भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस से पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान पर जारी श्रृंखला की पहली कड़ी में कृष्णानंद उप्रेती को शामिल किया गया है। उप्रेती के पौत्र ने इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस जिले की अत्यधिक प्रभावशाली हस्तियों में शुमार उनके दादा ने इस दूरस्थ क्षेत्र में पहला कार्यालय खोला था और कुली बेगार प्रथा को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित स्व. कृष्णानंद उप्रेती के आजादी आंदोलन के संघर्ष व त्याग को भारत के गृह मंत्रालय ने नमन किया है। मंत्रालय ने महान स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में उनके संघर्षों की जीवन गाथा को अपनी वेबसाइट पर जारी किया है। इस सीरीज की पहली जीवन गाथा स्व. कृष्णानंद की जारी हुई है। कृष्णानंद उप्रेती का जन्म 1895 में पिथौरागढ़ जिले के हुड़ेती गांव में हुआ था। उन्होंने कुली बेगार आंदोलन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके प्रयासों से 1928 में पिथौरागढ़ जिले में पहला हाईस्कूल स्थापित हुआ। 1920 के असहयोग आंदोलन के दौरान कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में कुली बेगार, कुली उत्तर और कुली बर्दयाश की प्रथा का सख्त पालन हो रहा था।
उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दिवंगत कृष्णानंद उप्रेती के देश की आजादी में दिए गए योगदान से लोगों को परिचित कराने के लिए केंद्र सरकार ने उनकी जीवनगाथा जारी की है। भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस से पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान पर जारी श्रृंखला की पहली कड़ी में कृष्णानंद उप्रेती को शामिल किया गया है। उप्रेती के पौत्र ने इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस जिले की अत्यधिक प्रभावशाली हस्तियों में शुमार उनके दादा ने इस दूरस्थ क्षेत्र में पहला कार्यालय खोला था और कुली बेगार प्रथा को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।
वर्ष 1895 में पिथौरागढ़ शहर के निकट हुड़ेती गांव में जन्मे उप्रेती राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के करिश्माई व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे। इस बारे में राजेश मोहन ने कहा, ‘उन्होंने न केवल 1920 में कांग्रेस की सदस्यता ली बल्कि 1921 में हुड़ेती गांव में अपने मकान में कांग्रेस का पहला कार्यालय भी खोला।‘ पिथौरागढ़ के एक सरकारी स्कूल में अध्यापक राजेश मोहन ने कहा कि इसके बाद क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर हमारे गांव में एक सम्मेलन किया और वे उप्रेती के नेतृत्व में एकजुट होना शुरू हुए।
उन्होंने कहा कि सूर घाटी में कांग्रेस का पहला कार्यालय खुलने के बाद पिथौरागढ़ के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों जैसे प्रयागदत्त पंत, लक्ष्मण सिंह महर, दुर्गादत्त जोशी, जमन सिंह वल्दिया आदि ने गांधीजी के आह्वान पर लोगों को ब्रिटिश राज के खिलाफ संगठित करना शुरू किया बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में संचालित आंदोलन के कारण 1921 में समाप्त हुई कुली बेगार प्रथा, जिसे कुली उत्तराखंड या कुली बरदैस के नाम से भी जाना जाता है, में भी उप्रेती का अहम योगदान रहा। इस प्रथा के तहत कुमाऊं क्षेत्र के गांवों में रहने वाले लोगों को बिना किसी भुगतान के ब्रिटिश अधिकारियों के सामान की ढुलाई करने के लिए मजबूर किया जाता था।
कृष्णानंद की जीवगाथा के अनुसार, उप्रेती ने पिथौरागढ़ में बड़ी संख्या में लोगों को कुली बेगार प्रथा के खिलाफ संगठित किया और आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 13 और 21 फरवरी 1921 को पिथौरागढ़ और गंगोलीहाट में जनसभाएं कर इस अपमानजनक प्रथा के विरूद्ध भाषण दिए और उन्हें जागरूक किया। कुली बेगार आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उप्रेती को एक मार्च 1922 को छह माह के कठोर कारावास की सजा सुनाई गयी थी। इस संबंध में उन्होंने कहा कि जब लोगों ने कृष्णानंद उप्रेती से अस्कोट के राजबर द्वारा आम किसानों पर अत्याचारों की शिकायत की तो वह जमींदारों के खिलाफ खड़े हो गए और संघर्ष छेड़ दिया। उन्होंने कहा कि इस संघर्ष की परिणिति यह हुई कि जमींदार को अपने रुख से पीछे हटना पड़ा। उप्रेती के प्रयासों से ही 1928 में पिथौरागढ़ में पहला हाईस्कूल खुला। उप्रेती ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया जिसके लिए उन्हें 1930 में अल्मोड़ा जेल में छह माह की सजा काटनी पड़ी।
राजेश मोहन ने कहा कि उप्रेती ने न केवल आजादी के आंदोलन में बल्कि ब्रिटिश अधिकारियों की शोषण और दमनात्मक नीतियों के विरूद्ध सामाजिक सुधार और वन आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों के पारंपरिक वन अधिकारों के लिए संघर्ष करने के कारण 1923 में उन्हें फिर तीन माह के लिए कारावास की सजा सुनाई गयी। अपने अथक प्रयासों से उन्होंने पिथौरागढ़ में कुली बेगार के खिलाफ बड़ी संख्या में लोगों को संगठित किया और वह संबंधित रजिस्टरों समेत 1000 लोगों के साथ बागेश्वर पहुंचे। इसके बाद लोगों ने प्रतिज्ञा की कि वे अधिकारियों को मुफ्त और जबरन सेवाएं नहीं देंगे और सभी रजिस्टरों को बागेश्वर में सरयू नदी में फेंक दिया। इस प्रकार 14 जनवरी 1921 को कुली बेगार आंदोलन का समापन हुआ।
राजेश मोहन ने कहा कि उस समय के अन्य गांधीवादी नेताओं की तरह उप्रेती भी जमींदारों द्वारा आम जनता पर अत्याचारों के विरूद्ध थे। कुली बेगार प्रथा समाप्त करने के बाद कृष्णानंद उप्रेती ने जनपद में लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से बर्मा की यात्रा की और वहां से चंदा इकट्ठा कर गांव वालों की जमीन मांग कर पिथौरागढ़ में 1928 में सर्वप्रथम हाईस्कूल की स्थापना की। इससे पहले पिथौरागढ़ में सिर्फ पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाई होती थी। जिसके बाद यहां के लोग अल्मोड़ा पढ़ने जाते थे, जो हर किसी के बस की बात नहीं थी। इसे देखते हुए पिथौरागढ़ में सर्वप्रथम हाईस्कूल खोलने का श्रेय भी कृष्णानंद उप्रेती को ही जाता है देश की आजादी के लिए संघर्ष करने के बावजूद उप्रेती आजादी का सूरज नहीं देख पाए और 1937 में 42 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)
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