मदमहेश्वर घाटी के रासी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मंदिर में सावन महीने में गाने जाने वाले पौराणिक जागरों की तैयारियां जोरों पर है। गांव के युवा भी धीरे-धीरे पौराणिक जागरों का गायन सीख रहें है। दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरों के माध्यम से तैतीस कोटि देवी देवताओं के आवाहन के साथ देवभूमि उत्तराखंड के समृद्धि की कामना की जाती है तथा उत्तराखंड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय तक के प्रत्येक क्षेत्र की धार्मिक महिमा का गुणगान जागरों के माध्यम से किया जाता है।
मदमहेश्वर घाटी के रासी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मंदिर में सावन महीने में गाने जाने वाले पौराणिक जागरों की तैयारियां जोरों पर है। गांव के युवा भी धीरे-धीरे पौराणिक जागरों का गायन सीख रहें है। दो माह तक चलने वाले पौराणिक जागरों के माध्यम से तैतीस कोटि देवी देवताओं के आवाहन के साथ देवभूमि उत्तराखंड के समृद्धि की कामना की जाती है तथा उत्तराखंड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय तक के प्रत्येक क्षेत्र की धार्मिक महिमा का गुणगान जागरों के माध्यम से किया जाता है। पौराणिक जागरों का समापन अश्विन माह की दो गते को भगवती राकेश्वरी को ब्रह्म कमल अर्पित करने के साथ किया जाता है। दो माह तक भगवती राकेश्वरी के मंदिर में पौराणिक जागरों के गायन से रासी गांव का वातावरण भक्तिमय बना रहता है तथा ग्रामीणों में भारी उत्साह रहता है।
पौराणिक जागरों के समापन पर क्षेत्रवासी बढ़-चढ़ कर भागीदारी करते हुए तथा धियाणियों व महिलाओं में भावुक क्षण देखने को मिलते है। प्रदेश सरकार निर्देश पर यदि संस्कृति विभाग पौराणिक जागरों के संरक्षण व संवर्धन की पहल करता है तो अन्य गांवों में भी पौराणिक जागरों के गायन की परम्परा जीवित हो सकती है। जानकारी देते हुए बद्री – केदार मंदिर समिति पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत ने बताया कि रासी गांव में विराजमान भगवती राकेश्वरी के मंदिर में पौराणिक जागरों के गायन की परम्परा प्राचीन है तथा ग्रामीणों द्वारा आज भी इस परम्परा का निर्वहन निष्ठा से किया जाता है। जागर गायन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्ण सिंह पंवार राम सिंह रावत ने बताया कि युगों से चली आ रही परम्परा के अनुसार भगवती राकेश्वरी के मंदिर में सावन माह की संक्रांति से पौराणिक जागरों का शुभारंभ किया जाता है तथा आश्विन की दो गते को पौराणिक जागरों का समापन होता है।
राकेश्वरी मंदिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि पौराणिक जागरों का गायन प्रति दिन सांय 7 बजे से 8 बजे तक किया जाता है तथा पौराणिक जागरों के गायन में सभी ग्रामीण बढ़-चढ़ कर भागीदारी करते है। शिवराज सिंह पंवार, जसपाल सिंह खोयाल बताते है कि पौराणिक जागरों के माध्यम से तैतीस कोटि देवी – देवताओं का आवाहन कर विश्व समृद्धि की कामना की जाती है तथा देवभूमि उत्तराखंड के पग – पग विद्यमान मठ – मंदिरों की महिमा का गुणगान किया जाता है। अमर सिंह रावत ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन में धीरे-धीरे युवा वर्ग भी रूचि लेने लगा है इसलिए दो माह तक रासी गांव का वातावरण भक्तिमय बना रहता है।
हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि पौराणिक जागरों के गायन के समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा पौराणिक जागरों के गायन में एकाग्रता जरूरी होनी चाहिए। क्षेत्र पंचायत सदस्य बलवीर भटट्, पूर्व प्रधान संग्रामी देवी, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य भरोसी देवी का कहना है कि यदि प्रदेश सरकार पौराणिक जागरों के गायन के संरक्षण व संवर्धन की पहल करती है तो अन्य गांवों में भी पौराणिक जागरों के गायन की परम्परा को पुनः जीवित किया जा सकता है। शिक्षाविद वीपी भट्ट का कहना है कि रासी गांव में पौराणिक जागरों के गायन की परम्परा युगों पूर्व है जिससे जीवित रखने में सभी ग्रामीणों का अहम योगदान रहता है।
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