बर्फ पर्यावरण के लिए, हिमालय के लिए, हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों, नदियों, झरनों, तालाबों, प्राकृतिक जलस्रोतों, जल, जंगलों, जड़ी, बूटियों, फल, फूलों, बुगयालों और यहां की फसलों के लिए वरदान है।
हिमालयी राज्यों में अभी हाल में हुई भारी बर्फबारी हिमालय के पर्यावरण के लिए, हिमालय के सौंदर्य के लिए वरदान है। बर्फ ही हिमालय का सौंदर्य है और आभूषण भी है।
बर्फ पर्यावरण के लिए, हिमालय के लिए, हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों, नदियों, झरनों, तालाबों, प्राकृतिक जलस्रोतों, जल, जंगलों, जड़ी, बूटियों, फल, फूलों, बुगयालों और यहां की फसलों के लिए वरदान है।
हिमालयी राज्यों खासकर बर्फवारी वाले इलाकों में लोग आदि अनादि काल से जीवन यापन कर रहे हैं, इन इलाकों में रहने वाले लोग जानते हैं कि बर्फवारी के दौरान जीवन यापन कैसे करना है… इन लोगों ने मौसम के हिसाब से इन स्थानों में जीवन गुजर बसर करने की तकनीक ईजाद कर रखी है।
6 महीनों तक भारी बर्फवारी के दौरान माइनस डिग्री को झेलने व बर्फीली हवाओं को मात देने के लिए घरों का निर्माण भी उसी के अनुरूप निर्माण की तकनीकी ईजाद कर रखी है… स्वयं के लिए राशन, खाने पीने, दवा दारू व मवेशियों के लिए चारे पत्ती की माकूल व्यवस्था की हुई रहती है। इतना जरूर है कि उनका आवागमन भले ही बंद हो जाता है लेकिन इसके लिए वे तैयार रहते हैं।
दरअसल पिछले डेढ़ दशक से समूचे विश्व का ऋतुचक्र डगमगा गया है। हिमालयी राज्यों में बर्फवारी जनवरी के बाद शुरू हो रही है जो मार्च तक होती है और यही बर्फबारी हिमालय और उसके पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रही है।
हिमालय में तेज़ी से बर्फ पिघलने का दौर जारी है, यहां विधमान ग्लेशियर तेज़ी के साथ पिघल रहे हैं। जिनमें मां गंगा का उद्गम श्रोत गौमुख यानी गंगोत्री ग्लेशियर सबसे तेजी के साथ पिघल रहा है।
समूचे हिमालय में जगह जगह धरती निकल आयी है, दरअसल वर्षभर हिमाच्छादित रहने वाले हिमालय में बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है, जिसके चलते समूचे हिमालय में जगह जगह जमीन दिखायी देने लग गई है, जनवरी में सूर्य मकर रेखा पर आने से मौसम में गर्माहट आ जाती है उसके बाद फरवरी से लेकर मार्च तक कि बर्फवारी हिमालय के लिए घातक साबित होती है, इस दौरान की बर्फवारी पहले से ही हिमालय में मौजूद बर्फ के लिए घातक होती है। इस दौरान की बर्फवारी पहले से मौजूद बर्फ को भी तेज़ी से पिघलने पिघलाने में सहायक बनती है। हिमालय में विद्यमान ग्लेशियरों के लिए भी जनवरी से लेकर मार्च की बर्फवारी अभिशाप बनकर आती है।
नवम्बर से लेकर दिसंबर की बर्फवारी हिमालय में विद्यमान बर्फ व ग्लेशियरों के लिए कवच का काम करती है। अक्टूबर से लेकर जनवरी तक की ही बर्फवारी से समूचे हिमालय व उसके ग्लेशियरों पर बर्फ की परतें चढ़ाती हैं।
अक्टूबर से लेकर जनवरी मध्य तक की बर्फवारी से ही ग्लेशियरों में एक के बाद एक परत बिछती जाती है, बर्फ की इन्हीं परत दर परतों से ही ग्लेशियरों का निर्माण होता है, और इन्हीं बर्फ की 2 से लेकर 12 फ़ीट मोटाई तक कि मोटी मोटी परतें हिमालय और उसके ग्लेशियरों को मई जून से लेकर सितम्बर तक सुरक्षित रखती हैं।
पिछले डेढ़ दशक से नंबर दिसंबर में बर्फवारी न होने के चलते हिमालय में विद्यमान बर्फ पिघलती रही और परिणाम ये हुआ कि हिमालय जगह जगह बर्फ से वीरान हो गया। वर्षभर बर्फ की चादर से ढके हिमालय में जगह जगह धरती निकल आई है जो आसमान झांकने लगी है।
समूचे हिमालय में बर्फ की ये मजबूत और मोटी मोटी चादरें फट ही नहीं रही हैं बल्कि उधड़ रहीं हैं। आपको बताते चलें कि फटने का इलाज तो प्रकृति के पास भी है और मानव के पास भी… लेकन उधड़ने का इलाज न प्रकृति के पास है न मानव के पास।
लोकेन्द्र सिंह बिष्ट
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