उत्तराखंड में मानव जीवन के खतरे, आपदाओं से बचे तो बाघ दबोच लेंगे

उत्तराखंड में मानव जीवन के खतरे, आपदाओं से बचे तो बाघ दबोच लेंगे

भारत में बाघों और गुलदारों के हमलों से 10 राज्य प्रभावित घोषित किये गये हैं जिनमें उत्तराखंड राज्य महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर तथा कर्नाटक तीसरे स्थान पर आता है। उत्तराखंड में भी बाघों और गुलदारों की भारी संख्या के चलते इस राज्य को दूसरे नम्बर पर रखा गया है। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क और नंदा देवी नेशनल पार्क सहित एक बड़े वन क्षेत्र और कई संरक्षित क्षेत्रों के साथ राज्य में जानवरों और मनुष्यों के बीच संघर्ष के मामले अक्सर देखे जाते हैं।

इस साल जनवरी से लेकर अब तक उत्तराखंड में 11 लोग वन्य जीवों के हमलों में मारे जा चुके हैं और 36 लोग घायल हो चुके हैं। अगर राज्य गठन से लेकर अब तक के वन्यजीव और मानव संघर्ष पर गौर करें तो इस पहाड़ी राज्य में प्रतिवर्ष औसतन 46 लोग वन्यजीवों के निवाला बन रहे हैं और सैकड़ों अन्य घायल या अंगभंग हो रहे हैं। भारत में मानव वन्यजीव संघर्ष के मामले में उत्तराखंड शीर्ष दो राज्यों में शामिल है। देश का इतना छोटा राज्य और मानव जीवन के लिये इतना बड़ा खतरा सचमुच बेहद चिन्तनीय है। इस तरह देखा जाय तो कभी सुरक्षित मानी जाने वाली हिमालय की गोद आज उत्तराखंड वासियों के लिये दैवी आपदाओं के बाद वन्य जीवों के हमलों के कारण सबसे अधिक असुरक्षित हो गयी है। नौबत यहां तक आ गयी है कि राजधानी जिला देहरादून भी गुलदारों के खतरों से सुरक्षित नहीं है। देहरादून हरिद्वार मार्ग पर लच्छीवाला क्षेत्र में हाथियों का आतंक तो रहता ही है लेकिन झाड़ियों में घात लगा कर बैठे गुलदार भी लोगों को अक्सर दबोच लेते हैं।

जिम कार्बेट की याद ताजा कर दी बाघ के हमलों ने

उत्तराखंड में मानव भक्षियों के किस्से नये नहीं हैं। दिसम्बर 1910 में चम्पावत जिले की पनार घाटी के नरभक्षी गुलदार को जिम कार्बेट ने मारा था। वह गुलदार कुमाऊं और सीमावर्ती नेपाल क्षेत्र में 436 लोगों की जानें ले चुका था। यह किसी भी नरभक्षी का मानव संहार का सबसे बड़ा रिकार्ड था। उसे हैजा से मरने वाले लोगों का मांस खाने से मनुष्यों के मांस का स्वाद मुंह लग गया था। चम्पावत की मादा गुलदार भी इतने ही लोगों को निवाला बना चुकी थी। रुद्रप्रयाग का कुख्यात नरभक्षी 1918 से लेकर 1926 तक लगभग 125 लोगों को मार चुका था। लेकिन आज स्थिति उससे भी काफी गंभीर हो चुकी है। वन विभाग का भारी भरकम महकमा प्रदेशवासियों को इस गंभीर संकट से निजात दिलाने की स्थिति में नहीं है। समस्या की गंभीरता को देखते हुये राज्य कैबिनेट ने इस समस्या के निवारण के लिये एक अलग प्रकोष्ठ बनाने का निर्णय लिया है। आज समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि पौड़ी जिले के कॉर्बेट पार्क से लगे रिखणीखाल और धुमाकोट क्षेत्र में आदमखोर बाघ के हमलों को देखते हुए डीएम को 24 गांवों में रात का कर्फ्यू लगाना पड़ा।

उत्तराखंड भारत का दूसरा सर्वाधिक खतरे वाला सूबा

भारत में बाघों और गुलदारों के हमलों से 10 राज्य प्रभावित घोषित किये गये हैं जिनमें उत्तराखंड राज्य महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर तथा कर्नाटक तीसरे स्थान पर आता है। महाराष्ट्र में ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व, पेंच टाइगर रिजर्व और संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान जैसे कई संरक्षित क्षेत्रों के साथ महाराष्ट्र में बाघों और तेंदुओं दोनों की काफी आबादी है। इसीलिये वह राज्य मानव-वन्यजीव संघर्षों के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों की सूची में शामिल किया गया है। इसी प्रकार उत्तराखंड में भी बाघों और गुलदारों की भारी संख्या के चलते इस राज्य को दूसरे नम्बर पर रखा गया है। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क और नंदा देवी नेशनल पार्क सहित एक बड़े वन क्षेत्र और कई संरक्षित क्षेत्रों के साथ राज्य में जानवरों और मनुष्यों के बीच संघर्ष के मामले अक्सर देखे जाते हैं। उत्तराखंड वन विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस साल जनवरी से लेकर 3 मई तक गुलदारों ने 3 लोगों को निवाला बनाया और 14 को घायल किया। इसी प्रकार बाघों ने 5 लोगों को अपना निवाला बनाया। गुलदार सोशल मीडिया पर दिन दहाड़े बस्तियों में लोगों और मवेशियों का पीछा करते नजर आ सकते हैं।

खेतों और बस्तियों से दिन दहाड़े उठा रहे हैं मानवभक्षी

गत 13 अप्रैल को एक 73 वर्षीय किसान, बीरेंद्र सिंह, अपनी पत्नी के साथ पौड़ी जिले के कालागढ़ टाइगर रिजर्व की सीमा से सटे रिखणीखाल ब्लॉक के डल्ला गांव में अपनी गेहूं की फसल काट रहे थे और इसी दौरान एक बाघ ने उन पर हमला कर दिया था। मदद के लिए पत्नी के चिल्लाने के बावजूद जानवर किसान को खींच ले गया। बाद में ग्रामीणों को कुछ दूर पर व्यक्ति का क्षत-विक्षत शव मिला। उसके तुरन्त बाद दूसरी घटना में, जो डल्ला से बमुश्किल 35 किमी दूर हुआ, 75 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक रणवीर सिंह का आधा खाया हुआ शव 15 अप्रैल को नैनीडांडा ब्लॉक के सिमली गांव में उनके घर के पास मिला था। वन विभाग के मुताबिक, बीते दस सालों में गुलदार ने पौड़ी जिले में करीब 45 लोगों की जानें ली हैं। गुलदारों के सर्वाधिक हमले पौड़ी रेंज में ही हुए हैं क्योंकि सर्वाधिक मानव पलायन इसी जिले में हुआ है। प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। एक साल में मानव वन्यजीव संघर्ष के 428 मामले प्रकाश में आये हैं जिनमें 80 लोग मारे गए।

दर्जनों मानवभक्षी मारे भी गये

वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार सन् 2001 से लेकर 2022 तक प्रदेश में 72 गुलदारों को मानवभक्षी घोषित कर मारा जा चुका है। अब भी कई मानवभक्षी बस्तियों के करीब घात लगाये बैठे रहते हैं। गुलदार ही नहीं राष्ट्रीय पार्कों और खास कर कार्बेंट नेशनल पार्क और राजाजी के आसापास के क्षेत्रों में बाघों का आतंक भी बरकरार है। गुलदार के हमले से कोई बच भी जाये मगर बाघ के जबड़े में अगर कोई एक बार आ जाये तो उसे यमराज भी नहीं बचा सकता। वन विभाग के आंकड़े भी यही बता रहे हैं। इस साल गुलदार के हमलों में 3 लोग मारे गये और 14 घायल हुये हैं। जबकि बाघ की चपेट में पांच लोग आये तो पांचों ही मारे गये और एक भी नहीं बचा।

देवप्रयाग-कीर्तिनगर और पौड़ी रेंज सर्वाधिक खतरनाक

उत्तराखंड में वनों के अन्दर या नजदीक की बस्तियों में मवेशी उठाने और मानवों पर तेंदुओं के हमले की घटनाएं सालाना बढ़ जाती हैं। टिहरी जिले में देवप्रयाग-कीर्तिनगर रेंज और पौड़ी जिले में पौड़ी रेंज उत्तराखंड में मवेशी उठाने और मानव मृत्यु के लिए सबसे अधिक संवेदनशील माने गये हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के मनोज अग्रवाल आदि वैज्ञानिकों के शोध पत्र के अनुसार पौड़ी जिले में समुद्रतल से 900 मीटर से लेकर 1500 मीटर की ऊंचाई वाला क्षेत्र मानव गुलदार संघर्ष के लिये सबसे अधिक संवेदनशील है। जिले में 400 से लेकर 800 मीटर और 1600 से लेकर 2300 मीटर की ऊंचाई तक यह खतरा बहुत मामूली है जबकि 2300 मीटर से ऊपर और 400 मीटर से नीचे कोई मानव-गुलदार संघर्ष नहीं पाया गया है। शोधपत्र के अनुसार नरेंद्रनगर वन प्रभाग गढ़वाल हिमालय में जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण भंडार है। यहां जंगल में पादप विविधता के चलते जंगली जानवरों के बड़े समूहों को अनुकूल स्थिति मिलती है। इस वन प्रभाग के 3 रेंज मानिकनाथ, शिवपुरी और सकलाना के साथ-साथ हाल ही में बनाए गए नरेंद्रनगर और कीर्तिनगर रेंज हाथियों, बाघों, तेंदुओं, जंगली सूअरों, बंदरों, हिरणों आदि की आबादी के लिये मुफीद माने जाते हैं। इन वन्यजीवों की निकटता से आसपास की आबादी और वन्यजीवों का संघर्ष बढ़ जाता है।
वन्यजीव संस्थान के डीएस मीना और डीपी बुलानी आदि के एक अध्ययन के अनुसार चार धाम मार्ग के चौड़ीकरण एवं रेल आदि परियोजनाओं के कारण भी वन्य जीवन प्रभावित हुआ है। मार्ग के लम्बे समय तक अवरुद्ध रहने से भी गुलदार जैसे वन्य जीवों को आसपास की बस्तियों में घुसने की आजादी मिली है।

गुलदार भी कहां सुरक्षित हैं ?

डीएस मीना, डीपी बुलानी, एमएम बिष्ट बौर डीएस पुण्डीर के शोध पत्र ‘‘ह्यूमन वाइल्ड लाइफ कन्फिलिक्ट…’’ के अनुसार उत्तराखंड में सन् 2000 से लेकर 2020 तक लगभग 1396 तेंदुए मारे गए हैं। इनकी मौत का कारण अवैध शिकार, दुर्घटना, जंगल की आग के साथ जलना, सड़क या रेल दुर्घटना, आदमखोर होने के कारण मारा जाना और आपसी स्ांघर्ष माना गया। वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार इनमें 648 गुलदार या तेंदुये प्राकृतिक मौत से, 152 दुर्घटनाओं में, 65 को मानव भक्षी घोषित होने पर मारा गया, 41 शिकारियों द्वारा अवैध शिकार से तथा 212 अज्ञात कारणों से मारे गये। वर्ष 2000 के बाद से नरेंद्रनगर वन प्रभाग में कुल 645 घटनाओं में 740 पशुओं की मौत साथ मानवों के घायल होने के लगभग 126 मामले और 36 मानव मृत्यु की घटनाएं दर्ज हुयी है। डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 1 जनवरी 2020 से 30 नवंबर 2020 तक विभिन्न कारणों से लगभग 121 तेंदुए मृत पाए गए हैं। इसके अलावा, मानव वन्यजीव संघर्ष में, तेंदुए भी या तो अवैध रूप से या उत्तराखंड में आदमखोर घोषित होने के कारण मारे गए।

– जयसिंह रावत

 

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