रिपोर्ट : जोशीमठ में मंडरा रहा है खतरा, जोशीमठ क्षेत्र को नो-न्यू कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाए

रिपोर्ट : जोशीमठ में मंडरा रहा है खतरा, जोशीमठ क्षेत्र को नो-न्यू कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाए

हालिया अध्ययन में संस्थान के भू-वैज्ञानिकों ने पाया कि जोशीमठ में कुल 81 दरारों में से 42 दरारें नई हैं जोकि दो जनवरी 2023 से पूर्व की हैं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दरारों की स्थिति अब स्थिर है। 42 नई दरारों में से अधिकांश सुनील गांव, मनोहर बाग, सिंहधार और मारवाड़ी क्षेत्र में हैं।

जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव को लेकर शोध संस्थानों ने रिपोर्ट जारी की है इन संस्थानों द्वारा भू-धंसाव के जो भी बिंदु थे उनको सार्वजनिक कर दिया गया है। दरअसल 20 सितम्बर को हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इन संस्थानों को कहा था कि रिपोर्ट को सार्वजनिक करें। अब इन रिपोर्ट को पब्लिक के लिए उत्तराखंड डिजास्टर मैंनेजमैंट आथोरिटी की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है। इन रिपोर्ट को पढ़कर यह कहा जा सकता है कि जोशीमठ में भू-धंसाव के क्या कारण थे। इन रिपोर्ट को इकट्ठा करके एनडीएमए ने सैकड़ों पेज की एक रिपोर्ट बनाई है और वह रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी गई है। इस रिपोर्ट में कई बातें कही गई हैं जैसे कि यहां पर कंस्टक्शन नहीं करने की और यहां पर जो सीवेज हैं उन पर भी इस रिपोर्ट में बात कही गई है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जोशीमठ क्षेत्र को नो-न्यू कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाना चाहिए। पोस्ट डिजास्टर नीड असेसमेंट (पीडीएनए) ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, जोशीमठ की जनसंख्या 16,709 थी, जिसका घनत्व 1,454 प्रति वर्ग किमी था। जिला प्रशासन के अनुसार, इस संवेदनशील शहर की अनुमानित आबादी अब 25 से 26 हजार के बीच है। जोशीमठ में भू-धंसाव के बाद भवनों की स्थितियों का आकलन करने की जिम्मेदारी केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) को सौंपी गई थी।

सीबीआरआई ने जोशीमठ के नौ प्रशासनिक क्षेत्रों में फैले 2,364 भवनों का व्यापक भौतिक क्षति सर्वेक्षण किया। इसमें निर्माण की शैली के साथ विभिन्न विशेषताओं, मंजिलों की संख्या जैसे मापदंडों पर सांख्यिकीय विश्लेषण का उपयोग कर इमारतों की संवेदनशीलता का आकलन किया। अपनी 324 पन्नों की रिपोर्ट में सीबीआरआई ने 20 प्रतिशत घरों को अनुपयोगी, 42 प्रतिशत के और मूल्यांकन की आवश्यकता, 37 प्रतिशत को उपयोग योग्य और एक प्रतिशत को ध्वस्त करने की आवश्यकता बताई है।

Fury governance in drafting Joshimath relief package

सीबीआरआई ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ में अंधाधुंध निर्माण पर सवाल उठाया है तथा हिमालय क्षेत्र के पर्वतीय क्षेत्रों में शहरों के विकास के लिए नगर नियोजन के सिद्धांतों की समीक्षा करने की सिफारिश की। सीबीआरआई ने निष्कर्ष निकाला कि भू-तकनीकी और भू-जलवायु स्थितियों के आधार पर हितधारकों के बीच अच्छी निर्माण टाइपोलॉजी, नियंत्रित निर्माण सामग्री, नियामक तंत्र और जागरूकता जरूरी है। शोध कर रहे भू-वैज्ञानिकों ने पाया है कि जोशीमठ में 99 प्रतिशत भवनों में इंजीनियरिंग नदारद है। इन भवनों का निर्माण बिना मानकों के किया गया है।

868 भवनों में दरारें, 181 असुरक्षित क्षेत्र में

इस रिपोर्ट में जोशीमठ नगर पालिका क्षेत्र में कुल नौ वार्ड प्रभावित हैं। इनमें गांधीनगर वार्ड में 156 भवनों में दरारें हैं। इनके अलावा पालिका मारवाड़ी में 53, लोवर बाजार में 38, सिंघधार में 156, मोहनबाग में 131, अपर बाजार में 40, सुनील में 78, परसारी में 55 और रविग्राम वार्ड में 161 भवनों में दरारें हैं। इस तरह से कुल 868 भवनों में दरारें हैं। इनमें से 181 भवन असुरक्षित क्षेत्र में हैं। ढालदार क्षेत्रों में भवन निर्माण में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। अब तक की स्थिति में ऐसी सावधानी नहीं पाई गई। 31 प्रतिशत भवन 30 डिग्री से अधिक ढाल पर पाए गए हैं।

जोशीमठ में भू-धंसाव के असल कारणों की पड़ताल और समाधान सुझाने के लिए सरकार ने जो जिम्मेदारी विभिन्न भू-वैज्ञानिक संस्थानों को सौंपी थी, उनकी रिपोर्ट अब सार्वजनिक हो गई है। जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआई) की जांच रिपोर्ट देखें तो वैज्ञानिकों ने भू-धंसाव की स्थिति के इतिहास और वर्तमान दोनों ही परिस्थितियों पर विस्तृत अध्ययन किया है।

इस अध्ययन में संस्थान के भू-वैज्ञानिकों ने पाया कि कुल 81 दरारों में से 42 दरारें नई हैं, जोकि दो जनवरी 2023 से पूर्व की हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दरारों की स्थिति अब स्थिर है। एनडीआरआई व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की भांति इस बात का उल्लेख किया है कि जोशीमठ का भूभाग पुरातन भूस्खलन के ढेर पर बसा है। इसमें ढीले मलबे के साथ विशाल बोल्डर भी हैं। ये बोल्डर ढालदार क्षेत्र में ढीले मलबे में धंसे हैं। दूसरी तरफ इसी भूभाग पर समय के साथ शहरीकरण का अनियंत्रित भार भी पड़ा है, जिसके चलते भू-धंसाव की जो प्रवृत्ति कई दशक से गतिमान थी, उसमें आंशिक तेजी आ गई है।

जीएसआई ने भी नकारा टनल का सीधा संबंध

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने भी एनआइएच रुड़की की तरह परियोजना की टनल से भू-धंसाव के सीधे संबंध को नकारा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि टनल से जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्र की दूरी को देखते हुए भी इसको समझना मुश्किल है। क्योंकि, प्रभाव वाला क्षेत्र टनलिंग से अधिक शहर के विस्तार की ओर अधिक ध्यान आकर्षित करता है। टनल के लिए टनल बोरिंग मशीन से खोदाई की गई व इसमें विस्फोट नहीं किया जाता है।

नृसिंह मंदिर परिसर पर हालिया घटना का असर नहीं

जीएसआई के वैज्ञानिकों ने जांच में पाया कि भू-धंसाव कि हालिया घटना का असर नृसिंह मंदिर परिसर में नहीं पाया गया है। इसके नीचे के भूभाग पर एक पुराना निशान जरूर देखने को मिलता है और यह भी स्थिर है। बाहरी क्षेत्र की तरफ सीढ़ियों और दीवारों पर जो दरारें दिखाई देती हैं, वह भी पुरानी हैं। यही कारण है कि मंदिर से सटे क्षेत्रों में लोग रह रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि जोशीमठ भूकंप के अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। यहां सात मैग्नीट्यूड से अधिक क्षमता के भूकंप का खतरा हमेशा बना है। भूकंप जैसी घटनाएं भी कमजोर और अत्यधिक भार वाले भूभाग के लिए खतरनाक साबित होती हैं।

भू-वैज्ञानिकों की संस्तुति

  •  भवन निर्माण की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाए और निगरानी तंत्र विकसित किया जाए।
  • नगर नियोजन के लिहाज से बनाए गए मानकों की समीक्षा पर्वतीय क्षेत्रों के लिए किया जाए।
  • भू-उपयोग तय किया जाए और उसके मुताबिक निर्माण की अनुमति दी जाए।
  • जोशीमठ समेत अन्य क्षेत्रों के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाए जाएं, ताकि राहत कार्यों में मदद मिल सके।
  • संवेदनशील क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम की व्यवस्था की जाए।
  • संबंधित क्षेत्रों के लिए जियो-मोर्फोलाजिकल, जियो-टेक्निकल, सिस्मोलाजिकल व हाइड्रो-जियोलाजिकल मैपिंग की जाए।
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