पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड के अधिकारियों पर हमला बोला है उन्होंने आरोप लगाया कि कई अधिकारी विपक्षी नेताओं का फोन नहीं उठाते उन्हें डर रहता है कि उन्होंने अगर विपक्षी नेताओं का फोन उठाया तो उनकी विदाई हो सकती है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया कि अधिकारी, टेलीफोन उठाते नहीं, जनप्रतिनिधि को आवश्यक सम्मान नहीं दिया जाता, यह अकेले श्री मदन बिष्ट जी की समस्या नहीं है। यह दर्द और शिकायत, विपक्ष के सभी नेतागणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की है!
उन्होंने कहा कि जो अधिकारी मलाईदार पदों पर हैं उनके लिए तो विपक्षी नेता का टेलीफोन उठाना मलाई से वंचित रहने जैसा है। मलाईदार व महत्वपूर्ण पद पर विराजमान अधिकारी को हमेशा यह डर सताता रहता है कि यदि भाजपा तक यह खबर पहुंच गई कि मैंने अमुख नेता जो विपक्ष में विराजमान हैं उनका टेलीफोन उठाकर उनको आदर पूर्वक नमस्कार कह दिया तो वह अधिकारी फिर अपने विदाई के दिन गिनने लग जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कई अधिकारी बहुत अच्छा काम करते हैं हम उनकी सार्वजनिक प्रशंसा भी करना चाहते हैं, मगर इस संकोच के मारे उनकी प्रशंसा नहीं कर पाते हैं कि कहीं हमारी प्रशंसा उनकी पोस्टिंग पर असर न डाल दे!
हरीश रावत ने कहा कि मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि यदि कोई मलाईदार व महत्वपूर्ण पद वाला अधिकारी भाजपा के नेता, चाहे वह छोटे ही नेताजी हों उनके सानिध्य का लाभ ले रहा है और उस समय यदि विपक्ष के बड़े नेता का टेलीफोन चला जाए तो उठाते नहीं है बल्कि उनको दिखा करके कहते हैं कि देखिए यह नेताजी बार-बार तंग कर रहे हैं और मैं उनका टेलीफोन उठा नहीं रहा हूं। क्योंकि विपक्ष के नेताओं का टेलीफोन न उठाना, भाजपा और वर्तमान सत्ता के प्रति उनकी वफादारी का मापदंड बन गया है।
हम तो विरोध पक्ष हैं निभा लेंगे, स्थिति से जूझने का हौसला पैदा कर लेंगे। मगर ब्यूरोक्रेसी के ऊपर इस तरह की चर्चाओं का कितना दुष्प्रभाव पड़ रहा होगा, मैं इसको लेकर के चिंतित हूं। ब्यूरोक्रेसी मेरुदंड है, राज्य रूपी शरीर का! उसका कमजोर होना या असहाय होना न सत्ता के हित में है, न राज्य के हित में है।
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