NSA डोभाल ने सीएम योगी आदित्यनाथ को विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के लिए बधाई दी। दोनों के बीच उत्तर प्रदेश में सुरक्षा संबंधी चुनौतियों और आतंरिक सुरक्षा के लिए किए जाने वाले उपायों पर बातचीत हुई। इस दौरान NSA डोभाल ने भरोसा जताया कि पूर्व की भांति अगले पांच साल भी यूपी में सुरक्षा संबंधी मामलों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।
उधर, NDMA के सदस्य राजेंद्र सिंह ने योगी आदित्यनाथ को चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश समग्र विकास की नई ऊंचाइयों को छुएगा। उन्होंने उत्तर प्रदेश में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में मिलकर नए तकनीकों पर काम करने की बात कही।
]]>20 जनवरी, 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे अजीत डोभाल साल 1968 के केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे। 1972 में भारत की खुफिया एजेंसी आईबी से जुड़ने के बाद उन्होंने कई ऐसे खतरनाक कारनामों को अंजाम दिया है, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से भी फीके लगने लगते हैं। वे भारत के एकमात्र ऐसे नागरिक हैं, जिन्हें सैन्य सम्मान कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान पाने वाले वह पहले पुलिस अधिकारी हैं। कोरोना संकट में जब अमेरिका भारत में बनने वाली वैक्सीन के रॉ मैटिरियल को देने में आनाकानी कर रहा था तो डोभाल ही थे, जिन्होंने अमेरिकी प्रशासन को इसके लिए राजी किया। यही नहीं अफगानिस्तान संकट के बाद डोभाल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सुरक्षा नीति के केंद्र बन गए थे। कई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने अजीत डोभाल से बात की थी।
साल 2019 में मोदी सरकार की केंद्र में वापसी के साथ ही उन्हें फिर पांच साल के लिए एनएसए की जिम्मेदारी दी गई। भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना का नए सिरे से संचार करने की रणनीति का चाणक्य एनएसए अजीत डोभाल को माना जाता है। लद्दाख में घुसने की फिराक में बैठे चीन ने कभी यह उम्मीद नहीं की होगी कि भारत इतनी मजबूती से उसे जवाब देगा। गलवान की घटना के बाद भारत की रक्षा तैयारियों से चीन हैरान है, इसकी रणनीति तैयार करने में एनएसए डोभाल की अहम भूमिका रही। यही नहीं वह भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का अहम हिस्सा हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के सबसे बड़े फैसले जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को प्रभावी ढंग से धरातल पर उतारकर अजीत डोभाल ने साबित किया कि पीएम मोदी उन इतना भरोसा क्यों करते हैं।
2014 से अब तक नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे लम्हे आए जब भारतीयों ने महसूस किया कि एक ताकतवर देश होना क्यों जरूरी है, क्यों दक्षिण एशिया में शांति के लिए भारत को शक्तिशाली बनना होगा। ऐसे में मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलताओं का तानाबाना बुनने का श्रेय अजीत डोभाल को जाता है। देश के भीतर आतंकियों के नेटवर्क की कमर तोड़नी हो या अंदरूनी-बाहरी सुरक्षा को लेकर देश को अलर्ट मोड में रखना, डोभाल ने सभी को पूरे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया।
पाकिस्तान से चीन तक हर मर्ज की दवा
लद्दाख गतिरोध के बाद चीन की किसी भी आक्रामकता पर भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी एनएसए डोभाल की टीम के पास इसका पूरा खाका तैयार है। यही वजह है कि भारत ने लद्दाख में जिस तरह से लंबे समय तक जमे रहने की तैयारी की, उसने चीन को हैरान कर दिया। चीन को जवाब सैन्य मोर्चे पर भी दिया जा रहा है और कूटनीतिक तरीके से भी। फिर चाहे वह पड़ोसी देशों केसाथ निरंतर संपर्क हो या अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ मालाबार अभ्यास। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य देशों के एनएसए स्तर की वर्चुअल बैठक में पाकिस्तान के गलत नक्शा दिखाने पर अजीत डोभाल का वॉकआउट साल 2020 की सुर्खियां बना। देश के भीतर आतंकियों के नेटवर्क को ध्वस्त करना हो या अंदरूनी-बाहरी सुरक्षा को लेकर देश को अलर्ट मोड में रखना, डोभाल ने सभी को पूरे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया। डोभाल का काम ही उनकी पहचान है।
पौड़ी के घीड़ी गांव में हुआ जन्म
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के बनेलस्यूं पट्टी के घीड़ी गांव में हुआ। एनएसए डोभाल परिवार के साथ कुल देवी की पूजा करने के लिए निरंतर अपने गांव आते रहते हैं। वह 1968 के केरल बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। जनवरी 2005 में खुफिया ब्यूरो के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए डोभाल को 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। वह इस मेडल को प्राप्त करने वाले पहले पुलिस अधिकारी हैं। इससे पहले यह सम्मान सिर्फ सैन्यकर्मियों को दिया जाता था। एनएसए डोभाल का करियर कई हैरतअंगेज कारनामों से भरा पड़ा है। यही वजह है कि भारतीयों के मन में उनकी छवि ‘जेम्स बांड’ की है।
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देश के पहले सीडीएस और थियेटर कमांड के शिल्पी
जनरल बिपिन रावत सेना में बदलाव लाने के लिए जाने जाते थे। तीनों सेनाओं को पुनर्गठन के महत्वपूर्ण काम को अंजाम देने के लिए हिए उन्हें 31 दिसंबर, 2019 को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ (सीडीएस) बनाया गया। उनका सबसे बड़ा काम तीनों सेनाओं में तालमेल बिठाने का था। इसके साथ ही तीन साल के भीतर उन्हें सेनाओं का पुनर्गठन कर ‘थिएटर कमांड’ बनाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। वह जिस थिएटर कमांड प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, वो प्रोजेक्ट चीन और पाकिस्तान से आने वाले खतरों से निपटने में अहम रोल अदा करता। दरअसल थिएटर कमांड्स का सबसे सही इस्तेमाल युद्ध के दौरान तब होता है, जब भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेना प्रमुखों के बीच तालमेल होता है। थिएटर कमांड्स से बनी रणनीतियों से दुश्मन पर अचूक वार करना आसान हो जाता। तीनों सेनाओं के संसाधनों और हथियारों का इस्तेमाल एक साथ किया जा सकता है।
1999 में भारत ने पाकिस्तान के साथ कारगिल की जंग लड़ी। इसके बाद बनी कई समितियों ने थिएटर कमांड और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद की स्थापना के सुझाव दिए थे। 20 साल बाद 15 अगस्त 2019 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ ऑफ डिफेंस पद की स्थापना की घोषणा की थी, तब उन्होंने कहा था, ‘तीनों सेनाओं में समन्वय तो है और वे अपने-अपने तरीके से आधुनिकीकरण के लिए भी प्रयास करते हैं लेकिन जिस तरह युद्ध के दायरे और रूप-रंग बदल रहे हैं और जिस तरह की टेक्नोलॉजी की भूमिका बढ़ रही है, उसके कारण भारत को भी टुकड़ों में सोचने से काम नहीं चलेगा, देश की पूरी सैन्यशक्ति को एकजुट होकर एक साथ आगे बढ़ना होगा।
अभी देश में करीब 15 लाख सशक्त सैन्य बल है। इन्हें संगठित और एकजुट करने के लिए थिएटर कमांड की जरूरत है। एक साथ कमांड लाने पर सैन्य बलों के आधुनिकीकरण का खर्च कम हो जाएगा। किसी भी आधुनिक तकनीक का प्रयोग सिर्फ एक ही सेना नहीं करेगी बल्कि उस कमांड के अंदर आने वाले सभी सैन्य बलों को उसका लाभ मिलेगा। सीडीएस जनरल बिपिन रावत 4 थिएटर कमांड पर काम कर रहे थे। वह साल 2022 तक थिएटर कमांड के गठन का लक्ष्य लेकर चल रहे थे।
जनरल रावत ने अपने दो साल के कार्यकाल में सेनाओं के एकीकरण के लिए तीन बड़ी एजेंसियां जरूर तैयार कर दी थीं। पहली थी साइबर डिफेंस एजेंसी, दूसरी डिफेंस स्पेस एजेंसी और तीसरी थी स्पेशल ऑपरेशन डिवीजन। निकट भविष्य में ये तीनों एजेंसियां अलग-अलग कमांड भी बन सकती थीं। सीडीएस जनरल बिपिन रावत का रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और स्वदेशीकरण में भी एक बड़ा योगदान था। पिछले पांच-छह साल से थलसेना, वायुसेना और नौसेना में स्वदेशी हथियारों को ही तरजीह दी जा रही थी, तो इसका एक बड़ा श्रेय जनरल रावत को जाता है। अगर विदेशी हथियार और सैन्य साजो-सामान खरीद भी रहे थे तो उसे मेक इन इंडिया के तहत देश में ही निर्माण करने की कोशिश रहती थी।यही कारण था कि थलसेना स्वदेशी अर्जुन टैंक लेने को तैयार हुई और वायुसेना ने एलसीएच अटैक हेलीकॉप्टर लेने को हामी भरी थी। जनरल बिपिन रावत रक्षा क्षेत्र में सुधारों के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे।
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प्रधानमंत्री मोदी गुरुवार देर रात नौ बजे पालम एयरपोर्ट पहुंचकर सीडीएस जनरल बिपिन रावत समेत सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और एनएसए अजीत डोभाल भी मौजूद रहे। रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने भी पालम एयरबेस पर जाकर सीडीएस रावत समेत सभी सैन्यकर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। पालम एयरबेस पर सेना ने अपने सबसे बड़े अधिकारी समेत सभी 13 लोगों को श्रद्धांजलि देने की पूरी तैयारी पहले ही कर ली थी। सबसे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के सबसे शूरवीर सेनाध्यक्षों में शुमार जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और 11 अन्य सैन्य अधिकारियों को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर तीनों सेनाओं के प्रमुख, थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार और भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी भी वहां मौजूद थे।
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सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत के पार्थिव देह को बृहस्पतिवार रात कामराज मार्ग स्थित उनके आवास पर रखा जाएगा। सेना ने बताया है कि शुक्रवार सुबह 11 बजे से 12:30 बजे तक लोग अपने सेना नायक को श्रद्धांजलि दे सकेंगे। इसके बाद पूरे सैन्य सम्मान के साथ दिल्ली कैंटोनमेंट स्थित बरार स्क्वायर शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। ब्रिगेडियर एलएस लिड्डर का अंतिम संस्कार सुबह 9:15 बजे किया जाएगा।
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कुन्नूर में बुधवार को सेना का एमआई-17 वी5 हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था। इस हेलीकॉप्टर में सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत 14 लोग सवार थे.। इस दुर्घटना में जनरल रावत, उनकी पत्नी और अन्य 11 लोगों की मौत हो गई। इनमें हेलीकॉप्टर के पायलट और सीडीएस के वरिष्ठ स्टाफ और सुरक्षाकर्मी शामिल हैं। इस हेलीकॉप्टर हादसे में एकमात्र बचे गंभीर रूप से घायल ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का इलाज चल रहा है।
हेलीकॉप्टर हादसे में मारे गए अन्य सैन्यकर्मी
इस हादसे में जान गंवाने वालों में सीडीएस जनरल रावत के रक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर लखबिंदर सिंह लिड्डर और स्टाफ ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल हरिजंदर सिंह शामिल है। इसके अलावा विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान, स्क्वाड्रन लीडर कुलदीप सिंह, जूनियर वारंट ऑफिसर राणा प्रताप दास, जूनियर वारंट ऑफिसर अरक्कल प्रदीप, हवलदार सतपाल राय, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांस नायक विवेक कुमार और लांस नायक बी साई तेजा की इस हादसे में मौत हो गई।
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इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का आभार व्यक्त किया। उन्होंने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह सब प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व के कारण संभव हो पाया। प्रधानमंत्री मोदी के कारण आज दुनिया में भारत का स्वाभिमान और इज्जत बढ़ी है। शक्तिशाली भारत की पहचान बनी है। देश के सक्षम एवं मजबूत लीडरशिप के कारण हमारे लोग विदेशों में सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में फंसे लोगों को सकुशल वापसी के प्रयास जारी रहेंगे।
सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड के लोगों को दिल्ली से उनके घरों तक लाने के लिए आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करने को स्थानिक आयुक्त को भी निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक 400 से अधिक लोगों की उत्तराखंड वापसी हो चुकी है। उत्तराखंड लौटे लोगों के स्वास्थ्य एवं स्वरोजगार की समस्याओं के समाधान का भी रास्ता तलाशा जाएगा। उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित 56 लोगों के साथ ही सभी वापस लौटे लोगों के सुखद भविष्य की भी कामना की।
इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि वे भी निरंतर अफगानिस्तान में फंसे लोगों के परिवार के संपर्क में रहे हैं। उत्तराखंड लौटे लोगों में से यदि कोई अपना उद्यम स्थापित करना चाहेगा तो उसके लिए सहयोग दिया जाएगा।
इस अवसर पर गोरखाली सुधार सभा के पदाधिकारियों ने गोरखा समाज की विभिन्न समस्याओं से संबंधित ज्ञापन भी मुख्यमंत्री को सौंपा। इस अवसर पर विशेष सचिव मुख्यमंत्री डा. पराग मधुकर धकाते, जिलाधिकारी आर. राजेश कुमार, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. योगेनद्र सिंह रावत, संयोजक चेतन गुरंग, केंट वार्ड के पूर्व उपाध्यक्ष विष्णु गुप्ता, गोरखाली सुधार सभा की श्रीमती पुष्पा, श्रीमती सुधा, श्रीमती उमा के साथ ही बड़ी संख्या में अन्य लोग उपस्थित थे।
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गांव पहुंचने पर उन्होंने अपनी कुल देवी की पूजा भी की और प्रदेशवासियों की कुशलक्षेम की कामना की। इससे पहले पिछले वर्ष नवरात्र पर एनएसए अजीत डोभाल भी कुल देवी की पूजा करने के लिए पैतृक गांव आए थे। डोभाल परिवार नियमित रूप से अपने गांव आता रहता है। अजीत डोभाल भी गांव में एक घर बनाने की बात कह चुके हैं।
आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर पूछे जाने पर शौर्य डोभाल ने बताया कि पार्टी की ओर से उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी, वह उसे निभाएंगे। शौर्य डोभाल भाजपा के सुशासन तथा केंद्र राज्य शासकीय कार्य समन्वय विभाग के प्रदेश संयोजक भी हैं। इससे पहले उन्होंने पौड़ी सर्किट हाउस में भाजपा कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की।
]]>आज अपने गृह जनपद पौड़ी पहुंचकर मंडल एवम जिले के कार्यकर्ताओं के साथ भेंट वार्ता की। pic.twitter.com/CYyiAQSrDn
— Shaurya Doval (@shaurya_doval) April 4, 2021
मीडियो रिपोर्टों के मुताबिक, यह रेकी पिछले साल की गई। इस आतंकी ने सरदार पटेल भवन के अलावा दिल्ली में कई अहम जगहों की रेकी की। पूछताछ में NSA डोभाल के ऑफिस की रेकी का खुलासा होने के बाद उनके ऑफिस और घर का सुरक्षा घेरा बढ़ा दिया गया है। उड़ी सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद 2016 में पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक्स और उसके बाद 2019 में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट पर हुई एयर स्ट्राइक के सूत्रधार रहे अजीत डोभाल पाकिस्तान की आंख में चुभते रहे हैं।
हिदायतुल्लाह मलिक नाम के इस आतंकी के खिलाफ जम्मू के गंगयाल थाने मं एफआईआर दर्ज कराई गई है। वह जैश के फ्रंट ग्रुप ‘लश्कर-ए-मुस्तफा’ का चीफ है। उसके पास से गिरफ्तारी के वक्त हथियार और गोला-बारूद बरामद किया गया था। उसने पूछताछ में बताया कि वह 24 मई 2019 को श्रीनगर से दिल्ली की फ्लाइट लेकर आया था। यहां उसने NSA डोभाल के ऑफिस का वीडियो बनाया। इस वीडियो को उसने अपने पाकिस्तानी हैंडलर को व्हाट्सएप के जरिये भेजा। इसके बाद वह बस से कश्मीर लौट गया।
कई मीडिया रिपोर्टों में खुफिया एजेंसियों के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जम्मू-कश्मीर में दोबारा आतंक फैलाने की साजिश में जुटे हुए हैं। खुफिया एजेंसियों ने गृह मंत्रालय को बताया है कि जम्मू-कश्मीर में जम्मात-ए-इस्लामी लश्कर, जैश, हिजबुल मुजाहिदीन को भारी फंड मुहैया कराने में जुटा हुआ है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के जरिये, दुबई तुर्की के रास्ते फंडिंग मुहैया कराई जा रही है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस से पूछताछ में उसने यह भी बताया कि 2019 में सांबा सेक्टर के सीमा से सटे इलाके का दौरा किया था। उसके साथ समीर अहमद डार भी था, जिसे 21 जनवरी को 2020 पुलवामा आतंकी हमले में संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किया गया था। मलिक ने मई 2020 में एक और आत्मघाती हमले के लिए हुंडई सैंट्रो कार उपलब्ध कराई थी।
]]>साल 2019 में मोदी सरकार की केंद्र में वापसी के साथ ही उन्हें फिर पांच साल के लिए एनएसए की जिम्मेदारी दी गई। लद्दाख में घुसने की फिराक में बैठे चीन ने कभी यह उम्मीद नहीं की होगी कि भारत इतनी मजबूती से उसे जवाब देगा। गलवान की घटना के बाद भारत की रक्षा तैयारियों से चीन हैरान है, इसकी रणनीति तैयार करने में एनएसए डोभाल की अहम भूमिका रही है। यह नहीं वह भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का अहम हिस्सा हैं। यही नहीं नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के सबसे बड़े फैसले जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को प्रभावी ढंग से धरातल पर उतारकर अजीत डोभाल ने साबित किया कि पीएम मोदी उन इतना भरोसा क्यों करते हैं।
2014 से अब तक नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे लम्हे आए जब भारतीयों ने महसूस किया कि एक ताकतवर देश होना क्यों जरूरी है, क्यों दक्षिण एशिया में शांति के लिए भारत को शक्तिशाली बनना होगा। मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलताओं का तानाबाना बुनने का श्रेय अजीत डोभाल को है। देश के भीतर आतंकियों के नेटवर्क की कमर तोड़नी हो या अंदरूनी-बाहरी सुरक्षा को लेकर देश को अलर्ट मोड में रखना, डोभाल ने सभी को पूरे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया। 370, चीन विवाद, पड़ोसी देशों से संबंध, दिल्ली दंगे, सर्जिकल स्ट्राइक, डोकलाम या फिर कूटनीति स्तर पर लिए जाने वाले तमाम फैसले, अजीत डोभाल पीएम मोदी की उम्मीदों पर हमेशा खरे उतरे हैं। दिल्ली दंगों के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार के खुद जमीन पर जाकर हालात का जायजा लेने और लोगों में भरोसा बहाल करने की तस्वीरों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।
पाकिस्तान से चीन तक हर मर्ज की दवा
लद्दाख गतिरोध के बाद चीन की किसी भी आक्रामकता पर भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी एनएसए डोभाल की टीम के पास इसका पूरा खाका तैयार है। यही वजह है कि भारत ने लद्दाख में जिस तरह से लंबे समय तक जमे रहने की तैयारी की, उसने चीन को हैरान कर दिया। चीन को जवाब सैन्य मोर्चे पर भी दिया जा रहा है और कूटनीतिक तरीके से भी। फिर चाहे वह पड़ोसी देशों केसाथ निरंतर संपर्क हो या अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ मालाबार अभ्यास। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य देशों के एनएसए स्तर की वर्चुअल बैठक में पाकिस्तान के गलत नक्शा दिखाने पर अजीत डोभाल का वॉकआउट साल 2020 की सुर्खियां बना। देश के भीतर आतंकियों के नेटवर्क को ध्वस्त करना हो या अंदरूनी-बाहरी सुरक्षा को लेकर देश को अलर्ट मोड में रखना, डोभाल ने सभी को पूरे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया। डोभाल का काम ही उनकी पहचान है।
पौड़ी के घीड़ी गांव में हुआ जन्म
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के बनेलस्यूं पट्टी के घीड़ी गांव में हुआ। एनएसए डोभाल परिवार के साथ कुल देवी की पूजा करने के लिए निरंतर अपने गांव आते रहते हैं। वह 1968 के केरल बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। जनवरी 2005 में खुफिया ब्यूरो के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए डोभाल को 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। वह इस मेडल को प्राप्त करने वाले पहले पुलिस अधिकारी हैं। इससे पहले यह सम्मान सिर्फ सैन्यकर्मियों को दिया जाता था। एनएसए डोभाल का करियर कई हैरतअंगेज कारनामों से भरा पड़ा है। यही वजह है कि भारतीयों के मन में उनकी छवि ‘जेम्स बांड’ की है।
]]>यह सिलसिला देश की राजनीति के फलक पर तेजी से चमक बिखेर रहे यूपी के मुख्यमंत्री और पौड़ी के बेटे योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ बनाए गए जनरल बिपिन रावत, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, अनिल बलूनी से होता हुआ कई ऐसे लोगों तक जाता है, जिन्होंने अपने कार्य से लोगों के मन मस्तिष्क को प्रभावित किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार भास्कर खुल्बे हों या समाज सेवा का पर्याय बन चुकी मंगला माता हों, एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह हों, देश सेवा और समाजसेवा के प्रतीक कर्नल अजय कोठियाल हों या सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और प्रख्यात गीतकार प्रसून जोशी। सभी की कहानी कमोबेश एक जैसी तो है, सभी ने संघर्षों के लंबे दौर से गुजरते हुए शीर्ष मुकाम हासिल किया है। यह विशेषांक हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाले पहाड़ के सपूतों को समर्पित है।
ये रहे टॉप-10 उत्तराखंडी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर सबसे चर्चित उत्तराखंडियों की सूची में शीर्ष पायदान पर हैं। दूसरे नंबर पर देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हैं। तीसरे पायदान पर सीडीएस बनाए गए जनरल बिपिन रावत हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस सूची में चौथा स्थान मिला है। पांचवें नंबर पर शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हैं। वहीं छठे स्थान पर आध्यात्मिक गुरुमाता और हंस फाउंडेशन की संस्थापक माताश्री मंगला हैं। भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी को इस सूची में सातवां स्थान मिला है। आठवें नंबर पर महाराष्ट्र और गोवा के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार भास्कर खुल्बे को इस सूची में नौंवा और एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह को दसवां स्थान मिला है। 11वें पायदान पर गीतकार प्रसून जोशी और 12वें स्थान पर समाजसेवी और यूथ फाउंडेशन के संस्थापक कर्नल (रिटा.) अजय कोठियाल हैं। सफलता और बुलंदियों पर पहुंचे उत्तराखंडियों की सूची बहुत लंबी है।शीर्ष 50 में ऐसे लोग शामिल हैं, बीते एक साल के दौरान कुछ ज्यादा चर्चा में रहे। हालांकि यह सूची अंतिम नहीं है, यह तो महज सिलसिले की शुरुआत है, जो साल-दर-साल आगे बढ़ता जाएगा।
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गुरुवार शाम करीब 7:30 बजे अजीत डोभाल अपनी पत्नी अरुणी डोभाल के साथ ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन पहुंचे। यह उनका निजी दौरा था, इसलिए इससे मीडिया को दूर रखा गया। शुक्रवार सुबह पौड़ी के लिए रवाना होने से पहले वह परमार्थ आश्रम में यज्ञ में शामिल हुए। यह यज्ञ स्वामी चिदानंद सरस्वती ने संपन्न कराया। इसके बाद वह शक्तिपीठ ज्वाल्पा देवी के दर्शनों के लिए पहुंचे। यहां उन्होंने विधिविधान से पूजा की और इसके बाद मंदिर समिति और पुजारियों से बातचीत भी की। मंदिर में दर्शनों के बाद वह पौड़ी रवाना हो गए।
शनिवार सुबह वह अपनी कुल देवी के दर्शन के लिए पैतृक गांव घीड़ी पहुंचे। हमेशा की तरह एनएसए डोभाल ने अपनी यात्रा के लिए किसी तरह का प्रोटोकॉल लेने से इनकार किया है। वह दिल्ली से ऋषिकेश पहुंचे, जहां से सड़क मार्ग से शुक्रवार को पौड़ी जिले में मौजूद मां ज्वाल्पा देवी के दर्शनों को पहुंचे। इसके बाद एनएसए डोभाल ने अपने पैतृक गांव घीड़ी पहुंचकर कुल देवी बाल कुंवारी मंदिर में पूजा अर्चना की।
अपने पैतृक गांव में एनएसए अजीत डोभाल
शक्तिपीठ मां ज्वाल्पा देवी के दर्शन भी किए
इस मौके पर उन्होंने कहा कि वह जल्द ही गांव के अपने पैतृक घर को फिर से दुरुस्त करवाएंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की इस यात्रा को पूरी तरह निजी रखा गया है। अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने उत्तराखंड सरकार से किसी भी तरह का कोई सरकारी प्रोटोकॉल लेने से इनकार कर दिया। हालांकि केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री का रैंक होने के साथ ही वह जेड प्लस सुरक्षा कैटेगरी में आते हैं।
इससे पहले, पिछले वर्ष भी जून में अजीत डोभाल पांच साल बाद अपने परिवार के साथ उत्तराखंड स्थित पैतृक गांव पहुंचे थे। 2014 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किए जाने के बाद जून 2014 में भी वह अपनी कुल देवी की पूजा में शामिल होने गांव आए थे।
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