प्रतिष्ठित न्यूज संस्थानों को छोड अतुल कुमार पाण्डेय गांव में लोगों को दे रहे हैं रोजगार

प्रतिष्ठित न्यूज संस्थानों को छोड अतुल कुमार पाण्डेय गांव में लोगों को दे रहे हैं रोजगार

बीबीसी, एनडीटीवी व न्यूज एक्स जैसे मीडिया प्रतिष्ठानों में वरिष्ठ पदों पर काम करते हुए अतुल कुमार पाण्डेय ने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ उत्तराखंड के अपने गांव कोटाबाग व रानीखेत को अपनी कर्मस्थली बनाई ताकि वे अपने व अपने लोगों के साथ कुछ कर सकें।

अतुल ने अपनी तरह की सोच रखने वाले लोगों के साथ “दीर्घायु हिमालयन आर्गेनिक“ नामक एक कम्पनी शुरू की जिसने जैविक मसाले व खाद्यान्नों का उत्पादन व व्यापार शुरू किया।

उनकी कम्पनी में बजाज कम्पनी के सीईओ रहे टीसी उप्रेती व उत्तराखंड में पहले जैविक सेब के उत्पादक तथा साढ़े सात फीट ऊंचा धनिया उगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड से सम्मानित रानीखेत के बागवान गोपाल उप्रेती जैसे दर्जनभर लोग शामिल हैं, जो न सिर्फ अपने फार्म में जैविक मसाले की फसल उगा रहे हैं बल्कि इस पास के किसानों को भी इस ओर प्रोत्साहित व प्रशिक्षित कर रहे हैं।

इस कंपनी की शुरूआत 2018 में की, कम्पनी पांच साल में ही जैविक मसालों के क्षेत्र में अग्रणी कम्पनी के रूप में शुमार हो गई है। कम्पनी ने रानीखेत में अपना प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किया है।

आज इनका मसाला पूरे भारत में बिक रहा है इसके अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, डेनमार्क व दुबई जैसे देशों में निर्यात हो रहा है। कम्पनी के साथ कोटाबाग व रानीखेत के आसपास के गांवों के प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से डेढ़ सौ से अधिक परिवार जुड़े हैं।

कोटाबाग में कम्पनी की 50 गायों वाली एक गौशाला भी है, जिनके भोजन का खास ख्याल रखा जाता है, वे गायों को किसी तरह के कैमिकलयुक्त बाजारू चारा नहीं खिलाते। वे उन्हें जैविक चारा देते हैं, ताकि उनके दूध, दही, मक्खन व गोबर व गौमूत्र तक पूरी तरह जैविक रहें।

वे जैविक गेहूं के आटे की पिसाई भी पनचक्की में करवाते हैं। पनचक्की में करीब 23 डिग्री पर आटा पिसता है इसलिए उसके सभी न्यूट्रेन सुरक्षित रहते हैं।

अतुल पाण्डेय का कहना है कि दुनिया में जैविक खाद्यान्नों की मांग तेजी से बढ़ रही है और उत्तराखंड का पूरा पहाड़ी क्षेत्र बाई डिफोल्ट जैविक है। यदि सरकार इसे जैविक क्षेत्र घोषित करती है तो छोटे-छोटे किसानों को भी अच्छी आय हो सकती है। पहाड़ों में वर्षाजल संग्रहण जरूरी है ताकि पहाड़ी खेतों में सिंचाई की व्यवस्था हो सके।

हिमाचल प्रदेश के एचपीएससी की तर्ज पर यहां पैदा होने वाले फलों का जूस देशभर में बिक सके। उत्तराखंड में अगर सरकार सहकारी खेती को प्रोत्साहन दे तो पलायन की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है।

– विजेन्द्र रावत, रानीखेत

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