महिलाओं को स्वरोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर बना रही हैं ईशा चौहान

महिलाओं को स्वरोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर बना रही हैं ईशा चौहान

ऋषिकेश श्यामपुर खदरी की ईशा कलूड़ा चौहान प्राकृतिक से प्राप्त वेस्ट मटेरियल से राखियां बना रही है । यह राखियां पूर्ण रूप से इको फ्रेंडली है। यह राखियां भीमल, पीरुल और गाय के गोबर से बनाई गई है यह राखियां सुंदर और खुशबूदार भी है।

शिक्षिका ईशा कलूड़ा चौहान इन दिनों रक्षाबंधन की तैयारियों को लेकर पांच स्वंय सहायता समूहों की महिलाओं को राखी बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण दे रही है। जिसमें एकता महिला, पहाड़ी नोनी, प्यारी पहाड़न, मेरू पहाड़ और सरस्वती स्वयं सहायता समूह शामिल है। इन महिलाओं को राखी के डिजाइन, क्वालिटी, बनावट के साथ ही उनकी पैकिंग के तरीके सिखाए जा रहे हैं। जिससे वह भविष्य में स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका को बढाकर स्वयं को आत्मनिर्भर व सशक्त बना सके। यह राखियां पूर्ण रूप से इको फ्रेंडली है। भीमल (पेड़ों से प्राप्त होने वाला रेशा), पीरुल (चीड़ के पेड़ों की पत्तियां) और गाय के गोबर से यह राखियां बनाई गई है और यह राखियां सुंदर दिखने के साथ खुशबूदार भी है।

जब एक महिला सशक्त बनती है, तभी एक मजबूत राष्ट्र की उत्पत्ति होती है। हमें ऐसे लोगों को सहयोग करना चाहिए जो महिलाओं को सशक्त बनाने का काम कर रही है और उसके लिए वह दिन-रात मेहनत कर रही हैं और पहले भी उनके द्वारा डोईवाला ब्लॉक के कई समूह और संगठनों को निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।

ईशा चौहान महिला समूहों को कई प्रकार से राखी बनाना सिखा रही हैं जिसमें गाय के गोबर से बनी राखियां भी है जिनको गोमय राखियां भी बोल सकते हैं। कहते हैं कि गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है इसलिए हमारे हिंदू धर्म में किसी भी कर्मकांड में गाय के गोबर को सम्मिलित किया जाता है और गाय के गोबर में हानिकारक रेडिएशन को रोकने की क्षमता भी होती है। इसलिए गाय के गोबर से बनी हुई राखियां बहुत ही उपयोगी साबित हो रही है।

दूसरा यह गौ संरक्षण के लिए भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है क्योंकि जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो लोग उन्हें सड़कों पर छोड़ देते हैं कम से कम इस लोभ में लोग गायों को सड़कों पर तो नहीं छोड़ेंगे और गाय का गोबर हर घर में आसानी से उपलब्ध भी हो जाता है। यह भी हमारे लिए स्वरोजगार का एक अच्छा माध्यम है जो पलायन को रोकने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।

इसके अलावा भीमल के पेड़ के रेशों से भी राखियां बनाई जा रही है भीमल जो कि पशुओ के लिए चारा का भी साधन है, पहाड़ों में अब इसका प्रयोग बहुत कम किया जा रहा है। ईशा का कहना है कि पलायन के कारण यहां के लोग रोजगार की तलाश में अन्य शहरों में जा चुके हैं, लेकिन हमने इसे रोजगार से जोड़ने हेतु इस राखी के त्योहार पर भीमल से कुछ राखी के सैंपल बनाएं है और यह लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बन रहे हैं।

उनका कहना है कि लोग इसके महत्व को भी समझे कि किस प्रकार से एक वेस्ट मटेरियल से हम अपनी आजीविका का संरक्षण कर सकते हैं जो कि हमारे उत्तराखंड और हमारे आसपास ही पाया जाता है हमें किसी अन्य किसी शहर से इस राखी के लिए कोई सामान नहीं मंगाना पड़ता है बहुत कुछ सामान हमारे आसपास ही मिल जाता है।

ईशा बताती हैं कि उन्होंने पीरुल यानि कि चीड़ की पत्तियों से भी राखी बनाई है। पीरूल जो कि जंगलों में आग लगने का कारण भी होता है और इसे हम प्रयोग में लाकर स्वरोजगार भी पैदा कर सकते हैं इसी उद्देश्य से हमने कुछ राखियां पिरूल की भी बनाई है। यह सभी राखियां प्राकृतिक तत्वों से बनी हुई हैं यह पूर्ण रूप से शुद्ध है और इको फ्रेंडली यानि कि पर्यावरण मित्र भी हैं जो किसी भी हाल में हानि नहीं पहुंचाती है और यह हमारे वातावरण को भी शुद्ध रखती हैं।

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