‘जल संरक्षण एवं जल धाराओं के पुनर्जीवन’ की थीम पर राज्य में हरेला पर्व का शुभारम्भ, 8 लाख पौधे लगाने का रखा लक्ष्य

‘जल संरक्षण एवं जल धाराओं के पुनर्जीवन’ की थीम पर राज्य में हरेला पर्व का शुभारम्भ, 8 लाख पौधे लगाने का रखा लक्ष्य

प्रत्येक साल जुलाई के महीने में हरेला पर्व मनाया जाता है। हरेला पर्व में लोग पौधों का रोपण करते हैं और पृथ्वी को हरी भरी बनी रहे इसके लिए लगातार प्रयास करते हैं ताकि लोगों को स्वच्छ हवा पानी मिल सके और लोगों का जीवन हमेशा स्वस्थ रहे।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व के अवसर पर अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज, रायपुर में ‘जल संरक्षण एवं जल धाराओं के पुनर्जीवन’ थीम पर आयोजित कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने पौधे लगाए। मुख्यमंत्री ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सराहनीय प्रयास करने वाले स्कूलों एवं वन पंचायतों को सम्मानित भी किया।

उन्होंने ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी और सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। उन्होंने कहा कि हरेला पर्व सुख, समृद्धि, शान्ति, पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है। यह पर्व सामाजिक सद्धभाव का पर्व एवं ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है। यह दिवस प्रकृति व मानव के सह अस्तित्व को स्मरण करने व प्रकृति संरक्षण के हमारे प्रण को पुनः दोहराने का दिन है। उत्तराखंड प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य है। हरेला एक ऐसा ही पर्व है, जो हमारी प्रकृति से निकटता को और अधिक प्रगाढ़ बनाता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी को प्रतिज्ञा लेनी होगी कि हम प्राकृतिक धरोहर एवं विरासत को संरक्षित कर भावी पीढ़ी को स्वच्छ पर्यावरण देंगे। इस बार राज्य में हरेला पर्व की थीम जल संरक्षण एवं जल धाराओं का पुनर्जीवन निर्धारित की गई है। उन्होंने जल संरक्षण एवं संवर्द्धन की दिशा में सभी को योगदान देने के लिए अपील की।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने सर्कुलर इकोनॉमी पर काफी जोर दिया है। क्योंकि जल संरक्षण के क्षेत्र में भी सर्कुलर इकोनॉमी की बड़ी भूमिका है, जब ट्रीटेड जल को पुनः उपयोग किया जाता है, ताजा जल को संरक्षण किया जाता है तो उससे पूरे इकोसिस्टम को बहुत लाभ होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की गैर हिम नदियों का ग्रीष्म कालीन प्रवाह बहुत कम रह गया है, जिसका प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है। उत्तराखंड में अकेले पेयजल सैक्टर में जल की आवश्यकता की गणना की जाये, तो वर्ष 2052 की सम्भावित जल की मांग लगभग 1980 एम.एल.डी. आंकी गयी है, जो कि लगभग 23 क्यूमेक है। राज्य में मांग के सापेक्ष शतही श्रोतों पर आधारित मांग 70 प्रतिशत है, जो कि लगभग 1400 एम.एल.डी. ही है।

कई विभागों द्वारा स्प्रिंगशेड सोर्स रिजूनिवेशन, कैचमेन्ट एरिया, सोर्स सस्टेनबलिटी, चाल-खाल, चौक डैम, कन्टूर ट्रैन्च आदि के कार्य कराये जा रहे है, जिसके अच्छे परिणाम भी सामने आये है। ऐसे में पूरे प्रदेश में एक मॉडल प्लान तैयार कर कार्य किये जाने की आवश्यकता है। इंडस्ट्री और खेती दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें पानी की आवश्यकता अत्यधिक होती है, इन दोनों क्षेत्रों को मिल कर जल संरक्षण अभियान चलाना होगा और लोगों को जागरूक करना होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में पिछले 9 साल से जो भी प्रमुख विकास योजनाएं संचालित हो रही हैं, उन सभी में किसी न किसी रूप से पर्यावरण संरक्षण के साथ ही जल संरक्षण का आग्रह भी है। जल संरक्षण की दिशा में प्रधानमंत्री द्वारा देशभर में अमृत सरोवर की शुरुआत की गई है। अमृत सरोवर योजना के तहत जिला स्तर, नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जर्जर हो चुके तालाबों का जीर्णोद्धार कर इन्हें पुनर्जीवित किया जा रहा है।

वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि हरेला पर्व के उपलक्ष्य में इस वर्ष प्रदेश में 8 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अभियान 15 अगस्त तक चलेगा। वृक्षारोपण के साथ ही उनके संरक्षण की दिशा में विशेष ध्यान दिया जायेगा। जिस सेक्टर में वृक्षों का सक्सेस रेट सबसे अधिक होगा, उस सेक्टर के वन दरोगा को सम्मानित किया जायेगा। 15 अगस्त को 1750 गांवों में 75-75 पेड़ लगाये जायेंगे।

वन मंत्री ने कहा कि जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में भी विशेष ध्यान देना होगा। उन्होंने सभी प्रदेशवासियों से अपील की कि पर्यावरण के संरक्षण में सभी को एकजुट होकर कार्य करना होगा। उन्होंने अपील की कि पौधे लगाकर सेल्फी विद प्लांट पोस्ट करें, जिससे हम अपनी भावी पीढ़ी को बता सकें कि हमने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या योगदान दिया।

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