भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि पर कांस्टीट्यूशन क्लब में, ’आत्म निर्भर होता भारत’ विषय पर विचार गोष्ठी व ’अटल कर्मवीर सम्मान-2022’ का भव्य आयोजन किया गया। इसमें समाजसेवी व उद्यमी के सी पांडे की अध्यक्षता व मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड व सांसद पौडी गढ़वाल तीरथ सिंह रावत तथा विशिष्ट अतिथि पूर्व उत्तराखंड राज्य सरकार दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री पूरन चंद्र नैनवाल, उद्योग जगत से जुडे टी सी उप्रेती व सुरेश पांडे, गढ़वाल हितैषणी सभा व राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली अध्यक्ष क्रमशः अजय सिंह बिष्ट व चंद्र मोहन पपनैं, डीपीएमआई चेयरमैन डॉ विनोद बछेती तथा महेश चंद्रा सेवानिवृत वाणिज्य महानिदेशक भारत सरकार, मंचासीनों की गरिमामयी उपस्थित में आयोजित किया गया।
आयोजित विचार गोष्ठी व सम्मान समारोह का श्रीगणेश मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के कर कमलो दीप प्रज्ज्वलित कर व लोकगायिका मधु बेरिया साह तथा किरन लखेडा द्वारा प्रस्तुत कुमांउनी व गढ़वाली बोली-भाषा मंगलगान से तथा आयोजक मुख्य संपादक अमर संदेश अमर चंद व निम्मी ठाकुर द्वारा मंचासीन मुख्य व विशिष्ट अतिथियां का स्वागत अभिनंदन शाल ओढा, पुष्पगुच्छ व स्मृति चिन्ह भेंट कर किया गया तथा मंचासीन मुख्य व विशिष्ट अतिथियों, अटल कर्मवीर सम्मान से सम्मानित किए जा रहे सभी कर्मवीरों, आयोजित विचार गोष्ठी के सभी अतिथि वक्ताओ के साथ-साथ सभागार में बडी संख्या मे उपस्थिति शिक्षाविदो, पत्रकारों, साहित्यकारों, फिल्म, रंगमंच, लोककला, लोकगायन व जनसमाज के विभिन्न जनसरोकारो से जुडे कर्मठ प्रबुद्ध जनों का समारोह में उपस्थिति होने हेतु आभार व्यक्त किया गया।
वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, कोरोना महामारी के बाद देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है। भारत के उत्पादो की मांग बाहरी देशो मे बढी है, जो सिद्ध करती है, भारतीय उत्पादों की मांग है। छोटी-छोटी चीजो का उत्पाद कर, उनको प्रोत्साहन दे, रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। भारत और अधिक आत्मनिर्भर बन सकता है। आत्मनिर्भर बनना एक बात है, आत्म संतुष्टि मुख्य है। आत्म संतुष्टि के साथ काम करने पर सबसे बडी संतुष्टि व सकून मिलता है। आत्मनिर्भर बनने की ठान ही ली है, तो स्वयं की कार्ययोजना बना कर, आत्मनिर्भर बना जा सकता है। व्यक्त किया गया, लोग आपस में जुड़ नहीं पाते। जाति, धर्म व राजनीति के नाम पर बिखरे हुए हैं। जो हो रहा है, उसके बावत सोचना जरूरी है। हमे वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। हम सब एक जुट हो, अपने साधनों को जोड़ कर चले।
महिलाएं आज जब सुरक्षित नहीं हैं ऐसे मे भारत को आत्मनिर्भर कैसे माना जा सकता है? महिलाआें के सशक्तिकरण पर ध्यान देकर ही भारत आत्मनिर्भर हो पायेगा। वक्ताओ द्वारा कहा गया, क्या वैचारिक रूप से भारत आत्म निर्भर है? सोचने की जरूरत है। अटल जी ने भाषा आंदोलन में भाग लिया था। भाषा के मामले मे आज भी हम गुलाम हैं। अटल जी ने ही उत्तराखंड आंदोलन को साकार किया था।
आयोजन मुख्य अतिथि, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व पौडी सांसद तीरथ सिंह रावत द्वारा व्यक्त किया गया, संसद में मात्र दो सांसदों की संख्या पर सिमट जाने के बाद अटल जी सबसे पहले उत्तराखंड दौरे पर आऐ थे। आज उनकी पार्टी पूर्ण बहुमत से संसद में बैठी है। अटल जी कहते थे राष्ट्र पहले है, नेता बाद में। यह भाव लेकर अटल जी ने के नेतृत्व मे जनजागरण हुआ था। अटल जी थ्रीटायर मे रेल सफर किया करते थे, चाहते तो एसी रेल कोच मे सफर कर सकते थे। आज अनुकूल वातावरण है तो अटल जी का इसमे बड़ा योगदान रहा है। अटल जी के संघर्ष के बल ही पार्टी आज यहां तक पहुच पाई है। आज मोदी जी उसी संघर्षशील पार्टी का नेतृत्व कर देश व देश के जनमानस को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। आज उत्तराखंड के जन सब जगह छाए हुए हैं। जी20 की अध्यक्षता भारत मोदी जी के नेतृत्व मे कर रहा है, जो गौरव की बात है। उत्तराखंड को भी जी20 के दो कार्यक्रम मिलना गौरव की बात है।
इस अवसर पर उद्योग जगत से जुडे सुरेश पांडे द्वारा प्रोड्यूश, उत्तराखंड के परिवेश पर बनी फिल्म ’केदार’ के पोस्टर का लोकार्पण पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड तीरथ सिंह रावत, के सी पांडे व अन्य मंचासीनों के कर कमलां किया गया। विचार गोष्ठी व सम्मान समारोह कार्यक्रम के समापन की घोषणा से पूर्व मुख्य आयोजक अमर चंद द्वारा न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी, भारतीय जीवन बीमा निगम, पावर फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड, एसकेपी प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, भारत भूमि ट्रस्ट इत्यादि कम्पनियां व संस्थाओं का आयोजन हेतु आर्थिक व अन्य सहयोग देने पर आभार व्यक्त किया गया। सभागार में उपस्थित सभी अतिथियों, सम्मानितों, पत्रकारों व प्रबुद्धजनो का भी बडी संख्या में उपस्थित होने हेतु आभार व्यक्त किया गया। सम्मान समारोह का मंच संचालन उत्तराखंड रंगमंच व फिल्म जगत के सु-विख्यात अभिनेता वृजमोहन वेदवाल द्वारा बखूबी किया गया।
]]>केंद्रीय शिक्षा सचिव संजय कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के एक संयुक्त पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विश्व स्तर पर सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है। भारत में, सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है और भारत वैश्विक सर्वाइकल कैंसर के बोझ का सबसे बड़ा हिस्सा है।
सर्वाइकल कैंसर एक रोकथाम योग्य और इलाज योग्य बीमारी है, जबकि इसका जल्द पता चल जाए और प्रभावी ढंग से इसका प्रबंधन न किया जाए। अधिकांश सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) से जुड़े होते हैं और एचपीवी वैक्सीन सर्वाइकल कैंसर के अधिकांश मामलों की रोकथाम कर सकता है यदि वैक्सीन लड़कियों या महिलाओं को वायरस के संपर्क में आने से पहले दी जाती है। टीकाकरण के माध्यम से रोकथाम सर्वाइकल कैंसर के उन्मूलन के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अपनाई गई वैश्विक रणनीति के मुख्य आधारों में से एक है।
यह उल्लेख किया गया है कि टीकाकरण के लिए राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) ने व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) में एचपीवी वैक्सीन की शुरुआत की सिफारिश की है, जिसमें 9-14 वर्ष की किशोरियों के लिए वन टाइम कैच-अप के साथ 9 वर्ष में नियमित टीकाकरण किया जाता है।
टीकाकरण मुख्य रूप से स्कूलों (ग्रेड आधारित दृष्टिकोणः 5वीं-10वीं) के माध्यम से प्रदान किया जाएगा क्योंकि अधिक लड़कियों का स्कूल में नामांकन है। अभियान के दिन स्कूल नहीं जा पाने वाली लड़कियों तक पहुंचने के लिए स्वास्थ्य केंद्र में टीकाकरण किया जाएगा, जबकि स्कूल न जाने वाली लड़कियों के लिए आयु (9-14 वर्ष) के आधार पर सामुदायिक आउटरीच और मोबाइल टीमों के माध्यम से अभियान चलाया जाएगा। पंजीकरण, रिकॉर्डिंग और टीकाकरण संख्या की रिपोर्टिंग के लिए यू-विन ऐप का उपयोग किया जाएगा।
पत्र में, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से अभियान को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित गतिविधियां चलाने के लिए उचित स्तरों पर आवश्यक निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया हैः
वर्तमान सरकार, मुख्यमंत्री के ऊर्जावान, प्रदेश के प्रति संकल्पित सेवाभाव और सुशासन से प्रेरित नेतृत्व के अधीनस्थ काम करने की मनसा से प्रभावित दिख रही है। अब हमें यह देखना है कि, हमारे प्रदेश के प्रधान सेवक और उनका मंत्रीमंडल, इस शिविर के विचारों को जमीन पर कैसे और कितना उतारकर जनता के हित्त के लिए काम करते हैं, और शासन को इस विचारधारा और मानसिकता से काम करने के लिए प्रतिबद्ध और प्रोत्साहित कर, लोकतंत्र को सम्मानित एवं प्रज्वलित कर सकते हैं।
हमारा जो पूर्व का अनुभव रहा है, वह हमें इसके प्रति निराशवान करता है। क्योंकि हमारे मंत्रियों और विधायकों की जो छवि, जनता के मन में बनी हुई है वह शिविर के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों और घोषणाओं को सकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखती है। मैं, यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि, जब मसूरी में यह शिविर चल रहा था तब उसी के समकक्ष, करीब 30 किलोमीटर की दूरी में, क्षेत्र के काश्तकारों की एक समिति की सभा भी धनोल्टी के ग्राम पंचायत भवन में आयोजित और अपने आदर्शों के लिए क्रियान्वयन थी।
इस सभा में, अधिकांश भावना और विचार यह थे कि, जनता के काम कमिशन देकर ही सम्भव होते हैं अन्यथा नहीं। इस बात का समर्थन करते हुए सभा के अन्य सदस्यों ने अपनी दास्तायें व्यक्त करीं, और इसके फलस्वरूप केवल जनता की लाचारी देखने को मिली। कहने में, और करने में बहुत अन्तर है।
जनता, धामी सरकार और उत्तराखंड के शासन से यह अपेक्षा करती है कि, यदि वह भ्रष्टाचार पर नकेल डाल दें और भ्रष्ट जनता के प्रतिनिधियों और नौकरशाहों / अधिकारियों के खिलाफ मुनासिब प्रशासनिक एवं न्यायिक कार्यवाई कर जनता को आश्वस्त कर सकें, तभी शिविर में उद्घोषित नैतिकता के पढ़ाये गये पाठ के आदर्शों को हासिल करना सम्भव है। अपितु नहीं।
मुख्य सचिव एसएस संधु का शिविर में उपस्थित श्रोताओं को दिये गये सम्बोधन का, जनता ने बहुत स्वागत किया और सराहा भी। मुख्य सचिव ने कहा कि, नौकरशाह और विभाग अधिकारी जनता का काम दम्भ ग्रस्त होकर ना करें अपितु साकारात्मक सोच और संवेदना से प्रेरित होकर करें। जब अधिकारी समस्या के समाधान के लिए हां कहता है, तो वह अपने को निर्वसीन कर देता है और उसकी प्रशासनिक शक्ति जिसका उसे दम्भ है समाप्त हो जाती है। लेकिन जब वह ना कहता है, तो उसकी शक्ति और दम्भ दोनों सुरक्षित रहते हैं। और इसका वह पूर्ण लाभ उठाता है, चाहे मनोवैज्ञानिक तरीके से या आर्थिक / भौतिक प्रलोभन से।
सुशासन को सम्भावित करने के लिए प्रदेश में, 2019 से मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1905 योजना का आरम्भ हो रखा है, और जो जनहित्त के दृष्टांत से एक बहुत उत्कृष्ट योजना है। लेकिन हमारे प्रदेश की नौकरशाही और विभाग अधिकारियों ने इस पर सेंध लगा रखी है।
उत्तराखंड का यह दुर्भाग्य है कि, न्याय और नियम परस्त जनता को प्रदेश की छ्द्म सरकार (नौकरशाहों) ने हताश और प्रताड़ित कर रखा है। नौकरशाहों और अधिकारियों के व्यवाहर में जो भाई-भतीजावाद विदित है वह अपनी पराकाष्ठा पर है, और सरकार लाचार है। ऐसा क्यूं ?
सीएम धामी आप एक युवा नेता के रूप में सरकार में आये और प्रदेश की जनता को आपसे अन्य अपेक्षायें हैं लेकिन आपकी नौकरशाही अपने छद्म व्यवाहर से आपको विफल करने में प्रयासरत है। आप केवल मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1905 को और अधिक प्रबल बनायें और नौकरशाहों/ विभाग अधिकारियों को इसके प्रति संकल्पित भाव से काम करने के लिए आदेशित एवं प्रेरित करें। बस इतना यकीन करने से जनता आपकी कायल हो जायेगी। यह मेरा अटल विश्वास है।
]]>हिमालय क्षेत्रों में वातावरण के संतुलन के लिए जल सरंक्षण और जंगलों का रख रखाव एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। आए दिन की प्राकृतिक आपदाओं से हमारे पहाड़ नष्ट हो रहे हैं जिसमें जान माल की क्षति के अलावा वातावरण का असंतुलन एक बड़ी चिंता का विषय है।
स्थानीय स्तर पर बहुत से ग्रामीणों द्वारा छोटे मोटे प्रयत्न किए जाते हैं लेकिन वो इतने बड़े मुद्दे को हल करने के लिए काफी नहीं होते। केंद्र और राज्य सरकार की नीतियां भी या तो स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रख कर नहीं बनाई जाती या अगर अच्छी नीतियां बन भी जाती हैं तो स्थानीय स्तर तक पहुंच नहीं पातीं।
सबसे पहले तो हमें जल, जंगल और जलवायु को स्थानीय मुद्दा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए क्योंकि हिमालय क्षेत्रों में होने वाले किसी भी असुंतलन के परिणाम बहुत दूरगामी होते हैं। फिर चाहे वो मुद्दा ग्लेशियर के जल्दी जल्दी पिघलने का हो, आकस्मिक तेज बारिश के कारण आई बाढ़ का हो या जंगलों के कटने या आग में जलने से हुए वातावरण के नुकसान की बात हो। हर तरह से नुकसान स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं रहता।
इसलिए ये ज़रूरी है कि इन समस्याओं का समाधान भी बड़े स्तर पर ही किया जाना चाहिए जिसमें केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और स्थानीय लोगों की पूरी भागीदारी हो। वातावरण से जुड़ी सारी समस्याएं भी आपस में जुड़ी हैं इसलिए सभी समस्याओं का समाधान भी समग्र रूप से होना चाहिए।
अगर हम पर्यावरण से संबंधित सबसे बड़ी समस्या देखें जिससे पिछले कई सालों से हिमालय के क्षेत्र खासकर उत्तराखंड बुरी तरह ग्रसित हैं वो है आकस्मिक मूसलाधार बारिश से तबाही जिसे हम बादल फटने के नाम से जानते हैं। जहां एक और ये त्रासदी पर्यावरण में हो रहे बदलाओं का नतीज़ा है वहीं दूसरी ओर हमारे द्वारा इनको रोकने के लिए किए गए प्रयासों की कमी है।
इस तरह की अकस्मात बारिश से जान माल के नुकसान की खास वजह है नदी नालों में तेज बहाव से बहता पानी जो जमीन को काटता हुआ चला जाता है और रास्ते में तमाम खेत और मकानों को ढहा कर ले जाता है। मैदानों में बाद इस तरह का नुकसान नहीं करती।
साल दर साल इस तरह के कटाव से पहाड़ और भी कमज़ोर हो गए हैं और हर मानसून के बाद पिछली बार से ज्यादा तबाही हो जाती है। हाल के दिनों में उत्तराखंड के कई इलाकों में भूस्खलन से बहुत भारी नुक्सान हुआ जिसमें मैदानी इलाके जैसे राजधानी देहरादून भी शामिल है। सभी नालों और नदियों में आकस्मिक मूसलाधार बारिश से कई जगह खेती और मकानों को बहुत नुकसान हुआ।
2013 में हुई केदारनाथ की त्रासदी को याद कर आज भी मन सिहर उठता है। इस त्रासदी में लगभग 7000 लोगों की जान गई और कितने ही लोग लापता हो गए। उफनते नालों और नदियों के पानी ने अपने किनारों पर बसे तमाम गांव और शहरों को तबाह कर दिया। 13 से 17 जून तक हुई इस तबाही का मुख्य कारण था भयंकर बारिश की वजह से चोराबरी ग्लेशियर का पिघलना और मंदाकिनी नदी में उफनती बाढ़ का आना।
2021 में भी चमोली जिले में ग्लेशियर पिघलने से आई बाढ में तपोवन जलविद्युत परियोजना को भारी क्षति पहुंची और ऋषिगंगा, धौलीगंगा और अलकनंदा के किनारे बसे गांवों और शहरों में भी बहुत क्षति हुई तथा तपोवन बांध में काम करने वाले मजदूरों सहित 200 से ज्यादा लोग मारे गए।
यहां ये बात महत्वपूर्ण है की अगर तपोवन बांध से पानी के बहाव में अवरोध नहीं हुआ होता तो ये हादसा बहुत बड़ा हो सकता था जिससे काफी दूर तक के इलाकों में जान माल का भयंकर नुकसान होता।
क्या इन सब प्राकृतिक आपदाओं से बचने का कोई उपाय नहीं ? क्या हम इस सबके लिए बेहतर तरीके से तैयार नहीं हो सकते जिससे कम से कम नुकसान हो ? ऐसा क्यों है कि पहाड़ कटने या टूटने से इस तरह की तबाही दुनिया के बाकी देशों में नहीं होती ?
ये समझ पाना इतना मुश्किल भी नहीं है। हमें ये समझना चाहिए कि अगर पानी का बहाव नदी नालों में किसी तरह से कम किया जाए तो पानी की मात्रा और तेजी से जो कटाव होता है वो कम हो सकता है। हमारे पहाड़ तथाकथित विकास के लिए हो रहे कार्यों की वजह से कटते जा रहे हैं जिससे पहाड़ की कच्ची मिट्टी बारिश की मार सह नहीं पाती और भूस्खलन के साथ मलबे के रूप में बह जाती है। बहुत तेज बारिश में पानी के बहाव को रोकने के लिए पेड़ों की कमी और उफनते पानी को रोकने में असमर्थ छोटे छोटे नाले धीरे धीरे विकराल रूप ले लेते हैं।
पानी के बहाव को रोकने या कम करने के लिए और भूस्खलन और जान माल के नुकसान को कम करने के तरीके हैं जिन्हें विश्व में कई देशों ने अपनाया है। ये इस प्रकार हैं –
पहाड़ और खास कर उत्तराखंड के पहाड़ बहुत समय से मौसम की मार झेल रहे हैं और धीरे धीर कमज़ोर होते ये पहाड़ हर बार एक नई आपदा को जन्म देते हैं। हमारी नीतियां ज्यादातर आपदा के प्रबंधन को महत्व देती हैं लेकिन सबसे ज्यादा जरूरत है आपदा को रोकने की। इस सबमें सबकी भागीदारी बहुत जरूरी है, स्थानीय लोगों की, राज्य सरकार की और केंद्र सरकार की।
हर जंगल को न सिर्फ बचाने की बल्कि सही तरीके से और बढाने और घना करने की जरूरत है। इसी तरह प्रधानमंत्री द्वारा सब जगह अमृत सरोवर बनाने का जो आवाह्न है उसे हर गांव, हर जंगल, हर शहर में कारगर करने की भी सख्त जरूरत है।
उदाहरण के तौर पर पुणे में वन विभाग ने इसी वर्ष वहां के पहाड़ों पर बारिश से आने वाली बाढ़ से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए जलाशय और चेक डैम बनाए हैं। वहां तलीज, वेटल और अन्य पहाड़ियों पर बसे लोगों को लगातार भूस्खलन और बाढ़ से नुकसान होता था।
तीन साल पहले स्थानीय लोगों की शिकायत करने पर वन विभाग ने ये कार्य शुरू किया और पहाड़ों पर ऊपर और नीचे सभी जगह तालाब बनाए और कई जगह चेक डैम बनाए जिससे अब पानी के बहाव को पूरी तरह नियंत्रित कर बाढ़ के खतरे से स्थानीय लोगों को मुक्ति मिली।
प्रधानमंत्री ने आज़ादी के अमृत महोत्सव में हर गांव हर शहर में अमृत सरोवर बनाने का आवाह्न किया है। उत्तराखंड वैसे ही पवित्र कुंड और तालों के लिए प्रसिद्ध है लेकिन वो सब प्राकृतिक हैं और बहुत ही कम ताल या कुंड हैं जिन्हें कृत्रिम रूप से बनाया गया है।
आज हर उत्तराखंड के निवासी को बीड़ा उठाने की जरूरत है कि अपने जल और जंगल की सुरक्षा करें, और उन्हें और विस्तृत और विकसित करें, और अधिक से अधिक ताल और कुंड बनने का संकल्प लें, ताकि उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और बढ़े और भविष्य में आने वाली आपदाओं को रोका जा सके।
]]>अजीत डोभाल ने कहा कि हर भारतीय मन में विश्वास करें कि वो यहां सुरक्षित है और किसी पर भी बात आएगी तो सारे उसके लिए खड़े हो जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि दुनिया में कॉन्फ्लिक्ट का माहौल है अगर इससे निपटना है तो अपने देश में हमें एक रहना होगा। उन्होंने कहा कि कुछ लोग भारत का माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वे धर्म और विचारधारा के नाम पर कटुता और संघर्ष पैदा कर रहे हैं, वे देश के बाहर भी फैले हुए और देश को प्रभावित कर रहे हैं। हमें भारत के हर संप्रदाय को यह महसूस कराना है कि हम एक साथ एक देश हैं, हमें इस पर गर्व है और यहां हर धर्म को स्वतंत्रता के साथ माना जा सकता है।
अजीत डोभाल ने कहा कि यहां अलग-अलग जगहों के धर्म गुरु आए हैं। मैं शुक्रगुजार हूं कि सूफी काउंसिल का, जिसने मुझे यहां बुलाया, बोलने का मौका दिया है, कल पता चला तो मैंने कहा कि यह बहुत अच्छी शुरुआत है। अगर हमें इसका मुकाबला करना है तो जमीन पर काम करना होगा, कोई गलतफहमी है तो दूर करनी होगी, घर-घर पैगाम ले जाना होगा कि देश हर धर्म के लिए है और इस देश की तरकी में सबका योगदान है। उन्होंने कहा कि इस माहौल को सही करने की जिम्मेदारी हम सबकी है, इसके लिए नीयत और काबलियत की जरूरत है, नीयत सबके पास है लेकिन काबलियत सबमें नहीं लेकिन आप लोगां में है। इसलिए आपकी जिम्मेदारी बड़ी है। हम आज की लड़ाई आज के लिए और कल के लिए लड़ रहे हैं।
एनएसए डोभाल ने कहा कि आप सबके कई मुरीद है लेकिन आपको मिलकर काम करना चाहिए, संगठन की शक्ति चाहिए। सभी धर्म के गुरु हैं। हम किसी को भी, देश की अखंडता को कुछ नहीं होने देंगे। देश पिछड़ेगा तो हम सब पिछड़ेंगे। गलतफहमियों को दूर करना होगा। हम आज की लड़ाई अपने लिए कम और आने वाली नस्लों के लिए ज्यादा लड़ रहे हैं। देश में भावना पैदा की जाए कि हम किसी को भी देश की एकता के साथ समझौता नहीं करने देंगे।
इस कॉन्फ्रेंस का संचालन करते हुए हजरत सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि देश में जब भी कोई घटना होती है तो हम सब लोग उसकी निंदा करते हैं। लेकिन अब कुछ करने की जरूरत है, हमें कट्टरपंथी संगठनों पर लगाम लगाने के लिए उन्हें प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। चाहे वह कोई भी कट्टरपंथी संगठन हो, अगर उनके खिलाफ सबूत हैं तो उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। नसरुद्दीन चिश्ती ने पीएफआई जैसे संगठनों का जिक्र करते हुए कहा कि अगर ऐसे कोई भी संगठन, जो देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं और देश में लोगों के बीच तनाव पैदा कर रहा हैं, तो उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। साथ ही देश के कानून के मुताबिक उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
इस कार्यक्रम के दौरान सभी लोगों ने सर्वसम्मति से संकल्प लिया कि किसी भी चर्चा और बहस के दौरान यदि किसी भी धर्म के देवी-देवता या पैगंबरों को निशाना बनाया जाता है। तो ऐसे में संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। अब कुछ करने का समय आ गया है। कट्टरपंथी संगठनों पर लगाम लगाना और उन पर प्रतिबंध लगाना समय की मांग है। अगर उनके खिलाफ सबूत हैं तो उन्हें बैन किया जाना चाहिए।
]]>उत्तराखंड में लॉ एंड ऑर्डर सम्बंधी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कानून तोड़ने वालों पर राज्य पुलिस द्वारा सख्त कार्रवाई की जा रही है, अपराधियों के लिए उत्तराखंड में कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि दूसरी बार मुख्य सेवक की शपथ ग्रहण के बाद पुलिस के द्वारा एक स्पेशल ड्राइव चलाई गई जिसके अंतर्गत उत्तराखंड में लोगों का री-वेरिफिकेशन किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम धर्मांतरण के कानून को और अधिक सख्त करने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं।
पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड देव भूमि है। यह अध्यात्म, धर्म और संस्कृति का केंद्र है। यहां औसतन हर परिवार में एक व्यक्ति सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिए समर्पित है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में एक समान कानून लागू हेतु ड्राफ्ट तैयार करने के लिए हम एक कमेटी गठित करने वाले हैं। हम चाहते हैं कि देश के अन्य राज्य भी अपने-अपने राज्यों में कॉमन सिविल कोड लागू करें।
भू कानून संबंधी सवालों पर जवाब देते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमारी सरकार ने इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई है। जल्दी हम राज्य हित में इसपर कानून लाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बहुत भिन्न है, राज्य का अधिकतम क्षेत्र पर्वतीय है, सरकार का प्रयास है कि राज्य में औद्योगीकरण विस्तार और रोजगार का भी ध्यान रखा जाए।
]]>यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक नया इतिहास लिखा है। कई सारे मिथक तोड़ते हुए योगी आदित्यनाथ ने 37 साल बाद भाजपा को यूपी की सत्ता पर लगातार दूसरी बार काबिज कराने का कारनामा कर दिखाया है। भाजपा ने गठबंधन के सहयोगियों के साथ दो तिहाई बहुमत लेकर सत्ता में वापसी की। 37 साल पहले कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में लौटी थी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यूपी में ऐसी उपलब्धि डॉ. संपूर्णानंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह और मायावती जैसे दिग्गजों को भी हासिल नहीं हुई। यूपी के राजनीतिक इतिहास के अनुसार, प्रदेश में 1951-52 के बाद से अब तक डॉ. संपूर्णानंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती मुख्यमंत्री बने, लेकिन इन्हें यह मौका दो अलग-अलग विधानसभाओं के लिए मिला। करीब ढाई दशक पहले उन्हें उत्तर भारत की प्रमुख पीठों में शुमार गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी बनाया गया। इसके बाद से उनके नाम रिकॉर्ड जुड़ते गए। मसलन 1998 में जब वह पहली बार सांसद चुने गए तब वह सबसे कम उम्र के सांसद थे। 42 की उम्र में एक ही क्षेत्र से लगातार 5 बार सांसद बनने का रिकॉर्ड भी उनके ही नाम है। मुख्यमंत्री बनने के पहले सिर्फ 42 वर्ष की आयु में एक ही सीट से लगातार पांच बार चुने जाने वाले वह देश के इकलौते सांसद हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव की दिशा तय करने वाला माना जा रहा था। कई राजनीतिक पंडितों के आंकलनों को गलत साबित करते हुए योगी आदित्यनाथ 37 साल में पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर सत्ता की बागडोर संभाली है। योगी आदित्यनाथ सरकार की वापसी में मुफ्त राशन, कानून व्यवस्था के साथ अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं भी सहायक बनीं। उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में रहने वाले यहां के लोग भी योगी सरकार के कामकाज से संतुष्ट थे।
लोगों की नजर में सुदृढ़ कानून व्यवस्था सरकार की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी, जो पिछली सरकारों में लचर थी। आम तौर पर लोगों का यही कहना था कि योगी सरकार में हर तरह के माफिया का आतंक कम हुआ है। उनकी बुलडोजर बाबा की छवि इसकी तस्दी करती है। राजस्व विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 15 अगस्त 2021 तक 62423.89 हेक्टेयर जमीन को भूमाफिया से मुक्त कराया गया। 144 नए थानों और 50 पुलिस चौकियों की स्थापना के साथ ही 1.38 लाख पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की गई। लखनऊ में पुलिस फोरेंसिक विज्ञान संस्थान की नींव रखी गई, साइबर सेल की स्थापना की गई। इसके अलावा ई-प्रॉक्सीक्यूशन प्रणाली और विधि विज्ञान प्रयोगशाला बनाने जैसे कदमों ने कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में योगी सरकार ने कुछ ऐसे बुनियादी काम किए, जिन्होंने उनमें आत्मविश्वास जगाया। प्रधानमंत्री आवास योजना में मिले आवासों का पंजीकरण महिला के नाम से किया गया। उज्जवला योजना में गैस चूल्हा-सिलिंडर वितरण, शौचालय निर्माण और तीन तलाक-कानून को यूपी में तन्मयता से लागू किया गया। राज्य सरकार की मुख्यमंत्री सुमंगला योजना, बैंकिंग सखी योजना, मिशन शक्ति, पिंक पेट्रोलिंग, पिंक बस, एंटी रोमियो स्कवाड, कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए मुखबिर योजना के साथ ही मुफ्त राशन वितरण जैसे कदमों ने मोदी और योगी को महिलाओं का मसीहा बना दिया। महिलाओं ने जाति, समुदाय और पार्टी लाइन से हटकर भाजपा को वोट दिया।
योगी आदित्यनाथ ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया और गोरखपुर सदर सीट पर भारी अंतर से जीत हासिल की। इसके साथ ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी लगातार जीत के साथ कई अन्य रिकॉर्ड बनाए। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 255 सीटें जीतीं और राज्य में उसके सहयोगियों ने भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली ‘डबल इंजन’ सरकार ने उत्तर प्रदेश के तेजी से विकास के लिए कई कदम उठाए, जिसमें एक्सप्रेसवे के साथ-साथ रक्षा गलियारा और एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाना शामिल है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चुनावी अभियान के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने योगी आदित्यनाथ के काम की जमकर सराहना की। इसके अलावा उन्होंने – ‘यूपी प्लस योगी बहुत है उपयोगी। (यूपी प्लस योगी बहुत उपयोगी है) का नारा दिया। यह सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हुआ।
योगी आदित्यनाथ ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया और गोरखपुर सदर सीट पर भारी अंतर से जीत हासिल की। इसके साथ ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी लगातार जीत के साथ कई अन्य रिकॉर्ड बनाए हैं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 255 सीटें जीतीं और राज्य में उसके सहयोगियों ने भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया। अब उम्मीद की जा रही है कि मुख्यमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल में राज्य के विकास को और आगे बढ़ाएंगे।
शुरुआत में कोरोना के मद्देनजर चुनाव रैलियों पर पाबंदी थी। लेकिन चुनाव के अंतिम दिनों में इसमें ढील दी गई। इसके बाद पीएम मोदी ने आखिरी दिनों में जिस तरह से चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया, उसने भाजपा की जीत की इबारत लिख दी। अल्मोड़ा, श्रीनगर में पीएम मोदी की रैली ने ही इस चुनाव का परिणाम सुनिश्चित कर दिया। दोनों जिलों में भाजपा ने जबरदस्त जीत दर्ज की।
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इस चुनाव ने राज्य में चुनाव को लेकर बने कई मिथक तोड़े लेकिन मुख्यमंत्री के चुनाव हार जाने का मिथक इस बार भी नहीं टूट पाया। खटीमा से पुष्कर सिंह धामी को कड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसे में अब अटकलें लग रही हैं कि अगला सीएम कौन होगा। इस रेस में अनिल बलूनी, अजय भट्ट, धन सिंह रावत के नाम चर्चा में हैं। पिछली सरकार में पार्टी ने तीन सीएम दिए। ये तीनों राजपूत थे, ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि पार्टी इस बार किसी ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेल सकती है। इसमें अनिल बलूनी और अजय भट्ट की दावेदारी मजबूत दिखती है।
राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को पीएम मोदी और अमित शाह का करीबी माना जाता है। वह भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख हैं। ऐसे में मीडिया के जरिये केंद्र और राज्य सरकार के उत्तराखंड में होने वाले कामों को बेहतर ढंग से जनता के बीच में रखने का अनुभव उन्हें वरीयता देता है। हालांकि अजय भट्ट का राज्य में कई विभागों में काम करने का अनुभव है। वह जमीनी तौर पर भी काफी सक्रिय रहते हैं।
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पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व कैबिनेट मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को लेकर भी अटकलों का दौर चल रहा है। वहीं विधायकों में से सीएम पद के लिए उम्मीदवार की बात करें तो धन सिंह रावत का नाम हमेशा चर्चा में रहा है। संगठन पर पकड़ रखने वाले धन सिंह बेहद कड़ा मुकाबला जीते हैं, ऐसे में पार्टी उन पर भी भरोसा जता सकती है।
पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे। भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी शानदार जीत के लिए पुष्कर सिंह धामी को श्रेय दिया। ऐसे में यह भी संभव है कि पार्टी उन्हें फिर से मौका दे सकती है। अभी पार्टी किसी महिला को सीएम पद पर बिठाएगी इसकी संभावना कम ही नजर आती है। हालांकि ऋतु खंडूरी का नाम भी चर्चाओं में है।
भाजपा की इस जीत के शिल्पी पीएम मोदी हैं। उत्तराखंड में महिला वोटरों ने विशेष रूप से मोदी पर भरोसा जताया। इसका परिणाम यह रहा कि विधायकों के खिलाफ नाराजगी के बावजूद भाजपा मोदी के नाम पर चुनाव जीतने में सफल रही। ऐसे में राज्य की बागडोर किसे सौंपी जाएगी इसका फैसला भी पीएम मोदी ही करेंगे। फिलहाल जीतने वाले विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में हैं, इसलिए कुछ दिन और अटकलों का दौर चलता रहेगा।
]]>स्वामी परमात्मानंद सरस्वती
महासचिव, हिंदू धर्म आचार्य सभा
हमारे सनातन और वैदिक धर्म में, जिसे हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है… पर आगे बात करने से पहले हमें कुछ चीजों पर स्पष्टता होनी जरूरी है। लोकप्रिय हिंदू धर्म और चुनाव के समय में जो हिंदू नहीं हैं, वे भी हिंदू और हिंदुत्व की बातें कर रहे हैं। ऐसे में, मैं आपके सामने आम धारणा और मंदिर के साथ उसके कनेक्शन की बात करूंगा और फिर समस्या की चर्चा करूंगा। मैं धर्म शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहता। सनातन धर्म ऐसा नहीं है कि किसी ने एक समय पर इसकी स्थापना की। यह सृष्टि के शुरुआत से है और आखिर तक रहेगा। नया चक्र शुरू होगा तो यह भी शुरू होगा इसीलिए इसे सनातन धर्म कहा जाता है।
यहां राम और कृष्ण के रूप में मनुष्य अवतार हुए हैं। लेकिन उन्होंने किसी समय पर इस धर्म की शुरुआत नहीं की। वे इस धर्म में जन्मे और सनातन धर्म के अनुसार जीवन जिया। इसके जरिए मैं यह बात स्पष्ट करना चाहता हूं, जो काफी लोगों में गलत धारणा के रूप में बस गई है, हमारे सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि यह जीवन जीने का तरीका है, जो सत्य नहीं है। हिंदू धर्म सत्य का दृष्टिकोण है और उसके लिए यह हमें जीवन जीने का दृष्टिकोण और तरीका बताता है लेकिन जीवन जीने का तरीका अपने आप में धर्म नहीं है। ‘वे ऑफ लाइफ’ सत्य के दृष्टिकोण का एक साधन है। सत्य क्या है। भौतिक विज्ञानी पार्टिकल के जरिए सत्य को पा सकता है, केमिस्ट किसी केमिकल में सत्य पा सकता है। हमारे ऋषि और वेदों ने हर सत्य को उजागर किया है। इसे तीन श्रेणियों के मॉडल के जरिए परिभाषित किया गया है। पहला, शास्त्रिक भाषा में मैं जीव हूं और जो कुछ दिख रहा, नहीं दिख रहा वह जगत है। दूसरा, किसी भी आंख ने इस दुनिया को नहीं बनाया है। तीसरा, सृष्टिकर्ता ईश्वर है। सत्य का दृष्टिकोण यह है कि जीव, जगत और ईश्वर ब्राह्मण के रूप में व्यक्त होते हैं।
हम विश्वास की परंपरा नहीं, ज्ञान की परंपरा हैं। जब मैं एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में गया तो वहां लिखा मिला कि ‘लीडर्स फ्रॉम द वेरिएस फेथ्स’…. नहीं, हम ज्ञान की परंपरा वाले लोग है। अगर कोई अध्यापक शिक्षण संप्रदाय को जानता है और इस विजन को विद्यार्थियों तक पहुंचाता है। वेदव्यास जी के पास वो विजन था और उन्होंने इसे अपने शिष्यों को दिया। वह शंकराचार्य और मेरे गुरु को दिया। एक प्रसिद्ध उदाहरण हमारे पास है। जब स्वामी विवेकानंद पूछते हैं कि क्या आपने ईश्वर को देखा है तो रामकृष्ण परमहंस कहते हैं न केवल मैंने देखा है बल्कि मैं आपको भी वह दृष्टि दे सकता हूं। यह विश्वास पर आधारित धर्म में ऐसा संभव नहीं है, यह तभी संभव हो सकता है जब ज्ञान की परंपरा हो।
अध्यापक को अगर अपने विषय का ज्ञान है और वह अपने छात्रों को कम्युनिकेट करता है और विद्यार्थी तैयार हैं तो टीचर निश्चित रूप से विजन को कम्युनिकेट करता है। यमराज नचिकेता से कहते हैं कि इस बात की कोई संभावना नहीं है कि आप इस विजन से बच या छोड़ सकें। इस विजन को हासिल करने के लिए हमारे वेदों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रूप में जीवन दृष्टि सामने रखी है। इसे चतुर्विद पुरुषार्थ कहते हैं और जीवन जीने का तरीका है वर्णाश्रम धर्म और सामान्य धर्म और विशेष धर्म। अंग्रेजी भाषा की अपनी सीमाएं हैं। हर भाषा के पास अपनी सीमाएं हैं। जब समाज के पास विजन, ज्ञान, या अवधारणा नहीं है तो उनके पास दूसरी संस्कृति की चीजों के लिए उचित शब्द नहीं होंगे।
हमारे यहां भी पंजाबी, हरियाणवी से लेकर मलयाली, गुजराती से बंगाली भाषा तक में वाई-फाई के लिए कोई समानार्थी शब्द नहीं है। वाई-फाई और मोबाइल को वाई-फाई और मोबाइल ही कहते हैं क्योंकि हमारे पास इसका कॉन्सेप्ट नहीं है। भ्रम तब पैदा होता है जब संस्कृत भाषा के शब्द की अलग भाषा में व्याख्या की जाती है और उसका भाव नहीं समझ पाते। भाषा का अध्ययन किए बिना अनुवाद करने वालों के लिए परेशानी पैदा हो जाती है। यहां तक कि धर्म रिलिजन का समानार्थी नहीं है। रिलिजन फेथ है। हमारे धर्म शब्द का मतलब होता है ड्यूटी, जिसे आपको करना है।
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आप मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण, महाभारत कुछ भी खोलिए, आपको चैप्टर में मिलेंगे ब्राह्मण धर्म, क्षत्रिय धर्म, गृहस्थ धर्म, वानप्रस्थ धर्म…हम अब भी कहते हैं कि धर्म जीवन जीने का तरीका है इसीलिए विवाह में सहधर्मचारी और सहधर्मचारिणी शब्द आता है। लोग कहते हैं कि स्वामी जी यह मेरी धर्मपत्नी है। धर्म का एक और मतलब सत्य है। पाप के लिए सिन शब्द है लेकिन पुण्य के लिए कोई शब्द नहीं है। लोग कह देते हैं पुण्या… योग के लिए क्या शब्द है योगा… मतलब यह है कि वे हमारे धर्म को नहीं समझते हैं। हिंदू जीवन जीने का तरीका सृष्टि की शुरुआत से मानता आया है कि हर चीज पवित्र है। हमारे लिए जगत भोग्य नहीं है, हमारे लिए जगत पूज्य है।
हमारे यहां भजन है, ओम जय जगदीश हरे…. स्वामी सब कुछ है तेरा, क्या लागे मेरा। यह विजन हमारी संस्कृति में रचा बसा है। आप रामायण देखिए तुलसीदास जी कहते हैं
सिया राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।
अर्थात् पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। आप सभी स्थानीय कवियों को पढ़िए, उन्होंने जो भी धार्मिक कविता, गीत लिखे हैं हमारा मानना है कि सब कुछ दैवीय है। यहां तक कि जिस इमारत में आप रहते हैं वह भी दैवीय है इसलिए आप वास्तु पूजन करते हैं। गर्भाधान संस्कार भी देवत्व से जुड़ा है। हमारे लिए लक्ष्मी जी भी देवत्व हैं। हम यह नहीं कहते कि ईश्वर ने मनुष्यों के उपभोग के लिए दुनिया बनाई है। हम दृढ़ता के साथ मानते हैं कि जो कुछ भी मेरे से जुड़ा है या मेरे पास है वो मेरा नहीं है आखिर में यह ईश्वर का दिया हुआ है। इस व्यवहार को विकसित करने के लिए हम सब कुछ ईश्वर को समर्पित करते हैं। इसीलिए हमारे धार्मिक स्थलों पर हुंडी की अवधारणा मिलती है जो किसी और धर्म में नहीं मिलता है। अगर आप अमेरिका जाइए तो वहां जहां भी मंदिर या धार्मिक स्थल हैं वहां पार्किंग लॉट बना है। किसी दूसरे पब्लिक प्लेस में पहला लॉट दिव्यांग के लिए होता है। लेकिन आप न्यूजर्सी, कैलफोर्निया और अन्य जगहों पर पाएंगे कि वहां कारपूजा पार्किंग स्लॉट बने हैं। अगर हम कार भी खरीदते हैं तो हम इसे ईश्वर को अर्पित करते हैं। जब कोई शिशु जन्म लेता है तो उसे ईश्वर को समर्पित करते हैं। यही व्यवहार हमारे राजाओं का भी रहा है। रामायण की कहानी में यह साफ दृष्टिगोचर होता है। राजा भरत श्री राम की पादुका को सिंहासन पर रखकर राज्य चलाते हैं। इसका भाव यही है कि हे भगवान, यह राज्य आपका है। आप मालिक हो, हम तो मैनेजर हैं। यही वजह है कि पुरी में रथयात्रा राजा खुद सड़क साफ करते हैं। मैं ईश्वर का नौकर हूं। भगवद्गीता में भगवान कहते भी यही कहते हैं…. शासन करना भी ईश्वर को समर्पित करना है। वह ऐसा नहीं सोचता कि राज्य उसका अपना है। जो भी राजा के पास था वह ईश्वर के लिए था क्योंकि वही प्रधान है। राजाओं के पास हाथी थे तो आप दक्षिण भारत में देखिए सभी मंदिरों में भगवान के लिए हाथी हैं। राजा के पास रथ होता था, भगवान के पास सोने का रथ है। राजा के पास कुक था, ईश्वर के पास एक से बढ़कर एक कुक हैं… इस तरह से हमारे मंदिर काफी समृद्ध हैं।
स्वतंत्रता से पहले ऐसा नरैटिव तैयार किया गया था कि हिंदू मंदिरों में भेदभाव होता है। जस्टिस वेंकटचलैया ने बिल्कुल सही कहा है कि स्टेट का काम रेग्युलेट करना है उस पर नियंत्रण करना है। हम दुर्भाग्यशाली हैं कि भारत में भी हिंदू धर्म के अलावा दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल का न तो प्रबंधन होता है और न ही रेग्युलेट किया गया। कई ऐसे केस हैं जिसमें आपको पता चलता है कि जब सरकार ने हिंदुओं के पैसे का गलत इस्तेमाल किया। वह पैसा जो पवित्र है, जो ईश्वर के नाम पर रखा पैसा है, समानता और न्याय के वादे के तहत वे मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले रहे हैं और पैसे का गलत इस्तेमाल हो रहा है… इसका हिंदुओं के अलावा दूसरों के लिए उपयोग हो रहा है।
]]>पिछले कई दिनों से हरक सिंह के ‘सरकने-फरकने’ को लेकर अटकलें लगती रहीं और आखिरकार ‘पुख्ता सबूत’ मिलने के बाद पहले सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट से और फिर भाजपा ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। औसत मुंबइया फिल्म की तरह यह तय लग रहा था कि अब कांग्रेस में हरक की वापसी हो जाएगी। कांग्रेस से आ रहे संकेत भी इसी तरफ इशारा कर रहे थे कि पार्टी हाईकमान से हरीझंडी मिलने के बाद ही हरक दिल्ली के लिए निकले हैं। तोहफे में चार विधायकों को भी साथ ले जाने की खबरें थीं। सोमवार को तय पटकथा के अनुसार उन्हें कांग्रेस ज्वाइन करनी थी। लेकिन तभी दक्षिण भारतीय फिल्म वाला ट्विस्ट आ गया और अब हरक त्रिशंकु की तरह भाजपा और कांग्रेस के बीच में ‘लटके’ नजर आ रहे हैं। 24 घंटे में ऐसा क्या हुआ कि राजनीति के स्वयंभू मौसम विज्ञानी हरक सिंह की गणित गड़बड़ा गई।
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यही इस कहानी का सबसे दिलचस्प हिस्सा है। दरअसल, यह तो तय था कि हरक सिंह की कांग्रेस में वापसी को लेकर एक वर्ग का तीखा विरोध है। हरीश रावत को अब भी वह टीस कचोटती है कि हरक ने अब भाजपाई हो चुके पूर्व कांग्रेसियों के साथ मिलकर उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची। वह लगातार यह कह रहे हैं कि हरक ‘लोकतंत्र की हत्या’ के दोषी है। इसी प्वाइंट पर वह हरक की वापसी पर वीटो लगा रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि अगर पार्टी हाईकमान चाहेगा तो उन्हें हरक की कांग्रेस में वापसी से परहेज नहीं है।
प्रीतम हैं हरक की वापसी के रणनीतिकार
हरक की वापसी की पटकथा कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान को भी सामने लाती है। हरक कांग्रेस में आएं इसका प्रयास पूर्व पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि उनकी और हरक सिंह की इसे लेकर कई दौर की बातचीत हुई। इसके लिए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव को भी भरोसे में लिया गया था। हरक को रणदीप सिंह सुरजेवाला से मिलाने वाले प्रीतम सिंह ही हैं। अब क्योंकि एक वीडियो बाजार में आ चुका है इसलिए यह बात काटी नहीं जा सकती। यही वीडियो हरक सिंह को भाजपा से बाहर करने का आधार बना। जानकार भी मानते हैं कि प्रीतम सिंह हरक की वापसी के साथ कांग्रेस में हरीश रावत विरोधी पक्ष को मजबूती देना चाहते थे, क्योंकि उनके साथ कुछ और विधायक भी कांग्रेस में आ रहे थे। ऐसे में चुनाव के बाद की परिस्थितियां प्रीतम सिंह के लिए मुफीद बन सकती थीं।
‘घर वापसी’ से पहले इमोशनल कार्ड
कांग्रेस में वापसी का इंतजार कर रहे हरक सिंह सोमवार सुबह टीवी चैनलों पर फूट-फूटकर रोते हुए दिखाई दिए। उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मुझसे एक बार भी बात नहीं की। मुझे मंत्री बनने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, मैं सिर्फ काम करना चाहता था। मैं इतने दिनों से घुटन में जी रहा था। अब उत्तराखंड के लोगों के लिए खुलकर काम करूंगा।’ हरक सिंह रावत ने दावा किया कि उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बन रही है। मैं कांग्रेस ज्वाइन नहीं भी करता तो भी कांग्रेस की सरकार आती। उत्तराखंड के लोगों ने मन बना लिया है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार लानी है। मैं भी कांग्रेस की सरकार लाने के लिए काम करूंगा। हरक ने दावा किया कि कांग्रेस के नेताओं से उनकी बात हुई है, हालांकि अभी सोनिया गांधी से वह नहीं मिले हैं।
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]]>लैंसडाउन में महिला उम्मीदवार का ‘गेम प्लान’
उधर, हरक का सारा जोर इस बात पर था कि उनकी बहू अनुकृति गुसाईं को लैंसडाउन से टिकट मिले। खुद वह कोटद्वार छोड़कर किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ने को तैयार थे। मसलन, रुद्रप्रयाग, केदारनाथ, डोईवाला। हुआ यूं कि कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे पर सहमति बनने के बावजूद कुछ सीटों पर एकराय नहीं थी। इनमें सबसे दिलचस्प थी लैंसडाउन विधानसभा। सूत्र बताते हैं कि पार्टी अध्यक्ष गणेश गोदियाल और हरीश रावत इस सीट से स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष रघुबीर सिंह बिष्ट का नाम भेजना चाहते थे। लेकिन हरक के साथ बन रही ट्यूनिंग के बाद प्रीतम सिंह ने इसमें ज्योति रौतेला का नाम जुड़वाया। पर्दे के पीछे से कोशिश इस बात की हो रही थी कि जिले से इस सीट को महिला उम्मीदवार को दिलवा दिया जाए। ज्योति रौतेला को हरक सिंह का समर्थक माना जाता है। उन्होंने ही ज्योति को साल 2012 में चुनाव लड़वाया था। गणित यह थी कि हरक सिंह की वापसी की शर्त में इस सीट पर अनुकृति को टिकट देना शामिल रहे। ऐसे में ज्योति रौतेला अनुकृति को मैदान में उतारने का विरोध नहीं करतीं। साथ ही महिला उम्मीदवार की जगह दूसरी महिला को चुनाव लड़ाने पर कोई ऐतराज नहीं होता। वहीं अगर सिर्फ रघुबीर सिंह का नाम आगे बढ़ाया जाता तो उन्हें हटाकर अनुकृति को टिकट दिलाना मुश्किल होता। हरक सिंह जिस टीम के साथ कांग्रेस में आना चाहते हैं, वह भी चुनाव बाद उनके गुट को मजबूती देती। यही वजह है कि हरीश रावत ने हरक की कांग्रेस में वापसी पर अड़ियल रुख अपनाया है। वह चाहते हैं कि वापसी की टर्म एंड कंडीशन पहले तय कर ली जाएं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा से बेदखल हो चुके हरक को एक सीट की कुर्बानी भी देनी पड़ सकती है, क्योंकि अब वह सियासी मोलभाव करने की मजबूत स्थिति में नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हरक की कांग्रेस में वापसी किन शर्तों के साथ होती है।