नए भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी नई शिक्षा नीति

नए भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी नई शिक्षा नीति

एक दर्जन से अधिक नए संस्थानों और निकायों की स्थापना की परिकल्पना इस नीति में है। स्पष्ट है कि सरकार सत्ता का विकेंद्रीकरण चाहती है, जो हमारी शैक्षणिक व्यवस्था और लोकतंत्र को और सशक्त बनाएगा। शिक्षा समवर्ती कानून का क्षेत्र है और इसलिए एनईपी सहकारी संघवाद का एक मॉडल है।

  • देवेंद्र सिंह असवाल

मोदी सरकार एक के बाद एक नीतियों का निर्माण कर रही है। यह एक सकारात्मक संकेत है। एक मजबूत लोकतंत्र में, नागरिक व्यक्तिगत मनमानी के बजाय सार्वजनिक नीतियों द्वारा शासित होना पसंद करते हैं। 1986 की शिक्षा नीति के बाद कई तीव्र परिवर्तन और चुनौतियां आई हैं, जैसे विघटनकारी प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन, घटते प्राकृतिक संसाधन, शिक्षित बेरोजगारों की भरमार और रोजगार योग्य व्यक्तियों की कमी, अत्यधिक तनावपूर्ण परीक्षा प्रणाली, भारतीय मूल्यों और संवैधानिक नैतिकता का ह्रास, छात्रों में विश्लेशणातमक शक्ति का अभाव तथा शिक्षा को समावेशी, गुणात्मक, सुलभ और भारतोन्मुख (लोकल व ग्लोबल -गलोकल) बनाने की आवश्यकता।

इस पृष्ठभूमि में भारत सरकार नें नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने के लिए अक्टूबर, 2015 में टी.एस.आर. सुब्रमण्यन की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति ने मई, 2016 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट पर संसद और देशभर में चर्चायें हुई। कई नए विचार और विषय इससे उभरे। फलस्वरूप भारत सरकार ने जून, 2017 में डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 10 प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और सार्वजनिक नीति विशेषज्ञों की एक नई समिति का गठन किया। समिति ने दिसंबर, 2018 में अपनी रिपोर्ट दी। कस्तूरीरंगन की रिपोर्ट पर राष्ट्रव्यापी चर्चा हुई और देश भर से दो लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए जिन पर गहन चिंतन और विमर्श के उपरांत मसौदा राष्ट्रीय नीति शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के कुशल नेतृत्व में तैयार हुई। राष्ट्र की व्यापक भावना और भावी पीड़ी के भविष्य के हित में 29 जुलाई, 2020 को मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 को मंजूरी दी गई।

एनईपी, 2020 एक प्यापक बहुआयामी दस्तावेज है, जिसमें समावेश है- शुरुआती बचपन की देखभाल और शिक्षा; स्कूली शिक्षा; उच्च शिक्षा; व्यावसायिक शिक्षा; शिक्षकों की भर्ती, पदोन्नति और उनका निरंतर व्यावसायिक विकास; भारतीय भाषाओं का संवर्धन; लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन; वैचारिक समझ और विश्लेषात्मक सोच पर जोर; छात्रों को अपनी पसंद और अभिरुचि के अनुरूप कला और विज्ञान और अन्य विषयो के बीच चयन करने की व्यवस्था; वार्षिक परीक्षा के बजाय छात्रों के नियमित मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करना; आधुनिक प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग, सरकारों में शीर्ष निर्णय लेने के स्तर पर हितों के टकराव को समाप्त करना; विज्ञान, कला, मानविकी, गणित और पेशेवर क्षेत्रों के लिए एकीकृत, बहु-विषयक समग्र शिक्षा; कई निकास विकल्पों के साथ 3-4 साल की स्नातक की डिग्री; दो साल और एक साल के लचीले मास्टर्स डिग्री प्रोग्राम; 2030 तक प्रत्येक जिले में कम से कम एक बड़ी बहु-विषयक उच्च शिक्षा संस्था की स्थापना; संस्थागत नियामक ढांचा, समावेशी और सुलभ शिक्षा; भारतीय भाषाओं के अनुवाद के लिए संस्थागत तंत्र बनाना; अनुसंधान और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना; उत्कृष्ट छात्रों को प्रोत्साहन; राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा तथा शिक्षा के सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम में तालमेल।

3 से 6 साल के सभी बच्चों की देखभाल और शिक्षा पर विशेष बल है। पाठयक्रम और शिक्षण की शैली नवनिर्मित होगी। 10+2 स्कूली ढांचे को 5 + 3 + 3 + 4 के ढांचे में तब्दील किया जाएगा, मस्तिष्क विकास और सीखने की क्षमता के आधार पर। प्ले स्कूलों को एनसीआरटी द्वारा जारी किए जाने वाले दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। इस बात पर जोर होगा कि ग्रेड 1 से 3 तक बच्चों को साक्षरता और संख्यात्मकता का ज्ञान हो। एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित किया जाएगा जो इस दिशा में कार्य करेगा।

स्कूली शिक्षा में 100% सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) वर्ष 2030 तक सुनिश्चित किया जायेगा मौजूदा स्कूलों को अपग्रेड करके और जिन क्षेत्रों में कोई स्कूल नहीं हैं, वहां गुणवत्ता वाले स्कूलों का निर्माण किया जाएगा। एक अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट की स्थापना की जाएगी, जो उच्च शिक्षा के विभिन्न मान्यता प्राप्त संस्थानों से अर्जित शैक्षणिक क्रेडिट को डिजिटल रूप से संग्रहीत करेगा ताकि बहु एक्जिट सिस्टम के तहत अर्जित क्रेडिट्स की डिग्री लेने और आजीवन सीखने को बढ़ावा मिले। शीर्ष 100 विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में तथा शीर्ष 100 भारतीय विश्वविद्यालयों को विदेशों में अपने परिसर स्थापित करने की अनुमति दी जा सकेगी ताकि हमारे छात्र और शिक्षक श्रेयसकर शिक्षण और नवीनतम ज्ञान से लाभान्वित हो सके। व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। भारत में व्यावसायिक शिक्षा अभी 19 से 24 आयु वर्ग में 5% से कम है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया में यह क्रमशः 52,75 और 96% है। वर्तमान में अनुसंधान पर भारत में निवेश जीडीपी का 0.69% है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 2.8%, इसराइल में 4.3% और दक्षिण कोरिया में 4.2% है। इसलिए, एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी जिसमें उदार कला से लेकर विज्ञान तक की विभिन्न शाखाएं होंगी।

एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा आयोग की स्थापना की जाएगी। उच्च शिक्षा को विनियमित करने के लिए आयोग के 4 स्वतंत्र कार्यक्षेत्र होंगे जो चिकित्सा शिक्षा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर, संस्थानों की मान्यता, प्रत्यायन, वित्तपोषण, और शिक्षा के मानक स्थापन और राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा ढांचे के कार्यों को देखेंगे।

एआईसीटीई और यूजीसी नव संस्थागत ढांचे में विलीन हो जाएंगे। सभी उच्च शिक्षा संस्थान स्वायत्त स्वशासी संस्थाएं बनेंगी। 2018-19 के सर्वेक्षण के अनुसार, देश में उच्च शिक्षा के 52,649 संस्थान और 993 विश्वविद्यालय मौजूद है। विश्वविद्यालयों के साथ स्वायत्त कॉलेजों की संबद्धता अगले 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी और ऐसा विश्वविद्यालय का दर्जा माना जाएगा। सभी IIT बहु-विषयक बन जाएंगे। ओपन और डिस्टेंस लर्निंग का विस्तार किया जाएगा ताकि 100% साक्षरता हासिल की जा सके। शिक्षा में डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर सरकार को सलाह देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम की स्थापना की जाएगी। शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय को वर्तमान 4.43% की तुलना में 6% तक बढ़ाने की परिकल्पना है जैसा कि कोठारी आयोग ने भी संस्तुति दी थी।

भारत भाषाओं, कलाओं और संस्कृति का खजाना है, जो हजारों वर्षों में विकसित हुआ है। परंतु यह दुखद है कि देश ने पिछले 50 वर्षों में 220 भाषाओं को खो दिया है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को ‘लुप्तप्राय’ घोषित किया है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची की 22 भाषाएं भी, जो कई कठिनाइयों का सामना कर रही हैं, उनके शब्दकोश बनाने के लिए अकादमियों की स्थापना की जाएगी। बहुभाषावाद को बढ़ावा देने और स्थानीय भाषा में शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए तीन-भाषा फार्मूला अपनाया जाएगा। भारतीय भाषाओं के विकास, उन पर तुलनात्मक साहित्य, रचनात्मक लेखन, कला, संगीत, दर्शन, इत्यादि के लिए अकादमियों की स्थापना की जाएगी। उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को अतिथि संकाय के रूप में छात्रों को संस्कृति और स्थानीय ज्ञान या लोक विद्या के बारे में ज्ञान देगें। उच्च शिक्षण संस्थाओं को द्विभाषी या स्थानीय भाषा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। अनुवाद और इंटरप्रटेशन, कला और संग्रहालय प्रशासन, पुरातत्व, पुरातत्व संरक्षण, ग्राफिक डिजाइन और उच्च शिक्षा प्रणाली में वेब डिजाइन में डिग्री दी जाएगी। सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक भारतीय अनुवाद और इन्टरप्रटेशन संस्थान की स्थापना की जाएगी। संस्कृत विश्वविद्यालय भी उच्च शिक्षा के बहुआयामी संस्थान बनने की ओर अग्रसर होंगे। पाली, फारसी और प्राकृत के लिए राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किए जाएंगे। भारतीय कला, कला इतिहास और भारत का अध्ययन करने वाले संस्थानों के लिए भी इसी तरह की पहल की जाएगी। उत्कृष्ट अनुसंधान को राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन द्वारा समर्थित किया जाएगा। इस बात पर विशेष जोर होगा कि छात्र आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी से परिचित होने के साथ साथ भारतीय की गौरवशाली ज्ञान परंपरा और समृद्ध संस्कृति से भलीभांति परिचित हों।

एक और प्रशंसनीय विशेषता यह है कि एक दर्जन से अधिक नए संस्थानों और निकायों की स्थापना की परिकल्पना इस नीति में है। स्पष्ट है कि सरकार सत्ता का विकेंद्रीकरण चाहती है, जो हमारी शैक्षणिक व्यवस्था और लोकतंत्र को और सशक्त बनाएगा। शिक्षा समवर्ती कानून का क्षेत्र है और इसलिए, एनईपी सहकारी संघवाद का एक मॉडल है। यूनेस्को की डेलोर रिपोर्ट में लर्निगं के चार स्तंभ बताए गए हैं- जानने के लिए सीखना; कार्य करना सीखना; सीख से श्रेयसकर बनना; और साथ रहना सीखना। एनईपी इन परीक्षणों पर खरी उतरती है, बल्कि यह मानव चरित्र निर्माण का एक नया आयाम जोड़ती है। यह नीति व्यापक, उदात्त, दूरदर्शी और व्यावहारिक, लचीली, न्यायसम्य, समावेशी और ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के उदात्त लक्ष्य से परिपूर्ण है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन से हमारी नई पीड़ी पल्लवित और पुष्पित होगी और भारत पुन: एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति के रूप में उभरेगा।

(देवेंद्र सिंह असवाल पूर्व अपर सचिव, लोक सभा, संसदीय विशेषज्ञ तथा भारत सरकार की अनेक नीतियों के परीक्षण से जुड़े रहे हैं।)

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