आदिशक्ति मां भुवनेश्वरी मंदिर विकास मिशन (रजि 1992) मंदिर में मां भुवनेश्वरी दर्शनार्थ आये भक्तों के लिए भोजन के साथ उत्तराखंड की संस्कृति को पेटिंग के द्वारा बढ़ावा दे रहा है। मंदिर विकास मिशन के आजीवन सदस्य सुतीक्ष्ण नैथानी ग्राम काण्डई ने इस भोजनालय को पौराणिक परंपराओं का अनुसरण करते हुए भोजनालय भवन का निर्माण करवाया।
आज जब हम उत्तराखंडी, पलायन के दंश के साथ-साथ पश्चिमी सभ्यता की नकल के कारण धीरे-धीरे अपनी सांस्कृतिक पहचान भी भूलते जा रहे हैं। तब मंदिर विकास मिशन अपनी संस्कृति की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी विचार से मंदिर विकास मिशन ने भोजनालय के अन्दर चारों दीवारों पर उत्तराखंड सांस्कृतिक चित्रों का चित्रण करवाया। जिससे कि स्थानीय तथा प्रवासी भक्त अपने बच्चों के साथ प्रसाद ग्रहण करते हुए अपनी संस्कृति का स्वयं भी अवलोकन करें तथा अपने बच्चों को भी इसकी जानकारी दें। मंदिर विकास मिशन के उपाध्यक्ष महेन्द्र सिंह राणा के बेहतरीन निर्देशन तथा मार्गदर्शन में यह सम्पूर्ण कार्य हुआ।
इस भोजनालय में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री के चित्रों के अलावा, उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों जैसे ढोल दमाउ, मसकबीन, नृत्य करती महिलायें, रम्माण, छालिया नृतक एवं गांव के दृश्य, उत्तराखंडी कस्तूरी मृग, मोनाल पक्षी एवं ब्रह्मकमल, हरिद्वार एवं ऋषिकेश की गंगा आरती, उत्तराखंड के पांरपरिक बर्तनों में सरोला खाना बनाते हुए, नंदा देवी राजजात यात्रा और उत्तराखंड के आभूषण के चित्रों को दीवारों पर बनाया गया है। इन चित्रों से यह मंदिर का भोजनालय बहुत ही सुंदर लग रहा है और इससे इस मंदिर की भभ्यता और भी निखर रही है।
मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ का यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल के सतपुली से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोटद्वार से यहां की दूरी लगभग 54 किलोमीटर और पौड़ी से 52 किलोमीटर के है। यह मंदिर सतपुली से बांघाट, ब्यासचट्टी, देवप्रयाग मार्ग पर 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लोक मान्यताओं के अनुसार पूर्व समय में जब विदेशी आक्रमणकारियों ने पूजास्थलों को अपवित्र और खंडित किया तो पांच देवियों ने वीर भैरव के साथ देवभूमि की तरफ प्रस्थान किया। मां आदिशक्ति भुवनेश्वरी, मां ज्वालपा, मां बाल सुन्दरी, मां बालकुंवारी और मां राजराजेश्वरी अपनी यात्रा के दौरान नजीबाबाद पहुंची। नजीमाबाद उस समय बड़ी मंडी हुआ करती थी। उस समय पूरे गढ़वाल क्षेत्र के लोग अपनी आवश्यक्ता के सामान के लिये नजीमाबाद आया करते थे और यहीं से अपने परिवार के लिए सामान को पैदल या घोडे़ खच्चरों के माध्यम से लाते थे।
बताया जाता है कि उस समय मनियारस्यूं पट्टी, ग्राम सैनार के नेगी बन्धु भी नजीमाबाद सामान लेने आये हुये थे। थकावट के कारण मां भुवनेश्वरी मातृलिंग के रूप में एक नमक की बोरी में प्रविष्ट हो गईं। जब अपना-अपना सामान लेकर नेगी बन्धु वापसी में कोटद्वार – दुगड्डा होते हुए ग्राम सांगुड़ा पहुंचे तो सांगुड़ा में नेगी ने देखा कि उनकी नमक की बोरी में एक पिण्डी है जिसको उन्हांने पत्थर समझकर फेंक दिया।
फिर रात को घर पहुंचने पर मां भुवनेश्वरी ने भवान सिंह नेगी को स्वप्न में दर्शन दिए और आदेश दिया कि मां के मातृलिंग को सांगुड़ा में स्थापित किया जाय। बताया जाता है कि नैथाना ग्राम के नेत्रमणि नैथानी को भी मां ने यही आदेश दिया। उसके बाद विधि-विधान से मां की पिण्डी की स्थापना सांगुड़ा में की गई।
जब हम सांगुडा में श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ मंदिर के आसपास पहुंचते हैं तो हमको एक ओर नयार और दूसरी ओर हरे भरे खेत, लहलहाती फसलें और सामने पहाडियां दिखाई देती हैं जिससे कि यह धार्मिक स्थल अपने आप में बड़ा ही मनमोहक लगता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1981 तथा 1993 में किया गया है। इस मंदिर के पुजारी ग्राम सैली के सेलवाल जाति के लोग हैं तथा मंदिर का प्रबन्ध एवं व्यवस्था नैथानी जाति के लोग करते हैं। इस मंदिर में गरीब परिवारों के बच्चों की भी शादी करवाई जाती है और उनसे नाम मात्र का शुल्क लेकर वह यहां के भोजनालय में खाना भी खिलवा सकते हैं।
श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ मंदिर नैथाना, काण्डई, धारी, कुण्ड, बिलखेत, दैसंण, सैली, सैनार, गोरली आदि गांवों का प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर गेंद का मेला आयोजित किया जाता है जिसको देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर की सही देखभाल के लिए साल 1991 में एक समिति की स्थापना की गई। जिसके तत्वाधान में मंदिर का जीर्णोद्धार के अतिरिक्त इस क्षेत्र के सौन्दर्यीकरण की भी योजनायें चलाई जा रही हैं। श्रद्धालुओं हेतु मंदिर वर्ष भर खुला रहता है, मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु एक धर्मशाला भी है।
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