आखिरकार कांग्रेस की तरफ ‘फरक’ गए हरक, अब डोईवाला में होगा सबसे बड़ा मुकाबला !

आखिरकार कांग्रेस की तरफ ‘फरक’ गए हरक, अब डोईवाला में होगा सबसे बड़ा मुकाबला !

सोमवार को हरक सिंह के कांग्रेस में शामिल होने की सूचना लगभग कंफर्म है। अपने लिए दो तय सीटों की शर्त पर वह भाजपा से कुछ और विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में ले जा रहे हैं। फौरी तौर पर हरक का यह दांव भाजपा के लिए बड़ा झटका लग रहा है। इससे चुनाव से ऐन पहले पार्टी का मोमेंटम निश्चित तौर पर बिगड़ेगा।

कहते हैं सियासत में तब तक कुछ फाइनल नहीं होता, जब तक हो न जाए। लेकिन चुनावी महासमर से पहले सियासी तापमान बढ़ाने के लिए अटकलें ही काफी हैं। अब खबर है कि सियासी सौदेबाजी के माहिर माने जाने वाले कोटद्वार के विधायक और पांच साल भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे डा. हरक सिंह रावत को आखिरकार 2022 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले ‘प्लान बी’ अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। सोमवार को उनके कांग्रेस में शामिल होने की सूचना लगभग कंफर्म है और अपने लिए दो तय सीटों की शर्त पर वह भाजपा से कुछ और विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में ले जा रहे हैं। फौरी तौर पर हरक का यह दांव भाजपा के लिए बड़ा झटका लग रहा है। इससे चुनाव से ऐन पहले पार्टी का मोमेंटम निश्चित तौर पर बिगड़ेगा।

लंबे समय से अपनी बहू अनुकृति गुसाईं को लैंसडाउन विधानसभा से सियासत में लांच करने की कोशिश कर रहे हरक सिंह भाजपा हाईकमान को साध नहीं पाए। पार्टी ने भी साफ कर दिया कि एक परिवार से दो लोगों को टिकट नहीं दिया जाएगा। इसके बाद हरक सिंह के पास कांग्रेस में ही जाने का विकल्प था। हालांकि हरीश रावत हरक सिंह को कांग्रेस में वापस लिए जाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन टीम के साथ आ रहे हरक को नकार कर वह पार्टी में अपने खिलाफ विरोध खड़ा नहीं होने देना चाहते। दूसरा यह कि हरीश रावत के लिए अब हरक एक बड़ा हथियार हैं। वह जीतने और हारने दोनों स्थितियों में उनके ही काम आएंगे।

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हरक सिंह कांग्रेस ज्वाइन करेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं था। शनिवार को हुई भाजपा कोर कमेटी और चुनाव समिति की बैठकों से भी वह नदारद थे। हालांकि उनका कहना था कि पार्टी से कोर कमेटी की बैठक के लिए निमत्रण नहीं मिला था। इससे पहले कैबिनेट बैठक के दौरान कोटद्वार में मेडिकल कालेज के मुद्दे पर इस्तीफा देने का ऐलान कर चुके हरक मानमनोव्वल के बाद पार्टी में बने रहे।

हरक सिंह के लिए दो बर्थ ‘कंफर्म’

हरक सिंह के कांग्रेस में जाने का मतलब साफ है कि वह कोटद्वार से चुनाव नहीं लड़ेंगे और लैंसडाउन से उनकी बहू को टिकट मिलेगा। ऐसे में हरक सिंह को कांग्रेस किस सीट से टिकट देगी यही सबसे दिलचस्प सवाल है। तो कुल जमा बात यह है कि हरक सिंह को डोईवाला से मैदान में उतारा जा सकता है। इससे कांग्रेस एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। पहला यह कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरक सिंह की सियासी अदावत जगजाहिर है। इसलिए हरक सिंह यहां पूरा जोर लगा देंगे। दूसरा यह कि राज्य में भाजपा के बड़े चेहरे और सबसे लंबे समय तक सीएम रहे त्रिवेंद्र सिंह को घर में घेरकर बड़ा संदेश दिया जा सकता है। यहां उन्हें एक ऐसे वर्ग का भी समर्थन मिल सकता है, जो भाजपा में होते हुए भी त्रिवेंद्र सिंह रावत का धुर विरोधी है। इसलिए हरक सिंह के लिए यह सीट ऑफर की जा सकती है। वह खुद भी यहां से लड़ना चाहते हैं। हरक खुद भी कोटद्वार से चुनाव नहीं लड़ना चाहते, क्योंकि उन्हें इस सीट पर खतरा दिख रहा है।

त्रिवेंद्र सिंह भी कर रहे पूरी तैयारी

भाजपा ने अभी अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं की है। यह तो तय है कि भाजपा इस बार कई सीटों पर चेहरों को बदलने जा रही है। इसके अलावा कुछ बड़े चेहरे की सीटों को बदला भी जा सकता है। भाजपा के लिए ‘एक परिवार एक टिकट’ की नीति को लागू करना इसलिए आसान हो गया कि हरक के अलावा कोई दूसरा विधायक इसके लिए जोर नहीं लगा रहा था और यशपाल आर्य अपने बेटे के साथ पहले ही कांग्रेस में चले गए हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव लड़ने पर सस्पेंस की बातें बनावटी लगती हैं। त्रिवेंद्र सिंह खुद इस बार चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में पार्टी के लिए उन्हें इनकार करना मुश्किल होगा। सीएम पद से हटाने के बाद त्रिवेंद्र सिंह ने संगठन में किसी पद के लिए जोर नहीं लगाया। अमूमन सीएम पद से हटाने पर पार्टी उपाध्यक्ष जैसा पद दिया जाता है। इसलिए उनका चुनाव लड़ने का दावा मजबूत दिखता है। वह लगातार अपने विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय भी हैं।

कांग्रेस धामी को नहीं त्रिवेंद्र को मानती है खतरा!

दरअसल, कांग्रेस भी पुष्कर सिंह धामी से बड़ा खतरा त्रिवेंद्र सिंह रावत को मानती है। ऐसे में पांच साल तक भाजपा सरकार में मंत्री रहे हरक सिंह के कांग्रेस में आकर भाजपा पर किए जाने वाले हमले तीखे होंगे। वहीं सियासी समझ रखने वाला एक बड़ा वर्ग मानता है कि अगर भाजपा त्रिवेंद्र सिंह को दोबारा मैदान में उतारती है तो क्या इसका यह मतलब नहीं है कि आगे उनके लिए कुछ बड़ा सोचा जा रहा है। कई लोग मानते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह को पद से हटाना भाजपा की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक थी। उस समय तक त्रिवेंद्र सिंह का एक वर्ग के विरोध के अलावा भाजपा के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। लेकिन भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन कर विरोधियों को मौका दे दिया। अब कांग्रेस भी चाहती है कि भाजपा से किसी बड़े और अनुभवी चेहरे को न जीतने दिया जाए। इससे स्पष्ट जनादेश न मिलने की स्थिति में पुष्कर सिंह धामी के मुकाबले में हरीश रावत जैसे अनुभवी नेता के चेहरे पर समर्थन जुटाना आसान होगा।

 

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