केदारनाथ धाम के लिए इस बार नौ हेली सेवा प्रदाता कंपनियां तीन सेक्टर सिरसी, गुप्तकाशी व फाटा से नौ हैलीपैड से हेली सेवाएं संचालित कर रही हैं। स्थिति यह है कि प्रतिदिन ढाई सौ के लगभग उड़ानें हो रही हैं। प्रतिवर्ष यात्राकाल में लगभग डेढ़ लाख लोग हेली सेवाओं का उपयोग कर केदारनाथ पहुंचते हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
बर्फ से ढके पहाड़ों और पौराणिक मंदिरों से घिरे पवित्र केदारनाथ को मोक्ष के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। राजसी गढ़वाल हिमालय से घिरा केदारनाथ भारत के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। इस तीर्थ स्थल के दर्शन के लिए भारत भर से लोग आते हैं। भक्त केदारनाथ की यात्रा सड़क, ट्रेन या हेलीकॉप्टर से भी कर सकते हैं। हालांकि, मंदिर के लिए कोई सीधा रास्ता नहीं है, यही नहीं, आपको सोनप्रयाग से ऊपर के लिए 18 किमी चलना पड़ता है। लेकिन केदारनाथ में हेलीकॉप्टर सेवा से लोगों की तकलीफें बहुत कम हो गई हैं। मंदिर के पास ही हेलीकॉप्टर के लिए हैलीपैड बनाया गया है, जहां से लोग डेस्टिनेशन पर जाने के लिए उस जगह से हेलीकॉप्टर में चढ़ते हैं। लेकिन हाल ही में आई हेलीकॉप्टर क्रैश की खबर ने वहां जाने वाले यात्रियों को झकझोर दिया है।
अगर आप भी केदारनाथ जाने का सोच हैं, तो पहले जान लें ये सर्विस लेना कितनी सुरक्षित है और हेलीकॉप्टर में बैठने से पहले किन नियमों का पालन करना पड़ता है। उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में तीन तरफ से पर्वत शृंखलाओं से घिरे और चौथी तरफ संकरी गहरी घाटी वाले केदारनाथ क्षेत्र में हवा की दिशा और दबाव की सही जानकारी नहीं मिलती है। बावजूद इसके यहां हेलीकॉप्टर अंधाधुंध उड़ान भर रहे हैं। धाम में दो दशक बाद भी हवाई सेवा की सुरक्षा के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल रूम स्थापित नहीं किया गया है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित केदारनाथ में यात्राकाल के दौरान प्रतिदिन हेलीकाप्टरों की लगभग ढाई सौ उड़ानें हो रही हैं, लेकिन बचाव के लिए रेस्क्यू मैनेजमेंट शून्य है। शुक्रवार को केदारनाथ क्षेत्र में हेलीकाप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग में भी यह दृष्टिगोचर हुआ। तकनीकी खराबी के कारण हेलीकाप्टर अनियंत्रित हुआ तो अफरातफरी का आलम था। रेस्क्यू मैनेजमेंट जैसी कोई बात नहीं दिखी। ऐसे में हेली सेवाओं के संचालन में रेस्क्यू को लेकर प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक है।
समुद्रतल से 11657 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम के लिए यात्राकाल के दौरान इस बार नौ हेली सेवा प्रदाता कंपनियां तीन सेक्टर सिरसी, गुप्तकाशी व फाटा से नौ हैलीपैड से हेली सेवाएं संचालित कर रही हैं। स्थिति यह है कि प्रतिदिन ढाई सौ के लगभग उड़ानें हो रही हैं। प्रतिवर्ष यात्राकाल में लगभग डेढ़ लाख लोग हेली सेवाओं का उपयोग कर केदारनाथ पहुंचते हैं। इस संवेदनशील उच्च हिमालयी क्षेत्र में हेली सेवाओं के इतनी बड़ी संख्या में संचालन को लेकर पर्यावरणप्रेमी पूर्व में चिंता जता चुके हैं। बावजूद इसके हेली सेवाओं के संचालन में सुरक्षा इंतजाम पर अक्सर प्रश्न उठते आए हैं। हेली कंपनियों के लिए निश्चित ऊंचाई पर उड़ान, पायलट के पास पर्याप्त अनुभव, हैलीपैड पर प्रशिक्षित स्टाफ की व्यवस्था समेत कई प्रविधान हैं, लेकिन इन सुरक्षा मानकों की अनदेखी हो रही है। इसे लेकर तंत्र की निगरानी व्यवस्था भी प्रश्नों के घेरे में है।
यात्रा प्रारंभ होने से पहले हेली सेवाओं के मामले में तमाम तरह की तकनीकी जांच के बाद ही अनुमति देने की बात कही जाती है, लेकिन दुर्घटनाएं होने पर इनकी कलई भी खुलकर सामने आ जाती है। पिछले 11 साल के कालखंड में क्षेत्र में 10 हेली दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनकी जांच भी हुई, लेकिन इनकी रिपोर्ट शायद ही कभी सार्वजनिक हुई हों। जांच रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा को लेकर क्या कदम उठाए गए, यह किसी को नहीं मालूम। ऐसे में स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि हेली सेवाओं को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि ताजा घटनाक्रम से सबक लेते हुए उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण और डीजीसीए इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कदम उठाएंगे।
केदारनाथ में प्रतिवर्ष यात्राकाल में संचालित होती आ रही है। यह सेवा उत्तराखंड सिविल एविएशन डेवलपमेंट ऑथारिटी (यूकाडा) और डायरेक्टोरल जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीएसी) की देखरेख में संचालित की जा रही है। लेकिन दोनों संस्थाएं भी हेलीकॉप्टर और श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर आंख मूंदे हुए हैं। स्थिति यह है कि, केदारनाथ यात्रा में हैलीपैड की चेकिंग डीजीसीए के लिए खानापूर्ति बनकर रह गई है। हैलीपैड पर यात्री सुविधा और सुरक्षा के क्या-क्या प्राथमिक इंतजाम हैं, संस्था को इससे कोई लेना देना नहीं होता है। विषम परिस्थितियों वाले केदारनाथ धाम में जहां एमआई-26 और एमआई-17 हैलीपैड मौजूद हैं, लेकिन एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम स्थापित नहीं है। जिस कारण, हेलीकॉप्टर की उड़ान के दौरान पायलट को हवा के दबाव और तापमान की सही जानकारी नहीं मिल पाती है। हवा की दिशा की जानने के लिए हेली कंपनी प्रबंधन द्वारा केदारनाथ व केदारघाटी के हैलीपैड पर झंडियां लगाई गईं हैं, जिससे हवा की अनुमानित दिशा के हिसाब से हेलीकॉप्टर टेकऑफ व लैंडिंग करते हैं। केदारघाटी से केदारनाथ जब हल्की बारिश में कोहरा छाने लगता है, तब हेलीकॉप्टर की उड़ान को लेकर संयश बना रहता है। लेकिन, शासन, प्रशासन, यूकाडा और डीजीसीए इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक केदारनाथ यात्रा में हेलीकॉप्टर की उड़ान को लेकर जिला प्रशासन ने यूकाडा को कई पत्र भेजे हैं, लेकिन इनका जवाब नहीं मिलता। बीते वर्षों में जिला स्तर पर संबंधित अधिकारियों ने स्वयं भी इस बात को स्वीकार किया है कि यूकाडा और डीजीसीए हेलीकॉप्टर सेवा को लेकर किसी की नहीं सुनता है। स्थिति इस कदर है कि केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा केदारनाथ यात्रा में हेलीकॉप्टर की नीची उड़ान को लेकर संबंधित कंपनियों को 32 नोटिस जारी कि थे, लेकिन एक का भी जवाब नहीं मिला।
हेलीकॉप्टर सेवा केदारनाथ व जिला पर्यटन अधिकारी रुद्रप्रयाग केदारनाथ यात्रा में हेलीकॉप्टर सेवा के बेहतर और सुरक्षित संचालन के लिए यूकाडा व डीजीसीए को जिला प्रशासन के माध्यम से पत्र भेजा गया है। साथ ही हेली कंपनियों को उड़ान का समय और निश्चित शटल को लेकर भी निर्देशित किया गया है। आपदा प्रबंधन अधिकारी द्वारा दी गई सूचना के अनुसार क्रिस्टल एविएशन कंपनी का हेली जिसने तीर्थ यात्रियों को लेकर शेरसी से केदारनाथ के लिए उड़ान भरी उसमें तकनीकी खराबी आ गई। इस कारण हेलीकॉप्टर को आपात स्थिति में केदारनाथ हैलीपैड से पहले ही लैंडिंग कराई गई। पायलट की सूझबूझ के कारण बड़ा हादसा होने से टल गया। पायलट ने अपना धैर्य नहीं खोया एवं सूझबूझ का परिचय देते हुए आपात स्थिति में हेलीकॉप्टर की लैंडिंग कराई। लेकिन इसकी जवाबदेही किसकी है।
लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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