विभिन्न रागों पर आधारित, दस रात्रियों तक मंचित होने वाले विश्व के सबसे बडे गीतनाट्य का दर्जा प्राप्त उत्तराखंड की रामलीला मंचन पर बहुत प्रयोग हुए हैं। दस रात्रियां की रामलीला तीन रात्रि में व बाद के वर्षो मे चंद घंटो में भी मंचित करने का प्रयोग उत्तराखंड की प्रवासी रंग मंडलियों द्वारा समय-समय पर किया जाता रहा है।
सी एम पपनैं
ऐसा ही एक प्रयोग रामलीला के एक अंश पर उत्तराखंड के प्रबुद्ध प्रवासी जनों द्वारा गठित सांस्कृतिक संस्था ‘साथी समाज उत्थान वैलफेयर सोसाइटी’ द्वारा रागों पर आधारित नृत्य नाटिका ‘स्वयंवर’ का प्रभावशाली मंचन 10 अगस्त की सांय, मुक्तधारा सभागार, गोल मार्किट, दिल्ली में राजेन्द्र बिष्ट के निर्देशन, नितिन शर्मा व रितु शर्मा के नृत्य निर्देशन तथा विनोद पांडे के संगीत निर्देशन में मंचित किया गया।
एक घंटे की समय सीमा मे मंचित नृत्य नाटिका ’स्वयंवर’ का श्रीगणेश श्री रामचंद्र कृपालु भजमन…। श्रीराम वंदना को महिला व पुरुष नतृकां द्वारा प्रभावशाली नृत्य रूप में प्रस्तुत किया गया। विश्वामित्र की तपस्या में विघ्नबाधा डालने वाली राक्षसी ताडिका का श्रीराम द्वारा बध।
राम, लक्ष्मण का विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंच राजा जनक से मुलाकात। पुष्प वाटिका में राम व सीता का पहला मिलाप। जनक दरबार धनुष यज्ञ में राजाओं के नाकाबिल करतब तथा जनक विलाप व क्रोध के बाद विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम का धनुष तोड़ना व सीता द्वारा श्रीराम को वर माला पहनाना।
परशुराम का जनक दरबार में पहुंच शिव का टूटा धनुष देख क्रोधित होना। परशुराम लक्ष्मण संवाद, जनकपुर से सीता की विदाई इत्यादि इत्यादि रामलीला के अंशों को नृत्य नाटिका शैली में मंचित करने का प्रयोग एक सफल और यादगार मंचन कहा जा सकता है।
मंचित नृत्य नाटिका ’स्वयंवर’ में श्रीराम की भूमिका में अवधेश कुमार, अमित सागर (लक्ष्मण), रितु शर्मा (सीता), नितिन (परशुराम), किशन बिष्ट (जनक) तथा अन्य भूमिकाओं में अंशु, हरीश इत्यादि इत्यादि द्वारा विभिन्न पात्रों के रूप में यादगार भूमिकाओं का सफल निर्वाह किया गया।
रामलीला उत्तराखंड के लोगों की आस्था का सबसे बड़ा सम्बल रहा है। जिसको मंचित करना, देखना, सुनना और जीवन में उतारना उत्तराखंडी लोगों की मानसिकता का आदर्श रहा है।
इसी आदर्श स्वरूप उत्तराखंड के दिल्ली प्रवास में निवासरत राजेन्द्र बिष्ट के सफल निर्देशन व प्रस्तुतिकरण तथा नितिन शर्मा व रितु शर्मा द्वारा की गई नृत्य कोरियोग्राफी तथा विनोद पांडे के संगीत निर्देशन व राजेन्द्र बिष्ट व हेमा रावत की कर्णप्रिय आवाज में रिकार्डेड गीत, संगीत के द्वारा मंचित नृत्य नाटिका ’स्वयंवर’ का प्रयोग भी श्रोताओं के सम्मुख आना एक नया आयाम कहा जा सकता है।
जो सभागार में बैठे श्रोताओं को खूब भाता नजर आया है। श्रोताओं द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा मंचित नृत्य नाटिका ’स्वयंवर’ की की गई है।
मंचित नृत्य नाटिका में पात्रों की रूप सज्जा, वस्त्र सज्जा व आभूषण रामकथा के अनुकूल व अति प्रभावशाली था। प्रकाश व्यवस्था मंचित दृश्यों के अनुकूल जरूर थी लेकिन दृश्यों में कहीं कहीं पर प्रकाश व्यवस्था में व्यवधान नजर आ रहा था। निष्कर्ष स्वरूप मंचित नृत्य नाट्य एक सफल मंचन कहा जा सकता है।
’साथी समाज उत्थान वैलफेयर सोसाइटी’ संस्थापक राजेन्द्र बिष्ट एक विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं। जिसकी पुष्ठि उनके द्वारा पूर्व में मंचित विभिन्न विषयों से जुडे गीत-संगीत के नृत्य-नाटक व निर्मित लघु फिल्में रही हैं, जिनका उन्होंने निर्देशन किया था, साथ ही एक कलाकार के रूप में भी प्रतिभाग किया था।
विगत कई वर्षो से राजेन्द्र बिष्ट उत्तराखंड की पारंपरिक समृद्ध लोक सांस्कृतिक धरोहर के प्रचार-प्रसार के कुशल ध्वज वाहक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करते रहे हैं, जो सराहनीय कहा जा सकता है।
अवलोकन कर ज्ञात होता है, कुमांऊ व गढ़वाल के लोकजीवन ने अपनी अस्मिता, अपने संघर्ष और मूल्यबोध को सक्रिय रखने के लिए, जिन कलारूपों का सहारा लिया, उनमें रामलीला का स्थान केन्द्रीय रहा है। जनमानस के बीच, रामलीला करवाना, उसमें अभिनय करना, उसे देखना, सभी परंपरागत रूप में, भक्ति भाव से जुड़ा हुआ माना जाता रहा है।
’साथी समाज उत्थान वैलफेयर सोसाइटी’ द्वारा मंचित नृत्य नाटिका ’स्वयंवर’ का यह पहला प्रयोग भी राजेन्द्र बिष्ट के सानिध्य में आयोजक संस्था सदस्यों की भक्ति भावना से जुडा हुआ एक सफल प्रयोग व प्रयास माना जा सकता है। आशा की जा सकती है जल्द ही भविष्य में इस मंचन का बड़ा प्रभावी प्रयोग जनमानस के मध्य होगा।
नृत्य नाटिका ’स्वयंवर’ के मंचन पर आमन्त्रित प्रमुख अतिथियों, दिनेश मोहन घिन्डियाल, राजेश सिंह बिष्ट, चारु तिवारी, चंद्र मोहन पपनैं, भीम सिंह, दिनेश जोशी, चंदन गुसाई, चंद्र सिंह रावत इत्यादि इत्यादि को संस्था अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह बिष्ट, महासचिव गौरव गुसाई, सिद्धार्थ बिष्ट, श्याम सुंदर, भरत बिष्ट, किशन बिष्ट इत्यादि इत्यादि के कर कमलों पर्यावरण के प्रतीक पौंधे सम्मान स्वरूप भेंट किए गए।
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