डॉक्टर बनने जा रही बेटी ने पर्वत चोटियों पर चढ़ने का शौक क्यों पाल लिया, यह रिस्क नहीं लेना चाहिए, पिता की इस उधेड़बुन के बीच ही देवयानी सेमवार ने किलमिंजारो पर सबसे बड़ा तिरंगा फहरा दिया। इस शिखल से फिर हिमालय के नज़दीक पहुंचने पर देवयानी की दुनिया पूरी तरह बदल गई।
उत्तरकाशी के मुखबा गांव की ये लड़की तेज़ बर्फीली हवाओं का सामना करने का माद्दा रखती है। बीएमएस की पढ़ाई कर रही देव्यानी इस समय उत्तरकाशी में ही नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से जुड़ी हैं और पहाड़ की चोटियों को पार करने के अपने मिशन पर काम कर रही हैं। वर्ष 2017 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से माउंटेनियरिंग का प्रशिक्षण लेने के साथ ही उसने तय कर लिया था कि सभी सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करना है।
पिछले वर्ष जुलाई में दक्षिण अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलमिंजारो को फतह करने के बाद देव्यानी के हौसले को दुनिया ने जाना। दक्षिण अफ्रीका की चोटी पर सबसे बड़ा तिरंगा फहराने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया। इस टीम में देवयानी अकेली लड़की थी। वह कहती है कि इस समिट के दौरान उनकी टीम के सदस्यों ने कभी ये नहीं महसूस होने दिया कि वह एक लड़की हैं, उन्होंने अपनी हर जिम्मेदारी बराबरी के साथ निभाई।
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद देवयानी का देहरादून से उत्तरकाशी तक ज़ोरदार स्वागत हुआ। उन्हें उत्तरकाशी का बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का ब्रांड एम्बेस्डर भी बनाया गया है। देवयानी बताती हैं कि उनकी मां उनके इस सपने को पूरा करने के लिए हर पल साथ थीं। लेकिन पिता को लगता था कि जब वो डॉक्टर बनने जा रही है तो पहाड़ चढ़ने का शौक क्यों पाल लिया। उसे यह रिस्क नहीं लेना चाहिए। लेकिन किलमिंजारो से उतरकर हिमालय के नज़दीक पहुंचने पर देवयानी की दुनिया पूरी तरह बदल गई थी। अब वही पिता गर्व से फूले नहीं समा रहे थे। बेटी की कामयाबी पर लोग उन्हें फ़ोन कर बधाइयां दे रहे थे। अब देवयानी ऑस्ट्रेलिया में अपने अगले समिट की तैयारी कर रही हैं बीएमएस के साथ पर्वतारोहण का ये सपना पूरा करना मुश्किल है, जिसे इस युवा लड़की ने सच कर दिखाया है।
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