ग्रीन स्कूल के संस्थापक वीरेंद्र रावत पिछले दिनों उत्तराखंड की अपनी निजी यात्रा पर थे। हमने उनसे देहरादून में शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वार किये जा रहे कार्यों पर बातचीत की, जिसमें उन्होंने कहा कि बिना जवाबदार शिक्षा व्यवस्था के जवाबदार राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता।
जिस देवभूमि में सरस्वती ज्ञान के अलावा नदी के रूप में भी विद्यमान है, जंहा महर्षि वेद व्यास और कालिदास ने जन्म लिया हो, जो भूमि आदिकाल से ज्ञान विज्ञान की उत्पत्ति का श्रोत रही हो, वहां आज सरस्वती के मंदिर सरकारों के रहमो करम पर चल रहे है अथवा वीरान और खंडहर हो गए है।
जहां सरस्वती ने खुद पाताल का मार्ग अपना लिया हो, जवानी पलायन कर रही है, पर्यटन के रूप में आ रही अय्याशी मानवभक्षी हो गयी है, सरकार दिशाहीन और दशाहीन हो चुकी है, भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। यह बात वीरेंद्र रावत ने हमसे बातचीत करते हुए कही।
ग्रीन स्कूल के संस्थापक वीरेंद्र रावत पिछले दिनों उत्तराखंड की अपनी निजी यात्रा पर थे। हमने उनसे शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे काम पर बातचीत की जिसमें उन्होंने बताया कि बिना जवाबदार शिक्षा व्यवस्था के जवाबदार राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड तो शिक्षा के राष्ट्रीय सूचकांक में भी काफी पीछे है जो चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड तो ज्ञान की धरती रही है और ज्ञान विज्ञान के संस्थान ही उत्तराखंड का वैभव वापस ला सकते है। उत्तराखंड में धार्मिक और नैसर्गिक पर्यटन से ज्यादा शिक्षा के केंद्र विश्व को आकर्षित कर सकते है, उत्तराखंड के समृद्ध विद्यालय और विश्वविद्यालय ही राज्य को विश्व व्यवस्था उच्च स्थान और मान मर्यादा दिला सकते है।
वीरेंद्र रावत ने कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक स्तिथि विश्व और ब्रह्मांड की तमाम सकारात्मक शक्तियों को आकर्षित करती है, जिससे यहां के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों से शिक्षित व्यक्ति अपनी डिग्री के साथ एक दैवीय ऊर्जा भी अपने साथ विश्व में ले जाती है।
उत्तराखंड भविष्य में सुशिक्षित मानव संसाधन बड़ा निर्यातक होगा, विश्व व्यवस्था के सकुशल संचालन में उत्तराखंड के लोग ही नेतृत्व करेंगे। वर्तमान में उत्तराखंड की राजव्यवस्था को सरकारी अधिकारियों ने अपने कब्जे में ले रखा है। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भी उनके ही कब्जे में है और सरस्वती के मंदिरों को उनकी दया पर ही जीना रहा है। पर इस कार्य में सरकार की भूमिका शायद नहीं होगी, क्योंकि उत्तम कार्याे में सरकार कभी भागीदार नहीं रही है।
वीरेंद्र रावत ने कहा के आज की स्थिति में तो निजी शिक्षा संस्थानों को शंका की नजर से देखा जा रहा है, राजकीय शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता अदृश्य हो गई है। शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने के बजाय नौकरी करने आते है। विद्यार्थी के भविष्य की कोई जबाबदारी लेने को तैयार नहीं है। माता पिता अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पहाड़ों की जमीन जायदाद बेचकर शहरों में किराये के मकानों में रह रहे है। पलायन जोरों पर है राजनेताओ के वैभव देवराज इंद्र को भी चुनौती दे रहे हैं।
इस युग का जल्दी अंत आएगा उत्तराखंड के लोग ही यहां की प्रकृति, संस्कृति और संस्कारों की शक्ति से उत्तराखंड को विश्व में उच्च स्थान दिलाएंगे। हमें उत्तराखंड की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना होगा जिससे कि आने वाले समय में उत्तराखंड से पलायन पर रोक लगेगी और यहां के बच्चे पढ़लिखकर अलग अलग क्षेत्रों में राज्य का नाम रौशन करेंगे।
वीरेंद्र रावत ने कहा कि अपने उत्तरदायी शिक्षा व्यवस्था की शक्ति के माध्यम से विश्व के 40 से ज्यादा देशों को सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान दे रहे है। वीरेंद्र रावत संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में वर्ष 2021 से विशेष सलाहकार के रूप में संयुक्त राष्ट्र की नीतियों में अपना योगदान दे रहे है।
हाल ही में वीरेंद्र रावत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क शहर में अपना कार्यालय शुरू किया है। वीरेंद्र रावत अमेरिका एक के अनेक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम में प्रकृति की शक्ति को शामिल करवाने में कामयाब रहे है।
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