उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगायक, ‘रुद्रवीणा’ संस्था संस्थापक शिवदत्त पंत द्वारा दस रात्रियों तक मंचित होने वाली रामलीला को मात्र चार घन्टे की अवधि में, करीब तीस कलाकारों के निष्ठापूर्ण सहयोग से रामलीला की विभिन्न प्रचलित शैलियों में मंचित करने का चुनौतीपूर्ण सराहनीय प्रयास 7 अक्टूबर को श्रोताओं से खचाखच भरे आईटीओ स्थित प्यारे लाल सभागार मे किया गया।
सी एम पपनैं
जनमानस आस्था का सबसे बडा सिम्बल रहा, मंचित रामलीला का श्रीगणेश उत्तराखंड के प्रबुद्ध प्रवासीजनों में प्रमुख के सी पांडे, पी सी नैनवाल, गिरीश कड़ाकोटी, कुंदन सिंह बिष्ट, टी एस भंडारी, चंद्र मोहन पपनैं, राजेन्द्र चौहान, कल्पना चौहान, रवीन्द्र जोशी, त्रिलोक सन्याल, बलराज नेगी, परमानंद पपनैं, गोपाल उप्रेती, संजय कुमार सेन, महेन्द्र सिलोडी, रमेश कांडपाल, उदय शर्मा, संजय जोशी, नरेन्द्र लड़वाल इत्यादि इत्यादि द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। संस्था पदाधिकारियों द्वारा सम्मानित प्रबुद्धजनों को श्रीराम नाम का दुपट्टा ओढा कर, उत्तराखंडी टोपी पहना कर व स्मृति चिन्ह प्रदान कर स्वागत अभिनंदन किया गया।
मंचित रामलीला का मनोहारी शुभारंभ श्रीगणेश नृत्य व गायन वंदना से किया गया। हिमालय में शिव तपस्या कर रावण, कुंभकरण तथा विभीषण द्वारा वरदान हासिल करना, सन्तान विहीन दशरथ का चिंता व्यक्त कर मुनि आज्ञानुसार यज्ञ हेतु सहमत होना, दशरथ दरबार में विश्वामित्र का आगमन व राम-लक्ष्मण को मुनि की रक्षा हेतु वन भेजना, ताड़िका बध, सीता स्वयंवर मे लक्ष्मण-परशुराम संवाद तथा सीता की भावपूर्ण विदाई, कैकयी-मंथरा व दशरथ-कैकयी संवाद, राम-लक्ष्मण-सीता वन गमन, सूर्पनखा नासिका क्षेदन, पंचवटी में कपटी मृग आगमन, सीता हरण व जटायु मरण, किष्किंधा पर्वत में राम-हनुमान मिलन, रावण-अंगद संवाद, राम-रावण युद्ध तथा राजतिलक तक की रामलीला का मंचन चार घन्टे की चुनोतीपूर्ण अवधि में सफलता पूर्वक रुद्रवीणा संस्था कलाकारों द्वारा सम्पन्न किया गया।
शिवदत्त पंत के निर्देशन, वीरेन्द्र नेगी ’राही’ के संगीत निर्देशन व दीपा पंत तथा पुष्कर शास्त्री द्वारा पर्दे के पीछे से किया गया प्रभावशाली गायन तथा व्यक्त संवाद उत्तराखंड की परंपरागत गीतनाट्य शैली विधा की रामलीला से थोड़ा हट कर प्रस्तुत करना शिवदत्त पंत का रामलीला शैली की इस विधा में एक नया प्रयोग कहा जा सकता है।
मंचित रामलीला मे मानस की चौपाइयों व दोहों के गायन, संवाद व संगीत के साथ-साथ सामूहिक नृत्य जो रिकार्डेड गीत-संगीत पर मंचित किए गए, मंचित रामलीला के मुख्य आकर्षण रहे।
हिमालय पर्वत में शिव दर्शन के दृश्य ने रामलीला को जहां भव्य शुरुआत दी, वही जनक दरबार सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ने आए पहाडी राजा द्वारा कुमांऊनी बोली-भाषा में हास्य पुट लिए संवाद बोल दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया तथा परशुराम-लक्ष्मण संवाद ने श्रोताओं को प्रभावित किया। सीता की विदाई दृश्य में कुछ श्रोताओं को भाव विभोर होता देखा गया। कैकई-मंथरा व कोप भवन में कैकयी-दशरथ संवाद प्रभावशाली व अंगद-रावण संवाद व राम-रावण युद्ध श्रोताओं पर आंशिक प्रभाव डालने तक ही सीमित रहे।
मंचीय व्यवस्था प्रभावशाली थी। पर्दा विलंब से खुलना दर्शकों को खल रहा था। पर्दे पीछे से व्यक्त रामलीला कथासार, संवाद व कही-कही वाद्द्य संगीत में तालमेल का अभाव दृष्टिगत था। पात्रों की वस्त्र सज्जा, आभूषण व श्रृंगार रामकथा के अनुकूल व प्रभावशाली थी। प्रकाश व्यवस्था मंचित दृश्यों के अनुकूल थी।
रामलीला उत्तराखंड के लोगों की आस्था का सबसे बड़ा सम्बल रहा है। जिसको मंचित करना, देखना, सुनना और जीवन में उतारना उत्तराखंडी लोगों की मानसिकता का आदर्श रहा है। दस रात्रियों तक मंचित होने वाली उत्तराखंड की पारंपरिक भीमताली शैली रामलीला की गायन शैली व रागों की महत्ता को देखते हुए, जो प्रत्येक उत्तराखंडी में आत्मसात है, इस परंपरा से थोड़ा हट कर ’रुद्रवीणा’ ग्रुप द्वारा मंचित रामलीला को समग्र रूप में मात्र चार घन्टो में मंचित करने का प्रयोग किसी चुनौती से कम नही कहा जा सकता है, एक स्वागत योग्य व दूरदर्शी कदम माना जा सकता है।
राम-लक्ष्मण व सीता की भूमिका में क्रमशः बसंत नेगी, भुवन शर्मा तथा अंजलि नोटियाल तथा दशरथ महेश उपाध्याय, जनक मोहन सती, परशुराम शिवराज अधिकारी, मंथरा आरती वर्मा, ताड़का व अंगद की भूमिका में ललित मोहन धौलाखंडी, हनुमान राजेंदर बिष्ट, सुर्पनखा बबिता भंडारी, सुमंत भूपाल सिंह बिष्ट तथा विश्वामित्र व जोगिया रावण की भूमिका में महेंद्र लटवाल द्वारा सधे व सशक्त गायन व संवाद तथा अभिनय की यादगार छाप दर्शकों के मध्य छोडी।
रावण दिनेश कांडपाल, कैकई मनीषा बहुगुणा व लक्ष्मण की भूमिका में भुवन शर्मा द्वारा व्यक्त संवाद व प्रभावशाली अभिनय पर श्रोताओं द्वारा बहुत देर तक तालियों की गड़गड़ा कर सराहना की गई। मंचित रामलीला मे गुंजायमान हो रही संगीत की धुनों में हारमोनियम पर शिवदत्त पंत, तबला गौरव पंत, की बोर्ड विरेंद्र नेगी ’राही’, बांसुरी विरेंद्र सैलानी, आप्टोपैड पर अरुण तिवारी द्वारा संगत की गई। मंचित संपूर्ण रामलीला का प्रभावशाली मंच संचालन ज्योतसना पांडे द्वारा रुद्रवीणा महासचिव दिनेश फुलारा, सचिव हरीश बिष्ट व खुशाल रावत के सानिध्य में बखूबी किया गया।
रामकथा को देखना, सुनना और जीवन में उतारना उत्तराखंड के जनमानस की मानसिकता का आदर्श रहा है। इस आदर्श को प्राथमिकता प्रदान कर ’रुद्रवीणा’ संस्थापक व सु-विख्यात लोकगायक शिवदत्त पंत जो एक विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं, दस रात्रियों तक मंचित होने वाली रामलीला को अपनी सूझबूझ से मात्र चार घन्टे की अवधि में मंचित करने लायक बनाया है, जो एक दूरदर्शी सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है।
वर्ष 2018 तथा 2019 में सफलता पूर्वक रामलीला के इस नए प्रयोग को मंचित कर सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाले शिवदत्त पंत विगत दो दशकों से देश के अनेक कस्बों व शहरां में उत्तराखंड के लोकगीतों, नृत्यो व लोकसंगीत को मंचित कर उत्तराखंड की पारंपरिक समृद्ध लोक सांस्कृतिक धरोहर के प्रचार-प्रसार मे एक कुशल ध्वज वाहक के रूप में उभर कर अपनी छवि बना, उत्तराखंड के प्रवासी जनों के मध्य ख्याति अर्जित कर रहे हैं, जो इस सु-विख्यात लोकगायक के प्रशंसकों को सुखद लगता है, हर्ष प्रदान करता नजर आता है।
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