उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी विडंबना है। शिक्षा, रोजगार, सुख-सुविधाओं की चाह में यह कई दशकों से हो रहा है, पर लोगों ने अब गांवों में लौटना भी शुरू कर दिया है। ऐसी ही एक कहानी है कि पौड़ी गढ़वाल के बीएल मढ़वाल की, जो रिटायरमेंट के बाद गांव में बसे और उनका होमस्टे इस क्षेत्र की सबसे खूबसूरत लोकेशन पर है…।
उत्तराखंड से पलायन क्यों हुआ? इस सवाल के कई जवाब सुनने को मिल जाएंगे। क्या रिवर्स पलायन हकीकत बन पाएगा… ये एक ऐसा सवाल था जिसका जवाब कुछ समय पहले तक कोई पूरे विश्वास के साथ नहीं दे पाया। ऐसा नहीं है कि सरकारी स्तर पर रिवर्स पलायन के प्रयास नहीं हुए, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी नतीजे मनमाफिक नहीं मिले, क्योंकि लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर लौटने के प्रयास नहीं किए और जो लौटे भी वह देहरादून, काशीपुर, रामनगर, कोटद्वार, हरिद्वार में ही बस गए।
समय का चक्र देखिए जिस कोरोना संक्रमण ने पूरे विश्व की आर्थिकी को हिलाकर रख दिया, पहाड़ के निर्जन गांवों के लिए वही कोरोना वरदान साबित हुआ। गांव के बंद पड़े घरों में फिर से बहार आ गई है। गांवों का कोलाहल लौट आया है, जो गांव खामोश नजर आते थे, वहां चहल-पहल बढ़ गई है। ये तो कोरोना काल की बात रही, लेकिन कुछ ऐसे प्रयास भी हुए, जो बिना किसी शोरशराबे के किए गए। मकसद था, अपनी जड़ों तक लौटकर जाना।
होमस्टे से जिम कॉर्बेट पार्क का शानदार नजारा।
दरअसल, आधुनिक सुख-सुविधाओं की चाह में लोगों में शहर में बसने की होड़ मची थी, लेकिन कोरोना की दहशत ने लोगों को गांव के महत्व का एहसास करा दिया। जिन शहरों में लोगों ने अपनी जवानी खपा दी, उन्होंने संकट के समय साथ नहीं दिया…और जिन गांवों को शहरों की चकाचौंध के लिए उत्तराखंडी वीरान छोड़ आए थे, उन्होंने संकट के समय बाहें फैलाकर गले से लगा लिया।
हालांकि कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने अपनी जड़ों तक, गांवों तक लौटने के लिए कोरोना जैसी किसी महामारी या मजबूरी का इंतजार नहीं किया। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के नैनीडांडा ब्लॉक के गांव कपलटांडा के रहने वाले बी एल मढ़वाल ने पुलिस से डीएसपी पद से रिटायर होने के बाद गांव लौटने का फैसला किया। 2018 में वह अपने कार्य से मुक्त हुए। उनके बेटे और बहू दोनों भारतीय वायुसेना में पायलट हैं। एक बेटी हैं, जो न्यूजीलैंड में डॉक्टर है। दामाद भी आईटी कंपनी में अच्छी पोजीशन पर हैं। रिटायरमेंट के बाद वह चाहते तो शहर या अपने बच्चों के साथ कहीं भी सेटल हो सकते थे लेकिन उन्होंने गांव लौटने की सोची। उन्हें मन में यह भावना उठी कि पूरी दुनिया घूम ली गई, अब गांव में रहना चाहिए। वहां कुछ नया करना चाहिए। उन्होंने वहां एक होमस्टे बनाया। अब वह अपनी पत्नी अनीता मढ़वाल के साथ गांव में ही रहते हैं।
होम स्टे के लिए लगा दी जीवन की पूंजी
हिल-मेल को उनके भतीजे मनोज मढ़वाल ने बताया कि गांव में लोगों का ऐसा मानना है कि पैसे आएं तो देहरादून, कोटद्वार या दूसरे शहरों में जाकर घर लें और बस जाएं, लेकिन चाचाजी ने अपने जीवनभर की कमाई गांव में होम स्टे बनाने पर खर्च कर दी। उनके दिमाग में वह बात खटक रही थी कि गांव का युवा शहरों की ओर पलायन क्यों करता है और उसे रोकने की दिशा में काम करना है।
पर्यटन के लिहाज से उन्होंने होम स्टे तैयार किया। गांव में बेहतरीन सुख-सुविधाओं वाला उनका होमस्टे बहुत खूबसूरत लोकेशन पर है। मनोज बताते हैं, नैनीताल के करीब हम रहते हैं। वहीं कोटद्वार 30 किमी की दूरी पर पड़ता है। 30 किमी दूरी तक पर्यटक आते ही रहते हैं तो उन्होंने सोचा कि यहां भी पर्यटक क्यों नहीं आ सकता है। गांव के आसपास काफी घूमने की चीजें हैं। पलायन कर रहे लोगों को भी बात समझ में आई कि एक शख्स ने अपने जीवनभर की कमाई गांव में लगा दी। मनोज ने बताया कि कुल खर्च करीब 1 करोड़ रुपये आया। गांव लौटने का सबसे बड़ा फायदा पुश्तैनी घर को मिला, जो बंद था आज गुलजार है, मानों उसे नया जीवन मिल गया हो।
100 साल पुरानी तिबारी भी चर्चा का केंद्र बनी
बीएल मढ़वाल बताते हैं कि उत्तराखंड के रावत हमारे यजमान हैं। उनकी बूंगी देवी मंदिर में लगातार आवाजाही रहती है। उन्हें 3 किमी लंबी लड़ाई चढ़नी पड़ती है। यहां आने वाले लोग विश्राम कर सकें। ऐसे में हमने सोचा कि अपने पैतृक निवास को भी बेहतर करना चाहिए इसलिए उन्होंने पुराने घर का जीर्णोद्धार कर दिया। उनके घर में 100 साल पुरानी तिबारी है। उस तिबारी को नया जीवन दिया गया। घर के पिलर को बेहतर किया गया। पूरे घर को नया करने में 6 महीने का समय लगा। आज नतीजा सामने है, जो कम से कम यह सुकून देता है कि हमने अपनी विरासत को खंडहर होने से पहले सहेज लिया।
अब गांव का माहौल बदला-बदला सा नजर आने लगा है। लोग रिवर्स पलायन की बात करने लगे हैं। बी. एल. मढ़वाल क्षेत्र में एक मिसाल बन चुके हैं। कोरोना काल में लोग उनका जिक्र कर युवाओं को गांव में रहकर ही रोजगार करने की सलाह दे रहे हैं। गांव में कोरोना के कारण 5-6 परिवार लौट आए हैं। अब लोगों को लगने लगा है कि उन्हें भी गांव के बारे में सोचना चाहिए और कुछ करना चाहिए।
गांव में बसने का फायदा यह भी हुआ कि मढ़वाल दंपति को लोगों के बीच काम करने का मौका मिला। शुरुआत में जो लोग शहरी कहकर ताना मारते थे, कुछ समय बाद ही समझने लगे कि यहां नेक इरादे से बसे हैं। इसके बाद स्थानीय लोगों के आग्रह पर अनीता मढ़वाल ने नैनीडांडा के बिलकोट वार्ड 23 से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जीतीं। बीएल मढ़वाल कहते हैं कि जब हम यहां आकर बसे तो चुनाव लड़ेंगे ऐसा कभी नहीं सोचा था। लोगों के बीच छोटे-छोटे काम किए तो उन्होंने ही चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया। सेवानिवृत्ति के बाद सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करना काफी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन जब स्थानीय लोगों का समर्थन मिला तो लगा कि शायद इससे उनकी और ज्यादा मदद हो पाएगी, क्योंकि हम सरकारी नौकरी से रिटायर हुए लोग हैं, हमारे चुनाव लड़ने के लिए संसाधन नहीं थे, लेकिन लोगों ने जिताया। इससे उनके लिए काम करने की इच्छा और प्रबल हुई है।
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