मां पूर्णागिरि के आंचल में बसा, शारदा के जल से अभिसिंचित टनकपुर शहर में आयोजित इस तीन दिवसीय मेले के मुख्य आकर्षण-विशिष्ट बाल कार्यशाला, प्रसिद्ध रचनाकारों /विशेषज्ञों से सीधी बातचीत, भूगोल और इतिहास आदि विषयों के 3डी मॉडल, नेचर वॉक के अंतर्गत प्रकृति दर्शन, जनजातीय जीवन, सांस्कृतिक संध्या एवम भारत- नेपाल सीमा में लगे दोनों क्षेत्रों के बीच सांझी संस्कृति, विरासत पर चर्चा रही।
जिला चंपावत के टनकपुर में आयोजित तीन दिवसीय (22, 23, 24दिसंबर) पुस्तक मेले का विधिवत उद्घाटन करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा – उत्तराखंड में बुके नहीं बल्कि स्वागत में बुक देने की परंपरा चलनी चाहिए। फूलों को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता जबकि पुस्तकें लंबे काल तक ज्ञान प्राप्ति के लिए साथ बनी रहती हैं। उन्होंने आगे कहा कि पुस्तक मेलों से उत्तराखंड में ज्ञान की परंपरा विकसित होगी। प्रतिवर्ष पुस्तक मेले की यह अनूठी परंपरा शिक्षा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगी। किताबें समाज में परिवर्तन का आसान माध्यम हैं…।
मां पूर्णागिरि के आंचल में बसा, शारदा के जल से अभिसिंचित टनकपुर शहर में आयोजित इस तीन दिवसीय मेले के मुख्य आकर्षण-विशिष्ट बाल कार्यशाला, प्रसिद्ध रचनाकारों /विशेषज्ञों से सीधी बातचीत, भूगोल और इतिहास आदि विषयों के 3डी मॉडल, नेचर वॉक के अंतर्गत प्रकृति दर्शन, जनजातीय जीवन, सांस्कृतिक संध्या एवम भारत- नेपाल सीमा में लगे दोनों क्षेत्रों के बीच सांझी संस्कृति, विरासत पर चर्चा रही।
जिसमें बाल कार्यशाला के अंतर्गत उदय किरौला (बाल प्रहरी के संपादक) के नेतृत्व में विभिन्न कार्यक्रम सुचारू रूप से चलते रहे। पर्यटन- पर्यावरण और जड़ी बूटियों पर चर्चा के अंतर्गत भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. नवीन चंद्र जोशी व आयुष विभाग भारत सरकार के पूर्व निदेशक डॉ मायाराम उनियाल से संस्था के सचिव, एडवोकेट नवल किशोर तिवारी की सीधी बातचीत रही।
“तकनीकी युग में पुस्तकों की प्रासंगिकता” विषय को लेकर नवल किशोर की सीधी बातचीत “सोबन सिंह जीना विश्व विद्यालय”, अल्मोड़ा के कुलपति डॉ. सतपाल सिंह बिष्ट और केदारखंड, मानसखंड की लेखिका हेमा उनियाल से रही। शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, अध्यात्म, संगीत, कला, पर्यटन आदि का समन्वय आगे के कार्यक्रमों में शामिल रहा। निकटस्थ स्कूलों के छात्रों, बच्चों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिसमें नेपाल से आए बच्चों द्वारा भी सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न हुए। कार्यक्रम का व्यवस्थित सुमधुर संचालन हेमंत बिष्ट (नैनीताल) द्वारा किया गया।
भारत- नेपाल सीमा में लगे दोनों देशों के जिलों के बीच (सुदूर पश्चिम क्षेत्र) लोगों में आपसी प्रेम, धार्मिक परंपराएं और सांस्कृतिक साम्यता दोनों देशों की सांझा विरासत रही है। नेपाल के “महाकाली साहित्य संगम” के अध्यक्ष हरीश प्रसाद जोशी एवम अन्य ने भी इस मेले में शिरकत एवम चर्चा कर संबंधों को प्रगाढ़ किया। उनका कहना था कि साहित्य का समागम दोनों देशों की सीमा को पीछे छोड़ सेतु की भूमिका निभा रहा है।
पुस्तक मेले के अंतिम दिन चिड़ियों की बोलियों के विशेषज्ञ राजेश भट्ट के नेतृत्व में नंधौर वन्यजीव अभयारण्य में जंगल सफारी का कार्यक्रम रखा गया । प्रकृति और पर्यावरण को समझने, समझाने के लिए वार्ताएं जारी रहीं। डॉ नवीन जोशी के नेतृत्व में अतिथियों, सहयोगियों को राफ्टिंग भी करवाई गई।
पुस्तक मेला समिति के अध्यक्ष रोहिताश अग्रवाल, एडवोकेट धर्मेंद्र चंद व एल डी गहतोड़ी, नवल किशोर तिवारी (सचिव), अनिल चौधरी पिंकी (कोषाध्यक्ष), हंसा जोशी, जिलाधिकारी नवनीत पाण्डे, हिमांशु कफल्टिया, डॉ नवीन चंद्र जोशी, इंद्रेश लोहनी, गीता चंद ( प्रधानाचार्य), त्रिलोचन जोशी, राज भट्ट, पूर्व मिस इंडिया मनस्वी ममगाईं, प्रसिद्ध गायक राकेश खनवाल, गीत- संगीत की पूरी टीम, मधुसूदन उनियाल (सुपुत्र डॉ मायाराम उनियाल), प्रवीण भट्ट आदि की यथोचित भूमिका, उपस्थिति भी इस पुस्तक मेला आयोजन से जुड़ी रही। इस दौरान मेले में प्रकाशकों/लेखकों के स्टाल लगाए गए जिनमें २ स्टॉल सुदूर पश्चिम नेपाल के भी रहे।
जिस प्रकार आज की युवा पीढ़ी इंटरनेट पर अधिक आश्रित होती जा रही है। पुस्तकों को पढ़ने का चलन कम होता जा रहा है। नई पीढ़ी में इससे अवसाद भी बढ़ रहा है और नशे की लत भी उन्हें घेर रही है।कहा भी गया है … दोस्त, किताब, रास्ता और सोच गलत हों तो गुमराह कर देते हैं। इसलिए जब जीवन का सफर आसान करना हो तो गलत रास्तों को छोड़कर अकेला चलना भी आना चाहिए।क्योंकि खुद से और पुस्तकों से अच्छा हमसफर कोई नहीं होता ।
अच्छे साहित्य, राष्ट्र नायकों की जीवनी, प्रबुद्धजनों के विचार आदि पढ़ने के एक नहीं अनेक फायदे रहे हैं। पुस्तकें जीवन की दिशा बदलने में सक्षम रही हैं। हमारा पथ प्रदर्शन और मार्गदर्शन करती रही हैं। इंटरनेट और तकनीकी युग की शिक्षा में लोग पढ़ना ही नहीं कागज़ पर लिखना भी भूलते जा रहे हैं। कहीं ऐसा न हो जाए …
“कागज़ की ये महक यह नशा रूठने को है। ये आखिरी सदी है किताबों से इश्क की”… (सुलेखन शिरी) इसलिए जागना होगा, स्कूलों, विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि में लाइब्रेरी का विस्तार करना होगा। गांव- गांव में पुस्तकालय खोलने होंगे, समय- समय पर पुस्तक मेलों का आयोजन करते रहना होगा, वर्कशॉपस आदि लगाती रहनी होंगी आदि अनेक ऐसे उपयोगी, महत्वपूर्ण कार्य हो सकते हैं जिनसे इस बदलाव के दौर में अच्छे परिणामों की आशा की जा सकती है।
जब मंशा अच्छी हो तो कार्य भी सफल होते हैं।
कहते हैं – दिशा दिखाने वाला अगर सही है तो दीपक का प्रकाश भी सूर्य के प्रकाश के समान कार्य करता है।
– हेमा उनियाल
(ग्रंथकार: केदारखंड, मानसखंड)
1 Comment
Madhusudan Uniyal
December 28, 2023, 12:24 pmजय हो 🪷🚩🇮🇳🙏
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