बाबा केदारनाथ… दुनिया का एकलौता शिव मंदिर, जो कहलाता है जागृत महादेव

बाबा केदारनाथ… दुनिया का एकलौता शिव मंदिर, जो कहलाता है जागृत महादेव

केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव आज भी जागृत अवस्था में हैं और समय-समय पर अपने भक्तों की मदद के लिए अपने चमत्कार दिखाने के साथ ही भक्तों को दर्शन भी देते हैं। कपाट खुलने के बाद आने वाले छः माह तक अराध्य देव बाबा केदारनाथ जी की पूजा-अर्चना इसी धाम में होगी।

आज आपको लिए चलते हैं बाबा के धाम केदारनाथ जी के दर पर और आपको बताते हैं कि क्यों कहते हैं बाबा केदारनाथ जी को जागृत महादेव। जी हां आज ही केदारनाथ ज्योतिर्लिंग जी के कपाट आज 25 अप्रैल सुबह को विधि विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गया। बारह ज्योतिर्लिंग में शुमार बाबा केदारनाथ जी को जागृत महादेव भी माना जाता है।

माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव आज भी जागृत अवस्था में हैं और समय समय पर अपने भक्तों की मदद के लिए अपने चमत्कार दिखाने के साथ ही भक्तों को दर्शन भी देते हैं। कपाट खुलने के बाद आने वाले छह माह तक अराध्य देव बाबा केदारनाथ जी की पूजा-अर्चना इसी धाम में होगी।
आज बात करते हैं उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की। बाबा केदारनाथ जी के इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए देश और दुनियांभ के शिवभक्त करीब छ महीनों तक का बाबा के कपाट खुलने का इंतजार करते हैं।

पहले गौरीकुंड से 18 किलोमीटर और अब 21 किलोमीटर की तेज चढ़ाई वाले मार्ग को बेहद ही कठिन वा मुश्किल माना जाता है। लेकिन विश्वास है कि बाबा भोलेनाथ जी के दर्शनों की अभिलाषा और दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे ये कठिन मार्ग बौना ही साबित होता है। सदियों पहले जब आवागमन के साधन नही थे तब सम्पूर्ण यात्रा पैदल ही हुआ करती थी। जागृत महादेव कहलाने या होने के पीछे एक कथा प्रचलित है। जिसके बाद से केदरनाथ जी को जागृत महादेव कहा जाने लगा।

केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहा जाता है। इसके पीछे एक प्रसंग प्रचलित है। प्रसंग के मुताबिक बहुत समय पहले एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। तब यात्राएं पैदल ही हुआ करती थीं क्यों कि यातायात की सुविधाएं तो थी नहीं तो शिवभक्त भी दूसरे तीर्थयात्रियों की ही तरह पैदल ही निकल पड़ा बाबा के दर के लिए।

विकट मार्ग, अनजाने रास्तों से होकर दूर हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ तक पहुंचना आसान भी नहीं था। तब रास्ते में न कोई ज्यादा लोग होते थे न गांव कस्बे जो रास्ता बताते। न पानी न भोजन की व्यवस्था। पानी तो प्राकृतिक जल स्रोतों गाड़ गदेरों से मिल ही जाता था लेकिन भोजन के नाम पर साथ कुटरी में बांधे सत्तू या चना ही होता था। रास्ते में इक्का दुक्का ही लोग मिलते थे जिनसे बाबा केदार नाथ जी के धाम का रास्ता पूछते पूछते यह शिवभक्त अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में जो भी मिलता उससे केदारनाथ जी के धाम का मार्ग पूछ लेता और मन में भगवान शिव का ध्यान करते चला जा रहा था। तब इस भक्त को क्या सभी शिवभक्तों को चलते चलते केदारनाथ धाम तक पहुंचने में महीनों लग जाते थे। आखिरकार एक दिन वह बाबा के धाम केदारनाथ पहुंच ही गया।

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बताते चलें कि बाबा केदारनाथ धाम में मंदिर के द्वार 6 महीने ही खुले रहते हैं और शीतकाल के 6 महीने बंद रहते हैं। शिवभक्त जब वहां पहुंचा तो उस समय केदारनाथ मंदिर के द्वार 6 महीने के लिए बंद हो रहे थे। धार्मिक परंपरा के मुताबिक मंदिर के द्वार दोबारा 6 महीनों के बाद ही खुलते हैं।

शिवभक्त जब कई सौ किलोमीटर की यात्रा पूरी कर थक हारकर बाबा के धाम केदारनाथ पहुंच तो वह हक्का बक्का रह गया। उसके पावों तले की जमीन खिसक गई, उसके पांव ही नहीं पूरा शरीर कांपने लगा, वह घोर निराशा के बीच आशा की किरण ढूंढने लगा। दरअसल बाबा के धाम का नजारा बदला बदला सा उसे नजर आने लगा। बाबा के धाम में कपाट बंद होने की सभी तैयारियां पूर्ण होने के बाद पंडा पुजारी मुख्य द्वार के कपाट बंद कर रहे थे। शिवभक्त ने हिम्मत जुटाकर मंदिर के कपाट बंद करने वाले पंडित पुरोहितों से अनुरोध किया कि वह बमुश्किल से बाबा के द्वार पहुंचा है। कई सौ किलोमीटर की थकाऊ यात्रा कर भूके प्यासे वह बाबा के द्वार पहुंचा है इसलिए दर्शन के लिए बाबा के द्वार कुछ समय के लिए खोल दिए जाएं ताकि वह भी प्रभु के दर्शन कर वह भी धन्य हो जाए वह इस जीवन से उद्धार पा सके। लेकिन तब तक पंडित जी ने परंपरा का पालन करते हुए द्वार को बंद कर दिया था और क्योंकि परंपरा वा नियम है कि एक बार द्वार बंद तो दोबारा छः महीनों बाद ही खुलेंगे।

पुजारियों के निर्णय व परंपरा से भक्त बहुत निराश हुआ और रोने लगा। इसके बाद वह बहुत रोया। बार-बार भगवान शिव को याद करने लगा कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह सभी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन उसकी किसी ने भी नहीं सुनी और बाबा की चल विग्रह उत्सव डोली जन सैलाब के साथ केदारनाथ धाम से शीतकालीन प्रवास के लिए ऊखीमठ को चल पड़ी।

चलते चलते मंदिर के मुख्य पंडित जी ने भक्त से कहा कि वह वापस अपने घर चला जाए और दोबारा 6 महीने के बाद आए। लेकिन भक्त ने उनकी बात नहीं मानी और वहीं पर खड़ा होकर घोर निराशा के बीच शिव का कृपा पाने की उम्मीद करने लगा। धीरे धीरे दिन ढलने लगा और शांय के बाद रात भी होने लगी। भूख-प्यास से उसका बुरा हाल हो गया। लेकिन शिवभक्त ने आस नहीं छोड़ी। रात हो चुकी थी। धाम में चारो तरफ सन्नाटा वा घुप्प अंधेरा छा गया।

इसी दौरान उसने रात के अंधेरे में एक सन्यासी बाबा के आने की आहट सुनी, वह डर गया और आश्चर्यचकित भी हो गया। रात के अंधेरे में एक संन्यासी बाबा उसके करीब आए और उन्होंने शिवभक्त से बाबा के धाम आने के बारे में पूछा। संन्यासी बाबा के पूछने पर शिवभक्त ने उनसे अपना समस्त हाल कह सुनाया। फिर बहुत देर तक बाबा उससे बातें करते रहे। बाबा को उस पर दया आ गई। वह बोले, ‘बेटा मुझे लगता है, सुबह मंदिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरूर करोगे।’ बाबा ने शिवभक्त को कुछ खाने के लिए दिया और ठंडी से बचने के लिए उसे एक कंबल दे दिया जिसको ओढ़कर शिवभक्त बाबा से बातें करने लगा। बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब गहरी नींद आ गई।

सुबह सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आंख खुली। उसने इधर उधर देखा तो बाबा कहीं नजर नहीं आए। नजर आए तो बाबा की चल विग्रह डोली गाजे बाजों के साथ लोगों का हुजूम और पंडा पुजारी बाबा के जयकारों वा उदघोष के साथ बाबा के धाम केदारनाथ जी की ओर बढ़े चले आ रहे थे।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा मुख्य पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। मंदिर प्रांगण यात्रा के पहुंचते ही उस शिवभक्त ने पंडित को प्रणाम किया और बोला कल आप ने तो कहा था मंदिर 6 महीने बाद खुलेगा? इस बीच कोई नहीं आएगा यहां लेकिन आप तो सुबह ही आ गये।

और अगर सुबह ही आना था तो मुझे कल ही बाबा के दर्शन करा देते तो आज सुबह पुनः नहीं आना पड़ता। शिवभक्त की बातों को सुनकर सभी लोग गौर से देखने लगे और पंडित जी ने उस भक्त को पहचान लिया था पूछा तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे? और मुझे मिले थे।। शिवभक्त ने कहा कि जी मैं वही हूं जिसको आपने कल बाबा के दर्शन नहीं करने दिए और दर्शन कराने ही थे तो कल ही करा देते आज वापस नहीं आना पड़ता।

पंडा पुजारी हतप्रभ थे उन्होंने कहा कि वे लोग तो छः महीने बाद ही कपाट खुलने के अवसर पर बाबा की डोली के साथ आ रहे हैं। उस आदमी ने आश्चर्य से कहा नहीं, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी और शिवभक्त दोनां के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उन्होंने कहा लेकिन वे तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गए थे और आज 6 महीने बाद वापस आए हैं परंपरा के अनुसार कपाट खुलने के लिए। तुम 6 महीने तक यहां पर इतनी कड़ाके की ठंड और कई फीट तक जमा बर्फबारी के बीच जिन्दा कैसे रह सकते हो? पंडित और सारी मंडली हैरान थी।

इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे 6 महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गई सारी बाते बता दी। सारा वृतांत सुनाते हुए शिवभक्त ने कहा कि एक सन्यासी आया था लम्बा था, लंबी उलझी बड़ी बड़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। उन्होंने मुझे खाने के लिए चने आदि वा ओढ़ने के लिए एक कंबल भी दिया था। पंडित जी व समस्त यात्री समझ गए कि इस भक्त से उस रात स्वयं शिव जी ही मिलने आए थे।

भगवान बाबा केदार ने शिवभक्त को ऐसा वरदान दिया की उसकी सारी दिक्कते दूर हुई और उसकी छः महीनों की दिन-रात उसे एक ही रात लगी। उसी समय से बाबा केदारनाथ जी को ‘जागृत महादेव’ कहा जाने लगा।

इसके बाद पंडित और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके सच्चे भक्त तो तुम ही हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किए हैं। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन और तुम्हारे विश्वास के कारण ही हुआ है।

– लोकेंद्र सिंह बिष्ट, उत्तरकाशी

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