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पर्यटन समाचार – Hill Mail https://hillmail.in Wed, 20 Mar 2024 10:24:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://i0.wp.com/hillmail.in/wp-content/uploads/2020/03/250-X-125.gif?fit=32%2C16&ssl=1 पर्यटन समाचार – Hill Mail https://hillmail.in 32 32 138203753 होली पर साधु-संतों ने रामलला व हनुमंत लला संग खेली होली https://hillmail.in/on-holi-sages-and-saints-played-holi-with-ramlala-and-hanumanth-lala/ https://hillmail.in/on-holi-sages-and-saints-played-holi-with-ramlala-and-hanumanth-lala/#respond Wed, 20 Mar 2024 10:24:21 +0000 https://hillmail.in/?p=48612 रंगभरी एकादशी पर्व पर परंपरागत रूप से सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी में सर्वप्रथम हनुमान जी महाराज का विधिवत पूजन-अर्चन व शृंगार के बाद अबीर-गुलाल लगाया गया फिर हनुमान जी के निशान व छड़ी की पूजा-आरती की गई। नागा साधुओं ने अपने आराध्य हनुमंतलला को अबीर-गुलाल चढ़ाकर श्रद्धा निवेदित करने के बाद शोभायात्रा निकाली।

संतों ने हनुमंतलला को अबीरगुलाल अर्पित कर रामनगरी में रंगोत्सव के आगाज की अनुमति मांगी। इस दौरान मंदिर में मौजूद श्रद्धालु आराध्य की भक्ति में लीन नजर आए। जमकर अबीर-गुलाल उड़ा तो संतों के संग भक्त भी आस्था में मग्न होकर नृत्य करते दिखे। उसके बाद नागा साधुओं की टोली सड़कों पर निकली, संतों ने ढोल की थाप पर जमकर नृत्य किया, विभिन्न करतब भी दिखाए। रास्ते में जो मिला उसे अबीर-गुलाल लगाया इसे लोग हनुमान जी का प्रसाद समझकर आनंदित होते रहे।

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अयोध्या को मिली वाटर मेट्रो की सौगात, पीएम मोदी ने वाराणसी से किया अयोध्या में वॉटर मेट्रो का वर्चुअल शुभारंभ https://hillmail.in/ayodhya-got-the-gift-of-water-metro-pm-modi-virtually-inaugurated-the-water-metro-in-ayodhya-from-varanasi/ https://hillmail.in/ayodhya-got-the-gift-of-water-metro-pm-modi-virtually-inaugurated-the-water-metro-in-ayodhya-from-varanasi/#respond Fri, 23 Feb 2024 14:33:54 +0000 https://hillmail.in/?p=48343 अयोध्या आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक अब सरयू नदी में वाटर मेट्रो के जरिए जलविहार का आनंद ले सकेंगे। योगी सरकार द्वारा अयोध्या में पर्यटन को और समृद्ध करने के लिए तथा जल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वाटर मेट्रो का संचालन संत तुलसीदास घाट से गुप्तार घाट तक किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी दौरे के दौरान वर्चुअल माध्यम से अयोध्या में वाटर मेट्रो का शुभारंभ किया।

तकनीकी सहायक बी गुप्ता ने बताया कि सरयू के किनारे संत तुलसी घाट से अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वाटर मेट्रो करीब 14 किलोमीटर का सफर गुप्तार घाट तक तय करेगी। जिसमें एक साथ लगभग 50 यात्री जलविहार का आनंद उठा सकेंगे। पर्यावरण का ध्यान रखते हुए इस वाटर मेट्रो का संचालन किया जाएगा। अयोध्या में चलाई जाने वाली वॉटर मेट्रो में 50 सीटें हैं, जिसे दोनों किनारों पर स्थापित किया किया गया है। फाइबर की बनी इन सीटों को मजबूती के साथ फिक्स किया गया है, ताकि किसी तरह के हादसे की आशंका न रहे।

कोचीन शिपयार्ड में बनी यह वॉटर मेट्रो सरयू नदी के ऊपर किसी क्रूज की तरह दिखाई देगी। मेट्रो पूरी तरह एयर कंडीशन है। उन्होंने बताया कि संत तुलसीदास घाट से गुप्तार घाट तक दोनों प्वाइंटों पर भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, पत्तन पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने सरयू किनारे जेटी की स्थापना की है, जहां पर वाटर मेट्रो के चार्जिंग के लिए बकायदा पॉइंट बनाए गए हैं और यहीं से यात्री वाटर मेट्रो पर सवार होंगे।

वाटर मेट्रो की खासियत

– 50 सीटर एमवी (मोटर व्हिकल) बोट यानी वाटर मेट्रो का नाम कैटा मेरन वैसेल बोट है।
– इस वाटर मेट्रो बोट को पूरा एयरकंडीशन बनाया गया है, जिसमें यात्रियों की जानकारी के लिए डिस्प्ले भी लगाया गया है।
– यात्रियों के केबिन के आगे बोट पायलट का केबिन अलग बनाया गया है।
– एक बार में इलेक्ट्रिक से चार्ज होकर यह वाटर मेट्रो बोट एक घंटे की यात्रा करने मे सक्षम है। इस दौरान यह एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन यानी अयोध्या के संत तुलसी घाट से गुप्तार घाट तक 14 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर लेगी।
– किसी भी आपात अवस्था हेतु इस बोट में जीवन रक्षक जैकेट्स व अन्य उपकरण भी रखे गये हैं।

तकनीकी सहायक बी गुप्ता ने बताया केंद्रीय जलमार्ग मंत्रालय द्वारा इसको अगले कुछ दिनों में राज्य सरकार को हैंडओवर किया जायेगा। इसके बाद इसका परिचालन राज्य सरकार करवाएगी। इस वाटर मेट्रो की लागत वाराणसी एवं अयोध्या में प्राधिकरण के द्वारा दिए गये इलेक्ट्रिक कैटामरान नौका की लागत 36 करोड़ रुपए हैं।

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यह सपना नहीं, हकीकत है पहाड़ों को लेकर …..! https://hillmail.in/this-is-not-a-dream-this-is-the-reality-regarding-the-mountains/ https://hillmail.in/this-is-not-a-dream-this-is-the-reality-regarding-the-mountains/#respond Tue, 09 Jan 2024 07:18:03 +0000 https://hillmail.in/?p=47657 उत्तराखंड में पलायन की स्थिति एवं गांवों का पुनरोत्थान कैसे संभव होगा…!

भ्रमणशील और कुछ नया सोचने की प्रवृत्ति समय के साथ बढ़ती जा रही है समय – समय पर गांवों का भ्रमण किया जाता रहा और इसी दिसंबर अंत में भी कुछ प्रमुख गावों का भ्रमण किया गया। जब आप भीतर तक किसी चीज से जुड़ते हैं तो समाधान देने की स्थिति में भी होते हैं। पलायन और गांवों के विकास जैसे विषय पर गहनता से सोचने पर कुछ नवीन तथ्य मन – मस्तिष्क में उभरते हैं जो ज़मीनी (धरातलीय) हो सकते हैं जिन्हें समझा जा सकता है और किसी निर्णय पर भी आगे पहुंचा जा सकता है।

आज से पचास – साठ दशक पूर्व या उससे पहले, जो लोग गांवों से शहरों में चले गए और शहरों में एक ठीक – ठाक जीवन व्यतीत कर रहे हैं उनका वापस गावों में आकर बसना बहुत मुश्किल होगा, कारण हैं :- स्वास्थ्य तथा उनके मुताबिक सुविधाओं का न मिल पाना…। उनके बच्चे भी अपने – अपने स्थानों पर पढ़ – लिखकर देश-विदेशों में अच्छे से व्यवस्थित हो गए हैं। उनका पहाड़ों में आकर बसना नामुमकिन नहीं भी हो तो मुश्किल अवश्य है।

अब गांवों में रह रही वर्तमान पीढ़ी की बात करें तो गांवों में बच्चों की संख्या बहुत कम होती जा रही है। बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए लोग गांवों के निकट ही शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। कुछ लोग अपनी सामर्थ्यानुसार शहरों, महानगरों की ओर चले गए हैं और वहीं अपनी नौकरी या रोजगार भी कर रहे हैं। बच्चों के लिए वहां कमरा आदि दिलाकर या रिश्तेदारी में उन्हें पढ़ने के लिए भी छोड़ा जा रहा है। गांवों के कई प्राइमरी स्कूल इसलिए बंद हो गए हैं क्योंकि अब वहां बच्चे नहीं हैं… कहीं कुछ गांवों को मिलाकर 12-13 बच्चे हैं और एक भोजन माता, एक दो अध्यापक… यह अधिकांश गांवों की स्थिति होगी।

गांवों से पलायन करने का मुख्य कारण रहा है… कृषि के अतिरिक्त रोजगार के अन्य अवसर उपलब्ध न होना, अच्छे विद्यालयों की कमी, स्वास्थ्य के लिए अस्पतालों का अभाव, आने – जाने के लिए आज भी परिवहन की ठोस व्यवस्था का न होना, जंगली जानवरों का आतंक, गांवों से बाजारों का दूर होना, गांवों की ही उत्पादित साग – सब्जी, दालों दूध आदि पर निर्भरता होना, विपणन की सही व्यवस्था न हो पाना, पुस्तकालयों, युवा पीढ़ी के उत्थान के लिए किसी सेंटर, विचार – विमर्श के लिए किसी स्थल का न हो पाना आदि कारण ऐसे कहे जा सकते हैं।

हालांकि इन कुछ वर्षों के भीतर ही गांव – गांवों में शौचालय, बिजली जिसमें सौर ऊर्जा भी शामिल हो गई है, आ गई है। इस बार गांवों में घर – घर पानी के नल भी लगते हुए देखे गए। जब यह सुविधाएं आ गईं तो फिर भी लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं। क्योंकि गांवों में रहने या टिकने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है। इसके पीछे और भी कई कारण हैं जो ऊपर दिए जा चुके हैं। सड़कें बनती भी हैं तो हर बारिश में फिर टूट जाती हैं। जब तक रोजगार के साधन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, अच्छे स्टडी सेंटर गांव में नहीं होंगे, इस पीढ़ी को रोका नहीं जा सकेगा।

अब बात करते हैं कि किस प्रकार गांवों का पुनरुत्थान किया जा सकता हैः-

सर्वप्रथम जिन्हें बाहर अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं उन्हें गांवों में फिलहाल रोकना मुश्किल होगा। स्वतः की प्रेरणा से कोई आएं, रुकें, गांवों को विकसित करें तो सदैव उनका स्वागत रहेगा। अब गांवों के विकास के लिए व्यक्तिगत प्रयासों की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। जिसके अच्छे परिणाम आने की भी पूरी संभावना होगी।

महत्वपूर्ण है कि अब गांवों में उन्हें रोका जा सकता है जो गांवों में रहकर कुछ काम करने को तैयार हैं जिससे अपनी आमदनी बढ़ा सकें। अच्छा जीवन जी सकें।

इसके लिए एक महत्वपूर्ण उपाय यह नजर आता है कि गांव के बहुत पहले से खाली पड़े कुछ मकानों को ठीक करवाकर उन्हें “होम स्टे“ की तरह इस्तेमाल किया जा सके। शुरुआती दौर में इन्हें बहुत अधिक भव्य व महंगा न बनाकर, साफ – सुथरा व अपने प्राकृतिक रूप में रखा जाए। इनका शुल्क भी प्रति दिन (24 घंटे) के हिसाब से 500 रुपए तक ही रखा जाए। जो इतना न दे पाने की स्थिति में हों उन्हें प्रति व्यक्ति के हिसाब से कम भी किया जा सके। जिससे गांव की यात्रा पर जाने वाले बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी उस खर्च को वहन कर सकें। चाय – भोजन आदि भी सही मूल्य पर उपलब्ध हो सके।

जिसमें बाहर से जाने वालों की रहने – खाने की बुकिंग पहले करवाने का भी प्रावधान हो। इससे एक फायदा यह होगा कि जो लोग कई वर्षों से अपने ही गांव नहीं जा पा रहे हैं कि गांव में किस प्रकार भोजन की व्यवस्था कर पाएंगे, कहां सोएंगे, कैसे रह पाएंगे.. आदि आदि! यह व्यवस्था हो जाने से वह लोग भी अपने गांव की ओर आयेंगे। अच्छी आबोहवा, अच्छा पहाड़ी भोजन मिलेगा तो आगे भी लोगों का आना – जाना बरकरार रहेगा। अपने परिचित लोगों को भी अपनी पैतृक भूमि में लोग भेज पाएंगे। बाहर के लोगों के आने – जाने के लिए देवभूमि में कुछ नियम अवश्य लागू करने होंगे जिससे गलत मंशा से या गलत कृत्यों के लिए प्रवेश करने वालों को रोका जा सके।

दिल्ली, मंबई हो या कोई भी शहर आज जब अपने गावों में पूजा करने या पितृकुड़ी कार्य के लिए लोग गांव आते हैं तो यही सोचते हैं कि गांव जा रहे हैं तो निकट से पहले खाने का सामान गाड़ी में भर लिया जाय, कुछ लोग तो बावर्ची लेकर भी मैदानों से पहाड़ों की ओर चलने लगे हैं। इस सीधी-सरल व्यवस्था से लोगों को गांवों के भीतर ही एक अच्छा रोजगार मिलेगा और लोगों को भी गांवों में जाने पर सुविधा होगी। लोगों की आवाजाही बढ़ेगी। अपनी खेती में भी लोग अच्छा उपजा पाएंगे। नई – नई कृषि तकनीक का विकास करेंगे।

जो आज पहाड़ों में हाईटेक “होम स्टे“ बना रहें हैं वह सामान्य नागरिक के किसी काम के नहीं। प्रति रात्रि डेढ़ – दो हजार से अधिक का उनका किराया आम आदमी की सामर्थ्य से बाहर है। इसलिए वह सिर्फ एक वर्ग तक ही सीमित रह गए हैं और सामान्य जन के लिए महत्वहीन…।

अब जंगली जानवरों से खेती बचाने की बात करें तो पूर्व में जैसा होता था कि कुछ लोग गावों में ही मसालें लेकर समूह में चल पड़ते थे। कभी कभी यह युक्ति भी गांव वालों को मिलकर करनी पड़ेगी। अच्छी फेंसिंग, घरों में स्वानों को पालना जिससे उजाड़ करने वाले जानवरों की सूचना मिल सके। दूर तक अच्छी लाइटें, अच्छा प्रकाश कारगर हो सकता है।

वर्तमान में देखें तो गांवों की एक समस्या यह है कि शौचालय घर से थोड़ा दूर बने होते हैं। घर में ही शौचालय पुरानी परंपरा नहीं थी। जो अब नए मकान गांवों में बना रहे हैं वह तो टॉयलेट भी साथ ही बना रहे हैं। पुराने मकानों का निर्माण इस तरह से होता था कि उसमें घर के भीतर टॉयलेट नहीं बनाए जाते थे। अतः किसी को रात को बाहर जाना पड़े तो घर के पीछे बने शौचालय में ही जाना होता था। जिसमें आज भी कुछ बदलाव नहीं हुआ है। आज के समय रात्रि में अकेले जानवरों का भी भय हो गया है। किंतु इसका भी एक समाधान लोगों ने खोजा जो पूर्व में भी था.. वह था ‘पश्वा का निर्माण’.. अर्थात् घर के भीतर ही एक कमरे में जिसमें मंदिर न हो वहां पर नहाने और मूत्र विसर्जन के लिए एक चौकोर स्थान बना दिया जाता था और उससे लगी पाइप को पीछे की तरफ निकाल दिया जाता। जिससे घर की स्त्रियां कभी वहां स्नान भी कर सकती थीं और बच्चे, बड़े, सभी रात्रि को बाहर न जाकर मूत्र विसर्जन भी कर लेते थे। अभी भी गांव के कुछ घरों में यह देखा गया, जहां नहीं है इसे बनाया जा सकता है। इस सुविधा के चलते जो गांवों में रहने आयेंगे उन्हें बहुत सुविधा होगी।

पूर्व के समय में खड़ी फसलों को बचाने के लिए “जुगाली का ठेका“ होता था जो गांव के ही किसी व्यक्ति को दे दिया जाता था जो अपने दो तीन कुत्तों के साथ दिन में बंदरों आदि से सभी की खेती की रखवाली करता था जिसके बदले में उसे अनाज या रुपए दिए जाते थे। रात्रि में फसलों को सुअर, सौल, भालू आदि से बचाने के लिए लोग मसालें लेकर, हल्ला मचाते हुए, कनस्तर बजाते हुए प्रतिदिन निकलते थे। साथ ही एक उपाय उन दिनों यह भी था कि कहीं दूर कनस्तर में लोग लकड़ी या घंटी बांध दिया करते थे और उसकी रस्सी को घर तक ले आते थे। रात को दो – चार बार घर से ही उस रस्सी को खींच लेते जिससे दूर खेतों के बीच ध्वनि गूंजने लगती जिससे जानवर जो आते भी थे, भाग खड़े होते थे। इन विधियों को गांवों को आवाद करने, फसलों को सुरक्षित रखने के लिए पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है। साथ ही समय – समय पर उपर्युक्त विभिन्न कार्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर गांवों में गोष्ठी का आयोजन और सलाह – मशविरा दिया जाता रहना प्रमुख होगा। चकबंदी और भू – कानून का होना भी गांवों की समृद्धि, व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा।

साथ ही अब रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। खेती के लिए नए कृषि यंत्र, तकनीक, उन्नत बीज, अच्छी खाद, जल की आपूर्ति, कृषि के विपणन की सही व्यवस्था, गौ पालन, भेड़ बकरी पालन आदि करना होगा। पॉपुलर के पेड़ जो कम पानी में भी अच्छी मात्रा में उग जाते हैं और फर्नीचर आदि के लिए अच्छे प्रयोग में लाए जाते हैं उन्हें गांवों में भी उगाने की व्यवस्था देखी जा सकती है। केसर, मशरूम, बांस / रिंगाल की खेती, फलों के वृक्ष, फूलों की खेती, मोटा अनाज व पहाड़ी दालों का उत्पादन, मिठाई की जगह अरसे, खजूर जैसे खाद्य पदार्थ का निर्माण, मधु मक्खी पालन, मछली पालन, बद्री गाय (देसी, छोटी गाय) का घी जो आज २००० रुपए किलो तक बिक रहा है। बहुत कुछ हो सकता है इन पहाड़ों में… बस एक नई ऊर्जा और संकल्प की शक्ति को लेकर आगे बढ़ना होगा, चलना होगा।

मैंने स्वयं 18-20 वर्षों से सम्पूर्ण उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों की यात्रायें की हैं जो मेरे साहित्य लेखन के लिए भी रहा और वर्तमान में भी यात्राएं जारी हैं।

महत्वपूर्ण है कि एक समय इंसान घर – परिवार से, समाज से सिर्फ लेने की अवस्था में होता है और एक समय ऐसा आता है जब उसे विभिन्न रूपों में लौटाने की बारी आती है…। जो शिक्षित हैं, स्वस्थ हैं, संपन्न हैं, सबका विकास चाहते हैं। अपने जीवन का एक अच्छा समय व्यतीत कर चुके हैं उन्हें कम से कम अपने गावों के विकास के लिए सोचना चाहिए और कुछ करना चाहिए। मैं भी करती हूं इसलिए यह सब लिखने के लिए कृत संकल्पित हूं। आगे भी कई अन्य सुझाव मैं देने की स्थिति में रहूंगी।

एक विचार मध्य प्रदेश इंदौर से अजय उनियाल का भी इस संदर्भ में मिला है जिनके अनुसार :- “मेरे अनुभव के आधार पर पलायन जैसे गंभीर विषय पर ब्लॉक स्तर पर स्थानीय एवं हम प्रवासी भाई बहनों द्वारा अपने-अपने ब्लॉक पर समितियां गठित की जाए सरकार से स्थानीय ब्लॉक प्रमुखों के माध्यम से गांव में सड़क बिजली पानी एवं खेतों में पानी हेतु मांग की जाए कृषि विभाग पशुपालन विभाग एवं संबंधित सभी विभागों के अधिकारी समितियां में हमारे साथ कार्य करें सभी ब्लॉकों में एक समान योजना बनाई जाए हम सब मिलकर प्रवास में भी समस्त भाई बहनों से सामाजिक संस्था एवं वरिष्ठ समाजसेवियों द्वारा इस कार्य को एक आपसी सहभागिता सुनिश्चित कर प्रारंभ कर सकें। इसमें सभी का सहयोग अपेक्षित होगा।“

इसलिए जो परिस्थिति को समझेंगे, वह तटस्थ नहीं रह पाएंगे। किसी न किसी रूप में अपनी भूमिका अवश्य निभायेंगे।

शाखें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आयेंगे।
फिर पहाड़ों के वो अच्छे दिन भी आयेंगे…..।

डॉ. हेमा उनियाल
(ग्रंथकार)

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उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का सरमोली गांव बना देश का श्रेष्ठ पर्यटन गांव https://hillmail.in/sarmoli-village-of-pithoragarh-district-of-uttarakhand-becomes-the-best-tourist-village-of-the-country/ https://hillmail.in/sarmoli-village-of-pithoragarh-district-of-uttarakhand-becomes-the-best-tourist-village-of-the-country/#respond Sat, 23 Sep 2023 15:15:27 +0000 https://hillmail.in/?p=46091 भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने श्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सरमोली गांव का चयन किया है। 27 सितंबर को सरमोली गांव को श्रेष्ठ पर्यटन गांव का पुरस्कार दिया जाएगा। हिमनगरी के नाम से मशहूर मुनस्यारी का यह गांव जहां एक ओर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है तो वही यहां के लोगों ने पर्यटकों के ठहरने के लिए होमस्टे में जो काम किया है वो पूरे देश के लिए एक नजीर पेश कर रहा है।

सरमोली गांव उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मुनस्यारी के ऊपर स्थित एक छोटा सा गांव है। इसकी सीमाएं तिब्बत और नेपाल से लगती हैं। यहां से हिमालय, नंदा देवी, राजरंभा, पंचाचूली, नंदा कोट चोटियों का दृश्य हर किसी को आकर्षित करता है पिथौरागढ़ जिले का सरमोली गांव जल्द ही देश का श्रेष्ठ पर्यटन गांव घोषित किया जाएगा। पर्यटन मंत्रालय ने श्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता में सरमोली गांव का चयन किया है। 27 सितंबर को इसकी आधिकारिक तौर घोषणा के साथ गांव को श्रेष्ठ पर्यटन गांव का पुरस्कार भी दिया जाएगा। ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय ने श्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता शुरू की है।

इस प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के समीप सरमोली गांव का चयन किया गया। पिथौरागढ़ के जिला पर्यटन अधिकारी ने बताया कि देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 795 गांवों ने इस पुरस्कार के लिए आवेदन किया था। जिसमें से पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गांव स्तर पर किए गए बेहतर कार्यों को लेकर सरमोली गांव को श्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चयनित किया गया।

पिथौरागढ़ के जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चंद्र आर्य ने भी इस बात पर खुशी जताई है उन्होंने कहा कि इससे मुनस्यारी क्षेत्र में पर्यटन की और गतिविधियां बढ़ेंगी और देश विदेश के पर्यटन यहां पर अधिक से अधिक संख्या में पहुंचेंगे।

मुनस्यारी के सरमोली का श्रेष्ठ पर्यटन गांव के रूप में चयनित होने से ग्रामीण खाफी खुश है। ग्रामीणों ने कहा कि इस गांव के लोगों द्वारा मुनस्यारी आने वाले पर्यटकों के लिए पर्यटन सुविधाएं बढ़ाने का जो कार्य किया यह उसी का परिणाम है। उन्होंने आशा जताई है कि सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव घोषित होने के बाद सरमोली के साथ ही पूरे मुनस्यारी क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियां बढ़ेगी जिससे देश-विदेश के पर्यटक यहां आसानी से पहुंच सकेंगे।

जगत मर्तोलिया, जिला पंचायत सदस्य सरमोली का कहना है कि पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी का सरमोली गांव अपने आप में समृद्ध संस्कृति और नैसर्गिक सुंदरता को समेटे हुए है। पर्यावरण संरक्षण के साथ गांव के लोगों ने ग्रामीण पर्यटन को स्वरोजगार बनाया है। ईको टूरिज्म और साहसिक पर्यटन के लिए पर्यटक सरमोली गांव आते हैं।

यहां से हिमालय, नंदा देवी, राजरंभा, पंचाचूली, नंदा कोट चोटियों की सुन्दरता सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। गांव में होमस्टे पर्यटकों की पहली पसंद है। ऐसे में गांव को देश का सबसे बेहतरीन पर्यटन गांव होने का खिताब मिलने से यहां पर पर्यटन कारोबार से जुड़े लोगों का हौसला बढ़ेगा और यहां के लोग अच्छी तरह से यहां आने वाले पर्यटकों को सुविधा प्रदान करेंगे और इससे इनकी आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी।

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अब भारत से भी होंगे कैलाश पर्वत के दर्शन https://hillmail.in/now-kailash-will-be-visible-from-india-too/ https://hillmail.in/now-kailash-will-be-visible-from-india-too/#respond Thu, 29 Jun 2023 02:21:44 +0000 https://hillmail.in/?p=44159 उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ में लिपुलेख से कैलाश पर्वत के दर्शन संभव है। स्थानीय लोगों ने जब चीन सीमा पर बसे ओल्ड लिपुपास की पहाड़ी से कैलाश पर्वत के दर्शन किये। उसके बाद उन्होंने स्थानीय प्रशासन को इसके बारे में बताया। जिसके बाद जिला प्रशासन इस इलाके में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं की तलाश में जुट गया है।

पिथौरागढ़ राज्य के साथ ही यह पूरे भारत के लिए गौरव की बात है जो भी श्रद्धालु काफी समय से कैलास मानसरोवर यात्रा नहीं होने से मायूस है वे यात्री अब पिथौरागढ़ से ही कैलास दर्शन कर सकते हैं यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इससे हमारा सीमांत क्षेत्र पयर्टन के क्षेत्र में आगे बढेगा और जो कैलास मानसरोवर को लेकर पिथौरागढ़ की जो पहचान थी वह दोबारा उसको मिल सकेगी। सरकार और प्रशासन को इस ओर जल्दी से जल्दी ध्यान देना चाहिए ताकि ऐसा रास्ता निकाला जाये कि पिथौरागढ़ से ही कैलास के दर्शन हो सके।

पयर्टन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार के टूरिज्म अधिकारियों की टीम गुंजी, आदि कैलाश और ओम पर्वत पयर्टन स्थलों का दौरा कर चुकी है और इन स्थानों को कैसे पयर्टन के क्षेत्र में विकसित किया जा सकता है उसके लिये विचार विमर्श किया गया। सेना और अन्य सुरक्षा बलों के अधिकारियों के साथ बातचीत की जा रही है। इन सारी बातों पर एक रिपोर्ट तैयार की जायेगी और यह रिपोर्ट प्रशासन को भेजी जायेगी जिससे कि यहां के पयर्टन को और बेहतर किया जा सके।

दरअसल कैलाश पर्वत की यात्रा यानि कैलाश मानसरोवर यात्रा भारत में एक पर्व के रूप में देखी जाती है। यहां लोग बड़े ही उत्साह से यात्रा में शामिल होते हैं। जानकारों का कहना है कि यात्रा का कुछ हिस्सा बेहद संवेदनशील क्षेत्रों से होकर गुजरता है। वहीं दुर्गम पहाड़ इसे और खतरनाक बनाते हैं। लेकिन भगवान भोले की धुनी में रमे भक्त इन सबसे बेपरवाह यात्रा पूरी कर लौटते हैं।

केंद्र सरकार इस यात्रा को लेकर बेहद गंभीर रहती है और इसके लिए कुछ आवश्यक मानक भी तय किये गये हैं। इस साल कैलाश मानसरोवर यात्रा मई और सितंबर के बीच आयोजित की जायेगी। यात्रा को सड़क और हेलीकॉप्टर से पूरा किया जाता है। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से जरूरी नार्म्स तय किये हैं। मानसरोवर यात्रा के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी करने में 10 से 30 दिन लग जाते हैं।

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ताड़केश्वर महादेव मंदिर https://hillmail.in/tadkeshwar-mahadev-temple/ https://hillmail.in/tadkeshwar-mahadev-temple/#respond Mon, 29 May 2023 08:33:36 +0000 https://hillmail.in/?p=43685 देवभूमि उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर, उत्तराखंड के पौड़ी जिले के ‘गढ़वाल राइफल’ के मुख्यालय लैंसडाउन से 35 किलोमीटर, कोटद्वार से 70 किलोमीटर और रिखणीखाल से 26 किलोमीटर की दूरी पर और समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित विष गंगा व मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी ताड़केश्वर धाम में माना गया है। यह स्थान ‘भगवान शिव’ को ‘श्री ताड़केश्वर मंदिर धाम’ या ‘ताड़केश्वर महादेव मंदिर’ के रूप में समर्पित है। यह प्रसिद्ध मंदिर केदार क्षेत्र में 5 शिव पीठ में से एक है। मान्यता है कि मां पार्वती जी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की थी। धार्मिक आस्था का प्रतीक यह मंदिर उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक है जोकि देवदार एवं चीड़ के सुंदर से पेड़ों से ढका हुआ है।

देवदार, बांज, बुरांश, काफल और चीड़ के घने जंगलों से घिरा, यह उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौन्दर्य की तलाश करते है। यहां पौराणिक महत्व है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए ताड़केश्वर में प्रार्थना की थी, कई भक्तों का यह भी मानना है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर हैं और गहरी नींद में है। एक समय ताड़ के बड़े पेड़ों से गिरी छोटी टहनी और पत्तों को ही यहां के प्रसाद के रूप में दिया जाता था। यहां पर शिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है यहां पर शिवरात्रि के दिन यहां पर मेले का आयोजन होता है। ताड़केश्वर महादेव को योग और साधना के लिए उचित स्थान माना जाता है। ताड़केश्वर महादेव इस क्षेत्र के कई गांवों के कुल देवता भी है।

माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड

मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है। लेकिन इसकी वजह के बारे में लोग कुछ कह नहीं पाते।

 

ताड़कासुर ने यहीं की थी तपस्या

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।

इसलिए पड़ा मंदिर का नाम ’ताड़केश्वर’

भोलेनाथ ने असुरराज ताड़कासुर को उसके अंत समय में क्षमा किया और वरदान दिया कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ ’ताड़केश्वर’ कहलाये। एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है कि एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।

माता पार्वती हैं मौजूद छाया बनकर

ताड़कासुर के वध के पश्चात् भगवान शिव यहां विश्राम कर रहे थे, विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं और भगवान शिव को छाया प्रदान की। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित सात देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। मंदिर परिसर में मौजूद त्रिशूलनुमा देवदार का पेड़ है, जो दिखने में सचमुच बेहद अदभुत है। यह वृक्ष इसे देखने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को प्रबल करता है।

मनोकामना पूरी होने पर भक्त भेंट करते हैं घंटी

ऐसी मान्यता है कि जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती है तो वह यहां मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। यहां दूर दूर से लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं, और भगवान शिव जी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। यहां मंदिर में चढ़ाई गई हजारों घंटियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां बाबा की शरण में आने वाले भक्तों का कल्याण हुआ है।

महाशिवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन

महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड के पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं। पर बुरांश और देवदार के वनों से घिरा हुआ जिसे शिव की तपस्थली भी कहा जाता है, ’ताड़केश्वर’ भगवान शिव का मंदिर। इस मंदिर के पीछे, पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बेहद रोचक कहानी है।

ताड़कासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ताड़कासुर की तपस्या से प्रसन्न हुये और उसे वरदान मांगने के लिए कहा। वरदान के रूप में ताड़कासुर ने अमरता का वरदान मांगा परन्तु भगवान शिव ने अमरता का वरदान नहीं दिया और कहा यह प्रकृति के विरुद्ध है, कुछ और वर मांगो। तब ताड़कासुर ने भगवान शिव के वैराग्य रूप को देखते हुए, कहा कि अगर मेरी मृत्यु हो तो सिर्फ आपके पुत्र द्वारा ही हो। ताड़कासुर जानता था, कि भगवान शिव एक वैराग्य जीवन व्यतीत कर रहे है, इसलिए पुत्र का होना असंभव था। तब भगवान शिव ने ताड़कासुर को वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने अपना आतंक फैला दिया। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।

कई वर्षो के अन्तराल बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह हेतु तप किया और अपने शक्ति रूप को जानने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। विवाह के बाद माता पार्वती ने कार्तिक को जन्म दिया। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करते हैं। जब ताड़कासुर अपनी अन्तिम सांसे ले रहा था, तब अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगता है। भोलेनाथ ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर तुम्हारे नाम से मेरी पूजा होगी, इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान शिव ’ताड़केश्वर महादेव’ कहलाते हैं।

माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है कि मंदिर परिसर में एक कुंड है जिसको स्वयं माता लक्ष्मी जी खोदा था। आमतौर पर इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए किया जाता है। वैसे तो यहां पर है हजारों की संख्या में श्रद्धालु आया करते हैं लेकिन खासतौर पर शिवरात्रि के दिन स्थानीय लोगों के द्वारा यहां पर जमकर भी इकट्ठा होती है। इसीलिए तो यह मंदिर पौड़ी के प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। कई युगों पहले ताड़केश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग मौजूद था, लेकिन अब भगवान शिव की मूर्ति मौजूद है जिसकी पूजा होती है। भगवान शिव की मूर्ति उसी जगह है, जहां पर कभी शिवलिंग मौजूद था।

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अक्षय तृतीया को खुलेंगे श्री यमुनोत्री धाम के कपाट https://hillmail.in/the-doors-of-shri-yamunotri-dham-will-open-on-akshaya-tritiya/ https://hillmail.in/the-doors-of-shri-yamunotri-dham-will-open-on-akshaya-tritiya/#respond Mon, 27 Mar 2023 05:44:40 +0000 https://hillmail.in/?p=41866 श्री यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया शनिवार 22 अप्रैल को दिन में 12 बजकर 41 मिनट पर कर्क लग्न, अभिजीत मुहूर्त, कृतिका नक्षत्र में खुलेंगे। यमुना जयंती चैत्र नवरात्रि के शुभ अवसर पर मां यमुना के शीतकालीन प्रवास खुशीमठ (खरसाली) में मंदिर समिति यमनोत्री द्वारा मां यमुना की पूजा अर्चना के पश्चात विधि विधान पंचाग गणना के पश्चात विद्वान आचार्यों-तीर्थपुरोहितों द्वारा श्री यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की तिथि तथा समय तय किया गया। तथा श्री यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश उनियाल ने मंदिर समिति पदाधिकारियों तथा तीर्थ पुरोहितों की उपस्थिति कपाट खुलने की तिथि समय की विधिवत घोषणा की।

मंदिर समिति के पूर्व सचिव कीर्तेश्वर उनियाल ने बताया कि इस अवसर पर मां यमुना जी की उत्सव डोली के धाम प्रस्थान का भी कार्यक्रम तय हुआ। 22 अप्रैल को मां यमुना की उत्सव डोली, मां यमुना जी के भाई श्री सोमेश्वर देवता जी के साथ समारोह पूर्वक सेना के बेंड के साथ खुशीमठ से प्रातः 8 बजकर 25 मिनट पर प्रस्थान यमुनोत्री मंदिर परिसर में पहुंचेगी। अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को दिन में 12 बजकर 41 मिनट पर श्री यमुनोत्री मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जायेंगे।

कपाट खुलने की तिथि तय होने के अवसर पर शीतकालीन रावल ब्रह्मानंद उनियाल, मंदिर समिति सचिव सुरेश सेमवाल, उपाध्यक्ष राजस्वरूप उनियाल, श्री यमुनोत्री महासभा अध्यक्ष पुरूषोत्तम उनियाल, यमुनोत्री मंदिर समिति के पूर्व सचिव कृतेश्वर उनियाल, आदि उपस्थित रहे।

यहां यह उल्लेखनीय है कि मां यमुना के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन खुलते है। वही श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल प्रातः 7 बजकर 10 मिनट तथा श्री केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल प्रातः 6 बजकर 20 मिनट पर तथा श्री गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया 22 अप्रैल दिन में 12 बजकर 35 मिनट पर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुलेंगे।

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चारधाम यात्रा तैयारियों को पूरा करने हेतु 15 अप्रैल तक पूरा करने के निर्देश दे चुके हैं। पर्यटन-धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि चारधाम यात्रा हेतु श्रद्धालुओं में उत्साह है अभी तक चारों धामों हेतु पंजीकरण की संख्या छः लाख चौंतीस हजार से अधिक पहुंच गयी है।

इसी संदर्भ में चारधाम यात्रा प्रशासन संगठन के विशेष कार्याधिकारी / अपर आयुक्त गढ़वाल नरेन्द्र सिंह क्वीरियाल ने बताया कि शासन के दिशा-निर्देशों के तहत चारों धामों में सभी विभागों को यात्रा संबंधित तैयारियां तथा कार्य को 15 अप्रैल तक पूरा किये जाने हेतु गढवाल कमिश्नर/ अध्यक्ष यात्रा प्रशासन संगठन सुशील कुमार द्वारा जिलाधिकारी चमोली, रूद्रप्रयाग तथा उत्तरकाशी तथा सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिये हैं। लगातार बैठकों तथा वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा

लगातार यात्रा तैयारियों की मानंटरिंग की जा रही है। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्गों सहित बिद्युत, पेयजल, संचार, चिकित्सा, आवास सुविधाओं को समय बद्ध ढ़ग से व्यवस्थित किया जा रहा है। प्रशासन रूद्रप्रयाग द्वारा केदारनाथ में पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का कार्य अंतिम चरण में है।

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पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का दावा इस बार की चारधाम यात्रा पिछले सभी रिकॉर्ड करेगी ध्वस्त https://hillmail.in/tourism-minister-satpal-maharaj-claims-this-time-chardham-yatra-will-break-all-previous-records/ https://hillmail.in/tourism-minister-satpal-maharaj-claims-this-time-chardham-yatra-will-break-all-previous-records/#respond Sun, 19 Mar 2023 05:54:02 +0000 https://hillmail.in/?p=41704 पंजीकरण की लगातार बढ़ती संख्या और गढ़वाल मंडल विकास निगम गेस्ट हाउसों की बुकिंग का हर रोज बढ़ता आंकडा इस बात का प्रमाण है कि इस बार चारधाम यात्रा पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त करेगी। यात्रियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसलिए सभी विभाग समय से व्यवस्थाओं को चाकचौबंद कर लें।

उक्त बात प्रदेश के पर्यटन, लोक निर्माण, सिंचाई, पंचायतीराज, ग्रामीण निर्माण, जलागम, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने प्रदेश के सभी विभागों को अलर्ट करते हुए कही है। पंजीकरण की लगातार बढ़ती संख्या और गढ़वाल मंडल विकास निगम गेस्ट हाउसों की बुकिंग का हर रोज बढ़ता आंकडा इस बात का प्रमाण है कि इस बार चारधाम यात्रा पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त करेगी।

उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल से शुरू होने जा रही है चारधाम यात्रा के तहत केदारनाथ – 184057, बद्रीनाथ – 151955, यमनोत्री – 43132 और गंगोत्री धाम के लिए 43717 यात्री अभी तक अपना पंजीकरण करवा चुके हैं। इतना ही नहीं जीएमवीएन के गेस्ट हॉउसों के लिए 16 फरवरी 2023 से अभी तक कुल 50749105 करोड़ रुपये की बुकिंग की जा चुकी है।

केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल को तो बदरीनाथ के 27 अप्रैल को खुलेंगे जबकि परंपरा के अनुसार 22 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के कपाट खुलेंगे।

कैबिनेट मंत्री महाराज ने लोक निर्माण विभाग, पर्यटन, नेशनल हाईवे, बीआरओ, पंचायत, पेयजल, खाद्य आपूर्ति और स्वास्थ्य विभाग सहित प्रदेश के सभी विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि चारधाम रूट की सभी व्यवस्थाओं को समय से दुरुस्त कर लें।

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि चारधाम यात्रा के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ है। चार धाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु पर्यटन विभाग की वेबसाइट registrationandtouristcare.uk.gov.in या व्हाट्सअप नंबर 8394833833 या टोल फ्री नंबर 1364 के जरिये भी रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं।

सतपाल महाराज ने कहा कि गत वर्ष की भांति इस बार भी चारधाम यात्रा पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की संभावनाओं को देखते हुए धामों में कतार प्रबंधन हेतु स्लॉट टोकन व्यवस्था की शुरुआत की गई है। यात्रियों के पंजीकरण तथा यात्रा संबंधित जानकारी हेतु कंट्रोल रूम की स्थापना के निर्देश दिए गए हैं।

चारधाम यात्रा से पूर्व यात्रा मार्ग की सभी सड़कों के सुधारीकरण, पैच वर्क और गड्ढा मुक्त करने के लिए लोक निर्माण विभाग, एनएच और बीआरओ को स्पष्ट निर्देश भी दिए गए हैं। सड़कों की निगरानी के लिए एक ऐप बनाने की भी घोषणा की गई है। जिन स्थानों पर अधिकांश मार्ग अवरुद्ध होते हैं ऐसे स्थानों का चिन्हीकरण कर जेसीबी आदि की तैनाती की व्यवस्था की जाएगी।

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सीएम ने टिहरी झील में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप “टिहरी वाटर स्पोर्ट्स कप” का किया उद्घाटन https://hillmail.in/cm-inaugurates-national-championship-tehri-water-sports-cup-organized-at-tehri-lake/ https://hillmail.in/cm-inaugurates-national-championship-tehri-water-sports-cup-organized-at-tehri-lake/#respond Wed, 28 Dec 2022 11:45:07 +0000 https://hillmail.in/?p=39834 मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आयोजन स्थल पर लगे विभिन्न स्टाल्स का निरीक्षण किया साथ ही पहले सत्र की विजेता टीमों मेडल प्रदान किए। इस दौरान मुख्यमंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह पहला मौक़ा है जब टिहरी झील में राष्ट्रीय स्तर की इस खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में “समृद्ध खेल संस्कृति“ का विकास हो रहा है, हाल के दिनों में हमारे खिलाड़ियों द्वारा विभिन्न खेलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे ऐतिहासिक प्रदर्शन इसका प्रमाण हैं।

उन्होंने कहा कि खेल एक ऐसी विधा है जिसके ज़रिए खिलाड़ी न केवल अपना और अपने परिवार का नाम रोशन करते हैं बल्कि इससे उनके प्रदेश और देश का नाम भी रोशन होता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज उत्तराखंड की युवा पीढ़ी के अनेकों खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश और देश का सम्मान बढ़ा रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में जहां एक ओर सरकार ने “नई खेल नीति“ लागू की है वहीं दूसरी ओर सरकार ने नौकरियों में पुनः “खेल कोटा“ प्रारंभ करने का ऐलान भी किया है। उन्होंने टीएचडीसी का इस आयोजन हेतु आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस खेल से एक ओर जहां राज्य के युवाओं को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होगा वहीं दूसरी ओर टिहरी क्षेत्र में पर्यटन का विकास भी होगा। उन्होंने कहा कि टिहरी में इस खेल के आयोजन से वाटर स्पोर्ट्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले देश और प्रदेश के नौजवानों में नई ऊर्जा का संचार होगा।

उन्होंने कहा कि राज्य को सर्वश्रेष्ठ बनाने के संकल्प को पूरा करना हमारी सरकार की प्राथमिकता है। वर्तमान में टिहरी में पर्यटन के विकास के लिए अनेकानेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। टिहरी झील को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन का केंद्र बनाने का कार्य तीव्र गति से किया जा रहा है।

इस दौरान अपने संबोधन में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा कि खेलों को बढ़ावा केंद्र सरकार की प्राथमिकता में है। ऊर्जा मंत्रालय द्वारा यह तय किया गया है कि ऊर्जा मंत्रालय की हर एक कंपनी एक खेल को अंगीकृत करेगी, इसी क्रम में टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड द्वारा कयाकिंग कैनोइंग खेल को अंगीकृत किया गया है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने कहा कि टिहरी में विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किया जाएगा, जिसमें खिलाड़ियों के ठहरने से लेकर ट्रेनिंग की भी व्यवस्था की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस ट्रेनिंग सेंटर में बेहतर खेल प्रतिभाओं को टीएचडीसी द्वारा विदेश में भी ट्रेनिंग दी जाएगी।

आर के सिंह ने कहा कि पहाड़ों में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की अपार संभावनाएं हैं जिसको केंद्र और राज्य सरकार मिलकर आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए केंद्र और राज्य सरकार है एक साथ मिलकर काम कर रही हैं। इस दौरान टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय ने आयोजकों का आभार प्रकट किया।

इस कार्यक्रम के दौरान राज्यसभा सांसद नरेश बंसल, जिला पंचायत अध्यक्ष सोना सजवाण, विधायक शक्ति लाल शाह, विनोद कंडारी, विक्रम सिंह पांवर के अलावा सचिव ऊर्जा मीनाक्षी सुंदरम, उत्तराखंड ओलंपिक एसोसिएशन के सचिव डीके सिंह, टीएचडीसी के सीएमडी आरके विश्नोई समेत विभिन्न राज्यों के 15 टीमों ने प्रतिभागी मौजूद रहे।

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प्रख्यात कवि, गीतकार और सेंसर बोर्ड अध्यक्ष पद्मश्री प्रसून जोशी उत्तराखंड के बांड एम्बेसडर नियुक्त https://hillmail.in/renowned-poet-lyricist-and-censor-board-chairman-padma-shri-prasoon-joshi-appointed-as-bond-ambassador-of-uttarakhand-state/ https://hillmail.in/renowned-poet-lyricist-and-censor-board-chairman-padma-shri-prasoon-joshi-appointed-as-bond-ambassador-of-uttarakhand-state/#respond Fri, 25 Nov 2022 17:05:32 +0000 https://hillmail.in/?p=39034 अल्मोड़ा में जन्में प्रसून जोशी की शख्सियत को एक शब्द में बयां करना हो तो हरफनमौला सबसे सटीक शब्द होगा। एक बेहतरीन कवि, लेखक, पटकथा लेखक, गीतकार, सुपरहिट एडगुरू और सबसे खास एक बेहतरीन वक्ता। बेहत संयत और शब्दों के जादूगर। उनकी कलम से निकली रचनात्मकता ने हमेशा समाज को दिशा देने का काम किया है। मां-बेटे, पिता-पुत्र के संबंधों को शब्दों की जिस शिल्प से उन्होंने रचा है, वह सीधे दिल में उतर जाती है।

वह इस समय केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष हैं। उन्हें कुमाऊं यूनिवर्सिटी ने डीलिट की मानद उपाधि प्रदान की है। प्रसून जोशी उस बदलते भारत के लेखक हैं जिसे उनके गीत और कविताएं नई राह दिखा सकती हैं। उनके गीतों और कविताओं में गुस्सा, उम्मीद, उत्साह और बनते बिगड़ते सपने सबकुछ हैं। कविता के रूप में निकले उनके जज्बातों सीधे असर करते हैं। बेटियों के जन्म पर समाज के रवैये पर तीखी टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा, …शर्म आ रही है ना, उस समाज को जिसने उसके जन्म पर खुल के जश्न नहीं मनाया। शर्म आ रही है ना, उस पिता को उसके होने पर जिसने एक दीया कम जलाया…।

 

52वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रसून जोशी को ’इंडियन फिल्म पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर’ सम्मान प्रदान किया गया। 2015 में भारत सरकार ने कला, साहित्य एवं विज्ञापन के क्षेत्र में शानदार योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया। 17 साल की उम्र में ही युवा प्रसून की पहली किताब ‘मैं और वो’ प्रकाशित हुई। गीतकार के तौर पर उन्हें पहला ब्रेक राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘लज्जा’ से मिला। उन्होंने बहुचर्चित फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ की स्क्रिप्ट लिखी।

फिल्म ‘तारे जमीन पर’ के गाने मां के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 2013 में चटगांव के लिए भी उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यही नहीं, तीन बार वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीत चुके हैं। लंदन में 18 अप्रैल, 2018 को पीएम नरेंद्र मोदी के दो घंटे 20 मिनट लंबे ‘भारत की बात सबके साथ’ कार्यक्रम को प्रसून जोशी ने होस्ट किया।

प्रसून जोशी के गीतों और विज्ञापनों में पहाड़, प्रकृति का विशेष स्थान रहा है। उन्होंने अपने कई गीतों और विज्ञापनों में पहाड़ का चित्रण किया, यहां के परिवेश को संजोया। प्रसून का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के दन्या गांव में 16 सितंबर 1968 को हुआ। उनके पिता डी.के. जोशी शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनकी शुरूआती शिक्षा गोपेश्वर और नरेंद्रनगर गढ़वाल में हुई।

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