प्राकृतिक आपदाओं से आखिर कब क्या सबक लेंगे हम

प्राकृतिक आपदाओं से आखिर कब क्या सबक लेंगे हम

प्रकृति जब अपना सौम्य रूप त्याग कर रौद्र रूप धारण करती है तो वो ऐसा विनाश फैलाती है जिससे बचना लगभग नामुमकिन होता है। ऐसे विनाश को प्राकृतिक आपदा कहते है। ऐसी आपदा में मनुष्य के हाथ में कुछ नही होता वह सिर्फ विवश होकर अपने विनाश को देखता रहता है। उत्तराखंड का अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय है जिस कारण यहां भूकंप, बाढ़ जैसी अन्य कई सारी प्राकृतिक घटनाएं होती रहती है। इन घटनाओं का मुख्य कारण वृक्षों और भूमि का कटान है। जाहिर सी बात है पर्वतीय क्षेत्रों में विकास के लिए वृक्षों, जंगलों और भूमि का कटान हो रहा है लेकिन मनुष्य को वनों और भूमि को नष्ट करने से क्या हानि हो रही है इसके बारे में पता नहीं है और इसका खामियाजा हमें प्राकृतिक आपदा के रूप में भुगतना पड़ता है।

उत्तराखंड प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ राज्य है। यहां प्रत्येक दूरी पर बसा गांव, कस्बा, शहर अनोखी खूबसूरती बयां करता है। यहां एक तरफ बर्फ से ढकी पर्वत शृंखलाएं है वही दूसरी तरफ सुदूर तक विस्तृत हरी-भरी वनराजियां है। एक ओर जहां सुन्दर फूलों की घाटियां हैं। वहीं दूसरी ओर सूखे-नंगे कठोर पहाड़ नदियों और झरनों का कल-कल निनाद यहां सभी के मन को मोह लेता है। लेकिन यहां का दर्द हमेशा इन खूबसूरती पर भारी रहा है। जितना सुंदर यहां का वातावरण, रहन सहन है उससे कई कष्टकारी यहां की वे आपदाएं है जो अक्सर यहां बसे लोगों को बड़े घाव दे जाती है। जब उत्तराखंड की सौम्यता मानवता के क्रियाकलापों या यूं कहें कि मानवता के द्वारा किये गए विकास रूपी विनाश से रौद्र रूप धारण करती है तो भयंकर तबाही मचाती है। बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन, चक्रवात, सूखा, आंधी-तूफान, सुनामी, आग लगना, बादल फटना आदि मुख्य प्राकृतिक आपदाएं हैं। इन आपदाओं के सामने मनुष्य कुछ नहीं कर पाता। इन आपदाओं के समय वह अपने विनाश को चुपचाप विवश होकर देखता है।

उत्तराखंड की प्रमुख आपदाएं – बाढ़

उत्तराखंड यमुना-गंगा, रामगंगा जैसी अनेक प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है। यह नदियां किल्लोल करती हुई कई क्षेत्रों से बहती हुई जाती है। किंतु पहाड़ों पर भयंकर वर्षा के कारण प्रतिवर्ष यहां की नदियां विकराल रूप धारण कर लेती है। जिसके कारण भयंकर बाढ़ आती है। अनेक बार ये बाढ़ इतनी विनाशकारी सिद्ध होती है कि गांव के गांव और कस्बे एक ही पल में काल के गाल में समा जाते हैं उदाहरण के लिए देखा जाए तो जून वर्ष 2013 में यहां केदारनाथ घाटी में आई बाढ़ इसका सबसे मुख्य उदाहरण है। इस बाढ़ में जहां पूरी केदारघाटी विनाश का शिकार हुई वहीं केदारनाथ मंदिर को भी बड़ी क्षति पहुंची यद्यपि मंदिर का गर्भगृह और प्राचीन गुम्बद तो सुरक्षित रहे, फिर भी मंदिर के प्रवेश द्वार और आस-पास के क्षेत्र को बड़ी क्षति पहुंची। केदारनाथ में आई आपदा में लोगों ने सिर्फ अपनो को नही खोया है बल्कि पहाड़ में रहने का आत्मविश्वास भी खोया है। आज भी रह रह कर उन्हें केदारनाथ में आई वो आपदा डरा जाती है। उस आपदा ने हजारों घर बर्बाद किये। हजारों – लाखां घरों के आंगन को सूना कर गयी।

रामबाड़ा, सोनप्रयाग, चन्द्रपुरी और गौरीकुंड का तो जैसे अस्तित्व ही समाप्त हो गया। ऋषिकेश, हरिद्वार तक में इस बाढ़ का विनाशकारी रूप देखने को मिला। इस त्रासदी में 5000 से अधिक लोग मारे गए और असंख्य लोग बेघर और लापता हो गए यह पहली बार नही है। उत्तराखंड में हर साल ऐसी आपदाएं आती है और घरों को सूना कर जाती है। इसी पेशकश में अगर बात रुद्रप्रयाग की करें तो रुद्रप्रयाग के सिरोबगड़ एक ऐसी जटिल समस्या है जो हर वर्ष मौत को बुलावा देने का कार्य करता है।
अगर वर्तमान समय की बात करें तो बरसात के शुरुआत से ही उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में सड़क पर मलबा आने से यातायात बाधित हुआ है। अगर बात हम प्रदेश की राजधानी देहरादून की ही बात करें तो देहरादून में भी बरसात के चलते काफी नुकसान देखने को मिला है। इसमें हम देहरादून के मालदेवता क्षेत्र की बात भी कर सकते है। जहां बरसात के चलते मलबा सड़क तक आ जाता है व यातायात को बाधित कर देता है।

बरसात के चलते पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष भी ये दुर्घटनाएं थमने का नाम नही ले रही है। केदारनाथ मार्ग में भी भूस्खलन व रोड़ा, पत्थर गिरने की वजह से मौत व हादसे घटित हुए है। बद्रीनाथ हाइवे भी आये दिन भारी बरसात के कारण बाधित हो जाता है। यह समस्या गंगोत्री व यमनोत्री में भी है।

बादल फटना

बादल फटने की घटनाएं उत्तराखंड राज्य में प्रायः होती रहती है। इसमे प्रायः ऊंचाई वाले स्थानों पर बादलों की सघनता बढ़ जाने पर ऐसी भयंकर वर्षा होती है मानो कोई बांध अचानक से टूट गया है। यह वर्षा का जल अपने पूर्ण वेग से नीचे आता है तो अपने साथ बड़ी मात्रा में मलबा बहाकर लाता है। इसके मार्ग में जो कुछ भी आता है विनाश को प्राप्त होता है। यहां प्रतिवर्ष अनेक गांव बादल फटने के कारण मलबे के ढेर में बदल जाते हैं, जिससे जन-धन की अत्यधिक हानि होती है। केदारनाथ त्रासदी व ऋषिगंगा में हुई आपदा इसका जीता जागता उदाहरण है।

भूस्खलन एवं हिमस्खलन

पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन एवं हिमस्खलन की घटनाएं पर्याप्त मात्रा में होती हैं। भूस्खलन की घटनाएं प्रायः वर्षा ऋतु में और हिमस्खलन की घटनाएं जाड़ों में अधिक होती है। भूस्खलन तथा हिमस्खलन में बर्फ की चट्टानों के खिसकने की अनेक दुर्घटनाएं होती हैं जिसकी चपेट में आकर जनधन की पर्याप्त हानि होती है।

भूकंप

भूकंप उत्तराखंड राज्य की मुख्य आपदा है। हिमालय पर्वत श्रृंखला होने के कारण यह भूकंप संवेदी क्षेत्र है। अतः यहां प्रायः निम्न से लेकर उच्च तीव्रता वाले भूकंप आते रहते हैं। उदाहरण स्वरूप उत्तरकाशी का महाविनाशकारी भूकंप यह राज्य देख चुका है जिसमें जन-धन की अपार हानि हुई थी। आज भी उत्तरकाशी वासी भूकंप के नाम से कांप उठते है। इस भूकंप ने न सिर्फ जन-धन की हानि की अपितु ऐसे घाव भी दिए जिन्हें कभी भरा नही जा सकता।

आपदाओं से जूझता 2021

अगर बीते वर्ष 2021 की बात करें तो मौसम के लिहाज से ये पूरा साल उत्तराखंड के लिए चौंकाने वाला रहा और हमें ये प्रमाण मिलते रहे कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है। सर्दियों में गर्मी, गर्मियों में तेज़ बारिश और मानसून बीतने के बाद आई आपदा ने राज्य के लाखों लोगों को प्रभावित किया। सैंकड़ों गांव विस्थापन की मांग कर रहे हैं। बेमौसमी बारिश और आपदा से राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ। बागवान से लेकर किसान तक मौसम सबको निराश कर गया। वर्ष 2021 अब ठोस क्लाइमेट एक्शन के संदेश के साथ गुज़रा। जनवरी में जंगल जले। फरवरी में हिमस्खलन की घटना। मार्च-अप्रैल बारिश व बर्फबारी में बीते। मई में 24 से अधिक बादल फटने की घटना सामने आई। उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, टिहरी, अल्मोड़ा समेत देहरादून के पर्वतीय हिस्सों तक बादल फ़टने की घटनाएं दर्ज की गईं। जिन गांवों पर ये प्राकृतिक आपदा गुज़री वहां घरों में दरार, खेतों में मलबा और फिर विस्थापन का इंतज़ार ठहर गया। इन गांवों की सूची में इस साल चिपको आंदोलन का चेहरा गौरा देवी का गांव रैणी भी शामिल हो गया।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक राज्य के 6 ज़िलों 1 मार्च से 31 मई 2021 तक 60 प्रतिशत से अधिक बारिश दर्ज की गई। ऊधम सिंह नगर में 234 प्रतिशत अधिक, नैनीताल में 102 प्रतिशत, चंपावत में 116 प्रतिशत और बागेश्वर में 147 प्रतिशत अधिक बारिश रही। जबकि बाकी 5 ज़िलों में भी 20-59 प्रतिशत तक अधिक बारिश रही।

वहीं मई से सितंबर के बीच राज्य में बादल फटने की कम से कम 50 सूचनाएं दर्ज की गई हैं। इसके बावजूद बादल फटने, अत्यधिक तेज़ बारिश को रिकॉर्ड करने के लिए राज्य के मौसम विभाग के पास पर्याप्त साधन और मशीनरी उपलब्ध नहीं है।
अक्टूबर में मानसून बीतने के बाद आई 17-19 अक्टूबर की आपदा ने राज्यभर में बर्बादी के मंजर बिखेर दिए। तीन दिनों की भारी बारिश, बादल फटने और भूस्खलन से राज्य में 79 मौतें, 24 घायल और 3 लापता लोगों की आधिकारिक सूचना दी गई। झीलों की नगरी नैनीताल में इस आपदा में काफी नुकसान हुआ। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद वर्ष 2021 में भूस्खलन समेत प्राकृतिक आपदाओं में जान गंवाने वालों की संख्या 298 सबसे अधिक है। अक्टूबर की आपदा ये भी रहा कि बीते साल 2020 की तुलना में इस साल अक्टूबर से अब तक सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई।

सर्दियों में पिघलते ग्लेशियर!

वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं के तौर पर सामने आ रही है। इन आशंकाओं के साथ कि हिमालयी ग्लेशियर सर्दियों में भी पिघल सकते हैं जबकि माना जाता है ये समय बर्फ़ जमाने का है। साल 2021 गुज़रते-गुज़रते जलवायु समाधानों को ज़मीन पर लाने का जरूरी संदेश देकर गया।

प्राकृतिक आपदाओं के कारण

उत्तराखंड का अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय है जिस कारण यहां भूकंप, बाढ़ जैसी अन्य कई सारी प्राकृतिक घटनाएं होती रहती है। इन घटनाओं का मुख्य कारण वृक्षों का कटाव है। जाहिर सी बात है पर्वतीय क्षेत्रों में विकास के लिए वृक्षों तथा वनों का कटाव संभव है लेकिन मनुष्य को वनों को नष्ट करने से हानि क्या है इसके बारे में पता नहीं है और इसका खामियाजा प्राकृतिक आपदा द्वारा भुगतना पड़ता है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें सबसे पहले प्रकृति को खुशहाल रखना होगा कहने का मतलब यह है कि हमें आवश्यकता से अधिक वृक्षों को नहीं काटना चाहिए तथा वनों का संरक्षण करना चाहिए। चट्टानों का खिसकना, पहाड़ों का टूटना, मनुष्य का ही करा धरा है। विकास के नाम पर मनुष्य उत्तराखंड में विनाश का विकास कर रहा है। उत्तराखंड जैसी देवभूमि में प्रकृति की हर वस्तु उपलब्ध हो सकती है लेकिन फिर भी मनुष्य इसे नष्ट करने पर लगा है। वनों की अंधाधुंध कटाई से मनुष्य ही नहीं बल्कि कई सारे जीव जंतु का घर भी बेघर हो गया है।

उत्तराखंड को देवों की भूमि यानि देवभूमि कहा गया है। हमें धरती मां का सम्मान करना चाहिए। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में हमें प्रकृति की सुंदरता को सदैव बनाए रखना चाहिए ना कि उसे नष्ट करना चाहिए। खैर प्राकृतिक आपदाएं किसी को बताकर नहीं आती वह तो मनुष्य की गलतियों से आती है जिसका खामियाजा कई सारी जान माल की हानि उसे हमें भुगतना पड़ता है। प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें प्रकृति के साथ कभी भी खिलवाड़ नहीं करना चाहिए यह बात उत्तराखंड पर ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लागू होती है। जितना ज्यादा हम विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ करेंगे उतने ही रौद्र रूप के साथ प्रकृति हमसे मिलेगी। अतः समाधान यह ही है कि हम प्रकृति से समन्वय स्थापित करें व सदैव उसको सुरक्षित, शुद्ध बनाये रखने का प्रयास करें।

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this