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साक्षात्कार – Hill Mail https://hillmail.in Thu, 02 May 2024 08:02:17 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://i0.wp.com/hillmail.in/wp-content/uploads/2020/03/250-X-125.gif?fit=32%2C16&ssl=1 साक्षात्कार – Hill Mail https://hillmail.in 32 32 138203753 वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए जनभागीदारी जरूरी : वन मंत्री सुबोध उनियाल https://hillmail.in/public-participation-is-necessary-to-prevent-forest-fire-incidents-forest-minister-subodh-uniyal/ https://hillmail.in/public-participation-is-necessary-to-prevent-forest-fire-incidents-forest-minister-subodh-uniyal/#respond Thu, 02 May 2024 07:52:24 +0000 https://hillmail.in/?p=49146 वनाग्नि एक ग्लोबल इश्यू

वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि फारेस्ट पर्यावरण की दृष्टि से वनाग्नि उत्तराखंड का ही नहीं बल्कि ग्लोबल इश्यू है। बिना जन सहभागिता के जंगलों में आग लगने की घटनाओं पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती है। वह कहते हैं कि जब सरकार का मैकेनिज्म नहीं था और मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव और सविच नहीं होते थे, तब भी जंगलों में आग लगती थी और इस पर अंकुश स्थानीय लोगों की भागीदारी से ही लगता था। सरकार और फॉरेस्ट विभाग जंगलों में लगने वाली आग को रोकने में पुरजोर तरीके से जुटा हुआ है, लेकिन इसमें जनभागीदारी भी जरूरी है।

हमारी सरकार ने लोगों का जंगल से कनेक्शन फिर से जोड़ा है। इसके लिए वन कानून में कई सुधार किए गए हैं। पहले 27 प्रजातियों के पेड़ों को चाहे वो अपनी जमीन पर हों या फिर किसी और की जमीन पर, उन्हें काटने के लिए किसान को वन विभाग के चक्कर लगाने पड़ते थे, लेकिन अब यह प्रतिबंध सिर्फ 15 प्रजातियों के पेड़ों पर ही रखा गया है। हमारे यहां 11230 वन पंचायते हैं। हमने वन पंचायत में संशोधन किया और अब वन पंचायत के लोग वन पंचायत की जमीन पर खेती कर सकते हैं। खेती में जो भी उत्पाद होगा, उस उत्पाद पर उसकी हारवेस्टिंग करके, उसकी मार्केटिंग भी कर सकते हैं और उससे जो पैसा आयेगा वह उन्हीं लोगों में बंटेगा।

फॉरेस्ट फायर को डिजास्टर से जोड़ा है ताकि फौरन फंड मिल सकें

आगजनी की घटनाओं को रोकने के लिए हमने निर्णय लिया है कि ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में फारेस्ट फायर एवं मैनेजमेंट कमेटी बनायेंगे और पहले फेस में हमने उन 72 ग्राम सभाओं को चिन्हित किया जहां पर आग लगने की संभावना है। इस कमेटी में उसी इलाके का युवक मंगल दल का अध्यक्ष, उसी इलाके की महिला मंगल दल की अध्यक्ष और राजस्व विभाग एवं वन विभाग के कर्मचारी इसके मेंबर होंगे ताकि जहां एक ओर ग्राम प्रधान  को सम्मान मिलेगा, कर्मचारियों को अध्यक्ष बनने का अवसर मिला और दूसरा कहीं न कहीं स्थानीय लोगों को अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास होगा। हमने पहली बार फारेस्ट फायर को डिजास्टर से जोड़ने का काम किया है और जनपदों के अंदर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में डिस्टिक फॉरेस्ट फायर एवं मैनेजमेंट कमेटी बनाई। जिसका फायदा हमें यह मिला कि रिवेन्यू विभाग के कर्मचारी भी हमें मदद करने लगे और दूसरा डिजास्टर फंड है, उससे भी हमें तुरंत पैंसा मिलना शुरू हुआ है।

सरकार से पैसा मिलने में समय लगता था लेकिन डिजास्टर मैंनेजमेंट के जो फंड डीएम के अंडर में होता है, उससे तत्काल पैसा मिल जाता है जिससे हमें मदद मिली। फारेस्ट फायर में सबसे बड़ी समस्या है रिस्पांस टाइम की है। इसीलिए हमने इसमें ग्राम सभाओं को शामिल किया है। आग लगने पर फोरेस्ट के लोग माइक लगाकार लोगों को जागरूक करने का काम न कर रहे हैं क्योंकि बिना जनजागरूता के आप किसी भी आपदा को जीत नहीं सकते।  इसमें जन सहभागिता और जनजागरूता जरूरी है। हमने निर्णय लिया है कि हमारी फारेस्ट फायर एवं मैनेजमेंट कमेटी जंगल की आग बुझाने में जितना बड़ा रोल निभाएगी, उसे राज्य स्तर पर सम्मानित किया जाएगा।

पिछले वर्षों के मुकाबले इस साल कुल 20 प्रतिशत ही वनाग्नि का नुकसान

हमने हेड ऑफ फारेस्ट ने चार मीटिंग की हैं और हर डिवीजन को बजट दे दिया है। आग लगने के तीन-चार कारण प्रमुख हैं। पहला कारण कुछ शरारती तत्व आग लगाने का काम करते हैं, दूसरा किसान अपने खेत में खरपतवार को हटाने के लिए आग लगाता है और कभी- कभी वह आग जंगलों तक पहुंच जाती है, तीसरा आम आदमी अनजाने में बीड़ी, सिगरेट पीकर फेंक देता है, उससे भी आग लग जाती है। यही जनजागरण हम गाड़ियों के माध्यम से कर रहे हैं कि लोग ऐसा काम न करें जिससे कि आग लग जाये। इसके लिए हम लोगों को जागरुक कर रहे हैं।

2023-24 में विभागीय प्रयास और जनता के सहयोग से पिछले वर्षों के मुकाबले कुल 20 प्रतिशत वनाग्नि का ही हमें नुकसान हुआ है। इस वर्ष बहुत जल्दी गर्मी आ गई और काफी जगह फॉरेस्ट फायर के केसस हुए। हमें पूरा भरोसा है कि सरकार और जनसहभागिता से हम प्रभावी ढंग से आग लगने की घटनाओं से निपटेंगे। हमारी सरकार ने नीति बनाई है कि पिरूल को जनता से खरीदेगी। हमने पिरूल बेस्ट इंडस्ट्री पर फोकस किया है। इसके लिए हमने प्रति किलो 2.50 रुपये का रेट तय किया है और एक रुपये बोनस देने का निर्णय लिया है। विगत वर्ष हमने एक रुपये को दो रुपये बोनस कर दिया। जिससे लोगों को आजीविका में बढ़ोतरी हो और रोजगार भी मिले। इससे वनाग्नि की घटनाएं भी रुकेंगी और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

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ITBP में न होता तो फुटबॉल या हॉकी खिलाड़ी होता: मनोज सिंह रावत https://hillmail.in/had-i-not-been-in-itbp-i-would-have-been-a-football-or-hockey-player-manoj-singh-rawat/ https://hillmail.in/had-i-not-been-in-itbp-i-would-have-been-a-football-or-hockey-player-manoj-singh-rawat/#respond Thu, 11 Apr 2024 11:41:13 +0000 https://hillmail.in/?p=48884 पहाड़ के सपूत देश में उच्च पदों पर आसीन हैं और अपनी ईमानदारी, कर्मठता और मेहनत की बदौलत लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन रहे हैं। ऐसी ही एक शख्सियत है मनोज सिंह रावत जो हाल ही में आईटीबीपी के एडीजी पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वह 1986 बैच के कैडर हैं। उनके पास देश, विदेश में फिल्ड और प्रशिक्षण का व्यापक अनुभव है। उन्हें ऐसे समय में श्रीलंका के कोलंबों में भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा में तैनात होने वाले कमांडो दस्ते का नेतृत्व सौंपा गया जब दोनों देशों के संबंध काफी खराब हो चुके थे। विपरित परिस्थितियों और ऐसे मुश्किल दौर में उन्होंने अपनी योग्यता साबित की। उन्होंने नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में आईटीबीपी की ऑपरेशन ब्रांच का भी नेतृत्व किया। बाद में उन्हे आईटीबीपी की पश्चिमी कमान की जिम्मेदारी दी गई। उनके कंधों पर लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में चीन के साथ लगती भारत की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। वह कहते हैं कि अगर मैं आईटीबीपी में न होता तो अच्छा फुटबॉल या हॉकी खिलाड़ी होता। रिटायरमेंट के बाद अब मनोज सिंह रावत पहाड़ के दूर-दराज के स्कूलों को सशक्त बनाने का प्रयास करना चाहते हैं। वह पहाड़ के युवाओं को संदेश देते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी को मेहनत, ईमानदारी और शारीरिक ताकत पर ध्यान देना चाहिए। हिल-मेल के संपादक वाई एस बिष्ट ने मनोज सिंह रावत से खास बातचीत की है और उनकी उपलब्धियों, चुनौतियों और आगे के विजन के बारे में जाना है।

आप अपने कैडर के पहले अधिकारी हैं जो एडीजी बने हैं। आप इसको कैसे देखते हैं? एडीजी के कार्यकाल के दौरान आपको किन-किन चुनौतियां का सामना करना पड़ा?

आईटीबीपी का गठन किए हुए 70 वर्ष से अधिक हो गए हैं। इस पद के सृजन से एक जिम्मेदारी का अहसास यह भी होता है कि किस प्रकार से बल के सदस्यों को एक माला में पिरोयें ताकि उनका मनोबल सदैव उच्चतम रहे। वे अपने पारिवारिक एवं बल की जिम्मेदारियों का भली प्रकार निर्वहन कर सकें। मुझे अहसास होता है कि मेरे एडीजी बनने से बल के अधिकारी का मनोबल काफी ऊंचा हुआ है और वो अपनी बातें सहजता से रख पा रहे हैं। चुनौतियां अनेक हैं। सर्वप्रथम आप बल के हजारों सैनिकों का रोल मॉडल हो जाते हैं जिससे आप अपने आपको सदैव उदाहरण के तौर पर रखते हैं। यह भी एक चुनौती है कि किस प्रकार आप बड़े परिप्रेक्ष्य में बल को प्रस्तुत करते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखना कि जाने-अनजाने में कोई ऐसा काम आपसे न हो कि सभी के सम्मान को चोट लगे।

उत्तराखंड की सीमा हमारे पड़ोसी देशों से लगती है। आपके कार्यकाल के दौरान सीमाओं की सुरक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए?

गत 3-4 वर्षों के दौरान सीमा की सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। सीमा की दिन रात निगरानी के लिए पूर्व में पैट्रोलिंग पर ज्यादा निर्भरता थी जो कि उस समय तक सीमित रहती थी, जब तक हम सीमा पर शारीरिक रूप से मौजूद हैं, साथ ही हमारी ऑब्जर्वेशन पोस्ट जो कि लगभग उन स्थानों पर मौजूद है, जहां से पास नजर आता है, केवल उन स्थानों की निगरानी कर पाते थे। लेकिन अब पहले की तुलना हमारी निर्भरता टेक्निकल यूनिट, सर्विलांस गैजेट द्वारा और लंबी दूरी के आधुनिक दूरबीन द्वारा सीमा की चौकसी भी निरंतरता को बढ़ाया है। हमारे एरिया ऑफ रिसपॉन्सबिलिटी की सैटलाइट इमेजिंग लगातार मिलती है, हम लोग पहले की वनस्पत अब सिस्टर ऑर्गनाइजेशन के साथ शेयरिंग ऑफ इंटेशन में बढ़ोतरी हुई है। काफी जगह पर हम ड्रोन टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही अब पहले के विपरीत सीमा तक सड़कों के बनने से ज्यादा सुगमता हुई है, वहां ज्यादा बार जा सकते हैं।

आपको जिंदगी में क्या करना पसंद था और आपको कैसे कैरियर में सफलता मिली?

बचपन से ही मैं एक अच्छा हॉकी और फुटबॉल का खिलाड़ी था और नेशनल हॉकी में उत्तर प्रदेश सीनियर टीम का व रोहिलखंड यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व किया। मुझे खेलने का और शारीरिक फिटनेस का शौक है, साथ ही साथ मैं पढ़ने में अच्छा विद्यार्थी था। मैं मेहनत और लग्न के साथ सभी कार्यों को करना पसंद करता हूं। मैंने शुरुआत से ही लग्न और निष्ठा से नौकरी की। जो भी असाइनमेंट एवं चुनौती मिली, उसे मैंने तन और मन से पूरा किया। जिससे मुझे अपने सीनियर अधिकारियों का विश्वास प्राप्त हुआ। मेरी मेहनत और निष्ठा की बदौलत मुझे निरंतर उच्च स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर की अनेक जिम्मेदारी मिली। इन जिम्मेदारियों को मैंने तन्मयता के साथ निभाया। मेरा सभी सीनियरों और जूनियरों के साथ बहुत अच्छा संबंध रहा। शायद व्यवहार कुशलता और दूसरों की इज्जत करने का स्वभाव भी इसकी वजह हो सकती है।

आप तीन दशक से ज्यादा समय तक आईटीबीपी में सेवारत रहे हैं। आपने अपने कार्यकाल के दौरान किन-किन चुनौतियों का सामना किया और आप अपने सबसे अच्छे कार्यकाल को कब मानते हैं?

मैंने सर्विस की शुरुआत में काफी कोर्स इंडियन और सिविल सेटअप के साथ किए। मुझे श्रीलंका में हाई कमिशन ऑफ इंडिया में आईटीबीपी के कमांडो दस्ते का नेतृत्व करने का मौका मिला। जिस समय श्रीलंका में लिट्टे का आतंक छाया हुआ था व हमारे संबंध भी संदिग्धता के साथ देखे जाते थे। वहां तीन वर्ष आठ माह तक मैंने अपनी टीम के साथ उच्चकोटि की परफॉर्मेंस दी व हम सभी सफल अभियान के बाद वापस आए। यह असाइनमेंट हमारे लिए नॉन फैमिली स्टेशन था। सन् 2012 से 2015 तक मुझे नॉर्थ ईस्ट में डीआईजी की हैसियत से तेजपुर सेक्टर की कमांड दी गई। हमारी तैनाती भारत-चीन सीमा पर थी। काफी दूर-दराज इलाकों में जहां पर पहुंचने में हफ्ते दो हफ्ते का समय लग जाता था, हमारी पैट्रोलिंग 20 से 30 दिन की होती थी। संसाधनों की कमी थी। कनेक्टिविटी बहुत खराब थी, व रहने के लिए भी अच्छी व्यवस्था नहीं थी। इन परिस्थितियों में लोग नॉर्थ ईस्ट की पोस्टिंग आने में कतराते थे। मेरे द्वारा इन परिस्थितियों में निम्न कदम उठाए गए जिससे आज मैं काफी संतुष्ट महसूस करता हूं।

(1) तीन सेमिनार का आयोजन किया जिसको करने की परमिशन भारत सरकार व आईटीबीपी ने दी। इन सेमिनारों में अरुणाचल प्रदेश, मेघालय के गर्वनर, मुख्यमंत्री, असम राइफल के महानिदेशक, प्रदेश के महानिदेश व सभी नॉर्थ ईस्ट में काम करने वाली एजेंसीज ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपने विचार रखे। किस प्रकार हम नॉर्थ ईस्ट पर्टिकुलरली अरुणाचल प्रदेश जहां पर चीन के साथ हमारी सीमा है, वहां पर इन इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट, कनेक्टिविटी, सुरक्षा बलों और सहयोगी संगठन के बीच तालमेल (Synergy among security forces and sister organization) इन सभी के द्वारा दिए गए सुझाव को हमने प्लानिंग कमीशन को संस्तुति के साथ भेजा, जिसमें से अधिकतर बातें आज जमीनी हकीकत बनी हुई हैं।

(2) आईटीबीपी के लिए मैंने आठ जगहों पर रहने के लिए जमीन चिन्हित की व उनको एक्वावर करने में सहायता दी। आज उन जगहों पर काफी अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर आ गया है जो कि हमारी ओपीएस क्षमताओं को बढ़ाने में सहायक हुए हैं।

(3) अग्रीम चौकी से पास जाने में काफी समय लगता था जो कि हमारे ऑपरेशनल कार्य में बाधक था। मेरे द्वारा आईटीबीपी के माध्यम से 44 बीओपी और 20 स्टेजिंग कैंप्स के गठन करने का प्रस्ताव भारत सरकार ने अनुमोदित किया और अब हमारी अग्रिम चौकियां सीमा के काफी नजदीक आने में सहायक हुई हैं।

(4) हमारी सीमाओं की निगरानी भौतिक तरीके से किए जाने की वजह से निरंतरता की कमी होती थी। मेरी अध्यक्षता में एक बोर्ड का गठन हुआ जिसे हम कंप्रिहेंसिव इंटीग्रेटिड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम (CIBMS) कहते हैं, हमारे द्वारा सीमा को संचार व असूचना व सर्विलांस सिस्टम की पूरी सीमाओं में लगने का सुझाव दिया। जिस पर अमली जामा पहनाया गया है और अब हमारे पास सूचना एकत्रित करने, एनालिसिस करने तथा दिन-रात निगरानी हम बेहतरी के साथ कर रह हैं। वैसे तो पूरी 37 वर्ष 8 महीने की सर्विस में मैंने पूरा लुत्फ उठाया है व पूरी सर्विस में कोई न कोई चुनौती हमेशा आती रही फिर भी मैं अपना कार्यकाल वर्ष 2018 से 2021 का मानता हूं। मैं इस दौरान आईजी ओपीएस/एलएनटी में आईटीबीपी हेडक्वाटर दिल्ली में रहा चूंकि इस दौरान मुझे बल भी ऑपरेशन क्षमता को बढ़ाने के लिए मुझे अनेक अवसर प्राप्त हुए।

मैंने इस समय सीमा पर भी की जाने वाली अनेक कार्यवाहियों के ऊपर सुदृढ़ एसओपी बनाई। साथ ही सन् 2020 में इस्टर्न लद्दाख में चीन के साथ हुए माइनर ऑपरेशन/फेस ऑफ में आईटीबीपी सैनिकों को सीधा मार्गदर्शन करने के मौके के साथ-साथ भारत सरकार को भी ब्रीफ करने के अनेक अवसर मिले। कोविड-19 से हुए उत्पन्न चुनौतियां का हमने एक सुदृढ़ टीम प्रयास से भारत सरकार के निर्देशों का अच्छी तरह से पालन किया जिसमें हमारे बल द्वारा देश का पहला क्वारंटाइन सेंटर छावला दिल्ली में स्थापित किया, वहां चीन के वुहान  से भारत का प्रथम-द्वितीय दल को क्वारंटाइन कराया व एसवीपीसीसीसी 10,000 बेड भी छतरपुर में स्थापित कर सुचारू रूप से चलाया। इसके साथ-साथ मुझे अपने परिवार के साथ छह साल के विछोह के बाद रहने का मौका मिला व इसी दौरान मुझे बल का प्रथम कार्डर का उप-महानिदेशक (एडीजी) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

आप अपने बारे में बताइए, आप किस गांव में पैदा हुए, आपकी पढ़ाई लिखाई कहां हुई, और आपके परिवार ने पहाड़ों में किस प्रकार का संघर्ष किया?

मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री त्रिलोक सिंह रावत बहुत कम उम्र में पीएससी में भर्ती हुए। उनकी शिक्षा सतपुली में हुई। मेरा जन्म सीतापुर उत्तर प्रदेश पीएससी में हुआ। प्रत्येक वर्ष हम परिवार के साथ अपने गांव बौसाल मल्ला जाते थे और वहां के संघर्ष से मैं भलीभांती परिचित हूं। मेरी प्रारंभिक शिक्षा बरेली में तथा उच्च शिक्षा मुरादाबाद में हुई, जहां पर मेरे पिताजी की तैनाती थी। मेरा गांव जो कि सतपुली-पाटीसैण के बीच में बौसाल मल्ला गांव पड़ता है, वहां पर पहुंचने के लिए हमें डेढ़ घंटे की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती थी। गांव से माध्यमिक स्कूल चार किलोमीटर की दूरी पर था, वहां पहुंचने के लिए तकरीबन डेढ़ घंटा लगता था। हमारे गांव में न तो पानी की अच्छी सप्लाई थी और न ही खेती की उपलब्धता थी। बड़ी मुश्किल का सामना करके हम लोग का लालन-पालन हुआ, जिससे हमें कर्मठ और ईमानदार बनने में सहायता मिली।

आप नई पीढ़ी के युवाओं, खासकर पहाड़ के युवाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं तो बस इतना ही युवा पीढ़ी से कहना चाहूंगा कि सर्वप्रथम ईमानदारी, मेहनत, शारीरिक ताकत के ऊपर विशेष ध्यान दें। आजकल सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं गांव के उत्थान के लिए बनाई हैं, उसका भरपूर उपयोग करें। अब घर-घर में इंटरनेट की सुविधा व नजदीक में पढ़ाई के संसाधन उपलब्ध हैं, पढ़ाई को तन्मयता से करें, सेना और सरकारी नौकरी के साथ और भी कोई ऑपर्च्युनिटी सामने आती है, तो उसका भरपूर फायदा उठाएं।

हमारी मैग्जीन का एक मोटो है, एक अभियान पहाड़ों की ओर लौटने का, आप उत्तराखंड के लिए क्या करना चाहते हैं?

मैं 31 जनवरी 2024 को सेवानिवृत्त हुआ हूं। मैं अब पहाड़ के दूर-दराज के स्कूलों को सशक्त बनाने का प्रयास करूंगा। मैं चाहता हूं कि उत्तराखंड के युवाओं से मैं निरंतर संवाद रखूं। मैं अपने गांव में घर का निर्माण करने का इच्छुक हूं जो कि मैं कुछ समय में पूरा करूंगा।

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समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिए भारतीय तटरक्षक बल हमेशा तैयार – राकेश पाल https://hillmail.in/indian-coast-guard-is-always-ready-to-deal-with-maritime-challenges-rakesh-pal/ https://hillmail.in/indian-coast-guard-is-always-ready-to-deal-with-maritime-challenges-rakesh-pal/#respond Thu, 31 Aug 2023 05:08:55 +0000 https://hillmail.in/?p=45580 भारतीय तटरक्षक अपने विशाल कार्य क्षेत्र में जो कि हमारे कुल थलीय क्षेत्र का लगभग 1.5 गुना है, में समुद्री कानून और व्यवस्था बनाए रखने की एक बड़ी जिम्मेदारी को निभाता आ रहा है। भारतीय तटरक्षक बल द्वारा किये जा रहे अनेक कामों को लेकर भारतीय तटरक्षक बल के महानिदेशक राकेश पाल के साथ हिल मेल के संपादक वाई एस बिष्ट ने खास बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार से हैं :-

1. सबसे पहले आपको तटरक्षक बल के महानिदेशक बनने के लिए बहुत बहुत बधाई। आपके सामने तटरक्षक बल की क्या प्रमुख चुनौतियां हैं?

आपका हार्दिक धन्यवाद। मैं वास्तव में भारतीय तटरक्षक बल का कार्यभार संभालने पर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं, जो आज अपनी दक्षता, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा और समुद्री तटों की निगरानी के लिए जगविदित है। समुद्रों के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए, नए युग की उभरती समुद्री चुनौतियों का समग्र रूप से सामना करना आवश्यक है।

मुझे ये पूर्ण विश्वास है कि एक दक्ष समुद्री सशस्त्र बल के रूप में, हम राष्ट्र के प्रति अपने निर्धारित कर्तव्यों के निर्वहन के लिए सज्ज हैं तथा हम समुद्री क्षेत्र में तटीय सुरक्षा, पर्यावरण व कानून प्रवर्तन संबंधी प्रमुख चुनौतियों का सामना करने के लिए सदैव तत्पर व समर्पित है। इन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए, मैं प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन के संतुलित समन्वय के साथ एक नवीनीकृत, आधुनिक, चुस्त और भविष्य में आने वाली प्रत्येक चुनौती के समाधान के लिए प्रतिबद्ध, भारतीय तटरक्षक बल की परिकल्पना करता हूं।

2. बल के मुखिया के तौर पर आप के क्या-क्या कार्य और जिम्मेदारियां प्रमुख रहेंगी?

भारतीय तटरक्षक बल के मुखिया के रूप में मेरा प्रमुख कर्त्तव्य तटरक्षक बल को हमारे कार्य क्षेत्र (सागर) में से उत्पन्न होने वाले हर प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के प्रति सतर्क और तैयार रखना है, और इस दिशा में अपने दायित्व को पूरा करने और समुद्री क्षेत्रों में अपने राष्ट्रीय हितों को संरक्षित करने के लिए प्रतिदिन औसतन 45-50 पोत और लगभग 10-12 विमान हर पहर हमारे सागर व तटों की निगरानी के लिए तैनात रहते हैं। हमारा प्रयास रहा है, कि हम उपलब्ध संसाधनों से अपने सामुद्रिक हितों की सुरक्षा और हर उभरती चनौतियों के समाधान के प्रति सदैव तत्पर रहें।

157 जहाजों, 78 विमानों और लगभग 16,045 कर्मियों के साथ भारतीय तटरक्षक अपने विशाल कार्य क्षेत्र में जो कि हमारे कुल थलीय क्षेत्र का लगभग 1.5 गुना है, में समुद्री कानून और व्यवस्था बनाए रखने की एक बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है। आधुनिक और अपरंपरागत समुद्री चुनौतियां जैसे पारदेशीय आतंकवाद, प्रतिबंधित और मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध मानव प्रवास, सागरीय प्रदूषण, गैरकानूनी अथवा प्रतिबंधित मछली पकड़ना, प्रतिबंधित समुद्री प्रजातियों की अवैध तस्करी और निरंतर और असममित खतरों एवं कई अन्य प्रकार की चुनौतियों के त्वरित उत्तर के लिए तटरक्षक बल सदैव तत्पर रहे, यही मेरी सदैव सर्वोपरि प्राथमिकता रहेगी।

भारत सरकार की आत्मनिर्भरता की पहल, जो कि प्रत्येक क्षेत्र में 100 प्रतिशत स्वदेशीकरण की ओर अग्रेषित है और इसके संलगन रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बेहद सकारात्मक कदम भी है। इस राष्ट्रीय दृष्टिकोण का अनुपालन करने और स्वदेशी सामग्री को बढ़ाने के केंद्रित दृष्टिकोण को सुनिश्चित करने हेतु, तटरक्षक मुख्यालय, नई दिल्ली में एक समर्पित निदेशालय (Directorate of Indigenisation) की स्थापना की गयी है, जो स्वदेशीकरण विचारधारा की सफलता के लिए निरंतर प्रयासरत है।

हमारे जवानों के उच्च मनोबल हेतु उनके कार्य क्षेत्र और आवासीय स्थिति में सुधार करना भी मेरी प्राथिमिकता की सूची में शामिल है। इसके लिए तटरक्षक बल की Infrastacture Development टीम को ओटीएम कॉम्पलेक्स, पारिवारिक आवाश, घाट, रनवे और प्रशिक्षण अकादमी के विकास कार्य को प्रमुखता सूची में रखने के निर्देश दिए गए हैं।
तटरक्षक बल में भारतीय उद्योगों द्वारा प्रदत्त रक्षा सामग्री एवं सेवाओं को अग्रसर करना भी मेरी प्रमुख प्राथमिकता है।

3. भारतीय तटरक्षक बल द्वारा समुद्री सीमा में हथियार और ड्रग्स पकड़े जा रहे है आप इसको रोकने के लिए क्या कदम उठाएंगे?

विगत वर्ष तस्करों के लिए अत्यंत कठिन रहा है, क्योंकि भारतीय तटरक्षक ने विभिन्न खुफिया सूचनाओं पर आधारित ऑपरेशनों में सफलतापूर्वक लगभग 623 किलोग्राम नशीले पदार्थों को जब्त किया है, जिनकी कीमत 1,276.5 करोड़ रुपये है। भारतीय तटरक्षक ने स्थापना से अभी तक कुल 15,103.5 करोड़ रुपये से अधिक मूल्यों की ड्रग्स को जब्त किया है। अंतरराष्ट्रीय अपराधों के सन्दर्भ में भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र की सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता सर्वोपरि है।

लगभग 40 किलोग्राम नशीले पदार्थो, हथियारों और गोला-बारूद के साथ पाकिस्तानी नाव ‘अल-सोहिली’ की गिरफ्तारी के हालिया मामले ऐसे शत्रुतापूर्ण योजना के खिलाफ भारतीय तटरक्षक की मजबूत सुरक्षा व प्रतिक्रिया तंत्र का एक उदाहरण है। अंतरराष्ट्रीय अपराधों के सन्दर्भ में भारतीय तटरक्षक द्वारा अपनाई गई निगरानी व प्रतिक्रिया तंत्र के परिणाम स्वरूप, नशीली दवाओं और अवैध पदार्थो की निरंतर जब्तियां हुई।

हमारे समुद्री संसाधनों की रक्षा के उद्देश्य पूर्ति हेतु विभिन्न अभियानों के परिणाम स्वरूप लगभग 3,658 किलोग्राम अवैध सामुद्रिक जीवन संसाधनों को जब्त किया गया, जिनकी कीमत लगभग 15.5 करोड़ रुपये है। ये अवैध सामुद्रिक वन्य जीवन संसाधन, भारत में वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1952 के तहत प्रतिबंधित है।

पड़ोसी देशों और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के प्रभावी समन्वय के साथ-साथ तटरक्षक की सागरीय सतर्कता के कारण, समुद्री मार्ग से मानव तस्करी तंत्र पर भी काफी हद तक अंकुश लगाया गया है। इसके लिए सभी उपलब्ध आधुनिक संसाधनों के माध्यम से निरंतर निगरानी रखी जा रही है।

4. पिछले कुछ सालों में तटरक्षक बल की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताइये?

भारतीय तटरक्षक बल ने विगत कुछ वर्षों में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने और विस्तार करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। प्रारम्भ में, भारतीय नौसेना के 02 जहाजों से बढ़कर, आज भारतीय तटरक्षक बल के बेड़े में अब 157 जहाज और 78 विमान शामिल हैं। भारतीय तटरक्षक बल अपनी निगरानी और परिचालन क्षमताओं में सुधार के लिए सक्रिय रूप से नए जहाजों का अधिग्रहण कर रहा है और अपने बेड़े के आधुनिकीकरण की ओर निरंतर अग्रसर है। इनमें अपतटीय गश्ती जहाज, तीव्र गश्ती जहाज, इंटरसेप्टर नावें और एएलएच ध्रुव जैसे हेलीकॉप्टर शामिल हैं।

इन विकसित संसाधनों की मदद से विस्तृत सागरीय क्षेत्र में पहुंच बनाने, अधिक कुशल खोज और बचाव अभियान चलाने में भारतीय तटरक्षक बल को अधिक सक्षम बनाया है। भारतीय तटरक्षक बल ने एक व्यापक तटीय निगरानी नेटवर्क स्थापित किया है, जिसमें रडार स्टेशन, तटीय रडार, स्वचालित पहचान प्रणाली और स्टेटिक सेंसर की श्रृंखला शामिल है। यह नेटवर्क तट पर जहाजों की गतिविधियों और संदिग्ध गतिविधियों की वास्तविक समय पर निगरानी करने में निरंतर एवं अविलम्ब सहायता करता है, जिससे किसी भी संभावित खतरे पर तेजी से प्रतिक्रिया संभव हो पाती है।

5. भारतीय तटरक्षक बल के 46 साल पूरे होने पर अपने कर्मियों और युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं?

अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय तटरक्षक बल एक परिपक्व और सक्षम बल के रूप में विकसित हुआ है, जो अनिवार्य कार्यों को धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ निष्पादित करता है, जिसके लिए ‘समन्वय व नवीनीकरण’ निस्संदेह सार रहे हैं। इसलिए, सेवा के रैंक और फाइल के लिए मेरा संदेश है, ’हमें सौंपे गए प्रत्येक कार्य में मानक स्थापित करना जारी रखें और सभी लक्ष्यों को तत्परता और शिष्टता के साथ पूरा करें।

एक पेशेवर बल के रूप में, तटरक्षक बल को हमारे लक्ष्यों और चुनौतियों को पूरा करने के लिए उत्तरोतर शिखरों को पाना जारी रखना चाहिए, जिससे राष्ट्र को विकास व सुरक्षा में सम्पूर्ण योगदान दिया जा सके, साथ ही किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए दृढ़ रहना चाहिए और हमारी कार्य क्षेत्र में हमारी उपस्थिति को ’यत्र… तत्र… सर्वत्र’ महसूस कराना आवश्यक एवं सर्वोत्क्रिष्ट है।

जय हिन्द, वयम् रक्षामः।

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चारधाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालु सरकार द्वारा बताये गये गाइड लाइन का पालन करें – राजेंद्र सिंह https://hillmail.in/devotees-coming-to-chardham-yatra-should-follow-the-guidelines-given-by-the-government-rajendra-singh/ https://hillmail.in/devotees-coming-to-chardham-yatra-should-follow-the-guidelines-given-by-the-government-rajendra-singh/#respond Mon, 22 May 2023 07:44:38 +0000 https://hillmail.in/?p=43530 चारधाम यात्रा को सुगम और सुव्यवस्थित बनाने के लिए राज्य सरकार लगातार काम कर रही है। चारधाम यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की मानव क्षति न हो इसके लिए उत्तराखंड सरकार ने एनडीएमए से मदद मांगी है। यह पहली बार है जब एनडीएमए ने राज्य सरकार के अनुरोध पर चारधाम यात्रा के दौरान आपदा आकस्मिकताओं से निपटने के लिए एक साथ काम कर रहे है और इसके लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर मॉक अभ्यास भी किया है।

चारधाम यात्रा की व्यवस्था करने और संचालित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है और उत्तराखंड एसडीएमए की आपदा संबंधी आकस्मिकताओं की देखभाल करने और इसके लिए दिशानिर्देश जारी करने की जिम्मेदारी है। यह पहली बार है कि एनडीएमए ने राज्य सरकार के अनुरोध पर चारधाम यात्रा के दौरान आपदा आकस्मिकताओं से निपटने के लिए तैयारियों का परीक्षण करने के लिए मॉक एक्सरसाइज करने की पहल की है। यह एक्सरसाइज 18-20 अप्रैल 2023 तक आयोजित की गई। सेना, एनडीआरएफ, आईएमडी, सीएपीएफ, स्वयंसेवी संगठन जैसे एनसीसी, एनजीओ संबंधित राज्य के विभागों, सात जिलों के संबंधित अधिकारियों, जिनके माध्यम से यात्रा आयोजित की जाती है और एसडीआरएफ सहित सभी ने इसमें भाग लिया। एनडीएमए और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों ने मॉक एक्सरसाइज का पर्यवेक्षण किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने व्यक्तिगत रूप से संचालन की समीक्षा की। इसमें चारधाम यात्रा के प्रबंधन की प्रणाली के प्रासंगिक पहलुओं की समीक्षा की गई।

चारधाम यात्रा शुरू हो गई है इसके लिए एनडीएमए ने क्या-क्या गाइड लाइन जारी की हैं। यात्रा के दौरान केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न संस्थानों को किन-किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ?

चारधाम यात्रा को लेकर दिशानिर्देश जारी करने की जिम्मेदारी उत्तराखंड एसडीएमए की है। हालांकि, एनडीएमए ने मॉक एक्सरसाइज के दौरान आपदा मोचन के लिए सभी व्यवस्थाओं की समीक्षा की और उत्तराखंड एसडीएमए को विभिन्न एसओपी और प्रक्रियाओं के संबंध में सलाह दी, जिसमें सभी हितधारकों के बीच समन्वय और फुल प्रूफ संचार सुनिश्चित करना शामिल है।

एनडीएमए द्वारा ध्यान में रखे जाने वाले बिंदु इस प्रकार से हैं :-

  • विभिन्न आकस्मिकताओं के मोचन के लिए जिम्मेदारी की स्पष्ट विवरण, प्रत्येक क्षेत्र के लिए चारधाम यात्रा मार्गों पर आपदा मोचन के लिए सभी संसाधनों का मैपिंग आवश्यक है, प्रासंगिक केंद्रीय एजेंसियों के साथ कार्यात्मक संचार लिंक, आपातकालीन प्रबंधन सहित हेलीकॉप्टर आधारित यात्रा मूवमेन्ट के प्रबंधन के लिए एसओपी।
  • मेडिकल स्क्रीनिंग : केंद्रित आईसीई गतिविधियों को सह-रुग्णता वाले व्यक्तियों और 55 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए चिकित्सा जांच को सुदृढ़ करना चाहिए। इस तथ्य का भी व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए कि यमुनोत्री धाम और केदारनाथ धाम की पैदल यात्रा करने से पहले आधार शिविर (जलवायु अनुकूलन के लिए) पहुंचने के बाद यात्रियों को कम से कम 24 घंटे का अंतराल देना चाहिए।
  • प्रतिकूल मौसम चेतावनी : मौसम की 24ग्7 निगरानी और तत्काल कार्रवाई के साथ-साथ छितराव (प्रभावित यात्रियों सहित), विशेष रूप से रात के समय, प्रणाली को सुव्यवस्थित और फूलप्रूफ बनाया जाना चाहिए।
  • जोखिम चेतावनी बोर्ड : इन्हें बाढ़, भूस्खलन आदि की दृष्टि से संवेदनशील सभी स्थानों पर, विशेष रूप से तीर्थस्थलों की ओर जाने वाली पैदल पटरियों के प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
  • अग्नि सुरक्षा : तम्बू वाले शिविर, होटल, धर्मशाला आदि में संवेदनशील क्षेत्रों जैसे अग्नि सुरक्षा ऑडिट और पर्याप्त सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए जाने चाहिए।
  • यातायात नियंत्रण : पुलिस द्वारा महत्वपूर्ण सुविधाओं जैसे अस्पतालों और अप्रिय घटना स्थल (घटना होने पर) में संकने प्रवेश/निकास बिंदुओं पर उचित यातायात और पहुंच नियंत्रण सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • दैनिक तीर्थयात्री सीमा : यह अनुशंसा की जाती है कि राज्य द्वारा निर्धारित दैनिक तीर्थयात्री सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए।
  • सुनिश्चित करें कि मोबाइल कम्युनिकेशन डेड जोन में वैकल्पिक संचार साधन मौजूद हैं। एनडीएमए इन क्षेत्रों में मोबाइल कवर प्रदान करने के मामले को संबंधित केंद्रीय मंत्रालय के पास भेज रहा है।

चारधाम यात्रा के दौरान प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके यात्रा को कैसे सुरक्षित बनाया जा सकता है ?

चारधाम यात्रा के दौरान हम प्रौद्योगिकी का उपयोग कई प्रकार से कर सकते हैं और इन उपायों को करके यात्रा के संचालन में भी सुविधा हो सकती है। बेहतर चारधाम यात्रा प्रबंधन के लिए नेटवर्क और क्यूआर कोड आधारित यात्री निगरानी प्रणाली नियंत्रण केंद्रों को वास्तविक समय इनपुट प्रदान करेगी। बैक अप संचार के लिए उपग्रह फोन और रेडियो सेट का उपयोग, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है। घटना प्रबंधन के दौरान ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग किया जाना चाहिए – उदाहरण के लिए : यात्रा व्यवधान, भूस्खलन, अचानक बाढ़ आदि। वीडियोग्राफरों सहित नागरिक एजेंसियों के साथ ड्रोन की मैपिंग की जानी चाहिए और संकट के दौरान इनका उपयोग किया जाना चाहिए। यात्रा प्रगति और घटनाओं के एकीकृत प्रदर्शन के लिए जीआईएस का उपयोग करने से निर्णय लेने में सुविधा होगी। भविष्य के लिए – परिदृश्य सिमुलेशन और निर्णय में सहायता के लिए एआई आधारित मॉडल विकसित किए जाने चाहिए। चारधाम यात्रा के दौरान यात्रियों और वाहनों की आरएफआईडी आधारित निगरानी शुरू की जानी चाहिए।

चारधाम यात्रा के दौरान यात्री इन बातों का पालन अवश्य करें जैसे राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी होने वाले नियम अलर्ट के लिए सचेत ऐप डाउनलोड़ करें। यात्रा के अनुकूल बनाये गये विभिन्न फ्रीचर्स पर जाने के लिए मैप माई इंडिया ऐप डाउनलोड़ करें। इन फ्रीचर्स में टैफिक जाम, अलर्ट्स, अभिरूचि के महत्वपूर्ण स्थान जैसे अस्पताल, पुलिस थाने, शेल्टर्स आदि शामिल हैं। चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के लिए एनडीएमए द्वारा उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर कई कार्रवाई की गई। जैसे मैप माई इंडिया ऐप पर रीयल-टाइम स्थिति जागरूकता के लिए मैप माई इंडिया ऐप और उत्तराखंड सरकार के बीच सहयोग स्थापित किया गया। उत्तराखंड पुलिस वायरलैस नेटवर्क आधार पर सभी हितधारकों के मध्य वायरलैस संचार का समन्वय किया गया। दूर संचार विभाग को कहा गया कि दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को निर्देश जारी करें कि वे ऐसे स्थानों पर संसाधन उपलब्ध करवाएं जहां जीएसएम नेटवर्क कवरेज नहीं है।

चारधाम यात्रा को और बेहतर बनाने के लिए किन-किन बातों पर और ध्यान दिया जाना चाहिए ?

चारधाम यात्रा के दौरान यात्रियों को इन बातों का विशेष ध्यान में रखना चाहिए। क्या करें और क्या न करें का विस्तृत विवरण राज्य सरकार द्वारा पहले ही जारी किया जा चुका है और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा चुका है। इसके अलावा, राज्य को इन बातों को और मौसम संबंधी चेतावनियों को चारधाम यात्रा ऐप में शामिल करने की सिफारिश की गई है। यात्रियों को इन कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए :-

(क) यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं यात्रियों की होती है – इसलिए उन्हें चारधाम यात्रा और क्या करें और क्या न करें के दौरान खतरों के बारे में पूरी तरह से अवगत होना चाहिए। सुनिश्चित करें कि आप चारधाम यात्रा के लिए पंजीकरण करें और ऐप डाउनलोड करें।
(ख) मेडिकल स्क्रीनिंग : चारधाम यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा मौतें चिकित्सकीय कारणों से होती हैं। सह-रुग्णता वाले व्यक्तियों और 55 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को चिकित्सा जांच करवानी चाहिए और डॉक्टर की सलाह को गंभीरता से लेना चाहिए। इसके अलावा, यात्रियों को बेस कैंप में आने के बाद यमुनोत्री धाम और केदारनाथ धाम की पद यात्रा के लिए कम से कम 24 घंटे का अंतराल देना चाहिए।
(ग) प्रतिकूल मौसम चेतावनी : मौसम की चेतावनियों पर नज़र रखें और सुनिश्चित करें कि आप आवश्यक पूर्व सावधानी बरतें।
(घ) खतरा चेतावनी बोर्ड : सुनिश्चित करें कि आप आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन आदि के लिए चेतावनी बोर्ड वाले स्थानों से बचें, सावधानीपूर्वक यात्रा करें, विशेष रूप से तीर्थस्थलों पर जाने वाले पैदल रास्तों पर इस बात से अवगत रहें कि यदि आप ऐसी परिस्थिति में फंस जाते हैं तो आपको क्या करना चाहिए।
(ङ) जूते उचित रूप से पहने और सही जूते पहनें। आपात स्थिति के लिए हमेशा अपने साथ कुछ पानी और ऊर्जा स्रोत, जैसे चॉकलेट या चना और गुड़ आदि रखें।
(च) आपात स्थिति के दौरान किससे और कैसे संपर्क करना है, यह जानें।

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए किन-किन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ?

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा बहुल राज्य है जैसे भूस्खलन और हिमस्खलन, भूकंप, बाढ़, बादल फटना और भू-धसांव आदि। आपदा प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार का कार्य उनके प्रयासों में (कम्पलीमेन्ट एवं सप्लीमेन्ट) मदद करना है। आपदा प्रबंधन (डीएम) अधिनियम – 2005 में त्रि-स्तरीय संस्थागत तंत्र की परिकल्पना की गई है :-

क) एनडीएमए – राष्ट्रीय स्तर पर
ख) एसडीएमए – राज्य स्तर पर
ग) डीडीएमए – जिला स्तर पर

आपदा प्रबंधन 2009 के लिए राष्ट्रीय नीति और 2019 में संशोधित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना में आपदा प्रबंधन राहत केंद्रित दृष्टिकोण के स्थान पर तैयारी और शमन की सक्रिय व्यवस्था में आमूल परिवर्तन की परिकल्पना है। राष्ट्रीय योजना, राज्य योजना और जिला योजना के साथ-साथ प्रभावी, कुशल और व्यापक आपदा प्रबंधन के लिए समय-समय पर जारी विभिन्न दिशानिर्देशों और मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) के माध्यम से नीति का कार्यान्वयन किया जा रहा है। इन योजनाओं और एसओपी से आपदा प्रबंधन चक्र के सभी चरणों में सभी स्तरों पर सभी हितधारकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को रेखांकित किया गया है। आपदाओं की रोकथाम एवं प्रशमन गतिविधियां सभी हितधारकों द्वारा सक्रिय रूप से क्रियान्वित की जा रही हैं। सतत विकास के लिए विकासात्मक योजनाओं में आपदा प्रशमन को समाहित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मोक एक्सरसाइज, आईआरएस प्रशिक्षण, साजो-सामान, प्रौद्योगिकी का लाभ एवं वित्त पोषण आदि द्वारा सभी हितधारकों और उनके मोचकों की तैयारी एवं क्षमता निर्माण किया जा रहा है।

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महिला होना कभी भी मेरी जिंदगी में बाधक नहीं बना – सुषमा रावत https://hillmail.in/being-a-woman-has-never-been-a-hindrance-in-my-life-sushma-rawat/ https://hillmail.in/being-a-woman-has-never-been-a-hindrance-in-my-life-sushma-rawat/#respond Thu, 18 May 2023 09:00:44 +0000 https://hillmail.in/?p=43446 सुषमा रावत को साल 2013 में एक बार फिर देहरादून में भारतीय अवसादी बेसिनों के लिए बेसिन स्केल 3डी पेट्रोलियम सिस्टम मॉडल विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई। वह इस कार्यकाल को सबसे महत्वपूर्ण मानती हैं क्योंकि उन्होंने अन्वेषण के तहत लगभग सभी अवसादी बेसिनों में काम किया और विभिन्न प्रकार के आंकड़ों और जानकारियों को एकीकृत किया। इसी कारण से उन्हें भारत सरकार की विभिन्न परियोजनाओं जैसे अन्वेषित बेसिनों का मूल्यांकन, हाइड्रोकार्बन संसाधनों का पुनर्मूल्यांकन आदि की जिम्मेदारी दी गई। सुषमा रावत ने बताया कि उन्होंने अपना बचपन पहाड़ों की गोद में बिताया और वह बताती हैं कि शायद इसी वजह से शायद मेरे मन में हमेशा जिज्ञासा रही कि आखिर ये पहाड़ और ये नदियां कैसे बने होंगे। ऐसे ही कई मुद्दों को लेकर ओएनजीसी की निदेशक अन्वेशन सुषमा रावत ने हिल-मेल के संपादक वाई एस बिष्ट से खास बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंश : –

प्रश्न : आप ओएनजीसी में निदेशक अन्वेषण के पद पर कार्यरत हैं, इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को आप बखूबी निभा रही हैं, आप इस चुनौती को कैसे देखती हैं ?

सर्वप्रथम मैं आपको, आपकी प्रतिष्ठित पत्रिका में अपने विचार रखने का अवसर देने के लिए धन्यवाद करना चाहती हूं। मैंने अपना बाल्यकाल पहाड़ों की गोद में बिताया है और शायद इसी वजह से ही मेरे मन में हमेशा से यह जिज्ञासा रही है कि आखिर ये पहाड़ और ये नदियां कैसे बने होंगे और इसीलिए आगे चल कर मैंने अपने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए भूगर्भ विज्ञान विषय चुना। ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे ओएनजीसी जैसे प्रतिष्ठित महारत्न संस्थान में सेवा प्रदान करने का अवसर मिला, जहां मुझे देश के दिग्गज भूवैज्ञानिकों एवं पेट्रोलियम इंजीनियरों के साथ कार्य करने का मौका मिला। उनके मार्ग दर्शन में मैंने पेट्रोलियम अन्वेषण की बारीकियों को सीखा और आज 33 से भी ज्यादा वर्षों से ओएनजीसी एवं देश के लिए अपना यथोचित योगदान देने की कोशिश कर रही हूं। आज भारत सरकार ने मुझे निदेशक अन्वेषण जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है और मेरा पूरा प्रयास है कि मैं अपने इस दायित्व का निर्वहन करूं और ओएनजीसी अन्वेषण को एक वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी कंपनी बना पाऊं।

आज के वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में जहां एक तरफ वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए पूरा विश्व हरित ऊर्जा संसाधनों की तरफ कदम बढ़ा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ भारत को अपनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा की नितांत आवश्यकता है और ऐसे परिदृश्य में देशहित को देखते हुए हम ऊर्जा के लिए लगातार दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रह सकते। ओएनजीसी इस चुनौती को भली-भांति समझता है, और इसीलिए हमारा ये मिशन है कि ना सिर्फ पेट्रोलियम संसाधनों के अन्वेषण एवं उत्पादन में तेजी लायी जाए बल्कि साथ में ही ऊर्जा के अन्य स्रोतों को भी खोजा जाए और उनका विकास किया जाए। पिछले कुछ वर्षों में तेल और गैस के उत्पादन में कुछ कमी आयी है परन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि आगे आने वाले दिनों में ना सिर्फ पेट्रोलियम उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि आप ओएनजीसी को वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों जैसे भू-तापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा और अपतटीय पवन ऊर्जा जैसी परियोजनाओं में भी कार्य करते हुए देखेंगे। अपनी स्थापना के समय से ही, ओएनजीसी हमेशा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संचालित एक संगठन रहा है, और मुझे विश्वास है कि वर्तमान चुनौतियों का समाधान भी हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही ढूंढ पाएंगे।

प्रश्न : आप अपने ओएनजीसी के 33 साल के कार्यकाल में अपनी कॉर्पोरेट प्रगति और उत्तरदायित्व के बारे में बताएं ?

मैं वर्ष 1989 में स्नातक प्रशिक्षु के रूप में ओएनजीसी परिवार का हिस्सा बनी और तुरंत बाद ही मुझे तत्कालीन मद्रास में कावेरी बेसिन में एक कूप स्थल भूविज्ञानी (Well site Geologist) के रूप में नियुक्त किया गया। जैसा कि आपको ज्ञात होगा कि उस समय महिलाओं के लिए बाहर काम करना कितना मुश्किल था, वह भी घर से इतनी दूर। हालांकि, मैं आज भी उत्साहित हो जाती हूं जब मैं भारत के दक्षिणी सिरे के पास वेदारण्यम नामक स्थान पर 14 दिनों की अपनी शिफ्ट के पहले दिन को स्मरण करती हूं। मेरी दूसरी पोस्टिंग KDMIPE देहरादून में थी और फिर उसके बाद मैंने मुंबई में केरल-कोंकण बेसिन में कार्य किया। वर्ष 2013 में, मुझे एक बार फिर KDMIPE देहरादून में भारतीय अवसादी बेसिनों (Sedimentary Basins) के लिए बेसिन स्केल 3डी पेट्रोलियम सिस्टम मॉडल (PSM) विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई। मुझे लगता है, यह मेरे कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण चरण था क्योंकि मैंने अन्वेषण के तहत लगभग सभी अवसादी बेसिनों में काम किया और विभिन्न प्रकार के आंकड़ों और जानकारियों को एकीकृत किया। शायद यही कारण था कि मुझे भारत सरकार की विभिन्न परियोजनाओं जैसे अन्वेषित बेसिनों का मूल्यांकन, हाइड्रोकार्बन संसाधनों का पुनर्मूल्यांकन आदि के लिए जिम्मेदारियां दी गईं।

वर्ष 2020 में, मुझे लगभग पूरे पूर्वोत्तर भारत में अन्वेषण पोर्टफोलियो की देखभाल के लिए असम और असम अराकान बेसिन, जोरहाट के बेसिन प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया था। अन्वेषण की गति में तेजी लाने के लिए सिर्फ यथास्थिति बनाए रखना पर्याप्त नहीं था। अतः बेसिन मैनेजर के रूप में, मैंने अन्वेषण के क्षेत्र को बढ़ाने और अब तक गैर-अन्वेषित क्षेत्र या कम अन्वेषण वाले क्षेत्रों को अन्वेषण के दायरे में लाने पर जोर दिया। सर्वेक्षण, प्रसंस्करण और व्याख्या, ड्रिलिंग और कूप लॉगिंग के क्षेत्र में कई उन्नत तकनीकियों को शामिल करने सहित बेसिन ने अन्वेषण प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए कई कदम उठाए। विभिन्न प्रशासनिक मुद्दों जैसे वन मंजूरी, भूमि अधिग्रहण, असम और नागालैंड के बीच विवादित क्षेत्रों (DAB areas) में अन्वेषण जैसे मुद्दों को हल करने के लिए मैंने असम और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों के साथ कई बैठकें कीं ताकि उन्हें DAB क्षेत्रों के साथ-साथ नागालैंड में भारी हाइड्रोकार्बन क्षमता के बारे में आश्वस्त किया जा सके, जिसके उत्पादन का लाभ सभी हित धारकों को मिलेगा। जनवरी 2023 में निदेशक अन्वेषण का कार्यभार संभालने के बाद से, मेरे पास देश की ऊर्जा आवश्यकता के साथ समन्वय बनाये रखने के लिए, अन्वेषण परिदृश्य को मजबूत करने और स्वच्छ और हरित ऊर्जा संसाधनों की ओर ऊर्जा ट्रांज़िशन के मुद्दों को संबोधित करने का बड़ा दायित्व है।

प्रश्न : आपको निदेशक अन्वेषण जैसे महत्वपूर्ण पद तक पहुंचने के लिए किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

ओएनजीसी आज न सिर्फ हमारे देश की सबसे बड़ी तेल एवं गैस उत्पादक कंपनी है बल्कि विश्व के 15 देशों में तेल गैस के अन्वेषण एवं उत्पादन परियोजनाओं पर काम कर रही है। ओएनजीसी को इस मुकाम तक पहुंचने में बहुत से लोगों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है। ओएनजीसी ने देश को कई अनुभवी भूविज्ञानी और प्रौद्योगिकीविद्ने दिए हैं, जिन्होंने एक के बाद एक तेल और गैस भंडारों की खोज की और देश को विश्व के पेट्रोलियम नक्शे पर लाए हैं। ओएनजीसी में हर एक भूवैज्ञानिक के सामने चुनौती होती है कि वो स्वयं को एक सुयोग्य भू-वैज्ञानिक सिद्ध करें और देश के विभिन्न तेल भण्डारो में स्थापित पेट्रोलियम सिस्टम की एक व्यापक समझ बनाये। इसके अलावा कंपनी के वित्तीय हितों को ध्यान में रखते हुए अन्वेषण के दायरे को बढ़ाने के लिए वैश्विक ऊर्जा व्यापार की अच्छी समझ होना भी जरूरी है।

पिछले कुछ दशकों में तेल गैस उद्योग में महत्वपूर्ण तकनीकी परिवर्तन हुए हैं, आज आसान, सतह के नज़दीक में मिलने वाले तेल भण्डारों का युग समाप्त हो गया है, लगभग सभी आधुनिक अन्वेषण एवं उत्पादन कंपनियों द्वारा परिष्कृत अत्याधुनिक उपकरण और नए तरीके विकसित और अपनाए जा रहे हैं। किसी भी उम्र के पेट्रोलियम भू-वैज्ञानिकों के लिए यह अनिवार्य है कि वे समय के साथ हो रहे परिवर्तनों से कदम मिला के चलें और अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का उपयोग करना सीखें। साथ ही बढ़ते हुए कार्यभार के बीच अपने आप को तकनीकी और नवीनतम ज्ञान से अपग्रेडेड रखने की बड़ी चुनौती है।
मैं भाग्यशाली रही हूं, कि मैं लगभग सभी भारतीय बेसिन के पेट्रोलियम सिस्टम मॉडलिंग प्रोजेक्ट्स से जुड़ी, जिसने मुझे अन्वेषण की विभिन्न चुनौतियों का एक समग्र दृष्टिकोण दिया। मैंने तकनीकी एवं वाणिज्यिक मूल्यांकन परियोजनाएं भी की है जिससे मुझे अन्वेषण परियोजनाओं के व्यावसायिक दृष्टिकोण को समझने में मदद मिली। मैंने अपनी टीम के युवा सदस्यों से भी बहुत कुछ सीखा है, जिनकी कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर में पकड़ स्वाभाविक रूप से अच्छी होती है। आज के आधुनिक सॉफ्टवेयर में वो काम कुछ ही घंटे में हो जाते हैं जिन्हें पहले मैन्युअली करने में कई दिन लग जाते थे।

प्रश्न : ओएनजीसी के वर्तमान परिवेश में तेल की नई और बड़ी खोज की महत्त्वपूर्ण चुनौती आपके सामने है, आप इसको किस तरह देखती हैं?

हमारा देश इस समय तेज गति से विकास कर रहा है, वास्तव में यह अगले कुछ वर्षों के लिए सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। इस वृद्धि को बनाये रखने के लिए लॉजिस्टिक्स और परिवहन में सरलता बहुत महत्वपूर्ण है जो कि उपयुक्त ईंधन पर निर्भर है। वर्तमान में हम लगभग 85 प्रतिशत आवश्यक कच्चे तेल और गैस का आयात कर रहे हैं जो राष्ट्रीय हित में उपयुक्त नहीं है। ओएनजीसी जो देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी है, अपने पुराने भंडारों से उत्पादन को बनाए रखने के लिए अथक प्रयास कर रही है। हमारे लगभग सभी प्रमुख तेल भंडार 40 साल पहले खोजे गए थे जहां प्राकृतिक उत्पादन में गिरावट होना स्वाभाविक है। हालांकि, सघन अन्वेषण प्रयासों के माध्यम से हम अपने मुख्य भंडारों के आसपास की संरचनाओं में नए तेल भंडार जोड़ते जा रहे हैं। आपको बता दें कि सिर्फ मुंबई हाई फील्ड में ही, 1974 में इसकी खोज के बाद से, हमने मूल रूप से अनुमानित तेल गैस भंडार की तुलना में निरंतर अन्वेषण के माध्यम से लगभग तीन गुना भंडार जोड़ा है।

जैसा कि आपने पूछा, एक नया और बड़ा तेल और गैस भंडार खोजना हमारी कार्यसूची में सबसे ऊपर है और यही कारण है कि हम क्षैतिज और गहराई दोनों आयामों में अपने अन्वेषण क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं। हम विशेष रूप से श्रेणी-2 और श्रेणी-3 बेसिन में स्थल (onshore) और अपतटीय (offshore) क्षेत्रों में नए अन्वेषण पट्टों (Exploration lease areas) का अधिग्रहण कर रहे हैं, जहां पर अभी तक व्यवस्थित रूप से अन्वेषण नहीं किया गया है और साथ ही हम पहले से खोजे गए बेसिनों में और गहरी परतों में तेल की खोज का प्रयास रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हमें कृष्णा गोदावरी, कावेरी और अंडमान बेसिन के गहरे पानी और अत्यधिक गहरे पानी वाले क्षेत्रों और विंध्य और बंगाल बेसिन जैसे तटवर्ती क्षेत्रों में बड़ी सफलता मिलेगी। चुनौतीपूर्ण गहरे जल क्षेत्रों और गहरी परतां में तेल का पता लगाने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण है। ओएनजीसी गहरी परतों की इमेजिंग के साथ-साथ गहरे कुओं की ड्रिलिंग के लिए उच्च तकनीक वाले रिग एवं अन्य उपयुक्त उपकरणों के अधिग्रहण की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके अतिरिक्त, ओएनजीसी भारतीय अपतटीय क्षेत्रों में अन्वेषण के लिए ऐसी प्रतिष्ठित वैश्विक कंपनियों के साथ साझेदारी कर रहा है, जिन्हें गहरे समुद्र में अन्वेषण का अच्छा अनुभव है। कुल मिलाकर घरेलू संसाधनों को बढ़ाने के प्रयासों और उपयुक्त भागीदारों के सहयोग से बेहतर क्षमता का निर्माण होगा और एक बहुत बड़े भूभाग का तेजी से अन्वेषण संभव होगा।

प्रश्न : एक महिला होने के नाते आपको करियर में किन किन विशेष मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

इस सवाल का जवाब मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मेरा महिला होना कभी भी मेरे लिए या ओएनजीसी की प्रगति में बाधक रहा हो। ओएनजीसी एक बहुत ही पेशेवर संगठन है और यहां पर एक अधिकारी की पेशेवर क्षमता, सत्यनिष्ठा और नेतृत्व क्षमता ही हमें करियर के अगले पायदान तक लेके जाते हैं। हां ये जरूर है, कि एक भूवैज्ञानिक होने के साथ ही मैं एक गृहिणी भी हूं और 2 बच्चों की मां भी हूं। जब मैं देहरादून में कार्यरत थी, और विशेषकर जब मेरे बच्चे छोटे और मेरे पति मसूरी में कार्यरत थे तो घर और काम के बीच समन्वय बिठाने के लिए मुझे बहुत भाग दौड़ करनी पड़ती थी। परन्तु अगर लक्ष्य बड़ा है तो मेहनत भी तो ज्यादा करनी पड़ेगी। यद्यपि जब मैं अपने बचपन को स्मरण करती हूं तो हमेशा से ही मुझे एक साहसिक और तेज रफ़्तार जीवन जीना पसंद था शायद इसी वजह से मुझे जियोलॉजी विषय इतना पसंद आया जिसमें आउटडोर फील्ड सर्वे एक अभिन्न अंग होता है। आज मैं जरूर कहूंगी कि मुझे अपने करियर के लक्ष्य हासिल करने में अपने परिवार का भरपूर सहयोग मिला है, जिसके लिए मैं उनकी शुक्रगुज़ार हूं।

ये बात सही है कि हमारे देश में आज भी बच्चों की परवरिश और घर के रोज़मर्रा के कामों को करने की जिम्मेदारी स्त्री के कंधो पर ही ज्यादा है, जिससे शायद कुछ महिलाएं वर्क-लाइफ में उचित सामंजस्य नहीं बिठा पाती हैं। हालांकि, यदि आपके जीवन के लक्ष्य स्पष्ट हैं और आप उन्हें प्राप्त करने के लिए दृढ़ हैं, तो आपको अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए। एक सहायक और प्रेरक परिवार होने से यह सुनिश्चित होगा कि आप सभी बाधाओं को पार कर लेंगे और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे।

प्रश्न : आप उत्तराखंड से आती हैं, आपकी उत्तराखंड राज्य के विकास को लेकर क्या सोच है तथा उत्तराखंड की महिलाओं को आप क्या संदेश देना चाहती हैं?

देवभूमि उत्तराखंड मेरा जन्म स्थान है, इसलिए स्वाभाविक रूप से मेरे हृदय में इसका विशेष स्थान है। अपने जन्म से लेकर आजतक मैंने उत्तराखंड को अपनी आंखों के सामने बदलते देखा है। एक लम्बे संघर्ष के बाद अंततः वर्ष 2000 में उत्तराखंड एक नए राज्य के रूप में स्थापित हुआ, उसके बाद से ही हमारा राज्य बहुत तेजी से प्रगति पथ पर अग्रसर है। सरकार ने भी कई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना में मदद की है। दूसरी ओर अपनी अंतर्निहित प्राकृतिक सुंदरता के कारण राज्य पर्यटन स्थल के रूप में सभी उम्र एवं क्षेत्रों के लोगों को आकर्षित करता रहा है चाहे वह एडवेंचर टूरिज्म हो या आध्यात्मिक। बिजली और जलापूर्ति परियोजनाओं, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के पुनर्विकास और साथ ही अच्छी सड़कों, चारधाम रेलवे परियोजना, विभिन्न रोपवे परियोजनाओं के माध्यम से बेहतर संपर्क पर सरकार के ज़ोर से भविष्य में अधिक पर्यटकों के उत्तराखंड आने की उम्मीद है। इसलिए राज्य में पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में स्पष्ट रूप से बहुत बड़ा अवसर है।

हालांकि, यह उत्तराखंड के सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि वे इन पवित्र पहाड़ियों की नाजुक पारिस्थितिक और पर्यावरणीय स्थिति के बारे में जागरूक बनें। पर्यावरण और हमारी प्राचीन पहाड़ियों और जंगल को किसी भी तरह की क्षति से बचाने के लिए हमें अपनी योजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल ही बनाना चाहिए। पर्यटन के अलावा, उत्तराखंड धीरे-धीरे एक शिक्षा केंद्र के रूप में भी उभर रहा है, इसलिए हमें आधुनिक प्रयोगशालाओं और भविष्य के पाठ्यक्रम के साथ विश्व स्तरीय संस्थानों का विकास करना चाहिए, जो वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, शिक्षाविदों और प्रबंधकों की अगली पीढ़ी का विकास कर सके।

उत्तराखंड की महिलाएं दुनिया में सबसे मेहनती, निडर और निस्वार्थ भाव से काम करने वाली होती हैं। चाहे वह पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन हो, अलग राज्य के लिए आंदोलन हो या एक साधारण पहाड़ी महिला का दैनिक संघर्ष, उत्तराखंड की महिलाओं ने बहुत ही दृढ़ता और साहस दिखाया है। मैं उत्तराखंड की महिलाओं को सिर्फ इतना कहूंगी कि ‘आप वो सब कुछ, जो मानवीय रूप से संभव है करने में सक्षम हैं, इसलिए बड़े सपने देखें और उन्हें पाने के लिए कड़ी मेहनत करती रहें’।

प्रश्न : आप ओएनजीसी जैसी महारत्न कंपनी में निदेशक होने के नाते उत्तराखंड के युवा जो कॉरपोरेट ज्वाइन करना चाहते हैं, उन्हें व्यवसायिक सफलता का क्या मंत्र देना चाहती है?

युवा देश का भविष्य हैं। उत्तराखंड के युवाओं को ऊर्जा, उत्साह और अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का वरदान प्राप्त है, यही कारण है कि उत्तराखंड के कई लोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और हमारे पूर्व सेनाध्यक्ष स्व. जनरल बिपिन रावत, जिन पर हम सभी गर्व महसूस करते हैं, समकालीन प्रमुख उदाहरण हैं। जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह कला हो, संस्कृति हो, पर्यावरण संरक्षण हो, खेल हो, सिनेमा हो, आध्यात्म हो, शिक्षा हो, व्यवसाय हो या रक्षा, उत्तराखंड के लोगों ने अपार योगदान दिया है। उन सभी युवाओं के लिए जो कॉर्पोरेट क्षेत्र या उद्यमिता में अपनी पहचान बनाने के इच्छुक हैं, मेरे पास कुछ सुझाव हैं, जैसे :-

  • अपना लक्ष्य निर्धारित करें : अपनी रुचियों और क्षमता के आधार पर अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित करें और फिर अल्पकालिक लक्ष्य बना करके अपने करियर की प्रगति का रास्ता प्रशस्त करें।
  • इंटरनेट का सदुपयोग : आज इंटरनेट दुनिया में ज्ञान का सबसे बड़ा स्रोत है जो मुफ्त में उपलब्ध है लेकिन यह सबसे बड़ा ध्यान भ्रमित करने वाला माध्यम भी है। युवाओं को अपने ज्ञान और कौशल के उन्नयन के लिए इंटरनेट का सदुपयोग करना चाहिए और मूल्यवान समय को बर्बाद करने से बचना चाहिए।
  • कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प : कुशाग्र बुद्धि कुछ लोगों के लिए भगवान का उपहार हो सकती है, लेकिन एक औसत छात्र के लिए भी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत सफलता का निश्चित तरीका है। तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप टॉपर्स में से नहीं हैं या सर्वश्रेष्ठ बी-स्कूलों में प्रवेश नहीं कर पाए हैं, अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से आप किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं और अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  • अपने विचारों को व्यक्त करें : विभिन्न पाठ्येतर गतिविधियों जैसे सम्मेलन, संगोष्ठी, तकनीकी प्रतियोगिताओं, बहस आदि में भाग लें और अपने विचारों के बारे में स्पष्ट रहें। यह आपको सार्वजनिक स्तर पर बोलने में मदद करेगा और किसी दिए गए मुद्दे या परियोजना के बारे में आपके दृष्टिकोण को भी परिष्कृत करेगा। युवाओं को खेल, साहसिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसी टीम गतिविधियों में भी भाग लेना चाहिए, जहां वे टीम वर्क, पारस्परिक व्यवहार और नेतृत्व कौशल सीखेंगे जो कॉर्पोरेट सफलता के लिए बहुत आवश्यक हैं।

अंत में मेरी यही कामना है कि उत्तराखंड की आने वाली पीढ़ियां अपने जीवन में प्रगति की नित नई ऊंचाइयां छुएं और राज्य और देश दोनों को गौरवान्वित करें।

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शिक्षा के क्षेत्र में सरकार को ध्यान देने की जरूरत – वीरेंद्र रावत https://hillmail.in/government-needs-to-pay-attention-in-the-field-of-education-virendra-rawat/ https://hillmail.in/government-needs-to-pay-attention-in-the-field-of-education-virendra-rawat/#respond Sun, 20 Nov 2022 09:43:08 +0000 https://hillmail.in/?p=38869 जिस देवभूमि में सरस्वती ज्ञान के अलावा नदी के रूप में भी विद्यमान है, जंहा महर्षि वेद व्यास और कालिदास ने जन्म लिया हो, जो भूमि आदिकाल से ज्ञान विज्ञान की उत्पत्ति का श्रोत रही हो, वहां आज सरस्वती के मंदिर सरकारों के रहमो करम पर चल रहे है अथवा वीरान और खंडहर हो गए है।

जहां सरस्वती ने खुद पाताल का मार्ग अपना लिया हो, जवानी पलायन कर रही है, पर्यटन के रूप में आ रही अय्याशी मानवभक्षी हो गयी है, सरकार दिशाहीन और दशाहीन हो चुकी है, भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। यह बात वीरेंद्र रावत ने हमसे बातचीत करते हुए कही।

ग्रीन स्कूल के संस्थापक वीरेंद्र रावत पिछले दिनों उत्तराखंड की अपनी निजी यात्रा पर थे। हमने उनसे शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे काम पर बातचीत की जिसमें उन्होंने बताया कि बिना जवाबदार शिक्षा व्यवस्था के जवाबदार राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड तो शिक्षा के राष्ट्रीय सूचकांक में भी काफी पीछे है जो चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड तो ज्ञान की धरती रही है और ज्ञान विज्ञान के संस्थान ही उत्तराखंड का वैभव वापस ला सकते है। उत्तराखंड में धार्मिक और नैसर्गिक पर्यटन से ज्यादा शिक्षा के केंद्र विश्व को आकर्षित कर सकते है, उत्तराखंड के समृद्ध विद्यालय और विश्वविद्यालय ही राज्य को विश्व व्यवस्था उच्च स्थान और मान मर्यादा दिला सकते है।
वीरेंद्र रावत ने कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक स्तिथि विश्व और ब्रह्मांड की तमाम सकारात्मक शक्तियों को आकर्षित करती है, जिससे यहां के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों से शिक्षित व्यक्ति अपनी डिग्री के साथ एक दैवीय ऊर्जा भी अपने साथ विश्व में ले जाती है।

उत्तराखंड भविष्य में सुशिक्षित मानव संसाधन बड़ा निर्यातक होगा, विश्व व्यवस्था के सकुशल संचालन में उत्तराखंड के लोग ही नेतृत्व करेंगे। वर्तमान में उत्तराखंड की राजव्यवस्था को सरकारी अधिकारियों ने अपने कब्जे में ले रखा है। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भी उनके ही कब्जे में है और सरस्वती के मंदिरों को उनकी दया पर ही जीना रहा है। पर इस कार्य में सरकार की भूमिका शायद नहीं होगी, क्योंकि उत्तम कार्याे में सरकार कभी भागीदार नहीं रही है।

वीरेंद्र रावत ने कहा के आज की स्थिति में तो निजी शिक्षा संस्थानों को शंका की नजर से देखा जा रहा है, राजकीय शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता अदृश्य हो गई है। शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने के बजाय नौकरी करने आते है। विद्यार्थी के भविष्य की कोई जबाबदारी लेने को तैयार नहीं है। माता पिता अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पहाड़ों की जमीन जायदाद बेचकर शहरों में किराये के मकानों में रह रहे है। पलायन जोरों पर है राजनेताओ के वैभव देवराज इंद्र को भी चुनौती दे रहे हैं।

इस युग का जल्दी अंत आएगा उत्तराखंड के लोग ही यहां की प्रकृति, संस्कृति और संस्कारों की शक्ति से उत्तराखंड को विश्व में उच्च स्थान दिलाएंगे। हमें उत्तराखंड की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना होगा जिससे कि आने वाले समय में उत्तराखंड से पलायन पर रोक लगेगी और यहां के बच्चे पढ़लिखकर अलग अलग क्षेत्रों में राज्य का नाम रौशन करेंगे।

वीरेंद्र रावत ने कहा कि अपने उत्तरदायी शिक्षा व्यवस्था की शक्ति के माध्यम से विश्व के 40 से ज्यादा देशों को सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान दे रहे है। वीरेंद्र रावत संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में वर्ष 2021 से विशेष सलाहकार के रूप में संयुक्त राष्ट्र की नीतियों में अपना योगदान दे रहे है।

हाल ही में वीरेंद्र रावत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क शहर में अपना कार्यालय शुरू किया है। वीरेंद्र रावत अमेरिका एक के अनेक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम में प्रकृति की शक्ति को शामिल करवाने में कामयाब रहे है।

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किसानों व पशु पालकों को आत्मनिर्भर बनाना मेरा मकसद – वीके गौड़, पूर्व सीएमडी, नेशनल सीड्स कॉरपोरेशन https://hillmail.in/my-aim-is-to-make-farmers-and-livestock-owners-self-reliant-vk-gaur/ https://hillmail.in/my-aim-is-to-make-farmers-and-livestock-owners-self-reliant-vk-gaur/#respond Tue, 18 Oct 2022 08:09:02 +0000 https://hillmail.in/?p=38019 उत्तराखंड में कृषि एवं पशुपालन में अपार संभावनाएं हैं जिससे पहाड़ से पलायन रुक सकता है सिर्फ हमें लोंगों को उधमी बनाना हैं, परिश्रम करवाना है और रिस्क लेने कि क्षमता को विकसित करना है। राज्य के बाहर से काफी लोग आकर यहां पर जमीन खरीद रहे हैं और हम लोग उस पर मजदूरी कर रहे हैं पर खुद बाग लगाने को तैयार नहीं हैं। पूरा सिस्टम पढे लिखे लोगों के न होने से भ्रष्ट हो चुका है और जो लोग यहां पर हैं वह भी इसको जीवन कि सच्चाई मान कर समझौता कर चुके हैं, एक और आंदोलन के द्वारा जन जागरण कि जरूरत है। इस राज्य में अपार संभावनाएं हैं पर ईमानदारी से काम करने कि जरूरत है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जो भी लोग बाहर गए और कुछ पद पर रहे वह वापस नहीं आते हैं मेरा कृषि से लगाव रहा है और नेशनल सीड़ कॉरपोरेशन के सीएमडी रहते हुए ही मैंने यहां पर कुछ बीज बनवाना शुरू कर दिया था, इसलिए मैं वापस आ गया हूं और एक फ़ार्मर प्रोडूसर ऑर्गेनाईजेसन (एफपीओ) हिटो पहाड़ के माध्यम से अपने क्षेत्र के किसानों को कृषि व पशु पालन के बारे में विभिन्न संस्थानों के साथ मिलकर जानकारी दे रहा हूं। नेशनल सीड्स कॉरपोरेशन के पूर्व सीएमडी विनोद कुमार गौड़ से हिल-मेल के संपादक वाई एस बिष्ट की खास बातचीत की।

1 आप अपने बारे में बताइये, आप किस गांव में पैदा हुए आपकी पढ़ाई लिखाई कहां हुई?

मेरा जन्म सन् 1961 मैं ग्राम बवाणी विकास खंड नैनीडांडा जिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ। मेरे पिताजी उस समय बडखेत माध्यमिक विद्यालय मैं उप प्रधानाचार्य थे, अतः प्रारम्भिक शिक्षा भी उनके साथ ही हुई। उसके बाद वे हल्दूखाल मैं प्रधानाचार्य बने अतः कक्षा 3 में हल्दूखाल आ गया और 5वीं तक कन्या विद्यालय हल्दुखाल में पढ़ा। फिर 10वीं तक माध्यमिक विद्यालय हल्दूखाल में पढ़ा। 12वीं करने के लिए फिर बडखेत चला गया क्योंकि हल्दूखाल में तब इंटर कालेज नहीं था। 1978 में विनोद कुमार ने पंतनगर में बीएससी (कृषि एवं पशुपालन) में प्रवेश लिया। 1984 में एमएससी (कृषि विज्ञान) की डिग्री हासिल की। इसके बाद मेरा चयन राष्ट्रीय उवर्रक लिमिटेड (एनएफएल) में बतौर मैनेजमेंट ट्रेनी हुआ।

2. आपके परिवार में कौन कौन लोग हैं और आपके परिवार ने पहाड़ों में किस प्रकार का संर्घष देखा ?

हम चार भाई एवं एक बहन है। हम लोग स्कूल से 2 किलोमीटर दूर पैदल जाते थे। वापस आते समय पानी भर के लाते थे क्योंकि रास्ते में पानी 1 किलोमीटर की दूरी पर था। बडखेत लगभग 16 किलोमीटर दूर था जहां 10 किलोमीटर पैदल जाना होता था और एक ही बस थी यदि छूट गई तो पूरा 16 किलोमीटर पैदल जाना होता था। सप्ताह या पखवाड़ा में एक बार घर आते थे। रेडियो समाचार का एक मात्र साधन था।समाचार पत्र साप्ताहिक था जो कि 15 दिन बाद डाक से आता था। बस अड्डा 7 किलोमीटर दूर था। राशन खच्चर के द्वारा हल्दुखाल आता था, फिर गांव तक सिर पर लाया जाता था। सुबह एवं शाम को जनवरों को भी देखना होता था। खेती का काम भी छुट्टी के दिन या सुबह शाम देखना होता था। बिजली न होने के कारण पढ़ाई लालटेन में करनी होती थी। पहाड़ी जीवन चुनौतियों से भरा रहता है गांव जिम कार्बेट पार्क के पास होने से जंगली जानवरों से भी हर समय खतरा रहता था।

3. आप अपने कैरियर में कैसे कैसे आगे बढ़े ?

12वीं में मेरी प्रथम श्रेणी आने के कारण मेरा एड्मिशन पंतनगर में हुआ तब मैरिट के हिसाब से होता था। एमएससी में रिटन एक्जाम हुआ जिसमें मैंने टाप किया और फिर एमएससी में भी टॉपर रहा। यमयससी में स्कालरशिप मिल गयी थी, तो परिवार पर भी भार नहीं पड़ा। एमएससी करते समय ही नौकरी के लिए एक्जाम दिए। चार पांच जगह सलेक्सन हुआ, जैसे बैंक, प्राइवेट कंपनियां और मैंने भारत सरकार की खाद की कम्पनी नैशनल फर्टिलाईजर में मैनजमैंट ट्रेनी कि नौकरी ज्वाइन की। 23 साल कि उम्र में नौकरी शुरू की। यहां 2006 तक काम किया और अपनी लगन व मेहनत से सीनियर मैनेजर के पद तक पहुंचे।

इसके बाद ब्रह्मपुत्र फर्टिलाइजर कारपोरेशन (बीवीएफसीएल) में मैंने बतौर डिप्टी जनरल मैनेजर (मार्केटिंग) और जनरल मैनेजर (मार्केटिंग) काम किया जहां बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की ओर से मेरे काम को खूब सराहना मिली। अक्टूबर 2010 में स्टेट फार्म्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसएफसीआई) में बतौर चेयरमैन-कम-मैनेजिंग डायरेक्टर ज्वाइन किया और कंपनी में व्यापक बदलाव किए। एचआर, प्रोडक्शन, मार्केटिंग सभी क्षेत्रों में हुए परिर्वतन के बाद कंपनी ने भारत सरकार को डिविडेंड देना शुरू किया और सार्वजिनक उद्यम विभाग, भारत सरकार की ओर से एक्सीलेंट रेटिंग मिली।

जून 2013 में मैंने नेशनल सीड्स कारपोरेशन में बतौर चेयरमैन-कम-मैनेजिंग डायरेक्टर ज्वाइन किया। 1 अप्रैल 2014 को एसएफसीआई का नेशनल सीड्स कारपोरेशन में विलय हो गया जिससे दोनों कारपोरेशन में संसाधन के लिहाज से भारी बचत हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि नेशनल सीड्स कारपोरेशन ने साल के दौरान भारत सरकार को सबसे ज्यादा डिविडेंड दिया। अंत में मैं सीएमडी के पद से सेवानिवृत हुआ।

4. आपको क्या क्या करना पंसद है ?

मेरा ध्यान हर समय जो भी काम रहता है उसी पर केन्द्रित रहता है, मोनो फोकस, ग्रामीण पृष्ठभूमि होने के कारण पढ़ाई के समय सारा ध्यान पढ़ने पर रहा, खेल के लिए बहुत कम समय रहता था। यूनिवर्सिटी में कई समितियों में रहा व छात्र यूनियन में भी रहा। नौकरी में पूरा ध्यान कैसे काम को समय पर ईमानदारी से व कुछ अलग तरह से किया जाये इस पर रहता था। मेरा मानना है कि देवभूमि उत्तराखंड के बनने की एक मुख्य वजह पलायन को रोकना था।

1980 के दशक में लोगों के पलायन की रफ्तार सबसे ज्यादा रही और इसके बाद ही एक अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा। उम्मीद जताई गई कि इससे आर्थिक विकास होगा तो पलायन रुकेगा लेकिन जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2000 में अलग प्रांत बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों से और तेजी से पलायन होने लगा। इसका असर यह हुआ कि गांव के गांव वीरान होते गए।

5. उत्तराखंड में आप आर्गेनिक पर काम कर रहे हैं इसके बारे में विस्तृत से बताइये ?

उत्तराखंड में जो भी लोग बाहर गए और कुछ पद पर रहे वापस नहीं आते हैं मेरा कृषि से लगाव रहा है और एनएससी के समय से ही मैंने यहां पर कुछ बीज बनवाना शुरू कर दिया था, इसलिए में वापस आ गया हूं और एक फ़ार्मर प्रोडूसर ऑर्गेनाईजेसन (एफपीओ) हिटो पहाड़ (Honest Initiative Towar के Optimizing Potential in Animal Husbandry and Agriculture Development) (HITO PAHAD) के माधयम से अपने क्षेत्र के किसानों को कृषि व पशु पालन के बारे में विभिन्न संस्थानों के द्वारा जानकारी दे रहे हैं।

उत्तराखंड में कृषि और्गेनिक स्वतः ही है अतः इसे बढ़ावा देने की जरूरत है। क्षेत्र में कृषि के वैज्ञानिक तरीके के प्रचार प्रसार की कमी है, इनको किसानों तक पहुंचना है। भूमि का क्षरण एवं मिट्टी का कटाव तेजी से हुआ जिससे बाढ़ आने लगी और जलाशयों में गाद जमा हो गई। धीरे-धीरे स्थिति विकराल होती गई और गांव रहने के लायक ही नहीं बचे। जो गिने चुने गांवों में बचे भी थे उन्होंने भी बाद में घरबार छोड़ दिया। खेती करने योग्य जमीन सिकुड़ती गई और जो बचा वहां जंगल जानवरों ने भारी नुकसान पहुंचाया।

2011 की जनगणना के अनुसार 16,793 गांवों में से 1,053 गांव पूरी तरह से खाली हो गए थे। राज्य में कई सरकारें बनीं और सबने पलायन की समस्या को संज्ञान में लिया लेकिन धरातल पर ठोस प्रयास नजर नहीं आए। उत्तराखंड में खेती की समस्याओं में वर्षा पर आधारित होना और खेतों का टुकड़ों में होना, पलायन, कृषि रसायनों तक पहुंच की समस्या, रासायनिक परीक्षण की कम जानकारी, आजीविका के साधन के तौर पर खेती करने वालों को हीन समझा जाना आदि हैं। अब मैं गांव में आकर यहां के किसानों और पशु पालकों को जागरूक करने में लगा हूं और यहां के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रहा हूं।

6. अब आप सेवानिवृत हो गये हैं, अब आप अपने राज्य के लिए क्या करना चाहते हैं ?

राज्य में यदि कोई भी किसान या कोई भी संस्था या सरकार मेरे अनुभव का लाभ उठाना चाहती है तो में हमेशा तैयार हूं, जहां तक मेरे पास सीमित साधन हैं उनके माध्यम से जो भी कार्य हो पाएगा करते रहेंगे, उत्तराखंड में कृषि एवं पशुपालन में अपार संभावनाएं हैं जिससे पहाड़ से पलायन रुक सकता है सिर्फ हमें लोंगों को उधमी बनाना हैं, परिश्रम करवाना है और रिस्क लेने कि क्षमता को विकसित करना है।

बाहर से काफी लोग आकर यहां पर जमीन खरीद रहे हैं और हम लोग उस पर मजदूरी कर रहे हैं पर खुद बाग लगाने को तैयार नहीं हैं। पूरा सिस्टम पढे लिखे लोगों के न होने से भ्रष्ट हो चुका है और जो लोग यहां पर हैं वह भी इसको जीवन कि सच्चाई मान कर समझौता कर चुके हैं, एक और आंदोलन के द्वारा जन जागरण कि जरूरत है। इस राज्य में अपार संभावनाएं हैं पर ईमानदारी से काम करने कि जरूरत है। देवभूमि को सही मायने में अब सच्चे भक्तों की जरूरत है।

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युवाओं को प्रशिक्षण और स्व-रोजगार से ही रूकेगा पलायन https://hillmail.in/youth-will-stop-migration-only-through-training-and-self-employment/ https://hillmail.in/youth-will-stop-migration-only-through-training-and-self-employment/#comments Wed, 21 Sep 2022 05:27:08 +0000 https://hillmail.in/?p=37324 – मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) गुलाब सिंह रावत

मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) गुलाब सिंह रावत अपने 37 साल के लम्बे कार्यकाल के बाद एडीजी टीए के पद से सेवानिवृत हुए और देश-विदेश में उन्होंने देश की सेवा की। उन्होंने बताया कि मेरे परिवार का कोई भी व्यक्ति सेना में नहीं है, लेकिन इस महान भारतीय सेना का हिस्सा होने पर मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझता हूं और यह वास्तव में मेरा एक सपना था जो पूरा हुआ था।

जब मैंने प्रवेश लिया, तब ट्रेनिंग के बारे में और किस प्रकार के माहौल से गुजरना होगा, इस बारे में मैं बिल्कुल ही अनजान था। डेढ़ साल के प्रशिक्षण के बाद, भारतीय सेना की एक सर्वश्रेष्ठ रेजीमेंट, डोगरा रेजीमेंट की 7वीं बटालियन में कमीशन किया। जब मुझसे शाखा (आर्म्स) के बारे में पूछा गया, तब मैंने अपने पिता से बात की; तब उन्होंने मुझे खुशी-खुशी कहा कि जो कुछ भी मिले उससे खुश रहना।

मेजर जनरल गुलाब सिंह रावत ने कहा कि यह बड़ी ही शानदार यात्रा रही। मैं राष्ट्रीय बाल विद्या मंदिर, लुधियाना का छात्र रहा हूं। जून 1985 में, आईएमए, देहरादून से मैंने डोगरा रेजीमेंट की 7वीं बटालियन में कमीशन प्राप्त किया। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान विविधतापूर्ण और समृद्ध अनुभव के साथ, विशेषकर अपने देश के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की लड़ाइयों और भूक्षेत्रों में सेवा की वह श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षक बल का एक हिस्सा रहे तथा कांगो में संयुक्त राष्ट्र मिशन में भी शामिल रहे।

उन्होंने उरी सेक्टर में मैंने 7 डोगरा की कमान सम्हाली और प्रसिद्ध अमन सेतु पुल को खोलने में विशेष योगदान दिया, जिससे होकर श्रीनगर को मुज़फ्फराबाद (पाक अधिकृत कश्मीर) से जोड़ने वाली ऐतिहासिक बस सेवा 7 अप्रैल 2005 को आरंभ हुई। मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) गुलाब सिंह रावत की हिल मेल के संपादक वाई एस बिष्ट के साथ साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश:-

1. आप अपने बारे में बताइये, आप किस गांव में पैदा हुए आपकी पढ़ाई लिखाई कहां हुई ?

मेरा जन्म उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्र, रथ के गांव चान्गिन (तिरपालीसैण) में हुआ और इस क्षेत्र के लोग राठी कहलाते हैं। मेरे पिता ने 1950 में गांव छोड़ दिया, जिसका मूल कारण यह था कि वे सेना में भर्ती नहीं होना चाहते थे। मेरे दादा चाहते थे कि ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते मेरे पिता सेना में जाएं। 1950 में वे जालंधर चले आए और अपने एक परिचित के घर रहे और उन्होंने वहां काम करना शुरू कर दिया। साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी, क्योंकि गांव में उन्होंने 10वीं ही पास की थी।

मेरा जन्म 1963 में हुआ और उसी साल उन्होंने लुधियाना में अपना स्कूल खोल लिया और वे एक शिक्षाविद बन गए। 5 वर्ष की आयु में मैं अपने पिता के पास आ गया, लेकिन मेरी मां अभी भी गावं में ही थी। वित्तीय दिक्कतों के कारण, वे उन्हें अपने पास नहीं बुला सकते थे और वे अपने संस्थान, राष्ट्रीय बाल विद्या मंदिर को अपना सब कुछ समर्पित करना चाहते थे। मैंने अपनी स्कूली शिक्षा लुधियाना में आरंभ की और तीन साल बाद, मेरी बहनों के साथ मेरी मां भी लुधियाना आ गईं।

मेरे पिता आरएसएस गतिविधियों और सामाजिक क्रियाकलापों में सक्रिय रूप से शामिल थे; स्कूल के बाद, वे मुझे साइकिल से एक शिक्षक के पास छोड़ जाते थे और फिर वे लोगों की और अपने संस्थान की समस्याओं के समाधान के लिए लुधियाना में घूमते रहते थे तथा रात में वापसी पर वे मुझे उन शिक्षक के घर से ले लेते थे तथा फिर हम साथ में रात का खाना खाते थे।

मेरे पिता बड़े सख्त, अपने वचन के पक्के थे। उनके सामने कोई बोल नहीं सकता था। वे बड़े ही परिश्रमी, निष्कपट और समर्पित व्यक्ति थे। वे बच्चों को अपनी साइकिल पर स्कूल लाते थे, क्योंकि अभी यह शुरूआत थी और वे सबसे अलग भी थे; बाद में यह स्कूल सीनियर सैकेंडरी हो गया।

उन्होंने अपने संस्थान को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए और परमात्मा की कृपा से वे अपने इस प्रयास में सफल भी हुए और इसके बाद, उन्होंने उत्तराखंड के कई व्यक्तियों को शिक्षा के क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया और आप आज देखेंगे कि लुधियाना में अधिकतर स्कूल उत्तराखंड के लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं।

मैंने कठिनतम समय भी देखा है, जब मैं और मेरे पिता साथ-साथ रहते थे; वे मेरी देख-भाल करते, मेरे खाने-पीने और मेरे कपड़ों का ध्यान रखते और साथ ही अपने सामाजिक जीवन के साथ-साथ अपने कारोबार को भी सम्हालते थे। वे ऐसा कैसे कर पाते थे, मैं तो सोच भी नहीं सकता – यह तो मेरे लिए असंभव ही था। उन पर मुझे गर्व होता है और मैं बड़ा सौभाग्यशाली था कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले।

2. आपके परिवार में कौन कौन लोग हैं और आपके परिवार ने पहाड़ों में किस प्रकार का संर्घष देखा ?

हम दो भाई और तीन बहनें हैं। मैं बुवाखाल (पौड़ी के निकट) से अपने गांव तक पैदल जाता था, जिसमे मुझे करीब तीन दिन लग जाते थे, लेकिन मैंने कभी भी अपने पिता से नहीं कहा कि मैं गांव नहीं जाऊंगा। हर वर्ष, गर्मियों की छुट्टियों में, वे मुझे गांव ले जाते थे और हम वहां 30 से 45 दिनों तक रहते थे।

बाद में, अपने मां, भाई और बहनों सहित मेरा पूरा परिवार गांव जाता था, जहां न तो बिजली थी, न ही सड़क और न ही कोई बाज़ार, बस हम और हमारा परिवार होता था। पानी का निकटतम स्रोत एक किलोमीटर दूर था। मेरे गांव से निकटतम दुकानें करीब 7 से 10 मिलोमीटर दूर थीं। आज भी, हम अपनी संस्कृति, विरासत को बनाए रखे हुए हैं, और अपने गांव जाते हैं। मेरे परिवार में पत्नी अनुपमा रावत और पुत्र अंकित तथा पुत्री गरिमा है।

3. आप अपने कैरियर में कैसे कैसे आगे बढ़े ?

सेना में शामिल होना मेरा सपना था। 12वीं के बाद, मैं एनडीए की योग्यता सूची में नहीं आ सका, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मेरे लिए कुछ और होगा, मैं बहुत निराश था। ग्रेजुएशन के बाद, मैंने केवल एक बार एनडीए के लिए प्रयास किया था, इसलिए मैंने सोचा कि एक बाद सीडीएस के लिए प्रयास करूं, लेकिन उन्हीं दिनों एमबीबीएस के लिए मेरी कोशिशें चल रही थीं, क्योंकि 12वीं के बाद में उसे कर नहीं पाया था।

मैं सीडीएस, एसएसबी में सफल हो गया और सेना में जाने का मेरा रास्ता साफ हो गया, लेकिन मेरे माता-पिता खुश नहीं थे, लेकिन बाद में मेरे पिता ने मुझसे कहाः जो तुम्हें अच्छा लगे, करो, चुनना तुम्हें ही है। तब उन्होंने मुझे बताया कि यदि मेरे दादा जीवित होते, तो वे मुझे भारतीय सेना में जाते देख कर, दुनिया में सबसे खुश व्यक्ति होते। क्योंकि मेरे पिता बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि मैं सेना में शामिल हो जाऊं और इससे बचने के लिए वे बिना किसी को बताए घर छोड़कर चले गए। इस तरह वे जालंधर पहुंच गए और बाद में लुधियाना।

मेरे पिता कठिनाइयां झेलते रहे, ताकि हम सभी को और परिवार को अच्छे से अच्छा प्रदान कर सकें। वे एक सहृदय, दूसरों का खयाल रखने वाले तथा धुन के पक्के व्यक्ति थे। वे उत्तराखंडियों में बहुत ही लोकप्रिय थे और गढ़वाल के अपने लोगों के लिए या किसी अन्य मुद्दे पर सदैव ही अतिरिक्त प्रयास करने को तत्पर रहते थे, क्यों गढ़वाल के हमारे इलाके मंे कुछ भी नहीं था।

मेरे परिवार का कोई भी व्यक्ति सेना में नहीं है, लेकिन इस महान भारतीय सेना का हिस्सा होने पर मैं, अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझता हूं और यह वास्तव में मेरा एक सपना था, जो पूरा हुआ था। जब मैंने प्रवेश लिया, तब ट्रेनिंग के बारे में और किस प्रकार के माहौल से गुजरना होगा, इस बारे में मैं बिल्कुल ही अनजान था। बहुत सारी रगड़पट्टी से भरे बड़े ही स्मरणीय दिन थे वे।

डेढ़ साल के प्रशिक्षण के बाद, भारतीय सेना की एक सर्वश्रेष्ठ रेजीमेंट, डोगरा रेजीमेंट की 7वीं बटालियन में कमीशन किया गया। जब मुझसे शाखा (आर्म्स) के बारे में पूछा गया, तब मैंने अपने पिता से बात की; तब उन्होंने मुझे खुशी-खुशी कहा कि जो कुछ भी मिले उससे खुश रहना, लेकिन तुम्हारे चाचा ने, जो वायुसेना में हैं, मुझे बताया था कि आराम के लिहाज से सेनाएं सबसे अच्छी हैं।

मैंने अपने पिता से कहा, यदि मुझे सेना में रहना है, तो मैं केवल लड़ाकू सेनाओं में जाऊंगा। इसके साथ ही सेना में मेरी पारी आरंभ हो गई। यह बड़ी ही शानदार यात्रा रही है। मैं राष्ट्रीय बाल विद्या मंदिर, लुधियाना का छात्र रहा हूं। सभी खेल-कूदों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहा। पढ़ाई के अलावा दूसरी गतिविधियों, नाटकों और वाद-विवादों आदि में हिस्सा लेता रहा।

जून 1985 में, आईएमए, देहरादून से मैंने डोगरा रेजीमेंट की सातवीं बटालियन में कमीशन प्राप्त किया। सैंतीस वर्षों के विविधतापूर्ण और समृद्ध अनुभव के साथ, मैंने विशेषकर अपने देश के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्र में विभिन्न्ा प्रकार की लड़ाइयों और भूक्षेत्रों में सेवा की है और मैं, श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षक बल का एक हिस्सा रहा तथा कांगो में संयुक्त राष्ट्र मिशन में भी शामिल रहा।

उरी सेक्टर में, मैंने 7 डोगरा की कमान सम्हाली और प्रसिद्ध अमन सेतु पुल को खोलने में मेरा विशेष योगदान रहा, जिससे होकर श्रीनगर को मुज़फ्फराबाद (पाक अधिकृत कश्मीर) से जोड़ने वाली ऐतिहासिक बस सेवा का 7 अप्रैल 2005 को आरंभ हुई। एक ब्रिगेड कमांडर के रूप में, मैंने प्रसिद्ध और ऐतिहासिक पीर पंजाल ब्रिगेड की कमान सम्हाली। महू के इन्फैंटरी स्कूल में इंस्ट्रक्टर रहा और कमान तथा सेना मुख्यालय स्तर पर कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील पदों पर रहा।

कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक मिशन में मिलटरी आब्ज़र्वर रहा तथा श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षक दल का भी हिस्सा रहा। प्रतिष्ठित डिफेंस सर्विसिज़ स्टाफ कालेज, वेलिंगटन का ग्रेजुएट होने के साथ-साथ मैंने सिंकदराबाद के रक्षा प्रबंधन कालेज से उच्च रक्षा प्रबंधन कोर्स किया।

डैगर डिविज़न की कमान सम्हालने के दौरान वीरता तथा विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया गया, 161 इन्फैंटरी ब्रिगेड (आपरेशन रक्षक) की कमान के दौरान युद्ध सेवा पदक, 7 डोगरा (आपरेशन रक्षक) में सेवा के दौरान सेना पदक, थलसेनाध्यक्ष प्रशस्ति पत्र और जनरल आफीसर कमांडिंग इन चीफ प्रशस्ति पत्र (दो बार) प्राप्त हुए। जम्मू कश्मीर के बारामूला में अपने कार्यकाल के दौरान मैंने ऑपरेशन सदभावना के तहत यहां के बच्चों के कल्याण के लिए बहुत काम किये।

एफटीआईआई पुणे के सहयोग से यहां के बच्चों को सिनेमा के बारे में जानकारी दी गई और इस काम को करने के लिए एफटीआईआई के डॉरेक्टर भूपेंद्र कैंथोला का बहुत सहयोग मिला। उन्होंने अपनी टीम को यहां भेजकर बच्चों के लिए बहुत काम करवाया। जिससे कि यहां के बच्चों में जो आतंक का डर था उसको दूर करने में काफी मदद मिली। एक साल के लिए आईएमए के डिप्टी कमांडैंट के रूप में एक संक्षिप्त कार्यकाल रहा। अंत में, 31 अगस्त 2021 में सेना मुख्यालय के आईएचक्यू से एडीजी टीए के रूप में सेवानिवृत्त हुआ।

4. आपको क्या करना पसंद है?

उत्तराखंड के गांवों में रहने वाले नौजवानों की सशस्त्र सेनाओं और सेंट्रल आर्मड पुलिस फोर्सेस (सीएपीएफ) के लिए तैयारी करने में मदद करना। अपने भविष्य के नौजवानों को जहां भी और जो भी व्यवसाय अपनाने में अपना श्रेष्ठतम योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध बनाने और उन्हें प्रेरित करने के उद्देश्य से उनके साथ समय गुजारना।

उत्तराखंड के गांवों के लोगों से जुड़े रहना और उनके कौशल को संवारने और उन्हें स्वतंत्र बनाने के लिए हर संभव सहायता प्रदान करना और आत्मनिर्भर भारत तथा स्किल इंडिया का हिस्सा बनना। खिलाड़ी होने के नाते, मुझे हर तरह के खेल खेलना पसंद है और अपने नौजवानों के साथ कोई भी खेल खेलने और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने में मुझे बड़ा आनंद आता है।

5. आप सेवानिवृत हो गये हैं आप अब अपने राज्य को क्या लौटाना चाहते हैं ?

मेरा बचपन पंजाब में गुजरा, मैंने वहीं से अपनी शिक्षा दीक्षा की है। अब मैं पंजाब से उत्तराखंड चला आया हूं और मैंने चरणबद्ध रूप से निम्नलिखित कार्य करने के लिए भविष्य के परिप्रेक्ष्य में उत्तराखंड के गांवों का दौरा करना शुरू कर दिया है।

  • शराब और नशीले पदार्थों पर नियंत्रण,
  • गांवों में रहने वाले लोगों के मैदानी इलाकों में पलायन को रोकने के लिए लोगों को प्रशिक्षण देना और स्व-रोजगार के लिए तैयार करना,
  • अपनी पुरानी विरासत पर जोर देना और राज्य सरकारों तथा विभिन्न एनजीओ की मदद से कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना,
  • गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों के अंदरूनी भागों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी सुविधाओं को उन्नत बनाने के लिए लोगों को सरकारी और स्थानीय संसाधनों के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना,
  • लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ना, जिसके लिए गांवों में वापस पलायन के लिए कार्यक्रमों और उत्सवों का आयोजन करना।
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पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने की जरूरत – मनोज बर्थवाल https://hillmail.in/need-to-strengthen-health-services-in-the-mountains/ https://hillmail.in/need-to-strengthen-health-services-in-the-mountains/#comments Sat, 20 Aug 2022 05:31:21 +0000 https://hillmail.in/?p=35936 उत्तराखंड के लोग चाहे वह किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से एक अलग मुकाम हासिल किया है। उनमें से एक नाम मनोज बर्थवाल का है वह ओएनजीसी में 38 साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने 1984 में ओएनजीसी ज्वाइन की और जून 2022 में वह ओएनजीसी अकादमी प्रमुख व कार्यकारी निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने ओएनजीसी में रहते हुए असम, बड़ोदा, देहरादून, मुम्बई व दिल्ली में अनेक पदों पर काम किया। उन्हें लेखन, गायन व खेल कूद का भी शौक है। उनका कहना है कि अब वह गढ़वाल व कुमाऊं का भ्रमण करेंगे और वहां के लोगों की समस्याओं को समझकर मित्रों के साथ मिलकर वहां कुछ करने कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि सुदूर पहाड़ों में चिकित्सा व्यवस्थाओं को और अच्छा करने की आवश्यकता है। विशेषतौर पर खून की जांच के साधनों को आस पास स्थापित करवाने की दिशा में कार्य करना उनकी प्राथमिकता रहेगी। उन्होंने कहा कि मेरे कुछ मित्र ड्रोन के माध्यम से बीज दूर पहाड़ों में डालने पर विचार कर रहे हैं। स्वच्छता अभियान की तरह ही बीज व पेड़ लगाने के अभियान देश में चलने चाहिए। इससे पहाड़ों में भूस्खलन से हमें बहुत हद तक राहत मिल जायेगी व ग्लोबल वार्मिंग कम होगी। ओएनजीसी से सेवानिवृत होने के बाद मनोज बर्थवाल ने हिल-मेल के संपादक वाईएस बिष्ट से बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं :-

1. आप किस गांव में पैदा हुए आपकी पढ़ाई लिखाई कहां हुई?

मेरा जन्म पौड़ी गढ़वाल में अपने नाना के घर में 30 मई 1962 को हुआ। मेरे पिताजी स्वर्गीय देवी प्रसाद बर्थवाल इंटेलीजेंस ब्यूरो में काम करते थे और एक लंबे समय उन्होंने नेफा (नॉर्थ इस्टर्न फ्रंटियर प्रोवियंस अब अरूणाचल प्रदेश) व असम के सुदूर क्षेत्रों में काम किया। मेरे जन्म के समय वे वहीं कार्यरत थे। मेरी मां स्वर्गीय कल्पेश्वरी बर्थवाल एक कुशल गृहणी थी। मेरी शुरूआती शिक्षा उत्तराखंड में ही हुई, मैंने पौड़ी में नेहरू माउन्टेसरी स्कूल में 1966 में प्रवेश लिया व तीन साल वहीं शिक्षा प्राप्त की। प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा, नैनीताल इत्यादि में दी। फिर आने वाले वर्षों में जहां भी पिताजी का स्थानान्तरण हुआ जैसे धारचूला, जोशीमठ, इलाहाबाद व फैजाबाद वहीं शिक्षा प्राप्त की। बाद में बीए और एमए लखनऊ विश्व विद्यालय से किया व कुछ समय बाद दूरदर्शन, रेडियो व अखबार में वहीं काम किया। घर का वातावरण सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार का था। पिताजी देशभक्त व ईमानदार अफसर थे अतः सीमित साधनों में परिवार का भरणपोषण किया जाता था। घर में पढ़ाई व अच्छे अंक लाने पर विशेष बल था। मैं हाई स्कूल से लेकर एमए तक सदैव प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। बाद में देहरादून रहते हुए मैंने डीएवी कॉलेज में शाम की विधि की क्लासेस ज्वाइन की व प्रथम श्रेणी में एलएलबी किया। बीच में बड़ोदा रहते हुए मैंने डिप्लोमा इन मैंनेजमैंट व डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस मैंनेजमैंट भी कर लिया था। पढ़ाई के साथ साथ विभिन्न कलाओं व खेल कूद में मैंने हमेशा भाग लिया।

2. आपके परिवार में कौन कौन लोग हैं और आपके परिवार ने पहाड़ों में किस प्रकार का संर्घष देखा ?

मेरी दो छोटी बहिने हैं मंजरी व मनीषा। दोनों विवाहित हैं और वह अपने परिवार के साथ खुशी से रह रही हैं। मेरी पत्नी सुनन्दा हमेशा मेरी सहभागी व सहचर रहीं। एमए टॉप करने पर भी उन्होंने नौकरी न करके परिवार को अपना सम्पूर्ण समय देने का निर्णय लिया। अपनी पीएचडी की छात्रवृत्ति को भी दूसरे विद्यार्थी के लिये छोड़ दिया। हमारे दोनों बेटे ईशान आदित्य व शाश्वत आदित्य कम्प्यूटर इंजीनियर हैं व पेरिस में काम करते हैं। ईशान का विवाह ऑरेलिया से हुआ है जिन्होंने स्वयं बीटैक व एमबीए की शिक्षा विदेश में प्राप्त की है। तीनों बच्चे भारतीय नागरिक हैं। चूंकि हम जात पात व रंग भेद में विश्वास नहीं करते हैं व बच्चों को मानवता का तर्कसंगति की शिक्षा दी, अतएव उनके नाम से जाति सूचक उपनाम निकालने का हम दोनों ने निर्णय लिया।

3. आप अपने कैरियर में कैसे कैसे आगे बढ़े ?

मैंने ओएनजीसी की परीक्षा जो कि अखिल भारतीय परीक्षा थी 1984 में दी व 6ठे स्थान पर रहा। शुरूआती ट्रेनिंग एमडीआई गुड़गांव में तीन महीने चली तत्पश्चात् मैंने अपने पिता की तरह असम में जाने का अनुरोध किया जो मान लिया गया। लोग नॉर्थ ईस्ट जाने से कतराते थे परन्तु मेरा अनुभव अत्यंत सुखद रहा। मैं धारा प्रवाह असमिया बोल सकता हूं व भूपेन हजारिका जी के गाने गाता हूं। उन्हें मैं महानतम कलाकारों में गिनता हूं।

बाद में मेरा स्थानान्तरण बड़ोदा, देहरादून, मुम्बई व दिल्ली हुआ और अंत में मेरा स्थानान्तरण वापस देहरादून हुआ जहां में अकादमी प्रमुख व ईडी के पद से कार्यमुक्त हुआ। हमारा घर देहरादून में ही है और सम्प्रति हम यहीं निवास करते हैं। मुझे जो भी कार्यभार जहां भी दिया गया मैंने निष्ठा से उसे निभाने की चेष्ठा की। साथ ही अपने लेखन, गायन व खेल कूद के शौकों को जीवित रखने की भी चेष्ठा की। ओएनजीसी विश्व का अकेला प्रतिष्ठिन है जिसके 6 कर्मी एवरेस्ट पर व 9 कर्मी कंचनजंघा पर चढ गए। इन दोनों अभियानों का मैं भी अभिन्न अंग रहा। हमारे कर्मियों ने एवरेस्ट की चोटी पर राष्ट्र गान गाया व उनका नाम लिम्बा बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है। हमारे गु्रप ने दिल्ली में पहली बार खेल आयोजित किये जिनकी बहुत सराहना की गई। अब यह लगभग हर वर्ष आयोजित किये जाते हैं।

4. आपको क्या क्या करना पंसद है ?

मुझे लोगों के संपर्क में रहना व एक दूसरे की सहायता करते रहना पर्वप्रिय हैं। मेरे मित्र सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए है और हम आपस में सदैव सम्पर्क बनाये रखते हैं। विशेषतौर पर हम मित्रों ने सैकड़ों व्यक्तियों की सेवा की जिसके लिये मुझे अपने मित्रों पर गर्व है। मेरे ओएनजीसी के साथी जो उच्च पदों पर थे उन्होंने सदैव मेरा समर्थन किया व यथासम्भव पहाड़ों के लिये सहायता दी। पौड़ी के कोट ब्लौक व सतपुली में मेरे अनुरोध पर ओएनजीसी ने विश्वस्तरीय ऑक्सीजन कंसंट्रेटरस लगाए व कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया। पौड़ी में ही ओएनजीसी ने वाटर एटीएम भी लगवाया जिससे आमजन को लाभ मिल सके। मेरा जन्म स्थान पौड़ी है अतः वहां के लिए मेरा स्नेह स्वाभाविक है।

5. अब आप सेवानिवृत हो गये हैं, अब आप अपने राज्य के लिए क्या करना चाहते हैं ?

अपने कार्यकाल में देहरादून रहते हुए मुझे जब भी मौका मिला है आस पास के पहाड़ों की ओर निकल जाता था। पहाड़ों से मुझे विशेष स्नेह है। व्यक्तिगत तौर पर जो भी संभव हो अपने लोगों की सहायता करने की कोशिश मेरा प्रण रहेगा। समय समय पर विद्यार्थियों को मैं अपने अनुभव व आगे बढ़ने के उपाय बताता हूं।

सेवानिवृति के उपरांत मैंने पुनः लिखना आरम्भ कर दिया है व मेरे लेख छपते रहते हैं। बरसात के उपरान्त मैं गढ़वाल व कुमाऊं का भ्रमण करूंगा, वहां के लोगों की समस्याओं को समझकर मित्रों के साथ मिलकर वहां कुछ करने की अभिलाषा है। सुदूर पहाड़ों में चिकित्सा व्यवस्थाओं को और अच्छा करने की आवश्यकता है। विशेषतौर पर खून की जांच के साधनों को आस पास स्थापित करवाने की दिशा में कार्य करना मेरी प्राथमिकता रहेगी। मेरे कुछ मित्र ड्रोन के माध्यम से बीज दूर पहाड़ों में डालने पर विचार कर रहे हैं। मुझे प्रकृति से अत्यन्त प्रेम है और मेरा मानना है कि स्वच्छता अभियान की तरह ही बीज व पेड़ लगाने के अभियान देश में चलने चाहिए। इससे पहाड़ों में भूस्खलन से हमें बहुत हद तक राहत मिल जायेगी व ग्लोबल वार्मिंग कम होगी।

मेरा मानना है कि वानप्रस्थ अवस्था में विशेषतौर पर हमें अपने जन्मस्थान व प्रान्त के लिये जितना संभव हो प्रयास करना चाहिए।

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INTERVIEW: चार दशक का शानदार सेवाकाल – टिहरी गढ़वाल के घुमेटीधार से वायुसेना के एयर मार्शल तक https://hillmail.in/four-decades-of-glorious-service-from-ghumetidhar-of-tehri-garhwal-to-air-marshal-of-the-air-force/ https://hillmail.in/four-decades-of-glorious-service-from-ghumetidhar-of-tehri-garhwal-to-air-marshal-of-the-air-force/#respond Fri, 25 Feb 2022 12:47:05 +0000 https://hillmail.in/?p=31126 एयर मार्शल विजयपाल सिंह राणा चार दशक का शानदार करियर पूरा करने के बाद वायुसेना की प्रशासनिक शाखा के प्रमुख यानी एयर ऑफिसर इन चार्ज एडमिनिस्ट्रेशन के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वायुसेना में उन्होंने अपने लगभग चार दशक के कार्यकाल के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण पदों का कार्यभार संभाला। उन्होंने कारगिल युद्ध और ऑपरेशन पराक्रम के दौरान फाइटर कंट्रोलर और रडार यूनिट के कमांडिंग अफसर के रूप में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके वायुसेना में विशिष्ट सेवा के लिए पीवीएसएम, वीएसएम और वायु सेना प्रमुख द्वारा प्रशंसा पत्र से सम्मानित किया गया। हमेशा जमीन से जुड़े रहे एयर मार्शल राणा अपने विचारों में उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास को प्राथमिकता देते हैं और उत्तराखंड को एक प्रगतिशील और आर्थिक रूप से विकसित राज्य के रूप उभरते देखना चाहते हैं। हिल-मेल दिल्ली के संपादक वाईएस बिष्ट की एयर मार्शल राणा से सेवानिवृत्ति के अंतिम दिन हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

आपने चार दशक तक वायुसेना के विभिन्न पदों पर कार्य किया और आप वायुसेना की प्रशासनिक शाखा के प्रमुख के पद पर पहुंचे, आप अपने कार्यकाल को कैसे देखते हैं ?

मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे वायुसेना में लगभग चार दशक तक कार्य करने का सौभाग्य मिला और प्रशासनिक शाखा के सबसे ऊंचे पद तक पहुंच पाया। इसमें नियति, मेहनत, अपने प्रियजनों की दुआओं और बड़े बुजुर्गों और गुरूजनों के मार्गदर्शन का बहुत बड़ा योगदान है।

जैसा कि आपको विदित है वायुसेना, एक बहुत ही प्रोफेशनल सर्विस है और वायुसेना में प्रशासनिक शाखा का बहुत बड़ा योगदान होता है जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता। वायुसेना में जहाज, मिसाइलों या रडार जैसे यंत्रों को चलाने और उनके रखरखाव के अलावा, जो भी कार्य होते हैं सब प्रशासन की जिम्मेदारी होती है जैसे मेडिकल, एकाउंटस, कानून व्यवस्था, रहन-सहन, रनवे/हैंगर का निर्माण कार्य, मकान जमीन, जन-कल्याण, जमीनी सुरक्षा इत्यादि। इसके अलावा प्रशासनिक शाखा, सीधे और परोक्ष रूप में भी ऑपरेशंस में भी शामिल होती है जैसे एयर ट्रैफिक कंट्रोलिंग और फाइटर कंट्रोलिंग, जिसमें वायुयानों को निश्चित मिशनों के लिए दिशानिर्देश देना शामिल है।

ये मेरा सौभाग्य रहा कि लगभग इन सभी क्षेत्रों में मुझे कार्य करने का मौका मिला। कारगिल युद्ध के दौरान मैं एक रडार यूनिट का कमांडिंग ऑफिसर रहा और ऑपरेशन पराक्रम के दौरान भी युद्ध क्षेत्र में तैनाती रही। समय-समय पर निर्माण कार्य और रनवे निर्माण का भी अनुभव मिला। एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर लोगों के लिए काम करने का मौका मिला। एयर डिफेंस के क्षेत्र में भी लगभग हर तरह के ऑपरेशनल कार्यों से जुड़ा रहा और कई तरह के महत्वपूर्ण योगदान दे पाया। देश विदेशों में भी स्टाफ कॉलेजों के इंसट्रक्टर के तौर पर भी बहुत अच्छा अनुभव रहा।

लेकिन सबसे अलग और सबसे चैलेंजिंग मेरे अंतिम दो साल रहे, जिसमें लगभग पूरे समय कई तरह की मुश्किलें सामने आई, मुख्यतः सीमा पर चीन के साथ तनाव और कोविड19 की महामारी। वायुसेना ने इन दोनों क्षेत्रों में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया। वायुसेना के कोविड19 मुख्य संयोजन अधिकारी के तौर पर मुझे कोविड19 से जुड़ी सारी समस्याओें के समाधान के लिए कई स्तर पर लगातार सामंजस्य बनाना था और इसे मैं अपनी सबसे बड़ी कामयाबियों में गिनूंगा जिसके तहत हॉस्पिटल में बेड और ऑक्सीजन की सुविधाओं को एक बहुत ही कम समय में कई गुना बढ़ाया, जिससे कई जानें बच सकी। इस दौरान सिर्फ वायुसेना ही नहीं बल्कि आम जनता को भी सारी सुविधायें मुहैया करायीं। कुल मिलाकर मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा और मुझे खुशी के साथ-साथ बहुत संतुष्टि है कि मैं अच्छा योगदान दे पाया।

यह भी देखें –  उत्तराखंड के दो सपूतों को बेहतरीन सेवा के लिए अलकंरण, एयर मार्शल वीपीएस राणा को पीवीएसएम, बीसी जोशी को राष्ट्रपति पुलिस पदक

आपकी शिक्षा दीक्षा कहां से हुई और अपने परिवार के बारे में कुछ बताइये ?

अपनी शिक्षा दीक्षा के मामले में मैं बहुत ही भाग्यशाली रहा हूं क्योंकि अपनी पढ़ाई मैंने उत्तराखंड में कई जगहों से की। आज के दिन शायद ही कोई इस बात पर विश्वास करें, लेकिन मेरी प्राथमिक शिक्षा की कहानी बड़ी दिलचस्प है। मेरे दादाजी जंगलात में फॉरेस्टर थे और उन्हें कई सामाजिक, सांसारिक, धार्मिक और शैक्षिक हर तरह का बहुत ज्ञान था, तो उन्होंने घर में ही मुझे पढ़ाया-लिखाया और फिर सीधे चौथी कक्षा में भर्ती करवाया क्योंकि पांचवी का जिलास्तरीय बोर्ड होताथा। मैं जब स्कूल गया तो हमारे प्रधानाध्यापक ने छह महीने के बाद मेरे दादाजीसे ये कह कर कि लड़का अच्छा है, मुझे पांचवीं कक्षा में डाल दिया और मैंने एक ही साल में चौथी और पांचवीं कक्षा की पढ़ाई की। वस्तुतः पूरी प्राथमिक शिक्षा में सिर्फ एक साल ही स्कूल गया और मजेदार बात ये है कि उसके बाद आयु कम होने के कारण छठी में भर्ती नहीं हुई तो एक साल फिर घर बैठना पड़ा। इस दौरान मेरे दादाजी ने मुझे रामायण, गीता अैर अन्य कई धार्मिक पुस्तकों को पढ़ाया और समझाया।उसके बाद माध्यमिक शिक्षा टिहरी जिले के रजाखेत और घुमेटीधार से की।फिर हाईस्कूल में 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एकीकृत छात्रवृत्ति की एक योजना शुरू की। जिसमें गढ़वाल क्षेत्र के तब के सभी पांच जिलों से मेधावी छात्रों के लिए सैनिक स्कूल की तर्ज पर श्रीनगर के इंटर कॉलेज में छात्रावास खोला गया। हम 16 लड़के उसमें चुने गए और तब हमें 100 रू प्रति मास छात्रवृत्ति मिली, जो कि उन दिनों बहुत बड़ी राशि थी। इंटर मैंने फिर घुमेटीधार से किया। स्नातक मैंने गढ़वाल यूनिवर्सिटी, उत्तरकाशी से किया, अच्छे अंक मिले तो स्नातकोत्तर के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय में प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स में प्रवेश मिला। इस तरह गढ़वाल और कुमाऊं, उत्तराखंड के दोनों क्षेत्रों को मैं बहुत नजदीक से देख और समझ पाया।

जहां तक परिवार का सवाल है, जैसे मैंने बताया मेरे दादाजी का मेरे ऊपरबहुत प्रभाव पड़ा, उन्होंने शुरूआती दिनों में मेरी परवरिश भी की और मार्गदर्शनभी। मेरे पिताजी भी रेंज ऑफिसर थे, उनके साथ बहुत घूमा, मेरा छोटा भाई और उनकी पत्नी भी फॉरेस्ट में प्रशासनिक अधिकारी हैं। इस तरह जंगलात और पर्यावरण से मेरा बहुत गहरा नाता है। मेरी मां गृहणी रही हैं और उन्होंने हर मां की तरह मेरे लिए बहुत त्याग और मेहनत की। दुर्भाग्य से कुछ समय पहले मेरी छोटी बहन का देहांत हो गया। मेरी पत्नी कई स्कूलों में अध्यापिका रही हैं और मेरी सफलता में बराबर की हिस्सेदार हैं। मेरे दो बेटे और एक बेटी हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में कार्यरत हैं। हर परिवार की तरह मेरे परिवार के हर सदस्य का मेरी सफलता में बहुत बड़ा योगदान है।

आप एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी के अलावा पर्वतारोही रहे, खेलों में भी आपकी रूचि रही, इसमें कैसे तालमेल बैठाया?

ये सही है कि जैसे-जैसे आपकी जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, आपके पास अपने लिए बहुत कम समय रहता है लेकिन अगर आप समय को अच्छे से बांट पाएं तो शौक पूरा करने के लिए समय निकाल सकते हैं। खुशकिस्मती से खेल और एडवेंचर फौजी जीवन का अहम हिस्सा होता है और ये एक प्रशासनिक अधिकारी की जिम्मेवारियों में भी शामिल है इसलिए अगर आप अच्छे खिलाड़ी हैं और साहसिक कार्यों में भी रूचि रखते हैं तो आप बाकी लोगों के लिए भी एक अच्छा माहौल बना सकते हैं।

जैसा आप जानते हैं किसी भी फौजी के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त दुरूस्त रहना एक आवश्यकता है और टीम स्पोर्ट्स हमारी टीम बिल्डिंग और लीडरशिप में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। पर्वतारोहण तो हरपहाड़ी के व्यक्तित्व का हिस्सा होता ही है लेकिन उसे एकएडवेंचर के तौर पर विकसित करने के लिए बहुत मेहनत और लगन चाहिए। मैंने एनआईएम उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग की ट्रेनिंग भी ली और कई एक्सपीडिशन में भी भाग लिया, जो अपने आप में काफी रोचक और रोमांचक होता है। ये एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमारे युवा अच्छा कर सकते हैं और इसे एक व्यवसाय के रूप में भी अपना सकते हैं। पिछले कुछ समय से एनआईएम के प्रिंसिपल भी उत्तराखंड से रहे हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि वे इस क्षेत्र में निरंतर प्रयत्नरत हैं।

आपकी साहित्य में भी काफी रूचि है, आपकी कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं, इन सबके लिए कैसे समय निकालते हैं ?

अक्सर लोग मुझसे कहते हैं कि खेल, सेना की जिंदगी और साहित्य का कोई मेल नहीं। लेकिन मुझे लगता है हर उस इंसान के अंदर, जिसे प्रकृति से प्रेम है और जिसे जिंदगी की संजीदगी से लगाव है, एक कवि होता है। ये अलग बात है कि उसे बाहर लाने का कोई कितना प्रयास करता है। मेरी साहित्य के प्रति रूचि बचपन से रही है। लेखन में भी पहले से रूचि रही है लेकिन सेना में जिस माहौल में रहते हैं, जितना समय मिलता है, उसमें सृजनात्मक लेखन थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आपमें अगर प्रतिभा है शब्दों को संजोने की और रचनात्मक लेखन की तो आपको प्रयास जरूर करना चाहिए। उसे लिखें जरूर, और बाद में जब भी वक्त मिले आप उसको बाद में फिर से एक अच्छी प्रस्तुति दें। ये बिल्कुल उसी तरह है जैसे आप बिना तराशा हुआ हीरा संभाल कर रखें और जब भी वक्त मिले उसे तराश लें।

सेवानिवृत्ति के बाद क्या प्लान है, आप उत्तराखंड के बारे में क्या सोचते हैं और आने वाले समय में उसे कैसे देखते हैं?

पहाड़ हमेशा से मेरी जिंदगी का हिस्सा रहे हैं और पर्वतों की ऊचाइयां हमेशा से मुझे प्रेरित करती रही हैं इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि मेरा काफी वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में गुजरेगा। अब वक्त है कि किस्मत औरदुआओं ने मुझे जो भी दिया है उसे मैं किसी न किसी रूप में समाज को वापस दे पाऊं। मुझेपर्यावरण से बहुत लगाव है और अब इसी क्षेत्र में शोध कार्य करने का विचार है। साथ ही पानी एक ऐसा मुद्दा है जो मेरे दिल के बहुत करीब है। पहाड़ी क्षेत्र देश को लगभग 80 फीसदी पानी देते हैं लेकिन हमारे अपने पारंपरिक स्रोत धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं और पहाड़ों में रहने वाले लोगों को पानी आराम से मुहैया नहीं हो पाता। पानी के संरक्षण, संचयन और पुनर्जीवन के क्षेत्र में काम करने का मेरा विचार है।इसके साथ-साथ और भी कई क्षेत्र हैं जिनमें काम हो तो एक बड़ी समस्या जो उत्तराखंड से पलायन की है, उसमें कमी आ सके।

हमारे युवा बहुत होनहार और मेहनती हैं लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिल पाता कई अभावों की वजह से। इसलिए मैं चाहता हूं कि हर उत्तराखंडी जिन्हें जीवन में सफलताएं मिली हैं वो सब इस दिशा में प्रयास करें। आपकी मैग्जीन का यही प्रयास मुझे आकर्षित करता है, जो लोगों को बार-बार इस बात की ओर ध्यान देने को प्रेरित करता है। आपके इस प्रयास के लिए मैं आपका तहे दिल से धन्यवाद देता हूं। अंत में मैं कहना चाहूंगा कि इंसान की सफलता का आकलन इस बात से नहीं होता कि लोग उसके बारे में क्या जानते हैं या क्या सोचते हैं, बल्कि इस बात से होता है कि वो अपने बारे में कितना जानता है और क्या सोचता है।

अपनी शोहरतों के शोरोगुल से गुलजार न हो

तन्हाइयों में अक़्स पर फख्र हो तो जिक्र कर ।।

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