पौराणिक वाद्ययंत्रों का विधि-विधान से वादन कर उनकी ध्वनि से उत्तराखंड में व्याप्त नकारात्मक्ता को दूर कर, देवभूमि उत्तराखंड के जनमानस के सामाजिक व सांस्कृतिक अस्तित्व को बचाने की प्रभावी पहल करें।

– सी एम पपनैं

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पर्यटकों और पर्वतारोहियों का इंतजार हुआ खत्म, ग्रीष्मकाल के लिए खुले गंगोत्री नेशनल पार्क के द्वार https://hillmail.in/the-wait-for-tourists-and-mountaineers-is-over-the-gates-of-gangotri-national-park-open-for-summer/ https://hillmail.in/the-wait-for-tourists-and-mountaineers-is-over-the-gates-of-gangotri-national-park-open-for-summer/#respond Sat, 01 Apr 2023 08:18:25 +0000 https://hillmail.in/?p=42042 पर्वतारोहियों और पर्यटकों का इंतजार अब खत्म हो गया है। आज से गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट ग्रीष्मकाल के लिए खुल गये हैं। पार्क के गेट खुलने के बाद यहां पर्वतारोहण और पर्यटन गतिविधियां भी तेज होने की उम्मीद है। गौरतलब रहे कि गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट प्रत्येक वर्ष शीतकाल में 30 नवंबर को बंद कर दिए जाते हैं, जिसके बाद ग्रीष्मकाल में एक अप्रैल को खोले जाते हैं। यह पार्क चार माह तक बंद रहता है जिससे यहां आने वाले पर्वतारोंहियों को यहां आने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है।

बताया जा रहा है कि पहले दिन नेलांग घाटी के भ्रमण के लिए चार पर्यटक पहुंचे। गंगोत्री हिमालय में 40 से अधिक पर्वत चोटियां हैं। इसके अलावा पार्क क्षेत्र में स्थित गोमुख तपोवन ट्रैक, केदारताल, सुंदरवन, नंदनवन, वासुकीताल, जनकताल ट्रैक के साथ गरतांग गली भी आकर्षित करते हैं। इसके चलते पर्वतारोहियों व पर्यटकों को पार्क के गेट खुलने का बेसब्री से इंतजार रहता है।

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