पहले हमारे गांव में 30 से 40 परिवार ही पनीर बनाते थे लेकिन अब सभी परिवार पनीर का व्यवसाय कर रहे हैं। हर परिवार से दो से चार किलो प्रतिदिन पनीर का उत्पादन होता है जिससे कि यहां के लोगों के जीवन में काफी सुधार हो रहा है और यहां के युवा रोजगार की तलाश में गांव से बाहर नहीं जाते और वह अपने ही गांव में रहकर रोजगार कर रहे हैं।
मसूरी – अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाह हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी आसान हो जाती है ऐसी ही कहानी है मसूरी के पास के गांव रौतू की बेली की। यह गांव मूसरी से 17 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मसूरी से निकट होने के कारण पहले यहां के लोग अपनी साग सब्जी, फल और दूध बेचने के लिए मसूरी और देहरादून आया करते है लेकिन अब यहां के लोगों ने एक नई मुहिम के तहत पनीर तैयार करना शुरू किया है और पनीर को बेचकर हर परिवार प्रतिमाह 20 हजार रूपये से लेकर 35 हजार रूपये की आमदनी कर रहा है।
इस गांव के ऊपर बहुत अधिक जंगल होने के कारण यहां के लोग अपने पशुआंे के लिए इसे चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसी कारण से इस गांव के ज्यादातर लोग पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं। जब यहां के लोगों से पूछा गया कि यहां कितने लोग पनीर का उत्पादन करते हैं तो उन्होंने बताया कि पहले हमारे गांव में 30 से 40 परिवार ही पनीर बनाते थे लेकिन अब सभी परिवार पनीर का व्यवसाय कर रहे हैं। वह बताते हैं हर परिवार से दो से चार किलो प्रतिदिन पनीर का उत्पादन होता है। जिससे कि यहां के लोगों के जीवन में काफी सुधार हो रहा है और यहां के युवा रोजगार की तलाश में गांव से बाहर नहीं जाते और वह अपने ही गांव में रहकर रोजगार कर रहे हैं। इस गांव में 200 से ज्यादा परिवार निवास करते हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि वह पहले दूध बेचने मसूरी और देहरादून जाया करते थे लेकिन जब से उन्होंने पनीर का उत्पादन करना शुरू किया है उनका पनीर मसूरी में ही समाप्त हो जाता है। इससे उनका समय भी बचता है और पैसों की बचत होती है। इस प्रकार से उनको इससे काफी लाभ हो रहा है। अगर उत्तराखंड के अधिकतर गांवों के लोग ऐसी ही मेहनत और लगन से काम करेंगे तो हमारा राज्य आत्मनिर्भरता की ओर शीघ्र ही बढ़ जायेगा।
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