पेट में जलन, शुगर की वजह से गड़बड़, खून की कमी, अल्सर के फैलाव को रोकने, कैंसर के प्रभाव को कम करने, गर्भाशय के केंसर को ठीक करने, पाचन को ठीक करने, कफ और पुरानी खांसी को कम करने भी लोध की चाल के पाउडर और छाल से बने आसव और सीरप का उपयोग किया जाता है!
जे. पी. मैठाणी, देहरादून
लोध की छाल से बहुत प्रकार के रोगों – जैसे स्त्री रोग, उदार और आंतों के रोग, शुगर, अपच आदि की दवा – डाबर और अन्य आयुर्वेदिक फ़ार्मेसी कई वर्षों से बनाती आ रही है! लोधरासव, लोधुगा पाउडर, लोध सीरप – आदि दवा लोध से ही बनाती है, देश में कई स्थानों पर इसको – पठानी लोध के रूप में भी जाना जाता है महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता के कारण उत्पन्न कई रोगों, खून की कमी को रोकने में लोध सहायक होता है।
पेट में जलन, शुगर की वजह से गड़बड़, खून की कमी, अल्सर के फैलाव को रोकने, कैंसर के प्रभाव को कम करने, गर्भाशय के केंसर को ठीक करने, पाचन को ठीक करने, कफ और पुरानी खांसी को कम करने भी लोध की चाल के पाउडर और छाल से बने आसव और सीरप का उपयोग किया जाता है! उदर के रोगों की वजह से अन्दर हो गए घावों को ठीक करने में – लोध के बीज और छाल से बने पाउडर – अर्क और चूर्ण का प्रयोग किया जाता है। यही नहीं लोध का प्रयोग करने से दांतों के रोग, फोड़ा फुंसी को जल्दी सुखाने में भी मदद मिलती है। यही नहीं लोध की छल से बनी क्रीम का प्रयोग एंटी एजिंग क्रीम, बूब्स एन्हांसर जैसी सौन्दर्य वर्धक क्रीम की बहुत मांग है। कील मुंहासे का इलाज करने में लोध की क्रीम, कई प्रकार के दन्त मंजन और और च्यवनप्राश के मिश्रण के साथ कोस्मेटिक उत्पादों में लोध की छाल का प्रयोग किया जाता है!
लोध्रा के पेड़ से सामान्यतः 5 साल के बाद – उसके मोटे तनों और शाखाओं से छाल उतारी जा सकती है, तब छाल को उबालकर, पावडर बना कर अनेक प्रकार के आसव, अर्क, जूस, पाउडर और गोलियां बनाई जाती है! भविष्य में कच्चे माल की कमी न हो, इसीलिए – डाबर का जीवन्ति वेलफेयर एंड चैरिटेबल ट्रस्ट – लोध की खेती को प्रोत्साहित कर रहा है। जनपद चमोली में – आगाज फैडरेशन, पीपलकोटी, रुद्रप्रयाग में ह्यूमन इंडिया और अल्मोड़ा और बागेश्वर में खुद जीवन्ति वेलफेयर ट्रस्ट लोध के पौधों की नर्सरी बनाकर – किसानों को निशुल्क बाँट रही है और लोध के संरक्षण के साथ साथ लोध खेती को प्रोत्साहित कर रही है।
लोध की खेती
लोध के बीज आसानी से नहीं जमते हैं, काले पेड़ पर ही पके बीजों को तुरंत गुण गुने पानी में भिगोकर रेतीली और भुर भुर्री मिटटी में बोना चाहिए बाद में जब पौध तीन या चार इंच की हो जाए तो उसको नर्सरी की थैलियों में एक साल रखकर – अगले साल वृक्षारोपण के लिए भेज देना चाहिए। लोध का पेड़ पहले तीन साल बहुत धीरे धीरे बढ़ता है फिर अगले 5-7 साल तेजी से बढ़ता है, वैसे लोध की कटिंग भी जाड़ों में लगाई जा सकती है! लेकिन सबसे अच्छा बीजों का जम्व्व – जब चिड़िया, बन्दर और लंगूर इसके बीज खाकर बीत करते हैं तो उन स्थानों पर ये खूब जमता है!
लोध प्राप्ति स्थान – लोध ठंडी जलवायु का पौधा है ! लोधरा या लोध पहाड़ में – 1400 मीटर से ऊपर – उत्तर पूर्वी ढालों पर पाया जाने वाला चौड़ी – चौड़ी मांसल पत्तियों, खुरदरे तनों और लिस लिसी छाल वाला पर्णपाती पौधा है – जिसकी सामान्य उंचाई – 8 से 12 मीटर तक हो सकती है ! पेड़ खूब गुच्छेदार टहनियों वाला होता है! इस पर बसंत ऋतू के समय गुच्छों में बहुत सुन्दर फूल खिलते हैं! लोध की नर्सरी भले ही निचले इलाकों में बनाई जा सकती है लेकिन रोपण ऊंचे इलाकों जो 1300 मीटर से ऊपर स्थित हों उन स्थानों पर ही, खेतों के किनारे हर दस फीट की दूरी पर किया जाना चाहिए! विशेष देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं है! पेड़ एक बार जड़ पकड़ ले तो फिर आसानी से उग जाता है!
लोध और लोक ज्ञान – उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों और गांवों में पूर्व में – हर घर में जहां लोग – मट्ठा- छांछ- आदि से मक्खन और घी बनाते थे – वहा – दही को मथने के लिए – लोध की लकडियों से बनी मथनी- यानी – रोडू – लोध की लकड़ी से ही बने होते थे – इस प्रकार मथनी- के संपर्क में दही को – लकड़ी के बने – पर्या – में दही मथने से – लोध के अंश – दवा के रूप में छांछ और मक्खन में घुल जाते थे – फिर हम लोध के अंशों का अप्रत्यक्ष रूप से – सेवन कर लेते यह था हमारा – आयुर्वेद का शानदार लोक ज्ञान! अब के समय में यह सब लुप्त हो रहा है!
पशुपालन और लोध – मनुष्य की तरह पशुओं के कई प्रकार के रोग – लोध के चारे से ही ठीक होआ जाते हैं, पशुओं के ऋतू क्रम का गडबडाना, गर्भाशय और मूत्र रोग, अपच और -ष्टि दोष को दूर करने में – लोधा के हरे पत्तों का चारा ही रामबाण दवा के रूप में काम करता है !
लोध के संरक्षण के प्रयास
पीपलकोटी में – आगाज संस्था और उनके साथ जुड़े- किरूली, मल्ला टंगणी, सुतोल, कनोल, सुनाली, जुमला, नौरख के महिला समूहों ने साथ जुड़कर – पिछले मानसून में – 2850 लोध्र के पौधों का रोपण किया है, साथ ही लगभग 250 पौधे बायो टूरिज्म पार्क में सुरक्षित रखे गए हैं और वर्तमान में जंगलों से लोध के बीज एकत्र किये जा रहे हैं। कालान्तर में नर्सरी स्थापित की जा रही है! इस कार्य के लिए जीवन्ति वेलफेयर एंड चैरिटेबल ट्रस्ट संस्था के मदद कर रहा है।
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