डा. पंवार ने 2017 में फ्रांस से केमिकल इंजीनियरिंग में अपनी पीएचडी पूरी की। इससे पहले वह श्रीलंका से 2014 में डॉक्टर ऑफ ऑनर्स (इंडस्ट्री) की डिग्री हासिल कर चुके थे। भारतीय उद्योग रतन अवॉर्ड, भारतीय निर्माण रतन अवॉर्ड समेत एक दर्जन से ज्यादा पुरस्कार पाने वाले केएस पंवार सामाजिक गतिविधियों में भी लगे हुए हैं।
पहाड़ के सपूत और मुंबई को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले डा. केएस पंवार की कहानी उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी देवभूमि को कुछ न कुछ लौटाना चाहते हैं। वह इस समय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के औद्योगिक सलाहकार हैं। उद्योग-धंधे हों, सामाजिक कार्य, खेती या अब प्रदेश की औद्योगिक गतिविधियों को रफ्तार देना… हर क्षेत्र को उन्होंने बड़ी बारीकी से समझा है। वह राज्य के प्रति अपनी बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। केमिकल इंडस्ट्री में ऊंचा मकाम हासिल करने वाले पंवार उत्तराखंड में इंडस्ट्री लाने और रोजगार के अवसर पैदा करने की कोशिशों में लगे हुए हैं।
कम लोगों को ही पता होगा कई कंपनियों के प्रमुख की भूमिका निभाते हुए भी डा. पंवार ने अपनी पुस्तैनी जमीन में सेब का बगीचा लगाया। यह उनके अपनी जमीन से जुड़ाव को दर्शाता है। रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लॉक के अपने पैतृक गांव गैड़ में कुछ साल पहले उन्होंने 6000 सेब के पौधे लगाए थे। अब वहां सेब का बागान लहलहा रहा है, कुछ साल पहले तक लोग जहां इसे लेकर गंभीर नहीं दिखते थे, आज इस बागान से प्रेरणा पाते हैं।
इसकी भी एक कहानी है। दरअसल, मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जब प्रदेश में कृषि मंत्री थे तो योजना था कि वहां एक फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाए। लेकिन आगे चलकर यह योजना सेब के बागान लगाने में बदल गई। आज त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम हैं और डा. पंवार उनके सलाहकार… तब लगा बाग अब गुलजार हो चुका है।
दरअसल, इसके पीछे एक सोच रही कि उत्तराखंड ने कभी सेब को लेकर अपना ब्रांड स्थापित करने की दिशा में काम नहीं किया। सीएम त्रिवेंद्र के राज्य की कमान संभालने और डा. पंवार के उनके साथ बतौर औद्योगिक सलाहकार जुड़ने के बाद इस दिशा में भी काफी काम हुआ है। आज राज्य में कई जगह सरकार सेब के बागान बना रही है। जहां सभी अच्छी नस्ल के सेब के पेड़ लगाए जा रहे हैं। किसानों को सेब की खेती से जोड़ने के लिए कई तरह की रियायतें दी जा रही हैं।
हिल-मेल से एक्सक्लूसिव बातचीत में डा. पंवार ने बताया कि सेब के साथ दूसरे फलों पर भी काम हो रहा है। बागवानी में काफी प्रयोग किए जा रहे हैं। सेक्टर के हिसाब से प्लानिंग पर ध्यान दिया जा रहा है। सरकार की कोशिश है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा अपना काम शुरू करने के लिए मदद की जाए। बागवानी और कृषि संभावनाओं वाले दो बड़े क्षेत्र बनकर उभरे हैं।
महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों में काम करने वाले केएस पंवार ने औद्योगिक सलाहकार की जिम्मेदारी मिलने के बाद खुद को प्रदेश के विकास में लगाया है। कोरोना काल में वह देहरादून रहे हों या मुंबई, ऑनलाइन माध्यम से सरकार और उद्योग के प्रतिनिधियों से जुड़े रहे। चीन के खिलाफ जब दुनियाभर में विरोध का माहौल बन रहा है, ऐसे में वह चीन से निकलने की कोशिश करने वाली कंपनियों को उत्तराखंड लाने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं।
डॉ. कुंवर सिंह पंवार का केमिकल के विभिन्न सेक्टरों में काम करने का 27 साल का लंबा अनुभव है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत केमट्रीट इंडिया लिमिटेड में एक प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर की थी। उन्होंने यहां केमिकल क्लीनिंग, शिप मेंटेनेंस केमिकल्स जैसी अनेक चीजों के बारे में अनुभव हासिल किया। हालांकि वह उद्यमी बनने का सपना देख रहे थे और उसके लिए मेहनत भी शुरू कर दी थी। आखिरकार उन्होंने 1999 में पॉलिगन केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड की नींव रखी और इन 20 साल में उन्होंने केमिकल से जुड़े कई असाइनमेंट का कुशलता से नेतृत्व किया।
आज वह पॉलिगन केमिकल्स के प्रबंध निदेशक हैं, जो ISO 9001:2008 कंपनी है और सिविल कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री को तमाम चीजें उपलब्ध कराती है। मुंबई में हेड ऑफिस के साथ इसका दफ्तर गुजरात, दिल्ली और देहरादून में भी है। दो प्लांट मुंबई और देहरादून में स्थापित हैं।
11 साल पहले उन्होंने देहरादून में मिनरल वाटर तैयार करने की फैक्ट्री शुरू की, जो H2O ब्रांड से काफी मशहूर हो चुकी है। इसके अलावा वह पॉलिइन्फ्रा टेक्नॉलोजीज के डायरेक्टर और सोशल ग्रुप ऑफ कंपनीज के चेयरमैन भी हैं। सोशल ग्रुप सौर ऊर्जा, फाइनेंस समेत विभिन्न क्षेत्रों में काम करता है।
डा. पंवार ने 2017 में फ्रांस से केमिकल इंजीनियरिंग में अपनी पीएचडी पूरी की। इससे पहले वह श्रीलंका से 2014 में डॉक्टर ऑफ ऑनर्स (इंडस्ट्री) की डिग्री हासिल कर चुके थे। दुनियाभर के कई देशों जैसे जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया में वह कॉन्फ्रेंस में शामिल हो चुके हैं। भारतीय उद्योग रतन अवॉर्ड, भारतीय निर्माण रतन अवॉर्ड समेत एक दर्जन से ज्यादा पुरस्कार पाने वाले केएस पंवार सामाजिक गतिविधियों में भी लगे हुए हैं।
डा. पंवार को कृषि और इंडस्ट्री सेक्टर की बारीकियों का मास्टर माना जाता है। वह जानते थे कि उत्तराखंड में उद्योग का ढांचा तभी खड़ा हो सकता है, जब यहां बड़े पैमाने पर निवेश हो। यही वजह है कि उनकी सलाह पर राज्य में इनवेस्टर समिट हुआ। राज्य सरकार ने 2018 में रायपुर स्टेडियम में इन्वेस्टर समिट का आयोजन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं आकर निवेशकों को उत्तराखंड में हर तरह की मदद देने का आश्वासन दिया था। इस समिट के बाद लगभग दो लाख करोड़ रुपये के एमओयू साइन हुए।
पहाड़ों में छोटी इंडस्ट्री लाने की कोशिश
20 साल में उत्तराखंड में उद्योगों की स्थिति पर डॉ. केएस पंवार कहते हैं कि लोगों को बहुत आकांक्षाएं हैं। हालांकि उद्योगों को देखें तो यहां काफी कुछ प्रदेश की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है। सरकार अपने स्तर पर हरसंभव प्रयास कर रही है। जैसे मैदानी इलाकों में बड़े उद्योग लग सकते हैं वैसे ही पहाड़ों में अलग तरह की छोटी इंडस्ट्री लाने की कोशिशें हो रही हैं। पलायन पर उनका कहना है कि सामान्य पलायन तो हर राज्य से होता है क्योंकि केरल का व्यक्ति उत्तराखंड में काम कर रहा है और उत्तराखंड का शख्स दक्षिणी राज्यों में रोजगार पा रहा है। पलायन के भी कई कारण हो सकते हैं। इसका सकारात्मक पहलू भी है। अगर हम आज केंद्र सरकार के साथ सर्वोच्च पदों पर 10-15 उत्तराखंडियों को पाते हैं तो यह पलायन का का पॉजिटिव पक्ष मुझे समझ में आता है। डॉ. पंवार कहते हैं कि सरकार देश के दूसरे राज्यों में बड़े पदों पर काम कर रहे लोगों को राज्य में अपने गांव आते रहने और जुड़ाव बनाए रखने की दिशा में काम कर रही है।
हिल-मेल के सवाल, डा. केएस पंवार के जवाब
सेब में उत्तराखंड का एक ब्रांड स्थापित किया जाए, आपका यह लंबे समय से प्रयास रहा है, इस दिशा में जो पहल हुई हैं, उनके बारे में कुछ बताइये?
सेब के बागान की शुरुआत हमने 2007-08 में की थी, जब माननीय मुख्यमंत्री उस समय की भाजपा सरकार में कृषि मंत्री थे। उस समय यह विचार था कि ऊखीमठ में फूट प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाए। लेकिन बाद में वहां पर सेब का बागान बनाने का विचार आया। पिछले पांच-सात साल मेहनत के बाद यह बागान धरातल पर उतरा और अब वहां सेब की अच्छी पैदावार हो रही है। जहां तक सेब के ब्रांड उत्तराखंड की बात है तो हमारे यहां उत्तरकाशी में सेब की जो सबसे अच्छी किस्म होती है, वहां के लोग भी एक समय हिमाचल की पेटियों में उसको बेचते थे। यानी सेब तो उत्तराखंड का था, लेकिन ब्रांड हिमाचल का लगने से वह उसी के नाम से बिकता था। पिछली सरकार में मुंबई में एक एपल एग्जीबिशन लगाई गई थी, वहां सेब की जो पेटियां पहुंची वह हिमाचल ब्रांड की थीं, मैंने यह बात उठाई कि अगर हम अपने सेब को हिमाचल की ब्रांडिंग के साथ बेचेंगे तो कैसे चलेगा। उत्तरकाशी का एक सेब होता है गोल्डन। उसे भी हिमाचल का बताकर बेचा जा रहा है। ब्रांड की शुरुआत मैंने अपने ही सेब के बागान से की, हमने अपनी पेटियां तैयार कराईं और फिर उन्हें उत्तराखंड के लोगो और ब्रांड नाम के साथ बाजार में भेजना शुरू किया। इस साल से उत्तराखंड सरकार ने सेब के किसानों को पेटियां मुहैया कराई हैं। इसमें उत्तराखंड का लोगो लगा है, यह अब एक ब्रांड बन चुका है। इस बार राज्यमंत्री धन सिंह रावत ने एपल फेडरेशन का गठन किया है। यह कोऑपरेटिव की तर्ज पर बनाई गई है। उसमें अब ब्रांड उत्तराखंड के नाम से ही सेब बाजार में जाएगा। लोगों को यह पता लगेगा कि यह सेब उत्तराखंड में पैदा किया गया है।
कई राज्यों से प्रवासी उत्तराखंडी लौटे, उनमें से बड़ी संख्या में लोग अपने गांव में ही रहकर कामधंधा करना चाहते हैं, क्या स्वरोजगार योजना के अलावा भी सरकार कुछ सोच रही है?
रिवर्स पलायन और वापस लौटे उत्तराखंडियों को राज्य में ही रोके रखने के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं लाई गई हैं। एग्रीकल्चर, हॉर्टीकल्चर, एडवेंचर टूरिज्म जैसे क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इनके लिए अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं। पशुपालन, भेड़ पालन, मत्स्यपालन और मुर्गी पालन जैसे क्षेत्रों पर भी काफी जोर दिया जा रहा है। सरकार की लगभग सभी योजनाओं में अनुदान रखा गया है। वहीं कई सहकारी संस्थाएं भी जीरो ब्याज पर कर्ज दे रही हैं। सरकार कई नए क्षेत्रों में संभावनाएं तलाशने पर भी विचार कर रही है। केंद्र की उड़ान योजना से राज्य के कई जिले जुड़े हैं, यहां काफी संभावनाएं उभरेंगी। वहीं एडवेंचर टूरिज्म में काफी तेजी आने वाली है। यह क्षेत्र काफी रोजगार पैदा करेगा। सरकार इस तरफ काफी ध्यान दे रही है।
उत्तराखंड में संचालित उद्योगों/कंपनियों से क्या इस बाबत बात हो रही है कि प्रवासी कामगारों को उनकी दक्षता के हिसाब से रोजगार दिया जाए?
यहां पर जो भी बड़ी या छोटी इंडस्ट्री हैं, उनमें पहले से ही लोग काम कर रहे हैं। सरकार ये तो नहीं कह सकती कि जो पहले से काम कर रहे हैं, उन्हें बाहर कर लौटे प्रवासियों को समायोजित कर दें। यह संभव नहीं है। लेकिन जहां भी संभावनाएं हैं, वहां लोगों को अवसर देने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार का ज्यादा ध्यान इस बात पर है कि लोग आत्मनिर्भर बनें। वो छोटा-मोटा ही सही, अपना कामधंधा शुरू करें। पहाड़ में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो हॉस्पिटालिटी सेक्टर में काम करते हैं, ऐसे में सरकार की कोशिश है कि वे अपना काम शुरू कर सकें।
क्या राज्य सरकार अपने स्तर पर उद्योगों को राहत देने के लिए कुछ कर रही है, जिससे वे अपने काम को तेजी से बढ़ा सकें, कोई पैकेज के बारे में सोचा जा रहा है?
जो लोग उत्तराखंड में इंडस्ट्री लगाना चाहते हैं, उन्हें सरकार की ओर से रियायतें दी जा रही हैं। कोरोना महामारी का असर वैश्विक है। बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री को इसकी मार सहनी पड़ी है। सरकार अपनी तरफ से इंडस्ट्री को जितनी सुविधा दे सकती है, उसका प्रयास किया जा रहा है।
कोरोना के बाद पर्यटन, एडवेंचर, तीर्थयात्रा आदि क्षेत्रों को अपनी रफ्तार पकड़ने में कितना समय लगेगा, आपका क्या अनुमान है?
अभी तक कोरोना ही खत्म होने की स्थिति नहीं है। एक बार कोरोना के खत्म होने की स्थिति बने तो उसके बाद भी इंडस्ट्री को दो से तीन साल का समय इससे उबरने में लगेगा। इंपोर्ट-एक्सपोर्ट सेक्टर को काफी झटका लगा है। यह सेक्टर रिवाइव होने में टाइम लगाएगा।
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