केदारनाथ यात्रा के दौरान गौरीकुंड से केदारनाथ तक यात्रियों के आने जाने और सामान को लाने ले जाने के लिए घोड़े खच्चरों का प्रयोग किया जाता रहा है। इनसे यहां के लोगों की आमदनी तो होती थी लेकिन जब ये घोडे़ खच्चर इधर उधर जाते थे तो इन रास्तों में गई जगहों पर उनकी लीद बड़ी समस्या बन जाती थी और कई बार तो इस लीद को इधर उधर फेंक दिया जाता था। जब बारिश होती थी तो वह बारिश के पानी में बहकर नदी में जा मिलता था इससे नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है। लेकिन अब घोड़े-खच्चरों की लीद रोजगार का बड़ा जरिया बनने जा रहा है। लीद से ईंट, गमला, कोयले सहित अन्य उत्पादन का कार्य शुरू होने जा रहा है।
केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव और पैदल मार्ग पर घोड़ा-खच्चर की लीद से पैदल मार्ग पर गंदगी के साथ यात्रियों के फिसलने का खतरा रहता ही है। मंदाकिनी नदी का जल भी प्रदूषित होता है। लेकिन, इस केदारनाथ पुनर्निर्माण में बीते नौ साल से अहम भूमिका निभाने वाले सूबेदार मनोज सेमवाल लीद को एकत्र कर उससे ईंट, कोयला व गमले बनाने की तैयारी में हैं। इससे आने वाले समय में रोजगार के अवसर विकसित होंगे। बताया जा रहा है कि अब तक बीते 28 दिन में 1,200 टन लीद एकत्र की जा चुकी है। इसके लिए उन्होंने वेस्ट मैनेजमेंट टीम गठित की है, जिससे 40 श्रमिक जुड़े हुए हैं। मनोज सेमवाल यह कार्य कृषि विज्ञान केंद्र, जाखधार (रुद्रप्रयाग) के निर्देशन में कर रहे हैं।
रूद्रप्रयाग के डीएम मयूर दीक्षित ने कहा है कि वेस्ट मैनेजमेंट टीम सेवानिवृत सूबेदार मनोज सेमवाल के नेतृत्व में केदारनाथ यात्रा में लगे घोड़ा-खच्चर की लीद एकत्रित करने में जुटी है। इस कार्य में प्रशासन की ओर से टीम को पूरा सहयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सुलभ इंटरनेशनल की ओर से भी टीम को आर्थिक सहयोग किया जायेगा।
जाखधार कृषि विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर डॉ संजय सचान ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर टेक्निकल अध्ययन किया जा रहा है। साथ ही वेस्ट मैनेजमेंट टीम को नई तकनीक की जानकारी भी दी जा रही है। लीद को पहले कंपोस्ट करने की योजना है। इसके बाद इससे ईट, कोयला व गमले बनाने का कार्य किया जायेगा और आने वाले कुछ दिनों में यह कार्य आरम्भ किया जायेगा।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से जुड़े रहे सूबेदार मनोज सेमवाल का कहना है कि यात्राकाल में केदारनाथ पैदल मार्ग सहित सोनप्रयाग व गौरीकुंड स्थित घोड़ा पड़ाव में लगभग आठ से दस हजार घोड़ा-खच्चर रहते हैं। एक घोड़ा-खच्चर एक दिन आठ से दस में किलो लीद करता है। अभी तक 1200 टन लीद एकत्रित कर दी गई है।
उन्होंने बताया कि उनकी एक टीम सोनप्रयाग और एक टीम गौरीकुंड में काम कर रही है। इस लीद को आबादी से दूर डंप किया जा रहा है। साथ ही घोड़ा पड़ाव और केदारनाथ पैदल मार्ग को साफ सुथरा रखने के लिए घोड़ा खच्चर स्वामियों को भी जागरूक किया जा रहा है। उनसे अनुरोध किया जा रहा है कि लीद को एक स्थान पर एकत्रित करें और इस कार्य में काफी सफलता भी मिल रही है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में इससे ईंट, गमले और कोयला बनाने की योजना है और आने वाले समय में यह योजना यहां के लोगों के लिए रोजगार का महत्वपूर्ण जरिया भी बनेगी।
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