इस कार्यक्रम में आने वाले मेहमानों का पहाड़ी टोपी पहनाकर स्वागत किया गया। इस अवसर पर सांसद अनिल बलूनी को हिल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा कार्यक्रम में हिल मेल के अप्रैल अंक ‘शिखर पर उत्तराखंडी, टाॅप 50 उद्यमी’ का भी विमोचन किया गया। यह अंक में उत्तराखंड के 50 उद्यमियों के बारे में है जो कि देश और विदेश में अपने उत्तराखंड का नाम रौशन कर रहे हैं। इनमें से कई उद्यमियों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया और अपने जीवन के कुछ पलों को बताया कि उन्होंने किस प्रकार से इस मुकाम को हासिल किया।
]]>शाम 4 बजे उत्तराखंड के लिए पर्यवेक्षक बनाए गए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और सह-पर्यवेक्षक विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी की मौजूदगी में विधायक दल की बैठक होगी। इस बैठक में राज्य के पांच लोकसभा और दो राज्यसभा सांसद भी मौजूद रहेंगे। अगर चुनकर आए विधायकों में से बात करें तो डा. धन सिंह रावत सबसे मजबूत दावेदार बने हुए हैं। वहीं सांसदों में से अनिल बलूनी और अजय भट्ट का नाम लगातार लिया जा रहा है। हालांकि पुष्कर सिंह धामी भी लगातार सुर्खियों में है। उनके पक्ष में जनमानस के होने की दलील दी जा रही है। कुमाऊं के कई विधायकों समेत निशंक भी धामी के चेहरे पर अपनी सहमति जता चुके हैं। हालांकि शीर्ष नेतृत्व उनके नाम को लेकर पूरी तरह कनविंस नजर नहीं आ रहा। सीएम का चुनाव करने में हो रही देरी और किसी तरह का संकेत न दिया जाना इसकी तस्दीक करता है।
इससे पहले, रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ-साथ उत्तराखंड के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ मंत्रणा की। हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक से भी इस मुद्दे पर चर्चा की गई। इस बाद देर रात तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय महासचिव संगठन बीएल संतोष के बीच बैठक हुई। इसमें राज्य की कमान किसे सौंपनी है, यह नाम फाइनल हो गया है। पार्टी को क्षेत्रीय, जातीय समीकरण को भी साधना है और अगले पांच साल स्थायी सरकार चलाने में सक्षम चेहरे को भी चुनना है।
नई कैबिनेट को लेकर भी माना जा रहा है कि पार्टी सभी समीकरणों को देखते हुए नाम तय करेगी। पूर्व मंत्रियों में से कुछ को इस बार कैबिनेट से बाहर किया जा सकता है। माना जा रहा है कि गुजरात की तर्ज पर युवा चेहरों को कैबिनेट में जगह दी जाएगी।
]]>अभी तक पुष्कर सिंह धामी और अनिल बलूनी के नाम को लेकर सबसे ज्यादा कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन पूर्व के अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि पीएम नरेंद्र मोदी एक बार फिर सीएम के चेहरे को लेकर चौंका सकते हैं।
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केंद्र की कई योजनाएं उत्तराखंड में चल रही हैं। ऐसे में पीएम मोदी चाहेंगे कि उन्हें सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाए। इसलिए नए सीएम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। इसके अलावा नई कैबिनेट भी पूरी तरह बदली हुई होगी। पूर्व के कई मंत्रियों को इस बार कैबिनेट से बाहर किया जा सकता है। माना जा रहा है कि गुजरात की तर्ज पर युवा चेहरों को कैबिनेट में जगह दी जाएगी।
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राज्य में भाजपा को मिली इस जीत के शिल्पी पीएम मोदी हैं। उत्तराखंड में महिला वोटरों ने विशेष रूप से मोदी पर भरोसा जताया। इसका परिणाम यह रहा कि विधायकों के खिलाफ नाराजगी के बावजूद भाजपा मोदी के नाम पर शानदार ढंग से चुनाव जीतने में सफल रही। ऐसे में राज्य की बागडोर किसे सौंपी जाएगी, कौन सीएम बनेगा, इसका फैसला भी पीएम मोदी ही करेंगे। फिलहाल जीतने वाले विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में होली मना रहे हैं। लेकिन 20 को सभी देहरादून पहुंच जाएंगे।
]]>रेस से क्यों बाहर हुए पुष्कर धामी!
क्या पार्टी पुष्कर सिंह धामी को दोबारा मौका देगी, इस सवाल का जवाब हर कोई खोज रहा है। दरअसल, यह चुनाव पूरी तरह नरेंद्र मोदी के दम पर जीता गया है। भले ही धामी को चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन वह अपने ही मैदान में बुरी तरह हार गए इसलिए पार्टी के लिए उन्हें रिपीट करना मुश्किल है। ऐसी दलीलें दी जा रही हैं कि धामी अपने छह माह में किए गए काम के दम पर भाजपा को सत्ता दिलाने में सफल रहे। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि ये काम खटीमा के मतदाताओं को क्यों नहीं दिखे? 2017 के चुनाव में 2000 के अंतर से जीतने वाले धामी अगर सीएम होते हुए 6579 के अंतर से हार जाते हैं, तो निश्चित तौर पर इसका मतलब है कि खटीमा की जनता ने उन्हें नकार दिया। इसलिए काम की दलील ‘नाकाम’ नजर आती है। एक बड़ा कारण धामी और उनके सहयोगियों पर खनन को लेकर लगे कथित आरोप भी हैं।
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धामी नहीं तो किस पर होगी हामी?
पार्टी के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधायक दल में से किसी को सूबे की कमान सौंपी जाए या फिर एक बार दिल्ली से किसी सांसद की ताजपोशी की जाए। फिलहाल विधायकों में श्रीनगर से जीते डा. धन सिंह रावत, चौबट्टाखाल से जीते सतपाल महाराज का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है। इसके अलावा नैनीताल से सांसद एवं रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट और राज्यसभा सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी भी मजबूत दावेदार बनकर उभरे हैं।
धन सिंह रावत पहले भी सीएम पद की होड़ में रहे हैं, लेकिन इस बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल से कड़ा मुकाबला होने के बावजूद वह जीतकर आए हैं। ऐसे में उनकी दावेदारी की अनदेखी करना बहुत मुश्किल होगा। संघ से भी उनके नाम पर हरी झंडी मिलना आसान होगा। चौबट्टाखाल से विधायक सतपाल महाराज भी एक बड़ा नाम हैं। उनके अनुभव पर भी पार्टी दाव खेल सकती है।
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प्लान B का हिस्सा रहे दो नाम अब फ्रंट में!
दो नाम जो सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, वो हैं अजय भट्ट और अनिल बलूनी। ये दोनों नाम चुनाव से पहले भी पार्टी के प्लान B का हिस्सा थे। पार्टी जनादेश एकतरफा न होने की स्थिति में इन्हीं दो नामों को आगे कर बहुमत जुटाती। फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है। पार्टी के पास स्पष्ट और बड़ा जनादेश है। अजय भट्ट को राज्य का काफी अनुभव है। वह संगठन की पेचीदगियों को भी समझते हैं। ऐसे में उनके लिए सरकार और संगठन में तालमेल बनाना आसान होगा।
अनिल बलूनी निश्चित रूप से एक बड़ा और स्वीकार्य चेहरा नजर आते हैं। राज्य सभा सांसद के तौर पर उन्होंने राज्य के लिए कई केंद्रीय और गैर सरकारी प्रोजेक्टों की राह खोली। एक बड़ा वर्ग है, जो उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देखता है। इसके अलावा वह पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में विधायकों का समर्थन उन्हें मिलना आसान होगा। जहां तक पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात है, तो वह खुद ही यह कह चुके हैं कि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा, इसलिए वह रेस में नहीं हैं। पार्टी को विधायकों में से ही किसी को सीएम बनाना चाहिए। हालांकि कई जानकार यह भी मानते हैं कि चार साल सत्ता चलाने का अनुभव त्रिवेंद्र सिंह के पक्ष में जा सकता है। उन्हें सत्ता से हटाने का भी पार्टी कोई ठोस कारण नहीं बता पाई थी।
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पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को घोषणा पत्र समिति का प्रमुख बनाया गया है। उनके साथ राज्यसभा सांसद नरेश बंसल, कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल, सुबोध उनियाल, बागेश्वर के विधायक चंदन राम दास, काशीपुर के विधायक हरभजन सिंह चीमा, यमकेश्वर की विधायक रीतू खंडूरी और पॉलिसी रिसर्च विभाग के संयोजक डा. ओपी कुलश्रेष्ठ को सह प्रमुख बनाया गया है।
पार्टी की ओर से के विशेष संपर्क समिति भी गठित की गई है। केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को विशेष संपर्क समिति का प्रमुख बनाया गया है। इसमें पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, टिहरी की सांसद माला राज्यलक्ष्मी साह, कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत, सतपाल महाराज, डा. हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य और हरिद्वार के पूर्व मेयर मनोज गर्ग को सह-प्रमुख के तौर पर जगह दी गई है।
पूरी सूची यहां देखें –
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उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है, ‘मित्रों आपके साथ एक सुखद सूचना साझा करना चाहूंगा, आज केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ भेंट में उत्तराखंड के लिए प्रतिष्ठित एफटीआईआई ( फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ) पुणे के परिसर हेतु सैद्धांतिक स्वीकृति प्राप्त हुई। मुझे आशा है इस संस्थान के माध्यम से हमारे राज्य की मेधावी प्रतिभाओं को तराशने और निखरने का अवसर प्राप्त होगा।’
अनिल बलूनी ने 26 अगस्त 2021 को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को एफटीआईआई के आउटरीच सेंटर के लिए पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था कि उत्तराखंड में कला एवं संस्कृति की समृद्ध परंपरा है। देवभूमि कही जाने वाले उत्तराखंड के लोग अपनी लोक कलाओं और परंपराओं को प्यार करते हैं तथा उन्हें सहेज कर रखते हैं। ये लोग रचनात्मकता से भरे हुए हैं। उत्तराखंड ने कई प्रख्यात साहित्यकार, लेखक और अभिनेता दिए हैं। उत्तराखंड की खूबसूरती और समृद्ध संस्कृति यहां के युवाओं को सिनेमा के विभिन्न पहलुओं जैसे अभियन, स्क्रीन राइटिंग, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के लिए आकर्षित करती है। अच्छे संस्थानों और अवसरों की कमी के चलते उत्तराखंड के युवा अपनी कला को निखार नहीं पाते। हाल के वर्षों में उत्तराखंड फिल्म की शूटिंग के लिए फिल्मकारों की पसंदीदा जगह बनकर उभरा है। लेकिन यहां दक्ष स्थानीय टेक्नीशियनों और कलाकारों की कमी है, जो कि फिल्म निर्माता यूनिट के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। इससे स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को भी मदद मिलती है। एक समय में यहां गढ़वाली और कुमाऊंनी फिल्मों की छोटी सी इंडस्ट्री थी लेकिन अनुकूल इकोसिस्टम की कमी के चलते यह काफी सिमट गई है।
उन्होंने पत्र में आगे लिखा है, मुझे इस बात की जानकारी है कि पिछले कुछ समय में एफटीआईआईने उत्तारखंड सरकार और दूसरी एजेंसियों के साथ अभिनय, फिल्म मेकिंग, स्क्रीनप्ले राइटिंग के के कुछ शॉर्ट कोर्स देहरादून, हरिद्वार, आईआईटी रुड़की, हल्द्वानी, नैनीताल और रुद्रप्रयाग में चलाए। इन कोर्सों ने स्थानीय युवाओं के मन में गुणवत्ता वाली फिल्म शिक्षा को करियर विकल्प के रूप में अपनाने की रुचि जगाई। एफटीआईआई देश भर में फिल्म एजुकेशन के लिए सफल कोर्स चला रहा है। इसलिए मेरी आपसे विनती है कि उत्तराखंड में एफटीआईआई का एक ‘आउटरीच सेंटर’ खोलने पर विचार किया जाए। यह उत्तराखंड ही नहीं, इससे लगे दूसरो राज्यों के युवाओं से लिए भी नए रास्ते खोलेगा।
FTII निदेशक ने दिया था फिल्मों को लेकर ईकोसिस्टम बनाने पर जोर
हिल-मेल उत्तराखंड में फिल्मों की संभावना को मुद्दे को लगातार उठाता रहा है। हिल-मेल ने कुछ समय पहले इस मुद्दे पर एफटीआईआई के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला और उत्तराखंड के मूल कलाकारों से चर्चा भी की थी। FTII के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला ने हिल-मेल के ई-रैबार में उत्तराखंड में फिल्म निर्माण के लिए ईकोसिस्टम बनाने पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड में सिनेमा का बीज पैदा करने की जरूरत है। वहां ईको सिस्टम नहीं है। कम से कम 30-40 साल से गढ़वाली, कुमांउनी भाषा में बन रही हैं, 4 साल मैं नेशनल फिल्म अवॉर्ड का डायरेक्टर था दिल्ली में और उन चार वर्षों में छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में तो डेढ़ दो लाख लोगों में बोली जाने वाली भाषा की फिल्म आई और अवॉर्ड ले गई। वहां पर भी फिल्म को लेकर संवेदनशीलता है कि हमें फिल्म दिल्ली भेजनी चाहिए लेकिन 4 वर्षों में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा में कोई फिल्म नहीं आई। उन्होंने कहा कि एक हमें ईको सिस्टम तैयार करना है। उत्तराखंड मूल के फिल्ममेकर बाहर जाकर अच्छी फिल्म बनाते हैं लेकिन प्रदेश में ऐसा माहौल ही नहीं है कि वे कुछ बना पाएं जबकि पलायन जैसे संवेदनशील मसले पर बढ़िया फिल्म बन सकती है और वह एक दिल को छू लेने वाले मेसेज दे सकती है। कैंथोला कहते हैं कि उत्तराखंड में युवाओं के पास हुनर की कमी नहीं है, अगर स्थानीय स्तर पर उन्हें सिनेमा की बारीकियां सिखाई जाएं तो वो बहुत अच्छा काम कर सकते हैं।
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विधानसभा चुनाव की रणनीति बना रही भाजपा ने कुछ दिन पहले धनौल्टी विधानसभा से विधायक प्रीतम सिंह पंवार को पार्टी में शामिल किया है। इसके बाद राजकुमार के भाजपा में आने को उसकी अच्छी तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है।
2007 में सहसपुर (आरक्षित) सीट से भाजपा ने राजकुमार को टिकट दिया। वह चुनाव जीते लेकिन इसके बाद 2012 सहसपुर सीट जनरल कैटेगिरी में आ गई। इसके बाद उन्होंने 2012 में पुरोला सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। उन्हें भाजपा के मालचंद ने हराया। राजकुमार यहां दूसरे नंबर पर रहे थे। 2017 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे, इसके बाद उन्होंने पुरोला सीट से जीत दर्ज की। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नजदीकी माने जाने वाले राजकुमार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को कांग्रेस द्वारा चुनाव की कमान सौंपे जाने से नाराज थे, ऐसी अटकलें थीं कि उनका टिकट कट सकता है। यही वजह है कि वह भाजपा में शामिल हो गए।
उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने राजकुमार के भाजपा का दामन थामने को कमजोर कड़ियों का टूटना बताया है। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, उनकी राजनीतिक स्थिति पुरोला विधानसभा में कैसी थी, ये बात किसी से छुपी नहीं है। परमेश्वर की हम पर ऐसी कृपा है कि जो-जो हमारी कमजोर कड़िया हैं, वो सभी विधानसभाएं कमजोरी से मजबूती की ओर बढ़ रही हैं।
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उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘आदरणीय रावत जी, अल्मोड़ा वाले हरदा ऐसे नहीं थे मगर जबसे आप हरदा से हरद्वारी लाल बने, आपने अपनी सोच और समझ आमूलचूल रूप से बदल दी है । अब आपने भी अपनी पार्टी की तरह ही तुष्टीकरण के हिंदू-मुस्लिम कार्ड को गले मे टांग लिया है। सर्वविदित है कांग्रेस की शुरुआत ही तुष्टिकरण से शुरू हुई है। देश का विभाजन हो, कश्मीर की समस्या हो, प्रभु राम के मंदिर के प्रकरण में बाधा डालना हो, उनके अस्तित्व को न्यायालय में नकारना हो, शाहबानो का केस हो या तीन तलाक का मसला। आपकी पार्टी तुष्टिकरण को वैतरणी मानकर चलती आई है। आप भी उसी राह पर चलेंगे यह स्वाभाविक है। केवल किसी धर्म विशेष का प्रतीक धारण करने से तुष्टीकरण का आरोप नहीं लग सकता है बल्कि उस एजेंडे पर एक के बाद एक फैसले लेकर आपने अपनी छवि स्थापित की है। आपने राज्य के मुख्यमंत्री रहते कई ऐसे फैसले लिये जो तुष्टिकरण की चादर ओढ़े थे। आपके इस प्रिय एजेंडे ने मीडिया को भी तुष्टिकरण का शिकार बनाया। आपने ईद पर केवल उर्दू अखबारों को विज्ञापन देकर न जाने क्या संदेश देना चाहा होगा। आपने इसी सोच के तहत अप्रत्याशित रूप से जिन 2 सीटों से चुनाव लड़ा उसे भी आपने तुष्टिकरण के भरोसे लड़ा। आप बड़े हैं, आदरणीय हैं, आपने अपनी पार्टी के लिए बहुत समय और योगदान दिया है। कांग्रेस की सोच के अनुरूप आपने चुनाव से कुछ माह पूर्व तुष्टिकरण का एजेंडा परोस दिया है। कांग्रेस शायद इसी के इर्द-गिर्द चुनाव भी लड़ेगी। आप तुष्टिकरण को अलादीन का चिराग मान कर इसी एजेंडे के तहत 2022 के चुनाव में जाना चाह रहे हैं।’
यह भी पढ़ें – हरीश रावत VS अनिल बलूनी राउंड – 2 आज, ‘नमाज के लिए छुट्टी’ बनीं सोशल मीडिया पर ‘दंगल’ का कारण
वहीं हरीश रावत ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘बंधुवर अनिल जी, आपने अपनी दूसरी पोस्ट मे सूर्योदय का जिक्र किया है और अपनी पहली पोस्ट में आपने कहा मुझसे आपको अपेक्षा थी कि मैं इस धर्मयुद्ध में विकास को मुद्दा बनाकर बात करूं। अनिल बलूनी जी को मैं एक बहुत उदार और अग्रिम दृष्टि रखने वाला नेता मानता हूं। जब इस बार आप मुख्यमंत्री की दौड़ में चूके तो मेरे दिल से आह निकली, खैर ये बीती बातें हैं। थोड़े मेरे मन का दर्द मैंने आपको संबोधित अपने इस श्रृंखला के पहले ट्वीट में कहा कि दो दुष्प्रचार। एक दुष्प्रचार रोजा इफ्तार में पहनी हुई मेरी टोपी को लेकर और दूसरा दुष्प्रचार शुक्रवार जिसको जुम्मा कहते हैं, जुम्मे की नवाज़ के लिए छुट्टी की। मैंने आपको कुछ चित्र भेजे हैं जिसमें आपके सोशल मीडिया की टीम यदि मैं हरेले की शुभकामना भी देता हूं तो उसमें भी रोजा इफ्तार में पहनी हुई मेरी उस टोपी को लेकर अपनी पोस्ट डालते हैं और मेरी आलोचना करते हैं, आलोचना का स्वागत है। मगर एक आदर योग पहनावे को आखिर रोजा इफ्तार में आपकी पार्टी के आदरणीय नेतागणों ने भी उस टोपी को पहना है, तो वो भारतीय संस्कृति अनुरूप है, उनकी उदारता है उन्होंने आदर पूर्वक प्रस्तुत की गई टोपी को अपने सर पर धारण कर यह संदेश दिया है कि हम सब का विकास, सबका साथ की भावना लेकर के चलते हैं। मैंने आपके नेतागणों की फोटोज उनके प्रति आदर जताने के लिए और आपकी सोशल मीडिया टीम के दुष्प्रचारकों आईना दिखाने के लिए डाली। आपको कष्ट पहुंचा रहा है, मैंने निर्णय लिया है कि मैं उस पोस्ट को हटा दूँ और जो आपका आवाहन् है कि आओ चुनाव के धर्म युद्ध में विकास-विकास, रोजगार-रोजगार, तेरी महंगाई क्यों आदि सवालों पर खेल खेलें तो खेल होगा, लोकतांत्रिक तरीके से होगा और इन सवालों पर होगा कि कौन सक्षम है जो इन सवालों को लेकर के जन आकांक्षा को पूरा कर सकता है। मुझे पूरा भरोसा है कि आप अपनी सोशल मीडिया टीम को आदेशित करेंगे कि वो अपना दुष्प्रचार बंद करें और अपनी डर्टी ट्रिक्स को इस्तेमाल न करें, उत्तराखंड के स्वस्थ वातावरण को प्रदूषित करने का प्रयास न करें और हर किसी के बाने का, हर किसी के हर वस्त्र का, हर किसी की भावना कवर सम्मान करके आगे चलें। जिस सुबह की आपने प्रतीक्षा बात करने की बात कही है, मैं उस सुबह का शब्दों के साथ अभिनंदन कर रहा हूं। “म्योर प्यारों भुला अनिल बलूनी जू आओ विकास-विकास, रोजगार-रोजगार खिलुला।” “जय हिंद”।’
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दरअसल, हरीश रावत ने जुमे की नमाज की छुट्टी घोषित करने के आरोपों पर सफाई देते हुए एक लंबा पोस्ट लिखा। फेसबुक पर लिखे इस पोस्ट में वह कहते हैं, ‘#भाजपा का सफेद झूठ। मैंने कभी भी जुम्मे की नमाज़ के लिए छुट्टी का ऐलान नहीं किया और न किसी ने मुझसे जुम्मे की नमाज़ के लिए छुट्टी मांगी। हां, #हरीश_रावत ने सूर्य देव के आराधना के पर्व #छठ पर छुट्टी दी। हमारी बहनें #करवा_चौथ का व्रत रखती हैं, मैंने उस पर छुट्टी दी। मैंने दो महापुरुषों की जयंती पर छुट्टी दी, यहां तक की यदि भाजपाई झूठ न चल पड़ा होता है तो #परशुराम_जयंती पर भी मैं छुट्टी करने के विषय में अपनी सहयोगियों से विमर्श कर रहा था। भाजपा के लोगों, #काठ_की_हांडी एक ही बार चढ़ती है, 2017 में तुम्हारा यह झूठ चल गया। मगर अब के तुम समय पर सामने आ गये हो तो मेरे झूठ का प्रतिवाद भी लोगों तक पहुंचेगा और लोग पढ़े-लिखे हैं, स्वयं रिकॉर्ड तलाश कर लेंगे, क्या मेरी सरकार ने #जुम्मे की नमाज़ का जुम्मा मतलब शुक्रवार की नमाज़ के लिए छुट्टी का ऐलान किया है?’
हरीश रावत के इस दावे पर जवाब देते हुए अनिल बलूनी ने लिखा, ‘आदरणीय रावत जी,आज आपने फिर बड़ी सफाई के साथ कांग्रेस की डूबती नैया बचाने के लिए हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला है। इस कार्ड को आप अपनी ‘राजनीतिक संजीवनी’ मानते आए हैं। स्वाभाविक है सत्ता पाने के लिए कांग्रेस हर बार इस धार्मिक कार्ड का उपयोग करती आई है। इसके अनगिनत उदाहरण हैं। जनता जनार्दन सब कुछ जानती है। जनता जानती है कि भाजपा ‘सबका साथ , सबका विकास’ में विश्वास करती है , जबकि कांग्रेस विशुद्ध तुष्टिकरण की राजनीती करती रही है और इसके ज्वलंत उदाहरण आप हैं। जनता को याद है जब आपने मुख्यमंत्री रहते हुए जुमे की नमाज के लिए छुट्टी का आदेश निकाला था। जनता को याद है जब आप बार-बार विशेष संदेश देने के लिए निरन्तर मुस्लिम धार्मिक स्थानो की यात्रा करते रहते थे, मदरसों का गुणगान करते थे।
हम सभी को देश का नागरिक मानते हैं, सबके लिए बराबर मनोभाव और सम्मान रखते हैं। आज देश मे एक ऐसी सरकार हैं जो बिना भेद-भाव और तुष्टीकरण के के विकास के लिए संकल्पबद्ध है। आपकी तुष्टिकरण की चालों और नीतियों की जनता को याद दिलाने की जरूरत नहीं है किंतु आप जैसे वरिष्ठ नेता से अपेक्षा रहती है कि उत्तराखंड के विकास के मुद्दे पर आप सार्थक बहस करते, उसका चौतरफा स्वागत होता।’
बलूनी के जवाब के बाद हरीश रावत कहां मानने वाले थे, उन्होंने फिर पोस्ट लिखा, ‘#बलूनी जी आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद मैं आपसे कहना चाहता हूं कि ये आपकी पार्टी की सोशल मीडिया टीम के लोग थे, जिन्होंने एक रोजा इफ्तार पार्टी में मेरी पहनी हुई टोपी को लेकर मेरी फोटो वायरल कर धार्मिक प्रदूषण फैलाने की कुचेष्टा की। 2017 के चुनाव में आपकी पार्टी के लोगों ने घर-घर मेरी टोपी पहने हुई फोटो को लोगों को दिखाकर उनकी धार्मिक भावनाओं को उकेरने का कुप्रयास किया। इस बार भी उस कहानी को दोहराना चाहते थे। मेरी नजर में हर वो पहनावा, हर वो टोपी और हर वो पगड़ी हमारी राष्ट्रीय पहचान है जिसको हमारे लोग धारण करते हैं, उसके साथ विद्वेष नहीं जोड़ा जाना चाहिए और आपके जिन नेतागणों की फोटोज टोपी पहने हुये हैं, उनके उस टोपी को पहनने पर मुझे खुशी है कि उन्होंने भारत की समरचता का, सर्वधर्म समभाव का, मिली-जुली संस्कृति का संदेश है उसको मजबूत करने का काम किया है, मेरी नजर में संदेश का काम किया है। आपको अपने घर में जरा तथ्यों को ढूंढ लेना चाहिए बजाय मुझ पर दोषारोपण करने के। दूसरा आपने मुझसे कहा कि मैं, दरगाह-२, मस्जिद-मस्जिद के चक्कर लगाता हूं। बलूनी जी, हरिद्वार का कोई अखाड़ा, कोई आश्रम, कोई मंदिर ऐसा नहीं है जहां हरीश रावत ने माथा न टेका हो, आप इस तथ्य की भरपाई कर सकते हैं। जितनी बार मैंने केदारनाथ की यात्रा की है और जो कुछ मेरी सरकार ने अभूतपूर्व काम केदारनाथ नगरी के पुनर्निर्माण और वहां के पुनर्वास का किया है, वो सारी दुनिया के सामने है। मैं अपने धर्म का पालन करता हूं, निष्ठा से करता हूं, मैं धार्मिक व्यक्ति हूं, मगर मेरा धर्म सहिष्णुता की मुझे शिक्षा देता है, मैं दूसरे धर्मों का भी आदर करता हूं और उनका भी समान भाव से सम्मान करता हूं। आपने मुझ पर आरोप जड़ दिया कि मैंने जुम्मे की छुट्टी की है, जुम्मे का मतलब शुक्रवार की छुट्टी की है ताकि मुसलमान भाई नमाज़ अदा कर सकें। आप उस नोटिफिकेशन को तो मुझे दिखाइए, जिस नोटिफिकेशन में ये छुट्टी की हो, क्योंकि सरकार की छुट्टियां कोई मौखिक नहीं होती हैं, उसका नोटिफिकेशन होता है और कहां छुट्टी हुई है वो जरा सा मुझे बता दीजिये और ये भी आपकी पार्टी का जो मेरे खिलाफ दुष्प्रचार था, 2017 में उसका हिस्सा था। होना तो यह चाहिए था उस दुष्प्रचार के लिए आप क्षमा मांगते बजाय उसके आपने मुझ पर तौहमते जड़ दी। क्योंकि चुनाव में आप इन मुद्दों को हवा देना चाहते थे, मैंने इन मुद्दों की हवा निकाल दी है, अब आपकी पार्टी इन मुद्दों का चुनाव में उपयोग नहीं कर सकती है क्योंकि सारे उत्तराखंड ने हकीकत देख ली है और उन्होंने आपने आपकी हकीकत पहचान भी ली है। आपका जो नारा है, अच्छा हो उस नारे के अनुसार ही आचरण दिखाई दे, तो फिर लोगों को शिकायत कहां रह जाएगी! फिर लड़ाई केवल राजनैतिक हो जाएगी। आप राजनैतिक लड़ाई को धार्मिक विद्वेष के आधार पर लड़ना चाहते हैं, हम राजनैतिक लड़ाई को विकास के प्लेटफार्म पर लड़ना चाहते हैं और मुझे आपकी ये बात बहुत पसंद आई और एक होनहार नौजवान के तौर पर आपके इस कथन का मैं स्वागत करता हूं कि 2022 का चुनाव विकास के प्लेटफार्म पर होना चाहिये। मुझे यकीन है कि आपकी पार्टी, आपके इस सार्वजनिक घोषणा पर टिकी रहेगी। “जय हिंद”।’
हालांकि बलूनी ने सोशल मीडिया पर चली इस सियासी भिड़ंत को एक दिन टाल दिया। उन्होंने अपने पोस्ट में कहा, ‘आदरणीय रावत जी, राजनीतिक मतभेदों के बाद भी आपके प्रति आदर भाव है। आप वरिष्ठ हैं, अनुभवी हैं। यह लोकतंत्र का धर्म युद्ध है। रात हो चुकी है। सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं। कल जरूर प्रत्युत्तर दूंगा।’
ऐसे हुई सोशल मीडिया पर ‘दंगल’ की शुरुआत….
दरअसल, इन दिनों फेसबुक के जरिये अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमले बोल रहे हरीश रावत ने एक पोस्ट में लिखा, ‘#भाजपाई_दोस्तो, नीचे के कुछ चित्र देखिये। दरगाह में गोल टोपी पहनने से हरीश रावत तो मौलाना हरीश रावत हो गये और घर-घर में आपने वो टोपी वाली मेरी तस्वीर पहुंचा दी। अब जरा मुझे बताइए क्या Rajnath Singh जी भी मौलाना राजनाथ सिंह हो गये हैं? #अटल_बिहारी_वाजपेई जी की एक पुरानी फोटो है, क्या इनको भी आप मौलाना अटल बिहारी वाजपेई कहना पसंद करेंगे? #मोदी जी की भी एक फोटो है, आपके हिंदुत्व के आईकॉन की, क्या इनको भी आप उसी संबोधन से नवाजेंगे जो संबोधन आपने केवल-केवल मेरे लिए रिजर्व करके रखा है। हिम्मत है तो मेरे साथ इनको भी उसी नाम से पुकारिये।’
पीएम मोदी की फोटो पर चूक गए रावत
हरीश रावत ने अपनी पोस्ट में दावा किया कि भाजपा के ‘हिंदुत्व के सितारे’ नरेंद्र मोदी की भी तस्वीर है. उन्होंने पूछा कि पार्टी में उन्हें भी इस तरह संबोधित करने की हिम्मत है। हालांकि उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी की जो फोटो शेयर की, उसे सोशल मीडिया यूजर्स ने फेक बताया। इसके बाद हरीश रावत सोशल मीडिया के यूजर्स के निशाने पर आ गए। यूजर्स ने फेक फोटो शेयर करने पर हरीश रावत को ट्रोल करना शुरु कर दिया। जिसके बाद हरीश रावत ने अब ये फोटो अपनी पोस्ट से डिलीट कर दी।
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सांसद बलूनी ने कहा कि जब वह स्वयं कैंसर से जूझ रहे थे और अस्पताल के बिस्तर पर मुंबई में निरंतर सोचते रहते थे कि जिस स्तर का उपचार मिल रहा है क्या मेरे राज्य के एक आम आदमी को ऐसा उपचार मिल पाएगा। केंद्र में मोदी जी के नेतृत्व की मजबूत सरकार और आमजन के लिए तमाम योजनाओं के प्रति संवेदनशील नेतृत्व के प्रति अटूट विश्वास था। तभी से इस विचार को धरातल पर उतारने के लिए निरंतर प्रयास जारी थे।
सांसद बलूनी ने कहा कि टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट एटॉमिक एनर्जी (परमाणु ऊर्जा) मंत्रालय के अधीन आता है, जिसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के माननीय मंत्री जितेंद्र सिंह जी से कई चरणों में बैठक की। उन्हें राज्य के स्वास्थ्य ढांचे और विशेषकर कैंसर उपचार की वर्तमान स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने जितेंद्र सिंह का आभार प्रकट करते हैं कहा कि उन्होंने प्राथमिकता के साथ इस विषय पर सहयोग किया।
एक दिन पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात के दौरान राज्य में कैंसर संस्थान के बारे में लंबी चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की ओर से महत्वपूर्ण कार्य में प्राथमिकता से सहयोग किया जाएगा। सांसद बलूनी ने कहा कि अब विश्व स्तरीय कैंसर संस्थान की उत्तराखंड में स्थापना अंतिम चरण में है। हम शीघ्र ही राज्य के लिए इस सौगात को प्राप्त करने के निकट हैं।
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