पहाड़ों में इंटरनेट कनेक्टिविटी का हाल क्या है। पिछले तीन साल में कितना हुआ काम। दूरस्थ क्षेत्रों में नेटवर्क पहुंचाने के लिए क्या हो रहे प्रयास। कैसे इंटरनेट कनेक्टिविटी से ऑनलाइन बाजार पहुंच जाएगा पहाड़ों तक… इन सभी सवालों के जवाब दिए सीएम के आईटी सलाहकार ने।
हिल-मेल टीवी का लाइव शो ‘बात उत्तराखंड की’ तेजी से लोगों के बीच जगह बना रहा है। पहाड़ और उससे जुड़े मुद्दों पर रोचक चर्चा की कड़ी में इस बार का मुद्दा था उत्तराखंड में इंटरनेट कनेक्टीविटी। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आईटी सलाहकार रवींद्र दत्त पेटवाल जुड़े। साथ ही ऑनलाइन कोचिंग एक्सपर्ट दिवस गुप्ता ने भी इंटरनेट की संभावनाओं पर अपनी बात रही। रवींद्र दत्त ने प्रदेश में आईटी व्यवस्था को लेकर अहम जानकारी दी।
2000 करोड़ का खास पैकेज किसलिए
सीएम के आईटी सलाहकार ने बताया कि पिछले महीने प्रदेश को 2000 करोड़ रुपये का विशेष इंटरनेट पैकेज मिला है। यह भारत नेट 2.0 के लिए हैं। भारत नेट की परिकल्पना देश के गांवों तक इंटरनेट पहुंचाने के मकसद से की गई है। गांधी जी ने भी कहा था कि देश के विकास के लिए गांवों को सशक्त करना जरूरी हैं और सरकार उसी दिशा में बढ़ रही है।
भारत नेट से क्या होगा
भारत नेट के फायदे गिनाते हुए दत्त ने कहा कि उत्तराखंड के कुछ सीमांत इलाकों में मोबाइल इंटरनेट का भी सिग्नल नहीं है। भारत नेट के जरिए प्रदेश के 5,991 गांव कवर होंगे। उत्तराखंड राज्य के हर गांव में इंटरनेट पहुंचाने का लक्ष्य है, जिसमें 5,991 गांवों को चिन्हित किया गया है। इसके तहत नेट के लिए डेडिकेटेड फाइबर ऑप्टिकल केबल बिछाई जाएंगी। देहरादून समेत हर जिले में जिले से जिले में डेडिकेटेड लाइनें आएंगी, वहां से ब्लॉक और गांवों में जाएंगी।
अब फायदा जान लीजिए
समस्या यह होती है कि किसी फौजी भाई को ड्यूटी पर जाना है या किसी अन्य को ट्रेन का टिकट बुक करना है, वॉल्वो बुक करना है तो कर ही नहीं सकते थे। अब नेट पहुंचने से गांव में ही बैठे-बैठे टिकट बुक करा सकते हैं। कई परीक्षाओं के फॉर्म ऑनलाइन ही भरे जा रहे हैं। इसमें मदद मिलेगी। मोबाइल रिचार्ज, पेमेंट गेटवे जैसी चीजें भी गांव में ही काम करेंगे। इसके साथ ही ऑनलाइन शॉपिंग हो सकेगी।
उन्होंने कहा कि नेट भी गांवों में दो तरह के लोगों को चाहिए। पहला तो प्राइवेट तौर पर हर किसी को और दूसरा हमारी ग्राम पंचायतों को। अब हमें ई-पंचायत बनाना है। जो भी फंड आ रहा है, क्या प्रगति है, गांव के लिए नई योजनाओं को तेजी से पहुंचाने के लिए नेट का होना जरूरी है। अपेक्षित टारगेट दिसंबर 2021 का है। अभी गांवों का सर्वेक्षण चल रहा है कि कहां केबिल बिछेंगी। गांवों का चिन्हीकरण हो चुका है। टेक्नोलॉजी को भी समझा जा रहा है।
एयरटेल और रिलायंस के साथ उत्तराखंड सरकार काम कर रही है। इस समय जियो प्रदेश के हर जिले में फाइबर ऑप्टिकल लाइनें बिछा चुकी है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट प्रोवाइडर भी तेजी से काम कर रहे हैं और उत्तराखंड नेट के मामले में देश के प्रमुख राज्यों में आ रहा है।
सुदूर गावों के बच्चों तक कैसे पहुंच रही शिक्षा
पेटवाल ने बताया कि लॉकडाउन होने के बाद उत्तराखंड में शिक्षा का सत्र कैसे शुरू किया गया। प्राइवेट तो ठीक सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में आईटी सलाहकार ने बताया कि कोरोना से करीब 5-6 महीने पहले ही उत्तराखंड सरकार ने 600 स्कूलों को ई-लर्निंग के लिए तैयार कर दिया था। उन्होंने कहा कि उस समय पता नहीं था कि कोरोना आएगा लेकिन हमारी कोशिश थी कि देहरादून में एक्सपर्ट बैठकर सुदूर गांवों तक ई-लर्निंग के माध्यम से बच्चों को जानकारी पहुंचा पाएं।
रवींद्र दत्त ने कहा कि अध्यापकों की स्किल एक जैसी नहीं होती है, किसी की ज्यादा तो किसी की कम हो सकती है। ऐसे में यह पहल शुरू की गई थी। 600 स्कूलों को सैटलाइट के माध्यम से जोड़ा गया, जहां ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं। दूसरे चरण में 600 स्कूल और हैं। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के पास तो लैपटॉप, मोबाइल आदि हो सकता है लेकिन सरकारी स्कूलों में ऐसा हो, जरूरी नहीं। ऐसे में सरकार ने दूरदर्शन का सहारा लिया। दूरदर्शन के साथ मिलकर स्टडी मॉड्यूल तैयार किया। भारत सरकार ने भी एनसीईआरटी के सिलेबस को समय-समय पर पढ़ाना शुरू कर दिया। आज के समय में अगर बच्चा घर पर है और उसके घर में टीवी है तो वह शिक्षा से वंचित नहीं है। दूरदर्शन के माध्यम से भी हम बच्चों तक शिक्षा पहुंचा पा रहे हैं, हां, यह वन वे कम्युनिकेशन जरूर है।
दत्त ने कहा कि भारत नेट के अलावा हम वाई-फाई हॉटस्पॉट भी उपलब्ध कराएंगे। जिन इलाकों में फोन की सुविधा नहीं है, वहां भी इंटरनेट पहुंचने के बाद बातचीत भी शुरू हो सकेगी। इसके साथ ही बच्चों को पढ़ाने के लिए उत्तराखंड के शिक्षकों से व्हाट्सएप ग्रुप बनवाए गए और उनसे कहा गया कि वे लगातार पढ़ाई सामग्री भेजते रहें। सरकार के स्तर पर लॉकडाउन के दौरान भी सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत औसतन रोज 3-4 प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहे।
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