देशभर के फल उत्पादक किसानों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। फल मक्खियों से फलों की बर्बादी रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे ‘इको-ट्रैप्स’ नाम दिया गया है।
जैविक प्रपंच पारंपरिक मिथाइल यूजीनोल बोतल ट्रैप्स और कीटनाशकों की तुलना में अधिक सस्ता, असरदार और पर्यावरण के अनुकूल साबित हुआ है। फल मक्खियां, विशेषकर बैक्ट्रोसेरा प्रजाति की मादा मक्खियां, आम, अमरूद, नींबू और चीकू जैसी फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाती हैं। ये कीट फल के भीतर अंडे देती हैं जिससे निकली सूंडी फल को अंदर से खराब कर देती है, फल बाजार में बिकने लायक नहीं रहता।
इको-ट्रैप्स में एक आकर्षक जैविक यौगिक होता है जो नर मक्खियों को आकर्षित कर उन्हें फंसाता है, जिससे उनका प्रजनन रुकता है और धीरे-धीरे इनकी संख्या घटती है। यह तकनीक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल) और भा.कृ.अनु.प.- राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो, बेंगलुरु के वैज्ञानिकों के सहयोग से विकसित की गई है। देश के 30 से अधिक कृषि विश्वविद्यालयों में इसके सफल परीक्षण किए जा चुके हैं।
इस तकनीक को विकसित करने में चार प्रमुख वैज्ञानिकों डॉ. पूनम श्रीवास्तव, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय (अमरूद); डॉ. के.डी. बिसाने, गनदेवी गुजरात (चीकू); डॉ. संदीप सिंह, लुधियाना, पंजाब (नींबू) एवं डॉ. वैशाली जोटे वेंगुर्ले, महाराष्ट्र (आम) ने अग्रणी भूमिका निभाई।
इको-ट्रैप्स की प्रभावशीलता के कारण डॉ. पूनम श्रीवास्तव को फरवरी 2025 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में आयोजित वार्षिक समीक्षा बैठक में आईसीएआर के उप महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) द्वारा सर्वश्रेष्ठ शोध परीक्षण वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में यह तकनीक विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध हो रही है, जहां देर से पकने वाली आम की किस्में (लंगड़ा एवं चौसा) तथा बरसाती अमरूद को अत्यधिक नुकसान होता है। पारंपरिक ट्रैप्स बरसात में पानी से भर जाते थे, जिससे उनकी कार्यक्षमता घट जाती थी, लेकिन इको-ट्रैप्स बारिश में भी प्रभावी हैं। इको-ट्रैप्स के उपयोग से तीन वर्षों में नींबू में 42 प्रतिशत, अमरूद में 39 प्रतिशत, आम में 36 प्रतिशत, और चीकू में 43 प्रतिशत तक नुकसान में कमी दर्ज की गयी।
इन ट्रैप्स को आम एवं अमरूद के बाग में 20 ट्रैप प्रति हैक्टेयर की दर से जून के माह में लगाया जाता है। ये ट्रैप्स तीन से चार महीने तक ही कार्य करता है। प्रति ट्रैप लागत केवल रु. 40/- और एक हेक्टेयर पर सिर्फ रु. 800/- खर्च आता है। बेंगलुरु में इको-ट्रैप्स के निर्माण के लिए एक पायलट प्लांट भी शुरू हो गया है, जो प्रति बैच एक लाख ट्रैप तैयार कर सकता है। इको-ट्रैप्स के उपयोग करना पर्यावरण और उपभोक्ताओं के लिए पूर्णतः सुरक्षित है और इससे किसानों की उपज में वृद्धि और उनकी आय में इज़ाफा होगा। इच्छुक किसान इन ट्रैप्स की उपलब्धता के लिए गोविंद बल्लभ पंत कृशि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर से संपर्क कर सकते हैं।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *