देश में नहीं होगी दालों की किल्लत : पन्तनगर विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गयी नई दलहनी प्रजातियां

देश में नहीं होगी दालों की किल्लत : पन्तनगर विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गयी नई दलहनी प्रजातियां

भविष्य में देश की बढ़ती जनसंख्या के लिये विभिन्न दालों की उपलब्धता बनाये रखने के लिये पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय में दलहन की प्रजातियों एवं उनकी उत्पादन तकनीकों को विकसित करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील प्रजातियां किसानों के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय है तथा सफलापूर्वक उगायी जा रही है जिससे कि देश में विभिन्न दलहनों जैसे चना, मटर, मसूर, अरहर, उर्द एवं मूंग इत्यादि के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई एवं देश में विगत वर्ष दलहन उत्पादन बढ़कर 252 लाख टन हो गया।

बढ़ते दलहन उत्पादन से ना केवल प्रति व्यक्ति दलहन की उपलब्धता बढ़ी बल्कि देश में इनकी कीमतों में एक स्थायित्व भी बना रहा। लेकिन वर्तमान वर्ष 2022-23 के खरीफ सीजन में दलहनों की बुवाई के रकवे में कमी दर्ज की गयी है साथ ही लगातार हो रही बारिश से दलहनों की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है जिससे इस वर्ष दलहन के उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना है।

भविष्य में देश की बढ़ती जनसंख्या के लिये विभिन्न दालों की उपलब्धता बनाये रखने के लिये पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय में दलहन की प्रजातियों एवं उनकी उत्पादन तकनीकों को विकसित करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

इसी क्रम में 01-03 सितम्बर, 2023 को महात्मा फुले कृषि विज्ञापीठ, राहुरी में आयोजित रबी दलहन की वार्षिक बैठक में उप महानिदेशक, आई.सी.ए.आर. की अध्यक्षता में विभिन्न दलहनों की कुल सात अधिक उपज देने के साथ-साथ विभिन्न एवं रोगों एवं कीटों के लिये अवरोधी प्रजातियों जिसमें दलहनी मटर की चार, मसूर की दो एवं चने की एक प्रजाति को देश के विभिन्न भागों में उगाये जाने हेतु चिन्हित किया गया।

आशा है यह नई प्रजातियों देश में भविष्य में दलहन की आवश्यकताओं को पूरा करेंगी। याद रहे कि वर्ष 2030 तक भारत सरकार द्वारा देश में कुल 320 लाख टन दलहन प्रतिवर्ष उत्पादित करने का लक्ष्य रखा गया है।

पंत मटर 484-यह दलहनी मटर की एक बौनी प्रजाति है। जिसका देश के उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर एवं उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र) में लगातार तीन वर्षों (2020-21, 2021-22, 2022-23) तक किये गये उपज सम्बन्धी परीक्षणों में पंत मटर 484 की औसत उपज 2333 किग्रा/हेक्टेयर एवं सबसे अच्छी मानक प्रजाति पंत मटर 250 की उपज 1918 किग्रा/हेक्टेयर रही, जिस कारण पंत मटर 484 की उपज मानक प्रजाति पंत मटर 250 की उपज से 21.64 प्रतिशत अधिक रही।

पंत मटर 497, पंत मटर 498 एवं पंत मटर 501 – यह दलहनी मटर की लम्बी प्रजातियां है। जिनकी देश के उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में लगातार तीन वर्षों (2020-21, 2021-22, 2022-23) तक किये गये उपज सम्बन्धी परीक्षणों में औसत उपज क्रमशः 1966 किग्रा/हेक्टेयर, 2050 किग्रा/हेक्टेयर और 2140 किग्रा/हेक्टेयर एवं सबसे अच्छी मानक प्रजाति पंत मटर 42 की उपज 1753 किग्रा/हेक्टेयर रही, जिस कारण पंत मटर 497, पंत मटर 498 एवं पंत मटर 501 की उपज मानक प्रजाति पंत मटर 42 की उपज से क्रमशः 12.15, 16.94 एवं 22.08 प्रतिशत अधिक रही।

पंत मसूर 14 एवं पंत मसूर 15 – यह मसूर की छोटे दाने वाली प्रजातियां है। जिनकी देश के उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में लगातार तीन वर्षों (2020-21, 2021-22, 2022-23) तक किये गये उपज सम्बन्धी परीक्षणों में औसत उपज क्रमशः 1555 किग्रा/हेक्टेयर और 1559 किग्रा/हेक्टेयर एवं सबसे अच्छी मानक प्रजाति पंत मसूर 8 की उपज 1349 किग्रा/हेक्टेयर रही, जिस कारण पंत मसूर 14 एवं पंत मसूर 15 की उपज मानक प्रजाति पंत मसूर 8 की उपज से क्रमशः 15.27 एवं 15.57 प्रतिशत अधिक रही।

पंत चना 10 – यह चने की देशी प्रजाति है। जिसकी देश के उत्तरी पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा) में लगातार तीन वर्षों (2020-21, 2021-22, 2022-23) तक किये गये उपज सम्बन्धी परीक्षणों में औसत उपज 1779 किग्रा/हेक्टेयर एवं सबसे अच्छी मानक प्रजाति के.पी.जी. 59 की उपज 1598 किग्रा/हेक्टेयर रही, जिस कारण पंत चना 10 की उपज मानक प्रजाति के.पी.जी. 59 की उपज से 11.32 प्रतिशत अधिक रही।

यह प्रजाति विल्ट, कॉलर रॉट और स्टन्ट रोगों के लिय मध्यम प्रतिरोधी है। यह प्रजातियां फली बेधक कीटों के लिये मध्यम प्रतिरोधी है। इनमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 17.67 प्रतिशत है एवं 100 दानों का वजन लगभग 24.6 ग्राम. है और परिपक्वता अवधि लगभग 130 दिन है।

निकट भविष्य में इन प्रजातियों को उगाये जाने से देश में ना केवल मटर, मसूर एवं चने की पैदावार में बढ़ोत्तरी होगी बल्कि इनकी कीमतों में भी स्थायित्व बना रहेगा। साथ ही चूंकि यह प्रजाति विभिन्न रोगों एवं कीटों के लिये अवरोधी है, किसानों को विभिन्न बीमारियों एवं रोगों की रोकथाम पर होने वाले खर्च से भी छुटकारा मिलेगा। जिससे लागत में भी कमी आयेगी।

पन्तनगर विश्वविद्यालय की इन प्रजातियों की देश के विभिन्न भागों में उगाये जाने हेतु चिन्ह्ति किये जाने पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा प्रजातियों को विकसित किये जाने वाले वैज्ञानिकों डा. आर.के. पंवार, डा. एस.के. वर्मा एवं डा. अंजू अरोरा एवं परियोजना में कार्यरत समस्त कर्मियों को बधाई दी तथा उम्मीद जताई की यह प्रजातियां उत्तराखंड राज्य एवं देश के उत्तरी पूर्वी एवं पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में विशेषकर छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिये अत्यन्त उपयोगी साबित होगी तथा देश की खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ अधिक प्रोटीन होने के कारण पोषण सुरक्षा में भी अहम योगदान देगी।

डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा आगामी किसान मेले तथा प्रदेश में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से इन नई प्रजातियों के व्यापक प्रचार-प्रसार पर विशेष जोर दिया गया। निदेशक शोध डा. ए.एस. नैन द्वारा प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बताया गया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित प्रजातियां ना केवल देश में बल्कि पड़ोसी देशों में भी किसानों द्वारा सफलतापूर्वक उगायी जा रही है तथा उनके द्वारा यह भी बताया गया कि आगामी सीजन में इस नई प्रजाति के बीजों को पर्याप्त मात्रा में किसानों को उपलब्ध कराया जायेगा।

दलहन प्रजनक एवं संयुक्त निदेशक फसल अनुसंधान केन्द्र डा. एस.के. वर्मा द्वारा इस संबंध में बताया गया कि विश्वविद्यालय द्वारा अब तक लगभग 60 से अधिक प्रजातियां विकसित की गयी है एवं आगामी वर्षों में विभिन्न चुनौतियों जैसे बढ़ती आबादी, घटती खेती योग्य भूमि, बढ़ते तापमान एवं घटती सिंचाई के लिये जल की उपलब्धता के मद्देनजर शोध कार्य किये जा रहे है। ये नई प्रजातियां देश में वर्ष 2030 तक 320 लाख टन दलहन उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने में अहम योगदान देगीं।

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