उच्च शिक्षा में हरित ऊर्जा का प्रयोग सभी सरकारी महकमों के लिए नजीर बनने जा रहा है। प्रदेश में 105 सरकारी डिग्री कॉलेज और 12 राजकीय विश्वविद्यालय हैं। ये तमाम कॉलेज और विश्वविद्यालय अपनी खपत के लिए खुद बिजली पैदा करेंगे। अगर उन्होंने ज्यादा बिजली उत्पादित की तो मालामाल भी हो सकते हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सौर ऊर्जा प्रदेश के सरकारी डिग्री कॉलेजों व विश्वविद्यालयों की माली हालत और तकदीर दोनों को रोशन करने जा रही है। पर्यावरण के अनुकूल इस हरित ऊर्जा से इन शिक्षण संस्थाओं को बिजली के बिल में 10 करोड़ की बचत होगी। अतिरिक्त पैदा होने वाली बिजली बेची जा सकेगी। खास बात ये भी है कि इस योजना से जुड़कर उन्हें नैक की रैंकिंग के लिए अतिरिक्त 10 अंक भी मिलेंगे। यानी इन अंकों के बूते ये शिक्षण संस्थाएं उच्च शिक्षा में बढ़ा हुआ दर्जा हासिल कर सकेंगी। उच्च शिक्षा में हरित ऊर्जा का प्रयोग सभी सरकारी महकमों के लिए नजीर बनने जा रहा है। प्रदेश में 105 सरकारी डिग्री कॉलेज और 12 राजकीय विश्वविद्यालय हैं। ये तमाम कॉलेज और विश्वविद्यालय अपनी खपत के लिए खुद बिजली पैदा करेंगे। उन्होंने ज्यादा बिजली उत्पादित की तो मालामाल भी हो सकेंगे। यह सब कुछ रेस्को मॉडल पर आधारित सोलर प्लांट के बूते मुमकिन होगा। इस योजना से इन संस्थानों में बिजली का खर्च घट कर एक चौथाई रह जाएगा। सोलर प्लांट से खपत से अधिक उत्पादित बिजली को इसी दर पर सरकार खरीदेगी।
सोलर पावर प्लांट की स्थापना केंद्र सरकार से चयनित कंपनियां अपने खर्चे पर करेंगी। 25 वर्षों तक इस प्लांट की देखरेख का जिम्मा उन्हीं पर होगा। विश्वविद्यालय और कॉलेज सोलर प्लांट लगाने के लिए संबंधित कंपनी को अपने परिसर में भवनों की छत या खुला स्थान उपलब्ध कराएंगे। इस परियोजना के लिए केंद्रीय उपक्रम सोलर एनर्जी कार्पोरेशन लिमिटेड ने चार कंपनियां चिह्नित की हैं। उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (उरेडा) से समन्वय कर ये कंपनियां राज्य में रेस्को मॉडल आधारित सोलर पावर प्लांट स्थापित कर रही हैं।
वर्तमान में विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों को प्रति यूनिट करीब पांच रुपये की दर से बिजली का भुगतान करना पड़ रहा है। बिजली का सालाना खर्च करीब 20 करोड़ से ज्यादा बैठ रहा है। सौर ऊर्जा से राज्य को बड़ी बचत होगी। शिक्षण संस्थाएं प्रति यूनिट मात्र 1.89 रुपये की दर से बिजली का भुगतान संबंधित कंपनी को करेंगी। एक अनुमान के मुताबिक सौर ऊर्जा की इस योजना से बिजली खर्च में करीब 10 करोड़ की बचत होगी। बिजली खर्च बचने से उच्च शिक्षण संस्थाओं में अन्य संसाधन जुटाए जा सकेंगे। इस प्रकार सोलर पैनल के प्रयोग को बढ़ाया जाएगा, इस योजना के द्वारा देश के अन्य संस्थान भी प्रेरित होंगे, और नवीकरणीय ऊर्जा के द्वारा बिजली प्राप्त करने के लिए सोलर पैनल को स्थापित करेंगे।
सोलर पैनल के अधिक से अधिक प्रयोग से जीवाश्म ईंधन की निर्भरता को खत्म किया जा सकता है, एवं हरित भविष्य की कल्पना को साकार किया जा सकता है। सोलर पैनल पर्यावरण के अनुकूल बिजली का उत्पादन करने के लिए प्रसिद्ध हैं। जिनका प्रयोग कर के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रख के बिजली का प्रयोग किया जा सकता है। सोलर पैनलों के इसी महत्व को समझते हुए उन्हें अधिक से अधिक स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा नागरिकों को प्रोत्साहित किया जाता है। सोलर पैनल का प्रयोग कर के ही हरित भविष्य की कल्पना की जा सकती है। रुफटॉप सोलर से स्थानीय स्तर पर नया रोजगार भी पैदा होता है। पर्यावरण की रक्षा तो होती ही है। काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा एक विश्लेषण में पता चला कि रूफटॉप सोलर सबसे अधिक नौकरी देने वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में प्रति मेगावॉट प्रति वर्ष 24.72 नौकरी पैदा होती है। जबकि ग्राउंड-माउंटेड सोलर के लिए मात्र 3.45 नौकरी पैदा होती है। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में प्रति वर्ष प्रति मेगावॉट 1.27 नौकरी पैदा होती है।
उत्तराखंड में उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए कई महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। उच्च शिक्षा मंत्री ने बैठक करते हुए महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों को अपने परिसरों में सोलर पैनल लगाने के निर्देश दिए हैं। ताकि बिजली के खर्चों को कम करते हुए इसका उपयोग बाकी महत्वपूर्ण कार्य में किया जा सके। उच्च शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान विभिन्न शिक्षण संस्थानों के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। इस दौरान ग्रीन कैंपस की अवधारणा को धरातल में उतारने के लिए सभी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय के साथ उनके परिसरों में सोलर पैनल लगाने के निर्देश विभाग के अधिकारियों को दिए हैं। इसके लिए अधिकारियों को जल्द से जल्द सर्वे करने और इसके लिए विस्तृत कार्य योजना बनाने के लिए कहा गया है।
लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।
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