द्रौपदी मुर्मु ने अपने दीक्षान्त भाषण में स्नातकों, आचार्यों, अधिकारियों, कर्मचारियों तथा अभ्यागत अतिथियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति का आधार तथा हमारी पहचान है। वेद, वेदाङ्गों एवं इसके अन्य साहित्य में प्रचुर ज्ञानराशि सन्निहित है। प्राचीन काल में काशी, तक्षशिला, नालन्दा, काञ्ची जैसे संस्कृत के विद्याक्षेत्र रहे हैं, जिनमें पाणिनि ने अष्टाध्यायी, कौटिल्य ने अर्थशास्त्र, चरक ने औषधि विज्ञान के आधार ग्रन्थ जैसी संहिताओं की रचना की।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने अपना प्रथम दीक्षान्त महोत्सव 05 दिसम्बर 2023 को अत्यन्त हर्षोल्लास से मनाया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलाध्यक्ष तथा भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मुख्यातिथि के रूप में दीक्षान्त भाषण दिया। कार्यक्रम में भारत सरकार के शिक्षा, कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस महोत्सव में सत्र 2018 से सत्र 2023 तक के छह वर्षों में विश्वविद्यालय से वेद, दर्शन, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, व्याकरण, साहित्य, प्राकृत भाषा, शिक्षा शास्त्र, पौरोहित्य, धर्मशास्त्र, योग, हिन्दू अध्ययन, हिन्दी आदि विषयों में विद्यावारिधि, विशिष्टाचार्य, आचार्य, एम. ए., शिक्षाचार्य, शास्त्री, बी.ए., शिक्षाशास्त्री, स्नातकोपाधि पत्र तथा अंशकालीन डिप्लोमा के कुल 4423 छात्रों को उपाधियां प्रदान की गई।
राष्ट्रपति की आगवानी शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान तथा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने की। तत्पश्चात् राष्ट्रपति के साथ स्वर्ण पदक प्राप्त 135 छात्रों का छायाचित्र अंकित किया गया। इसके पश्चात् कार्यक्रम स्थल तक शंख ध्वनि के साथ शोभा यात्रा निकाली गयी, जिसमें केसरिया पगडी बांधे विश्वविद्यालय के कार्य परिषद तथा विद्वत्परिषद के सदस्य भी सम्मिलित हुए। राष्ट्रगान के उपरान्त कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रपति एवं शिक्षा मंत्री के द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के द्वारा सरस्वती वन्दना की सुन्दर प्रस्तुति की गयी।
यह दीक्षान्त महोत्सव का कार्यक्रम दो चरणों में सम्पन्न हुआ। प्रथम चरण में दीक्षान्त महोत्सव में समागत राष्ट्रपति, शिक्षा मंत्री, देश के विभिन्न स्थानों से पधारे हुए अतिथियों, विश्वविद्यालय के आचार्यों, अधिकारियों, कर्मचारियों, स्नातकों तथा छात्रों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अध्यक्षत्व में तथा महामहोपाध्याय पद्मश्री डॉ. मण्डन मिश्र के महनीय परिश्रम के द्वारा यह विश्वविद्यालय स्थापित हुआ। उनके संकल्पों की प्रतिपूर्ति में महामहोपाध्याय प्रो. वाचस्पति उपाध्याय के द्वारा बहुत विकास किया गया।
इसी प्रकार के महत्तर लक्ष्य को आगे रखकर विश्वविद्यालय सभी स्तरों पर विकास करते हुए प्रयत्नशील है। भारत सरकार तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) का पालन करते हुए विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम प्रवर्तित है। इसी निरन्तरता में विद्या क्षेत्र में विस्तार करते हुए प्राच्यविद्या शाखाओं के साथ ही हिन्दी, अंग्रेजी, समाजशास्त्र, हिन्दू अध्ययन आदि में एम.ए, पाठ्यक्रमों का शुभारम्भ हो गया है। साथ ही महिला शिक्षा व सशक्तीकरण की दिशा में उनके सर्वागीण विकास को दृष्टिगत रखते हुए महिला अध्ययन केन्द्र का पुनरारम्भ किया गया है। पुस्तकालय का डिजिटाइजेशन, विभिन्न अंशकालीन पाठ्यक्रमों का सञ्चालन, विविध व्याख्यानों, संगोष्ठियों का आयोजन आदि गतिविधियों के साथ विश्वविद्यालय निरन्तर आगे बढता जा रहा है। खेल जगत में भी अन्ताराष्ट्रीय स्तर पर कजाकिस्तान में आयोजित सीनियर एशिया कुश्ती चैम्पियनशिप में छात्र ने रजत पदक प्राप्त कर विश्वविद्यालय का गौरव बढाया है।
प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के उपरान्त कुलपति द्वारा राष्ट्रपति की अनुज्ञा से दीक्षान्त समारोह प्रारम्भ करने की घोषणा की। समारोह में पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री के विचार टेपवादन के द्वारा रखे गये। तत्पश्चात् कुलसचिव ने स्नातकों को अनुशासित किया । अनुशासनोपरान्त उपाधियों के अनुमोदन हेतु कुलपति द्वारा राष्ट्रपति से निवेदन किया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्वारा सत्र 2018 से सत्र 2023 तक के विश्वविद्यालय के छह सर्वोत्कृष्ट छात्रों को स्वर्णपदक प्रदान किये गये।
इसके पश्चात् विशिष्टातिथि धर्मेन्द्र प्रधान, शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्री, भारत सरकार ने अपने उद्वोधन में कहा कि भारत की मूल ज्ञान परम्परा को, जिसकी कुञ्जी संस्कृत भाषा में है, को आगे बढाने के लिए भारत सरकार ने तीन संस्कृत विश्वविद्यालयों की पुनर्रचना की। संस्कृत विश्वविद्यालय से दीक्षित स्नातकों को केवल शिक्षक नही बनना है, अपितु संस्कृत के अमूल्य ज्ञान को समाज में भीप्रसारित करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं को महत्त्व दिया गया है। इसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान परम्परा को पुनर्जीवित करना है। साथ ही भारतीय भाषाओं को तकनीकी के साथ जोडना है।
द्रौपदी मुर्मु ने अपने दीक्षान्त भाषण में स्नातकों, आचार्यों, अधिकारियों, कर्मचारियों तथा अभ्यागत अतिथियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति का आधार तथा हमारी पहचान है। वेद, वेदाङ्गों एवं इसके अन्य साहित्य में प्रचुर ज्ञानराशि सन्निहित है। प्राचीन काल में काशी, तक्षशिला, नालन्दा, काञ्ची जैसे संस्कृत के विद्याक्षेत्र रहे हैं, जिनमें पाणिनि ने अष्टाध्यायी, कौटिल्य ने अर्थशास्त्र, चरक ने औषधि विज्ञान के आधार ग्रन्थ जैसी संहिताओं की रचना की।
योग पद्धति संस्कृत की ओर से विश्व को प्रदान एक अमूल्य धरोहर है। हमारी राष्ट्रीय शिक्षानीति अध्यापकों के महत्त्व को रेखाङ्कित करती है। राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि संस्कृत के छात्र रोजगार के क्षेत्र में अध्यापन के साथ ही अन्य क्षेत्रों में अग्रणी रहेंगे। उन्होंने कहा कि गार्गी, लोपामुद्रा, अपाला, रोमशा, भारती जैसी विदुषियों का इतिहास में विशेष स्थान रहा है। अतः उनसे प्रेरित होकर बेटियां भी संस्कृत के क्षेत्र में आगे आयें। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि स्वर्णपदक प्राप्त करने वालों में भी बेटियां आगे रहेंगी।
इसके बाद राष्ट्रपति के प्रस्थान के उपरान्त दीक्षान्त महोत्सव के द्वितीय चरण में सर्वप्रथम विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया गया। इसके उपरान्त विश्वविद्यालयीय प्रकाशनों चौदह ग्रन्थों के साथ तीन शोध पत्रिकाओं शोधप्रभा, वास्तुशास्त्र विमर्श, सुमङ्गली तथा विद्यापीठ पञ्चाङ्ग आदि का लोकार्पण किया गया। तत्पश्चात् 129 स्नातकों को विविध पाठ्कयक्रमों में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु स्वर्णपदक प्रदान किये गये, जिसका उपस्थापन वेद-वेदाङ्ग पीठाध्यक्ष प्रो. जयकान्त सिंह शर्मा ने किया। इसके बाद क्रीडा प्रतियोगिता के पुरस्कार हेतु अर्ह छात्र-छात्राओं को ब्लेजर एवं ट्राफी आदि दिये गये। इसी प्रकार एन.सी.सी. कैडैट्स को भी प्रमाणपत्र दिये गये। अन्त में कुलपति के द्वारा दीक्षान्त समारोह की सम्पन्नता की घोषणा के पश्चात् विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् का गान किया गया। दीक्षान्त कार्यक्रम का संचालन प्रो. भागीरथि नन्द तथा प्रो. शिवशंकर मिश्र द्वारा किया गया।
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