पिछले साल कोरोना काल में लॉकडाउन लगा तो बहुत से लोग गांव लौट गए। इस बार भी हालात बिगड़े तो उत्तराखंड के बहुत से लोग गांव में ही जम गए। अगर आप भी गांव में रहकर कमाई के बारे में सोच रहे हैं तो ऑर्गेनिक खेती एक बढ़िया विकल्प हो सकता है। इसमें कम समय में आपको आय भी होने लगती है। तीलू रौतेली पुरस्कार विजेता बबीता रावत ने आर्गेनिक खेती से युवाओं के सामने एक मिसाल पेश की है।
उत्तराखंड में पारंपरिक खेती कितना किफायती है, इसका आकलन करना मुश्किल है। कड़ी मेहनत के बाद उपज वाजिब मूल्य नहीं दे पाती, यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में लोगों का मोह खेती से भंग हुआ है। पहाड़ों पर अब बंजर खेत ज्यादा नजर आते हैं। …तो क्या पहाड़ों पर अब खेती नहीं होती, इस सवाल का जवाब है…होती है। पर अब जो लोग खेती कर रहे हैं, वह नई तकनीक अपना रहे हैं।
बबीता रावत रुद्रप्रयाग जिले के उमरौला सौड़ गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने हिंदी से एमए किया है। बीए-सेकेंड ईयर में रहने के दौरान एसबीआईआरसेटी ने उनके यहां मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी थी। उस समय बबीता को उद्यान अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी से मिलने का मौका मिला। सरकार द्वारा खेती और इससे जुड़े क्षेत्र को लेकर चल रही योजनाओं के बारे में उन्हें जानकारी मिली। बबीता को समझ में आ गया कि अगर इस काम को शुरू किया जाए तो घर पर रहते हुए ही 2-3 महीने में आय शुरू हो सकती है। बबीता रावत कहती हैं कि लोग वर्षों से पहाड़ों में पारंपरिक खेती करते आ रहे हैं लेकिन उसका फायदा नहीं मिलता। उसे जानवर भी खा लेते हैं। यानी नुकसान होता है, फायदा नहीं, फिर भी सालभर खेतों में काम करते रहते हैं। मैंने सोचा कि क्यों न इसे दूसरे तरीके से लिया जाए, जिससे अच्छी इनकम हो। इसके लिए मैंने सबसे पहले सब्जी का काम शुरू किया। रासायनिक तरीके से सब्जी तो खूब ऊगाई जाती है लेकिन मैंने ऑर्गेनिक सब्जी की खेती शुरू की।
यहां ऑर्गेनिक खेती का काफी स्कोप है। अभी लोग कम जानते हैं पर धीरे-धीरे फायदे भी समझने लगेंगे तो रेट भी अच्छे मिल सकते हैं। इसके साथ-साथ मैंने मशरूम उत्पादन के लिए एसबीआईआरसेटी रुद्रप्रयाग से ट्रेनिंग ली। बबीता बताती हैं कि 25 दिन में मशरूम उगना शुरू हो जाता है तो मुझे पैसा आना भी शुरू हो गया। मुझे प्रोत्साहन मिला कि यह काम सही है और फिर पूरे जोश के साथ उन्होंने ऑर्गेनिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाया। 2018 से उन्होंने खेती शुरू की थी। आज वह अपने काम से खुश हैं।
ऑर्गेनिक खेती महंगी होती है?
इस सवाल पर बबीता ने कहा कि यह लोगों की गलतफहमी है बल्कि यह तो रासायनिक खेती से भी सस्ती होती है क्योंकि ऑर्गेनिक खाद तो आप घर पर ही बना सकते हैं। बबीता इस समय टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, कद्दू, करैला समेत सभी सब्जियां उगाती हैं। रेट के सवाल पर बबीता ने कहा कि यह समस्या है कि बाजार की रासायनिक तरीके से उगाई गई सब्जियों की तरह उन्हें भी रेट वही मिलता है। अभी गांव के लोग ऑर्गेनिक चीजों की महत्ता कम समझते हैं जबकि शहरों में यह एक अलग क्षेत्र या कहिए कि विकल्प के रूप में उभर चुका है। बबीता को भले ही ऑर्गेनिक का अलग से फायदा नहीं मिलता पर वह कहती हैं कि फिलहाल ग्राहकों के लिए तो यह अच्छी बात है। इससे लोगों को ऑर्गेनिक चीजों का महत्व भी समझ में आने लगेगा।
ऑनलाइन बेचने की तैयारी
रेट अच्छा मिले और गांव से निकलकर इस ऑर्गेनिक उत्पाद को ऑनलाइन बेचने के बारे में पूछे गए सवाल पर बबीता ने कहा कि हां, इस पर सोच रही हूं। जल्द ही इस दिशा में आगे बढूंगी। उन्होंने कहा कि गांव के लोगों को ऑर्गेनिक चीजों का महत्व समझाना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है पर शहर में लोग जानते हैं। परिवार से बबीता को पूरा सपोर्ट मिला। 7 भाई-बहनों के परिवार में बड़ी होने के कारण बबीता को परिवार की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ी क्योंकि उनके पिता को हार्ट संबंधी समस्या है। पढ़ाई करते ही उन्हें लगा कि छोटे भाई की पढ़ाई का भी खर्च निकालना होगा। कम समय में कमाने के लिए उन्होंने ऑर्गेनिक खेती शुरू की। शुरू में लोगों को भरोसा नहीं था पर जल्द ही फायदा समझ में आने लगा। पैसा आने लगा तो हौसला मिला। मम्मी-पापा और पूरे परिवार का सपोर्ट मिला जिसकी बदौलत वह अपने काम को लगातार आगे बढ़ा रही हैं।
यूथ फाउंडेशन ने बदल दी जिंदगी
बबीता कहती है कि उन्हें अब तक मिली सफलता का श्रेय काफी हद तक यूथ फाउंडेशन को जाता है। वह कहती हैं कि मैंने यूथ फाउंडेशन से ट्रेनिंग ली हुई है। आज भले ही मैं पुलिस या सेना में नहीं जा सकी पर वहां से जो शिक्षा मिली, उससे कदम-कदम पर मार्गदर्शन होता है। जब यूथ फाउंडेशन का लड़कियों का पहला कैंप शुरू हुआ था, उस पहली बैच से बबीता हैं। उन्होंने कहा कि कई लोग तो ट्रेनिंग बीच में ही छोड़कर भाग जाते थे। लेकिन मैं पॉजिटिव एनर्जी लेकर बाहर निकली। वहां से मेरा पर्सनालिटी डिवेलपमेंट हुआ। वह चाहती हैं कि उत्तराखंड के युवाओं को कृषि की तरफ ले जाना चाहिए। लॉकडाउन के दौरान मुझे एहसास हुआ कि पहाड़ों में कितने लोग बेरोजगार हैं। उस समय एक दिन में 15-20 लोगों के फोन आते थे और पूछते थे बबीता जी बताइए हम पैसा कैसे कमाएं।
तीलू रौतेली पुरस्कार ने बढ़ाया सम्मान
बबीता इस बात से बहुत खुश हैं कि उनके काम को जिला प्रशासन ने सराहा। उत्तराखंड का प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार भी मिला है। वह कहती हैं कि ऑर्गेनिक खेती का काम अच्छा है। इसमें नाम और पैसा भी है। ऐसे में युवा अगर अपने गांव की ओर लौटते हैं कि तो वे ऑर्गेनिक खेती कर सकते हैं। आज उत्तराखंड के गांव खाली हो रहे हैं, तो युवाओं के आने से ही उसमें रंग भरेगा। बबीता फ्यूचर में मशरूम उत्पादन का बड़ा प्लांट लगाना चाहती हैं। वह कहती हैं कि मेरा सपना है कि ऑर्गेनिक सब्जियों का ऐसा मार्केट तैयार करूं जिससे दूसरों को भी अच्छा रेट मिले।
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