पंतनगर विश्वविद्यालय में तीन-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डा. तिलक राज शर्मा तथा विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान के द्वारा किया गया।
विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय सभागार में प्लांट ब्रीडिंग एवं जेनिटिक्स सोसाइटी द्वारा ‘पारम्परिक एवं आधुनिक पादप तकनीकों का एकत्रीकरणः प्रचलन एवं चुनौतियां’ विषय पर एक तीन-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डा. तिलक राज शर्मा तथा विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान के द्वारा किया गया। इस अवसर पर अधिष्ठाता कृषि डा. एस.के. कश्यप, निदेशक शोध डा. ए.एस. नैन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट ब्रीडिंग एवं आयोजक सचिव डा. आर.के. पंवार मंचासीन थे।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि द्वारा क्लोनिंग द्वारा विश्व में ‘डाली’ भेड़ की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए कुलपति द्वारा गाय एवं भैंस में क्लोनिंग के क्षेत्र में किये गये कार्यों की प्रशंसा की गयी और उनको देश में क्लोनिंग का जनक बताया। उनके द्वारा देश में हरित क्रांति लाने में पंतनगर विश्वविद्यालय के साथ-साथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान एवं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा किये गये प्रयासों की प्रशंसा की गयी।
उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न फसलों की 355 से अधिक प्रजातियों के विकास को एक बहुत बड़ा योगदान बताया। हाल ही में दलहनी फसलों की कई प्रजातियों के विकास के मद्देनजर दलहन में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की सुविधा देने की बात कही। उनके द्वारा 4-पी (पब्लिकेषन, पेटेंट, प्रासेस, प्रोडक्ट) पर बल दिया गया जिसमें कृषि विश्वविद्यालयों की प्रोडक्ट के लिए अहम भूमिका बतायी। इस वर्ष एएसआरबी द्वारा आयोजित एग्रीकल्चर रिसर्च सर्विसेस में वैज्ञानिक पद के लिए 11 विद्यार्थियों के लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर उनके द्वारा बधाई दी गयी।
उन्होंने बताया कि वे अपने 34 वर्ष के कार्यकाल में शोध के लिए नई तकनीकों को प्रयोग किया अथवा नई तकनीकों का विकास किया। उन्होंने कहा कि 1950 में देश का खाद्यान्न उत्पादन 50 मिलियन मैट्रिक टन था और जनसंख्या 39.6 मिलियन थी। वर्ष 2024 में खाद्यान्न उत्पादन 337 मिलियन मैट्रिक टन हो गया और जनसंख्या बढ़कर 1.46 बिलियन हो गयी। वर्ष 2047 तक हमारी जनसंख्या 1.66 बिलियन हो जाएगी और इसके लिए हमें 520 मिलियन मैट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन करना होगा जो कि एक बहुत बड़ी चुनौती है। जनसंख्या को कुपोशण से मुक्ति दिलाने के लिए विभिन्न फसलों की कुल 117 बायोफोर्टिफाइड प्रजातियां विमोचित की गयी हैं। हमें नई तकनीकों का गम्भीरतापूर्वक प्रयोग कर 520 मिलियन मैट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करना होगा।
मुख्य अतिथि द्वारा जेनेटिक्स एवं जीनोमिक्स के क्षेत्र में विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किये गये आविष्कारों पर सार्थक प्रकाश डाला गया। उनके द्वारा धान में झोंका रोग के लिए अवरोधी जीन की खोज के लिए मॉलिकूलर ब्रीडिंग के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया और उन्होंने बताया कि झोंका रोग के लिए प्रतिरोध पीआई 4 जीन भारतवर्ष में प्रचलित 100 से अधिक धान की प्रजातियों में डाला गया है जिससे कि हमें रसायन मुक्त चावल प्राप्त हो रहा है। उन्होंने जीनोम एडिटिंग के ऊपर भी विस्तृत प्रकाश डाला और बताया कि वातावरण की चुनौतियों के मद्देनजर जेनेटिक्स, मॉलिकूलर बायोलॉजी, बायोइंफॉरमेटिक्स, कम्यूटेशनल एवं फिनोमिक्स एकीकृत विधा से वांछित सफलता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि फसल विज्ञान में शोध तकनीक पर नहीं बल्कि गुण केन्द्रित होना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान द्वारा मुख्य अतिथि के रूप में डा. तिलक राज शर्मा के आगमन पर प्रशंसा जाहिर की और उनको एक लब्ध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बताया। कुलपति द्वारा भी मुख्य अतिथि द्वारा दिये गये सलाह एवं संदेश को विद्यार्थियों एवं वैज्ञानिकों को अपनाने के लिए कहा गया तथा अपने जीवन में समाज के उत्थान के लिए कितना बेहतर कर सकते है, पर बल दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल में क्लोनिंग पर सफलता 16 वर्षों के शोध के बाद मिली और आज 17 क्लोन भैंस विकसित हुई हैं जो 16-18 लीटर दूध क्षमता वाली है। अपने संबोधन के प्रारम्भ में कुलपति द्वारा जेनेटिक्स एवं प्लांट ब्रीडिंग विभाग द्वारा विभिन्न फसलों की प्रजातियों के विकास एवं हरित क्रांति के लाने में किये गये योगदान हेतु प्रशंसा की गयी।
इस अवसर पर अधिष्ठाता कृषि डा. एस.के. कश्यप एवं निदेशक शोध डा. ए.एस. नैन द्वारा भी आयोजित की जा रही संगोष्ठी की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया। विभाग के पूर्व प्राध्यापक डा. सलिल तिवारी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया और प्राध्यापक एवं दलहन वैज्ञानिक डा. एस.के. वर्मा द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर विवेकानन्द कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक डा. लक्ष्मीकांत, पूर्व विभागाध्यक्ष डा. एच.एस. चावला, विभाग के पूर्व विद्यार्थी डा. आर.पी.एस. वर्मा, डा. आर.के. सिंह, डा. एस.के. चतुर्वेदी, डा. सरबजीत सिंह, डा. ओमवीर सिंह, डा. राहुल चतुर्वेदी, विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक, विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता एवं निदेशक एवं कृषि महाविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
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