पॉलीहाउस में निमेटोडस से कैसे करें रोकथाम

पॉलीहाउस में निमेटोडस से कैसे करें रोकथाम

उत्तराखंड में सरकार द्वारा पॉलीहाउस योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है। पॉलीहाउस अथवा ग्रीनहाउस एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से वाहरी वातावरण के प्रतिकूल होने पर भी इसके अंदर फसलों / बेमौसमी नर्सरी, सब्जी एवं फूलों को आसानी से उगाया जा सकता है। यह तकनीक प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में एक असरकारक सिद्ध हुई है। सामान्य खेती की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र फल में उत्पादकता में 3-4 गुना वृद्धि होती है

डॉ. राजेंद्र कुकसाल

कीट व रोगों की तुलना में आमतौर पर कृषकों का सूत्रकृमि निमेटोड पर कम ध्यान जाता है जबकि निमेटोड खुद तो फसलों को नुक्सान पहुंचाते ही हैं साथ ही निमेटोड से संक्रमित फसलों में कई तरह की फफूद व वैक्टीरिया संक्रमण की सम्भावनाये बढ़ जाती है। निमेटोड की पहचान न होने के कारण कई बार किसान निमेटोड संक्रमण को कीट, रोग (फफूंद, बैक्टीरिया एवं बीषाणु) व पोषक तत्वों की कमी समझ कर कई प्रकार की रसायनिक दवाओं का छिडकाव कर रोकथाम करने का प्रयास करते है, जिससे उनका श्रम, पैसा व समय बर्बाद होता है एवं सफलता भी नही मिलती अतः इन सूत्र कृमि की पहचान व जानकारी रखना जरूरी है।

उत्तराखंड में सरकार द्वारा पॉलीहाउस योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है। पॉलीहाउस अथवा ग्रीनहाउस एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से वाहरी वातावरण के प्रतिकूल होने पर भी इसके अंदर फसलों / बेमौसमी नर्सरी, सब्जी एवं फूलों को आसानी से उगाया जा सकता है। यह तकनीक प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में एक असरकारक सिद्ध हुई है। सामान्य खेती की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र फल में उत्पादकता में 3-4 गुना वृद्धि होती है। घटती जोत और अधिक मुनाफे के कारण उत्तराखंड के किसान भी संरक्षित खेती का रुख कर रहे है।

वैसे तो निमेटोड अधिकतर फलपौध, सब्जियां, फूलों व कृषि फसलों को नुक्सान पहुंचाते हैं किन्तु पॉलीहाउस में उच्च तापमान, आर्द्रता, उर्वरकों और रसायनों का प्रयोग कर अनुकूल स्थितियों में फसल उत्पादन किया जाता है यह वातावरण सूत्रकृमि (निमेटोड) के लिए भी अनुकूल होता है इसलिए संरक्षित खेती में निमेटोड का प्रकोप एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। पॉलीहाउस में लगातार तीन चार साल उच्च मूल्य सब्जियों जैसे टमाटर, सिमला मिर्च व खीरा का उत्पादन लेने से निमेटोड की समस्या बढ़ रही है जिससे कृषकों को बड़ी हानि उठानी पड़ रही है।

निमेटोड धागे जैसे राउंडवर्म हैं जो मिट्टी में ताजे और खारे पानी सहित विभिन्न प्रकार के वातावरण में रहते हैं। पौधे के भागों को खाने वाले नेमेटोड को पादप परजीवी नेमेटोड (पीपीएन) कहा जाता है और ये मिट्टी में सर्वव्यापी होते हैं। नेमेटोड के जीवन चक्र में अंडे, किशोर और वयस्क शामिल होते हैं, 90 प्रतिशत निमेटोड मिट्टी की सतह से 15 से मी में ही रहते हैं। निमेटोड से प्रभावित पौधों की जड़े सीधी न होकर आपस मे गुच्छा बना लेती है व जड़ों पर गांठें बनकर फूल जाती हैं जिसे पौधों को उखाड़कर ही देखा जा सकता है।

अधिकांश नेमाटोड हानिरहित होते हैं, लेकिन कुछ नेमेटोड की प्रजातियां पौधों की बाहरी सतहों पर हमला करती हैं, पौधे के ऊतकों में घुस जाती हैं और जड़, तना, पत्ते और यहां तक कि फूलों को भी नुकसान पहुंचाती हैं। अन्य नेमाटोड अपने जीवन के कुछ भाग के लिए पौधों के अंदर रहते हैं, जिससे अंदर से बाहर तक नुकसान होता है। नेमाटोड से घायल पौधे बैक्टीरिया और फंगल क्षति के प्रति भी अधिक संवेदनशील होते हैं।

सब्जियों में सूत्रकृमियों से हानि

सूत्रकृमि प्राथमिक और द्वितीयक जड़ों को प्रभावित करके फसल को नुकसान पहुंचाते है। संक्रमित जड़ें भिन्न आकार की गांठे बनाती हैं, इसकी एक निश्चित संख्या से अधिक उपस्थिति पौधों में पानी और अन्य पोषक तत्वों को प्राप्त करने में अवरोध उत्पन्न करती है। जिससे फसल की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव के साथ उत्पादन भी कम हो जाता हैं। मिटटी में पोषक तत्व तथा पानी की उपलब्धता होते हुए भी जडों द्वारा पौधे इन्हें पर्याप्त मात्रा में ग्रहण नहीं कर पाते हैं। जडें फूली हुई प्रतीत होती हैं और पौधे कमजोर, बौने, पीले हो जाते हैं। इस रोग से ग्रसित पौधों में उकठा फफूंद रोग शीघ्र लग जाता हैं। सूत्रकृमियों से हानि मिटटी में उपस्थित इनकी संख्या, बोई जाने वाली इनकी पोषक फसल इत्यादि पर निर्भर करती है। सामान्य अवस्था मे 20 से 40 प्रतिशत तक नुकसान होता है तथा रोग की अधिकता होने पर 70 से 80 प्रतिशत तक भी हानि हो सकती है।

पॉलीहाउस में सूत्रकृमि से प्रभावित फसलें

पॉलीहाउस में टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च, बैंगन, भिन्डी खीरा, गुलाब, जरबेरा, लिलियम और स्ट्राबेरी फसले सूत्रकृमि से अधिक प्रभावित हैं।

सूत्रकृमि प्रकोप के लक्षण

भूमि में नमी के बावजूद भी दोपहर धूप में पौधे मुरझाये हुए दिखाई देते है साम होते ही पौधे फिर से स्वस्थ दिखाई देते हैं।
सूत्रकृमि ग्रस्त पौधों में पोषक तत्वों की कमी जैसे लक्षण दिखाई देते है। पौधे बौने कमजोर रह जाते है, पत्ते पीले पड़ जाते है साथ ही पैदावार में कमी आ जाती है।

मिट्टी के निचे सूत्रकृमि की उपस्थिति के लक्षण तब तक नहीं दिखाई देते जब तक संक्रमित पौधों कि जड़ें पहचान के लिए उखाड़ कर ध्यान से नहीं देखा जाता प्रभावित पौधों की जड़ें सीधी न होकर आपस में गुच्छा बना लेती है, जड़ों पर गांठें बनकर फूल जाती हैं। इन गाठों के अधिक बनने से जड़ों से पानी और पोषक तत्वों का संचालन करने की क्षमता बाधित हो जाती है। निमेटोड की गाठें बहुत कठोर होती है इनका कोई निश्चित आकार नहीं होता तथा उन्हें जड़ों से अलग नहीं किया सकता है। दलहनी फसलों में भी नाइट्रोजन स्थिर करने वाली राइजोबियम बैक्टीरिया की गाठें पाई जाती है जो मृदा व पौधों के लिए लाभकारी होती है ये गांठें नरम होती है इन्हें जड़ों से आसानी से अलग किया जा सकता है साथ ही इनका आकार निश्चित होता है।

सूत्रकृमि कि संख्या बढ़ने के मुख्य कारण

मिटटी, फसल अवशेष और रोपण सामग्री के माध्यम से सूत्रकृमि का प्रकोप तेजी से फैलना। बार-बार एक ही फसल लेना, फसल चक्र का ना अपनाना। सूत्रकृमि कि समस्या वहां अधिक पाई जाती है जहां का वातावरण थोडा गर्म रहता है।

रोकथाम

पॉलीहाउस एवं ग्रीनहाउस बनाने से पहले उस स्थान कि मिटटी कि सूत्रकृमि की उपस्थिति के लिए जांच अवश्य करवाएं।
पॉलीहाउस एवं ग्रीन हाउस को खरपतवार एवं पिछली फसल के अवशेषां से हमेशा मुक्त रखें।

पॉलीहाउस में उपयोग किए जाने वाले कृषि उपकरणों और अन्य उपकरणों को पॉलीहाउस में प्रवेश करने से पहले साफ किया जाना चाहिए क्योंकि पॉलीहाउस में मिट्टी के चिपकने से नेमेटोड आ सकते हैं।

मई-जून के महीनो में पॉलीहाउस को परती/खाली रखें तथा 10-15 दिन के अंतराल पर 2-3 गहरी खुदाई/जुताई करें।
मई जून में जमीन का सोलराइजेसन मृदा सोरीकरण करें इस हेतु भूमि की साफ-सफाई एवं फसल अवशेष हटाकर मिट्टी को पलटकर समतल व भुरभुरा बना लें फिर हल्की सिंचाई कर 200 गेज की पारदर्शी प्लास्टिक से ढक दिया दें, प्लास्टिक के किनारों को मिट्टी से ठीक तरह से दबा दें जिससे बाहर की हवा अंदर प्रवेश न कर पाय इसे एक महीने तक के लिए छोड़ दें। इस प्रकिया में प्लास्टिक से ढकी जगह के अंदर का तापमान बढ़ जाता है। इस तरह भूमि में बिना किसी रसायन उपयोग किए उपचारित कर भूमि जनित कीट, निमेटोड रोगों और खरपतवारों से छुटकारा मिल जाता है।

बीज वुआई/पौध रोपण से पूर्व पौली हाउस की भूमि का रासायनिक उपचार कर शोधन करें। इस कार्य हेतु 1 लीटर फार्मेलीन का 100 लीटर पानी में घोल बना लें तथा 5 लीटर प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि को तर कर लें। उपचारित स्थान को पालीथीन शीट से 7-8 दिनों के लिए ढक लें जिससे फार्मलीन गैस जमीन में चली जाय तथा जमीन में उपस्थित कीट व फफूंद को नष्ट कर दे। इसके बाद पौलीथीन सीट हटाकर गहरी खुदाई कर बीज / पौध लगायें। एक फसल लेने के बाद पूरे पाली हाउस की सफाई ठीक प्रकार से करें व भूमि को उपचारित करें।

प्रत्येक 3 – 4 वर्ष बाद पौली हाउस की मिट्टी को बदलना या निर्जमीकृत Sterilization करना आवश्यक होता है जिससे रोगजनक मिट्टी से समाप्त हो जाएं।

पॉलीहाउस में उपयोग की जाने वाली मिट्टी उन खेतों से ली जानी चाहिए जिनमें कम से कम तीन चार सालों से गेहूं, जौ, सरसों, क्लस्टर बीन, ज्वार, बाजरा प्याज, लहसुन की कास्त की जाती रही हो।

नीम की खली (200 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) तथा ट्राइकोडर्मा विरिडी (50 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) फसल की रोपाई से एक सप्ताह पहले मिटटी के ऊपरी भाग में अच्छी तरह मिलाकर हल्का पानी दे।

मिट्टी रहित माध्यम या नेमेटोड मुक्त मिट्टी में तैयार पौधे ही पॉलीहाउस में लगाने चाहिए, पॉलीहाउस के बाहर उगाई गई पौध नेमेटोड इनोकुलम का स्रोत हो सकती है।

रोपाई के एक महीने बाद दोबारा नीम की खल 50 ग्राम प्रति पौधे की दर से हर पौधे के चारो तरफ मिटटी में अच्छी तरह मिलाये।

नीम की खली के स्थान पर बकायन जिसका वानस्पतिक नाम Melia azedarach है के बीज का प्रयोग कर सकते हैं जो नेमेटोड की रोकथाम में नीम से अधिक कारगर पाया गया है। पर्वतीय क्षेत्रों में बकायन के बीज अक्टूबर नवंबर माह में पक कर तैयार हो जाते हैं इन बीजों को इकट्ठा कर ओखल में कूट कर महीन कर लें फिर खेत में नीम की खली की तरह प्रयोग में लायें। बीजों को खूब उबाल कर उसके रस व बीजों के अवशेष का भी प्रयोग कर सकते हैं।

लोबिया (रूट-नॉट निमेटोड के लिए जाल फसल) को मुख्य फसल के करीब उगाना और बुआई के 45 दिन बाद पौधों को पॉलीहाउस से बाहर निकालना।

कुछ पौधे नेमाटोड के लिए हानिकारक माने जाने वाले पदार्थों का उत्पादन करते हैं, शतावरी, पैंगोला घास, नीम, अरंडी की फलियां और गेंदा अपनी जड़ों में ऐसे पदार्थ पैदा करते हैं जो कम से कम एक या अधिक प्रकार के नेमाटोड के लिए जहरीले होते हैं। मुख्य फसल के साथ गेंदें के पौधों के रोपण से निमेटोड का प्रभाव कम पाया गया है।

सूत्रकृमियों के संक्रमण का सबसे सरल सस्ता व प्रभावकारी उपाय है सब्जियों की सूत्रकृमि रोधी किस्मौं का चयन। सब्जियों की कुछ सूत्रकृमि प्रति रोधी/मध्यम प्रति रोधी किस्में –

टमाटर – हिमशिखर, पूसा- 102, रोमा-2, अर्का वरदान, एस.एल-120, हिसार ललित, पी-120, पीएनआर-7, एनटी-3, 12, बीएनएफ-8 और रोनिता आदि।
बैंगन – ब्लैक ब्यूटी, पूसा लांग परपल, विजय हाईब्रिड, ब्लैकराउन्ड, जोनपुरी लम्बा और केएस-224।
भिण्डी – वर्षा, विजया, विशाल और ए.एन. के-41।
मिर्च – एन पी-46 ए, पूसा ज्वाला, मोहनी आदि किस्में हैं।

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