चीन से सटी सीमा पर भारतीय सेना, आईटीबीपी और एसएसबी की हलचल बढ़ने के बाद इस साल सीमांत गांवों में भी खासी हलचल है। गुंजी, लिपुलेख सहित कई अन्य स्थानों पर स्थानीय लोगों के रेस्टोरेंट खुले हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है। इसके अलावा लिपुलेख तक सड़क बनने के बाद आवागमन भी बढ़ा है। ऐसे में सीमा से सटे व्यास घाटी के गांवों में प्रवास पर गए अधिकांश परिवार व्यापारिक गतिविधियों के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ही रहेंगे। यह पहला मौका है, जब चीन सीमा पर स्थित गांवों में 10-12 फुट बर्फ होने के बाद भी रौनक है।
भारत और चीन के बीच लद्दाख में कई महीनों से विवाद चल रहा है। चीन जैसे चालाक पड़ोसी से हर समय घुसपैठ का खतरा बना हुआ है। इसी खतरे को देखते हुए सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान उत्तराखंड में चीन से लगने वाली सीमा पर डटे हुए हैं। अभी तक सुरक्षा बल पहाड़ों की ऊंची चोटियों में भारी बर्फबारी होने के कारण अपना ठिकाना बदल लेते थे लेकिन इस बार ऐसा है। हिमवीर सीमा की सुरक्षा में डटे हुए हैं।
चीन सीमा पर इस साल शीतकाल में पहली बार समुद्र तल से 10,000 से 16,000 फुट तक की ऊंचाई पर आईटीबीपी के जवान तैनात रहेंगे। ये जवान यहां से चीन की हर गतिविधि पर पैनी नजर बनाए रखेंगे। जवानों के लिए इन चैकियों पर हेलीकॉप्टर से गर्म कपड़े, रसद, डीजल, पेट्रोल सहित अन्य सामग्री पहुंचाई जा रही है। इस बार दुंग, बुगडियार और रिलकोट चोकियों पर आईटीबीपी के जवान तैनात किए गए हैं। 10 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित रिलकोट, 8500 फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर बुगडियार और समुद्रतल से 16,000 फुट की ऊंचाई पर दुंग चौकियों पर चीन सीमा के करीब ये जवान तैनात रहेंगे।
इसके अलावा व्यास वैली के लिपुलेख में समुद्रतल से 14 हजार फुट और दारमा वैली की अंतिम चौकी दावे में भी 15 हजार फुट की ऊंचाई पर जवान तैनात हैं। पिछले साल तक ठंड बढ़ने के बाद जवानों को मिलम और गुंजी भेज दिया जाता था, लेकिन इस साल चीन से बढ़ रहे तनाव के बाद जवानों को शीतकाल में वहीं तैनात रहने के आदेश जारी हुए हैं। पिथौरागढ़ में भारत की 150 किमी सीमा चीन से लगती है। चीन के साथ विवाद बढ़ने के बाद आईटीबीपी के साथ-साथ भारतीय सेना के जवान सीमा पर हर गतिविधि पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।
चीन पर पैनी नजर रखने के लिए लिपुलेख में एचडी (हाई डेफिनेशन) कैमरे लगाए हैं। सेना के अलावा यहां अन्य लोगों के आने-जाने पर मनाही है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित दुंग, बुगडियार, रिलकोट, लिपुलेख और दावे में माइनस 15 से माइनस 20 डिग्री तापमान रहता है और शीतकाल में 12 से 15 फुट तक बर्फबारी होती है। इस कारण जवानों को निचले इलाकों में शिफ्ट कर दिया जाता था। यह पहला मौका है कि इस बार शीतकाल में हिमवीर अपनी पोस्टों पर डटे हुए हैं।
चीन से सटी सीमा पर भारतीय सेना, आईटीबीपी और एसएसबी की हलचल बढ़ने के बाद इस साल सीमांत गांवों में भी खासी हलचल है। गुंजी, लिपुलेख सहित कई अन्य स्थानों पर स्थानीय लोगों के रेस्टोरेंट खुले हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है। इसके अलावा लिपुलेख तक सड़क बनने के बाद आवागमन भी बढ़ा है। ऐसे में सीमा से सटे व्यास घाटी के गांवों में प्रवास पर गए अधिकांश परिवार व्यापारिक गतिविधियों के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ही रहेंगे। यह पहला मौका है, जब चीन सीमा पर स्थित गांवों में 10-12 फुट बर्फ होने के बाद भी रौनक है।
धारचूला के व्यास घाटी में कई गांव हैं। यहां पर अनेक समुदाय के लोग हर साल भेड़ों और अन्य मवेशियों के साथ अप्रैल में प्रवास पर अपने इन्हीं मूल गांवों में जाते हैं। कुछ परिवार वहां पर जड़ी बूटी की खेती करते हैं। यह लोग बर्फबारी शुरू होते ही फसलों को समेटकर अक्टूबर के अंत तक वापस लौट आते हैं। कुटी में 15 फुट तक बर्फ पड़ने से वहां से सभी परिवार धारचूला लौट आते हैं। केवल गुंजी ही ऐसी जगह है, जहां शीतकाल में भी 10 से 15 परिवार उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस गांव में रहते हैं।
इस साल सरहद पर चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिशों के बाद लिपुलेख में भी सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद की गई है। चीन से लगने वाली सभी अग्रिम चौकियों में पिछले वर्षों की तुलना में सेना और अर्द्धसैनिक बलों के अधिक जवान तैनात किए गए हैं। लिपुलेख तक बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन यानी बीआरओ की गतिविधियां भी बढ़ी हैं। बीआरओ जिन सड़कों को निर्माण कर रहा है, वहां सैकड़ों लोग मजदूरी कर रहे हैं। यही वजह है कि प्रवास पर गए 60 प्रतिशत लोगों ने शीतकाल में भी मूल गांवों में ही रुकने का मन बनाया है।
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