FTII पुणे की तरह अल्मोड़ा के उदय शंकर नाट्य संस्थान परिसर में हो सकती है उच्च स्तरीय संस्थान की स्थापना

FTII पुणे की तरह अल्मोड़ा के उदय शंकर नाट्य संस्थान परिसर में हो सकती है उच्च स्तरीय संस्थान की स्थापना

उत्तराखंड में एफटीआईआई पुणे की तरह फिल्म, टीवी और कंटेंट निर्माण प्रशिक्षण हेतु एक उच्च स्तरीय संस्थान की स्थापना के निर्देश मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिए हैं। यह जानकारी देते हुए उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बंशीधर तिवारी ने बताया कि फिल्म टीवी प्रशिक्षण हेतु अल्मोड़ा के उदय शंकर नाट्य संस्थान परिसर में स्थापित करने पर विचार किया जा रहा है।

बंशीधर तिवारी ने बताया कि संस्थान के वित्तीय पोषण एवं संचालन संबंधी अन्य विषयों के निर्धारण हेतु मुख्यमंत्री द्वारा निर्देश दिये गये हैं कि उक्त कार्य के क्रियान्वयन हेतु एक विशेषज्ञ समिति का गठन कर लिया जाये। जिसकी कार्यवाही की जा रही है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में फ़िल्म निर्माण को एक संगठित उद्योग की तरह बढ़ावा देने हेतु सरकार प्रतिबद्ध है। राज्य में फ़िल्म निर्माण से जुड़े प्रशिक्षित मानव संसाधन की संख्या में वृद्धि करने के लिए तथा युवाओं को इस क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए एक राज्य स्तरीय प्रशिक्षण संस्थान आवश्यक है।

 

एफटीआईआई के पूर्व निदेशक ने दिया था फिल्मों को लेकर ईकोसिस्टम बनाने पर जोर

हिल-मेल उत्तराखंड में फिल्मों की संभावना को मुद्दे को लगातार उठाता रहा है। हिल-मेल ने कुछ समय पहले इस मुद्दे पर एफटीआईआई के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला और उत्तराखंड के मूल कलाकारों से चर्चा भी की थी। एफटीआईआई के पूर्व निदेशक भूपेंद्र कैंथोला ने हिल-मेल के ई-रैबार में उत्तराखंड में फिल्म निर्माण के लिए ईकोसिस्टम बनाने पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड में सिनेमा का बीज पैदा करने की जरूरत है। वहां ईको सिस्टम नहीं है। कम से कम 30-40 साल से गढ़वाली, कुमांउनी भाषा में बन रही हैं, 4 साल मैं नेशनल फिल्म अवॉर्ड का डायरेक्टर था दिल्ली में और उन चार वर्षों में छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में तो डेढ़ दो लाख लोगों में बोली जाने वाली भाषा की फिल्म आई और अवॉर्ड ले गई। वहां पर भी फिल्म को लेकर संवेदनशीलता है कि हमें फिल्म दिल्ली भेजनी चाहिए लेकिन 4 वर्षों में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा में कोई फिल्म नहीं आई।

उन्होंने कहा कि एक हमें ईको सिस्टम तैयार करना है। उत्तराखंड मूल के फिल्ममेकर बाहर जाकर अच्छी फिल्म बनाते हैं लेकिन प्रदेश में ऐसा माहौल ही नहीं है कि वे कुछ बना पाएं जबकि पलायन जैसे संवेदनशील मसले पर बढ़िया फिल्म बन सकती है और वह एक दिल को छू लेने वाले मेसेज दे सकती है। कैंथोला कहते हैं कि उत्तराखंड में युवाओं के पास हुनर की कमी नहीं है, अगर स्थानीय स्तर पर उन्हें सिनेमा की बारीकियां सिखाई जाएं तो वो बहुत अच्छा काम कर सकते हैं।

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बहुत कम काम हुआ… बॉलीवुड से तालमेल कम

फिल्म ऐक्टर बृजेंद्र काला ने कहा कि वास्तविकता यह है कि उत्तराखंड और बॉलीवुड फिल्म जगत में आपसी तालमेल अभी अच्छे तरीके से बन नहीं पा रहा है। उत्तराखंड का पूरी तरीके से बॉलीवुड अभी उपयोग कर ही नहीं पाया है। अभी गिनी-चुनी फिल्में ही उत्तराखंड के परिवेश में शूटिंग के लिहाज से बनी हैं। हाल-फिलहाल में थोड़ा काम बढ़ा है। कारण समझाते हुए अभिनेता ने कहा कि जो निर्माता होते हैं और उत्तराखंड से जुड़े निर्माता जिनकी फिल्म जगत में ज्यादा दखलअंदाजी है, अगर वे रुचि लेते हैं तभी हम उस दिशा में बढ़ पाएंगे। बड़े रूप में हाल फिलहाल में ‘बत्ती गुल’ आई थी, धीरे-धीरे फिल्म बढ़ रही हैं पर उतना रफ्तार नहीं दिख रहा। केदारनाथ आपदा पर भी फिल्म बनी है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

बीज बोने की जरूरत : पांडे जी

हेमंत पांडे ने कहा कि मैं तो जमीनी स्तर पर रहकर, जी कर आया है। मैं झेल कर आया कि एक फिल्म को बनाने के बाद उत्तराखंडी सिनेमा के लिए क्या दिक्कतें आती हैं, देखकर आया हूं। आज की स्थिति बहुत शून्य है। लेकिन किसी दूसरे राज्य के सिनेमा की तरह ही यहां भी संभावनाएं अपार हैं। मलयालम समेत अन्य क्षेत्रीय सिनेमा के टक्कर में हम कहीं नहीं है। उन्होंने हिल मेल की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि उत्तराखंड फिल्म को लेकर इस तरह की चर्चा एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार की तरफ से फिल्म विकास बोर्ड की शुरुआत की गई थी पर उसका काम आप देख ही रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब मैं फिल्म विकास बोर्ड का उपाध्यक्ष था तब से लेकर अब तक सुझाव दे रहा हूं कि उत्तराखंड सिनेमा का हमें बीज पैदा करना है। एफटीआईआई जैसे बड़े संस्थानों से लोग सीख कर आ रहे हैं लेकिन हमारे राज्य में कोई ऐसी संभावना नहीं है कि एनएसडी या एफटीआईआई से कोई आता है तो उसकी शुरुआत कर सके।

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