Warning: Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home4/hillmail/public_html/wp-content/themes/pressroom-child/functions.php:86) in /home4/hillmail/public_html/wp-includes/feed-rss2.php on line 8
अल्मोड़ा – Hill Mail https://hillmail.in Fri, 03 May 2024 17:52:54 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://i0.wp.com/hillmail.in/wp-content/uploads/2020/03/250-X-125.gif?fit=32%2C16&ssl=1 अल्मोड़ा – Hill Mail https://hillmail.in 32 32 138203753 जानिए उत्तराखंड के खमसिल बुबु मंदिर का रहस्य https://hillmail.in/mystery-of-khamsil-bubu-temple-of-uttarakhand/ https://hillmail.in/mystery-of-khamsil-bubu-temple-of-uttarakhand/#respond Fri, 03 May 2024 12:12:18 +0000 https://hillmail.in/?p=49201 क्या है इतिहास?

कहते हैं आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले तराई के कोई सिद्ध पुरुष या कोई घुमक्क्ड़ अल्मोड़ा आये। और अल्मोड़ा आकर यहाँ की आबो -हवा बहुत पसंद आई। और वे यही बस गए। बुबु को तम्बाकू गुड़गुड़ाना अच्छा लगता था। वे बीड़ी के भी शौकीन थे।

मरने के बाद किया परेशान

कहते हैं उनकी मृत्यु के बाद उनकी आत्मा ने स्थानीय लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। लोगो ने दर के मारे उनकी पूजा अर्चना शुरू की और जहाँ वे रहते थे वहां एक छोटा सा मंदिर बना दिया। और उस मंदिर में उनके हुक्के को रख दिया था। तबसे उनकी पूजा वहां खमसिल बुबु के रूप में होने लगी। लोग उन्हें श्रद्धावश बीड़ी ,तम्बाकू चढ़ाने लगे।

लोगों की करते है रक्षा

कहते हैं बुबु अल्मोड़ा में स्थानीय लोगो की भूत प्रेत या ऊपरी छाया से रक्षा करते हैं। बच्चो को नजर दोष लगने पर यहाँ लाकर उनकी नजर उतारी जाती है। बार -त्योहारों को यहाँ पूजा होती है ,बुबु को खिचड़ी और उनका प्रिय तबाकू चढ़ाया जाता है। अनिष्ट से रक्षा हेतु बुबु के नाम की भेंट रखी जाती है।

]]>
https://hillmail.in/mystery-of-khamsil-bubu-temple-of-uttarakhand/feed/ 0 49201
जंगल में लगी आग की चपेट में आने से एक श्रमिक की मौत, दो महिलाओं समेत तीन श्रमिक गंभीर रूप से घायल https://hillmail.in/one-worker-died-due-to-forest-fire-three-workers-including-two-women-seriously-injured/ https://hillmail.in/one-worker-died-due-to-forest-fire-three-workers-including-two-women-seriously-injured/#respond Fri, 03 May 2024 09:11:09 +0000 https://hillmail.in/?p=49190 प्रत्येक वर्ष आग बुझाने गए लोगो या आग की चपेट में आने से लोगो के झुलसाने की खबरें सामने आती है। आलम यह है की प्रत्येक वर्ष यह आग लोगो की जान जाने का कारण बनती है।

ऐसा ही एक मामला अल्मोड़ा जिले का सामने आया है। जहां आग की चपेट में आने से दो लासा लोगो की मौत हो गई। बता दें कि अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर थाना क्षेत्र में गुरुवार को जंगल की आग की चपेट में आने से नेपाली मूल के एक श्रमिक की मौत हो गई…जबकि दो महिलाओं समेत तीन श्रमिक गंभीर रूप से घायल हो गए। तीनों घायलों को उपचार के लिए बेस अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

बता दें कि अल्मोड़ा के वन क्षेत्राधिकारी ने बताया कि बेस्यूनाराकोट के जंगल में लीसा दोहन का काम करने वाले चार मजदूर वनाग्नि की चपेट में आ गए थे। एक मजदूर की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीन घायल हुए हैं। तीनों को हायर सेंटर रेफर कर दिया गया है।

]]>
https://hillmail.in/one-worker-died-due-to-forest-fire-three-workers-including-two-women-seriously-injured/feed/ 0 49190
उत्तराखंडी प्रवासी जन समाज द्वारा सु-प्रसिद्ध दिवंगत लोकगायक प्रहलाद मेहरा को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि https://hillmail.in/uttarakhandi-pravasi-jan-samaj-paid-emotional-tribute-to-the-famous-late-folk-singer-prahlad-mehra/ https://hillmail.in/uttarakhandi-pravasi-jan-samaj-paid-emotional-tribute-to-the-famous-late-folk-singer-prahlad-mehra/#respond Mon, 15 Apr 2024 10:02:13 +0000 https://hillmail.in/?p=48964 सी एम पपनैं

इस अवसर पर सभागार में उपस्थित प्रवासी जनों द्वारा दिवंगत लोकगायक प्रहलाद मेहरा के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गीत-संगीत, रंगमंच तथा उत्तराखंडी फिल्म जगत से जुड़े कलाकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों व समाज सेवियों में प्रमुख चंदन भैसोडा, बिशन हरियाला, मनोज चंदोला, हेम पंत, डॉ.सतीश कालेश्वरी, चारू तिवारी, राकेश गौड, डॉ. विनोद बछेती, के एन पांडे, सत्येंद्र फरन्डिया, चन्द्र मोहन पपनैं तथा सुरेंद्र हलसी द्वारा दिवंगत लोकगायक द्वारा जीवन पर्यंत अंचल के लोकगायन, लोकसंगीत व लोकगीतों की रचना कर उत्तराखंड की सांस्कृतिक विधा के संवर्धन व संरक्षण में दिए गए योगदान पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

लोकगायक प्रहलाद मेहरा का आकस्मिक निधन विगत 10 अप्रैल को 53 वर्ष की उम्र में हृदय गति रुक जाने से हल्द्वानी के कृष्णा हस्पताल में हो गया था। 11 अप्रैल रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। उनके पुत्र मनीष मेहरा, नीरज मेहरा और कमल मेहरा द्वारा चिता को मुखाग्नि दी गई थी।

दिवंगत प्रहलाद मेहरा उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले की तहसील मुनस्यारी स्थित चामी भेंसकोट में जन्मे थे। बचपन से उन्हें वाद्ययंत्र बजाने व गाने का शौक रहा था। वे ताउम्र उत्तराखंड के लोकगीत संगीत को समर्पित रहे। उन्हें गीत, झोड़ा, चांचरी, न्योली इत्यादि इत्यादि विधाओं में महारत हासिल थी। उनकी गायन प्रतिभा का ही प्रतिफल था वर्ष 1989 में उन्हें आकाशवाणी अल्मोड़ा में ए ग्रेड कलाकार का दर्जा प्राप्त हो गया था।

दिल्ली में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में विद्वान वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा के आकस्मिक निधन से उत्तराखंड के रंगमंच व सांस्कृतिक जगत की एक अपूरणीय क्षति हुई है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। अंचल ने एक ऐसी सोच के समर्पित लोकगायक को खोया है जिसकी रचनाओं व गायन में पहाड़ की नारी की वेदना का बखान होता था। अंचल से जुड़े गीत-संगीत की रचना व गीत गायन पर उनकी अच्छी पकड़ व गहरी संवेदनशील सोच थी। वे अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति के प्रहरी व मर्मज्ञ थे।

वक्ताओं ने कहा, अंचल की लोक संस्कृति के संवर्धन की चाहत उनकी सदा बनी रही। चैती गायन के साथ-साथ अन्य अनगिनत सुपरहिट गीत उन्होंने गाए। उनके गीतों में कुमाऊनी संस्कृति का रंग बिखरता था। बाल उम्र से ही अंचल के लोकगीत गायन, संगीत तथा बोली-भाषा में उनका बड़ा आलोक था। वे अपनी व समाज की बातों को गीतों के माध्यम से आगे रखते थे। अपने ग्रामीण अंचल दानपुर की प्रकृति का बखान अपने कर्णप्रिय व भावयुक्त गीतों में किया करते थे।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा उस परंपरा से आते हैं जहां से केशब अनुरागी आते हैं, शेरदा अनपढ़, हीरा सिंह राणा तथा नैन नाथ रावल, नरेंद्र सिंह नेगी इत्यादि इत्यादि आते हैं। वक्ताओं द्वारा कहा गया, हमारे यहां लोकगीतों में नाचने गाने की परंपरा है, उस लोकगीत के भाव क्या हैं, उसे जानने की किसी ने कोशिश नहीं की। दिवंगत प्रहलाद मेहरा के रचे व गाए गीत चेतना जगाने वाले गीत थे। उन्होंने महिलाओं के दर्द के गीतों को गाया। बहुत बड़ा आलोक उनके गीतों में रहा है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, जब विश्व बाजार सब कुछ बना रहा है, परोस रहा है, ऐसे समय में प्रहलाद मेहरा ने अंचल की पुरानी परंपराओं को आगे बढ़ाया है। वे लोगों के मर्म को जानते थे, समझते थे। वे जो अपने गीतों के माध्यम से दे गए हैं एक बड़ी धरोहर है। वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी को इस धरोहर के मायने समझने होंगे, उसे संजो कर रखना होगा।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, 2022 में उन्हें अंचल के गायन में यूका सुपरहिट गायक के सम्मान से नवाजा गया था। और भी अनेकों सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा उन्हें समय-समय पर विभिन्न नामों के सम्मानों से नवाजा गया। सौम्य और सरल स्वभाव के इस महान व्यक्तित्व के लोकगायक व रचनाकार में अंचल के लोगों के मर्म, अभावग्रस्त जीवन तथा लोक संस्कृति से उनका कितना गहरा नाता था, यह उनके द्वारा रचित गीतों व मर्म स्पर्शी गायन में झलकता था। उनकी सहजता, मिलनसार स्वभाव से सहमत हुए बिना नही रहा जा सकता था। उत्तराखंड के जन समाज को जो संदेश उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से दिया, झकझोरने व जागरुक करने वाला रहा, अनुकरणीय रहा। उनकी स्मृति मन मस्तिष्क में बनी रहेगी।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा को उनके योगदान पर वह स्थान और सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे असली हकदार थे। अंचल के जन के मध्य उनके रचित गीत व गायन पीढ़ियों तक उनकी याद दिलाते रहेंगे विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है।

सभी वक्ताओं द्वारा कहा गया, प्रहलाद मेहरा का जाना दुःख मय रहा। शोक स्थाई भाव की तरह जमा रहेगा। उनके रचे व गाए लोकगीत सदा स्मरणीय रहेंगे। उनकी रचनाओं व लोकगीतों को हम सबको मिलजुल कर आगे बढ़ाना होगा। हम किसी भी विचार धारा से जुड़े हो, परंतु अपने अंचल से जुड़ाव व नाता अवश्य रखना होगा। हम सब दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। पुण्य आत्मा की नजर बनी रहे, कामना करते हैं।

वक्ताओं द्वारा राय व्यक्त की गई, दिवंगत प्रहलाद मेहरा के नाम पर अंचल के किसी इंस्टिट्यूट का नाम रखा जाना चाहिए, यह कार्य उस दिवंगत आत्मा को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। दिवंगत आत्मा की शांति हेतु खचाखच भरे सभागार में उपस्थित लोगों द्वारा दो मिनट का मौन रखा गया। आयोजित श्रद्धांजलि सभा के विसर्जन की घोषणा मंच संचालक उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेंद्र चौहान द्वारा की गई।

]]>
https://hillmail.in/uttarakhandi-pravasi-jan-samaj-paid-emotional-tribute-to-the-famous-late-folk-singer-prahlad-mehra/feed/ 0 48964
उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का निधन, प्रशंसकों में शोक की लहर https://hillmail.in/famous-folk-singer-prahlad-mehra-of-uttarakhand-passes-away-wave-of-mourning-among-fans/ https://hillmail.in/famous-folk-singer-prahlad-mehra-of-uttarakhand-passes-away-wave-of-mourning-among-fans/#respond Wed, 10 Apr 2024 15:30:31 +0000 https://hillmail.in/?p=48872 उत्तराखंड के मशहूर लोक गायक प्रहलाद मेहरा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। बताया जा रहा है कि उन्होंने हल्द्वानी के कृष्णा अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद से उत्तराखंड फिल्म जगत में शोक की लहर है। प्यार से लोग प्रहलाद मेहरा को प्रहलाद दा कहकर बुलाते थे। उनके हर एक गीत में पहाड़ का वर्णन होता था।

लोक गायक प्रहलाद सिंह मेहरा का जन्म 04 जनवरी 1971 को पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील चामी भेंसकोट में हुआ था। वह स्वर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी और गजेंद्र राणा से प्रभावित होकर उत्तराखंड संगीत जगत में आए। उन्होंने वर्ष 1989 में अल्मोड़ा आकाशवाणी में स्वर परीक्षा पास की। प्रहलाद मेहरा को बचपन से ही गाना गाने और वाद्य यंत्र बजाने का शौक था।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी समेत अन्य लोगों ने दुःख प्रकट किया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह लोक संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। प्रह्लाद दा ने लोक संगीत के माध्यम से हमारी संस्कृति को विश्व पटल पर पहचान देने का अविस्मरणीय कार्य किया। उनके द्वारा गाए गए गीत सदैव देवभूमि की संस्कृति को आलोकित करेंगे। ईश्वर से पुण्यात्मा को श्रीचरणों में स्थान एवं शोक संतप्त परिजनों व प्रशंसकों को यह असीम कष्ट सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

स्वर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी से प्रभावित होकर वह उत्तराखंडी संगीत जगत में आए थे। वर्तमान में प्रहलाद मेहरा अल्मोड़ा आकाशवाणी में ए श्रेणी के गायक भी थे। उनके कई हिट कुमाऊंनी गीत हैं। जिनमें पहाड़ की चेली ले, दु रवाटा कभे न खाया… ओ हिमा जाग, का छ तेरो जलेबी को डाब, चांदी बटन दाज्यू कुर्ती कॉलर मां, मेरी मधुली… एजा मेरा दानपुरा… ने इस सुपर हिट गानों को अपनी आवाज देकर वह उत्तराखंड के लाखों लोगों के दिलों में छा गए थे।

]]>
https://hillmail.in/famous-folk-singer-prahlad-mehra-of-uttarakhand-passes-away-wave-of-mourning-among-fans/feed/ 0 48872
सीएम धामी ने अल्मोड़ा में किया कई योजनाओं का लोकार्पण एवं शिलान्यास https://hillmail.in/cm-dhami-inaugurated-and-laid-the-foundation-stone-of-many-schemes-in-almora/ https://hillmail.in/cm-dhami-inaugurated-and-laid-the-foundation-stone-of-many-schemes-in-almora/#respond Sat, 10 Feb 2024 18:14:29 +0000 https://hillmail.in/?p=48130 मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं अन्य अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मुख्यमंत्री ने देवी शक्ति के स्वरूप 10 कन्याओं का पूजन किया तथा आशीर्वाद प्राप्त कर प्रदेश की सुख समृद्धि की कामना की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने रूलर बिजनेस इन्क्यूवेटर में 21 महिला उद्यमियों से सीधे संवाद किया। इस दौरान उज्जवला सहकारिता की अध्यक्ष कमला लटवाल ने मुख्यमंत्री को सहकारिता के क्षेत्र में किये गये कार्यों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी उन्होने बताया कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 98 लाख का टर्नओवर प्राप्त किया जिसमें से 10 लाख 15 हजार का लाभांश उन्हें प्राप्त हुआ। रूलर बिजनेस इन्क्यूवेटर आरबीआई से जुडी भवना शर्मा ने मुख्यमंत्री का पूरे प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने पर उन्हें बधाई दी। इस दौरान ललिता काण्डपाल ने मुख्यमंत्री को अपने द्वारा किये जा रहे मशरूम उत्पादन के बारे में बताया। प्रबन्धक आरबी आई योगेश भट्ट ने बताया कि जनपद अल्मोड़ा का 5 हजार लखपति दीदी बनाने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था उसमें जनपद अल्मोड़ा ने समय से पूर्व अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।

अल्मोड़ा जिले ने प्राप्त किया 5 हजार लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार मातृशक्ति के उत्थान को समर्पित सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में सरकार लगातार महिलाओं के कल्याण हेतु विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में यूसीसी (समान नागरिक संहिता) को पारित कर जनता से किया वादा उन्होंने पूरा कर दिया है। उन्होंने समान नागरिक संहिता को देश एवं महिलाओं के विकास में मील का पत्थर कहा। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता किसी जाति, धर्म समुदाय के लिए न होकर पूरे राज्यवासियों के हितों के लिए है।

उन्होंने कहा कि गोल्जू भगवान की पावन धरती अल्मोड़ा में आकर वें स्वयं को अभिभूत महसूस कर रहे हैं। इतने बड़े जन सैलाब के द्वारा अल्मोड़ा से किए गए स्वागत के लिए उन्होंने अल्मोड़ा वासियों का अभिनंदन किया एवं धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि यह जनसैलाब हमारे संकल्प में ऊर्जा भरने का काम करता है। चंद राजाओं की भूमि सांस्कृतिक विशेषताओं को संजोए हुए हैं। यहां आर्गेनिक कृषि, दुग्ध विकास, एपन की अपनी अलग पहचान है। इन विशेषताओं को गति देकर अल्मोड़ा में विकास का नया आयाम शुरू होगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास के मंत्र पर हमारी सरकार अग्रसर है। कहा कि डबल इंजन की सरकार प्रदेश में विकास की गंगा बहाने का कार्य कर रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड देवभूमि प्रदेश है। यहां हमेशा से सुख शांति से लोग जीवन यापन करते हैं। इस देवभूमि की आबोहवा खराब नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि जो भी देवभूमि की छवि खराब करने का प्रयास करेगा उसके साथ सख्ती से निपटा जाएगा। पूरे प्रदेश में सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने की लगातार कार्रवाई गतिमान है तथा यह इसी प्रकार चलती रहेगी। उन्होंने कहा कि जो भी सरकारी कार्य में बाधा डालेगा उसके साथ सख्ती से निपटा जाएगा।

मुख्यमंत्री ने उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को चेक वितरित कर उनका उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा कि इस धनराशि से महिलाओं की आर्थिकी में वृद्धि होगी एवं रोजगार सृजन करने में भी मददगार होंगी। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्यमशीलता को बढ़ावा देने हेतु 111 करोड़ रुपए के ऋण चेक महिलाओं को वितरित किए।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जो घोषणायें की उनमें भतरौजखान में स्टेडियम का निर्माण, विकासखण्ड लगमड़ा के सर्वादय इंटर कालेज में 4 कक्षों का निर्माण कार्य, तिलोरा में सिंचाई पम्पिंग योजना, विकासखण्ड हवालबाग के समीप मिनी स्टेडियम का निर्माण, सल्ट के गुलमरा-गैरखेत मोटर मार्ग का डामरीकरण एवं विकासखण्ड द्वाराहाट के ग्रामसभा सकुनी में शुक्रेश्वर महादेव मन्दिर का जीर्णाद्वार का अवशेष कार्य है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने ‘मातृ-शक्ति आजीविका महोत्सव’ में विभिन्न विभागों द्वारा लगाए गए स्टाल्स एवं शिल्पकार गैलरी का निरीक्षण किया। मातृशक्ति द्वारा निर्मित विभिन्न उत्पादों का अवलोकन करते हुए पहाड़ी नमक पीसने व घी तैयार कर पुरानी स्मृतियों को जीवंत किया। मुख्यमंत्री ने स्थानीय लोगों द्वारा निर्मित ताम्र शिल्प उत्पादों, हथकरघा उत्पादों के साथ ही स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा वैज्ञानिक सिद्धांतों पर बनाए गए विभिन्न प्रोजेक्टों का अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ‘एक जिला-दो उत्पाद’ योजना के साथ ही नवाचारों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों को नई पहचान दे रही है।

]]>
https://hillmail.in/cm-dhami-inaugurated-and-laid-the-foundation-stone-of-many-schemes-in-almora/feed/ 0 48130
डॉ. संजीव कुमार जोशी के काव्य संग्रह ‘एक समंदर मेरे अंदर’ का हुआ विमोचन https://hillmail.in/dr-sanjeev-kumar-joshis-poetry-collection-ek-samandar-mere-andar-released/ https://hillmail.in/dr-sanjeev-kumar-joshis-poetry-collection-ek-samandar-mere-andar-released/#respond Wed, 31 Jan 2024 19:06:57 +0000 https://hillmail.in/?p=48007 इस कविता संग्रह का विमोचन रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सीडीएस जनरल अनिल चौहान, फिल्म अभिनेता एवं लेखक आशुतोष राणा, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष पदमश्री राम बहादुर राय द्वारा किया गया। डॉ. संजीव कुमार जोशी वर्तमान में ब्रह्मोस एयरोस्पेस में डिप्टी सी.ई.ओ. के पद पर कार्यरत हैं।

डॉ. संजीव कुमार जोशी की 75 उत्कृष्ट कविताओं से युक्त इस कविता संग्रह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट, एनएसए अजीत डोभाल, सीडीएस जनरल अनिल चौहान, राम बहादुर राय और आशुतोष राणा सहित उल्लेखनीय हस्तियों से प्रशंसा मिली। सभी लोगों ने डॉ. संजीव जोशी की रचनात्मकता और काव्य अभिव्यक्ति की अनूठी शैली पर प्रकाश डाला गया।

डॉ. संजीव कुमार जोशी ’निश्छल’ का यह पहला कविता संग्रह है, जो कई अर्थों में अनूठा है। उनके शब्दों में कहें, तो यह साहित्य, संगीत और कला का शानदार सम्मिश्रण है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में एक से बढ़कर एक 75 नायाब कविताओं से सजी इस पुस्तक में कवि ने महिलाओं की समस्याओं, समसामयिक विषयों, दर्शन और जीवन में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले मनोभावों को काव्यात्मक शैली में बहुत ही सलीके से ढाला है। वैज्ञानिक होने के नाते कवि ने अपनी रचनाओं की प्रस्तुति में नवाचार किया है।

उन्होंने अल्पज्ञात चित्रकार संजय अहलूवालिया और अल्प विख्यात, लेकिन मंझे हुए रंगकर्मी और स्वरसाधक धर्मेन्द्र मीना (रंगमच नाम-राहुल आमठ) की कला को संजोकर पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया है। हर कविता के साथ उसके भावों को चित्रित करती जहां अहलूवालिया की अमूर्त कला है, वहीं कुछ कविताओं को राहुल आमठ ने स्वर दिया है। पाठक अपने मोबाइल पर क्यूआर कोड स्कैन करके इसका आनंद ले सकते है। यही बात इस कविता संग्रह को ख़ास बनाती है।

काव्य संग्रह के विमोचन पर रक्षा क्षेत्र से सचिव डीआरडीओ डॉ एस वी कामत, पूर्व सचिव डीआरडीओ डॉ जी सतीश रेड्डी, नौसेना के उपप्रमुख वाईस एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी, वायु सेना के उपप्रमुख एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) अनिल भट्ट, महानिदेशक भारतीय अंतरिक्ष एसोसिएशन, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान, डीआरडीओ के महानिदेशकों सहित अनेक वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा साहित्य और कला जगत के अनेक नामचीन व्यक्तित्व शामिल हुए।

डॉ. संजीव कुमार जोशी पेशे से रक्षा वैज्ञानिक हैं और हृदय से कवि। उनके 35 से ज़्यादा शोध देश तथा विदेश के प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। उनका पदार्थ विज्ञान, रक्षा तकनीकी प्रबंधन एवं प्रशासन, आपदा एवं महामारी प्रबंधन और स्टार्ट अप मेंटरिंग के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्हें रक्षा विज्ञान तथा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया है।

डॉ. संजीव कुमार जोशी पहले ‘अकेला’ और बाद में ‘निश्छल’ उपनाम से कविताएं लिखने लगे। अंतर्मुखी होने के कारण या विज्ञान की पढ़ाई के कारण मुशायरों में ज़्यादा जाना संभव न हो सका, इसलिए उनकी कविताएं कम पढ़ी या सुनी गई हैं। अब वह फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया माध्यमों के द्वारा अपनी कविताएं पोस्ट करते रहते हैं।

डॉ संजीव जोशी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय से भौतिकी में परास्नातक तथा जी.बी. पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर से एम.टेक. तथा एन.आई.टी. कुरूक्षेत्र से भौतिकी में डॉक्टरेट उपाधि हासिल की है। मूल रूप से अल्मोड़ा, कुमाऊं से आने वाले डॉ. जोशी वर्तमान में ब्रह्मोस एयरोस्पेस में डिप्टी सी.ई.ओ. के पद पर कार्यरत हैं।

यह उनका पहला काव्य संग्रह है, जिसमें वे कहते हैं कि यह पुस्तक साहित्य, संगीत और कला का सम्मिश्रण है। इस काव्य संग्रह में उन्होंने नारी समस्याओं, समसामयिक विषयों, दर्शन और जीवन के समय-समय पर उत्पन्न मनोभावों को प्रस्तुत किया है।

]]>
https://hillmail.in/dr-sanjeev-kumar-joshis-poetry-collection-ek-samandar-mere-andar-released/feed/ 0 48007
कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र आईएएस भास्कर खुल्बे और पद्मश्री डॉ गोवर्धन मेहता को मानद उपाधि से किया गया सम्मानित https://hillmail.in/kumaon-university-alumni-ias-bhaskar-khulbe-and-padmashree-dr-govardhan-mehta-honored-with-honorary-degrees/ https://hillmail.in/kumaon-university-alumni-ias-bhaskar-khulbe-and-padmashree-dr-govardhan-mehta-honored-with-honorary-degrees/#respond Fri, 19 Jan 2024 15:05:43 +0000 https://hillmail.in/?p=47843 कुमाऊं विश्वविद्यालय का 18वां दीक्षांत समारोह धूमधाम से मनाया गया। शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत, आयुक्त दीपक रावत, कुलपति दीवान सिंह रावत, कुलसचिव दिनेश, पीएम के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर कुमाऊं विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की दो महान हस्तियों को इस बार के दीक्षा समारोह में मानद उपाधि से सम्मनित किया इनमें आईएएस अधिकारी भास्कर खुल्बे और पद्मश्री डॉ गोवर्धन मेहता शामिल हैं। भास्कर खुल्बे इस समय उत्तराखंड सरकार में विशेष कार्याधिकारी पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं और इससे पहले वह पीएम मोदी के सलाहकार रह चुके हैं।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के 18वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्चुअली प्रतिभाग किया। राज्यपाल ने कहा कि देश और समाज की उन्नति में योगदान देना आपकी नैतिक जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आज के युवा भविष्य के कर्णधार हैं। बेहतर शिक्षा, जन योजनाओं से आज हमारा राज्य विकसित राज्यों में दूसरे नंबर में हैं। शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने कहा कि विवि का फार्मेसी विभाग भारत में 68 स्थान पर है, जो कि गर्व की बात है।

इस अवसर पर कुलपति दीवान सिंह रावत ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को बताया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में विभिन्न क्षेत्रों में समकालीन व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को शामिल किया गया है। विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में साल 2022 और 2023 सत्र के 46,000 से अधिक विद्यार्थियों को उपाधि, 379 शोधार्थियों को पीएचडी उपाधि और 151 मेधावियों को पदक और 6 को डीलेट से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर भास्कर खुल्बे ने कहा कि सर्वप्रथम आप लोगों ने मुझे यह सम्मानित करके गौरवान्वित किया है उसके लिए मैं आप सभी का दिल से धन्यवाद देता हूं। यह उपाधि मेरे माता पिता और मेरे गुरूजनों का मुझे आशीर्वाद है और मैं अभिभूत हूं। उन्होंने आगे कहा कि अपने गुरूजनों में मैं डॉ जीतेंद्र सिंह बिष्ट, डॉ महेंद्र सिंह पंत, डॉ तेजेंद्र गिल, डॉ सर्वेश कुमार, डॉ नीलम मल्होत्रा, डॉ शिखा गांगुली, डॉ लता गंगोला और डॉ शारदा पांडेय का उल्लेख करना चाहूंगा जिसकी विशिष्ट अध्यापन शैली ने मुझे शिक्षा अर्जन का मार्ग शुलभ कराया। मैं इन सभी गुरूजनों को सादर प्रमाण करता हूं। इसी सभागार में मैंने 46 वर्ष पूर्व अपनी स्नातक डिग्री पाई थी। उन्होंने कहा कि शिक्षा का कोई आरम्भ और अंत नहीं होता है।

भास्कर खुल्बे इससे पहले उत्तराखंड में प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी संभाल रहे थे जिसमें ऑल वेदर रोड, केदारनाथ का पुनर्निर्माण, बदरीनाथ का मास्टरप्लान, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन शामिल थे। इन सभी परियोजनाओं को कैसे धरातल पर उतारा जाए इसकी जिम्मेदारी भास्कर खुल्बे पर थी। वह सक्षम, ईमानदार, मेहनती और नए विचारों के लिए खुली सोच रखने वाले शख्स माने जाते हैं।

जब उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में 41 मजदूर सुंरग में फंस गए थे उस वक्त भास्कर खुल्बे ने घटनास्थल पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया था और कई दिनों तक वहां चले राहत और बचाव कार्य में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। उनके साथ उस समय पीएमओ से आई टीम थी और स्थिति पर नजर रख रही थी। भास्कर खुल्बे के बारे में कहा जाता है कि वह जिस जिम्मेदारी को लेते हैं, उसे तब तक फॉलो करते हैं, जब तक वह धरातल पर दिखने न लगे।

भास्कर खुल्बे और कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने कल कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर में जंतु विज्ञान और वनस्पति विज्ञान विभाग का निरीक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने जंतु विज्ञान विभाग में रूसा के तहत बनाए गए संग्रहालय का शुभारंभ किया। इस अवसर पर भास्कर खुल्बे ने कहा कि यह संग्रहालय विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।

]]>
https://hillmail.in/kumaon-university-alumni-ias-bhaskar-khulbe-and-padmashree-dr-govardhan-mehta-honored-with-honorary-degrees/feed/ 0 47843
यह सपना नहीं, हकीकत है पहाड़ों को लेकर …..! https://hillmail.in/this-is-not-a-dream-this-is-the-reality-regarding-the-mountains/ https://hillmail.in/this-is-not-a-dream-this-is-the-reality-regarding-the-mountains/#respond Tue, 09 Jan 2024 07:18:03 +0000 https://hillmail.in/?p=47657 उत्तराखंड में पलायन की स्थिति एवं गांवों का पुनरोत्थान कैसे संभव होगा…!

भ्रमणशील और कुछ नया सोचने की प्रवृत्ति समय के साथ बढ़ती जा रही है समय – समय पर गांवों का भ्रमण किया जाता रहा और इसी दिसंबर अंत में भी कुछ प्रमुख गावों का भ्रमण किया गया। जब आप भीतर तक किसी चीज से जुड़ते हैं तो समाधान देने की स्थिति में भी होते हैं। पलायन और गांवों के विकास जैसे विषय पर गहनता से सोचने पर कुछ नवीन तथ्य मन – मस्तिष्क में उभरते हैं जो ज़मीनी (धरातलीय) हो सकते हैं जिन्हें समझा जा सकता है और किसी निर्णय पर भी आगे पहुंचा जा सकता है।

आज से पचास – साठ दशक पूर्व या उससे पहले, जो लोग गांवों से शहरों में चले गए और शहरों में एक ठीक – ठाक जीवन व्यतीत कर रहे हैं उनका वापस गावों में आकर बसना बहुत मुश्किल होगा, कारण हैं :- स्वास्थ्य तथा उनके मुताबिक सुविधाओं का न मिल पाना…। उनके बच्चे भी अपने – अपने स्थानों पर पढ़ – लिखकर देश-विदेशों में अच्छे से व्यवस्थित हो गए हैं। उनका पहाड़ों में आकर बसना नामुमकिन नहीं भी हो तो मुश्किल अवश्य है।

अब गांवों में रह रही वर्तमान पीढ़ी की बात करें तो गांवों में बच्चों की संख्या बहुत कम होती जा रही है। बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए लोग गांवों के निकट ही शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। कुछ लोग अपनी सामर्थ्यानुसार शहरों, महानगरों की ओर चले गए हैं और वहीं अपनी नौकरी या रोजगार भी कर रहे हैं। बच्चों के लिए वहां कमरा आदि दिलाकर या रिश्तेदारी में उन्हें पढ़ने के लिए भी छोड़ा जा रहा है। गांवों के कई प्राइमरी स्कूल इसलिए बंद हो गए हैं क्योंकि अब वहां बच्चे नहीं हैं… कहीं कुछ गांवों को मिलाकर 12-13 बच्चे हैं और एक भोजन माता, एक दो अध्यापक… यह अधिकांश गांवों की स्थिति होगी।

गांवों से पलायन करने का मुख्य कारण रहा है… कृषि के अतिरिक्त रोजगार के अन्य अवसर उपलब्ध न होना, अच्छे विद्यालयों की कमी, स्वास्थ्य के लिए अस्पतालों का अभाव, आने – जाने के लिए आज भी परिवहन की ठोस व्यवस्था का न होना, जंगली जानवरों का आतंक, गांवों से बाजारों का दूर होना, गांवों की ही उत्पादित साग – सब्जी, दालों दूध आदि पर निर्भरता होना, विपणन की सही व्यवस्था न हो पाना, पुस्तकालयों, युवा पीढ़ी के उत्थान के लिए किसी सेंटर, विचार – विमर्श के लिए किसी स्थल का न हो पाना आदि कारण ऐसे कहे जा सकते हैं।

हालांकि इन कुछ वर्षों के भीतर ही गांव – गांवों में शौचालय, बिजली जिसमें सौर ऊर्जा भी शामिल हो गई है, आ गई है। इस बार गांवों में घर – घर पानी के नल भी लगते हुए देखे गए। जब यह सुविधाएं आ गईं तो फिर भी लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं। क्योंकि गांवों में रहने या टिकने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है। इसके पीछे और भी कई कारण हैं जो ऊपर दिए जा चुके हैं। सड़कें बनती भी हैं तो हर बारिश में फिर टूट जाती हैं। जब तक रोजगार के साधन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, अच्छे स्टडी सेंटर गांव में नहीं होंगे, इस पीढ़ी को रोका नहीं जा सकेगा।

अब बात करते हैं कि किस प्रकार गांवों का पुनरुत्थान किया जा सकता हैः-

सर्वप्रथम जिन्हें बाहर अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं उन्हें गांवों में फिलहाल रोकना मुश्किल होगा। स्वतः की प्रेरणा से कोई आएं, रुकें, गांवों को विकसित करें तो सदैव उनका स्वागत रहेगा। अब गांवों के विकास के लिए व्यक्तिगत प्रयासों की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। जिसके अच्छे परिणाम आने की भी पूरी संभावना होगी।

महत्वपूर्ण है कि अब गांवों में उन्हें रोका जा सकता है जो गांवों में रहकर कुछ काम करने को तैयार हैं जिससे अपनी आमदनी बढ़ा सकें। अच्छा जीवन जी सकें।

इसके लिए एक महत्वपूर्ण उपाय यह नजर आता है कि गांव के बहुत पहले से खाली पड़े कुछ मकानों को ठीक करवाकर उन्हें “होम स्टे“ की तरह इस्तेमाल किया जा सके। शुरुआती दौर में इन्हें बहुत अधिक भव्य व महंगा न बनाकर, साफ – सुथरा व अपने प्राकृतिक रूप में रखा जाए। इनका शुल्क भी प्रति दिन (24 घंटे) के हिसाब से 500 रुपए तक ही रखा जाए। जो इतना न दे पाने की स्थिति में हों उन्हें प्रति व्यक्ति के हिसाब से कम भी किया जा सके। जिससे गांव की यात्रा पर जाने वाले बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी उस खर्च को वहन कर सकें। चाय – भोजन आदि भी सही मूल्य पर उपलब्ध हो सके।

जिसमें बाहर से जाने वालों की रहने – खाने की बुकिंग पहले करवाने का भी प्रावधान हो। इससे एक फायदा यह होगा कि जो लोग कई वर्षों से अपने ही गांव नहीं जा पा रहे हैं कि गांव में किस प्रकार भोजन की व्यवस्था कर पाएंगे, कहां सोएंगे, कैसे रह पाएंगे.. आदि आदि! यह व्यवस्था हो जाने से वह लोग भी अपने गांव की ओर आयेंगे। अच्छी आबोहवा, अच्छा पहाड़ी भोजन मिलेगा तो आगे भी लोगों का आना – जाना बरकरार रहेगा। अपने परिचित लोगों को भी अपनी पैतृक भूमि में लोग भेज पाएंगे। बाहर के लोगों के आने – जाने के लिए देवभूमि में कुछ नियम अवश्य लागू करने होंगे जिससे गलत मंशा से या गलत कृत्यों के लिए प्रवेश करने वालों को रोका जा सके।

दिल्ली, मंबई हो या कोई भी शहर आज जब अपने गावों में पूजा करने या पितृकुड़ी कार्य के लिए लोग गांव आते हैं तो यही सोचते हैं कि गांव जा रहे हैं तो निकट से पहले खाने का सामान गाड़ी में भर लिया जाय, कुछ लोग तो बावर्ची लेकर भी मैदानों से पहाड़ों की ओर चलने लगे हैं। इस सीधी-सरल व्यवस्था से लोगों को गांवों के भीतर ही एक अच्छा रोजगार मिलेगा और लोगों को भी गांवों में जाने पर सुविधा होगी। लोगों की आवाजाही बढ़ेगी। अपनी खेती में भी लोग अच्छा उपजा पाएंगे। नई – नई कृषि तकनीक का विकास करेंगे।

जो आज पहाड़ों में हाईटेक “होम स्टे“ बना रहें हैं वह सामान्य नागरिक के किसी काम के नहीं। प्रति रात्रि डेढ़ – दो हजार से अधिक का उनका किराया आम आदमी की सामर्थ्य से बाहर है। इसलिए वह सिर्फ एक वर्ग तक ही सीमित रह गए हैं और सामान्य जन के लिए महत्वहीन…।

अब जंगली जानवरों से खेती बचाने की बात करें तो पूर्व में जैसा होता था कि कुछ लोग गावों में ही मसालें लेकर समूह में चल पड़ते थे। कभी कभी यह युक्ति भी गांव वालों को मिलकर करनी पड़ेगी। अच्छी फेंसिंग, घरों में स्वानों को पालना जिससे उजाड़ करने वाले जानवरों की सूचना मिल सके। दूर तक अच्छी लाइटें, अच्छा प्रकाश कारगर हो सकता है।

वर्तमान में देखें तो गांवों की एक समस्या यह है कि शौचालय घर से थोड़ा दूर बने होते हैं। घर में ही शौचालय पुरानी परंपरा नहीं थी। जो अब नए मकान गांवों में बना रहे हैं वह तो टॉयलेट भी साथ ही बना रहे हैं। पुराने मकानों का निर्माण इस तरह से होता था कि उसमें घर के भीतर टॉयलेट नहीं बनाए जाते थे। अतः किसी को रात को बाहर जाना पड़े तो घर के पीछे बने शौचालय में ही जाना होता था। जिसमें आज भी कुछ बदलाव नहीं हुआ है। आज के समय रात्रि में अकेले जानवरों का भी भय हो गया है। किंतु इसका भी एक समाधान लोगों ने खोजा जो पूर्व में भी था.. वह था ‘पश्वा का निर्माण’.. अर्थात् घर के भीतर ही एक कमरे में जिसमें मंदिर न हो वहां पर नहाने और मूत्र विसर्जन के लिए एक चौकोर स्थान बना दिया जाता था और उससे लगी पाइप को पीछे की तरफ निकाल दिया जाता। जिससे घर की स्त्रियां कभी वहां स्नान भी कर सकती थीं और बच्चे, बड़े, सभी रात्रि को बाहर न जाकर मूत्र विसर्जन भी कर लेते थे। अभी भी गांव के कुछ घरों में यह देखा गया, जहां नहीं है इसे बनाया जा सकता है। इस सुविधा के चलते जो गांवों में रहने आयेंगे उन्हें बहुत सुविधा होगी।

पूर्व के समय में खड़ी फसलों को बचाने के लिए “जुगाली का ठेका“ होता था जो गांव के ही किसी व्यक्ति को दे दिया जाता था जो अपने दो तीन कुत्तों के साथ दिन में बंदरों आदि से सभी की खेती की रखवाली करता था जिसके बदले में उसे अनाज या रुपए दिए जाते थे। रात्रि में फसलों को सुअर, सौल, भालू आदि से बचाने के लिए लोग मसालें लेकर, हल्ला मचाते हुए, कनस्तर बजाते हुए प्रतिदिन निकलते थे। साथ ही एक उपाय उन दिनों यह भी था कि कहीं दूर कनस्तर में लोग लकड़ी या घंटी बांध दिया करते थे और उसकी रस्सी को घर तक ले आते थे। रात को दो – चार बार घर से ही उस रस्सी को खींच लेते जिससे दूर खेतों के बीच ध्वनि गूंजने लगती जिससे जानवर जो आते भी थे, भाग खड़े होते थे। इन विधियों को गांवों को आवाद करने, फसलों को सुरक्षित रखने के लिए पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है। साथ ही समय – समय पर उपर्युक्त विभिन्न कार्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर गांवों में गोष्ठी का आयोजन और सलाह – मशविरा दिया जाता रहना प्रमुख होगा। चकबंदी और भू – कानून का होना भी गांवों की समृद्धि, व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा।

साथ ही अब रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। खेती के लिए नए कृषि यंत्र, तकनीक, उन्नत बीज, अच्छी खाद, जल की आपूर्ति, कृषि के विपणन की सही व्यवस्था, गौ पालन, भेड़ बकरी पालन आदि करना होगा। पॉपुलर के पेड़ जो कम पानी में भी अच्छी मात्रा में उग जाते हैं और फर्नीचर आदि के लिए अच्छे प्रयोग में लाए जाते हैं उन्हें गांवों में भी उगाने की व्यवस्था देखी जा सकती है। केसर, मशरूम, बांस / रिंगाल की खेती, फलों के वृक्ष, फूलों की खेती, मोटा अनाज व पहाड़ी दालों का उत्पादन, मिठाई की जगह अरसे, खजूर जैसे खाद्य पदार्थ का निर्माण, मधु मक्खी पालन, मछली पालन, बद्री गाय (देसी, छोटी गाय) का घी जो आज २००० रुपए किलो तक बिक रहा है। बहुत कुछ हो सकता है इन पहाड़ों में… बस एक नई ऊर्जा और संकल्प की शक्ति को लेकर आगे बढ़ना होगा, चलना होगा।

मैंने स्वयं 18-20 वर्षों से सम्पूर्ण उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों की यात्रायें की हैं जो मेरे साहित्य लेखन के लिए भी रहा और वर्तमान में भी यात्राएं जारी हैं।

महत्वपूर्ण है कि एक समय इंसान घर – परिवार से, समाज से सिर्फ लेने की अवस्था में होता है और एक समय ऐसा आता है जब उसे विभिन्न रूपों में लौटाने की बारी आती है…। जो शिक्षित हैं, स्वस्थ हैं, संपन्न हैं, सबका विकास चाहते हैं। अपने जीवन का एक अच्छा समय व्यतीत कर चुके हैं उन्हें कम से कम अपने गावों के विकास के लिए सोचना चाहिए और कुछ करना चाहिए। मैं भी करती हूं इसलिए यह सब लिखने के लिए कृत संकल्पित हूं। आगे भी कई अन्य सुझाव मैं देने की स्थिति में रहूंगी।

एक विचार मध्य प्रदेश इंदौर से अजय उनियाल का भी इस संदर्भ में मिला है जिनके अनुसार :- “मेरे अनुभव के आधार पर पलायन जैसे गंभीर विषय पर ब्लॉक स्तर पर स्थानीय एवं हम प्रवासी भाई बहनों द्वारा अपने-अपने ब्लॉक पर समितियां गठित की जाए सरकार से स्थानीय ब्लॉक प्रमुखों के माध्यम से गांव में सड़क बिजली पानी एवं खेतों में पानी हेतु मांग की जाए कृषि विभाग पशुपालन विभाग एवं संबंधित सभी विभागों के अधिकारी समितियां में हमारे साथ कार्य करें सभी ब्लॉकों में एक समान योजना बनाई जाए हम सब मिलकर प्रवास में भी समस्त भाई बहनों से सामाजिक संस्था एवं वरिष्ठ समाजसेवियों द्वारा इस कार्य को एक आपसी सहभागिता सुनिश्चित कर प्रारंभ कर सकें। इसमें सभी का सहयोग अपेक्षित होगा।“

इसलिए जो परिस्थिति को समझेंगे, वह तटस्थ नहीं रह पाएंगे। किसी न किसी रूप में अपनी भूमिका अवश्य निभायेंगे।

शाखें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आयेंगे।
फिर पहाड़ों के वो अच्छे दिन भी आयेंगे…..।

डॉ. हेमा उनियाल
(ग्रंथकार)

]]>
https://hillmail.in/this-is-not-a-dream-this-is-the-reality-regarding-the-mountains/feed/ 0 47657
भारत के बाजार में पहली बार उत्तराखंड में इजाद किए गए उत्पादों का बोलबाला https://hillmail.in/for-the-first-time-products-invented-in-uttarakhand-dominate-the-indian-market/ https://hillmail.in/for-the-first-time-products-invented-in-uttarakhand-dominate-the-indian-market/#respond Thu, 04 Jan 2024 17:05:17 +0000 https://hillmail.in/?p=47593 सी एम पपनैं

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में विगत कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले का आयोजन किया जाता रहा है। माह नवम्बर 2023 में 42वां मेला आयोजित किया गया था। देश के सभी राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेश और विश्व के 13 देशों के विभिन्न उत्पाद निर्माताओं द्वारा आयोजित व्यापार मेले में शिरकत कर अपने देश-प्रदेश के छोटे-बड़े प्रमुख उत्पादों की प्रदर्शनी लगा कर निर्मित उत्पादों की न सिर्फ बिक्री की गई, उक्त उत्पादों की गुणवत्ता के बावत भी आम दर्शकों को अवगत कराया गया।

आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में लगभग वही उत्पाद प्रदर्षित होते देखे जाते रहे हैं जो विगत कई दशकों से प्रदर्शित होते रहे हैं। आयोजित 42वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में ‘उत्तराखंड व्यापार मंडप’ में कुछ नए उत्पाद ’न्योली इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड’ के माध्यम से पहली बार प्रदर्शित किए गए थे जो बाजार व्यवसाय की दृष्टी से एकदम नए व व्यावसायिक जगत में कुछ उम्मीद जगाते नजर आ रहे थे। इन नए उत्पादों में भांग दाना तेल (दर्द रोधक), व्यूटी स्किन केयर तेल (त्वचा संबंधी) तथा भांग खाना तेल मुख्य थे। हिंदुस्तान में नई टेक्नोलॉजी को इजात कर उक्त उत्पादों को पहली बार परिचय कराने व बाजार में उतारने का काम परिवर्धन डांगी पुत्र चंदन डांगी, ग्राम खैकट्टा (तीखुन कोट), डांगी खोला (मजखाली, रानीखेत) जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड द्वारा किया गया है।

उक्त उत्पाद निर्माता परिवर्धन डांगी की बेसिक शिक्षा राय स्कूल लोधी रोड नई दिल्ली, इंजीनियरिंग (मैकेनिकल) जी एल बजाज गौतम बुद्ध युनिवर्सिटी, मास्टर इन डिजाइन गांधीनगर गुजरात से हुई है। गुजरात के पुणे शहर में गोल्ड ज्वैलरी पर प्रिंटिंग का काम करने के दौरान इस शिक्षित व जागरूक युवा को उक्त शहर के आईएनडी में लगी एक प्रदर्शनी में भांग पौंधे के रेशे से बना कपड़ा देख दिमांग ठनक, ध्यान अपने उत्तराखंड के मूल गांव खैकट्टा (तीखुन कोट), डांगी खोला जिला अल्मोड़ा की बन्जर जमींन में लावारिस खड़े भांग के पौंधों की ओर गया, जिन्हें अक्सर गांव के लोग उखाड़ कर फैक देते हैं, सूख जाने पर आग लगा कर जला देते हैं।

उक्त प्रदर्शनी में भांग पौधा जिसे ‘कैनाबिस इंडिका’ के नाम से जाना जाता है उक्त पौंधे के रेशे से बने कपड़े से प्रेरित होकर परिवर्धन डांगी ने एक वर्ष तक पुणे में गोल्ड ज्वैलरी पर प्रिंटिंग कार्य करने के बाद पुणे से दिल्ली शिफ्ट होकर भांग पर डिजाइन वर्क शुरू करने का काम किया, उस पर 2016 से 2019 तक शोध कार्य कर जाना, भांग का पौंधा करिश्माई है, इसका उपयोग बहुत है। इस पौंधे से पचास हजार से ज्यादा उत्पाद बनाए जा सकते हैं।

इस युवा ने यह भी जाना, इंसान की पहली जरूरत भांग पौंधा पूर्ति करता है। रोटी, कपड़ा और मकान देता है। इसका बीज खाने के काम में, छाल कपड़ा बनाने तथा लक्कड मकान बनाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। यह ऐसा पौंधा है जिसे पानी कम, बंदर, सुअर से निजात मिलती है। देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। कहीं भी उगाया जा सकता है। सबकी पूर्ती कर रहा है। इस पौंधे का विभिन्न प्रकार से दोहन कर उत्पाद ईजाद कर रोजगार के साधन बढ़ाए जा सकते हैं। लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने का अच्छा साधन है। देश को इसकी सख्त जरूरत है।

भांग पौंधे के सैंकड़ों लाभ जान उत्पाद निर्माता परिवर्धन डांगी को धुन चढ़ी थी अपने अंचल के मूल गांव में कार्य कर एक अलख जगा, ग्रामीणों की आय बढ़ाने व रोजगार पैदा करने की। इस युवा ने बाल्यकाल में देखा था उसके दादा गोबिंद सिंह डांगी गांव के कास्तकारों के कृषाण थे, किसी को चोट-पटक लग जाने पर भांग से निर्मित पदार्थ का प्रयोग उस घाव पर करते थे, इसी प्रकार कई अन्य प्रकार के प्रेरक कार्य भी उन्हें करते हुए देखा था। दादा के गुरों को याद कर, उनसे सीख ले, विश्वास पूर्वक कदम आगे बढ़ाने के हौसले ने इस शिक्षित युवा को एक नई दिशा देने का कार्य किया। 2017-2018 में एक जुनून के साथ इस सिद्धहस्त युवा ने पूर्णरूप से अपनी चाहत को आगे बढ़ाया। भारतीय प्रबंध संस्थान काशीपुर में एक योजना के तहत भारत सरकार किसान कल्याण योजना के अंतर्गत 2019 में भांग से निर्मित किए जाने वाले उत्पादों को चुन कर अपनी राह को आगे बढाना शुरू किया।

निर्मित भांग उत्पादों के नमूने पास करवाने हेतु उन्हें 2019 में भारत सरकार द्वारा नियंत्रित विभाग, भारतीय खाद्द्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई) के पास भेजा गया जो 2021 में संबन्धित विभाग से पास होकर आया। इस प्रकार परिवर्धन डांगी द्वारा स्थापित कंपनी के अथक प्रयास के बाद 2021 में भांग निर्मित उत्पादों को संबन्धित मानक प्राधिकरण द्वारा मान्यता प्राप्त हुई। भांग से निर्मित उत्पादों का परिचय कराने व मार्किट बनाने में परिवर्धन डांगी की कंपनी ’न्योली इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड’ का बड़ा योगदान रहा। भांग निर्मित उत्पादों को मान्यता मिलते ही कई अन्य कम्पनियां उक्त उत्पादों की खुलने लगी, जिसका श्रेय उत्तराखंड के इस युवा को दिया जा सकता है।

शुरुआती दिनों में परिवर्धन डांगी द्वारा उत्तराखंड रानीखेत के नजदीकी गांवों रिउनी, द्व्वारसौं, खाती, बबुरखोला, गोगिना, तुस्यारी, शीतलाखेत, एडीघो, दूनागिरी। बागेश्वर बैल्ट के गांवों कपकोट, झूनी, खलझूनी, लोहारखेत, बोगीना, मुनस्यारी गढ़वाल अंचल के ग्वालदम व देवाल के भीतरी गांवों की बेल्ट में जाकर भांग की खेती व उसके उत्पादों पर गहन अद्धययन मनन किया तथा उक्त गांवों के घरों से पच्चीस रुपया किलो भांग बीज क्रय कर इकठ्ठा किया। साथ ही भांग पौंधे के रेशों (छाल) की भी खरीदारी करी। भांग बीज जिसकी उक्त गांवों में कोई कीमत नहीं थी, बाजार भाव नहीं था। बाद के वर्षो में भांग बीज का महत्व जान ग्रामीणों द्वारा उक्त बीज संग्रहण पर रुचि लेनी आरंभ की गई। जिसका बाजार भाव चंद वर्षो में ही 150 रुपया किलो गांव से खरीद पर तथा हल्द्वानी में बाजार भाव चार सौ व प्रगति मैदान मेला दिल्ली में पांच सौ, छह सौ रुपया किलो के भाव बिकता हुआ देखा गया। भांग दाने इत्यादि का भाव गेहूं, धान व दालों के भावों को पछाड़ कई गुना बढ़ा हुआ देखा जा सकता है।

परिवर्धन डांगी के मुताबिक उनके द्वारा भांग दाने से निर्मित उत्पाद देश के बाजार में नए उत्पाद हैं। लोगों की धारणा बनी हुई है भांग गलत नशा है, जो धारणा गलत है। भांग बीजों में कोई नशा नहीं होता है। उनकी कंपनी के भविष्य के भांग दाने से निर्मित उत्पादों में दूध, पनीर, चाकलेट, ब्रेड, केक के साथ-साथ शैम्पू, क्रीम, सीरम, माइस्चराइजर, उड क्रीम, हैंड क्रीम, लोशंस, फेस वाश इत्यादि इत्यादि मुख्य होंगे जो देश में पहली बार जनमानस के मध्य परिचित होंगे।

भांग उत्तराखंड पर्वतीय अंचल की पारंपरिक धरोहर रही है। वेदों में इस पौंधे के तत्वों का विभिन्न प्रकार के कार्यो में उपयोग किए जाने का वर्णन है। पारंपरिक खानपान व औषध में यह बहुत उपयोगी रहा है। सब्जी, दूध, नमक, चटनी इत्यादि में लगभग उपयोग में लाया जाता रहा है। भांग की अनेकों प्रजातियां हैं, जिन्हें उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में विभिन्न नामों से जाना जाता है। बण भांग, जंगली भांग, गनरा भांग। अंग्रेजी में इन प्रजातियों को रुडालिस, इंडिका व सतीबा नाम से जाना जाता है।

भांग पौंधे की अधिकतम ऊचाई बारह फुट से अठारह फुट तक आंकी जा सकती है। इंडिका प्रजाति का भांग पौंधा चौड़ी पत्ती वाला होता है जिसमें नशा ज्यादा होता है, मेडीकल लाइन में दवाईयां बनाने के लिए ज्यादा उपयुक्त है। रुडालिस प्रजाति मध्यम ऊचाई वाला पौंधा है। भांग पौंधे की अलग-अलग प्रजातियों का अलग-अलग महत्व व गुण हैं। उत्तराखंड में सतीबा की प्रजाति ज्यादा उत्पादित होती है। उक्त प्रजातियों में नर पौंधा कम रेशेदार होता है जिसे भंगेला नाम से जाना जाता है। बीज और नशीले पदार्थ का उत्पादन मादा पौंधे से ही होता है। छोटी पत्ती वाले भांग पौंधे की प्रजाति में रेशा ज्यादा होता है जो कपड़ा बनाने के लिए बहुत उपयुक्त है।

समग्र रूप में भांग का इस्तेमाल खानपान, स्वास्थ, दवाइयों और हल्के नशे के लिए किया जाता रहा है। औषधीय प्रयोजन के लिए भांग को ज्यादा महत्व दिया जाता है। कैंसर जैसी कई बीमारियों में यह इस्तेमाल योग्य है। भांग का सबसे बड़ा उपयोग कुपोषण को दूर करने के लिए किया जाता है। भांग के तेल में हाई प्रोटीन के साथ-साथ ओमेगा 3 व ओमेगा 6 पाया जाता है। भांग पौंधे की अहमियत को पहचान ईस्ट इंडिया कंपनी ने भांग उत्पादों के व्यवसाय को कुमांऊ में शासन स्थापित होने से पहले ही अपने हाथों में ले लिया था।

उत्तराखंड की खाली पड़ी भूमि में यह स्वभाविक रूप से उग जाता है। नम जगह भांग पौंधों के लिए अनुकूल होती है। मिट्टी पर इसकी ग्रोथ डिपेन्ड करती है। वातावरण के हिसाब से कुदरतन भांग बीज के गुण बदल जाते हैं। इसकी दांती प्रजाति में बड़ा भांग दाना प्राप्त होता है जिसे काशत्कार बचा कर बीज के लिए इस्तेमाल करते हैं। खांटी प्रजाति जंगली प्रजाति है, जिसमें छोटा भांग दाना प्राप्त होता है। भांग दाने का महत्व जान काशत्कार अब प्रतिवर्ष भांग पौंधे की उत्तम प्रजाति की पैदावार की ओर अपने कदम बढ़ाता नजर आता है।

उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल की कपकोट व पिंडारी बैल्ट में भांग का मोटा दाना मिलता है। यहां के भांग दाने से निकाले गए तेल के रंग में भी अंतर होता है। दसोली, गंगोली और दानपुर में निवासरत कुछ जातियां भांग रेशे से कंबल और कुथले का निर्माण करती हैं। आमतौर पर भांग के रेशों से गाजी, बोरा, कोथला और पुलों के लिए रस्सी का निर्माण भी किया जाता है। अंग्रेज अपने जहाजों की रस्सी व कपड़ा भांग रेसे से बनवा कर अपने देश ले जाते थे। भांग से बनाए कपड़ों का महत्व उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल की लोक कलाओं में भी बहुतायत में देखने को मिलता रहा है। गढ़वाल अंचल के चांदपुर क्षेत्र को भांग पौंधों का घर भी कहा जाता है।

अंग्रेजों द्वारा सोचा गया था भांग नशा देता है। उन्होंने भांग पौंधे के उत्पादों को नशे से जोड़ मादक पदार्थ में डालकर प्रतिबंध लगाने का काम किया था। बाद के वर्षो में दवाब बना कर वैश्विक फलक पर भांग पर प्रतिबंध लगा। भारत में भांग की खेती करने के लिए काश्तकारों को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एन.डी.पी.एस) एक्ट, 1985 के तहत सरकार से लाइसेंस लेना होता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक एकड़ में भांग की खेतों से लाखों रुपयों की आमदनी होती है। भारत में इसकी पत्तियों व बीजों के न्यूट्रिशनल इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।

भांग पौंधों के फल और फूल वाला हिस्सा अवैध घोषित किया गया है। इसमें दो से दस फीसद तक की मात्रा में टीएचसी पाई जा सकती है। भांग की शाखा और पत्तों पर जमे राल को चरस कहते हैं। गांजा और चरस भांग पौंधें के इसी हिस्से से तैयार की जाती है, जिसे बार-बार लेने पर लत सी लग जाती है। साइंस की दुनिया में इसे ही लेकर सबसे ज्यादा शोध होते हैं। इस पौंधें के फल और फूल वाले हिस्से में कैमिकल कम्पाउंड होने के कारण इसकी खेती को व इससे जुड़े उत्पादों को वैश्विक फलक पर प्रतिबंधित किया गया था।

बाद के वर्षो में अमेरिका सहित विश्व की बडी अर्थ व्यवस्थाओं द्वारा भांग की खेती को लीगल घोषित कर पाबंदी हटा ली गई। भारत में भी वैकल्पिक फसल के रूप में कानूनी अनुमति की मांग की जा रही है। इस पौंधे पर हुए गहन शोध कार्यो के बाद भारत में इस पौंधें की पैदावार पर बने नियमों में ढील दी गई। भारत में तीन बार 1999, 2001 और 2014 में इससे जुड़े नियमों में तीन बदलाव किए गए। उक्त बदलावों के बाद भी भारत में इसके कई उत्पादों पर कड़े कानून हैं। औद्योगिक और गैर मादक उपयोग के लिए भांग की खेती शुरू करने के लिए सभी पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है।

भांग का बीज यूरोप व अमेरिकी देशों द्वारा उत्तराखंड से अपने देश ले जाकर तकनीक व शोध कार्यो के बल भांग पौंधों व इसके दानों से हजारों उत्पाद बना कर करोड़ो-अरबों का कारोबार कर आर्थिक उन्नति की गई है। विश्व के अनेकों देशों ने उक्त बीजों को अपना उत्पाद बनाकर पेटेंट बनाया है। उन देशों की व्यवसायिक चाहत रही है भारतीय काश्तकार उनके बीजों को खरीदे। भांग बीज अलग-अलग प्रकार का होता है। अमेरिका सहित अन्य अनेकों देश बंद कमरों व आर्टिफिसियल लाइट में भांग के पौंधों की पैदावार कर रहे हैं। इसके तने और जड़ों का इस्तेमाल इंडस्ट्रीयल यूज में कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं।

हमारे देश के नीति निर्माताओं द्वारा भी भांग पौंधों द्वारा निर्मित उत्पादों पर नीति नियोजन कर देर सवेर कदम जरूर बढ़ाया है। कुछ नियमों को काश्तकारों व उत्पाद निर्माताओं के हित में उदार भी बनाया गया है। लेकिन उत्पादित उत्पादों पर ठोस नीति बननी अभी बाकी है। उत्तराखंड सरकार द्वारा भी वर्ष 2016 में इस पौधे से बने उत्पादों व उत्पादन कर्ताओं को प्रोत्साहन देने हेतु नीति नियोजन किया गया था। भविष्य में जल्दी ही हित धारकों व देश-प्रदेश की अर्थ व्यवस्था को बढ़ाने के लिए नई पालिसी आने की उम्मीद जताई जा रही है।

]]>
https://hillmail.in/for-the-first-time-products-invented-in-uttarakhand-dominate-the-indian-market/feed/ 0 47593
जमरानी बांध परियोजना को मिली केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी, अजय भट्ट ने पीएम और सीएम का आभार जताया https://hillmail.in/jamrani-dam-project-gets-union-cabinet-approval-ajay-bhatt-thanks-pm-and-cm/ https://hillmail.in/jamrani-dam-project-gets-union-cabinet-approval-ajay-bhatt-thanks-pm-and-cm/#respond Wed, 25 Oct 2023 16:47:22 +0000 https://hillmail.in/?p=46790 केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट ने सांसद बनने के बाद ही इस परियोजना की न सिर्फ सक्रिय रूप से पैरवी करना शुरू किया बल्कि लोकसभा सदन में भी जमरानी बांध के मुद्दे को उठाया। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद अजय भट्ट ने इसमें और तेजी दिखाई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित कई विभागों के मंत्रियों और सचिवों से लगातार प्रत्यक्ष मुलाकात कर और पत्राचार कर जमरानी बांध परियोजना की हर संभव पैरवी की।

केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट ने अवगत कराया है कि नैनीताल जिले के काठगोदाम से 10 किलोमीटर अपस्ट्रीम में गौला नदी पर जमरानी बांध 130.6 मीटर की ऊंचाई पर निर्माण प्रस्तावित है। परियोजना से डेढ़ लाख हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र सिंचाई सुविधा से लाभान्वित होना है साथ ही हल्द्वानी शहर को वार्षिक 42 एमसीएम पेयजल उपलब्ध कराए जाने तथा 63 मिलियन यूनिट जल विद्युत उत्पादन का प्रावधान है।

अजय भट्ट ने पत्र बताया कि उनके सांसद बनते ही उन्होंने इसमें पैरवी करनी शुरू की थी, फरवरी 2019 में जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग भारत सरकार की सलाहकार समिति द्वारा परियोजना का 2584.10 करोड़ का अनुमोदन किया गया था। फरवरी 2022 में भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत परिचालित पुनरीक्षित कर जल शक्ति मंत्रालय के अध्यक्षता में निवेश स्वीकृत हेतु आयोजित बैठक में जमरानी बांध परियोजना का निवेश स्वीकृति हेतु अनुमोदन प्रदान किया गया है। इसके अलावा इस परियोजना से प्रभावितों के पुनर्वास के लिए पुनः व्यवस्थापन अधिनियम 2013 की व्यवस्था के अनुसार होगा इसके लिए पुनर्वास नीति को राज्य कैबिनेट ने पहले ही मंजूरी भी दे दी है

अजय भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रयास से उन्होंने 90-10 के अनुपात में सबपरियोजना बनने मे सहर्ष स्वीकृति दी गयी।

अजय भट्ट ने केंद्रीय मंत्री ने जमरानी बांध परियोजना पर स्वीकृत कार्य प्रारंभ किए जाने हेतु प्रस्तावित परियोजना को पीएमकेएसवाई के अंतर्गत स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में वित्तीय स्वीकृति प्रदान किए जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मुलाकात की ताकि इस परियोजना के शीघ्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने से राज्य को इस पर योजना का लाभ समय पर प्राप्त हो सके।

जमरानी बांध परियोजना पीएमकेएसवाई के अंतर्गत 90 केंद्र अंश और 10 राज्य अंश के अनुसार वित्त पोषण हेतु पात्र है। वही अपने हल्द्वानी दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने संबोधन में जमरानी बांध परियोजना के शीघ्र निर्माण हेतु आश्वासन दिया गया था। इसके पश्चात लगातार बैठकों के बाद आखिरकार जमरानी बहुउद्देशीय परियोजना को केंद्रीय कैबिनेट से हरी झंडी मिल गई है। अजय भट्ट ने जमरानी बांध परियोजना को केंद्रीय कैबिनेट से हरी झंडी मिलने पर देश की यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण व केंद्रीय जल शक्ति मंत्री का आभार जाताया है।

]]>
https://hillmail.in/jamrani-dam-project-gets-union-cabinet-approval-ajay-bhatt-thanks-pm-and-cm/feed/ 0 46790