उत्तराखंड सरकार भी निराश्रित गौवंश के लिए गौशालाओं पर जोर दे रही है, ताकि अधिक से अधिक निराश्रित गौवंश को एक ठिकाना दिया जा सके। उत्तराखंड राज्य में करीब साढ़े 27 हजार निराश्रित गौवंश हैं, जो सड़कों पर घूम रहे हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हर साल 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि लोगों को पशुओं के प्रति बेहतर व्यवहार और पशुओं के कल्याण के लिए जागरूक किया जा सके। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि पशुओं पर क्रूरता की जाती है। कांजी हाउस में पशुओं को भूख और बीमारी से मरने के लिए छोड़ दिया है। सड़कों पर घूमते मवेशी श्रद्धालुओं एवं स्थानीय लोगों की जान के लिए भी खतरा बन रहे हैं। हालांकि तमाम ऐसे सामाजिक संगठन भी हैं, जो जानवरों के इलाज के लिए बेहतर काम कर मिसाल कायम कर रहे हैं।
उत्तराखंड सरकार भी निराश्रित गौवंश के लिए गौशालाओं पर जोर दे रही है, ताकि अधिक से अधिक निराश्रित गौवंश को एक ठिकाना दिया जा सके। उत्तराखंड राज्य में करीब साढ़े 27 हजार निराश्रित गौवंश हैं, जो सड़कों पर घूम रहे हैं। कई बार ये गौवंश सड़क दुर्घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। इसके चलते न सिर्फ लोगों का नुकसान होता है, बल्कि कई बार गौवंश की भी मौत हो जाती है। इसके अलावा भी प्रदेश में छोटे जानवरों की संख्या लाखों में है, जो लोगों के लिए समस्याएं खड़ी करते रहे हैं। यही वजह है कि दुनियाभर में हर साल 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस मनाया जाता है, ताकि पशुओं के कल्याण और उनके अधिकारों को लेकर तमाम महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जा सके। लोगों को पशुओं के कल्याण के लिए जागरूक किया जा सके।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पशुओं के वेलफेयर के लिए तमाम सामाजिक संगठन काम कर रहे हैं। इसी क्रम में दून एनिमल वेलफेयर सोसाइटी भी देहरादून में पशुओं के उत्थान के लिए पिछले 8 सालों से काम कर रही है। दून एनिमल वेलफेयर के फाउंडर से बातचीत करते हुए बताया कि स्ट्रीट पशुओं के अलावा पर्सनल पालतू जानवरों संबंधित रोजाना दो-तीन कॉल उनके पास आती हैं। लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए डॉग्स को ले आते हैं, लेकिन बाद में डॉग्स को सड़क पर छोड़ देते हैं। ऐसे में लोग मानवता भूल चुके हैं। साथ ही जानवरों के साथ क्रूरता भी कर रहे हैं। जानवरों से क्रूरता के भी तमाम मामले उनके पास सामने आ रहे हैं। जब किसी जानवर के घायल होने की सूचना उनको मिलती है, तो उनकी तरफ से वेटरनरी डॉक्टर की टीम भेजी जाती है।
एनिमल वेलफेयर के फाउंडर ने बताया कि साल 2016 में दून एनिमल वेलफेयर की स्थापना की थी। इसके बाद से ही वेलफेयर सोसाइटी को संचालित कर रहे हैं। इन आठ सालों के भीतर दून एनिमल वेलफेयर में 70 से 80 हजार स्ट्रीट जानवरों का इलाज कर चुके हैं। इसके साथ ही करीब साढ़े चार हजार बड़े जानवरों का भी इलाज कर चुके हैं। उनके शेल्टर्स में करीब 2,000 पशु रह रहे हैं। इनमें गाय, बैल, घोड़ा, खरगोश, कुत्ते समेत अन्य जानवर शामिल हैं। एनिमल सेंटर चलाना इतना आसान नहीं है। इसके लिए राज्य सरकार और लोगों के सहयोग की जरूरत होती है। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से जानवरों की फीडिंग के लिए मदद की जाती है। इसके साथ ही समाज के लोगों की भी मदद की काफी जरूरत रहती है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार गौवंश संरक्षण के लिए काफी काम कर रही है। इसके तहत राज्य सरकार की ओर से प्रदेश भर में 70 गौ सदन बनाए जा रहे हैं। लिहाजा अगले कुछ सालों में प्रदेश के निराश्रित गौवंश को रहने का ठिकाना मिल जाएगा। साथ कहा कि राज्य सरकार और गौ सेवा आयोग के सहयोग से दून एनिमल वेलफेयर में उत्तराखंड का पहला को आइसोलेशन वार्ड शुरू किया है, जहां 24 घंटे सेवाएं दी जा रही हैं। पशुपालन मंत्री ने जनता से अपील की कि इको सिस्टम में जानवरों का एक बड़ा रोल है। ऐसे में लोगों को चाहिए कि जानवरों का ध्यान रखने के साथ ही उनके प्रति करुणा रखें। लिहाजा सभी लोग कैसे एक साथ रह सकते हैं, इस संबंध में मिलकर काम करना चाहिए. ताकि जानवरों के साथ होने वाली क्रूरता पर लगाम लगाई जा सके। साथ ही कहा कि उत्तराखंड राज्य देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने निराश्रित गौवंश के लिए मंत्रिमंडल से पॉलिसी पास की है। प्रदेश में करीब साढे 27 हजार निराश्रित गौवंश हैं। लिहाजा निराश्रित गौवंश के लिए सरकार ने जो पॉलिसी तैयार की है, उसके तहत सभी जिलाधिकारियों को यह अधिकार दिया है कि वो किसी भी सरकारी भूमि को गौशाला बनाने के लिए ट्रांसफर कर सकते हैं।
उत्तराखंड में 70 गौशाला बनाने की डीपीआर बन चुकी है। इसके लिए 17 करोड़ रुपए भी जारी किए जा चुके हैं। तमाम गौशाला निर्माण का कार्य लगभग 50 फीसदी पूरा हो चुका है। जैसे ही गौशाला तैयार हो जाएंगी, उसके बाद निराश्रित गौवंश को इन गौशालाओं में शिफ्ट किया जाएगा। खटीमा में एक गौशाला बनायी गयी थी, जिसमें करीब 1,000 निराश्रित गौवंश को रखा गया था। लेकिन बाढ़ की वजह से इस गौशाला को नुकसान हुआ है, जिसके चलते एक अल्टरनेट जगह ढूंढी जा रही है, जहां इन सभी निराश्रित पशुओं को रखा जाएगा। मानव-वन्यजीव संघर्ष ने इन प्रजातियों को खतरे की कगार पर ला खड़ा किया है। बाघ जो कभी अदम्य शक्ति का प्रतीक था अब जंगल के छोटे-छोटे हिस्सों में घूमता है। भारतीय गैंडे जिनकी संख्या कभी शिकार के कारण कम हो गई थी, अपने आवास के नुकसान और अपने सींग के लिए अवैध शिकार के निरंतर दबाव का सामना कर रहे हैं।
इसी तरह एशियाई शेर, जिसकी आबादी अब गिर के जंगल तक सीमित है अपने आखिरी बचे प्राकृतिक आवास में अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है। यह छोटी आबादी सीमित क्षेत्र में जीवित रहती है, जिससे वे बीमारी के प्रकोप या जंगल की आग जैसी भयावह घटनाओं के प्रति अधिक संकट में हैं, जो उन्हें हमेशा के लिए खत्म कर सकती हैं। भारत की प्राकृतिक विरासत के प्रतीक ये जीव केवल जानवर नहीं हैं, वे पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं जो जीवन को बनाए रखते हैं, जिसमें हमारा जीवन भी शामिल है।
हालांकि विश्व पशु दिवस का समाज पर काफी असर पड़ा है, पिछले कुछ दशकों में, इसने पशुओं के साथ व्यवहार करने के तरीके में भारी बदलाव लाने में मदद की है। सरकारों ने सख्त पशु कल्याण कानून पारित किए हैं, उद्योगों ने क्रूरता-मुक्त प्रथाओं को अपनाया है और उपभोक्ता पशु उत्पादों के मामले में नैतिक विकल्पों के महत्व के बारे में अधिक जागरूक हो गए हैं। यह दिन पशुओं के अधिकारों और पर्यावरण की स्थिरता के बीच संबंध की गहरी समझ को भी बढ़ावा देता है। दुनिया के कई सबसे गंभीर पर्यावरणीय मुद्दे, जैसे जंगलों के काटे जाने और जलवायु में बदलाव, सीधे तौर पर जानवरों के आवासों को नष्ट करने की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे जैव विविधता का नुकसान होता है। जानवरों की सुरक्षा करके, विश्व पशु दिवस पर्यावरण संरक्षण की व्यापक मुकाबले में भी योगदान देता है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं और वह दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।)
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