राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों की सर्वाइवल जंग

राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों की सर्वाइवल जंग

उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं वन विभाग और सरकार के लिए चुनौती बनती जा रही है। इस संघर्ष से पार पाने के लिए वन विभाग की तरफ से कुछ कदम भी उठाए गए हैं, लेकिन धरातल पर उनका कोई खास असर नहीं दिख रहा है।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले बाघों की अच्छी खासी संख्या है। राज्य के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लेकर दूसरे तमाम इलाकों में भी टाइगर्स (बाघों) की मौजूदगी आसानी से मिल रही है। लेकिन प्रदेश में टाइगर रिजर्व का ही एक ऐसा इलाका भी है, जहां टाइगर्स सर्वाइव नहीं कर पाए हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व दो हिस्सों में बंटा हुआ है। ईस्ट की ओर राजाजी का ईस्टर्न पार्ट कहलाता है। पश्चिम का इलाका वेस्टर्न पार्ट के नाम से पहचाना जाता है। खास बात यह है कि राजाजी टाइगर रिजर्व के यह दोनों ही क्षेत्र आपस में जुड़े हुए हैं। लेकिन टाइगर्स की मौजूदगी को लेकर दोनों में एक बड़ा अंतर देखा गया है।

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अध्ययन के दौरान यह स्पष्ट हुआ है कि राजाजी टाइगर रिजर्व के पूर्वी और पश्चिम इलाके में टाइगर्स की मौजूदगी के लिए पर्याप्त भोजन मौजूद है। इसके बावजूद केवल पूर्वी (ईस्टर्न) हिस्से में ही टाइगर्स की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसके विपरीत पश्चिमी इलाके में बाघ खुद सर्वाइव नहीं कर पा रहे हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व के पूर्वी हिस्से की बात करें तो टाइगर्स की मौजूदगी यहां कुल 177 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अध्ययन से यह पता चलता है कि इस क्षेत्र में बाघों के लिए केयरिंग कैपेसिटी का मानक करीब 20 से 28 बाघ तक ही सीमित है।

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट यह बताती है कि ये इलाका अधिकतम 28 बाघों तक की क्षमता रखता है। लेकिन इस क्षेत्र में वर्तमान में 50 से ज्यादा बाघ मौजूद हैं। अध्ययन यह भी बताता है कि इस इलाके में पर स्क्वायर किलोमीटर के लिहाज से बाघ के लिए शिकार के रूप में 93 वन्य जीव मौजूद हैं। इसमें चीतल, सांभर, हिरण, जंगली सूअर जैसे वन्य जीव शामिल हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व का पश्चिमी क्षेत्र, पूर्वी इलाके से काफी बड़ा है और यहां टाइगर्स के लिए भोजन भी पूर्वी इलाके से ज्यादा है। लेकिन इस सबके बावजूद भी यहां पर टाइगर्स धीरे-धीरे कम हुए हैं। अब स्थिति यह है कि यहां गिनती के करीब चार वयस्क बाघ ही मौजूद हैं। इन्हें भी कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से यहां पर शिफ्ट किया गया है।

राजाजी टाइगर रिजर्व के वेस्टर्न पार्ट को देखें तो वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये पश्चिम क्षेत्र करीब 380 स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है। जहां पर टाइगर्स की संख्या के लिहाज से केयरिंग कैपेसिटी करीब 60 टाइगर्स तक हो सकती है। यानी इस क्षेत्र में आसानी से 60 टाइगर्स रह सकते हैं। लेकिन फिलहाल यहां चार टाइगर ही मौजूद हैं। अध्ययन बताता है कि इस इलाके में टाइगर्स के शिकार वाले वन्यजीवों की संख्या करीब 134 जीव पर स्क्वायर किलोमीटर के रूप में मौजूद है। टाइगर रिजर्व के पश्चिमी क्षेत्र में पर्याप्त भोजन की मौजूदगी और बड़ा इलाका होने के बावजूद यहां टाइगर्स नहीं होना सभी के लिए हैरत भरा है।

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया टाइगर रिजर्व के पश्चिमी इलाके में बाघों के सर्वाइव नहीं कर पाने के पीछे कई वजह बताता है। इस इलाके में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि राजाजी टाइगर रिजर्व का पश्चिमी इलाका इंसानी गतिविधियों से बेहद ज्यादा प्रभावित है। इसीलिए पर्याप्त भोजन के साथ पूर्व की तुलना में कई गुना बड़ा होने के बावजूद यहां टाइगर नहीं रह पाते। अध्ययन के अनुसार देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार में कई मानव बस्ती इस क्षेत्र को असुरक्षित बना रही हैं। इसके अलावा मानव बस्ती के कारण प्रदूषण और अपशिष्ट पदार्थ भी इस इलाके की स्थिति को खराब कर रहे हैं। हालांकि, टाइगर रिजर्व के रूप में 18 अप्रैल 2015 में यह क्षेत्र अधिसूचित कर दिया गया था। लेकिन इस क्षेत्र के आसपास तमाम विकास कार्यों ने वन्यजीवों की गतिविधियों को प्रभावित किया है।

उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं वन विभाग और सरकार के लिए चुनौती बनती जा रही है। इस संघर्ष से पार पाने के लिए वन विभाग की तरफ से कुछ कदम भी उठाए गए हैं, लेकिन धरातल पर उनका कोई खास असर नहीं दिख रहा है, बल्कि हालात हर साल बदतर होते जा रहे हैं। वन्यजीवों के हमले की घटनाओं ने इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को बढ़ा दिया है, लेकिन इसके लिए केवल वन्यजीव ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि देखा जाए तो इन घटनाओं के लिए इंसान ज्यादा दोषी है। जिससे बाघ गांवों की ओर रूख कर रहे हैं। बहरहाल, कॉर्बेट पार्क के अधिकारी इन होटलों और रिसॉर्ट को बनने से क्यों नहीं रोक पा रहे हैं, यह बड़ा सवाल बना हुआ है। जबकि, ग्रामीण दहशत में जीने को मजबूर हैं। इसके लिए सरकार और राजनेताओं को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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