उत्तराखंड में अनेक खूबसूरत बुग्याल (मखमली घास के मैदान) हैं। ये खूबसूरत बुग्याल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटकों का मन हर लेते हैं। इन्हीं में से एक है दयारा बुग्याल। दयारा बुग्याल 10,500 फीट की ऊंचाईं पर स्थित है। यह बुग्याल जन्नत की सैर करने जैसा ही है। इसकी सुंदरता को केवल वहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है।
दयारा बुग्याल पहुंचने के बाद ट्रेकर कुछ देर बाकी दुनिया को भूलकर इसकी सुन्दरता में खो जाते हैं। दयारा बुग्याल उत्तरकाशी जिले में स्थित है। यह बुग्याल समुद्र तल से 10,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहां से हिमालय का बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखता है। यहां एक छोटी सी झील भी है। जिसकी वजह से यहां इसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। दयारा बुग्याल घास की जमीन पर 2600 मीटर से शुरू होकर 3500 मीटर तक है। सर्दियों में स्कीइंग और बर्फ की गतिविधियों की क्षमता के साथ घास के मैदान बर्फ भूमि में बदल जाते हैं जो की इस जगह को और भी सुंदर बनाता है। उत्तरकाशी जिले में ही ऐसा ही एक और खूबसूरत बुग्याल है-हरुंता बुग्याल। हरूंता बुग्याल समुद्रतल से 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी सुंदरता सम्मोहित करने वाली है। हरुंता बुग्याल इंदिरावती नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी उत्तरकाशी में आकर भागीरथी में मिल जाती है।
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 28 किमी दूर केदारनाथ मार्ग पर पड़ने वाले पर्यटन स्थल चौरंगी से हरुंता बुग्याल के लिए पैदल मार्ग शुरू होता है। छह किमी का यह सफर बेहद ही रोमांचकारी है। रास्ते में बांज, बुरांश, थुनेर, मोरू, राई का सघन जंगल है, जहां परिंदों का कोलाहल और वन्य जीवों की आवाजें सन्नाटे को तोड़ती हैं। इस ट्रैक पर पहला छोटा बुग्याल आधा किमी की दूरी पर पड़ता है। इसे खाल बुग्याल कहते हैं। यहां से ग्रामीणों की छानियां शुरू हो जाती हैं। यह जंगलों में बनाई गई पीढ़ियों पुरानी गौशालाएं व आवास हैं। हरुंता बुग्याल पहुंचते ही रास्तेभर की थकान काफूर हो जाती है।
इस बुग्याल का उल्लेख पुराणों तक में है। स्कंद पुराण के केदारखंड में हरुंता बुग्याल समेत आसपास के पहाड़ी वाले क्षेत्र को इंद्रकील पर्वत नाम से पुकारा गया है। बुग्याल के मध्य जिस स्थान से इंदिरावती नदी का उद्गम होता है, वहां बाड़ागड्डी पट्टी के ग्रामीण हर साल पूजा करने जाते हैं। हरुंता बुग्याल में बाड़ागड्डी पट्टी के अलेथ, किसनपुर, मानपुर और धनपुर गांव के ग्रामीणों की छानियां हैं। यहां पर्यटकों को आसानी से भोजन, दूध, दही, घी, मक्खन आदि उपलब्ध हो जाता है। हरुंता से एक किमी की दूरी पर एक दूसरा बुग्याल है। यहां भी किसनपुर के ग्रामीणों की छानियां हैं। पहाड़ में जंगल के बीच बनी पीढ़ियों पुरानी छानियों को गोठ भी कहते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी ग्रामीण इन्हें सहेज कर रखते हैं। ये छानियां मिट्टी-पत्थर-लकड़ी इत्यादि से बनी होती हैं, जहां ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में रहने आते हैं।
हरुंता बुग्याल जाने वाला ट्रैक बेहद रोमांचकारी है। कहीं पर चढ़ाई, कहीं पर सीधा और कहीं पर उतराई वाला। जो घाटी में उतरने और चोटी पर चढ़ने का रोमांचक एहसास कराता है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में फैले सैकड़ों एकड़ मखमली घास के मैदान क्षेत्रीय भाषा में बुग्याल को बचाने के लिए पूर्व में वेदनी बुग्याल संरक्षक समिति की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 2018 में राज्य सरकार को कई अहम निर्देश जारी किए थे। इस आदेश से प्रभावित बटर फेस्टिवल समिति ने आज उच्च न्यायलय में पूर्व के आदेश को संसोधन कराने हेतु प्रार्थना पत्र पेश किया। प्रार्थना पत्र में कहा गया कि 2018 में उच्च न्यायालय ने मखमली घास के मैदानों में पर्यटकों और पर्वतारोही की 200 से अधिक लोगों के आवागमन पर रोक लगा रखी है, इसलिए इस आदेश को संसोधित करते हुए बटर फेस्टिवल के लिए 200 सौ से अधिक लोगों की आवाजाही के लिए अनुमति दी जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से आगामी मंगलवार तक स्थिति से अवगत कराने को कहा है।
मामले के अनुसार साल 2014 में वेदनी बुग्याल संरक्षक समिति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि मानवीय दखल से उच्च हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण पर संकट आ गया है। साथ ही उच्च हिमालय की श्रेणी की तलहटी में स्थित बुग्याल यानी मखमली घास के मैदान भी चपेट आ गए हैं। जिसकी वजह से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, इसलिए इनको बचाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए जाएं कि इन क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां कम हो। पूर्व में कोर्ट ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए राज्य को निर्देश दिए थे कि पर्यवारण को ध्यान में रखते हुए सर्वप्रथम इनकी रक्षा की जाए। इन क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। 200 से अधिक पर्यटकों की आवाजाही पर रोक लगाने और जितने भी पक्के निर्माण कार्य हुए हैं, उन्हें निरस्त किया जाए। साथ ही बुग्यालों में रात्रि विश्राम पर भी रोक लगाई जाए।
प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में फैले सैकड़ों एकड़ मखमली घास के मैदान, जिन्हें क्षेत्रीय भाषा में बुग्याल व अन्य नामों से जाना जाता है इनको मानवीय गतिविधियों से बचाने को लेकर पूर्व में हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर कोर्ट ने इनको संरक्षित करने के लिए राज्य सरकार को 2018 में कई निर्देश जारी किये थे। कोर्ट ने अपने आदेश में बुग्यालों में 200 से अधिक लोगों की आवाजाही, रात्रि में रहने सहित 200 से अधिक लोगों के जाने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने बने पक्के निर्माण सहित अन्य व्यावसासिक गतिविधियों पर भी रोक लगाई थी। रूपा देवी न तो कोई पर्यावरणविद् है ना ही कोई वैज्ञानिक, ना कोई अफसर और न ही कोई राजनेता। दुनिया की चमक-धमक से कोसों दूर बस बुग्यालों को लेकर चिंतित हैं।
बुग्यालों को बचाने की उनकी अपनी परिभाषा है जो उन्होंने पहाड़ और अपने जीवन संघर्षों से सीखा। लोग उन्हें बुग्यालों की मदर टेरेसा कहकर बुलाते हैं क्योंकि जिस तरह मदर टेरेसा दीन दुखियों, मरीजों की निःस्वार्थ सेवा करती थी ठीक उसी तरह रूपा देवी भी बुग्यालों की निःस्वार्थ सेवा करती आ रही है। रूपा देवी हर साल नंदा देवी लोकजात यात्रा में वेदनी बुग्याल में आयोजित रूपकुंड महोत्सव में लोगों को बुग्यालों और हिमालय को बचाने का संदेश देती है। यही नहीं वो इस दौरान अन्य महिलाओं के संग बुग्यालों में सैलानियों और घोड़े खच्चरों की आवाजाही से जो गड्डे हो जाते हैं उन्हें मिट्टी से भरती हैं। वेदनी बुग्याल की सुंदरता को संवारती हैं।
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