उत्तराखंड में माल्टा के लगभग 3,21,477 पेड़ है, जिसमें लगभग 16,224.86 मैट्रिक टन उत्पादन किया जाता है। यह फल शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाता है और विटामिन-सी की कमी को भी पूरा करता है। माल्टा निमोनिया, ब्लड प्रेशर और आंत संबंधित समस्याओं के लिए भी रामबाण है।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सामान्यत यह फल समुद्र तल से लगभग 1200 से 3000 मी0 की ऊंचाई तक उगाया जाता है। सर्दियों के मौसम में उत्तराखंड के मध्य ऊचाई तथा अधिक ऊचाई वाले स्थान प्रायः काफी ठंडे होते हैं। जनवरी के महीने में हिमालय क्षेत्र के निचले इलाकों जिसमें राज्य की भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 51 प्रतिशत शामिल है, में उगता है। उत्तराखंड में माल्टा मुख्यतः सीमावर्ती जिलों चमोली, पिथौरागढ, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत तथा उत्तरकाशी में बहुतायत उत्पादित किया जाता है।
उत्तराखंड उद्यान विभाग के एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में लगभग 3,21,477 पेड है, जिसमें लगभग 16,224.86 मैट्रिक टन उत्पादन किया जाता है। माल्टा उत्तराखंड का महत्वपूर्ण फल है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाता है और विटामिन-सी की कमी को भी पूरा करता है। माल्टा निमोनिया, ब्लड प्रेशर और आंत संबंधित समस्याओं के लिए भी रामबाण है। यह साइट्रस प्रजाति का फल है, जिसका वैज्ञानिक नाम सिट्रस सीनेंसिस है। माल्टा सर्दियों में पेड़ पर पकता है। माल्टे का जूस पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर है। माल्टा का सेवन शरीर में एंटीसेप्टिक और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों को बढ़ाता है। माल्टा के छिलके का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन, भूख बढ़ाने, अपच और स्तन कैंसर के घाव की दवा में भी किया जाता है।
चमोली जिले के मंडल घाटी, थराली, ग्वालदम, लोल्टी, गैरसैंण तो माल्टा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। उत्तराखंड में माल्टा केवल स्थानीय बाजारों और पर्यटकों को बेचे जाने तक ही सीमित है। वहीं हिमाचल प्रदेश में माल्टे के लिए प्रसिद्ध घाटी मडूरा में कई सालों से फैव इंडिया जैसी बड़ी कंपनियां माल्टे से कई उत्पाद तैयार कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी माल्टे को बड़े स्तर पर कारोबार से जोड़ने पर काम किया जाना जरूरी है। सरकार ने कभी पहाड़ी माल्टा और नारंगी का मोल समझा ही नहीं। एक तरफ काश्तकारों की आय दोगुनी करने की बात हो रही है। दूसरी तरफ माल्टा को 8 रुपये प्रतिकिलो खरीदा जा रहा है। बाजार भाव के आधे दाम पर भी सरकार समर्थन मूल्य रखती तो ये हालात नहीं होते। माल्टा शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढाने के साथ-साथ विटामिन-सी से भरपूर होता है। यह फल निमूनिया, ब्लडप्रेशर तथा आंत संबंधी समस्याओं के लिए भी रामबाण है।
माल्टे का जूस पौष्टिक तथा औषधीय रूप से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ चयपचय दर तथा कैलोरी जलाने की क्षमता भी बढाता है। माल्टा औषधीय रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण फल है इसमें एंटीसेप्टिक, एण्टी आक्सीडेट गुणों के साथ-साथ गुर्दे की पथरी, उच्च केलोस्ट्राल, उच्च रक्तचाप, प्रोस्टेट कैसर तथा ह्दय रोगों में भी लाभदायक पाया जाता है। माल्टा का छिलका सौन्दर्य प्रसाधन में उपयोग के अलावा भूख बढाने, अपच तथा स्तन कैंसर के घाव को कम करने के लिए भी उपयोग किया जाता है। माल्टा के फल, छिलके, रस और बीज से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। इसके छिलके का इस्तेमाल भूख बढ़ाने की दवा के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा कफ को कम करने, अपच, खांसी-जुखाम और स्तन कैंसर के घाव को कम करने के लिए भी माल्टे के छिलके बेहतरीन होते हैं।
इसके साथ ही माल्टे को एक टानिक के रुप में भी यूज किया जाता है। इसके छिलके के पाउडर से तैयार किया गया पेस्ट त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। इसकी छाल से निकाला गया तेल शरीर को डिटॉक्सिफाइ करता है। इसके साथ ही इसका तेल त्वचा में कोलेजन बनाता है। इसके बीज का इस्तेमाल सीने में दर्द और खांसी की दवा के लिए किया जा रहा है। माल्टे का रस उच्च कोलेस्ट्राल हाई बीपी, प्रोस्टेट कैंसर और दिल के दौरे जैसी बीमारियों का भी इलाज करता है। माल्टा के स्क्वैश में 32.96 मिलीग्राम विटामिन-सी होता है। इसकी 100 ग्राम की मात्रा में 8.60 ग्राम कैल्शियम, 43.91 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 7.22 ग्राम विटामिन.ए, 0.33 ग्राम प्रोटीन होता है।
पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश से तस्करी और स्थानीय स्तर पर बनाई जाने वाली जहरीली, नशीली शराब राजस्व और जनस्वास्थ्य पर नुकसानदेह साबित हो रही है। ऐसे में सरकार ने उत्तराखंड में पहाड़ी उत्पादों से बनने वाली मेट्रो मदिरा की जो नीति बनाई, वह राज्य के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार, राजस्व और पहाड़ में पलायन रोकने में मदगार साबित होगी। राज्य में मेट्रो मदिरा बनाने के लिए फलों, वनस्पतियों, पत्तियों आदि उत्पादों की मांग से पहाड़ में पारंपरिक खेती से रिवर्स माइग्रेशन भी बढ़ेगा। जेब पर नहीं पड़ेगा भार, सेहत के लिए भी कम हानिकारक सरकार ने नीति में स्पष्ट किया कि पहाड़ी फलों, उत्पादों से बनने वाली मेट्रो मदिरा पहाड़ में ही तैयार होगी। इसके अलावा मेट्रो मदिरा का नाम भी माल्टे, पुलम, सेब, आड़ू, काफल, किंगोड़, ईशर, बमोर जैसे नामों से ब्रांड तैयार होंगे। इससे स्थानीय स्तर पर बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी बढ़ेगा।
मेट्रो मदिरा का निर्माण अच्छी गुणवत्तायुक्त फलों, पत्तियों और वनस्पतियों से होगा। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से कम हानिकारक और गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छी और सस्ती होगी। खासकर इसमें 40 प्रतिशत अल्कोहल तीव्रता ब्रांडेड शराब की तर्ज पर बनाया जाएगा। यह मदिरा सरकारी ठेकों पर बिकेगी। डिस्टलरी से लेकर दुकान तक पहुंचाने, बेचने पर विभाग की कड़ी निगरानी रहेगी। माल्टा उत्पादन से आर्थिकी मजबूत होगी लेकिन आज जब उत्तराखंड में हर साल करीब 90 हजार मैट्रिक टन पैदावार हो रही है तब उसका पहाड़ के आर्थिक तंत्र में योगदान न के बराबर है। किसानों को बाजार और सही दाम न मिलना चिंता का विषय है।
माल्टे के सही दाम और बाजार न मिलना गठित मार्केटिंग बोर्ड की भूमिका पर सवालिया निशान खड़े करता है। वहीं यहां के माल्टा से गोवा में वाइन बनाने के प्रयास, माल्टा को जीआई टैग आदि पर काम करने के बावजूद भीसही दाम न मिलने के कारण माल्टा उत्पादकों के चेहरे मायूस नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि आजकल कीवी और एपल मिशन पर जोर दिया जा रहा है इसी तरह माल्टा मिशन पर भी काम होना चाहिए. प्रदेश में माल्टा फल के विपणन की कोई नीति नहीं होने के कारण काश्तकार की माल्टा फसल बंदर और पक्षी नष्ट कर रहे हैं। सरकार ने सी ग्रेड का समर्थन मूल्य 9 रूपये किलो घोषित किया है। जिसमें फल की तुड़ाई भी संभव नहीं है। ऐसे में सरकार से नाराज काश्तकार अब अपने बगीचे के माल्टे के पेड़ों को काटने की सोचने लगे हैं और वो इस संबंध में सरकार से अनुमति चाहते हैं। वहीं, अगर उन्हें अनुमति नहीं दी जाती है, तो माल्टा का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए।
उद्यान विभाग की योजना से कुछ वर्ष पूर्व 200 पेड़ माल्टा के लगाए थे, जो अब फल देने लगे हैं। वर्तमान में उनके पास 40 से 50 क्विंटल तक अच्छी गुणवत्ता का माल्टा तैयार है, लेकिन सही मूल्य न मिलने से माल्टा फल पेड़ों पर ही लगा है। उन्होंने कहा कि पिछले दो तीन वर्षों से उनकी माल्टा की फसल बिना बिके ही रह गई थी। ऐसे में उन्होंने उस समय भी सरकार से पेड़ काटने की अनुमति मांगी थी, लेकिन तत्कालीन केदारनाथ विधायक के आश्वासन के बाद उन्होंने अपनी मांग वापस ली थी। सरकार के समर्थन मूल्य से काश्तकार नाखुश ने बताया कि सरकार द्वारा केवल सी ग्रेड के माल्टा का ही समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। वह भी मात्र 9 रुपये प्रति किलोग्राम। उनके पास ए और बी ग्रेड का माल्टा उपलब्ध है। ऐसे ही कई काश्तकार और होंगे जिनके पास ए और बी ग्रेड का माल्टा होगा, लेकिन वह भी सी ग्रेड के ही भाव बिक रहा है। ऐसे में काश्तकारों को उसकी लागत भी नहीं मिल पा रही है।
उन्होंने कहा कि इससे बेहतर है कि वह अपने माल्टे को खेत में ही सड़ने दें और माल्टे के सभी पेड़ों को काटकर कुछ नया करें। पहाड़ में एक माल्टा ही ऐसा फल है, जिसका न केवल फल बल्कि बीज और छिलका भी काम आता है। ये काश्तकार की आर्थिकी में मददगार साबित हो सकता है, लेकिन सरकार सी ग्रेड के माल्टा का जूश, जैम, जैली, कैंडी और रसना पाउडर के रूप में उपयोग करने की बजाय जूस फैक्ट्री को देकर अपना पल्ला झाड़ रही है। जिसकी आड़ में जूस फैक्ट्री वाले सस्ता माल्टा खरीदकर किसानों को लूट रहे हैं। ए और बी ग्रेड के माल्टा का समर्थन मूल्य न देकर सरकार पहाड़ और काश्तकार का मजाक उड़ा रही है। हमारे परंपरागत फसलों जैसे माल्टा, बुखारा, खुमानी आदि पर भी रिसर्च चल रही है ताकि उनके उत्पादन को बढ़ाया जा सके।
हाल ही में हमने सी ग्रेड सेब की कीमतें बढ़ाई हैं, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य मिल रहा है। इससे जूस तैयार किया जाएगा। इस जूस को बाजार में हिलांस के नाम से बिक्री के लिए उतारा जाएगा। दूरस्थ खेतो में जो कि बंजर होते जा रहे है में भी माल्टा की जाये तो यह राज्य की आर्थिकी का एक बेहतर पर्याय बन सकता है। है जिसकी औषधीय तथा न्यूट्रास्यूटिकल महत्ता को देखते हुये आज विभिन्न कम्पनियां नये.नये शोध कर उत्पाद बना रही है तथा भविष्य में इसकी बढ़ती मांग हेतु इसके बहुतायत उत्पादन की आवश्यकता है। उद्यान विभाग द्वारा विगत कई वर्षों से योजनाओं में निम्नस्तर की माल्टा फल पौध बांटने का यह असर है। कभी कभी तो संतरे की पौध के नाम पर योजनाओं में माल्टे की ही पौध बांट दी जाती है। जिसका असर यह हुआ कि संतरे के बाग धीरे-धीरे कम होने लगे और माल्टा अधिक होने लगा।राज्य के पास फल उत्पादन के सही, वास्तविक आंकड़े ही नहीं है।
बिना वास्तविक सही आंकड़ों के सही नियोजन की बात करना बेमानी है। विभागीय फल उत्पादन के वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार पौड़ी जनपद, जिसको एक जनपद एक उत्पाद के अन्तर्गत नीम्बू वर्गीय फलों के अन्तर्गत चुना गया है, 2700.00 हैक्टेयर क्षेत्र फल में 5545.00 मैट्रिक टन उत्पादन दर्शाया गया है। जबकि पलायन आयोग की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार नीम्बूवर्गीय फल 831.06 हैक्टेयर क्षेत्र फल में 4710.00 मैट्रिक टन ही उत्पादन दर्शाया गया है। याने विभागीय आंकड़ों से 4714.00 हैक्टेयर कम यही हाल सभी जनपदों का है।
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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