कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान ने कहा कि शोध से प्राप्त परिणामों को पेटेन्ट के माध्यम जहां एक संकाय सदस्य या विद्यार्थी को व्यक्तिगत लाभ होता है वहीं संस्था का भी नाम होता है और पेटेन्ट का वाणिज्यीकरण होने से आय का स्रोत भी प्राप्त होता है।
पंतनगर विश्वविद्यालय के बौद्धिक सम्पदा अधिकार प्रकोष्ठ द्वारा उत्तराखंड विज्ञान एवं तकनीकी परिषद (यूकोस्ट) के वित्तीय सहयोग से एक-दिवसीय कार्यशाला का आयोजन वर्चुअल मोड में किया गया। कार्यशाला में प्रतिभाग करने हेतु देश के विभिन्न राज्यों के कुल 129 संस्थानों से कुल 672 संकाय सदस्यों एवं विद्यार्थियों ने पंजीकरण किया था जो कि बौद्धिक सम्पदा अधिकार (आई.पी.आर.) के प्रति जागरूक होने की गम्भीरता को प्रदर्शित करता है।
मुख्य अतिथि के रूप में पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान ने कहा कि शोध से प्राप्त परिणामों को पेटेन्ट के माध्यम जहां एक संकाय सदस्य या विद्यार्थी को व्यक्तिगत लाभ होता है वहीं संस्था का भी नाम होता है और पेटेन्ट का वाणिज्यीकरण होने से आय का स्रोत भी प्राप्त होता है। बौद्धिक सम्पदा अधिकार के अन्तर्गत आने वाले सभी पहलुओं के प्रति जागरूक होना समय की मांग है और नवोन्वेषण से वैज्ञानिक पेटेन्ट की संख्या में वृद्धि कर सकते है। उनके द्वारा बीटी काटन तथा ट्रांसजेनिक मस्टर्ड से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने बौद्धिक सम्पदा अधिकार के प्रति गहन जागरूकता हेतु आहवान किया।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता डा. जय प्रकाश मिश्रा, सी.ई.ओ., आई.पी.एम.सी. एवं आईसीएआर के पूर्व सहायक महानिदेशक (आई.पी.आर.) द्वारा बौद्धिक सम्पदा अधिकार के विभिन्न पहलुओं यथा आईपीआर की संकल्पना, पेटेन्ट का महत्व, ट्रिप्स एग्रीमेंट, पेटेन्ट का वाणिज्यीकरण, जैव प्रौद्योगिकी, जैव विविधता के संदर्भ में आईपीआर तथा कृषि में पेटेन्ट से संबंधित विषयों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया।
कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं आईपीआर समन्वयक डा. बीना पांडे द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में आईपीआर की सम्भावनाओं पर प्रकाश डालते हुए पेटेन्ट कापीराइट, ट्रेडमार्क, जियोग्राफिकल इन्डीकेशन्स आदि के बारे में प्रकाश डाला।
यूकोस्ट के वैज्ञानिक हिमांशु गोयल द्वारा पारम्परिक ज्ञान और बौद्धिक सम्पदा अधिकार के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न क्षेत्रों में किस प्रकार से उसका संरक्षण और पेटेन्ट किया जा सकता है, के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला गया।
डा. सुजीत कुमार यादव, प्राध्यापक, आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, एस.के.आर.ए.यू., बीकानेर, राजस्थान द्वारा जियोग्राफिकल इन्डिकेशन्स को कृषि के क्षेत्र में बौद्धिक सम्पदा के संरक्षण के लिए टूल के बारे में वार्ता को प्रारम्भ करते हुए देश के विभिन्न राज्यों में उनके द्वारा विभिन्न उत्पादों के लिए जी.आई. पंजीकरण के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड राज्य के 18 उत्पाद जी.आई. पंजीकृत है जबकि उत्तर प्रदेश में केवल 13 उत्पाद। जी.आई. पंजीकरण व्यक्तिगत नहीं होता यह समुदाय स्तर पर होता है।
कार्यशाला का प्रारम्भ आई.पी.आर. सेल के नोडल अधिकारी एवं समन्वयक डा. जे.पी. जायसवाल ने कार्यशाला में सभी उपस्थित जनों का स्वागत करते हुए आई.पी.आर. से संबंधित आधारभूत विषयों पर प्रकाश डाला और बताया कि बौद्धिक सम्पदा अधिकार के प्रति देश में जागरूकता बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि भारत विश्व के पेटेन्ट के मामले में छठें स्थान पर है।
इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, संकाय सदस्य, विद्यार्थी तथा अन्य संस्थानों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डा. रश्मि तिवारी, सहायक प्राध्यापक, पादप रोग विज्ञान और सहायक सी.ई.ओ., आई.पी.एम.सी. द्वारा किया गया।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *